०३ व्रतपर्व

[[अथ आरण्यकगाने व्रतपर्व]]

४.१

[[अथ चतुर्थप्रपाठके प्रथमोऽर्धः]]

[[अथ प्रथमः खण्डः]] ॥वाग्देव्यै नमः॥

१। वाचो व्रते द्वे॥ वाक् (यजुर्वाक्) वाक् त्रिष्टुप् वाक्॥

ओ꣡म्॥ हु꣢वे꣯वा꣯चाम्॥ वा꣯चंवा꣯चꣳहु꣡वेऽ᳒२᳒। वा꣯क्श्रृणो꣯तुश्रृणो꣯तु꣡वाऽ᳒२᳒क्। वा꣯क्समै꣯तुसमै꣯तु꣡वाऽ᳒२᳒क्॥ वा꣯ग्र꣡मता꣢꣯म्। र꣡मता꣢꣯म्। र꣡माऽ२३। तुवा꣢ऽ᳐३४ औ꣥꣯हो꣯वा॥ ई꣢꣯हा꣯।(त्रिः)॥ दी-२१। प-११। मा-६॥ १ (कू) १६७॥

२।हु꣢वा꣡इवा꣢꣯चा꣡म्। वा꣢꣯चꣳहु꣡वाइ॥ वा꣢꣯क्श्रृणो꣡꣯तूऽ२३। शा꣤ऽ᳐३र्णो꣢꣯तु꣣वा꣥꣯क्। वा꣢꣯क्समै꣡꣯तूऽ२३। सा꣤ऽ᳐३मै꣢꣯तु꣣वा꣥꣯क्॥ वा꣢꣯ग्र꣡मताऽ२३म्॥ र꣢म। तु꣣वा꣢ऽ᳐३४ औ꣥꣯हो꣯वा॥ मा꣣ऽ२३꣡४꣡५꣡इ॥(त्रिः)॥ दी-१३। प-१२। मा-१०॥ २ (ठौ) १६८॥

१। शशस्य कर्षूशवस्य व्रतम् कर्षूसाम॥ शशो गायत्रीन्द्रो वृत्रहा॥

आ꣢꣯तू꣡꣯नाऽ२३इ꣤न्द्रवृत्रहन्हा꣥उ॥ आ꣡स्मा꣢꣯कमा꣡हा꣢उ। धा꣡मा꣢꣯गहा꣡हा꣢उ॥ मा꣡हा꣢꣯न्महा꣡हा꣢उ॥ भि꣣रू꣢ऽ३। ता꣡ऽ२३४इभाइ। उ꣥हुवाऽ६हा꣥उ। वा॥ अ꣡स् (स्थि)फट्(स्थि)मृस्(स्थि)हस्(स्थि)वा꣯क्। ऊ꣣ऽ२३꣡४꣡५꣡॥

१। सत्रस्यर्द्धि साम॥ प्रजापतिस्त्रिष्टुबिन्द्रः॥

औ꣢꣯हो꣯वा꣯औ꣯हो꣯वा꣯औ꣯होऽ᳐३वा꣢। अ꣡गन्म꣢ज्यो꣡꣯तिः꣢।(द्विः)। अ꣡गन्म꣢ज्यो꣡꣯तिः। अ꣢मृ꣡ता꣯अ꣢भू꣯म।(द्विः)। अमृ꣡ता꣯अ꣢भू꣯मा꣯। त꣡रिक्षं꣢पृथिव्या꣡꣯अध्या꣯रुहा꣢꣯मा꣯।(द्विः)। त꣡रिक्षं꣢पृथिव्या꣡꣯अध्या꣯रुहा꣢꣯म। दि꣡वम꣢न्त꣡रिक्षा꣢꣯द꣡ध्या꣯रुहा꣢꣯म।(त्रिः)। अ꣡विदा꣢꣯ मदे꣯वा꣡꣯न्।(त्रिः)। समुदे꣢꣯वै꣡꣯रग꣢न्महि।(त्रिः)। औ꣯हो꣯वा꣯औ꣯हो꣯वा꣯औ꣯होऽ᳐३वा꣢॥ सु꣡व र्ज्यो꣯ती꣣ऽ२३꣡४꣡५ः꣡॥

९६-१। प्रजापतेः प्रतिष्ठा॥ प्रजापतिः गायत्र्यग्निः॥

इ꣢ममू꣯षू॥ त्व꣡मस्मा꣯। काम्। स꣢निं꣡गा꣯य꣢त्रं꣡नव्याꣳ꣯स꣢म्॥ आ꣡ग्ने꣢꣯दे꣯वा꣡इ॥ षु꣢प्रा꣡ऽ२᳐वो꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा॥ चा꣣ऽ२३꣡४꣡५ः꣡॥ दी-८। प-७। मा-५॥ ५ (ठु) १७१॥

१। व्याहृति॥ प्रजापतिः (यजुरग्निः) त्रिष्टुबग्निः॥

हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। ए꣯वा꣯हिये꣯वा꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा। ए꣢ऽ᳐३। भू꣢꣯ता꣡꣯याऽ२३꣡४꣡५꣡॥ भी॥१॥ हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। ए꣯वा꣯हिये꣯वा꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा। ए꣢ऽ᳐३। रू꣢꣯पा꣡꣯याऽ२३꣡४꣡५꣡॥ भी॥२॥ हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। ए꣯वा꣯हिये꣯वा꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा। ए꣢ऽ᳐३। आ꣡꣯युषे꣣ऽ२३꣡४꣡५꣡॥ धी॥३॥ हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। ए꣯वा꣯हिये꣯वा꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा। ए꣢ऽ᳐३। ज्यो꣡꣯तिषे꣣ऽ२३꣡४꣡५꣡॥ धी॥४॥

९७-१। परमेष्ठिनः प्राजापत्यस्य व्रतम्॥ परमेष्ठ्यनुष्टुप् परमेष्ठी॥हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। आ꣡नोऽ᳒२᳒ब्रुवा꣡इ।(द्विः)। आनोऽ᳒२᳒ब्रुवा꣡ऽ२᳐। या꣣ऽ२३४ औ꣥꣯हो꣯वा। र꣡क्षत꣢नो꣯रक्षिता꣯रा꣣ऽ२३꣡४꣡५ः꣡। हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। आ꣡नोऽ᳒२᳒ब्रुवा꣡इ।(द्विः)। आनोऽ᳒२᳒ब्रुवा꣡ऽ२᳐। या꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा। गो꣢꣯पा꣯य꣡तगो꣢꣯पा꣯यिता꣯रा꣣ऽ२३꣡४꣡५ः꣡। हा꣢꣯उ हा꣯उहा꣯उ। आ꣡नोऽ᳒२᳒ब्रुवा꣡इ।(द्विः)। आनोऽ᳒२᳒ब्रुवा꣡ऽ२᳐। या꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा। म꣡यि꣢व꣡र्च्चः꣢। अ꣡थोया꣢ऽ१शाऽ᳒२ः᳒॥ अ꣡थो꣢꣯यज्ञ꣡। स्ययात्पा꣢ऽ१याऽ᳒२ः᳒॥ परमे꣯ष्ठी꣡꣯। प्रजापा꣢ऽ१तीऽ᳒२ः᳒॥ दिवि꣡द्या꣯मि। वदॄꣳहा꣢ऽ१तूऽ२३। हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। आ꣡नोऽ᳒२᳒ब्रु वा꣡इ।(द्विः)। आनोऽ᳒२᳒ब्रुवा꣡ऽ२᳐। या꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा। र꣡क्षत꣢नो꣯रक्षिता꣯रा꣣ऽ२३꣡४꣡५ः꣡। हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। आ꣡नोऽ᳒२᳒ब्रुवा꣡इ।(द्विः)। आनोऽ᳒२᳒ब्रुवा꣡ऽ२᳐। या꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा। गो꣢꣯पा꣯य꣡तगो꣢꣯पा꣯यिता꣯रा꣣ऽ२३꣡४꣡५ः꣡। हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। आ꣡नोऽ᳒२᳒ब्रुवा꣡इ।(द्विः)। आनोऽ᳒२᳒ब्रुवा꣡ऽ२᳐। या꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा॥ ए꣢꣯। र꣡क्षत꣢नो꣯रक्षिता꣯रो꣯गो꣯पा꣯य꣡त गो꣯पा꣯यिता꣯रः।(द्वे-द्विः)। ए꣯। र꣡क्षत꣢नो꣯रक्षिता꣯रो꣯गो꣯पा꣯य꣡तगो꣢꣯पा꣯यिता꣯रा꣣ऽ२३꣡४꣡५ः꣡॥

१। परमेष्ठिनः प्राजापत्यस्य व्रतम्॥ (कृष्ण व्रतम्)। अंगिरास्त्रिष्टुप्सोमः॥

सो꣡꣯मासो꣢ऽ᳐३मा꣢।(त्रिः)। य꣡त्र꣢च꣡क्षुः꣢। त꣡दाभा꣢ऽ१राऽ᳒२᳒॥ य꣡त्र꣢श्रो꣡꣯त्र꣢म्। त꣡दा भा꣢ऽ१राऽ᳒२᳒॥ य꣡त्र꣢आ꣡꣯युः꣢। त꣡दाभा꣢ऽ१राऽ᳒२᳒॥ य꣡त्र꣢रू꣯प꣡म्। तदाभा꣢ऽ१राऽ᳒२᳒॥ य꣡त्र꣢व꣡र्च्चः꣢। त꣡दाभा꣢ऽ१राऽ᳒२᳒॥ य꣡त्र꣢ते꣡꣯जः꣢। त꣡दाभा꣢ऽ१राऽ᳒२᳒॥ य꣡त्र꣢ज्यो꣡꣯तिः꣢। त꣡दाभा꣢ऽ१राऽ᳒२᳒॥ सो꣡꣯मासो꣢ऽ᳐३मा꣢।(द्विः)। सो꣡꣯मारा꣢ऽ᳐३जा꣢ऽ᳐३न्। हो꣡ऽ२᳐ हा꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा। इ꣡ट्(स्थि)इडाऽ२३꣡४꣡५꣡॥

९८-१। सोम व्रतम्॥ सोमस्त्रिष्टुप्सोमः॥

ओ꣡꣯वाऽ᳒२᳒।(त्रिः)। सन्ते꣡꣯पया। सी꣢ऽ᳐३स꣡मु। य꣢न्तु꣣वा꣤꣯जाः꣥॥ सं꣢वृ꣡ष्णिया। नी꣢ऽ᳐३अ꣡भि। मा꣢꣯ति꣣षा꣤꣯हाः꣥॥ आ꣢꣯प्या꣡꣯यमा। नो꣢ऽ᳐३अ꣡मृ। ता꣢꣯य꣣सो꣤꣯मा꣥॥ दि꣢वि꣡ श्रवा। सी꣢ऽ᳐३उ꣡त्त। मा꣢꣯नि꣣धि꣤ष्वा꣥॥ ओ꣡꣯वाऽ᳒२᳒।(द्विः)। ओ꣡ऽ२᳐। वा꣣ऽ२३४। औ꣥꣯हो꣯वा॥ प्न्य꣡॥(त्रिः)॥

९९-१। सोम व्रतम्॥ सोमो विराट् सोमः॥

हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। हौवा᳐ऽ३।(त्रिः)। हा꣯ह। हौ꣢वाऽ३।(द्वे-त्रिः)। हो꣢꣯वाऽ᳐३।(त्रिः)।

[[अथ द्वितीयः खण्डः]]

१००-१। भारद्वाजस्य व्रतम्॥ भरद्वाजस्त्रिष्टुबिन्द्रः॥

हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। वा꣡ग्दद꣢द। ददाऽ᳒२᳒या꣡। इ꣢न्द्रो꣡꣯रा꣯जा। ज꣢ग꣡तः। च꣢र्ष꣣ णी꣤꣯ना꣥म्॥ अ꣢धि꣡क्षमा। वि꣢श्व꣡रू꣯। पं꣢य꣣द꣤स्या꣥॥ त꣢तो꣡꣯ददा। ती꣢ऽ᳐३दा꣡꣯शु। षा꣢इव꣣ सू꣤꣯नी꣥॥ चो꣢꣯द꣡द्रा꣯धाः। उ꣢प꣡स्तु। तं꣢चि꣣द꣤र्वा꣥क्। हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। वा꣡ग्दद꣢द। ददाऽ᳒२᳒ या꣭ऽ३। हा꣢उवाऽ३॥ ईऽ२३꣡४꣡५꣡॥

१०१-१। भरद्वाजिनां व्रतम्॥ भरद्वाजोऽनुष्टुप्सोमेन्द्रौ॥

हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। वा꣡꣯ज꣰ऽ२म्।(द्विः)। वा꣡꣯ज꣢म्। एऽ᳒२᳒। वा꣡꣯ज꣰ऽ२म्।(त्रिः)। वा꣡꣯ज꣢म्। एऽ᳒२᳒। वा꣡꣯ज꣰ऽ२म्।(त्रिः)। वा꣡꣯ज꣢म्। एऽ᳒२᳒। वा꣡꣯ज꣰ऽ२म्। वा꣡꣯ज꣢ मोऽ᳒२᳒इ।(द्वे-त्रिः)। वा꣡꣯जम्। वि꣢वीऽ᳒२᳒वि꣡वि।(त्रिः)। वि꣢वि꣡होऽ᳒२᳒इवि꣡वि।(त्रिः)। व्यश्न꣢वाइवि꣡।(त्रिः)। अ꣢भी꣡꣯नवन्तआऽ᳒२᳒द्रू꣡हाऽ२ः᳐। द्रु꣣हो꣢꣯द्रु꣡हः।(त्रिः)। प्रि꣢य꣡मिन्द्र स्यकाऽ᳒२᳒मा꣡याऽ२᳐म्। मि꣣यं꣢मि꣡यम्।(त्रिः)। व꣢त्स꣡न्नपू꣯र्वआऽ᳒२᳒यू꣡नीऽ२᳐। यु꣣नी꣢꣯ यु꣡नि।(त्रिः)। जा꣢꣯तꣳ꣡रिहन्तिमाऽ᳒२᳒ता꣡राऽ२ः᳐। त꣣रो꣢꣯त꣡रः।(त्रिः)। हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। वा꣡꣯ज꣰ऽ२म्।(द्विः)। वा꣡꣯ज꣢म्। एऽ᳒२᳒। वा꣡꣯ज꣰ऽ२म्।(त्रिः)। वा꣡꣯ज꣢म्। एऽ᳒२᳒। वा꣡꣯ज꣰ ऽ२म्।(त्रिः)। वा꣡꣯ज꣢म्। एऽ᳒२᳒। वा꣡꣯ज꣰ऽ२म्। वा꣡꣯ज꣢मोऽ᳒२᳒इ।(द्वे-त्रिः)। वा꣡꣯जम्। वि꣢वीऽ᳒२᳒वि꣡वि।(त्रिः)। वि꣢वि꣡होऽ᳒२᳒इवि꣡वि।(त्रिः)। व्यश्न꣢वाइवि꣡।(द्विः)। व्याऽ२३ श्नवा꣢उ। वा। ए꣯। सुधा꣡꣯मधा꣯म।(द्वे-द्विः)। ए꣢꣯। सुधा꣡꣯मधा꣯माऽ२३꣡४꣡५꣡॥

