१ (१३४७-१३७८)

01-1_1347 सुषमिद्धो न ...{Loading}...

सु꣡ष꣢मिद्धो न꣣ आ꣡ व꣢ह दे꣣वा꣡ꣳ अ꣢ग्ने ह꣣वि꣡ष्म꣢ते। हो꣡तः꣢ पावक꣣ य꣡क्षि꣢ च ॥ 01-1:1347 ॥

विस्वर-मूलम् (VC)

सुषमिद्धो न आ वह देवाꣳ अग्ने हविष्मते । होतः पावक यक्षि च ॥१३४७॥

01-2_1348 मधुमन्तं तनूनपाद्यज्ञम् ...{Loading}...

म꣡धु꣢मन्तं तनूनपाद्य꣣ज्ञं꣢ दे꣣वे꣡षु꣢ नः कवे। अ꣣द्या꣡ कृ꣢णुह्यू꣣त꣡ये꣢ ॥ 01-2:1348 ॥

विस्वर-मूलम् (VC)

मधुमन्तं तनूनपाद्यज्ञं देवेषु नः कवे । अद्या कृणुह्यूतये ॥१३४८॥

01-3_1349 नराशंसमिह प्रियमस्मिन्यज्ञ ...{Loading}...

न꣢रा꣣श꣡ꣳस꣢मि꣣ह꣢ प्रि꣣य꣢म꣣स्मि꣢न्य꣣ज्ञ꣡ उप꣢꣯ ह्वये। म꣡धु꣢जिह्वꣳ हवि꣣ष्कृ꣡त꣢म् ॥ 01-3:1349 ॥

विस्वर-मूलम् (VC)

नराशꣳसमिह प्रियमस्मिन्यज्ञ उप ह्वये । मधुजिह्वꣳ हविष्कृतम् ॥१३४९॥

01-4_1350 अग्ने सुखतमे ...{Loading}...

अ꣡ग्ने꣢ सु꣣ख꣡त꣢मे꣣ र꣡थे꣢ द꣣वा꣡ꣳ ई꣢डि꣣त꣡ आ व꣢꣯ह। अ꣢सि꣣ हो꣢ता꣣ म꣡नु꣢र्हितः ॥ 01-4:1350 ॥ ॥1 (रा)॥ [धा. 18 । उ नास्ति । स्व. 2।]

मूलम् (VC)

अ꣡ग्ने꣢ सु꣣ख꣡त꣢मे꣣ र꣡थे꣢ दे꣣वा꣡ꣳ ई꣢डि꣣त꣡ आ व꣢꣯ह । अ꣢सि꣣ हो꣢ता꣣ म꣡नु꣢र्हितः ॥१३५०॥

विस्वर-मूलम् (VC)

अग्ने सुखतमे रथे देवाꣳ ईडित आ वह । असि होता मनुर्हितः ॥१३५०॥

02-1_1351 यदद्य सूर ...{Loading}...

य꣢द꣣द्य꣢꣫ सूर꣣ उ꣢दि꣣ते꣡ऽना꣢गा मि꣣त्रो꣡ अ꣢र्य꣣मा꣢। सु꣣वा꣡ति꣢ सवि꣣ता꣡ भगः꣢꣯ ॥ 02-1:1351 ॥

मूलम् (VC)

य꣢द꣣द्य꣢꣫ सू꣣र उ꣢दि꣣ते꣡ऽना꣢गा मि꣣त्रो꣡ अ꣢र्य꣣मा꣢ । सु꣣वा꣡ति꣢ सवि꣣ता꣡ भगः꣢꣯ ॥१३५१॥

विस्वर-मूलम् (VC)

यदद्य सूर उदितेऽनागा मित्रो अर्यमा । सुवाति सविता भगः ॥१३५१॥

02-2_1352 सुप्रावीरस्तु स ...{Loading}...

