[[अथ आरण्यकगाने द्वन्द्वपर्व ॥]]
२.२
[[अथ द्वितीयप्रपाठके द्वितीयोऽर्धः]]
[[अथ प्रथमः खण्डः]]
५९-१। वसिष्ठस्य प्राणापानौ द्वौ॥ वसिष्ठस्त्रिष्टुबिन्द्रः॥
हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ।(त्रिवारंनिश्वसेत्)। आ꣡꣯युः।(त्रिः)। सा꣯त्यम्।(त्रिः)। इ꣢न्द्र꣡न्नरो। ने꣢ऽ᳐३म꣡धि। ता꣢꣯ह꣣व꣤न्ता꣥इ॥ य꣢त्पा꣡꣯रियाः। यु꣢न꣡ज। ता꣢इ᳐धि꣣य꣤स्ताः꣥॥ शू꣢꣯रो꣡꣯नृषा। ता꣢ऽ᳐३श्र꣡व। स꣢श्च꣣का꣤꣯मा꣥इ॥ आ꣢꣯गो꣡꣯मताइ। व्र꣢जे꣡꣯भ। जा꣢꣯तु꣣व꣤न्नाः꣥। हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ।(त्रिवारंनिश्वसेत्)। आ꣡꣯युः।(त्रिः)। सा꣯त्यम्।(द्विः)। स꣣त्या꣢ऽ᳐३४। औ꣥꣯हो꣯वा॥ ई꣣ऽ२३꣡४꣡५꣡॥
५९-२।
हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ।(त्रिवारमुच्छ्वसेत्)। आ꣡꣯नो꣯हि꣢य।(त्रिः)। मनदो꣯ह꣡म्।(त्रिः)। इ꣢न्द्र꣡न्नरो। ने꣢ऽ᳐३म꣡धि। ता꣢꣯ह꣣व꣤न्ता꣥इ॥ य꣢त्पा꣡꣯रियाः। यु꣢न꣡ज। ता꣢इ᳐धि꣣ य꣤स्ताः꣥॥ शू꣢꣯रो꣡꣯नृषा। ता꣢ऽ᳐३श्र꣡व। स꣢श्च꣣का꣤꣯मा꣥इ॥ आ꣢꣯गो꣡꣯मताइ। व्र꣢जे꣡꣯भ। जा꣢꣯तु꣣व꣤न्नाः꣥। हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ।(त्रिवारमुच्छ्वसेत्)। आ꣡꣯नो꣯हि꣢य।(त्रिः)। मनदो꣯ह꣡म्। (द्विः)। मनाऽ२३दो꣯हा꣢ऽ᳐३४। औ꣥꣯हो꣯वा॥ ई꣣ऽ२३꣡४꣡५꣡॥
५९-३। इन्द्रस्यैन्यौ द्वौ॥ इन्द्रस्त्रिष्टुबिन्द्र॥
हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। ए꣡꣯न्यौ꣯।(त्रिः)। ए꣯न्या꣯हा꣢उ।(त्रिः)। इन्द्र꣡न्नरो। ने꣢ऽ᳐३ म꣡धि। ता꣢꣯ह꣣व꣤न्ता꣥इ॥ य꣢त्पा꣡꣯रियाः। यु꣢न꣡ज। ता꣢इ᳐धि꣣य꣤स्ताः꣥॥ शू꣢꣯रो꣡꣯नृषा। ता꣢ऽ᳐३श्र꣡व। स꣢श्च꣣का꣤꣯मा꣥इ॥ आ꣢꣯गो꣡꣯मताइ। व्र꣢जे꣡꣯भ। जा꣢꣯तु꣣व꣤न्नाः꣥। हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। ए꣡꣯न्यौ꣯।(त्रिः)। ए꣯न्या꣯हा꣢उ।(द्विः)। ए꣡꣯न्या꣭ऽ᳐३हा꣢उ। वाऽ᳐३॥ ईऽ२३꣡४꣡५꣡॥
५९-४।
हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। आ꣡꣯हो꣯ए꣢꣯न्यौ꣯।(त्रिः)। आ꣡꣯होऽ᳒२᳒ए꣡꣯न्याउ।(त्रिः)। इ꣢न्द्र꣡न्नरो। ने꣢ऽ᳐३म꣡धि। ता꣢꣯ह꣣व꣤न्ता꣥इ॥ य꣢त्पा꣡꣯रियाः। यु꣢न꣡ज। ता꣢इ᳐धि꣣य꣤स्ताः꣥॥ शू꣢꣯रो꣡꣯नृषा। ता꣢ऽ᳐३श्र꣡व। स꣢श्च꣣का꣤꣯मा꣥इ॥ आ꣢꣯गो꣡꣯मताइ। व्र꣢जे꣡꣯भ। जा꣢꣯तु꣣व꣤न्नाः꣥। हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। आ꣡꣯हो꣯ए꣢꣯न्यौ꣯।(त्रिः)। आ꣡꣯होऽ᳒२᳒ए꣡꣯न्याउ।(द्विः)। आ꣡꣯होऽ᳒२᳒ए꣡꣯न्या꣭ऽ᳐३। हा꣢उवाऽ᳐३॥ ईऽ२३꣡४꣡५꣡॥
५९-५। प्रजापतेर्व्रतपक्षौ द्वौ॥ अहोरात्रयोर्वा। प्रजापतिस्त्रिष्टुबिन्द्रः॥
हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। हꣳ꣡हꣳहꣳहꣳ꣢।(त्रिः)। हा꣯उहा꣯उहा꣯उ। इन्द्र꣡न्नरो। ने꣢ऽ᳐३म꣡धि। ता꣢꣯ह꣣व꣤न्ता꣥इ॥ य꣢त्पा꣡꣯रियाः। यु꣢न꣡ज। ता꣢इ᳐धि꣣य꣤स्ताः꣥॥ शू꣢꣯रो꣡꣯नृषा। ता꣢ऽ᳐३श्र꣡व। स꣢श्च꣣का꣤꣯मा꣥इ॥ आ꣢꣯गो꣡꣯मताइ। व्र꣢जे꣡꣯भ। जा꣢꣯तु꣣व꣤न्नाः꣥। हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। हꣳ꣡हꣳहꣳहꣳ꣢।(त्रिः)। हाउहाउहाउ। वाऽ᳐३॥ ईऽ२३꣡४꣡५꣡॥ दी-१८। प-२४। मा-१९॥ ५ (ढ्रौ) ९४॥
५९-६।
हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। इ꣡हा। हꣳहꣳहꣳ꣢।(द्वे-त्रिः)। हा꣯उहा꣯उहा꣯उ। इन्द्र꣡न्नरो। ने꣢ऽ᳐३म꣡धि। ता꣢꣯ह꣣व꣤न्ता꣥इ॥ य꣢त्पा꣡꣯रियाः। यु꣢न꣡ज। ता꣢इधि꣣य꣤स्ताः꣥॥ शू꣢꣯रो꣡꣯नृषा। ता꣢ऽ᳐३श्र꣡व। स꣢श्च꣣का꣤꣯मा꣥इ॥ आ꣢꣯गो꣡꣯मताइ। व्र꣢जे꣡꣯भ। जा꣢꣯तु꣣व꣤न्नाः꣥। हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। इ꣡हा। हꣳहꣳहꣳ꣢।(द्वे-त्रिः)। हाउहाउहाउ। वाऽ᳐३॥ ईऽ२३꣡४꣡५꣡॥
५९-७। इन्द्राण्या उल्बजरायुणी द्वे॥ इन्द्राणी त्रिष्टुबिन्द्रः॥
हा꣡वीन्द्रा꣢म्॥ न꣡रो꣯ने꣯मधिता꣯ह। वाऽ᳒२᳒१। ताऽ᳒२᳒इ। या꣡त्पाऽ᳒२᳒॥ र्या꣡꣯युन जते꣯धि। याऽ᳒२᳒१ः। ताऽ᳒२ः᳒॥ शू꣡रोऽ᳒२᳒। नृ꣡षा꣯ता꣯श्रवसश्च। काऽ᳒२᳒१। माऽ᳒२᳒इ॥ आ꣡गोऽ᳒२᳒। म꣡तिव्रजे꣯भजा꣯तु। वाऽ२३। आ꣡ऽ२᳐। ना꣣ऽ२३४। औ꣥꣯हो꣯वा॥ ई꣣ऽ२३꣡४꣡५꣡॥
५९-८।
उ꣡वा। ओवा꣢।(द्वे-द्विः)। उ꣡वा। ओवा꣢ऽ᳐३। आ꣤इन्द्रा꣥म्। न꣡रो꣯ने꣯मधिता꣯ हवाऽ२३न्ता꣢ऽ᳐३इ॥ या꣤त्पा꣥। र्या꣡꣯युनजते꣯धियाऽ२३स्ता꣢ऽ᳐३ः॥ शू꣤रो꣥। नृ꣡षा꣯ता꣯ श्रवसश्चकाऽ२३मा꣢ऽ᳐३इ॥ आ꣤गो꣥। म꣡तिव्रजे꣯भजा꣯तुवाऽ२३न्नाः꣢। उ꣡वा। ओवा꣢।(द्वे-द्विः)। उ꣡वा। ओऽ२᳐। वा꣣ऽ२३४। औ꣥꣯हो꣯वा॥ ई꣣ऽ२३꣡४꣡५꣡॥
६०-१। बृहस्पतेर्बलभिदी द्वे॥ उद्भिद्वा अनयोः पूर्वम्। बृहस्पतिर्गायत्रीन्द्रः॥
हो꣢꣯वा꣯इ।(द्विः)। हो꣯वाऽ᳐३हा꣢इ। उपत्वा꣯जाऽ३मा꣤ऽ३यो꣢꣯गि꣣रः꣥॥ हो꣢꣯वा꣯इ। (द्विः)। हो꣯वाऽ᳐३हा꣢इ। दे꣯दिशतीऽ३र्हा꣤ऽ३वि꣢ष्कृ꣣तः꣥॥ हो꣢꣯वा꣯इ।(द्विः)। हो꣯वाऽ᳐३ हा꣢इ। वा꣯यो꣯रनीऽ३का꣤ऽ३अ꣢स्थि꣣र꣥न्॥ हो꣢꣯वा꣯इ।(द्विः)। हो꣯वाऽ᳐३हा꣢ऽ३४। औ꣥꣯हो꣯वा॥ ई꣣ऽ२३꣡४꣡५꣡॥ दी-२७। प-१७। मा-१५॥ ९ (छ्रु) ९८॥
६०-२। बलभित्॥ बृहस्पतिर्गायत्रीन्द्रः॥