१०२-१। यम व्रते द्वे॥ (यम व्रतम्)। यमो गायत्र्यग्निः॥

म꣢नो꣯हा꣯उ। वयो꣯हा꣯उ। वर्च्चो꣯हा꣯उ। अग्नि꣡म्। ई꣯डाऽ२᳐इ। पु꣣रो꣢᳐हा꣣ऽ२३४ इता꣥म्॥ इ꣢हहा꣯उ। इडा꣯हा꣯उ। आ꣯युर्हा꣯उ। यज्ञ꣡। स्यदाऽ२᳐इ। व꣣मृ꣢त्वी꣣ऽ२३४ जा꣥म्॥ स्व꣢र्हा꣯उ। ज्यो꣯तिर्हा꣯उ। ऋतꣳहा꣯उ। हो꣡꣯ता꣯। रꣳराऽ२३॥ त्नधा꣢ऽ᳐३ ता꣤ऽ५माऽ६५६म्॥ ए꣢ऽ᳐३। म꣡हा꣣ऽ२३꣡४꣡५ः꣡॥ दी-१८। प-२०। मा-१७॥ १३ (णे) १७९॥

१०३-१। अङ्गिरसां व्रतम्॥ अङ्गिरसस्त्रिष्टुबिन्द्रः॥

हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। हाऽ᳐३। ओ꣡ऽ२३४वा꣥क्।(द्वे-त्रिः)। ओ꣢म्।(त्रिः)। ओ꣡म्। (त्रिः)। हा꣢ऽ᳐३। ओ꣡ऽ२३४वा꣥क्।(द्वे-त्रिः)। ए꣢꣯आ꣯युः।(त्रिः)। आ꣡꣯युः।(त्रिः)। इन्द्रन्नरो꣯ने꣯मधिता꣯हवाऽ᳒२᳒न्ता꣡इ॥ यत्पा꣯र्या꣯युनजते꣯धियाऽ᳒२᳒स्ताः꣡॥ शू꣯रो꣯नृषा꣯ ता꣯श्रवसश्चकाऽ᳒२᳒मा꣡इ॥ आ꣯गो꣯मतिव्रजे꣯भजा꣯तुवाऽ᳒२᳒न्नाः꣡। हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। हाऽ᳐३। ओ꣡ऽ२३४वा꣥क्।(द्वे-त्रिः)। ओ꣢म्।(त्रिः)। ओ꣡म्।(त्रिः)। हा꣢ऽ᳐३। ओ꣡ऽ२३४ वा꣥क्।(द्वे-त्रिः)। ए꣢꣯आ꣯युः।(त्रिः)। आ꣡꣯युः।(द्विः)। आ꣣꣯यू꣢ऽ᳐३४। औ꣥꣯हो꣯वा॥ ए꣢꣯। आ꣯युर्द्धा꣡꣯अ꣢स्म꣡भ्यंव꣢र्च्चो꣯धा꣡꣯दे꣯वे꣯भ्या꣣ऽ२३꣡४꣡५ः꣡॥

१०४-१। अश्विनोर्व्रते द्वे॥ अश्विनौ बृहत्यश्विनौ॥

हो꣢꣯इहाऽ᳐३। इ꣢हो꣯इहाऽ३।(द्वे-त्रिः)। इ꣢मा꣯उवां꣯दिविष्टया꣯ओ꣡हा꣢उ॥ उस्रा꣯हवन्ते꣯ अश्विना꣯ओ꣡हा꣢उ॥ अयंवा꣯मह्वे꣯वसे꣯शची꣯वसू꣯ओ꣡हा꣢उ॥ विशंविशꣳहिगच्छथा꣯ ओ꣡हा꣢उ। हो꣯इहाऽ᳐३। इ꣢हो꣯इहाऽ३।(द्वे-द्विः)। हो꣢꣯इहाऽ᳐३। इ꣢हो꣯इहाऽ३४। औ꣥꣯हो꣯वा॥ ई꣡ऽ५ही꣡हीही꣢꣯ही꣣꣯हि꣢॥ दी-२८। प-१८। मा-२२॥ १५ (डा) १८१॥

१०४-२। अश्विनोर्व्रतोत्तरम्॥

हो꣡इ꣣हा꣢। इ꣡होइ꣣हा꣢।(द्वे-त्रिः)। इमा꣯उवां꣯दिविष्टया꣯हो꣡हा꣢उ॥ उस्रा꣯हवन्ते꣯ अश्विना꣯हो꣡हा꣢उ॥ अयंवा꣯मह्वे꣯वसे꣯शची꣯वसू꣯हो꣡हा꣢उ॥ विशंविशꣳहिगच्छथा꣯ हो꣡हा꣢उ। हो꣡इ꣣हा꣢। इ꣡होइ꣣हा꣢।(द्वे-द्विः)। हो꣡इ꣣हा꣢। इ꣡होइ꣣हा꣢ऽ᳐३४। औ꣥꣯हो꣯वा॥ ईऽ᳒२᳒॥(त्रिः)॥

१०५-१। गवां व्रते द्वे॥ गावस्त्रिष्टुप्गावः॥

हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। गा꣯वो꣯हा꣯उ।(त्रिः)। वृषभपत्नी꣯र्हा꣯उ।(त्रिः)। वै꣯रा꣯जपत्नी꣯र्हा꣯उ। (त्रिः)। विश्वरू꣯पा꣯हा꣯उ।(त्रिः)। अस्मा꣯सुरमध्वꣳहा꣯उ।(त्रिः)। ते꣡꣯मन्वतप्रथम न्ना꣯मगोऽ᳒२᳒ना꣡म्॥ त्रिस्सप्तपरमन्ना꣯मजाऽ᳒२᳒ना꣡न्॥ ता꣯जा꣯नती꣯रभ्यनू꣯षताऽ᳒२᳒ क्षाः꣡॥ आ꣢꣯वि꣡र्भुवन्नरुणी꣯र्यशसा꣯गाऽ᳒२᳒वाः꣡। हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। गा꣯वो꣯हा꣯उ।(त्रिः)। वृषभपत्नी꣯र्हा꣯उ।(त्रिः)। वै꣯रा꣯जपत्नी꣯र्हा꣯उ।(त्रिः)। विश्वरू꣯पा꣯हा꣯उ।(त्रिः)। अस्मा꣯ सुरमध्वꣳहा꣯उ।(द्विः)। अस्मा꣯सुरमध्वाऽ३ꣳहा꣢उ। वा॥ ए꣯। गा꣡꣯वो꣯वृ꣢षभ꣡पत्नी꣢꣯ र्वै꣯रा꣯ज꣡पत्नी꣢꣯र्विश्व꣡रू꣯पा꣢꣯अस्मा꣡꣯सुर꣢मध्वम्।(द्वे-द्विः)। ए꣯। गा꣡꣯वो꣯वृ꣢षभ꣡पत्नी꣢꣯र्वै꣯रा꣯ ज꣡पत्नी꣢꣯र्विश्व꣡रू꣯पा꣢꣯अस्मा꣡꣯सुर꣢मध्वा꣣ऽ२३꣡४꣡५꣡म्॥

१०६-१। गवांव्रतोत्तरम्॥

हा꣢उहाउहाउवा। अग्नि꣡मी꣯डे꣢꣯पुरो꣡꣯हित꣢म्। दे꣯वे꣡꣯षुनि꣢धिमाꣳ꣡꣯अ꣢ह꣡म्॥ हा꣢उ हाउहाउवा। यज्ञ꣡स्यदे꣢꣯व꣡मृ꣢त्वि꣡जम्। दे꣢꣯वे꣡꣯षुनि꣢धिमाꣳ꣡꣯अ꣢ह꣡म्॥ हा꣢उहाउहाउवा। हो꣡꣯ता꣯रꣳ꣢रत्नधा꣡꣯तम꣢म्। दे꣯वे꣡꣯षुनि꣢धिमाꣳ꣡꣯अ꣢ह꣡म्॥ हा꣢उहाउहाउवा॥ ए꣯। दे꣯वे꣡꣯षु नि꣢धिमाꣳ꣡꣯अ꣢ह꣡म्॥(द्वे-त्रिः)॥

१०७-१। कश्यपस्य व्रते द्वे॥ कश्यपोऽनुष्टुप्सोमः॥

हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। प्सुवन्तरा꣯।(त्रिः)। को꣡꣯ज्यो꣯तिः। अ꣢र्को꣡꣯ज्यो꣯तिः। अ꣢र्को꣡꣯ ज्यो꣯तिः। सु꣢वर्धे꣯नूः।(त्रिः)। कश्यपस्यसुऽ३वा꣡र्वा꣢ऽ१इदाऽ᳒२ः᳒॥ या꣯वा꣯हुस्सयु ऽ३जा꣡वा꣢ऽ१इतीऽ᳒२᳒॥ ययो꣯र्विश्वमऽ३पा꣡इव्रा꣢ऽ१ताऽ᳒२᳒म्॥ यज्ञन्धी꣯रा꣯निऽ३ चा꣡आ꣢ऽ१याऽ२३। हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। प्सुवन्तरा꣯।(त्रिः)। को꣡꣯ज्यो꣯तिः। अ꣢र्को꣡꣯ ज्यो꣯तिः। अ꣢र्को꣡꣯ज्यो꣯तिः। सु꣢वर्धे꣯नूः।(द्विः)। सु꣡वर्द्धे꣯नुः। औ꣯होवा꣣꣯हा꣢उ। वाऽ३॥ इ꣡ट्(स्थि)इडाऽ२३꣡४꣡५꣡॥

१०७-२।

हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। ऊऽ᳒२᳒।(त्रिः)। कह्वाऽ᳒२᳒उ।(त्रिः)। कश्यपस्यसु꣡वाऽ२३र्विदाः꣢॥ या꣯वा꣯हुस्सयुऽ३जा꣡वा꣢ऽ१इतीऽ᳒२᳒॥ ययो꣯र्विश्वम꣡पाऽ२३इव्रता꣢म्॥ यज्ञन्धी꣯रा꣯नि ऽ३चा꣡आ꣢ऽ१याऽ२३। हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। ऊऽ᳒२᳒।(त्रिः)। कह्वाऽ᳒२᳒उ।(द्विः)। कह्वा꣡ ऽ२३उ। ह्वा꣢उवाऽ३॥ ईऽ२३꣡४꣡५꣡॥ दी-११। प-२०। मा-१८॥ २० (ङ्रै) १८६॥

४.२

[[अथ चतुर्थप्रपाठके द्वितीयोऽर्धः]]

[[अथ ततीयः खण्डः]] १०८-१। अङ्गिरसां व्रते द्वे॥ अङ्गिरसस्त्रिष्टुबिन्द्रः॥

हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। इ꣡न्द्रा꣢ऽ᳐३१२३म्। हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। नरो꣯ने꣯मधिता꣯हवा꣡न्ता꣢इ। हवा꣡न्ता꣢इ। हवा꣡न्ता꣢ऽ᳐३इ। ओ꣢इ। ह꣣व꣤न्ता꣥इ। व꣡न्ता꣢꣯। औ꣯हो꣡वा꣢। ए꣡꣯हि꣢या꣯॥ हा꣯उहा꣯उहा꣯उ। य꣡त्पा꣢ऽ᳐३१२३। हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। र्या꣯युनजते꣯धिया꣡स्ताः꣢। धिया꣡स्ताः꣢। धिया꣡स्ता꣢ऽ᳐३ः। ओ꣢इ। धि꣣य꣤स्ताः꣥। य꣡स्ता꣢꣯। औ꣯हो꣡वा꣢। ए꣡꣯हि꣢या꣯॥ हा꣯उहा꣯उहा꣯उ। शू꣡꣯रो꣢ऽ᳐३१२३। हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। नृषा꣯ता꣯श्रवसश्चका꣡मा꣢इ। चका꣡मा꣢इ। चका꣡ मा꣢ऽ᳐३इ। ओ꣢इ। च꣣का꣤꣯मा꣥इ। का꣡꣯मा꣢꣯। औ꣯हो꣡वा꣢। ए꣡꣯हि꣢या꣯॥ हा꣯उहा꣯उहा꣯उ। आ꣡꣯गो꣢ ऽ᳐३१२३। हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। मतिव्रजे꣯भजा꣯तुवा꣡न्नः꣢। तुवा꣡न्नः꣢। तुवा꣡न्ना꣢ऽ᳐३ः। ओ꣢इ। तु꣣व꣤न्नाः꣥। व꣡न्ना꣢꣯। औ꣯हो꣡वा꣢। ए꣡꣯हि꣢या꣯। हाउहाउहाउ। वाऽ३॥ ईऽ२३꣡४꣡५꣡॥ दी-५३। प-४७। मा-४८॥ १ (ठ्रे) १८७॥

१०९-१।

हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। हा꣡हा꣢उ।(त्रिः)। इ꣡हाहा꣢उ।(त्रिः)। इ꣡याहा꣢उ।(द्विः)। इ꣡या꣭ऽ३हा꣢उ। वा। अभि꣡त्वा꣯शू꣢꣯रनो꣯नुमो꣯ह꣡स्॥ अदुग्धा꣢꣯इवधे꣯न꣡वो꣯हस्। ई꣯शा꣯न꣢म स्य꣡जगत꣢स्स्वर्दृ꣡शꣳहस्। ई꣯शा꣯न꣢मिन्द्रतस्थु꣡षो꣯हस्॥ सहस्वा꣢꣯न्त्स꣡हस꣢स्प꣡ति꣢ र꣡दिद्य꣢वद्ध꣡स्॥ स्व꣢र्जि꣡द्वा꣯ज꣢सा꣡꣯त꣢मो꣡꣯दिद्य꣢वद्ध꣡स्। हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। हा꣡हा꣢उ।(त्रिः)। इ꣡हाहा꣢उ।(त्रिः)।