सु꣣प्रावी꣡र꣢स्तु꣣ स꣢꣫ क्षयः꣣ प्र꣡ नु याम꣢꣯न्त्सुदानवः। ये꣢ नो꣣ अ꣡ꣳहो꣢ऽति꣣पि꣡प्र꣢ति ॥ 02-2:1352 ॥

मूलम् (VC)

सु꣣प्रावी꣡र꣢स्तु꣣ स꣢꣫ क्षयः꣣ प्र꣡ नु याम꣢꣯न्त्सुदानवः । ये꣡ नो꣢ अ꣡ꣳहो꣢ऽति꣣पि꣡प्र꣢ति ॥१३५२॥

विस्वर-मूलम् (VC)

सुप्रावीरस्तु स क्षयः प्र नु यामन्त्सुदानवः । ये नो अꣳहोऽतिपिप्रति ॥१३५२॥

02-3_1353 उत स्वराजो ...{Loading}...

उ꣣त꣢ स्व꣣रा꣢जो꣣ अ꣡दि꣢ति꣣र꣡द꣢ब्धस्य व्र꣣त꣢स्य꣣ ये꣢। म꣣हो꣡ राजा꣢꣯न ईशते ॥ 02-3:1353 ॥ ॥2 (खि)॥ [धा. 11 । उ 2 । स्व. 3।]

मूलम् (VC)

उ꣣त꣢ स्व꣣रा꣢जो꣣ अ꣡दि꣢ति꣣र꣡द꣢ब्धस्य व्र꣣त꣢स्य꣣ ये꣢ । म꣣हो꣡ राजा꣢꣯न ईशते ॥१३५३॥

विस्वर-मूलम् (VC)

उत स्वराजो अदितिरदब्धस्य व्रतस्य ये । महो राजान ईशते ॥१३५३॥

03-1_1354 उ त्वा ...{Loading}...

उ꣡ त्वा꣢ मदन्तु꣣ सो꣡माः꣢ कृणु꣣ष्व꣡ राधो꣢꣯ अद्रिवः। अ꣡व꣢ ब्रह्म꣣द्वि꣡षो꣢ जहि ॥ 03-1:1354 ॥

मूलम् (VC)

उ꣡ त्वा꣢ मन्दन्तु꣣ सो꣡माः꣢ कृणु꣣ष्व꣡ राधो꣢꣯ अद्रिवः । अ꣡व꣢ ब्रह्म꣣द्वि꣡षो꣢ जहि ॥१३५४॥

विस्वर-मूलम् (VC)

उ त्वा मन्दन्तु सोमाः कृणुष्व राधो अद्रिवः । अव ब्रह्मद्विषो जहि ॥१३५४॥

03-2_1355 पदा पणीनराधसो ...{Loading}...

प꣣दा꣢ प꣣णी꣡न꣢रा꣣ध꣢सो꣣ नि꣡ बा꣢धस्व म꣣हा꣡ꣳ अ꣢सि। न꣢꣫ हि त्वा꣣ क꣢श्च꣣ न꣡ प्रति꣢꣯ ॥ 03-2:1355 ॥

विस्वर-मूलम् (VC)

पदा पणीनराधसो नि बाधस्व महाꣳ असि । न हि त्वा कश्च न प्रति ॥१३५५॥

03-3_1356 त्वमीशिषे सुतानामिन्द्र ...{Loading}...

त्व꣡मी꣢शिषे सु꣣ता꣢ना꣣मि꣢न्द्र꣣ त्व꣡मसु꣢꣯तानाम्। त्व꣢꣫ राजा꣣ ज꣡ना꣢नाम् ॥ 03-3:1356 ॥ ॥3 (ठि)॥

मूलम् (VC)

त्व꣡मी꣢शिषे सु꣣ता꣢ना꣣मि꣢न्द्र꣣ त्व꣡मसु꣢꣯तानाम् । त्व꣢꣫ꣳ राजा꣣ ज꣡ना꣢नाम् ॥१३५६॥

विस्वर-मूलम् (VC)

त्वमीशिषे सुतानामिन्द्र त्वमसुतानाम् । त्वꣳ राजा जनानाम् ॥१३५६॥

04-1_1357 आ जागृविर्विप्र ...{Loading}...