ओ꣢꣯वा꣯।(द्विः)। ओ꣯वाऽ᳐३हा꣢इ। उपत्वा꣯जाऽ३मा꣤ऽ३यो꣢꣯गि꣣रः꣥॥ ओ꣢꣯वा꣯। (द्विः)। ओ꣯वाऽ᳐३हा꣢इ। दे꣯दिशतीऽ३र्हा꣤ऽ३वि꣢ष्कृ꣣तः꣥॥ ओ꣢꣯वा꣯।(द्विः)। ओ꣯वाऽ᳐३ हा꣢इ। वा꣯यो꣯रनीऽ३का꣤ऽ३अ꣢स्थि꣣र꣥न्॥ ओ꣢꣯वा꣯।(द्विः)। ओ꣯वाऽ᳐३हा꣢ऽ᳐३४। औ꣥꣯हो꣯वा॥ ई꣣ऽ२३꣡४꣡५꣡॥ दी-२७। प-१७। मा-७॥ १० (छ्रे) ९९॥
[[अथ द्वितीयः खण्डः]]
६१-१। भर्गयशसी द्वे॥ तत्राद्यमिदं भर्गः। प्रजापतिर्बृहतीन्द्रः॥
हा꣢꣯उधा꣯मयत्। हा꣯हा꣯उधा꣯मधा꣡꣯माय꣢त्। हा꣯हा꣯उबृहद्धा꣯मधा꣡꣯माय꣢त्। बृह दिन्द्रा꣯। य꣡गाऽ२᳐या꣣ऽ२३४ता꣥॥ म꣢रुतो꣯वृ। त्र꣡हाऽ२᳐न्ता꣣ऽ२३४मा꣥म्॥ ये꣢꣯न ज्यो꣯तिरजनयन्। ऋ꣡ताऽ२᳐वा꣣ऽ२३४र्द्धाः꣥॥ दे꣢꣯वन्दे꣯वा꣯। य꣡जाऽ२᳐गॄ꣣ऽ२३४वी꣥। हा꣢꣯उधा꣯मयत्। हा꣯हा꣯उधा꣯मधा꣡꣯माय꣢त्। हा꣯हा꣯उबृहद्धा꣯मधा꣡꣯। माऽ२᳐। या꣣ऽ२३४। औ꣥꣯हो꣯वा॥ ए꣢ऽ᳐३। भ꣡र्गाऽ२३꣡४꣡५ः꣡॥ दी-२९। प-१९। मा-१५॥ ११ (धु) १००॥
६१-२। यशस्साम॥ प्रजापतिर्गायत्र्यग्निः बृहतीन्द्रः॥
हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। यशो꣯हा꣯उ।(त्रिः)। वर्चो꣯हा꣯उ।(त्रिः)। आ꣡स्मि꣢न्(स्थि) हा꣡इ।(द्विः)। आस्मि꣢न्(स्थि)हाऽ᳐३१उ। वाऽ᳒२᳒। त꣡वे꣯दिन्द्रा꣢꣯वमं꣡वसु꣢॥ त्वं꣡पुष्य꣢ सिमध्यम꣡म्॥ स꣢त्रा꣡꣯विश्वस्य꣢परम꣡स्यरा꣢꣯जसि॥ न꣡किष्ट्वा꣢꣯गो꣡꣯षुवृ꣢ण्वते꣯। हा꣯उ हा꣯उहा꣯उ। यशो꣯हा꣯उ।(त्रिः)। वर्चो꣯हा꣯उ।(त्रिः)। आ꣡स्मि꣢न्(स्थि)हा꣡इ।(द्विः)। आस्मि꣢न्(स्थि)हाऽ᳐३१उ। वाऽ᳒२᳒॥ आ꣡꣯यु र्विश्वा꣯यु र्विश्वंविश्वमा꣯यु र꣢शी꣯ महिप्रजां꣡꣯ त्वष्ट꣢र꣡धि꣢ नि꣡धे꣯ ह्य꣢स्मे꣡꣯ श꣢तं꣡जी꣯वे꣢꣯मशर꣡दो꣢꣯ वय꣡न्ते꣣ऽ२३꣡४꣡५꣡॥ दी-४७। प-२७। मा-३१॥ १२ (छ) १०१॥
६२-१। यामे द्वे॥ यमो बृहत्यग्निः॥
का꣢꣯यमा꣯नो꣯वना꣯तुवाम्॥ य꣡न्मा꣯तॄ꣯रजगाना꣢ऽ१पाऽ᳒२ः᳒। औऽ᳒२᳒। हौऽ᳒२᳒। हु꣡वाइ।