११०-१। अपां व्रते द्वे॥ आपो विराडिन्द्रः आपस्त्रिष्टुबापः॥

हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। ऐ꣡꣯रय꣢त्।(त्रिः)। अप꣡स्समै꣯रय꣢त्।(त्रिः)। भू꣯त꣡मै꣯रय꣢त्। (त्रिः)। अपा꣯ङ्गर्भो꣯ग्निरिडा꣯। पा꣯ङ्गर्भो꣯ग्निरिडा꣯। पा꣯ङ्गर्भो꣯ग्निरिडा꣯। पृथिव्या꣯ गर्भो꣯ग्निरिडा꣯।(त्रिः)। स꣡मन्या꣯यन्त्युपयन्ति꣢या꣡ऽ२३न्याः꣢॥ समा꣯न꣡मू꣯र्वन्नद्य स्पृ꣢णा꣡ऽ२३न्ती꣢॥ त꣡मू꣯शुचिꣳशुचयो꣯दी꣯दि꣢वा꣡ऽ२३ꣳसा꣢म्॥ अपा꣡꣯न्नपा꣯तमुप यन्ति꣢या꣡ऽ२३पा꣢ऽ᳐३ः। हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। ऐ꣡꣯रय꣢त्।(त्रिः)। अप꣡स्समै꣯रय꣢त्।(त्रिः)। भू꣯त꣡मै꣯रय꣢त्।(त्रिः)। अपा꣯ङ्गर्भो꣯ग्निरिडा꣯। पा꣯ङ्गर्भो꣯ग्निरिडा꣯। पा꣯ङ्गर्भो꣯ग्निरिडा꣯। पृथिव्या꣯गर्भो꣯ग्निरिडा꣯।(द्विः)। पृथिव्या꣯गर्भो꣯ग्निरिडाऽ३। हा꣢उवा॥ ए꣯। अग्नि꣡श्शिशु꣢क्वः꣡। ए꣢꣯। शुक्र꣡श्शिशु꣢क्वः꣡। ए꣢꣯। ते꣡꣯जश्श꣢क्र꣡स्यश꣢क्व꣡म्। ए꣢꣯। ते꣡꣯जस्स꣢प्रा꣡꣯स्समी꣯चीः꣢꣯। ए꣯। ते꣡꣯ज꣢उ꣡षो꣢꣯न꣡जा꣢꣯रः꣡। ए꣢꣯। सु꣡वर्ज्यो꣯ती꣣ऽ२३꣡४꣡५ः꣡॥ दी-८८। प-४९। मा-३५॥ ३ (ढु) १८९॥

११०-२।

हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। ऐ꣡꣯रय꣢न्।(त्रिः)। स꣡मै꣯र꣢यन्।(त्रिः)। स꣡मस्व꣢रन्।(त्रिः)। स꣡मन्या꣯यन्त्युपयन्ति꣢या꣡ऽ२३न्याः꣢॥ समा꣯न꣡मू꣯र्वन्नद्यस्पृ꣢णा꣡ऽ२३न्ती꣢॥ त꣡मू꣯ शुचिꣳशुचयो꣯दी꣯दि꣢वा꣡ऽ२३ꣳसा꣢म्॥ अपा꣡꣯न्नपा꣯तमुपयन्ति꣢या꣡ऽ२३पा꣢ऽ᳐३ः। हा꣢꣯उ हा꣯उहा꣯उ। ऐ꣡꣯रय꣢न्।(त्रिः)। स꣡मै꣯र꣢यन्।(त्रिः)। स꣡मस्व꣢रन्।(द्विः)। स꣡मस्व꣢रा ऽ३न्। हा꣢उवाऽ३॥ ईऽ२३꣡४꣡५꣡॥ दी-२६। प-२६। मा-२८॥ ४ (क्रै) १९०॥

१११-१। अहोरात्रयोर्व्रते द्वे॥ अहर्गायत्री सूर्यः॥

हा꣢उहाउहाउवा। प्रा꣡꣯गन्यदनुव꣢र्तते꣯र꣡जो꣯पा꣯ग꣢न्य꣡त्तमो꣯पे꣯ष꣢तिभ्य꣡सा꣯। हा꣢꣯उ हा꣯उहा꣯उ।

११२-१। रात्रेर्व्रतम्॥ रात्र्यनुष्टुब्रात्रिः॥

हो꣡ऽ᳒२᳒इ।(त्रिः)। आ꣡꣯प्रा꣯गा꣯द्भ꣢द्रा꣡꣯युव꣢तिः꣡॥ होऽ᳒२᳒इ।(त्रिः)। अ꣡ह्नᳲके꣢꣯तू꣡꣯ न्त्समी꣯र्त्स꣢ति॥ हो꣡ऽ᳒२᳒इ।(त्रिः)। अ꣡भू꣯द्भ꣢द्रा꣡꣯नि꣢वे꣡꣯शनी꣢꣯॥ हो꣡ऽ᳒२᳒इ।(त्रिः)। वि꣡श्व स्य꣢ज꣡गतो꣢꣯रा꣡꣯त्री꣢꣯॥ हो꣡ऽ᳒२᳒इ।(द्विः)। हो꣡ऽ२꣮। वाऽ᳐३। हा꣢उवाऽ३॥ ईऽ२३꣡४꣡५꣡॥

११३-१। विष्णोर्व्रतम्॥ विष्णुर्जगती वैश्वानरः॥

हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। ऊऽ᳒२᳒।(द्विः)। ऊ꣡ऽ२꣮। वाऽ३। हा꣢उवाऽ३। ह꣡स्(स्थि) ह꣢ह꣡स्। अ꣢र्चि꣡श्शो꣯चिस्तपो꣯हरः। प्र꣢क्ष꣡स्यवृष्णो꣯अरुषस्य꣢नू꣡꣯माऽ२३हाः꣢॥ प्र꣡नो꣯ वचो꣯विदथा꣯जा꣯त꣢वे꣡꣯दाऽ२३सा꣢इ॥ वै꣯श्वा꣯नरा꣡꣯यमतिर्नव्य꣢से꣡꣯शूऽ२३चीः꣢॥ सो꣡꣯मइव पवते꣯चा꣯रु꣢र꣡ग्नाऽ२३या꣢ऽ३इ। हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। ऊऽ᳒२᳒।(द्विः)। ऊ꣡ऽ२꣮। वाऽ᳐३। हा꣢उवाऽ३॥ ईऽ२३꣡४꣡५꣡॥ दी-२२। प-१९। मा-१७॥ ७ (झ्रे) १९३॥

११४-१। विश्वेषां देवानां व्रतम्॥ विश्वेदेवाद्यावापृथिव्यौ(इन्द्रः) जगती विश्वेदेवाः॥

हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। आ꣡इही꣢।(त्रिः)। आ꣡इहीऽ᳒२᳒।(त्रिः)। आ꣡इहि꣢हाऽ᳒२᳒इ।(द्विः)। आ꣡इहि꣢हा꣡इ। विश्वे꣯दे꣯वा꣯ममश्रृण्वन्तु꣢या꣡ऽ२३ज्ञा꣢म्॥ उभे꣡꣯रो꣯दसी꣯अपा꣯न्नपा꣯च्च꣢ मा꣡ऽ२३न्मा꣢॥ मा꣡꣯वो꣯वचाꣳ꣯सिपरिचक्ष्या꣯णि꣢वो꣡ऽ२३चा꣢ऽ३म्॥ हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। आ꣡इही꣢।(त्रिः)। आ꣡इहीऽ᳒२᳒।(त्रिः)। आ꣡इहि꣢हाऽ᳒२᳒इ।(द्विः)। आ꣡इहि꣢हा꣡इ। सुम्ने꣯ ष्विद्वो꣯अन्तमा꣯मदाऽ२इमा꣣उवा꣢ऽ᳐३॥ ईऽ२३꣡४꣡५꣡॥

११५-१। वसिष्ठ व्रते द्वे॥ द्वयोर्वसिष्ठस्त्रिष्टुबिन्द्रः॥

हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। ऊऽ᳒२᳒।(त्रिः)। षि।(त्रिः)। इ꣡याहा꣢उ।(त्रिः)। उदु꣡ब्रह्मा। णी꣢ऽ᳐३ऐ꣡꣯र। त꣢श्र꣣व꣤स्या꣥॥ इ꣢न्द्रꣳ꣡समा। र्ये꣢ऽ᳐३म꣡ह। या꣢꣯व꣣सि꣤ष्ठा꣥॥ आ꣢꣯यो꣡꣯विश्वा। नी꣢ऽ३श्र꣡व। सा꣢꣯त꣣ता꣤꣯ना꣥॥ उ꣢प꣡श्रो꣯ता। म꣢ई꣡꣯व। तो꣢꣯व꣣चाꣳ꣤꣯सी꣥। हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। ऊऽ᳒२᳒।(त्रिः)। षि।(त्रिः)। इ꣡याहा꣢उ।(द्विः)। इ꣡या꣭ऽ३हा꣢उ। वाऽ᳐३॥ ईऽ२३꣡४꣡५꣡॥

११५-२।

हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। ऊऽ᳒२᳒।(त्रिः)। षि।(त्रिः)। इयो।(त्रिः)। इयो꣡꣯वा꣯।(त्रिः)। इ꣢यो꣡꣯वा꣯हा꣢इ।(त्रिः)। उ꣡दु꣰ऽ२।(द्विः)। उ꣡दु। उ꣢दो꣡꣯वा꣯।(त्रिः)। उ꣢दो꣡꣯वा꣯हा꣢इ।(त्रिः)। ब्र꣡ह्मा। णी꣢ऽ᳐३ऐ꣡꣯र। त꣢श्रवस्या। स्या। स्या। स्यो꣡꣯वा꣯।(त्रिः)। स्यो꣯वा꣯हा꣢꣯इ। (त्रिः)। इ꣡न्द्र꣰ऽ२म्।(द्विः)। इ꣡न्द्रम्। इ꣢न्द्रो꣡꣯वा꣯।(त्रिः)। इ꣢न्द्रो꣡꣯वा꣯हा꣢इ।(त्रिः)। स꣡मा। र्ये꣢ऽ᳐३म꣡ह। या꣢꣯वसिष्ठा। ष्ठा। ष्ठा। ष्ठो꣡꣯वा꣯।(त्रिः)। ष्ठो꣯वा꣯हा꣢꣯इ।(त्रिः)। आ꣡꣯यो꣰꣯ऽ२।(द्विः)। आ꣡꣯यः। आ꣢꣯यो꣡꣯वा꣯।(त्रिः)। आ꣢꣯यो꣡꣯वा꣯हा꣢इ।(त्रिः)। वि꣡श्वा। नी꣢ऽ᳐३श्र꣡व। सा꣢꣯तता꣯ना। ना। ना। नो꣡꣯वा꣯।(त्रिः)। नो꣯वा꣯हा꣢꣯इ।(त्रिः)। उ꣡प꣰ऽ२। (द्विः)। उ꣡प। उ꣢पो꣡꣯वा꣯।(त्रिः)। उ꣢पो꣡꣯वा꣯हा꣢इ।(त्रिः)। श्रो꣡꣯ता। म꣢ई꣡꣯व। तो꣢꣯वचाꣳ꣯सी। सी। सी। सो꣡꣯वा꣯।(त्रिः)। सो꣯वा꣯हा꣢꣯इ।(त्रिः)। हा꣯उहा꣯उहा꣯उ। ऊऽ᳒२᳒।(त्रिः)। षि।(त्रिः)। इयो।(त्रिः)। इयो꣡꣯वा꣯।(त्रिः)। इ꣢यो꣡꣯वा꣯हा꣢इ।(द्विः)। इयो꣡꣯वा꣭ऽ३हा꣢उ। वाऽ᳐३। ईऽ२३꣡४꣡५꣡॥

[[अथ चतुर्थः खण्डः]]

११६-१। इन्द्रस्य सञ्जयम्॥ इन्द्रस्त्रिष्टुबिन्द्रः॥

हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। वि꣡श्वा꣯धना꣯नि꣢सञ्जि꣡त्यवृ꣢त्रहा꣡꣯भू꣯र्या꣯सु꣢तिः। हो꣡इ।(द्वे-त्रिः)। उ꣢रुं꣡घो꣯षञ्च꣢क्रे꣯लो꣯क꣡म्। होइ।(द्वे-त्रिः)। वृ꣢त्र꣡मे꣯भ्यो꣯लो꣢꣯के꣡꣯भ्यो꣯नु꣢नुदा꣯नः꣡। होइ।(द्वे-त्रिः)। इ꣢न्द्र꣡न्नरो। ने꣢ऽ᳐३म꣡धि। ता꣢꣯ह꣣व꣤न्ता꣥इ॥ य꣢त्पा꣡꣯रियाः। यु꣢न꣡ज। ता꣢इ᳐धि꣣ य꣤स्ताः꣥॥ शू꣢꣯रो꣡꣯नृषा। ता꣢ऽ᳐३श्र꣡व। स꣢श्च꣣का꣤꣯मा꣥इ॥ आ꣢꣯गो꣡꣯मताइ। व्र꣢जे꣡꣯भ। जा꣢꣯तु꣣ व꣤न्नाः꣥। हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। वि꣡श्वा꣯धना꣯नि꣢सञ्जि꣡त्यवृ꣢त्रहा꣡꣯भू꣯र्या꣯सु꣢तिः। हो꣡इ।(द्वे-त्रिः)। उ꣢रुं꣡घो꣯षञ्च꣢क्रे꣯लो꣯क꣡म्। होइ।(द्वे-त्रिः)। वृ꣢त्र꣡मे꣯भ्यो꣯लो꣢꣯के꣡꣯भ्यो꣯नु꣢नुदा꣯नः꣡। होइ। (द्वे-द्विः)। वृ꣢त्र꣡मे꣯भ्यो꣯लो꣢꣯के꣡꣯भ्यो꣯नु꣢नुदा꣯नः꣡। होऽ२᳐। वा꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा॥ ए꣢꣯। वृत्रं꣡जघ꣢न्वाꣳ꣡꣯अप꣢त꣡द्ववा꣢꣯रय꣡त्तमः।(द्वे-द्विः)। ए꣢꣯। वृत्रं꣡जघ꣢न्वाꣳ꣡꣯अप꣢त꣡द्ववा꣢꣯रय꣡ त्तमाऽ२३꣡४꣡५ः꣡॥

११७-१। यशस्साम॥ अगस्त्ययशः ज्योतिष्मतीजगती द्यावापृथिव्यौ॥

हा꣢उहाउहाउवा। य꣡शो꣯मा꣢꣯द्या꣡꣯वा꣯पृ꣢थिवी꣡꣯॥ हा꣢उहाउहाउवा। य꣡शो꣯मे꣢꣯न्द्रबृहस्पती꣡꣯॥

११८-१। प्रजापतेस्त्रयस्त्रिंशत् सम्मितम्॥ प्रजापतिर्विराडिन्द्रः॥

ए꣢ऽ᳐३१।(चतुः)। प्र꣢वो꣡꣯महाइ। म꣢हे꣯वृधाइभरा꣣ऽ२३४ध्वा꣥म्। क्षौ꣡।(चतुः)। ए꣢ऽ᳐३१।(चतुः)। प्र꣢चे꣡꣯तसाइ। प्र꣢सुमताइङ्कृणू꣣ऽ२३४ध्वा꣥म्। क्षौ꣡।(चतुः)। ए꣢ऽ᳐३१।(चतुः)। वि꣢शᳲ꣡पू꣯र्वाइः। प्र꣢चरचर्षणा꣣ऽ२३४इप्राः꣥। क्षौ꣡।(चतुः)। ए꣢ऽ᳐३१।(द्विः)। ए꣢ऽ᳐३१२। आ꣣ऽ२३४। औ꣥꣯हो꣯वा॥ ए꣢꣯। व्रत꣡मे꣯सुवरे꣢꣯शकुनः꣡॥

