०४ शुक्रियपर्व

[[अथारण्यकगाने शुक्रियपर्व]]

६.१

[[अथ षष्ठप्रपाठके प्रथमोऽर्धः]]

[[अथ प्रथमः खण्डः]]

१५१-१। अग्नेर्व्रतम्॥ अग्निर्गायत्र्यग्निः॥

हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। भ्रा꣣꣯जा꣢꣯ओ꣣꣯वा꣯।(त्रिः)। अ꣢ग्निर्मू꣯र्द्धा꣯दिऽ᳐३वाᳲ꣡का꣢ऽ१कूऽ᳒२᳒त्॥ पतिᳲपृथी꣯विऽ३या꣡आ꣢ऽ१याऽ᳒२᳒म्॥ अपाꣳ꣯रे꣯ताꣳ꣯सिऽ᳐३जा꣡इन्वा꣢ऽ१तीऽ२३॥ हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। भ्रा꣣꣯जा꣢꣯ओ꣣꣯वा꣯।(द्विः)। भ्रा꣣꣯जा꣢ऽ᳐३ओ꣤ऽ५वाऽ६५६॥ ए꣢꣯। वि꣡श्वस्य꣢ ज꣡गतो꣢꣯ज्यो꣡꣯ती꣣ऽ२३꣡४꣡५ः꣡॥ दी-३६। प-१३। मा-१७॥ १ (गे) २५१॥

१५२-१। वायोर्व्रतम्॥ वायुरत्यष्टिस्सोमः॥

भ्रा꣢꣯जा꣡।(द्विः)। भ्रा꣢꣯जाऽ३१उ। वाऽ᳒२᳒। अया꣡꣯रु꣢चा꣡꣯हरिण्या꣢꣯पुना꣯नः꣡॥

१५३-१। महावैश्वानर व्रते द्वे॥ वैश्वानरो जगती वैश्वानरः॥

हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। ओ꣣꣯हा꣢꣯।(द्विः)। ओ꣣꣯हा꣢꣯इ। वयो꣯हो꣡इ।(त्रिः)। प꣢यो꣯हो꣡इ। (त्रिः)। च꣢क्षुर्हो꣡इ।(त्रिः)। श्रो꣢꣯त्रꣳहो꣡इ।(त्रिः)। आ꣢꣯युर्हो꣡इ।(त्रिः)। त꣢पो꣯हो꣡इ। (त्रिः)। व꣢र्चो꣯हो꣡इ।(त्रिः)। ते꣢꣯जो꣯हो꣡इ।(त्रिः)। सु꣢वर्हो꣡इ।(त्रिः)। ज्यो꣢꣯तिर्हो꣡इ।(त्रिः)। प्र꣢क्ष꣡स्यवृष्णो꣯अरुषस्य꣢नू꣡꣯माऽ२३हाः꣢॥ प्र꣡नो꣯वचो꣯विदथा꣯जा꣯त꣢वे꣡꣯दाऽ२३सा꣢इ॥ वै꣯श्वा꣯नरा꣡꣯यमतिर्नव्य꣢से꣡꣯शूऽ२३चीः꣢॥ सो꣡꣯मइवपवते꣯चा꣯रु꣢र꣡ग्नाऽ२३या꣢ऽ३इ॥ हा꣢꣯उ हा꣯उहा꣯उ। ओ꣣꣯हा꣢꣯।(द्विः)। ओ꣣꣯हा꣢꣯इ। वयो꣯हो꣡इ।(त्रिः)। प꣢यो꣯हो꣡इ।(त्रिः)। च꣢क्षु र्हो꣡इ।(त्रिः)। श्रो꣢꣯त्रꣳहो꣡इ।(त्रिः)। आ꣢꣯युर्हो꣡इ।(त्रिः)। त꣢पो꣯हो꣡इ।(त्रिः)। व꣢र्चो꣯ हो꣡इ।(त्रिः)। ते꣢꣯जो꣯हो꣡इ।(त्रिः)। सु꣢वर्हो꣡इ।(त्रिः)। ज्यो꣢꣯तिर्हो꣡इ।(द्विः)। ज्यो꣢꣯ति र्हो꣡ऽ२᳐। वा꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा। ए꣢꣯। अग्नि꣡स्समु꣢द्र꣡मा꣯क्षय꣢त्। ए꣯। अग्नि꣡र्मू꣢꣯र्द्धा꣡꣯ भव꣢द्दिवः꣡। ए꣢꣯। आ꣯युर्द्धा꣡꣯अ꣢स्म꣡भ्यंव꣢र्चो꣯धा꣡꣯दे꣯वे꣯भ्या꣣ऽ२३꣡४꣡५ः꣡॥