६२-२।औ꣢꣯हो꣡꣯वाऽ᳒२᳒।(द्विः)। औ꣯। हो꣡ऽ२᳐। वा꣣ऽ२३४। औ꣥꣯हो꣯वा। का꣡꣯यमा꣢꣯नो꣯ वना꣡꣯त्वम्॥ यन्मा꣢꣯तॄ꣡꣯रजग꣢न्नपः꣡॥ नतत्ते꣯अ꣢ग्ने꣯प्रमृ꣡षे꣯नि꣢व꣡र्त्तन꣢म्। य꣡द्दू꣢꣯रे꣡꣯सन्नि꣢ हा꣡꣯भुवः꣢। औ꣯हो꣡꣯वाऽ᳒२᳒॥(द्विः)। औ꣯। हो꣡ऽ२᳐। वा꣣ऽ२३४। औ꣥꣯हो꣯वा॥ ए꣢꣯। विरा꣡꣯जꣳस्व꣢रा꣡꣯जाऽ२३꣡४꣡५꣡म्॥
६३-१। घर्मतनू द्वे॥ प्रजापतिर्बृहती सोमः॥
हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। प्रसो꣯मदे꣯वऽ᳐३वा꣡इता꣢ऽ१याऽ२३इ॥ हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। सिन्धु र्न्नपिप्ये꣯ऽ᳐३आ꣡र्णा꣢ऽ१साऽ२३॥ हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। अꣳशोᳲ꣯पयसा꣯मदिरो꣯नऽ᳐३ जा꣡गॄ꣢ऽ१वीऽ२३ः॥ हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। अच्छा꣯को꣯शंमऽ᳐३धू꣡श्चू꣢ऽ१ताऽ२३म्। हा꣢उहाउ हाउ। वा। घर्मᳲ꣡प्रवृक्त꣢स्तन्वा꣡꣯समा꣯नृ꣢धे꣯वृधे꣡꣯सुवाऽ२३꣡४꣡५ः꣡॥
६३-२।
औ꣡हो꣢ऽ᳐३वा꣢।(त्रिः)। ई꣭ऽ᳐३या꣢।(त्रिः)। आ꣡इहीऽ᳒२᳒।(त्रिः)। प्रसो꣯मदे꣯। व꣡वाऽ२᳐इता꣣ऽ२३४या꣥इ॥ सि꣢न्धुर्न्नपि। प्ये꣡꣯आऽ२᳐र्णा꣣ऽ२३४सा꣥॥ अꣳ꣢शोᳲ꣯ पयसा꣯मदिरः। न꣡जाऽ२᳐गॄ꣣ऽ२३४वीः꣥॥ अ꣢च्छा꣯को꣯शम्। म꣡धूऽ२᳐श्चू꣣ऽ२३४ता꣥म्। औ꣡हो꣢ऽ᳐३वा꣢।(त्रिः)। ई꣭ऽ᳐३या꣢।(त्रिः)। आ꣡इहीऽ᳒२᳒। आ꣡इहीऽ२३॥ आ꣡ऽ२᳐इ। हा꣣ऽ२३४। औ꣥꣯हो꣯वा। घ꣢र्मᳲ꣡प्रवृक्त꣢स्तन्वा꣡꣯समा꣯न꣢शे꣯महे꣡꣯सुवाऽ२३꣡४꣡५ः꣡॥
६४-१। प्रजापतेश्चक्षूꣳषि त्रीणि॥ प्रजापतिरनुष्टुप्सोमः॥