११९-१। प्रजापतेश्चतुस्त्रिंशत् सम्मितम्॥ प्रजापतिस्त्रिष्टुबिन्द्रः॥

एऽ᳒२᳒।(पञ्च)। यो꣡꣯वा꣯।(पञ्च)। यो꣯वा꣯हा꣢꣯इ।(पञ्च)। इन्द्र꣡न्नरो। ने꣢ऽ᳐३ म꣡धि। ता꣢꣯ह꣣व꣤न्ता꣥इ। एऽ᳒२᳒।(पञ्च)। यो꣡꣯वा꣯।(पञ्च)। यो꣯वा꣯हा꣢꣯इ।(चतुः)। यो꣡꣯वा꣭ ऽ३हा꣢उ। वा। क्षौ꣡।(त्रिः)। एऽ᳒२᳒।(पञ्च)। यो꣡꣯वा꣯।(पञ्च)। यो꣯वा꣯हा꣢꣯इ।(पञ्च)। यत्पा꣡꣯रियाः। यु꣢न꣡ज। ता꣢इ᳐धि꣣य꣤स्ताः꣥। एऽ᳒२᳒।(पञ्च)। यो꣡꣯वा꣯।(पञ्च)। यो꣯वा꣯ हा꣢꣯इ।(चतुः)। यो꣡꣯वा꣭ऽ३हा꣢उ। वा। क्षौ꣡।(त्रिः)। एऽ᳒२᳒।(पञ्च)। यो꣡꣯वा꣯।(पञ्च)। यो꣯वा꣯हा꣢꣯इ।(पञ्च)। शू꣯रो꣡꣯नृषा। ता꣢ऽ᳐३श्र꣡व। स꣢श्च꣣का꣤꣯मा꣥इ। एऽ᳒२᳒।(पञ्च)। यो꣡꣯वा꣯।(पञ्च)। यो꣯वा꣯हा꣢꣯इ।(चतुः)। यो꣡꣯वा꣭ऽ३हा꣢उ। वा। क्षौ꣡।(त्रिः)। एऽ᳒२᳒। (पञ्च)। यो꣡꣯वा꣯।(पञ्च)। यो꣯वा꣯हा꣢꣯इ।(पञ्च)। आ꣯गो꣡꣯मताइ। व्र꣢जे꣡꣯भ। जा꣢꣯तु꣣ व꣤न्नाः꣥। एऽ᳒२᳒।(पञ्च)। यो꣡꣯वा꣯।(पञ्च)। यो꣯वा꣯हा꣢꣯इ।(चतुः)। यो꣡꣯वा꣭ऽ३हा꣢उ। वा॥ ए꣯। व्रत꣡मे꣯सुवरे꣢꣯शकुनः꣡॥ दी-२०४। प-१४७। मा-४८॥ १४ (थै) २००॥

१२०-१। जमदग्नेर्व्रतम्॥ जमदग्निर्बृहतीन्द्रः॥हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। ह꣡हा꣢उ।(त्रिः)। ह꣡हहा꣢उ।(त्रिः)। क꣡पाऽ२३उ।(त्रिः)। हा꣢ऽ᳐३ओ꣡ऽ२३।(द्विः)। हा꣢ऽ३१उवाऽ᳒२᳒। अभि꣡त्वा꣯शू꣯र꣢नोऽ३। आ꣡उ। वाऽ२३। नूऽ२३४माः꣥। ई꣢꣯डा꣯।(त्रिः)। ज्यो꣡꣯तिष्प꣢तस्स्वᳲ꣡पता꣢꣯न्त꣡रिक्षं꣢पृथिवीं꣡꣯पञ्चप्र꣢दि꣡श꣢ ऋ꣡षी꣯न्दे꣢꣯वा꣡꣯न्वर्णम्॥ अदुग्धा꣯इव꣢धाऽ३१उवाऽ२३इ। नाऽ२३४वाः꣥। ई꣢꣯डा꣯।(त्रिः)। ज्यो꣡꣯तिष्प꣢तस्स्वᳲ꣡पता꣢꣯न्त꣡रिक्षं꣢पृथिवीं꣡꣯पञ्चप्र꣢दि꣡श꣢ऋ꣡षी꣯न्दे꣢꣯वा꣡꣯न्वर्णम्॥ ई꣯शा꣯न मस्यजगतस्सु꣢वाऽ३१उवाऽ२३। दॄऽ२३४शा꣥म्। ई꣢꣯डा꣯।(त्रिः)। ज्यो꣡꣯तिष्प꣢त स्स्वᳲ꣡पता꣢꣯न्त꣡रिक्षं꣢पृथिवीं꣡꣯पञ्चप्र꣢दि꣡श꣢ऋ꣡षी꣯न्दे꣢꣯वा꣡꣯न्वर्णम्॥ ई꣯शा꣯नमिन्द्र꣢ता ऽ३१उवाऽ२३। स्थूऽ२३४षाः꣥। ई꣢꣯डा꣯।(त्रिः)। ज्यो꣡꣯तिष्प꣢तस्स्वᳲ꣡पता꣢꣯न्त꣡रिक्षं꣢ पृथिवीं꣡꣯पञ्चप्र꣢दि꣡श꣢ऋ꣡षी꣯न्दे꣢꣯वा꣡꣯न्वर्णम्॥ हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। ह꣡हा꣢उ।(त्रिः)। ह꣡हहा꣢उ। (त्रिः)। क꣡पाऽ२३उ।(त्रिः)। हा꣢ऽ᳐३ओ꣡ऽ२३।(द्विः)। हा꣢ऽ३१उवाऽ᳒२᳒॥ ए꣯। व्रत꣡मे꣯सुवरे꣢꣯शकुनः꣡॥

१२१-१। युग्यञ्च दशस्तोभम्॥ जमदग्निस्त्रिष्टुबिन्द्रः॥

हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। ओ꣣꣯हा꣢꣯।(त्रिः)। हा꣯ओ꣣꣯वा꣯।(त्रिः)। ऊऽ᳒२᳒।(त्रिः)। ओऽ᳒२᳒। (त्रिः)। हा꣯उवा꣡꣯क्।(त्रिः)। आ꣯युर्यन्।(त्रिः)। ए꣢꣯आ꣯युः।(त्रिः)। आ꣡꣯युः।(त्रिः)। वयाः।(द्विः)। वयः। इन्द्रन्नरो꣯ने꣯मधिता꣯हवाऽ᳒२᳒न्ता꣡इ॥ यत्पा꣯र्या꣯युनजते꣯ धियाऽ᳒२᳒स्ताः꣡॥ शू꣯रो꣯नृषा꣯ता꣯श्रवसश्चकाऽ᳒२᳒मा꣡इ॥ आ꣯गो꣯मतिव्रजे꣯भजा꣯तुवाऽ᳒२᳒ न्नाः꣡। हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। ओ꣣꣯हा꣢꣯।(त्रिः)। हा꣯ओ꣣꣯वा꣯।(त्रिः)। ऊऽ᳒२᳒।(त्रिः)। ओऽ᳒२᳒। (त्रिः)। हा꣯उवा꣡꣯क्।(त्रिः)। आ꣯युर्यन्।(त्रिः)। ए꣢꣯आ꣯युः।(त्रिः)। आ꣡꣯युः।(त्रिः)। वयाः।(द्विः)। वाऽ२᳐। या꣣ऽ२३४। औ꣥꣯हो꣯वा॥ ए꣢꣯। आ꣯युर्द्धा꣡꣯अ꣢स्म꣡भ्यंव꣢र्च्चो꣯ धा꣡꣯दे꣯वे꣯भ्या꣣ऽ२३꣡४꣡५ः꣡॥

१२२-१। वार्त्रघ्नम्॥ इन्द्रस्त्रिष्टुबिन्द्रः॥

वृ꣢त्रह꣡त्या꣯यहोइ।(त्रिः)। अ꣢धृष्ण꣡वे꣯होइ।(त्रिः)। अ꣢पू꣯र꣡वे꣯होइ।(द्विः)। अ꣢पू꣯रा꣡वाऽ᳒२᳒इ। पृथिवी꣡꣯ञ्चा꣯होइ।(त्रिः)। वि꣢वर्त्त꣡या꣯होइ।(द्विः)। वि꣢वर्त्ता꣡याऽ᳒२᳒। अ꣢न्त꣡रिक्षꣳहोइ।(त्रिः)। सु꣢धा꣯र꣡या꣯होइ।(द्विः)। सु꣢धा꣯रा꣡याऽ᳒२᳒। दिवंवे꣡꣯पा꣯होइ। (त्रिः)। अ꣢वे꣯प꣡यो꣯होइ।(द्विः)। अ꣢वे꣯पा꣡याऽ᳒२ः᳒। हो꣡इ।(द्विः)। हुवेऽ२꣮। हाऽ३१ उवाऽ᳒२᳒। इ꣡न्द्र꣰ऽ२।(द्विः)। इ꣡न्द्र। स्य꣢नू꣡।(द्विः)। स्य꣢नूऽ३। आ꣡उ। वाऽ᳒२᳒। वी꣯र्या꣡꣯णि। प्र꣢वा꣡।(द्विः)। प्र꣢वाऽ३१उ। वाऽ२३। चाऽ२३꣡४꣡५꣡म्। या꣡꣯नि꣰ऽ२। (द्विः)। या꣡꣯नि। च꣢का꣡।(द्विः)। च꣢काऽ३१उ। वाऽ᳒२᳒। रप्रथमा꣡꣯। नि꣢वा꣡।(द्विः)। नि꣢वाऽ३१उ। वाऽ२३। ज्रीऽ२३꣡४꣡५꣡। अ꣡ह꣰ऽ२न्।(द्विः)। अ꣡हन्। अ꣢हा꣡इम्। (द्विः)। अ꣢हाऽ३१उ। वाऽ᳒२᳒। अ꣡न्व꣢पः꣡। त꣢ता꣡।(द्विः)। त꣢ताऽ३१उ। वाऽ२३। दाऽ२३꣡४꣡५꣡। प्र꣡व꣰ऽ२।(द्विः)। प्र꣡व। क्ष꣢णाः꣡।(द्विः)। क्ष꣢णाऽ३१उ। वाऽ᳒२᳒। अ꣡भि꣢नत्पा꣡। र्व꣢ता꣡।(द्विः)। र्व꣢ताऽ३१उ। वाऽ२३। नाऽ२३꣡४꣡५꣡म्। वृ꣢त्र ह꣡त्या꣯यहोइ।(त्रिः)। अ꣢धृष्ण꣡वे꣯होइ।(त्रिः)। अ꣢पू꣯र꣡वे꣯होइ।(द्विः)। अ꣢पू꣯ रा꣡वाऽ᳒२᳒इ। पृथिवी꣡꣯ञ्चा꣯होइ।(त्रिः)। वि꣢वर्त्त꣡या꣯होइ।(द्विः)। वि꣢वर्त्ता꣡याऽ᳒२᳒। अन्त꣡ रिक्षꣳहोइ।(त्रिः)। सु꣢धा꣯र꣡या꣯होइ।(द्विः)। सु꣢धा꣯रा꣡याऽ᳒२᳒। दिवंवे꣡꣯पा꣯होइ।(त्रिः)। अ꣢वे꣯प꣡यो꣯होइ।(द्विः)। अ꣢वे꣯पा꣡याऽ᳒२ः᳒। हो꣡इ।(द्विः)। हुवेऽ२꣮। हाऽ᳐३१उवाऽ᳒२᳒। ए꣯। वृत्रहा꣡꣯सप꣢त्नहा꣡꣯।(द्वे-त्रिः)॥

१२३-१। प्रजापतेश्चाष्टानिधनम्॥ प्रजापतिर्बृहतीन्द्रः॥

अ꣢भिप्र꣡घ्ना। त꣢मो꣯ज꣡सा। त꣢मो꣯जा꣡साऽ᳒२᳒।(त्रीणि-त्रिः)। तमो꣯ज꣡सा। सु꣢वो꣯जा꣡साऽ᳒२᳒।(द्वे-द्विः)। तमो꣯ज꣡सा। सु꣢वो꣯। जा꣡ऽ२᳐। सा꣣ऽ२३४। औ꣥꣯हो꣯वा। अ꣡सिप्रा꣯णए꣢꣯अ꣡सि।(त्रिः)। ए꣢꣯अ꣡सि।(त्रिः)। सत्यमित्था꣯वृषाऽ२᳐इदा꣣ऽ२३४सी꣥। ए꣢꣯अ꣡सि।(द्विः)। ए꣢꣯। आ꣡ऽ२᳐। सा꣣ऽ२३४। औ꣥꣯हो꣯वा। इ꣡डा꣯ङ्ग꣢च्छसू꣡꣯र्यङ्ग꣢च्छे꣡꣯। डा꣯ङ्ग꣢च्छसू꣡꣯र्यङ्ग꣢च्छे꣡꣯। डा꣯ङ्ग꣢च्छसू꣡꣯र्यङ्ग꣢च्छ। अभिप्र꣡घ्ना। त꣢मो꣯ज꣡सा। त꣢मो꣯ जा꣡साऽ᳒२᳒।(त्रीणि-त्रिः)। तमो꣯ज꣡सा। सु꣢वो꣯जा꣡साऽ᳒२᳒।(द्वे-द्विः)। तमो꣯ज꣡सा। सु꣢वो꣯। जा꣡ऽ२᳐। सा꣣ऽ२३४। औ꣥꣯हो꣯वा। अ꣡सिचक्षुरे꣢꣯अ꣡सि।(त्रिः)। ए꣢꣯अ꣡सि।(त्रिः)। वृषजू꣯तिर्नोऽ२᳐वा꣣ऽ२३४इता꣥। ए꣢꣯विता꣡꣯।(द्विः)। ए꣢꣯। वा꣡ऽ२᳐इ। ता꣣ऽ२३४। औ꣥꣯हो꣯वा। अ꣢न्त꣡रिक्षं꣢गच्छना꣡꣯के꣢꣯वि꣡भा꣯हि꣢।(त्रिः)। अभिप्र꣡घ्ना। त꣢मो꣯ज꣡सा। त꣢मो꣯जा꣡साऽ᳒२᳒।(त्रीणि-त्रिः)। तमो꣯ज꣡सा। सु꣢वो꣯जा꣡साऽ᳒२᳒।(द्वे-द्विः)। तमो꣯ज꣡सा। सु꣢वो꣯। जा꣡ऽ२᳐। सा꣣ऽ२३४। औ꣥꣯हो꣯वा। अ꣡सिश्रो꣯त्रमे꣢꣯अ꣡सि।(त्रिः)। ए꣢꣯अ꣡सि। (त्रिः)। वृषा꣯ह्युग्रशृण्विषे꣯पराऽ२᳐वा꣣ऽ२३४ती꣥। ए꣢꣯व꣡ति।(द्विः)। ए꣢꣯। वा꣡ऽ२᳐। ता꣣ऽ२३४। औ꣥꣯हो꣯वा। स्व꣡र्ग꣢च्छज्यो꣡꣯तिर्ग꣢च्छ।(त्रिः)। अभिप्र꣡घ्ना। त꣢मो꣯ज꣡सा। त꣢मो꣯जा꣡साऽ᳒२᳒।(त्रीणि-त्रिः)। तमो꣯ज꣡सा। सु꣢वो꣯जा꣡साऽ᳒२᳒।(द्वे-द्विः)। तमो꣯ज꣡सा। सु꣢वो꣯। जा꣡ऽ२᳐। सा꣣ऽ२३४। औ꣥꣯हो꣯वा। अ꣡सिज्यो꣯तिरे꣢꣯अ꣡सि।(त्रिः)। ए꣢꣯अ꣡सि। (त्रिः)। वृषो꣯अर्वा꣯वताऽ२᳐इश्रू꣣ऽ२३४ताः꣥। ए꣢꣯श्रुतः꣡।(द्विः) ए꣢꣯। श्रू꣡ऽ२᳐। ता꣣ऽ२३४। औ꣥꣯हो꣯वा। अ꣡तिज्यो꣯तिर्विभा꣯ह्ये꣢꣯अ꣡ति।(द्विः)। अतिज्यो꣯तिर्विभा꣯ह्ये꣢꣯अ꣡ती꣣ऽ२३꣡४꣡५꣡। दी-१४६। प-१३६। मा-४०॥ १८ (कौ) २०४॥