आ꣡ जागृ꣢꣯वि꣣र्वि꣡प्र꣢ ऋ꣣तां꣢ म꣢ती꣣ना꣡ꣳ सोमः꣢꣯ पुना꣣नो꣡ अ꣢सदच्च꣣मू꣡षु꣢। स꣡प꣢न्ति꣣ यं꣡ मि꣢थु꣣ना꣢सो꣣ नि꣡का꣢मा अध्व꣣र्य꣡वो꣢ रथि꣣रा꣡सः꣢ सु꣣ह꣡स्ताः꣢ ॥ 04-1:1357 ॥

मूलम् (VC)

आ꣡ जागृ꣢꣯वि꣣र्वि꣡प्र꣢ ऋ꣣तं꣢ म꣢ती꣣ना꣡ꣳ सोमः꣢꣯ पुना꣣नो꣡ अ꣢सदच्च꣣मू꣡षु꣢ । स꣡प꣢न्ति꣣ यं꣡ मि꣢थु꣣ना꣢सो꣣ नि꣡का꣢मा अध्व꣣र्य꣡वो꣢ रथि꣣रा꣡सः꣢ सु꣣ह꣡स्ताः꣢ ॥१३५७॥

विस्वर-मूलम् (VC)

आ जागृविर्विप्र ऋतं मतीनाꣳ सोमः पुनानो असदच्चमूषु । सपन्ति यं मिथुनासो निकामा अध्वर्यवो रथिरासः सुहस्ताः ॥१३५७॥

04-2_1358 स पुनान ...{Loading}...

स꣡ पु꣢ना꣣न꣢꣫ उप꣣ सू꣢रे꣣ द꣡धा꣢न꣣ ओ꣡भे अ꣢꣯प्रा꣣ रो꣡द꣢सी꣣ वी꣡ ष आ꣢꣯वः। प्रि꣣या꣢ चि꣣द्य꣡स्य꣢ प्रिय꣣सा꣡स꣢ ऊ꣣ती꣢ स꣣तो꣡ धनं꣢꣯ का꣣रि꣢णे꣣ न꣡ प्र य꣢꣯ꣳ सत् ॥ 04-2:1358 ॥

विस्वर-मूलम् (VC)

स पुनान उप सूरे दधान ओभे अप्रा रोदसी वी ष आवः । प्रिया चिद्यस्य प्रियसास ऊती सतो धनं कारिणे न प्र यꣳसत् ॥१३५८॥

04-3_1359 स वर्धिता ...{Loading}...

स꣡ व꣢र्धि꣣ता꣡ वर्ध꣢꣯नः पू꣣य꣡मा꣢नः꣣ सो꣡मो꣢ मी꣣ढ्वा꣢ꣳ अ꣣भि꣢ नो꣣ ज्यो꣡ति꣢षावित्। य꣡त्र꣢ नः꣣ पू꣡र्वे꣢ पि꣣त꣡रः꣢ पद꣣ज्ञाः꣢ स्व꣣र्वि꣡दो꣢ अ꣣भि꣡ गा अद्रि꣢꣯मि꣣ष्ण꣢न् ॥ 04-3:1359 ॥ ॥4 (तै)॥ [धा. 19 । उ 1 । स्व. 8।]

मूलम् (VC)

स꣡ व꣢र्धि꣣ता꣡ वर्ध꣢꣯नः पू꣣य꣡मा꣢नः꣣ सो꣡मो꣢ मी꣣ढ्वा꣢ꣳ अ꣣भि꣢ नो꣣ ज्यो꣡ति꣢षावीत् । य꣡त्र꣢ नः꣣ पू꣡र्वे꣢ पि꣣त꣡रः꣢ पद꣣ज्ञाः꣢ स्व꣣र्वि꣡दो꣢ अ꣣भि꣡ गा अद्रि꣢꣯मि꣣ष्ण꣢न् ॥१३५९॥

विस्वर-मूलम् (VC)

स वर्धिता वर्धनः पूयमानः सोमो मीढ्वाꣳ अभि नो ज्योतिषावीत् । यत्र नः पूर्वे पितरः पदज्ञाः स्वर्विदो अभि गा अद्रिमिष्णन् ॥१३५९॥

05-1_1360 मा चिदन्यद्वि ...{Loading}...