१५४-१। वैश्वारनो बृहती वैश्वानरः॥

ओ꣢ऽ३१म्।(त्रिः)। आ꣢꣯यूः꣡।(त्रिः)। ज्यो꣢꣯तीः꣡।(त्रिः)। ज्यो꣢꣯तो꣡꣯वा꣯।(त्रिः)। ज्यो꣢꣯तो꣡꣯वा꣯हा꣢इ।(द्विः)। ज्यो꣯तो꣡꣯वा꣭ऽ३हा꣢उ। वा। इह꣡स्वर्वै꣢꣯श्वा꣯नरा꣡꣯यप्र꣢दि꣡शो꣢꣯ ज्यो꣡꣯तिर्बृ꣢ह꣡त्। इन्दु꣢रि꣡डा꣯स꣢त्य꣡म्। स꣢त्य꣡म्। स꣢त्य꣡म्। स꣢त्यो꣡꣯वा꣯।(त्रिः)। स꣢त्यो꣡꣯ वा꣯हा꣢इ।(द्विः)। सत्यो꣡꣯वा꣭ऽ३हा꣢उ। वा। इह꣡स्वर्वै꣢꣯श्वा꣯नरा꣡꣯यप्र꣢दि꣡शो꣢꣯ज्यो꣡꣯तिर्बृ꣢ह꣡त्। का꣢꣯यमा꣯नो꣯वना꣯तुवाम्। तुवाम्। तुवाम्। तुवो꣡꣯वा꣯।(त्रिः)। तु꣢वो꣡꣯वा꣯हा꣢इ।(द्विः) तुवो꣡꣯वा꣭ऽ३हा꣢उ। वा। इह꣡स्वर्वै꣢꣯श्वा꣯नरा꣡꣯यप्र꣢दि꣡शो꣢꣯ज्यो꣡꣯तिर्बृ꣢ह꣡त्। द्यौ꣯र्भू꣢꣯तं꣡पृ꣢थिवी꣡꣯। पृ꣢थिवी꣡꣯।(द्विः) पृ꣢थिव्यो꣡꣯वा꣯।(त्रिः)। पृ꣢थिव्यो꣡꣯वा꣯हा꣢इ।(द्विः) पृथिव्यो꣡꣯वा꣭ऽ३ हा꣢उ। वा। इह꣡स्वर्वै꣢꣯श्वा꣯नरा꣡꣯यप्र꣢दि꣡शो꣢꣯ज्यो꣡꣯तिर्बृ꣢ह꣡त्। य꣢न्मा꣯तॄ꣯रजगन्नपाः। अपाः। अपाः। अपो꣡꣯वा꣯।(त्रिः)। अ꣢पो꣡꣯वा꣯हा꣢इ।(द्विः) अपो꣡꣯वा꣭ऽ३हा꣢उ। वा। इह꣡स्वर्वै꣢꣯श्वा꣯ नरा꣡꣯यप्र꣢दि꣡शो꣢꣯ज्यो꣡꣯तिर्बृ꣢ह꣡त्। सह꣢स्ते꣡꣯ज꣢आ꣡꣯पः꣢। आ꣡꣯पः꣢। आ꣡꣯पः। आ꣢꣯पो꣡꣯वा꣯।(त्रिः)। आ꣢꣯पो꣡꣯वा꣯हा꣢इ।(द्विः)। आ꣯पो꣡꣯वा꣭ऽ३हा꣢उ। वा। इह꣡स्वर्वै꣢꣯श्वा꣯नरा꣡꣯यप्र꣢दि꣡शो꣢꣯ज्यो꣡꣯ति र्बृ꣢ह꣡त्। न꣢तत्ते꣯अग्ने꣯प्रमृषे꣯निवर्तनाम्। तनाम्। तनाम्। तनो꣡꣯वा꣯।(त्रिः) त꣢नो꣡꣯वा꣯ हा꣢इ।(द्विः)। तनो꣡꣯वा꣭ऽ३हा꣢उ। वा। इह꣡स्वर्वै꣢꣯श्वा꣯नरा꣡꣯यप्र꣢दि꣡शो꣢꣯ज्यो꣡꣯तिर्बृ꣢ह꣡त्। उषा꣯ दिशो꣯ज्यो꣯तिः। ज्यो꣯तिः। ज्यो꣯तिः। ज्यो꣢꣯तो꣡꣯वा꣯।(त्रिः)। ज्यो꣢꣯तो꣡꣯वा꣯हा꣢इ।(द्विः)। ज्यो꣯तो꣡꣯वा꣭ऽ३हा꣢उ। वा। इह꣡स्वर्वै꣢꣯श्वा꣯नरा꣡꣯यप्र꣢दि꣡शो꣢꣯ज्यो꣡꣯तिर्बृ꣢ह꣡त्। य꣢द्दू꣯रे꣯सन्निहा꣯ भुवाः। भुवाः। भुवाः। भुवो꣡꣯वा꣯।(त्रिः)। भु꣢वो꣡꣯वा꣯हा꣢इ।(द्विः)। भुवो꣡꣯वा꣭ऽ३हा꣢उ। वा। इह꣡स्वर्वै꣢꣯श्वा꣯नरा꣡꣯यप्र꣢दि꣡शो꣢꣯ज्यो꣡꣯तिर्बृ꣢ह꣡त्। ओ꣢ऽ३१म्।(त्रिः)। आ꣢꣯यूः꣡।(त्रिः)। ज्यो꣢꣯तीः꣡।(त्रिः)। ज्यो꣢꣯तो꣡꣯वा꣯।(त्रिः)। ज्यो꣢꣯तो꣡꣯वा꣯हा꣢इ।(द्विः)। ज्यो꣯तो꣡꣯वा꣭ऽ३हा꣢उ। वा। घर्मो꣡꣯मरुद्भिर्भुवने꣢꣯षुचक्रदत्। इ꣡ट्(स्थि)इडाऽ२३꣡४꣡५꣡॥

१५५-१। सूर्यस्य भ्राजा भ्राजे द्वे॥ (भ्राजम्)। द्वयोः सूर्योर्गायत्र्यग्निः॥

भ्रा꣢꣯जा꣡।(द्विः)। भ्रा꣢꣯जाऽ३१उ। वाऽ᳒२᳒। अ꣡ग्न꣢आ꣡꣯यूꣳ꣯षि꣢पवसे꣯। आ꣡꣯सु꣢वो꣡꣯र्ज꣢ मि꣡षञ्च꣢नः। आ꣯रे꣡꣯बा꣯ध꣢स्वदुच्छु꣡ना꣯म्। भ्रा꣢꣯जा꣡।(द्विः)। भ्रा꣢꣯जाऽ३१उ। वाऽ᳒२᳒। ए꣯। भ्रा꣡꣯ज।(द्वे-त्रिः)॥

१५६-१। आभ्राजम्॥

आ꣡। भ्रा꣯ज꣢।(द्वे-त्रिः)। अग्निर्मू꣯र्द्धा꣯दिऽ३वाᳲ꣡का꣢ऽ१कूऽ᳒२᳒त्॥ पतिᳲपृथी꣯ विऽ३या꣡आ꣢ऽ१याऽ᳒२᳒म्॥ अपाꣳ꣯रे꣯ताꣳ꣯सिऽ३जा꣡इन्वा꣢ऽ१तीऽ᳒२᳒॥ आ꣡। भ्रा꣯ज꣢।(द्वे-द्विः)। आ꣡। भ्रा꣯जा꣭ऽ३उवा꣢॥ ए꣯। आ꣡꣯भ्रा꣯ज꣢।(द्वे-त्रिः)॥

१५७-१। वायोर्विकर्णभासे द्वे॥ वायुर्जगती सूर्यः॥

हा꣡हा꣢उ।(त्रिः)। इ꣡डा꣯।(त्रिः)। हस्।(त्रिः)। ऋ꣢त꣡म्मे꣯।(त्रिः)। वि꣢भ्रा꣡꣯ड्बृह त्पिबतुसो꣯मियाऽ᳒२᳒म्मा꣡धूऽ᳒२᳒। आ꣡꣯युर्दधद्यज्ञपता꣯ववाऽ᳒२᳒इह्रू꣡ताऽ᳒२᳒म्। वा꣡꣯तजू꣯तो꣯ यो꣯अभिरक्षताऽ᳒२᳒इत्मा꣡नाऽ᳒२᳒॥ प्रजाᳲ꣡꣯पिपर्तिबहुधा꣯विराऽ᳒२᳒जा꣡तीऽ᳒२᳒॥ हा꣡हा꣢उ। (त्रिः)। इ꣡डा꣯।(त्रिः)। हस्।(त्रिः)। ऋ꣢त꣡म्मे꣯।(त्रिः)। औ꣯होवा꣣꣯हा꣢उ। वा॥ फाऽ᳒२᳒श्। ऋत꣡म्मे꣯।(त्रिः)। औ꣯होवा꣣꣯हा꣢उ। वा॥ फाऽ᳒२᳒ट्। ऋत꣡म्मे꣯।(त्रिः)। औ꣯होवा꣣꣯हा꣢उ। वा। भ्राऽ᳒२᳒ट्॥ दी-३२। प-४३। मा-२२॥ ७ (दा) २५७॥