१२४-१। इन्द्रस्य राजनम्॥ इन्द्रस्त्रिष्टुबिन्द्रः॥

हि꣡म्।(त्रिः)। हो।(त्रिः)। हꣳ।(त्रिः)। ओ꣣꣯हा꣢꣯।(त्रिः)। औ꣣꣯हो꣢꣯इ।(त्रिः)। इन्द्र꣡न्नरो।

१२४-२। रौहिणम्॥ इन्द्रस्त्रिष्टुबिन्द्रः।हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। आ꣡इही꣢।(त्रिः)। आ꣡इहिया꣢।(त्रिः)। आ꣡सा꣢उ।(त्रिः)। आ꣡या꣢म्।(त्रिः)। ना꣡माः꣢।(त्रिः)। कि꣡ट्।(द्विः)। इन्द्रन्नरो꣯ने꣯मधिता꣯हवाऽ᳒२᳒न्ता꣡इ॥ यत्पा꣯र्या꣯युनजते꣯धियाऽ᳒२᳒स्ताः꣡॥ शू꣯रो꣯नृषा꣯ता꣯श्रवसश्चकाऽ᳒२᳒मा꣡इ॥ आ꣯गो꣯मतिव्रजे꣯भजा꣯तुवाऽ᳒२᳒न्नाः꣡। मनाऽ२३हो꣡इ। प्रा꣯णाऽ२३हो꣡इ। चक्षूऽ२३ र्हो꣡इ। श्रो꣯त्राऽ२३ꣳहो꣡इ। घो꣯षाऽ२३हो꣡इ। व्रताऽ२३ꣳहो꣡इ। भू꣯ताऽ२३ꣳहो꣡इ। पा꣯नाऽ२३ꣳहो꣡इ। चित्ताऽ२३ꣳहो꣡इ। धी꣯ताऽ२३ꣳहो꣡इ। सुवाऽ२३र्हो꣡इ। ज्यो꣯ता ऽ२३इर्हो꣡ऽ२᳐। वा꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा॥ ऊ꣣ऽ२३꣡४꣡५꣡॥ दी-२६। प-३६। मा-३७॥ २० (र्के) २०६॥

५.१

[[अथ पञ्चमप्रपाठके प्रथमोऽर्धः]]

[[अथ पञ्चमः खण्डः]]

१। अग्नेरिलान्दं पञ्चानुगानम्, इरान्नं वा॥ अग्न्यनुष्टुबात्मा॥

हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। ऊऽ᳒२᳒।(त्रिः)। हु꣡ऊऽ᳒२᳒।(त्रिः)॥ इ꣡याहा꣢उ।(द्विः)। इ꣡या꣭ऽ३ हा꣢उ। वाऽ᳐३॥ इ꣡ट्(स्थि)इडाऽ२३꣡४꣡५꣡॥ दी-३। प-१२। मा-१०॥ १ (ठौ) २०७॥

१२५-१।

हा꣢उहाउहाउवा। अग्नि꣡रस्मि꣢ज꣡न्मना꣢꣯जा꣯त꣡वे꣯दाः꣢꣯। इ꣡डा꣯। सुवः। इडा꣯॥ हा꣢उहाउहाउवा। घृतं꣡मे꣢꣯च꣡क्षुर꣢मृ꣡तंम꣢आ꣯स꣡न्। इडा꣯। सुवः। इडा꣯॥ हा꣢उहाउ हाउवा॥ त्रिधा꣡꣯तुर꣢र्क्को꣡꣯रजसो꣢꣯विमा꣡꣯नः꣢। इ꣡डा꣯। सुवः। इडा꣯॥ हा꣢उहाउहाउवा। अ꣡जस्रं꣢ज्यो꣡꣯तिर्ह꣢वि꣡रस्मि꣢स꣡र्व꣢म्। इ꣡डा꣯। सुवः। इडा꣯॥

१२६-१।

हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। पा꣯त्यग्निर्विपो꣯अग्रंप꣡दंवेः꣢꣯। हाऽ३᳐१उवाऽ२३। सूऽ२३४ वाः꣥। इ꣢ह। हाऽ३᳐१उवाऽ२३। ज्योऽ२३४तीः꣥॥ हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। पा꣯तियह्वश्चरणꣳ सू꣯रि꣡यास्या꣢꣯। हाऽ३᳐१उवाऽ२३। सूऽ२३४वाः꣥। इ꣢ह। हाऽ३᳐१उवाऽ२३। ज्योऽ२३४तीः꣥॥ हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। पा꣯तिना꣯भा꣯सप्तशी꣯र्षा꣯ण꣡माग्निः꣢। हाऽ३᳐१उवा ऽ२३। सूऽ२३४वाः꣥। इ꣢ह। हाऽ३᳐१उवाऽ२३। ज्योऽ२३४तीः꣥॥ हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। पा꣯तिदे꣯वा꣯ना꣯मुपमा꣯द꣡मार्ष्वः꣢। हाऽ३᳐१उवाऽ२३। सूऽ२३४वाः꣥। इ꣢ह। हाऽ३᳐१ उवाऽ२३। ज्योऽ२३४तीः꣥॥

१२७-१।इ꣡याऽ᳒२᳒।(त्रिः)। इ꣡याहा꣢उ।(त्रिः)। इन्द्र꣡न्नरो। ने꣢ऽ᳐३म꣡धि। ता꣢꣯ह꣣ व꣤न्ता꣥इ। ह꣢वन्तेऽ३। हꣳ꣡हꣳहꣳ꣢꣯हꣳ꣣꣯हꣳ꣢।(द्वे-त्रिः)॥ ह꣡वन्ते꣯।(त्रिः)। य꣢त्पा꣡꣯ रियाः। यु꣢न꣡ज। ता꣢इ᳐धि꣣य꣤स्ताः꣥। धि꣢यस्ताऽ३ः। हꣳ꣡हꣳहꣳ꣢꣯हꣳ꣣꣯हꣳ꣢।(द्वे-त्रिः)। धि꣡यस्ताः꣯।(त्रिः)। शू꣢꣯रो꣡꣯नृषा। ता꣢ऽ᳐३श्र꣡व। स꣢श्च꣣का꣤꣯मा꣥इ। च꣢का꣯मेऽ३। हꣳ꣡हꣳ हꣳ꣢꣯हꣳ꣣꣯हꣳ꣢।(द्वे-त्रिः)। च꣡का꣯मे꣯।(त्रिः)॥ आ꣢꣯गो꣡꣯मताइ। व्र꣢जे꣡꣯भ। जा꣢꣯तु꣣व꣤न्नाः꣥। तु꣢वन्नाऽ३ः। हꣳ꣡हꣳहꣳ꣢꣯हꣳ꣣꣯हꣳ꣢।(द्वे-त्रिः)। तु꣡वन्नः।(त्रिः)। इयाऽ᳒२᳒।(त्रिः)। इ꣡याहा꣢उ।(द्विः)। इ꣡या꣭ऽ३हा꣢उ। वा॥ ए꣯। व्रत꣡मे꣯सुवरे꣢꣯शकुनः꣡॥

१२८-१। अग्निः पंक्तिरिन्द्रः॥

भ्रा꣢꣯जा꣯औ꣯हो꣡होहा꣢इ। त्य꣡ग्ने꣯समिधा꣯नादी꣢ऽ१दिवाऽ᳒२ः᳒॥ जिह्वा꣯औ꣯हो꣡होहा꣢इ। च꣡रत्यन्तारा꣢ऽ१सानीऽ᳒२᳒॥ सत्वा꣯औ꣯हो꣡होहा꣢इ। नो꣡꣯अग्ने꣯पयसा꣯वसू꣢ऽ३वी꣢त्॥ रयिं꣡वर्चोदृ꣢शौ꣣꣯हो꣢ऽ३। हि꣡म्माऽ᳒२᳒। दा꣡। औ꣢ऽ३हो꣤वा꣥। हो꣤ऽ५इ॥ डा॥

१।देवव्रतानि त्रीणि॥ द्वयो रुद्रोऽनुष्टुप् रुद्रः। तृतीयस्य विश्वेदेवा अनुष्टुबिन्द्रः रुद्रः॥

अ꣡धिप꣢। ता꣡इ। मित्रप꣢। ता꣡इ। क्षत्रप꣢। ता꣡इ। स्वᳲप꣢ता꣡इ। धनप꣢ताऽ᳒२᳒इ। नाऽ᳒२᳒माः꣡॥ म꣢न्यु꣡ना꣯वृ꣢त्रहा꣡꣯सू꣯र्ये꣯ण꣢स्वरा꣡꣯ड्य꣢ज्ञे꣡꣯नम꣢घ꣡वा꣢꣯द꣡क्षिणा꣢꣯स्यप्रिया꣡꣯त꣢नू꣡꣯रा꣯ज्ञा꣢꣯वि꣡शंदा꣢꣯धा꣯र। वृषभ꣡स्त्वष्टा꣯वृ꣢त्रे꣡꣯णश꣢ची꣯प꣡ति꣢र꣡न्ने꣯न꣢ग꣡यᳲपृ꣢थिव्या꣡꣯सृणि꣢को꣡꣯ग्निना꣯विश्वंभू꣢꣯त꣡म। भ्यभ꣢वो꣯वा꣯यु꣡ना꣯विश्वाᳲ꣯प्र꣢जा꣡꣯अभ्यप꣢वथा꣯वषट्का꣯रे꣡꣯णा꣯र्द्ध꣢भा꣡꣯क्सो꣯मे꣯न꣢सो꣯मपा꣡꣯स्समित्या꣢꣯परमे꣯ष्ठी꣡꣯। ये꣯दे꣯वा꣢꣯दे꣯वाः꣯। दिविष꣡दः꣢। स्थ꣡ते꣯-भ्यो꣯वो꣢꣯दे꣯वा꣯दे꣯वे꣡꣯भ्यो꣢꣯न꣡मः꣢। ये꣡꣯दे꣯वा꣢꣯दे꣯वाः꣯। अन्तरिक्षस꣡दः꣢। स्थ꣡ते꣯भ्यो꣯वो꣢꣯दे꣯वा꣯दे꣯ वे꣡꣯भ्यो꣢꣯न꣡मः꣢। ये꣡꣯दे꣯वा꣢꣯दे꣯वाः꣯। पृथिवी꣯ष꣡दः꣢। स्थ꣡ते꣯भ्यो꣯वो꣢꣯दे꣯वा꣯दे꣯वे꣡꣯भ्यो꣢꣯न꣡मः꣢। ये꣡꣯दे꣯वा꣢꣯ दे꣯वाः꣯। अप्सुष꣡दः꣢। स्थ꣡ते꣯भ्यो꣯वो꣢꣯दे꣯वा꣯दे꣯वे꣡꣯भ्यो꣢꣯न꣡मः꣢। ये꣡꣯दे꣯वा꣢꣯दे꣯वाः꣯। दिक्षुस꣡दः꣢। स्थ꣡ते꣯भ्यो꣯वो꣢꣯दे꣯वा꣯दे꣯वे꣡꣯भ्यो꣢꣯न꣡मः꣢। ये꣡꣯दे꣯वा꣢꣯दे꣯वाः꣯। आ꣯शा꣯स꣡दः꣢। स्थ꣡ते꣯भ्यो꣯वो꣢꣯दे꣯वा꣯दे꣯ वे꣡꣯भ्यो꣢꣯न꣡मः꣢। अ꣡व꣢ज्या꣡꣯मिव꣢ध꣡न्वनो꣢꣯वि꣡ते꣯म꣢न्यु꣡न्नया꣢꣯मसिमृड꣡ता꣯न्न꣢इह꣡॥ अ꣢स्म꣡ भ्य꣢म्। इ꣡डाऽ२३भा꣢॥ य꣡इदंविश्वंभू꣯तम्। यु꣢योऽ३आ꣡उ। वाऽ२३॥ नाऽ२३४ माः꣥॥

२।

अ꣡धिप꣢। ता꣡इ। मित्रप꣢। ता꣡इ। क्षत्रप꣢। ता꣡इ। स्वᳲप꣢ता꣡इ। धनप꣢ताऽ᳒२᳒इ। नाऽ᳒२᳒माः꣡॥ नमउ꣢त्तति꣡भ्यश्चो꣢꣯त्तन्वा꣯ने꣡꣯भ्यश्च꣢न꣡मो꣯नी꣢꣯षंगि꣡भ्यश्चो꣢꣯ पवी꣯ति꣡भ्यश्च꣢न꣡मो꣯स्यद्भ्य꣢श्चप्र। तिद꣡धा꣯ने꣢꣯भ्यश्चन꣡मᳲप्र꣢वि꣡ध्यद्भ्य꣢श्चप्रव्या꣯धि꣡भ्यश्च꣢न꣡मः꣢त्स꣡रद्भ्य꣢श्चत्सा꣯रि꣡भ्यश्च꣢न꣡मश्श्रि꣢। ते꣡꣯भ्यश्च꣢श्रा꣯यि꣡भ्यश्च꣢न꣡म꣢स्ति꣡ष्ठद्भ्य꣢श्चो꣯पति꣡ष्ठद्भ्य꣢श्चन꣡मो꣯य꣢ते꣡꣯चवि꣢यते꣡꣯च꣢न꣡मᳲप꣢थे꣡꣯च꣢वि꣡पथा꣢꣯यच। अ꣡व꣢ज्या꣡꣯मिव꣢ ध꣡न्वनो꣢꣯वि꣡ते꣯म꣢न्यु꣡न्नया꣢꣯मसिमृड꣡ता꣯न्न꣢इह꣡॥ अ꣢स्म꣡भ्य꣢म्। इ꣡डाऽ२३भा꣢॥ य꣡इदं विश्वंभू꣯तम्। यु꣢योऽ३आ꣡उ। वाऽ२३॥ नाऽ२३४माः꣥॥