मा꣡ चि꣢द꣣न्य꣡द्वि श꣢꣯ꣳसत꣣ स꣡खा꣢यो꣣ मा꣡ रि꣢षण्यत। इ꣢न्द्र꣣मि꣡त्स्तो꣢ता꣣ वृ꣡ष꣢ण꣣ꣳ स꣡चा꣢ सु꣣ते꣡ मुहु꣢꣯रु꣣क्था꣡ च꣢ शꣳसत ॥ 05-1:1360 ॥

विस्वर-मूलम् (VC)

मा चिदन्यद्वि शꣳसत सखायो मा रिषण्यत । इन्द्रमित्स्तोता वृषणꣳ सचा सुते मुहुरुक्था च शꣳसत ॥१३६०॥

05-2_1361 अवक्रक्षिणं वृषभम् ...{Loading}...

अ꣣वक्रक्षि꣡णं꣢ वृष꣣भं꣡ य꣢था꣣ जु꣢वं꣣ गां꣡ न च꣢꣯र्षणी꣣स꣡ह꣢म्। वि꣣द्वे꣡ष꣢णꣳ सं꣣व꣡न꣢नमुभयङ्क꣣रं꣡ मꣳहि꣢꣯ष्ठमुभया꣣वि꣡न꣢म् ॥ 05-2:1361 ॥ ॥5 (यी)॥ [धा. 17 । उ नास्ति । स्व. 4।]

मूलम् (VC)

अ꣣वक्रक्षि꣡णं꣢ वृष꣣भं꣡ य꣢था꣣ जु꣢वं꣣ गां꣡ न च꣢꣯र्षणी꣣स꣡ह꣢म् । वि꣣द्वे꣡ष꣢णꣳ सं꣣व꣡न꣢नमुभयङ्क꣣रं꣡ मꣳहि꣢꣯ष्ठमुभया꣣वि꣡न꣢म् ॥१३६१॥

विस्वर-मूलम् (VC)

अवक्रक्षिणं वृषभं यथा जुवं गां न चर्षणीसहम् । विद्वेषणꣳ संवननमुभयङ्करं मꣳहिष्ठमुभयाविनम् ॥१३६१॥

06-1_1362 उदु त्ये ...{Loading}...

उ꣢दु꣣ त्ये꣡ मधु꣢꣯मत्तमा꣣ गि꣢रः꣣ स्तो꣡मा꣢स ईरते। स꣣त्राजि꣡तो꣢ धन꣣सा꣡ अक्षि꣢꣯तोतयो वाज꣣य꣢न्तो꣣ र꣡था꣢ इव ॥ 06-1:1362 ॥

विस्वर-मूलम् (VC)

उदु त्ये मधुमत्तमा गिरः स्तोमास ईरते । सत्राजितो धनसा अक्षितोतयो वाजयन्तो रथा इव ॥१३६२॥

06-2_1363 कण्वा इव ...{Loading}...

क꣡ण्वा꣢ इव꣣ भृ꣡ग꣢वः꣣ सू꣡र्या꣢ इव꣣ वि꣢श्व꣣मि꣢द्धी꣣त꣡मा꣢शत। इ꣢न्द्र꣣ꣳ स्तो꣡मे꣢भिर्म꣣ह꣡य꣢न्त आ꣣य꣡वः꣢ प्रि꣣य꣡मे꣢धासो अस्वरन् ॥ 06-2:1363 ॥ ॥6 (ला)॥ [धा. 14 । उ नास्ति । स्व. 2।]

मूलम् (VC)

क꣡ण्वा꣢ इव꣣ भृ꣡ग꣢वः꣣ सू꣡र्या꣢ इव꣣ वि꣢श्व꣣मि꣢द्धी꣣त꣡मा꣢शत । इ꣢न्द्र꣣ꣳ स्तो꣡मे꣢भिर्म꣣ह꣡य꣢न्त आ꣣य꣡वः꣢ प्रि꣣य꣡मे꣢धासो अस्वरन् ॥१३६३॥

विस्वर-मूलम् (VC)

कण्वा इव भृगवः सूर्या इव विश्वमिद्धीतमाशत । इन्द्रꣳ स्तोमेभिर्महयन्त आयवः प्रियमेधासो अस्वरन् ॥१३६३॥

07-1_1364 पर्यू षु ...{Loading}...