१५८-१। भासम्॥ वायुः जगती वैश्वानरः॥

हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। ओ꣣꣯हा꣢꣯।(द्विः)। ओ꣣꣯हा꣢꣯इ। इ꣡हौ꣯हो꣢।(त्रिः)। इहि꣡यो।(त्रिः)। हिम्।(त्रिः)। हो।(त्रिः)। हꣳ।(त्रिः)। इडा꣯।(त्रिः)। ऋ꣢त꣡म्मे꣯।(त्रिः)। हस्।(त्रिः)। प्र꣢क्ष꣡स्यवृष्णो꣯अरुषस्य꣢नू꣡꣯माऽ२३हाः꣢॥ प्र꣡नो꣯वचो꣯विदथा꣯जा꣯त꣢वे꣡꣯दा ऽ२३सा꣢इ॥ वै꣯श्वा꣯नरा꣡꣯यमतिर्नव्य꣢से꣡꣯शूऽ२३चीः꣢॥ सो꣡꣯मइवपवते꣯चा꣯रु꣢र꣡ग्नाऽ२३ या꣢ऽ३इ। हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। ओ꣣꣯हा꣢꣯।(द्विः)। ओ꣣꣯हा꣢꣯इ। इ꣡हौ꣯हो꣢।(त्रिः)। इहि꣡यो। (त्रिः)। हिम्।(त्रिः)। हो।(त्रिः)। हꣳ।(त्रिः)। इडा꣯।(त्रिः)। ऋ꣢त꣡म्मे꣯।(त्रिः)। हस्।(द्विः)। हा꣣ऽ२३४। औ꣥꣯हो꣯वा। इ꣡हौ꣯हो꣢꣯। भद्र꣡म्। इहौ꣯हो꣢꣯। श्रे꣡꣯यः꣢। इ꣡हौ꣯हो꣢꣯। वा꣯म꣡म्। इहौ꣯हो꣢꣯। व꣡र꣢म्। इ꣡हौ꣯हो꣢꣯। सुव꣡म्। इहौ꣯हो꣢꣯। अ꣡स्ति꣢। इ꣡हौ꣯हो꣢꣯। अ꣡भ्रा꣯जी꣢꣯त्। इ꣡हौ꣯हो꣢꣯। ज्यो꣡꣯तिः। अ꣢भ्रा꣯जी꣯त्। इ꣡हौ꣯हो꣢꣯। दी꣡꣯दिवः꣢। ए꣡ऽ२३। हिया꣯हा꣢उवाऽ३। भाऽ२३꣡४꣡५꣡स्॥ दी-७९। प-८३। मा-३६॥ ८ (दू) २५८॥

१। ऐन्द्रं महादिवाकीर्त्यं दशानुगानम् शिरोनाम प्रथमानुगानम्॥

हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। आ꣡꣯युः।(त्रिः)। ज्यो꣯तिः।(द्विः)। ज्यो꣣꣯ता꣢ऽ३४। औ꣥꣯हो꣯वा। ए꣢ऽ३। वा꣡꣯ग्ज्यो꣯ती꣣ऽ२३꣡४꣡५ः꣡॥ दी-१३। प-१०। मा-९॥ ९ (णो) २५९॥

२। ग्रीवानाम द्वितीयानुगानम्॥

ए꣢꣯वा꣯हिये꣯वा꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा। हꣳ꣢꣯(स्थि)हꣳहꣳ꣯(स्थि)हꣳहꣳऽ३४। औ꣥꣯हो꣯वा। (त्रीणि-त्रिः)। हि꣢ये꣯वा꣡। हि꣢यग्ना꣡इ। हि꣢इन्द्रा꣡। हि꣢पू꣯षा꣡न्। हि꣢दे꣯वा꣡ऽ२३꣡४꣡५ः꣡॥

३। स्कन्धोनाम तृतीयानुगानम्॥

व꣢यो꣯मनो꣯वयᳲप्रा꣡णाः꣢। वयश्चक्षुर्वयश्श्रो꣡त्रा꣢म्। वयो꣯घो꣯षो꣯वयो꣯व्रा꣡ता꣢म्। व꣡योऽ२३भू꣯ता꣢उ। वाऽ३॥ ईऽ२३꣡४꣡५꣡॥ दी-७। प-६। मा-४॥ ११ (ज्री) २६१॥४। कीकसोनाम चतुर्थानुगानम्॥

व꣢यो꣯म꣡नाऽ२३ः। हो꣡इहौ꣢वा᳐ओ꣣ऽ२३४वा꣥। व꣢यᳲप्रा꣡꣯णाऽ२३ः। हो꣡इहौ꣢वा᳐ ओ꣣ऽ२३४वा꣥। व꣢यश्च꣡क्षूऽ२३ः। हो꣡इहौ꣢वा᳐ओ꣣ऽ२३४वा꣥। व꣢यश्श्रो꣡꣯त्राऽ२३म्। हो꣡इ हौ꣢वा᳐ओ꣣ऽ२३४वा꣥। व꣢यो꣯घो꣡꣯षाऽ२३ः। हो꣡इहौ꣢वा᳐ओ꣣ऽ२३४वा꣥। व꣢यो꣯व्र꣡ताऽ२३म्। हो꣡इहौ꣢वा᳐ओ꣣ऽ२३४वा꣥। व꣢यो꣯भू꣡꣯ताऽ२३म्। हो꣡इहौ꣢वा᳐ओ꣣ऽ२३४५वाऽ६५६॥ ऊ꣣ऽ२३꣡४꣡५꣡॥

५। पक्षोनाम पञ्चानुगानम्॥

ऊ꣡ऽ२꣮र्क्। हा꣯उहा꣯उहा꣯उ। होऽ३वा꣢क्॥(त्रीणि-त्रिः)। ध꣡र्मो꣰꣯ऽ२ध꣡र्मः।(त्रिः)

६। तवश्यावीयम्॥ पक्षोनाम षष्ठानुगानमपि॥

ध꣡र्म꣢वि꣡धर्म꣢।(त्रिः)। सत्यं꣡गा꣯य꣢।(त्रिः)। ऋतं꣡वद꣢।(त्रिः)। हꣳवं꣡व꣰ऽ२ म्वं꣡व꣰ऽ२म्व꣡म्॥(त्रिः)॥ दी-३। प-१२। मा-३॥ १४ (ठि) २६४॥

१५९-७। महादिवाकीर्त्यं आत्मानाम सप्तमानुगानम्॥

औ꣢꣯हौ꣯हो꣡꣯वा꣯होइ।(द्विः)। औ꣢꣯हौ꣯हो꣡꣯वा꣯हा꣢ऽ३१उ। वाऽ२३। भूऽ२३४वा꣥त्। वि꣢भ्रा꣡꣯ड्बृ꣢ह꣡त्पिब꣢तुसो꣯म्यं꣡म। ध्वौ꣢꣯हौ꣯हो꣡꣯वा꣯होइ। औ꣢꣯हौ꣯हो꣡꣯वा꣯होइ। औ꣢꣯हौऱहो꣡꣯वा꣯ हा꣢ऽ३१उ। वाऽ२३। जाऽ२३४ना꣥त्। आ꣡꣯यु꣢र्द꣡धद्य꣢ज्ञ꣡पता꣢꣯व꣡विह्रु꣢तम्॥ औ꣯हौ꣯ हो꣡꣯वा꣯होइ।(द्विः)। औ꣢꣯हौ꣯हो꣡꣯वा꣯हा꣢ऽ३१उ। वाऽ२३। वाऽ२३४र्द्धा꣥त्। वा꣡꣯तजू꣢꣯तो꣯यो꣡꣯ अभि꣢र꣡क्षति꣢त्म꣡ना꣯॥ औ꣢꣯हौ꣯हो꣡꣯वा꣯होइ।(द्विः)। औ꣢꣯हौ꣯हो꣡꣯वा꣯हा꣢ऽ३१उ। वाऽ२३। काऽ२३४रा꣥त्। प्र꣢जाᳲ꣡꣯पिप꣢र्तिबहुधा꣡꣯विरा꣯ज꣢ति। औ꣯हौ꣯हो꣡꣯वा꣯होइ।(द्विः)। औ꣢꣯हौ꣯ हो꣡꣯वा꣯हा꣢ऽ३१उ। वाऽ᳒२᳒॥ ए꣯। अ꣡भ्रा꣯जी꣢꣯ज्यो꣡꣯तिर꣢भ्रा꣯जी꣣ऽ२३꣡४꣡५꣡त्॥ दी-७७। प-३०। मा-२२॥ १५ (ञा) २६५॥