अ꣢यं꣡पू꣯षा꣢ऽ᳐३ओ꣡ऽ२३४वा꣥॥ र꣢यि꣡र्भगः꣢। रयि꣡र्भागा꣢ऽ᳐३ओ꣡ऽ२३४वा꣥। चा꣣ऽ २३४क्षूः꣥॥ सो꣢꣯मᳲ꣡पुना꣢ऽ᳐३ओ꣡ऽ२३४वा꣥। नो꣢꣯अ꣡र्षति꣢। नो꣯अ꣡र्षाता꣢ऽ᳐३ओ꣡ऽ२३४वा꣥। सू꣣ऽ२३४वाः꣥। प꣢ति꣡र्विश्वा꣢ऽ᳐३ओ꣡ऽ२३४वा꣥। स्य꣢भू꣡꣯मनः꣢। स्यभू꣡꣯माना꣢ऽ᳐३ओ꣡ऽ २३४वा꣥। ज्यो꣣ऽ२३४तीः꣥॥ वि꣢य꣡ख्यद्रो꣢ऽ᳐३ओ꣡ऽ२३४वा꣥। द꣢सी꣡꣯उभे꣢꣯। दसी꣡꣯ऊ भा꣢ऽ᳐३ओ꣡ऽ२३४वा꣥॥ चा꣣ऽ२३४क्षूः꣥॥
६४-२।
अ꣢य꣡म्। पूऽ२᳐षा꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा॥ र꣢यि꣡र्भगः꣢। रयिः꣡। भाऽ२᳐गा꣣ऽ२३४ औ꣥꣯हो꣯वा। सो꣡꣯मᳲपु꣢ना꣯नो꣡꣯अर्ष꣢ति। नो꣯अ꣡। षाऽ२᳐ता꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा। प꣡तिर्विश्वस्य꣢ भू꣡꣯मनः꣢॥ स्यभू꣡꣯। माऽ२᳐ना꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा। व्य꣡ख्य꣢द्रो꣡꣯दसी꣢꣯उभे꣡꣯। द꣢सी꣡꣯। ऊऽ२᳐ भा꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा॥ चा꣣ऽ२३४क्षूः꣥। औ꣣꣯हो꣢ऽ᳐३१इ। औऽ२᳐हो꣣ऽ२३४वा꣥। सू꣣ऽ२३४ वाः꣥। औ꣣꣯हो꣢ऽ᳐३१इ। औऽ२᳐हो꣣ऽ२३४वा꣥। ज्यो꣣ऽ२३४तीः꣥। औ꣣꣯हो꣢ऽ᳐३१इ। औऽ२᳐ हो꣣ऽ२३४वा꣥॥ चा꣣ऽ२३४क्षूः꣥॥ दी-२३। प-२४। मा-१९॥ १८ (ढो) १०७॥
६४-३।ए꣢꣯अयम्पू꣯षा꣯रयिर्भगाः॥ सो꣡꣯मᳲपुना। इहा। नोऽ᳒२᳒अर्षा꣡। इडा। ताइपतिर्विश्वस्यभू꣢ऽ१मा꣢ऽ᳐३नाः꣢॥ वि꣡यख्यद्रो꣯दसाऽ२३हो꣡इ॥ ऊभ꣢आऽ᳐३१ उवाऽ२३। इ꣡ट्(स्थि)इडाऽ२३꣡४꣡५꣡॥ दी-५। प-९। मा-९॥ १९ (भो) १०८॥
६५-१। वार्षाहराणि त्रीणि॥ वृषाहरिर्गायत्री सोमः॥
हा꣢꣯उत्वमे꣯तात्॥ ए꣯त꣡दे꣯तात्। आधा꣢᳐रा꣣ऽ२३४याः꣥। कृ꣢ष्णा꣡꣯सुरो꣯हिणा꣢ऽ१इ षू꣢ऽ᳐३चा꣢॥ परु꣡ष्णाऽ२३इषू꣢॥ रुश꣡त्। पाऽ२᳐या꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा॥
६५-२।