३।

अ꣡धिप꣢। ता꣡इ। मित्रप꣢। ता꣡इ। क्षत्रप꣢। ता꣡इ। स्वᳲप꣢ता꣡इ। धनप꣢ताऽ᳒२᳒इ। नाऽ᳒२᳒माः꣡।नमो꣯न्ना꣯य꣢न꣡मो꣯न्नप꣢तयए꣯का꣯क्षा꣡꣯यचा꣢꣯वपन्ना꣯दा꣡꣯यच꣢न꣡मो꣢꣯न꣡मः।रु꣢द्रा꣡꣯यती꣢꣯रस꣡दे꣢꣯न꣡मस्स्थि꣢रा꣡꣯यस्थि꣢र꣡धन्व꣢ने꣯न꣡मᳲ꣢प्र꣡तिप꣢दा꣯यचपटरि꣡णे꣯च꣢न꣡म꣢स्त्रि꣡यम्ब꣢का꣯यचक।पर्दि꣡ने꣯च꣢न꣡मआ꣢꣯श्रा꣯ये꣡꣯भ्यश्च꣢प्रत्या꣯श्रा꣯ये꣡꣯भ्यश्च꣢न꣡मᳲक्र꣢व्ये꣡꣯भ्यश्च꣢विरिम्फे꣡꣯भ्यश्च꣢न꣡मस्सं꣢वृ꣡ते꣯च꣢विवृ꣡ते꣢꣯च।अ꣡व꣢ज्या꣡꣯मिव꣢ध꣡न्वनो꣢꣯वि꣡ते꣯म꣢न्यु꣡न्नया꣢꣯मसिमृड꣡ता꣯न्न꣢इह꣡॥ अ꣢स्म꣡भ्य꣢म्। इ꣡डाऽ२३भा꣢॥ य꣡इदंविश्वंभू꣯तम्। यु꣢योऽ३आ꣡उ। वाऽ२३॥ नाऽ२३४माः꣥॥ दी-३५। प-१९। मा-१६॥ ८ (भू) २१४॥

१२९-१। ऋतुष्ठायज्ञायज्ञीयम्॥ प्रजापतिर्बृहत्यृतवः॥वा꣣ऽ५सन्तः। ई꣤ऽ३न्नू꣢ऽ᳐३र꣤न्तायाः꣥॥ ग्री꣡꣯ष्मइन्नुरा꣢ऽ१न्ती꣢ऽ३याः꣢। वर्षा꣡꣯ण्यनुशा꣢ऽ३। हि꣡म्॥ रा꣢ऽ३दाः꣢॥ हे꣡꣯मन्तश्शिशिरइन्नुराऽ२᳐न्ति꣣या꣢उ॥ वाऽ३꣡४꣡५꣡॥

१३०-१। अजितस्य जितिसाम॥ अजितो बृहतीन्द्रः॥

हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। हु꣡प्।(त्रिः)। बिबिबि꣢बिबीऽ३।(त्रिः)। हीऽ᳒२᳒।(त्रिः)। हाउहाउहाउवा। अभि꣡त्वा꣯शू꣢꣯रनो꣯नुमो꣯ह꣡स्॥ अदुग्धा꣢꣯इवधे꣯न꣡वो꣯हस्। ई꣯शा꣯ न꣢मस्य꣡जगत꣢स्स्वर्दृ꣡शꣳहस्। ई꣯शा꣯न꣢मिन्द्रतस्थु꣡षो꣯हस्। हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। हु꣡प्। (त्रिः)। बिबिबि꣢बिबीऽ३।(त्रिः)। हीऽ᳒२᳒।(त्रिः)। हाउहाउहाउवा॥ ए꣯अ꣡स्। ए꣢꣯फ꣡ट्। ए꣢꣯मृ꣡स्। ए꣢꣯ह꣡स्। ई꣣ऽ२३꣡४꣡५꣡॥

१३१-१। सोम व्रतम्॥ सोमस्त्रिष्टुप्सोमः॥

ईऽ᳒२᳒।(त्रिः)। सन्ते꣡꣯पया। सी꣢ऽ᳐३स꣡मु। य꣢न्तु꣣वा꣤꣯जाः꣥॥ सं꣢वृ꣡ष्णिया। नी꣢ऽ३अ꣡भि। मा꣢꣯ति꣣षा꣤꣯हाः꣥॥ आ꣢꣯प्या꣡꣯यमा। नो꣢ऽ३अ꣡मृ। ता꣢꣯य꣣सो꣤꣯मा꣥॥ दि꣢वि꣡श्रवा। सी꣢ऽ३उ꣡त्त। मा꣢꣯नि꣣धि꣤ष्वा꣥। ईऽ᳒२᳒।(द्विः)। ई꣡ऽ२᳐। आ꣣ऽ२३४ औ꣥꣯हो꣯वा॥ हꣳ꣡॥

१३२-१। दीर्घतमसोऽर्कः॥ दीर्घतमास्त्रिष्टुप्सोमः सूर्यो वा॥

आ꣡याउ।(त्रिः)। अक्रा꣯न्त्समूद्रᳲप्रथमाइवि꣣ध꣢र्मा꣡न्। वि꣣ध꣢र्मा꣡न्।(द्विः)।

[[अथ षष्ठः खण्डः]]

१३३-१। पुरुषव्रतानि पञ्च॥ पुरुषोऽनुष्टुप्पुरुषः॥

उ꣢हु꣡वाहा꣢उ।(त्रिः)। सह꣡स्रशी꣯र्षाᳲ꣯पुरूऽ२३षाः꣢॥ सहस्रा꣯क्ष꣡स्स꣢ह꣡स्राऽ२३ पा꣢त्॥ स꣡भू꣯मिꣳसर्व꣢तो꣡꣯वाऽ२३र्त्वा꣢॥ अ꣡त्यतिष्ठद्द꣢शा꣡꣯ङ्गूऽ२३ला꣢म्। उहु꣡वाहा꣢उ। (द्विः)। उहु꣡वा꣭ऽ३हा꣢उ। वाऽ३॥ इ꣡ट्(स्थि)इडाऽ२३꣡४꣡५꣡॥

१३४-१।

उ꣢हु꣡वौ꣯हो꣯वाऽ᳒२᳒।(त्रिः)। त्रिपा꣡꣯दू꣯र्ध्वउदै꣯त्पुरूऽ२३षाः꣢॥ पा꣡꣯दो꣯स्ये꣯हा꣯भ꣢व꣡त्पू ऽ२३नाः꣢॥ त꣡था꣯विष्वङ्वि꣢य꣡क्राऽ२३मा꣢त्॥ अशना꣯नशने꣡꣯आऽ२३भी꣢। उहु꣡वौ꣯ हो꣯वाऽ᳒२᳒।(द्विः)। उहु꣡वौ꣯। होऽ२᳐। वा꣣ऽ२३४। औ꣥꣯हो꣯वा। ई꣣ऽ२३४डा꣥। उ꣢हु꣡वौ꣯ हो꣯वाऽ᳒२᳒।(द्विः)। उहु꣡वौ꣯। होऽ२᳐। वा꣣ऽ२३४। औ꣥꣯हो꣯वा। सू꣣ऽ२३४वाः꣥। उ꣢हु꣡वौ꣯ हो꣯वाऽ᳒२᳒।(द्विः)। उहु꣡वौ꣯। होऽ२᳐। वा꣣ऽ२३४। औ꣥꣯हो꣯वा॥ ऊ꣣ऽ२३꣡४꣡५꣡॥ दी-३७। प-२८। मा-६॥ १४ (र्जू) २२०॥

१३५-१।

इ꣡यौ꣯हो꣯वाऽ᳒२᳒।(त्रिः)। पु꣡रुषए꣯वे꣯दꣳसाऽ२३र्वा꣢म्॥ य꣡द्भू꣯तंयच्च꣢भा꣡꣯वाऽ२३ या꣢म्॥ पा꣡꣯दो꣯स्यसर्वा꣯भू꣯ताऽ२३नी꣢॥ त्रिपा꣡꣯दस्या꣯मृ꣢तं꣡दाऽ२३इवी꣢। इ꣡यौ꣯हो꣯वाऽ᳒२᳒। (द्विः)। इ꣡यौ꣯। होऽ२᳐। वा꣣ऽ२३४। औ꣥꣯हो꣯वा। ई꣣ऽ२३४डा꣥। इ꣡यौ꣯हो꣯वाऽ᳒२᳒।(द्विः)। इ꣡यौ꣯। होऽ२᳐। वा꣣ऽ२३४। औ꣥꣯हो꣯वा। ज्यो꣣ऽ२३४तीः꣥। इ꣡यौ꣯हो꣯वाऽ᳒२᳒।(द्विः)। इ꣡यौ꣯। होऽ२᳐। वा꣣ऽ२३४। औ꣥꣯हो꣯वा॥ ई꣣ऽ२३꣡४꣡५꣡॥ दी-३८। प-२८। मा-५॥ १५ (ज्रु) २२१॥

१३६-१।

हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। ता꣡꣯वा꣯न꣢स्य। म꣡हाऽ२३इमा꣢ऽ३॥ हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। त꣡तो꣯ ज्या꣯याꣳ꣯श्च꣢पू꣡꣯रूऽ२३षा꣢ऽ३ः॥ हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। उता꣡꣯मृतत्वस्ये꣯शाऽ२३ना꣢ऽ३ः॥ हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। य꣡दन्ने꣯ना꣯ति꣢रो꣡꣯हाऽ२३ती꣢ऽ३। हा꣢उहाउहाउ। वाऽ३॥ इ꣡ट्(स्थि) इडाऽ२३꣡४꣡५꣡॥ दी-२३। प-१२। मा-१९॥ १६ (ठो) २२२॥

१३७-१।

हा꣢उहाउहाउवा। त꣡तो꣯वि꣢रा꣡꣯डजा꣢꣯यत॥ हाउहाउहाउवा। विरा꣡꣯जो꣢꣯अ꣡धि꣢ पू꣡꣯रुषः꣢॥ हाउहाउहाउवा। स꣡जा꣢꣯तो꣡꣯अत्यरि꣢च्यत॥ हाउहाउहाउवा। पश्चा꣡꣯द्भू꣯मि꣢ म꣡थो꣯पु꣢रः꣡। हा꣢उहाउहाउवाऽ३॥ ईऽ२३꣡४꣡५꣡॥

१३८-१। पुरषव्रतम्॥ पुरुषो गायत्रीश्वपुरुषः, विश्वेदेवाः वा॥

हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। अ꣡स्मी꣢न꣡स्मि꣢न्।(त्रिः)। नृ꣡म्णा꣢इनृ꣡म्ण꣢म्।(त्रिः)। नि꣡धाइ माहे꣢।(त्रिः)। कया꣯नश्चित्रऽ३आ꣡भू꣢ऽ१वाऽ᳒२᳒त्॥ ऊ꣯ती꣯सदा꣯वॄऽ३धा꣡स्सा꣢ऽ१ खाऽ᳒२᳒॥ कया꣯शचिष्ठऽ३या꣡वा꣢ऽ१र्ताऽ२३॥ हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। अ꣡स्मी꣢न꣡स्मि꣢न्। (त्रिः)। नृ꣡म्णा꣢इनृ꣡म्ण꣢म्।(त्रिः)। नि꣡धाइमाहे꣢।(द्विः)। नि꣡धाऽ२३इ। मा꣡ऽ२᳐। हा꣣ऽ२३४। औ꣥꣯हो꣯वा॥ सु꣡वर्ज्यो꣯ती꣣ऽ२३꣡४꣡५ः꣡॥ दी-१४। प-२७। मा-३३॥ १८ (थि) २२४॥

१३९-१। द्यौर्व्रतम्॥ द्यौः ज्योतिष्मती जगती द्यावापृथिव्यौ॥

हु꣡वाइ।(त्रिः)। रू꣢꣯प꣡म्। म꣢न्ये꣯वां꣯द्या꣯वा꣯पृथिवी꣯सुऽ३भो꣡जा꣢ऽ१साऽ᳒२᳒उ॥

१४०-१। अन्तरिक्षव्रतम्॥ अन्तरिक्षं गायत्रीन्द्रः॥

वा꣡क्।(द्विः)। वागी꣢꣯य꣡म्। क꣢या꣯नश्चित्रऽ३आ꣡भू꣢ऽ१वाऽ᳒२᳒त्। ऊ꣯ती꣯सदा꣯ वॄऽ३धा꣡स्सा꣢ऽ१खाऽ᳒२᳒। कया꣯शचिष्ठऽ३या꣡वा꣢ऽ१र्ताऽ᳒२᳒। वा꣡क्।(द्विः)। वागी꣢꣯ या꣡ऽ२᳐। वा꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा। ए꣢꣯। अन्त꣡रिक्षे꣢꣯सलिल꣡ल्ले꣯ला꣢꣯या꣣ऽ२३꣡४꣡५꣡॥

१४१-१। पृथिवीव्रतम्॥ पृथिवीज्योतिष्मती जगती द्यावापृथिव्यौ॥

प्र꣢तिष्ठा꣡꣯सिप्र꣢ति। ष्ठा꣡।(द्वे-त्रिः)। व꣢र्च्चो꣯सिमनो꣯सिऐ꣯ही꣯। मन्ये꣯वां꣯द्या꣯वा꣯ पृथिवी꣯सुभो꣯जसा꣯वै꣯ही꣯॥ ये꣯अप्रथे꣯था꣯ममितमभियो꣯जना꣯मै꣯ही꣯। द्या꣯वा꣯पृथिवी꣯ भवतꣳस्यो꣯ना꣯ऐ꣯ही꣯॥ ते꣯नो꣯मुञ्चतमꣳहसा꣯ऐ꣯ही꣯। प्रतिष्ठा꣡꣯सिप्र꣢ति। ष्ठा꣡। (द्वे-त्रिः)। व꣢र्च्चो꣯सिमनो꣯सिऐ꣯हीऽ३। हा꣢उवा॥ ए꣯। भू꣯त꣡म्।(द्वे-त्रिः)॥

१४२-१। ऋश्यसाम व्रतम्॥ कश्यपोऽनुष्टुबिन्द्रः॥

ह꣢री꣯तइन्द्रश्मश्रू꣡णी꣢। उतो꣡꣯ते꣯हरिता꣢ऽ१उहा꣢ऽ३री꣢॥ तन्त्वा꣡꣯स्तुवन्ति का꣢ऽ᳐३। वा꣤याः꣥॥ प꣢रुषा꣡꣯सो꣯वना꣢ऽ᳐३। गा꣤वाः꣥॥ ऋ꣡श्या꣯स꣢इन्द्रभु꣡ङ्ङिति꣢ म꣡घव꣢न्निन्द्रभु꣡ङ्ङिति꣢भु꣡ङ्ङितिप्र꣢भु꣡ङ्ङिती꣯न्द्रस्तसर꣢पू꣯ता꣣ऽ२३꣡४꣡५ः꣡॥

५.२

[[अथ पञ्चमप्रपाठके द्वितीयोऽर्धः]]