८। ऊरूनाम अष्टमानुगानम्॥

भू꣡꣯मिः।(त्रिः)। अ꣢न्त꣡रिक्ष꣢म्।(त्रिः)। द्यौः꣡।(द्विः)। द्या꣢ऽ३४। औ꣥꣯हो꣯वा॥ ए꣢ऽ᳐३। भू꣢꣯ता꣡꣯याऽ२३꣡४꣡५꣡॥ दी-७। प-१२। मा-८॥ १६ (छै) २६६॥९। ऊरूनाम नवमानुगानम्॥

द्यौः꣡।(त्रिः)। अ꣢न्त꣡रिक्ष꣢म्।(त्रिः)। भू꣡꣯मिः।(द्विः)। भू꣣꣯मा꣢ऽ३४। औ꣥꣯हो꣯वा॥ ए꣢ऽ᳐३। आ꣡꣯युषे꣣ऽ२३꣡४꣡५꣡॥ दी-६। प-१२। मा-८॥ १७ (खै) २६७॥

१०। पुच्छंनाम दशमानुगानम्॥

हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। ज्यो꣡꣯तिः।(द्विः)। ज्यो꣣꣯ता꣢ऽ३४। औ꣥꣯हो꣯वा॥ ई꣣ऽ२३꣡४꣡५꣡॥

१। एकविंशत्यनुगाने, आदित्यव्रतम्॥ एतत्साम सुवर्णमित्याचक्षते॥

स꣡न्त्वा꣯भू꣢꣯ता꣡꣯न्यै꣯र꣢यन्। हो꣡इ॥ सन्त्वा꣯भव्या꣯न्यै꣢꣯रयन्। हो꣡इ॥ सन्त्वा꣯ भ꣢विष्य꣡दै꣯र꣢यत्। हो꣡इ॥ सन्त्वा꣯भुवन꣢मै꣯रयत्। हो꣡इ॥ सन्त्वा꣯भू꣢꣯त꣡मै꣯र꣢यत्। हो꣡इ॥

६.२

[[अथ षष्ठप्रपाठके द्वितीयोऽर्धः]]

१६०-१६२-१। उभयत्र विश्वदेवाश्चित्रन्देवानां॥ त्रिष्टुप् अन्तश्चरति गायत्री सूर्यः॥

उ꣡वीऽ᳒२᳒उ꣡वि। उविहोऽ᳒२᳒उ꣡वि।(द्वे-त्रिः)। इतीऽ᳒२᳒इ꣡ति। इतिहोऽ᳒२᳒इ꣡ति। (द्वे-त्रिः)। असीऽ᳒२᳒अ꣡सि। असिहोऽ᳒२᳒अ꣡सि।(द्वे-त्रिः)। अरू꣯रु꣢चो꣯दि꣡वंपृ꣢थिवी꣡꣯म्। असीऽ᳒२᳒अ꣡सि। असिहोऽ᳒२᳒अ꣡सि।(त्रीणि-त्रिः)। पतिर꣢। स्यपा꣡꣯मो꣯षधी꣢꣯ना꣯ऽ३म्। ओ꣡इ। पता꣢इरा꣣ऽ२३४सी꣥।(चत्वारि-त्रिः)। चा꣡इ। त्रंदे꣢꣯वा꣡꣯ना꣢꣯मु꣡दगा꣢꣯द꣡नी꣯क꣢म्। वा꣡इश्वे꣯षा꣢꣯न्दे꣯वा꣡꣯नाꣳ꣯स꣢मि꣡दजस्रं꣢ज्यो꣡꣯ति꣢रा꣡꣯तत꣰ऽ२म्। हो꣡इ।(द्वे-त्रिः)। आ꣯युर्यन्। (त्रिः)। अवः।(त्रिः)। चक्षुर्मि꣢त्र꣡स्य꣢व꣡रुण꣢स्या꣯ग्नेः꣡꣯। सु꣢वस्सꣳसर्प꣣सꣳ꣢सा꣡र्पा꣢।(त्रिः)। जना꣡꣯वनꣳसुवाऽ᳒२᳒स्सु꣡वः। जनाऽ᳒२᳒व꣡नाऽ᳒२᳒म्। सु꣡वाऽ᳒२᳒स्सु꣡वः।(त्रीणि-त्रिः)। आ꣯प्रा꣯द्या꣯वा꣯पृथिवी꣯आन्त꣪रीऽ२३क्षा꣢ऽ३म्। सृ꣢पिप्रसृपी꣯ऐ꣯ही꣯।(त्रिः)। अस्तो꣯ षतस्वभा꣯नवा꣯ऐ꣯ही꣯। विप्रा꣯नविष्ठया꣯मता꣯ऐ꣯ही꣯। ग्रा꣯वा꣯णो꣯बर्हिषिप्रिया꣯ऐ꣯ही꣯। इन्द्रस्यरꣳहियंबृहा꣯दै꣯ही꣯। इ꣡न्द्राऽ᳒२᳒। स्य꣡राऽ᳒२᳒। हि꣡याऽ᳒२᳒म्। बृहदिन्द्रस्यरꣳ हियंबृहा꣯दै꣯ही꣯।(चत्वारि-त्रिः)। सू꣡꣯र्यआ꣯त्मा꣯जगतस्तास्थु꣪षाऽ२३श्चा꣢ऽ३। अ꣢न्त श्चरतिरो꣯चना꣯ऐ꣯ही꣯।(त्रिः)। अस्यप्रा꣯णा꣯दपा꣯नता꣯ऐ꣯ही꣯।(त्रिः)। व्यख्यन्महिषो꣯ दिवा꣯मै꣯ही꣯।(त्रिः)। प्रो꣡꣯ए꣢꣯तिप्रो꣯ए꣯ति।(त्रिः)। प्रो꣡। ए꣢꣯ति।(द्वे-द्विः)। प्रो꣡ऽ२३। ए꣯ता꣢ऽ३४औ꣥꣯हो꣯वा॥ ए꣢ऽ᳐३। दे꣢꣯वा꣡꣯दिवा꣯ज्यो꣯ती꣣ऽ२३꣡४꣡५ः꣡॥

[[अथ द्वितीयः खण्डः]]

१६३-१। गन्धर्वाप्सरसां आनन्दप्रतिनन्दौ द्वौ॥ द्वयोस्सूर्यो गायत्री सूर्यः॥

उ꣡वि꣰ऽ२।(त्रिः)। हि꣡गि꣰ऽ२।(त्रिः)। हि꣡गिगि꣢।(त्रिः)। आ꣯यङ्गौᳲ꣯ पृश्निरक्रमी꣯दै꣯ही꣯।(त्रिः)॥ असदन्मा꣯तरंपुरा꣯ऐ꣯ही꣯।(त्रिः)॥ पितरंचप्रयन्त्स्वा꣯ ऐ꣯ही꣯।(त्रिः)। उ꣡वि꣰ऽ२।(त्रिः)। हि꣡गि꣰ऽ२।(त्रिः)। हि꣡गिगि꣢।(त्रिः)॥