त्व꣢मे꣯तद्धो꣡हा꣢इ॥ हो꣡इ। आधा꣢ऽ१रायाऽ᳒२ः᳒। हो꣡इ। कार्ष्णा꣢ऽ१सुरोऽ᳒२᳒। हो꣡इ। हाइणी꣢ऽ१षुचाऽ᳒२᳒॥ हो꣡इ। पारु꣪ष्णाइषूऽ᳒२᳒॥ हो꣡इ। रु꣢श꣡त्। पाऽ२᳐ या꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा॥
६५-३।
आ꣢꣯इत्वमे꣯तात्॥ आ꣡आधा꣢ऽ१रायाऽ᳒२ः᳒। आ꣡इकार्ष्णा꣢ऽ१सुरोऽ᳒२᳒। आ꣡इहाइ णी꣢ऽ१षुचाऽ᳒२᳒॥ आ꣡इपारु꣪ष्णाइषूऽ᳒२᳒॥ आ꣡इ। रु꣢श꣡त्। पाऽ२᳐या꣣ऽ२३४ औ꣥꣯हो꣯वा॥ अ꣢भि꣡स्फू꣯र्ज्ज꣢यं꣡द्वि꣢ष्मः꣡। समो꣯षा꣢꣯भि꣡स्फू꣯र्ज्ज꣢यं꣡द्वि꣢ष्मः꣡। अ꣢स्म꣡भ्यं꣢गा꣯तु वि꣡त्त꣢मा꣣ऽ२३꣡४꣡५꣡म्॥
३.१
[[अथ तृतीयप्रपाठके प्रथमोऽर्धः]]
[[अथ ततीयः खण्डः]]
६६-१। द्यौते द्वे॥ द्युतो बृहतीन्द्रः॥हा꣢꣯उयच्छक्रा꣯सी॥ पारा᳐वा꣣ऽ२३४ती꣥। ई꣣ऽ४य꣥। इ꣣याऽ२३४। इयाहा꣥उ॥ या꣢द᳐र्वा꣣ऽ२३४वा꣥। ता꣢इ᳐वृत्रा꣣ऽ२३४हा꣥न्। ई꣣ऽ४य꣥। इ꣣याऽ२३४। इयाहा꣥उ॥ आ꣢त᳐स्त्वा꣣ऽ२३४गी꣥। भा꣢इ᳐र्द्यूगा꣣ऽ२३४दी꣥। द्रा꣢के᳐शा꣣ऽ२३४इभीः꣥। ई꣣ऽ४य꣥। इ꣣या ऽ२३४। इयाहा꣥उ॥ सू꣢ता᳐वाꣳ꣣ऽ२३४आ꣥। वा꣢इ᳐वासा꣣ऽ२३४ती꣥। ई꣣ऽ४य꣥। इ꣣याऽ२३४। इयाऽ५हाउ॥ वा॥ अ꣡श्वमि꣢ष्टयेऽ᳐३ह꣡स्॥ दी-२। प-२३। मा-१३॥ १ (जि) ११२॥
६६-२।
ई꣣ऽ४य꣥। इ꣣याऽ२३꣡४꣡५꣡।(द्वे-त्रिः)। इ꣤याहा꣥उ। या꣤च्छा꣥। क्रा꣡। सी꣢ऽ᳐३ पा꣤ऽ३रा꣢꣯व꣣ति꣥॥ या꣤दा꣥। र्वा꣡। वा꣢ऽ᳐३ता꣤ऽ३इवृ꣢त्र꣣ह꣥न्॥ आ꣤ताः꣥। त्वा꣡। गी꣢꣯र्भिर्द्युगदीऽ᳐३न्द्रा꣤ऽ३के꣢꣯शि꣣भिः꣥॥ सू꣤ता꣥। वाꣳ꣡। आ꣢ऽ᳐३वी꣤ऽ३वा꣢꣯स꣣ति꣥। ई꣣ऽ४य꣥। इ꣣याऽ२३꣡४꣡५꣡॥(द्वे-त्रिः)। इ꣤याऽ५हाउ। वा॥ अ꣡श्वदि꣢ष्टयेऽ᳐३ह꣡स्॥ दी-४। प-२८। मा-७॥ २ (दे) ११३॥
६७-१। तास्पन्द्रे द्वे॥ तस्येन्द्रः तस्पन्द्रो वा। इन्द्रः अनुष्टुप्सोमः॥