[[अथ सप्तमः खण्डः]] १४३-१। दिशां व्रतम् दशानुगानम्॥ दिशोऽनुष्टुप् आत्मा॥ (कश्यपगायत्रीन्द्रः)।

हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। अह꣡मन्नम्।(त्रिः)। अ꣢ह꣡मन्ना꣢꣯दो꣡꣯। हमन्ना꣢꣯दो꣡꣯। हमन्ना꣢꣯दो꣡꣯। हंविधा꣢꣯रयो꣡꣯।(द्विः)। हंविधा꣢꣯रयः꣡। हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। य꣡द्वर्च्चो꣢꣯हि꣡रण्य꣢। स्या꣡॥ यद्वा꣢꣯ व꣡र्च्चो꣢꣯ग꣡वा꣯मु꣢। ता꣡॥ स꣢त्य꣡स्य꣢ब्र꣡ह्मणो꣢꣯व꣡। चाः॥ ते꣯नमा꣢꣯सꣳ꣡सृजा꣢꣯म। सा꣡इ। हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। अह꣡मन्नम्।(त्रिः)। अ꣢ह꣡मन्ना꣢꣯दो꣡꣯। हमन्ना꣢꣯दो꣡꣯। हमन्ना꣢꣯दो꣡꣯। हंविधा꣢꣯रयो꣡꣯।(द्विः)। हंविधा꣢꣯रयः꣡। हा꣢उहाउहाउ। वा॥ ए꣯। अह꣡मन्नम꣢ह꣡मन्ना꣢꣯ दो꣡꣯हंविधा꣢꣯रयः꣡।(द्वे-त्रिः)। ए꣢꣯। अहꣳ꣡सुवर्ज्यो꣯ती꣣ऽ२३꣡४꣡५ः꣡॥ दी-५३। प-३९। मा-२६॥ १ (ढू) २२९॥

१४३-२।

हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। अहꣳ꣡सहो꣢꣯। हꣳ꣡सहो꣢꣯।(द्विः)। हꣳ꣡सा꣢꣯स꣡हिः। अ꣢हꣳ꣡ सा꣢꣯स꣡हिः।(द्विः)। अ꣢हꣳ꣡सा꣯स꣢हा꣯नो꣡꣯। हꣳसा꣯स꣢हा꣯नो꣡꣯। हꣳसा꣯स꣢हा꣯नः꣡। हा꣢꣯उहा꣯उ हा꣯उ। य꣡द्वर्च्चो꣢꣯हि꣡रण्य꣢। स्या꣡॥ यद्वा꣢꣯व꣡र्च्चो꣢꣯ग꣡वा꣯मु꣢। ता꣡॥ स꣢त्य꣡स्य꣢ब्र꣡ह्मणो꣢꣯व꣡। चाः॥ ते꣯नमा꣢꣯सꣳ꣡सृजा꣢꣯म। सा꣡इ। हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। अहꣳ꣡सहो꣢꣯। हꣳ꣡सहो꣢꣯।(द्विः)। हꣳ꣡सा꣢꣯स꣡हिः। अ꣢हꣳ꣡सा꣢꣯स꣡हिः।(द्विः)। अ꣢हꣳ꣡सा꣯स꣢हा꣯नो꣡꣯। हꣳसा꣯स꣢हा꣯नो꣡꣯। हꣳसा꣯स꣢हा꣯नः꣡। हा꣢उहाउहाउ। वा॥ ए꣯। अहꣳ꣡सहो꣢꣯हꣳ꣡सा꣢꣯स꣡हिर꣢हꣳ꣡सा꣯स꣢हा꣯नः꣡। (द्वे-त्रिः)। ए꣢꣯। अहꣳ꣡सुवर्ज्यो꣯ती꣣ऽ२३꣡४꣡५ः꣡॥ दी-६२। प-३९। मा-२६॥ २ (झू) २३०॥

१४३-३।

हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। अहं꣡वर्च्चो꣢꣯। हं꣡वर्च्चो꣢꣯। हं꣡वर्च्चः। हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ।

१४३-४।

हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। अहं꣡ते꣯जो꣢꣯। हं꣡ते꣯जो꣢꣯। हं꣡ते꣯जः। हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। य꣡द्वर्च्चो꣢꣯ हि꣡रण्य꣢। स्या꣡॥ यद्वा꣢꣯व꣡र्च्चो꣢꣯ग꣡वा꣯मु꣢। ता꣡॥ स꣢त्य꣡स्य꣢ब्र꣡ह्मणो꣢꣯व꣡। चाः॥ ते꣯नमा꣢꣯ सꣳ꣡सृजा꣢꣯म। सा꣡इ। हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। अहं꣡ते꣯जो꣢꣯। हं꣡ते꣯जो꣢꣯। हं꣡ते꣯जः। हा꣢उहाउहाउ। वा॥ ए꣯। अहं꣡ते꣯जः।(द्वे-त्रिः)। ए꣢꣯। अहꣳ꣡सुवर्ज्यो꣯ती꣣ऽ२३꣡४꣡५ः꣡॥ दी-३५। प-२७। मा-२०॥ ४ (फौ) २३२॥

१४३-५।

हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। दि꣡शन्दु꣢हे꣯।(त्रिः)। दि꣡शौ꣯दु꣢हे꣯।(त्रिः)। दि꣡शो꣯दु꣢हे꣯।(त्रिः)। स꣡र्वा꣯दु꣢हे꣯।(त्रिः)। हा꣯उहा꣯उहा꣯उ। य꣡द्वर्च्चो꣢꣯हि꣡रण्य꣢। स्या꣡॥ यद्वा꣢꣯व꣡र्च्चो꣢꣯ग꣡वा꣯मु꣢। ता꣡॥ स꣢त्य꣡स्य꣢ब्र꣡ह्मणो꣢꣯व꣡। चाः॥ ते꣯नमा꣢꣯सꣳ꣡सृजा꣢꣯म। सा꣡इ। हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। दि꣡शन्दु꣢हे꣯।(त्रिः)। दि꣡शौ꣯दु꣢हे꣯।(त्रिः)। दि꣡शो꣯दु꣢हे꣯।(त्रिः)। स꣡र्वा꣯दु꣢हे꣯।(त्रिः)। हाउहाउहाउ। वा॥ ए꣯। दि꣡शन्दु꣢हे꣯दि꣡शौ꣯दु꣢हे꣯दि꣡शो꣯दु꣢हे꣯स꣡र्वा꣯दु꣢हे꣯।(द्वे-त्रिः)। ए꣯। अहꣳ꣡सुवर्ज्यो꣯ती꣣ऽ२३꣡४꣡५ः꣡॥

१४३-६।

हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। म꣡नो꣯ज꣢यित्।(त्रिः)। हृ꣡दय꣢मजयित्।(त्रिः)। इ꣡न्द्रो꣯ ज꣢यित्।(त्रिः)। अह꣡मजै꣢꣯षम्।(त्रिः)। हा꣯उहा꣯उहा꣯उ। य꣡द्वर्च्चो꣢꣯हि꣡रण्य꣢। स्या꣡॥ यद्वा꣢꣯व꣡र्च्चो꣢꣯ग꣡वा꣯मु꣢। ता꣡॥ स꣢त्य꣡स्य꣢ब्र꣡ह्मणो꣢꣯व꣡। चाः॥ ते꣯नमा꣢꣯सꣳ꣡सृजा꣢꣯म। सा꣡इ। हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। म꣡नो꣯ज꣢यित्।(त्रिः)। हृ꣡दय꣢मजयित्।(त्रिः)। इ꣡न्द्रो꣯ज꣢यित्। (त्रिः)। अह꣡मजै꣢꣯षम्।(त्रिः)। हाउहाउहाउ। वा॥ ए꣯। म꣡नो꣯ज꣢यिद्धृ꣡दय꣢मजयि दि꣡न्द्रो꣯ज꣢यिदह꣡मजै꣢꣯षम्।(द्वे-त्रिः)। ए꣯। अहꣳ꣡सुवर्ज्यो꣯ती꣣ऽ२३꣡४꣡५ः꣡॥

१४३-७। प्रजापतेर्हृदयम्॥ कश्यपोऽनुष्टुप्प्रजापतिः॥

हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। व꣡यः।(त्रिः)। वयो꣯व꣢यः।(त्रिः)। हा꣯उहा꣯उहा꣯उ। य꣡द्वर्च्चो꣢꣯ हि꣡रण्य꣢। स्या꣡॥ यद्वा꣢꣯व꣡र्च्चो꣢꣯ग꣡वा꣯मु꣢। ता꣡॥ स꣢त्य꣡स्य꣢ब्र꣡ह्मणो꣢꣯व꣡। चाः॥ ते꣯नमा꣢꣯ सꣳ꣡सृजा꣢꣯म। सा꣡इ। हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। व꣡यः।(त्रिः)। वयो꣯व꣢यः।(त्रिः)। हाउहाउहाउ। वा॥ ए꣯। व꣡यो꣯वयो꣯व꣢यः।(द्वे-त्रिः)। ए꣯। अहꣳ꣡सुवर्ज्यो꣯ती꣣ऽ२३꣡४꣡५ः꣡॥

१४३-८।

हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। रू꣯प꣡म्।(त्रिः)। रू꣢꣯पꣳ꣡रू꣯प꣢म्।(त्रिः)। हा꣯उहा꣯उहा꣯उ। य꣡द्वर्च्चो꣢꣯हि꣡रण्य꣢। स्या꣡॥ यद्वा꣢꣯व꣡र्च्चो꣢꣯ग꣡वा꣯मु꣢। ता꣡॥ स꣢त्य꣡स्य꣢ब्र꣡ह्मणो꣢꣯व꣡। चाः॥ ते꣯नमा꣢꣯सꣳ꣡सृजा꣢꣯म। सा꣡इ। हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। रू꣯प꣡म्।(त्रिः)। रू꣢꣯पꣳ꣡रू꣯प꣢म्।(त्रिः)। हाउहाउहाउ। वा॥ ए꣯। रू꣯पꣳ꣡रू꣢꣯पꣳ꣡रू꣯प꣢म्।(द्वे-त्रिः)। ए꣯। अहꣳ꣡सुवर्ज्यो꣯ती꣣ ऽ२३꣡४꣡५ः꣡॥

१४३-९।

हि꣡हिय꣢ऊऽ᳒२᳒।(त्रिः)। उ꣡दप꣢प्तम्।(त्रिः)। ऊ꣯र्ध्वा꣡꣯नभाꣳ꣯स्य꣢कृषि।(त्रिः)। व्य꣡द्यौ꣢꣯त्सम्।(त्रिः)। अ꣡तत꣢नम्।(त्रिः)। हा꣯उहा꣯उहा꣯उ। य꣡द्वर्च्चो꣢꣯हि꣡रण्य꣢। स्या꣡॥ यद्वा꣢꣯व꣡र्च्चो꣢꣯ग꣡वा꣯मु꣢। ता꣡॥ स꣢त्य꣡स्य꣢ब्र꣡ह्मणो꣢꣯व꣡। चाः॥ ते꣯नमा꣢꣯सꣳ꣡सृजा꣢꣯म। सा꣡इ। हिहिय꣢ऊऽ᳒२᳒।(त्रिः)। उ꣡दप꣢प्तम्।(त्रिः)। ऊ꣯र्ध्वा꣡꣯नभाꣳ꣯स्य꣢कृषि।(त्रिः)। व्य꣡द्यौ꣢꣯ त्सम्।(त्रिः)। अ꣡तत꣢नम्।(त्रिः)। हाउहाउहाउ। वा। ए꣯। उ꣡दप꣢प्तमू꣯र्ध्वा꣡꣯नभाꣳ꣯ स्य꣢कृषिव्य꣡द्यौ꣢꣯त्सम꣡तत꣢नम्।(द्वे-त्रिः)। एऽ᳐३। पि꣡न्वस्वा꣣ऽ२३꣡४꣡५꣡॥

१४३-१०।

हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। प्र꣡थे꣯।(त्रिः)। प्रत्यष्ठा꣢꣯म्।(त्रिः)। हा꣯उहा꣯उहा꣯उ। य꣡द्वर्च्चो꣢꣯ हि꣡रण्य꣢। स्या꣡॥ यद्वा꣢꣯व꣡र्च्चो꣢꣯ग꣡वा꣯मु꣢। ता꣡॥ स꣢त्य꣡स्य꣢ब्र꣡ह्मणो꣢꣯व꣡। चाः॥ ते꣯नमा꣢꣯ सꣳ꣡सृजा꣢꣯म। सा꣡इ। हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। प्र꣡थे꣯।(त्रिः)। प्रत्यष्ठा꣢꣯म्।(त्रिः)। हाउहाउहाउ। वा॥ ए꣯। प्र꣡थे꣯प्रत्यष्ठा꣢꣯म्।(द्वे-त्रिः)। ए꣯। अहꣳ꣡सुवर्ज्यो꣯ती꣣ऽ२३꣡४꣡५ः꣡॥

[[अथ अष्टमः खण्डः]]

१४४-१। कश्यपव्रतं दशानुगानम्॥ कश्यपो गायत्रीन्द्रः॥

हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। हाऽ᳒२᳒इ। ऊऽ᳒२᳒।(द्वे-त्रिः)। का꣡ह्वह्व꣢ह्वह्वह्व।(त्रिः)। हाऽ᳒२᳒इ। ऊऽ᳒२᳒। ऊऽ᳒२᳒। ऊऩऽ२꣮।(चत्वारि-त्रिः)। का꣡ह्वह्व꣢ह्वह्वह्व। ऊ꣡ऽ२᳐।(द्वे-त्रिः)। हा꣯उहा꣯उहा꣯उ। य꣡स्ये꣯दमा꣯रजो꣯यूऽ᳒२᳒जाः꣡॥ तु꣢जे꣡꣯जने꣯वनꣳसूऽ᳒२᳒वाः꣡॥ हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। हाऽ᳒२᳒इ। ऊऽ᳒२᳒।(द्वे-त्रिः)। का꣡ह्वह्व꣢ह्वह्वह्व।(त्रिः)। हाऽ᳒२᳒इ। ऊऽ᳒२᳒। ऊऽ᳒२᳒। ऊऩऽ२꣮। (चत्वारि-त्रिः)। का꣡ह्वह्व꣢ह्वह्वह्व। ऊ꣡ऽ२᳐।(द्वे-त्रिः)। हा꣯उहा꣯उहा꣯उ। आइन्द्रस्यर॥ ति꣣या꣢ऽ३म्बृ꣤ऽ५हाऽ६५६त्॥ न꣡मस्सुवरिडाऽ२३꣡४꣡५꣡॥

१। कश्यपग्रीवा॥

हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ॥ अ꣡हो꣢अ꣡हो꣢। अ꣡हो꣢। आ꣡हो꣢आ꣡हो꣢। आ꣡हो꣢॥ ए꣡हो꣢ए꣡हो꣢॥ ए꣡हो꣢। वाऽ᳐३। हा꣢उवाऽ३॥ प्र꣢जा꣡꣯भू꣯तमजी꣢꣯जनेऽ३। इ꣡ट्(स्थि)इडाऽ२३꣡४꣡५꣡॥