१६३-२।

उ꣢वी꣡।(त्रिः)। हि꣢गी꣡।(त्रिः)। हि꣢गिगी꣡।(त्रिः)। आ꣢꣯यङ्गौᳲ꣯पृश्निरक्रमी꣯ दै꣯ही꣯॥ असदन्मा꣯तरंपुरा꣯ऐ꣯ही꣯॥ पितरंचप्रयन्त्स्वा꣯ऐ꣯ही꣯। उवी꣡।(त्रिः)। हि꣢गी꣡। (त्रिः)। हि꣢गिगी꣡।(त्रिः)॥ दी-१२। प-२७। मा-२॥ ३ (चा) २७२॥

१६४-१। सौर्यातीषङ्गः॥ उदुत्यं त्रिष्टुप्गायत्री चित्रंसूर्यः॥

हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। भ्रा꣣꣯जा꣢꣯ओ꣣꣯वा꣯।(त्रिः)। उ꣢दुत्यञ्जा꣯।(त्रिः)। चित्र꣡न्दे꣯वा꣯ना꣯ मुदगाद꣪नीऽ२३का꣢ऽ३म्॥ हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। भ्रा꣣꣯जा꣢꣯ओ꣣꣯वा꣯।(त्रिः)। त꣢वे꣯दसम्। (त्रिः)। च꣡क्षुर्मित्रस्यवरुणास्य꣪आऽ२३ग्ना꣢ऽ३इः॥ हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। भ्रा꣣꣯जा꣢꣯ओ꣣꣯वा꣯। (त्रिः)। दे꣢꣯वंवहा꣯।(त्रिः)। आ꣡꣯प्रा꣯द्या꣯वा꣯पृथिवी꣯आन्त꣪रीऽ२३क्षा꣢ऽ३म्॥ हा꣢꣯उहा꣯उ हा꣯उ। भ्रा꣣꣯जा꣢꣯ओ꣣꣯वा꣯।(त्रिः)। ति꣢के꣯तवः।(त्रिः)। सू꣡꣯र्यआ꣯त्मा꣯जगतस्तास्थु꣪षा ऽ२३श्चा꣢ऽ३॥ हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। भ्रा꣣꣯जा꣢꣯ओ꣣꣯वा꣯।(त्रिः)। दृ꣢शे꣯विश्वा꣯।(त्रिः)। सू꣡꣯र्य आ꣯त्मा꣯जगतस्तास्थु꣪षाऽ२३श्चा꣢ऽ३॥ हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। भ्रा꣣꣯जा꣢꣯ओ꣣꣯वा꣯।(त्रिः)। य꣢सू꣯र्यम्।(द्विः)। य꣡सूऽ२३रिया꣢उ। वाऽ३॥ ए꣢ऽ᳐३॥ दे꣢꣯वा꣡꣯दिवा꣯ ज्यो꣯ती꣣ऽ२३꣡४꣡५ः꣡॥

१। इन्द्रस्य सधस्थम्॥ इन्द्रोऽनुष्टुप्सूर्यः॥

हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। स꣡हो꣯भ्रा꣢꣯ज।(द्विः)। स꣡हो꣯भ्रा꣢꣯जा꣯। पो꣡꣯भ्रा꣯जा꣢꣯।(द्विः)। पो꣡꣯भ्रा꣯ज꣢। अ꣡भ्रा꣯जी꣢꣯त्।(त्रिः)। व्य꣡भ्रा꣢꣯जी꣯त्।(त्रिः)। अ꣡दिद्यु꣢तत्।(त्रिः)। अ꣡दिद्युत द्विश्वंभू꣯तꣳसहो꣯बॄऽ᳒२᳒हा꣡त्॥ अदिद्युतदभ्रा꣯ट्प्राऽ᳒२᳒भ्रा꣡ट्॥ अदिद्युतद्घर्मो꣯अरू꣯रूऽ᳒२᳒ चा꣡त्॥ अदिद्युतद्घर्म्मउषसो꣯अरो꣯चाऽ᳒२᳒याः꣡। हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। स꣡हो꣯भ्रा꣢꣯ज।(द्विः)। स꣡हो꣯भ्रा꣢꣯जा꣯। पो꣡꣯भ्रा꣯जा꣢꣯।(द्विः)। पो꣡꣯भ्रा꣯ज꣢। अ꣡भ्रा꣯जी꣢꣯त्।(त्रिः)। व्य꣡भ्रा꣢꣯जी꣯त्।(त्रिः)। अ꣡दिद्यु꣢तत्।(द्विः)। अ꣡दिद्यु꣢ताऽ३त्। हा꣢उवा॥ ए꣯। अ꣡दिद्यु꣢तद्घर्मो꣡꣯अरू꣢꣯रुचदुष꣡सां꣯ दि꣢वि꣡सू꣯र्यो꣢꣯वि꣡भा꣢꣯ती꣣ऽ२३꣡४꣡५꣡॥

१६५-१। मरुतां भूतिसाम॥ मरुतो गायत्री सूर्यः॥

औ꣡꣯हो꣯औ꣯हो꣯वा꣯। होइ।(द्वे-द्विः)। औ꣯हो꣯औ꣯हो꣯वा꣯। हा꣢ऽ३१उ। वाऽ२३। भूऽ२३४वा꣥त्। अ꣢न्त꣡श्चर꣢तिरो꣯चना꣡꣯॥ औ꣯हो꣯औ꣯हो꣯वा꣯। होइ।(द्वे-द्विः)। औ꣯हो꣯ औ꣯हो꣯वा꣯। हा꣢ऽ३१उ। वाऽ२३। जाऽ२३४ना꣥त्। अ꣢स्य꣡प्रा꣢꣯णा꣡꣯दपा꣢꣯नती꣡꣯॥ औ꣯हो꣯ औ꣯हो꣯वा꣯। होइ।(द्वे-द्विः)। औ꣯हो꣯औ꣯हो꣯वा꣯। हा꣢ऽ३१उ। वाऽ२३। वाऽ२३४र्द्धा꣥त्। व्य꣡ख्य꣢न्महिषो꣡꣯दिवम्॥ औ꣯हो꣯औ꣯हो꣯वा꣯। होइ।(द्वे-द्विः)। औ꣯हो꣯औ꣯हो꣯वा꣯। हा꣢ऽ३१उ। वाऽ२३। काऽ२३४रा꣥त्। औ꣡꣯हो꣯औ꣯हो꣯वा꣯। होइ।(द्वे-द्विः)। औ꣯हो꣯ औ꣯हो꣯वा꣯। हा꣢ऽ३१उ॥ वाऽ२३। भूऽ२३४तीः꣥। औ꣯हो꣯औ꣯हो꣯वा꣯। होइ।(द्वे-द्विः)। औ꣯हो꣯औ꣯हो꣯वा꣯। हा꣢ऽ३१उ। वाऽ᳒२᳒। अ꣡भ्रा꣯जी꣢꣯ज्यो꣡꣯तिर꣢भ्रा꣯जी꣯त्। औ꣡꣯हो꣯औ꣯हो꣯वा꣯। होइ।(द्वे-द्विः)। औ꣯हो꣯औ꣯हो꣯वा꣯। हा꣢ऽ३१उ। वाऽ२३॥ ए꣢ऽ᳐३। स꣡र्वा꣯न्का꣯मा꣯ न꣢शी꣯मही꣣ऽ२३꣡४꣡५꣡॥