प꣢र्यू꣣ षु꣡ प्र ध꣢꣯न्व꣣ वा꣡ज꣢सातये꣣ प꣡रि꣢ वृ꣣त्रा꣡णि꣢ स꣣क्ष꣡णिः꣢। द्वि꣣ष꣢स्त꣣र꣡ध्या꣢ ऋण꣣या꣡ न꣢ ईरसे ॥ 07-1:1364 ॥

मूलम् (VC)

प꣢र्यू꣣ षु꣡ प्र ध꣢꣯न्व꣣ वा꣡ज꣢सातये꣣ प꣡रि꣢ वृ꣣त्रा꣡णि꣢ स꣣क्ष꣡णिः꣢ । द्वि꣣ष꣢स्त꣣र꣢ध्या꣢ ऋण꣣या꣡ न꣢ ईरसे ॥१३६४॥

विस्वर-मूलम् (VC)

पर्यू षु प्र धन्व वाजसातये परि वृत्राणि सक्षणिः । द्विषस्तरध्या ऋणया न ईरसे ॥१३६४॥

07-2_1365 अजीजनो हि ...{Loading}...

अ꣡जी꣢जनो꣣ हि꣡ प꣢वमान꣣ सू꣡र्यं꣢ वि꣣धा꣢रे꣣ श꣡क्म꣢ना꣣ प꣡यः꣢। गो꣡जी꣢रया꣣ र꣡ꣳह꣢माणः꣣ पु꣡र꣢न्ध्या ॥ 07-2:1365 ॥

विस्वर-मूलम् (VC)

अजीजनो हि पवमान सूर्यं विधारे शक्मना पयः । गोजीरया रꣳहमाणः पुरन्ध्या ॥१३६५

07-3_1366 अनु हि ...{Loading}...

अ꣢नु꣣ हि꣡ त्वा꣢ सु꣣त꣡ꣳ सो꣢म꣣ म꣡दा꣢मसि (महे समर्यराज्ये)* ॥ 07-3:1366 ॥ ॥7 (ल)॥ [धा. 9 । उ नास्ति । स्व. 1।]

मूलम् (VC)

अ꣢नु꣣ हि꣡ त्वा꣢ सु꣣त꣡ꣳ सो꣢म꣣ म꣡दा꣢मसि महे समर्यराज्ये । वाजाँ अभि पवमान प्र गाहसे ॥१३६६॥

विस्वर-मूलम् (VC)

अनु हि त्वा सुतꣳ सोम मदामसि महे समर्यराज्ये । वाजाँ अभि पवमान प्र गाहसे ॥१३६६॥

08-1_1367 परि प्र ...{Loading}...

प꣢रि꣣ प्र꣡ ध꣢न्व꣡ (वाजाँ अभि पवमान प्र गाहसे । परि प्र धन्वेन्द्राय सोम स्वादुर्मित्राय पूष्णे भगाय )* ॥ 08-1:1367 ॥

मूलम् (VC)

प꣢रि꣣ प्र꣡ ध꣢न्वे꣡न्द्राय सोम स्वादुर्मित्राय पूष्णे भगाय ॥१३६७॥

विस्वर-मूलम् (VC)

परि प्र धन्वेन्द्राय सोम स्वादुर्मित्राय पूष्णे भगाय ॥१३६७॥

08-2_1368 एवामृताय महे ...{Loading}...

ए꣣वा꣡मृता꣢꣯य म꣣हे꣡ क्षया꣢꣯य꣣ स꣢ शु꣣क्रो꣡ अ꣢र्ष दि꣣व्यः꣢ पी꣣यू꣡षः꣢ ॥ 08-2:1368 ॥

विस्वर-मूलम् (VC)

एवामृताय महे क्षयाय स शुक्रो अर्ष दिव्यः पीयूषः ॥१३६८॥

08-3_1369 इन्द्रस्ते सोम ...{Loading}...

इ꣡न्द्र꣢स्ते सोम सु꣣त꣡स्य꣢ पेया꣣त्क्र꣢त्वे꣣ द꣡क्षा꣢य꣣ वि꣡श्वे꣢ च दे꣣वाः꣢ ॥ 08-3:1369 ॥ ॥8 (ला)॥

मूलम् (VC)

इ꣡न्द्र꣢स्ते सोम सु꣣त꣡स्य꣢ पेया꣣त्क्र꣢त्वे꣣ द꣡क्षा꣢य꣣ वि꣡श्वे꣢ च दे꣣वाः꣢ ॥१३६९॥

विस्वर-मूलम् (VC)

इन्द्रस्ते सोम सुतस्य पेयात्क्रत्वे दक्षाय विश्वे च देवाः ॥१३६९॥

09-1_1370 सूर्यस्येव रश्मयो ...{Loading}...