१४५-१। कश्यपस्त्रिष्टुबिन्द्रः॥

हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। फा꣡ल्फल्फ꣢ल्फल्फल्फल्।(त्रिः)। हा꣯उहा꣯उहा꣯उ। इ꣡न्द्र न्नरो꣯ने꣯मधिता꣯हवाऽ᳒२᳒न्ता꣡इ॥ यत्पा꣯र्या꣯युनजते꣯धियाऽ᳒२᳒स्ताः꣡॥ शू꣯रो꣯नृषा꣯ता꣯ श्रवसश्चकाऽ᳒२᳒मा꣡इ॥ आ꣯गो꣯मतिव्रजे꣯भजा꣯तुवाऽ᳒२᳒न्नाः꣡। हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। फा꣡ल्फ ल्फ꣢ल्फल्फल्फल्।(त्रिः)। हाउहाउहाउ। वा॥ म꣡नस्सुवरिडाऽ२३꣡४꣡५꣡॥

१४६-१।

हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। हा꣡उहौ꣯हौ꣢꣯हौ꣯हौ꣯हौ꣯।(त्रिः)। हा꣯उहा꣯उहा꣯उ। यो꣡꣯नो꣯वनुष्यन्न भिदा꣯तिमाऽ᳒२᳒र्त्ताः꣡॥ उगणा꣯वा꣯मन्यमा꣯नस्तुरोऽ᳒२᳒वा꣡॥ क्षि꣢धी꣡꣯युधा꣯शवसा꣯वा꣯ तमाऽ᳒२᳒इन्द्रा꣡॥ अ꣢भी꣡꣯ष्या꣯मवृषमणस्त्वोऽ᳒२᳒ताः꣡। हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। हा꣡उहौ꣯हौ꣢꣯हौ꣯हौ꣯हौ꣯। (त्रिः)। हाउहाउहाउ। वा॥ ए꣯व꣡यस्सुवरिडाऽ२३꣡४꣡५꣡॥ दी-५२। प-१६। मा-२१॥ १४ (च) २४२॥

प्रजापतेर्हृदयम्॥ कश्यपोऽनुष्टुप्प्रजापतिः॥हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। इ꣡माः꣯।(त्रिः)। प्रजाः꣯।(त्रिः)। प्रजा꣯प꣢ते꣯। हो꣡इ।(द्वे-द्विः)॥ प्रजा꣯प꣢ते꣯। हाऽ३१उ। वाऽ᳒२᳒॥ ए꣯। हृ꣡दय꣢म्।(द्वे-द्विः)। ए꣯। हृ꣡दया꣢ऽ३१उ। वाऽ᳒२᳒॥ प्रजा꣡꣯रू꣯पमजी꣢꣯जनेऽ३। इ꣡ट्(स्थि)इडाऽ२३꣡४꣡५꣡॥

१।

हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। इ꣡डा꣯।(त्रिः)। सुवः॥(त्रिः)। ज्यो꣯तिः॥(द्विः)। ज्यो꣣꣯ता꣢ ऽ᳐३४। औ꣥꣯हो꣯वा॥ ए꣢꣯। इ꣡डा꣯सुवर्ज्यो꣯ती꣣ऽ२३꣡४꣡५ः꣡॥

१४७-१। कश्यपव्रतं दशानुगानम्॥ कश्यपस्त्रिष्टुबिन्द्रः॥

हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। आ꣡इही꣢।(त्रिः)। ओ꣡हा꣢। ओ꣡हा꣢। ओ꣡हा꣢ऽ᳐३। हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। स꣡हस्तन्नइन्द्रदध्योऽ᳒२᳒जाः꣡। आ꣯याऽ᳒२᳒उ। ऊऩ। आ꣢꣯या꣡उ॥(त्रीणि-त्रिः)। ई꣯शे꣯ह्यस्यमहतो꣯विराऽ᳒२᳒प्शा꣡इन्। आ꣯याऽ᳒२᳒उ। ऊऩ। आ꣢꣯या꣡उ॥(त्रीणि-त्रिः)। क्रतु न्ननृम्णꣳस्थविरञ्चवाऽ᳒२᳒जा꣡म्। आ꣯याऽ᳒२᳒उ। ऊऩ। आ꣢꣯या꣡उ॥(त्रीणि-त्रिः)॥ वृ꣢त्रे꣡꣯षुशत्रू꣯न्त्सुहना꣯कृधाऽ᳒२᳒इनाः꣡। आ꣯याऽ᳒२᳒उ। ऊऩ। आ꣢꣯या꣡उ॥(त्रीणि-त्रिः)। हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। आ꣡इही꣢।(त्रिः)। ओ꣡हा꣢। ओ꣡हा꣢। ओ꣡हा꣢ऽ᳐३। हा꣢उहाउहाउ। वा॥ ए꣯। आ꣯युर्द्धा꣡꣯अ꣢स्म꣡भ्यंव꣢र्च्चो꣯धा꣡꣯दे꣯वे꣯भ्या꣣ऽ२३꣡४꣡५ः꣡॥

१४८-१। गवां व्रते द्वे॥ गावस्त्रिष्टुप्गावः॥

हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। ते꣡꣯मन्वतप्रथमन्ना꣯मगो। नाम्।(त्रिः)। हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। त्रि꣡स्सप्तपरमन्ना꣯मजा। नान्।(त्रिः)। हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। ता꣡꣯जा꣯नती꣯रभ्यनू꣯षता। क्षाः।(त्रिः)। हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। आ꣯वि꣡र्भुवन्नरुणी꣯र्यशसा꣯गा। वाः।(त्रिः)। हा꣢उहाउ हाउ। वा॥ ए꣯। दु꣡घाः꣢꣯।(द्वे-द्विः)। ए꣯। दु꣡घा꣣ऽ२३꣡४꣡५ः꣡॥ दी-२७। प-२८। मा-३०॥ १८ (जौ) २४६॥

१४९-१।

हा꣢उहाउहाउवा। सह꣡र्षभा꣢꣯स्सह꣡वत्सा꣢꣯उदे꣡꣯त॥ हा꣢उहाउहाउवा।

१५०-१। कश्यप पुच्छं दशमम्॥ कश्यपस्त्रिष्टुबिन्द्रोऽग्निर्वा॥हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। वा꣡ग्घह꣢हहह।(त्रिः)। ऐ꣡꣯ही꣰꣯ऽ२।(त्रिः)। ऐ꣡꣯हिहा꣢उवाक्। (त्रिः)। हा꣡हा꣢उ।(त्रिः)। हाउहाउहाउवा। प्रजा꣡꣯तो꣯कमजी꣢꣯जने꣯ह꣡स्। इहा꣣ऽ२३꣡४꣡५꣡। हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। वा꣡ग्घह꣢हहह।(त्रिः)। ऐ꣡꣯ही꣰꣯ऽ२।(त्रिः)। ऐ꣡꣯हिहा꣢उवाक्।(त्रिः)। हा꣡हा꣢उ।(त्रिः)। आ꣡याउ।(त्रिः)। अ꣢ग्नि꣡रस्मिजन्मनाऔ꣢ऽ᳐३हो꣢। हाऽ᳒२᳒इ꣡या। औ꣢ऽ᳐३हो꣢। हाऽ᳒२᳒इ꣡या। औ꣢ऽ३हो꣢ऽ३॥ हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। वा꣡ग्घह꣢हहह।(त्रिः)। ऐ꣡꣯ही꣰꣯ऽ२।(त्रिः)। ऐ꣡꣯हिहा꣢उवाक्।(त्रिः)। हा꣡हा꣢उ।(त्रिः)। हाउहाउहाउवा। इह꣡ प्रजा꣯मिहरयिꣳररा꣯णो꣢꣯ह꣡स्। इहा꣣ऽ२३꣡४꣡५꣡। हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। वा꣡ग्घह꣢हहह।(त्रिः)। ऐ꣡꣯ही꣰꣯ऽ२।(त्रिः)। ऐ꣡꣯हिहा꣢उवाक्।(त्रिः)। हा꣡हा꣢उ।(त्रिः)। आ꣡याउ।(त्रिः)। जा꣢꣯त꣡वे꣯दाऔ꣢ऽ᳐३हो꣢। हाऽ᳒२᳒इ꣡या। औ꣢ऽ᳐३हो꣢। हाऽ᳒२᳒इ꣡या। औ꣢ऽ३हो꣢ऽ३। हा꣢꣯उहा꣯उ हा꣯उ। वा꣡ग्घह꣢हहह।(त्रिः)। ऐ꣡꣯ही꣰꣯ऽ२।(त्रिः)। ऐ꣡꣯हिहा꣢उवाक्।(त्रिः)। हा꣡हा꣢उ। (त्रिः)। हाउहाउहाउवा। रा꣯य꣡स्पो꣯शा꣯य꣢सुकृता꣡꣯य꣢भू꣡꣯यसे꣢꣯ह꣡स्। इहा꣣ऽ२३꣡४꣡५꣡। हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। वा꣡ग्घह꣢हहह।(त्रिः)। ऐ꣡꣯ही꣰꣯ऽ२।(त्रिः)। ऐ꣡꣯हिहा꣢उवाक्।(त्रिः)। हा꣡हा꣢उ।(त्रिः)। आ꣡याउ।(त्रिः)। घृ꣢तं꣡मे꣯चक्षुरमृतंमआ꣯सानौ꣢ऽ᳐३हो꣢। हाऽ᳒२᳒इ꣡या। औ꣢ऽ३हो꣢। हाऽ᳒२᳒इया꣡। औ꣢ऽ३हो꣢ऽ३। हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। वा꣡ग्घह꣢हहह।(त्रिः)। ऐ꣡꣯ही꣰꣯ऽ२।(त्रिः)। ऐ꣡꣯हिहा꣢उवाक्।(त्रिः)। हा꣡हा꣢उ।(त्रिः)। हाउहाउहाउवा। आ꣡꣯गन्वा꣢꣯म꣡मि꣢दं꣡बृ꣢ह꣡द्धस्। इहा꣣ऽ२३꣡४꣡५꣡। हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। वा꣡ग्घह꣢हहह।(त्रिः)। ऐ꣡꣯ही꣰꣯ऽ२।(त्रिः)। ऐ꣡꣯हिहा꣢उवाक्।(त्रिः)। हा꣡हा꣢उ।(त्रिः)। आ꣡याउ।(त्रिः)। त्रि꣢धा꣡꣯ तुरर्को꣯रजसो꣯विमा꣯नाऔ꣢ऽ᳐३हो꣢। हाऽ᳒२᳒इ꣡या। औ꣢ऽ३हो꣢। हाऽ᳒२᳒इ꣡या। औ꣢ऽ३ हो꣢ऽ३॥ हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। वा꣡ग्घह꣢हहह।(त्रिः)। ऐ꣡꣯ही꣰꣯ऽ२।(त्रिः)। ऐ꣡꣯हिहा꣢उवाक्। (त्रिः)। हा꣡हा꣢उ।(त्रिः)। हाउहाउहाउवा। इदं꣡वा꣢꣯म꣡मि꣢दं꣡बृ꣢ह꣡द्धस्। इहा꣣ऽ२३꣡४꣡५꣡। हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। वा꣡ग्घह꣢हहह।(त्रिः)। ऐ꣡꣯ही꣰꣯ऽ२।(त्रिः)। ऐ꣡꣯हिहा꣢उवाक्।(त्रिः)। हा꣡हा꣢उ।(त्रिः)। आ꣡याउ।(त्रिः)। अजस्रंज्यो꣯ताइरौ꣢ऽ३हो꣢। हाऽ᳒२᳒इ꣡या। औ꣢ऽ३ हो꣢। हाऽ᳒२᳒इ꣡या। औ꣢ऽ३हो꣢ऽ३॥ हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। वा꣡ग्घह꣢हहह।(त्रिः)। ऐ꣡꣯ही꣰꣯ऽ२। (त्रिः)। ऐ꣡꣯हिहा꣢उवाक्।(त्रिः)। हा꣡हा꣢उ।(त्रिः)। हाउहाउहाउवा। चरा꣯चरा꣡꣯य बृ꣢हत꣡इ꣢दं꣡वा꣢꣯म꣡मि꣢दं꣡बृ꣢ह꣡द्धस्। इहा꣣ऽ२३꣡४꣡५꣡। हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। वा꣡ग्घह꣢हहह।(त्रिः)। ऐ꣡꣯ही꣰꣯ऽ२।(त्रिः)। ऐ꣡꣯हिहा꣢उवाक्।(त्रिः)। हा꣡हा꣢उ।(त्रिः)। आ꣡याउ।(त्रिः)। ह꣢वि꣡ रस्मिसर्वामौ꣢ऽ३हो꣢। हाऽ᳒२᳒इ꣡या। औ꣢ऽ३हो꣢। हाऽ᳒२᳒इ꣡या। औ꣢ऽ३हो꣢ऽ३। हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। वा꣡ग्घह꣢हहह।(त्रिः)। ऐ꣡꣯ही꣰꣯ऽ२।(त्रिः)। ऐ꣡꣯हिहा꣢उवाक्।(त्रिः)। हा꣡हा꣢उ।(त्रिः)। हाउहाउहाउवा॥ ए꣯य꣡शो꣯क्रा꣢꣯न्भू꣯त꣡मत꣢तनत्प्रजा꣡꣯उसमचू꣢꣯कुपत्पशु꣡ भ्यो꣢꣯ह꣡स्। इहा꣣ऽ२३꣡४꣡५꣡॥

१। अनडुद्व्रते द्वे॥ प्रजापतिस्त्रिष्टुबिन्द्रः॥

इ꣡तीऽ᳒२᳒इ꣡ति।(त्रिः)। इतिमा꣯त्रा꣯चरतिवत्सकाऽ᳒२᳒इ꣡ति।(द्विः)॥ इतिमा꣯त्रा꣯ चरतिवत्सकाऽ२३ः। आ꣡ऽ२᳐इ। ता꣣ऽ२३४। औ꣥꣯हो꣯वा॥ ए꣢꣯। इ꣡ति। ए꣢꣯। इ꣡ति। ए꣢꣯। इ꣡ती꣣ऽ२३꣡४꣡५꣡॥ दी-११। प-१५। मा-७॥ २१ (ङे) २४९॥

१। अनडुद्व्रतम्॥

स्व꣢यꣳस्कु꣡न्वाइ। स्व꣢यꣳस्कू꣡न्वाऽ᳒२᳒इ।(द्वे-द्विः)। स्व꣢यꣳस्कु꣡न्वाइ। स्व꣢यम्। स्कू꣡ऽ२᳐। न्वा꣣ऽ२३४। औ꣥꣯हो꣯वा॥ ए꣢꣯। स्कु꣡न्वे꣯। ए꣢꣯। स्कु꣡न्वे꣯। ए꣢꣯। स्कु꣡न्वाऽ२३꣡४꣡५꣡इ॥