१६६-१। सार्पराज्ञ्यानि त्रीणि॥ प्रजापतिर्गायत्री सूर्यः॥

हा꣢उहाउहाउवा। ई꣡न्दूः꣢᳐। भ्रा꣣꣯जा꣢꣯ओ꣣꣯वा꣯।(त्रिः)। आ꣢꣯यङ्गौᳲ꣯पृश्नि रक्रमी꣯दै꣯ही꣯॥ हाउहाउहाउवा। ई꣡डा꣢᳐। भ्रा꣣꣯जा꣢꣯ओ꣣꣯वा꣯।(त्रिः)। अ꣢सदन्मा꣯तरं पुरा꣯ऐ꣯ही꣯॥ हाउहाउहाउवा। सा꣡त्य꣢᳐म्। भ्रा꣣꣯जा꣢꣯ओ꣣꣯वा꣯।(त्रिः)। पि꣢तरंचप्रयन्त्स्वा꣯ ऐ꣯ही꣯॥ हाउहाउहाउवा। दी꣡यौः꣢॥

१६७-१।

हा꣢उहाउहाउवा। भू꣡त꣢᳐म्। भ्रा꣣꣯जा꣢꣯ओ꣣꣯वा꣯।(त्रिः)। अ꣢न्तश्चरतिरो꣯चना꣯ऐ꣯ही꣯॥ हाउहाउहाउवा। पृ꣡थिवी꣢꣯। भ्रा꣣꣯जा꣢꣯ओ꣣꣯वा꣯।(त्रिः)। अ꣢स्यप्रा꣯णा꣯दपा꣯नता꣯ऐ꣯ही꣯॥ हाउ हाउहाउवा। सा꣡हः꣢᳐। भ्रा꣣꣯जा꣢꣯ओ꣣꣯वा꣯।(त्रिः)। व्य꣢ख्यन्महिषो꣯दिवा꣯मै꣯ही꣯॥ हाउहाउ हाउवा। ते꣡जः꣢॥ दी-५१। प-२०। मा-२६॥ ८ (ङू) २७७॥

१६८-१।

हा꣢उहाउहाउवा। आ꣡पः꣢᳐। भ्रा꣣꣯जा꣢꣯ओ꣣꣯वा꣯।(त्रिः)। त्रिं꣢शद्धा꣯मविरा꣯जता꣯ऐ꣯ही꣯॥ हाउहाउहाउवा। ऊ꣡षा꣢᳐। भ्रा꣣꣯जा꣢꣯ओ꣣꣯वा꣯।(त्रिः)। वा꣢꣯क्पतङ्गा꣯यधी꣯यता꣯ऐ꣯ही꣯॥ हाउहाउहाउवा। दी꣡शः꣢᳐। भ्रा꣣꣯जा꣢꣯ओ꣣꣯वा꣯।(त्रिः)। प्र꣢तिवस्तो꣯रहद्युभा꣯ऐ꣯ही꣯॥ हाउहाउहाउवा। ज्यो꣡तिः꣢॥ दी-५१। प-२०। मा-२७॥ ९ (ङे) २७८॥

सर्पस्य घर्मरोचनमिन्द्रस्य वा॥ घर्मो(सर्पो)ऽनुष्टुप्सूर्यः॥

उ꣢द्यँ꣡ल्लो꣯का꣯नरो꣢꣯चयः। हो꣡इ॥ इ꣢माँ꣡꣯ल्लो꣯का꣯नरो꣢꣯चयः। हो꣡इ॥ प्र꣢जा꣡꣯भू꣯त मरो꣢꣯चयः। हो꣡इ॥ विश्वंभू꣢꣯त꣡मरो꣢꣯चयः। हो꣡ऽ२᳐हा꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा॥ घ꣢र्म्मो꣡꣯ज्यो꣯ती꣣ ऽ२३꣡४꣡५ः꣡॥

१६९-१७१-१। षडैन्द्राः॥ परिधय ऋतूनां प्रथमं। इन्द्रो गायत्री सूर्यः॥

हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। भ्रा꣣꣯जा꣢꣯ओ꣣꣯वा꣯।(त्रिः)। दि꣢दी꣯हि꣡विश्वतस्पृ꣢थुः꣡। उ꣢दुत्यञ्जा꣯त ऽ३वा꣡इदा꣢ऽ१साऽ᳒२᳒म्॥ दे꣯वंवहन्तिऽ३का꣡इता꣢ऽ१वाऽ᳒२ः᳒॥ दृशे꣯विश्वा꣯यऽ३ सू꣡रा꣢ऽ१याऽ᳒२᳒म्॥ श्रीः॥ अपत्ये꣯ता꣯यऽ३वो꣡या꣢ऽ१थाऽ᳒२᳒। नक्षत्रा꣯यन्तिऽ३ या꣡क्तू꣢ऽ१भाऽ᳒२᳒इः॥ सू꣯रा꣯यविश्वऽ३चा꣡क्षा꣢ऽ१साऽ᳒२᳒इ॥ श्रीः॥ अदृश्रन्नस्यऽ३ का꣡इता꣢ऽ१वाऽ᳒२ः᳒॥ विरश्मयो꣯जऽ३नाꣳ꣡आ꣢ऽ१नूऽ᳒२᳒॥ भ्रा꣯जन्तो꣯अग्नऽ३यो꣡या꣢ ऽ१थाऽ२३। हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। भ्रा꣣꣯जा꣢꣯ओ꣣꣯वा꣯।(द्विः)। भ्रा꣣꣯जा꣢ऽ३ओ꣤ऽ५वाऽ६५६॥ ई꣣ऽ२३꣡४꣡५꣡॥ दी-४०। प-१९। मा-२५॥ ११ (भ्रु) २८०॥

[[अथ ततीयः खण्डः]]

१६९-१७१-२।

हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। शु꣣क्रा꣢꣯ओ꣣꣯वा꣯।(त्रिः)। दि꣢दी꣯हि꣡विश्वतस्पृ꣢थुः꣡। उ꣢दुत्यञ्जा꣯त ऽ३वा꣡इदा꣢ऽ१साऽ᳒२᳒म्॥ दे꣯वंवहन्तिऽ३का꣡इता꣢ऽ१वाऽ᳒२ः᳒॥ दृशे꣯विश्वा꣯यऽ३सू꣡रा꣢ ऽ१याऽ᳒२᳒म्॥ श्रीः॥ अपत्ये꣯ता꣯यऽ३वो꣡या꣢ऽ१थाऽ᳒२᳒। नक्षत्रा꣯यन्तिऽ३या꣡क्तू꣢ऽ१ भाऽ᳒२᳒इः॥ सू꣯रा꣯यविश्वऽ३चा꣡क्षा꣢ऽ१साऽ᳒२᳒इ॥ श्रीः॥ अदृश्रन्नस्यऽ३का꣡इता꣢ऽ१ वाऽ᳒२ः᳒॥ विरश्मयो꣯जऽ३नाꣳ꣡आ꣢ऽ१नूऽ᳒२᳒॥ भ्रा꣯जन्तो꣯अग्नऽ३यो꣡या꣢ऽ१थाऽ२३। हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। शु꣣क्रा꣢꣯ओ꣣꣯वा꣯।(द्विः)। शु꣣क्रा꣢ऽ३ओ꣤ऽ५वाऽ६५६॥ ई꣣ऽ२३꣡४꣡५꣡॥