सू꣡र्य꣢स्येव र꣣श्म꣡यो꣢ द्रावयि꣣त्न꣡वो꣢ मत्स꣣रा꣡सः꣢ प्र꣣सु꣡तः꣢ सा꣣क꣡मी꣢रते। त꣡न्तुं꣢ त꣣तं꣢꣫ परि꣣ स꣡र्गा꣢स आ꣣श꣢वो꣣ ने꣡न्द्रा꣢दृ꣣ते꣡ प꣢वते꣣ धा꣢म꣣ किं꣢ च꣣न꣢ ॥ 09-1:1370 ॥

विस्वर-मूलम् (VC)

सूर्यस्येव रश्मयो द्रावयित्नवो मत्सरासः प्रसुतः साकमीरते । तन्तुं ततं परि सर्गास आशवो नेन्द्रादृते पवते धाम किं चन ॥१३७०॥

09-2_1371 उपो मतिः ...{Loading}...

उ꣡पो꣢ म꣣तिः꣢ पृ꣣च्य꣡ते꣢ सि꣣च्य꣢ते꣣ म꣡धु꣢ म꣣न्द्रा꣡ज꣢नी चोदते अ꣣न्त꣢रा꣣स꣡नि꣢। प꣡व꣢मानः सन्त꣣निः꣡ सु꣢न्व꣣ता꣡मि꣢व꣣ म꣡धु꣢मान् द्र꣣प्सः꣢꣫ परि꣣ वा꣡र꣢मर्षति ॥ 09-2:1371 ॥

विस्वर-मूलम् (VC)

उपो मतिः पृच्यते सिच्यते मधु मन्द्राजनी चोदते अन्तरासनि । पवमानः सन्तनिः सुन्वतामिव मधुमान्द्रप्सः परि वारमर्षति ॥१३७१॥

09-3_1372 उक्षा मिमेति ...{Loading}...

उ꣣क्षा꣡ मि꣢मेति꣣ प्र꣡ति꣢ यन्ति धे꣣न꣡वो꣢ दे꣣व꣡स्य꣢ दे꣣वी꣡रुप꣢꣯ यन्ति निष्कृ꣣त꣢म्। अ꣡त्य꣢क्रमी꣣द꣡र्जु꣢नं꣣ वा꣡र꣢म꣣व्य꣢य꣣म꣢त्कं꣣ न꣢ नि꣣क्तं꣢꣫ परि꣣ सो꣡मो꣢ अव्यत ॥ 09-3:1372 ॥ ॥9 (ग)॥ [धा. 26 । उ 3 । स्व. 4।]

मूलम् (VC)

उ꣣क्षा꣡ मि꣢मेति꣣ प्र꣡ति꣢ यन्ति धे꣣न꣡वो꣢ दे꣣व꣡स्य꣢ दे꣣वी꣡रुप꣢꣯ यन्ति निष्कृ꣣त꣢म् । अ꣡त्य꣢क्रमी꣣द꣡र्जु꣢नं꣣ वा꣡र꣢म꣣व्य꣢य꣣म꣢त्कं꣣ न꣢ नि꣣क्तं꣢꣫ परि꣣ सो꣡मो꣢ अव्यत ॥१३७२॥

विस्वर-मूलम् (VC)

उक्षा मिमेति प्रति यन्ति धेनवो देवस्य देवीरुप यन्ति निष्कृतम् । अत्यक्रमीदर्जुनं वारमव्ययमत्कं न निक्तं परि सोमो अव्यत ॥१३७२॥

10-1_1373 अग्निं नरो ...{Loading}...

अ꣣ग्निं꣢꣫ नरो꣣ दी꣡धि꣢तिभिर꣣र꣢ण्यो꣣र्ह꣡स्त꣢च्युतं जनयत प्रश꣣स्त꣢म्। दू꣣रेदृ꣡शं꣢ गृ꣣ह꣡प꣢तिमथ꣣व्यु꣢म् ॥ 10-1:1373 ॥

विस्वर-मूलम् (VC)

अग्निं नरो दीधितिभिररण्योर्हस्तच्युतं जनयत प्रशस्तम् । दूरेदृशं गृहपतिमथव्युम् ॥१३७३॥

10-2_1374 तमग्निमस्ते वसवो ...{Loading}...