१७२-१७४-३।

हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। भू꣣꣯ता꣢꣯ओ꣣꣯वा꣯।(त्रिः)। दि꣢दी꣯हि꣡विश्वतस्पृ꣢थुः꣡। त꣢रणिर्विश्वऽ३ दा꣡र्शा꣢ऽ१ताऽ᳒२ः᳒॥ ज्यो꣯तिष्कृदसिऽ३सू꣡रा꣢ऽ१याऽ᳒२᳒॥ विश्वमा꣯भा꣯सिऽ३रो꣡चा꣢ऽ१ नाऽ᳒२᳒म्॥ श्रीः॥ प्रत्यꣳदे꣯वा꣯ऽ३ना꣡म्वा꣢ऽ१इशाऽ᳒२ः᳒॥ प्रत्यङ्ङुदे꣯षिऽ३मा꣡नू꣢ऽ१ षाऽ᳒२᳒न्॥ प्रत्यꣳविश्वꣳसुऽ३वा꣡र्दॄ꣢ऽ१शाऽ᳒२᳒इ॥ श्रीः॥ ये꣯ना꣯पा꣯वकऽ३चा꣡क्षा꣢ऽ१साऽ᳒२᳒॥ भुरण्यन्तंजऽ३नाꣳ꣡आ꣢ऽ१नूऽ᳒२᳒॥ त्वंवरुणऽ३पा꣡श्या꣢ऽ१साऽ२३इ। हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। भू꣣꣯ता꣢꣯ओ꣣꣯वाऱ।(द्विः)। भू꣣꣯ता꣢ऽ३ओ꣤ऽ५वाऽ६५६॥ ई꣣ऽ२३꣡४꣡५꣡॥ दी-३७। प-१९। मा-२१॥ १३ (झ्र) २८२॥

१७२-१७४-४।

हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। ते꣣꣯जा꣢꣯ओ꣣꣯वा꣯।(त्रिः)। दि꣢दी꣯हि꣡विश्वतस्पृ꣢थुः꣡। त꣢रणिर्विश्व ऽ३दा꣡र्शा꣢ऽ१ताऽ᳒२ः᳒॥ ज्यो꣯तिष्कृदसिऽ३सू꣡रा꣢ऽ१याऽ᳒२᳒॥ विश्वमा꣯भा꣯सिऽ३ रो꣡चा꣢ऽ१नाऽ᳒२᳒म्॥ श्रीः॥ प्रत्यꣳदे꣯वा꣯ऽ३ना꣡म्वा꣢ऽ१इशाऽ᳒२ः᳒॥ प्रत्यङ्ङुदे꣯षिऽ३ मा꣡नू꣢ऽ१षाऽ᳒२᳒न्॥ प्रत्यꣳविश्वꣳसुऽ३वा꣡र्दॄ꣢ऽ१शाऽ᳒२᳒इ॥ श्रीः॥ ये꣯ना꣯पा꣯वकऽ३ चा꣡क्षा꣢ऽ१साऽ᳒२᳒॥ भुरण्यन्तंजऽ३नाꣳ꣡आ꣢ऽ१नूऽ᳒२᳒॥ त्वंवरुणऽ३पा꣡श्या꣢ऽ१ साऽ२३इ। हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। ते꣣꣯जा꣢꣯ओ꣣꣯वा꣯।(द्विः)। ते꣣꣯जा꣢ऽ३ओ꣤ऽ५वाऽ६५६॥ ई꣣ऽ२३꣡४꣡५꣡॥

१७५-१७७-५।

हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। स꣣त्या꣢꣯ओ꣣꣯वा꣯।(त्रिः)। दि꣢दी꣯हि꣡विश्वतस्पृ꣢थुः꣡। उ꣢द्या꣯मे꣯षिर ऽ३जाᳲ꣡पा꣢ऽ१र्थूऽ᳒२᳒॥ अहा꣯मिमा꣯नो꣯ऽ३आ꣡क्तू꣢ऽ१भाऽ᳒२᳒इः॥ पश्यंजन्मा꣯निऽ३ सू꣡रा꣢ऽ१याऽ᳒२᳒॥ श्रीः॥ अयुक्तसप्तऽ३शू꣡न्ध्यू꣢ऽ१वाऽ᳒२ः᳒॥ सू꣯रो꣯रथस्यऽ३ ना꣡प्त्रा꣢ऽ१याऽ᳒२ः᳒॥ ता꣯भिर्या꣯तिस्वऽ३यू꣡क्ता꣢ऽ१इभीऽ᳒२ः᳒॥ श्रीः॥ सप्तत्वा꣯हरिऽ३ तो꣡रा꣢ऽ१थाऽ᳒२᳒इ॥ वहन्तिदे꣯वऽ३सू꣡रा꣢ऽ१याऽ᳒२᳒॥ शो꣯चिष्के꣯शंविऽ३चा꣡क्षा꣢ऽ१ णाऽ२३। हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। स꣣त्या꣢꣯ओ꣣꣯वा꣯।(द्विः)। स꣣त्या꣢ऽ३ओ꣤ऽ५वाऽ६५६॥ ई꣣ऽ२३꣡४꣡५꣡॥

१७५-१७७-६।हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। ऋ꣣ता꣢꣯ओ꣣꣯वा꣯।(त्रिः)। दि꣢दी꣯हि꣡विश्वतस्पृ꣢थुः꣡। उ꣢द्या꣯मे꣯षिर ऽ३जाᳲ꣡पा꣢ऽ१र्थूऽ᳒२᳒॥ अहा꣯मिमा꣯नो꣯ऽ३आ꣡क्तू꣢ऽ१भाऽ᳒२᳒इः॥ पश्यंजन्मा꣯निऽ३ सू꣡रा꣢ऽ१याऽ᳒२᳒॥ श्रीः॥ अयुक्तसप्तऽ३शू꣡न्ध्यू꣢ऽ१वाऽ᳒२ः᳒॥ सू꣯रो꣯रथस्यऽ३ना꣡प्त्रा꣢ ऽ१याऽ᳒२ः᳒॥ ता꣯भिर्या꣯तिस्वऽ३यू꣡क्ता꣢ऽ१इभीऽ᳒२ः᳒॥ श्रीः॥ सप्तत्वा꣯हरिऽ३ तो꣡रा꣢ऽ१थाऽ᳒२᳒इ॥ वहन्तिदे꣯वऽ३सू꣡रा꣢ऽ१याऽ᳒२᳒॥ शो꣯चिष्के꣯शंविऽ३चा꣡क्षा꣢ऽ१ णाऽ२३। हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। ऋ꣣ता꣢꣯ओ꣣꣯वा꣯।(द्विः)। ऋ꣣ता꣢ऽ३ओ꣤ऽ५वाऽ६५६॥ ई꣣ऽ२३꣡४꣡५꣡॥

१। वागादिपित्र्यंसाम (वाङूमनः)॥ ऋतवोऽनुष्टुप्सूर्यः॥

वा꣡क्।मनᳲप्रा꣢꣯णᳲ꣡प्रा꣢꣯णो꣡꣯पा꣢꣯नो꣡꣯व्या꣢꣯न꣡श्चक्षु꣢श्श्रो꣡꣯त्रꣳ꣢श꣡र्म꣢व꣡र्म꣢भू꣡꣯तिᳲप्र꣢तिष्ठा꣡꣯।आ꣢꣯दित्यᳲ꣡पित्र्यम्।(त्रिः)। आ꣯युᳲपित्र्यम्।(त्रिः)॥ दी-१५। प-८। मा-७॥ १७ (बे) २८६॥

चक्षुसाम॥ मित्रावरुणौ गायत्री सूर्यः॥

अ꣢न्तर्दे꣯वे꣯षुऽ३रो꣡चा꣢ऽ१साऽ᳒२᳒इ।(त्रिः)। अन्तश्चरतिऽ३रो꣡चा꣢ऽ१नाऽ᳒२᳒॥ अस्य प्रा꣯णा꣯दऽ३पा꣡ना꣢ऽ१ताऽ᳒२᳒इ॥ व्यख्यन्महिऽ३षो꣡दा꣢ऽ१इवाऽ᳒२᳒म्॥ अन्तर्दे꣯वे꣯षु ऽ३रो꣡चा꣢ऽ१साऽ᳒२᳒इ।(द्विः)। अन्तर्दे꣯वे꣯षुऽ३रो꣡ऽ२३। चा꣡ऽ२᳐। सा꣣ऽ२३४। औ꣥꣯हो꣯वा॥ ए꣢ऽ᳐३। दे꣢꣯वा꣡꣯दिवा꣯ज्यो꣯ती꣣ऽ२३꣡४꣡५ः꣡॥ दी-२०। प-१४। मा-९॥ १८ (भो) २८७॥

१७८-१। श्रोत्रꣳसाम॥ उदुत्यं त्रिष्टुप्गायत्री चित्रंसूर्यः॥

हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। भ्रा꣯जा꣡भ्रा꣯ज꣢।(त्रिः)। आ꣯यू꣡रा꣯युः꣢।(त्रिः)। उ꣡दुत्यं꣢जा꣯।(त्रिः)। त꣡वे꣯द꣢सम्।(त्रिः)। चित्र꣡न्दे꣯वा꣯ना꣯मुदगाद꣪नीऽ२३का꣢ऽ३म्॥ हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। भ्रा꣯जा꣡भ्रा꣯ज꣢।(त्रिः)। आ꣯यू꣡रा꣯युः꣢।(त्रिः)। दे꣡꣯वंव꣢हा꣯।(त्रिः)। च꣡क्षुर्मित्रस्यवरुणास्य꣪ आऽ२३ग्ना꣢ऽ३इः॥ हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। भ्रा꣯जा꣡भ्रा꣯ज꣢।(त्रिः)। आ꣯यू꣡रा꣯युः꣢।(त्रिः)। ति꣡के꣯त꣢वः।(त्रिः)। आ꣡꣯प्रा꣯द्या꣯वा꣯पृथिवी꣯आन्त꣪रीऽ२३क्षा꣢ऽ३म्॥ हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। भ्रा꣯जा꣡भ्रा꣯ज꣢।(त्रिः)। आ꣯यू꣡रा꣯युः꣢।(त्रिः)। दृ꣡शे꣯वि꣢श्वा꣯।(त्रिः)। सू꣡꣯र्यआ꣯त्मा꣯जगत स्तास्थु꣪षाऽ२३श्चा꣢ऽ३। हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। भ्रा꣯जा꣡भ्रा꣯ज꣢।(त्रिः)। आ꣯यू꣡रा꣯युः꣢।(त्रिः)। य꣡सू꣯र्य꣢म्।(द्विः)। य꣡सूऽ२३रिया꣢उ। वाऽ३॥ ए꣢ऽ᳐३। दे꣢꣯वा꣡꣯दिवा꣯ज्यो꣯ती꣣ ऽ२३꣡४꣡५ः꣡॥

१७९-१। इन्द्रस्य शिरस्साम॥ इन्द्रो त्रिष्टुप्गायत्री सूर्यः॥

हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। भ्रा꣣꣯जा꣢꣯ओ꣣꣯वा꣯।(त्रिः)। उ꣢दुत्यंजा꣯।(त्रिः)। हाउहाउहाउवा। आ꣡र्चिः꣢। इ꣡न्द्रन्नरो꣯ने꣯मधिताह꣪वाऽ२३न्ता꣢ऽ३इ॥ हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। भ्रा꣣꣯जा꣢꣯ओ꣣꣯वा꣯। (त्रिः)। त꣢वे꣯दसम्।(त्रिः)। हाउहाउहाउवा। शो꣡चिः꣢। हा꣯उहा꣯उहा꣯उ। भ्रा꣣꣯जा꣢꣯ओ꣣꣯वा꣯। (त्रिः)। दे꣢꣯वंवहा꣯।(त्रिः)। हाउहाउहाउवा। ता꣡पः꣢। य꣡त्पा꣯र्या꣯युनजताइधि꣪या ऽ२३स्ता꣢ऽ३ः॥ हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। भ्रा꣣꣯जा꣢꣯ओ꣣꣯वा꣯।(त्रिः)। ति꣢के꣯तवः।(त्रिः)। हाउहाउ हाउवा। हा꣡रः꣢। हा꣯उहा꣯उहा꣯उ। भ्रा꣣꣯जा꣢꣯ओ꣣꣯वा꣯।(त्रिः)। दृ꣢शे꣯विश्वा꣯।(त्रिः)। हाउहाउ हाउवा। सा꣡हः꣢। शू꣡꣯रो꣯नृषा꣯ता꣯श्रवसाश्च꣪काऽ२३मा꣢ऽ३इ॥ हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। भ्रा꣣꣯जा꣢꣯ ओ꣣꣯वा꣯।(त्रिः)। य꣢सू꣯र्यम्।(त्रिः)। हाउहाउहाउवा। ना꣡रः꣢। हा꣯उहा꣯उहा꣯उ। भ्रा꣣꣯जा꣢꣯ ओ꣣꣯वा꣯।(त्रिः)। दृ꣢शे꣯विश्वा꣯।(त्रिः)। हाउहाउहाउवा। भाऽ᳒२ः᳒। आ꣡꣯गो꣯मतिव्रजे꣯ भजातु꣪वाऽ२३न्ना꣢ऽ३ः। हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। भ्रा꣣꣯जा꣢꣯ओ꣣꣯वा꣯।(त्रिः)। य꣢सू꣯र्यम्।(त्रिः)। हाउहाउहाउवाऽ३॥ ईऽ२३꣡४꣡५꣡॥ दी-१६४। प-७६। मा-९६॥ २० (त्रू) २८९॥

१। आदित्यस्यात्मा॥ आदित्योऽनुष्टुबादित्यात्मा॥उ꣡न्नया꣢꣯मि। हो꣡इ।(द्वे-त्रिः)॥ आ꣢꣯दित्यं꣡ प्रा꣯ञ्चँ꣢ य꣡न्त꣢मु꣡न्नया꣢꣯मि। हो꣡इ। (द्वे-त्रिः)। अ꣢हो꣯रा꣯त्रा꣡꣯ण्यरित्रा꣢꣯णि। हो꣡इ।(द्वे-त्रिः)। द्यौ꣯र्नौर्हा꣢उ।(त्रिः)। त꣡स्या꣯ मसा꣯वा꣯दित्य ई꣯यते हा꣢उ।(त्रिः)। त꣡स्मिन्वयमी꣯यमा꣯न ई꣯या꣯महे हा꣢उ।(त्रिः)॥ ई꣡꣯या꣯महे हा꣢उ।(द्विः)॥ ई꣡꣯या꣯महे꣢ऽ३। हा꣢उवा॥ प्रिये꣡꣯ धा꣯मꣳ꣢स्त्रि꣡यक्ष꣢रे꣯।(द्विः)। प्रिये꣡꣯ धा꣯मꣳ꣢स्त्रि꣡यक्ष꣢रे꣣ऽ२३꣡४꣡५꣡॥