त꣢म꣣ग्नि꣢꣫मस्ते꣣ व꣡स꣢वो꣣꣬ न्यृ꣢꣯ण्वन्त्सुप्रति꣣च꣢क्ष꣣म꣡व꣢से꣣ कु꣡त꣢श्चित्। द꣣क्षा꣢य्यो꣣ यो꣢꣫ दम꣣ आ꣢स꣣ नि꣡त्यः꣢ ॥ 10-2:1374 ॥

विस्वर-मूलम् (VC)

तमग्निमस्ते वसवो न्यृण्वन्त्सुप्रतिचक्षमवसे कुतश्चित् । दक्षाय्यो यो दम आस नित्यः ॥१३७४॥

10-3_1375 प्रेद्धो अग्ने ...{Loading}...

प्रे꣡द्धो꣢ अग्ने दीदिहि पु꣣रो꣡ नोऽज꣢꣯स्रया सू꣣कम्या꣢꣯ यविष्ठ। त्वा꣡ꣳ शश्व꣢꣯न्त꣣ उ꣡प꣢ यन्ति꣣ वा꣡जाः꣢ ॥ 10-3:1375 ॥ ॥10 (डी)॥ [धा. 28 । उ 3 । स्व. 4।]

मूलम् (VC)

प्रे꣡द्धो꣢ अग्ने दीदिहि पु꣣रो꣡ नोऽज꣢꣯स्रया सू꣣꣬र्म्या꣢꣯ यविष्ठ । त्वा꣡ꣳ शश्व꣢꣯न्त꣣ उ꣡प꣢ यन्ति꣣ वा꣡जाः꣢ ॥१३७५॥

विस्वर-मूलम् (VC)

प्रेद्धो अग्ने दीदिहि पुरो नोऽजस्रया सूर्म्या यविष्ठ । त्वाꣳ शश्वन्त उप यन्ति वाजाः ॥१३७५॥

11-1_1376 आयं गौः ...{Loading}...

आ꣡यं गौः पृश्नि꣢꣯रक्रमी꣣द꣡स꣢दन्मा꣣त꣡रं꣢ पु꣣रः꣢। पि꣣त꣡रं꣢ च प्र꣣य꣡न्त्स्वः꣢ ॥ 11-1:1376 ॥

विस्वर-मूलम् (VC)

आयं गौः पृश्निरक्रमीदसदन्मातरं पुरः । पितरं च प्रयन्त्स्वः ॥१३७६॥

11-2_1377 अन्तश्चरति रोचनास्य ...{Loading}...

अ꣣न्त꣡श्च꣢रति रोच꣣ना꣢꣫स्य प्रा꣣णा꣡द꣢पान꣣ती꣢। व्य꣢꣯ख्यन्महि꣣षो꣡ दिव꣢꣯म् ॥ 11-2:1377 ॥

विस्वर-मूलम् (VC)

अन्तश्चरति रोचनास्य प्राणादपानती । व्यख्यन्महिषो दिवम् ॥१३७७

11-3_1378 त्रिंशद्धाम वि ...{Loading}...

त्रि꣣ꣳश꣢꣫द्धाम꣣ वि꣡ रा꣢जति꣣ वा꣡क्प꣢त꣣ङ्गा꣡य꣢ धीयते। प्र꣢ति꣣ व꣢स्तो꣣र꣢ह꣣ द्यु꣡भिः꣢ ॥ 11-3:1378 ॥ ॥11 (छि)॥

मूलम् (VC)

त्रि꣣ꣳश꣢꣫द्धाम꣣ वि꣡ रा꣢जति꣣ वा꣡क्प꣢त꣣ङ्गा꣡य꣢ धीयते । प्र꣢ति꣣ व꣢स्तो꣣र꣢ह꣣ द्यु꣡भिः꣢ ॥१३७८॥

विस्वर-मूलम् (VC)

त्रिꣳशद्धाम वि राजति वाक्पतङ्गाय धीयते । प्रति वस्तोरह द्युभिः ॥१३७८॥