आ꣢। भी꣡꣯नव। तआऽ᳒२᳒१२। द्रु꣡हआ꣢ऽ᳐३१उवाऽ२३। ईऽ२३४डा꣥॥ प्रा꣢। य꣡मिन्द्र। स्यकाऽ᳒२᳒१२। मि꣡यमा꣢ऽ᳐३१उवाऽ२३। ईऽ२३४डा꣥॥ वा꣢। त्स꣡न्नपू꣯। र्वआऽ᳒२᳒१२। यु꣡निया꣢ऽ᳐३१उवाऽ२३। ईऽ२३४डा꣥॥ जा꣢। तꣳ꣡रिह। तिमाऽ᳒२᳒१२। त꣡रआ꣢ऽ᳐३१उवाऽ२३। इ꣡ट्(स्थि)इडाऽ२३꣡४꣡५꣡॥ दी-२। प-२०। मा-९॥ ३ (ञो) ११४॥
६७-२।
अ꣢भी꣡꣯नव। त꣢आऽ᳐३१उवाऽ२३। द्रूऽ२३४हाः꣥। हो꣡इ। हो। वा꣢꣯हाऽ᳐३१ उवाऽ२३। ईऽ२३४डा꣥॥ प्रि꣢य꣡मिन्द्र। स्य꣢काऽ᳐३१उवाऽ२३। मीऽ२३४या꣥म्। हो꣡इ। हो। वा꣢꣯हाऽ᳐३१उवाऽ२३। ईऽ२३४डा꣥॥ व꣢त्स꣡न्नपू꣯। र्व꣢आऽ᳐३१उवाऽ२३। यूऽ२३४नी꣥। हो꣡इ। हो। वा꣢꣯हाऽ᳐३१उवाऽ२३। ईऽ२३४डा꣥॥ जा꣢꣯तꣳ꣡रिह। ति꣢माऽ᳐३१उवाऽ२३। ताऽ२३४राः꣥। हो꣡इ। हो। वा꣢꣯हाऽ᳐३१उवाऽ२३॥ इ꣡ट्(स्थि)इडाऽ२३꣡४꣡५꣡॥
६८-१। तौरश्रवसे द्वे॥ तुरश्रवा बृहतीन्द्रः॥
य꣢दिन्द्रशा꣯सो꣯अव्रा꣡ता꣢म्॥ च्या꣯वया꣯सदाऽ᳐३सा꣡ऽ२३स्परा꣢इ। आ꣡ऽ२३स्मा꣢। क꣡म। शुंमाघा꣢ऽ१वाऽ२३न्। पू꣡रूऽ२᳐स्पॄ꣣ऽ२३४हा꣥म्॥ व꣢सा꣡व्याआ꣢ऽ᳐३४। औ꣣꣯हो꣤꣯वा꣥॥ धा꣡ऽ२३इबा꣢ऽ᳐३। हा꣡ऽ२᳐वा꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा॥ या꣣ऽ२३꣡४꣡५꣡॥
६८-२।या꣣ऽ५दिन्द्र। शा꣤ऽ᳐३सो꣢ऽ᳐३अ꣤व्राता꣥म्॥ च्या꣢꣯व꣡या꣯साऽ᳒२᳒। दसा꣡स्पा꣢ऽ१ राऽ२᳐इ। उ꣣वा꣢ऽ᳐३। ओ꣭ऽ᳐३वा꣢। अस्मा꣡का꣢ऽ१माऽ᳒२᳒। शुंमा꣡घा꣢ऽ१वाऽ२᳐न्। उ꣣वा꣢ ऽ᳐३। ओ꣭ऽ᳐३वा꣢। पुरू꣡स्पॄ꣢ऽ१हाऽ᳒२᳒म्॥ वसा꣡व्या꣢ऽ१याऽ२᳐। उ꣣वा꣢ऽ᳐३। ओ꣭ऽ᳐३ वा꣢ऽ᳐३॥ धि꣤बोवा꣥। हा꣤ऽ५योऽ६"हा꣥इ॥ दी-२। प-१६। मा-१६॥ ६ (चू) ११७॥
६९-१। धेनुषाम॥ प्रजापतिर्गायत्री सोमेन्द्रोः वा॥
हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। ओ꣣꣯हा꣢꣯।(द्विः)। ओ꣣꣯हा꣢꣯इ। इ꣡याहा꣢उ।(त्रिः)। औ꣣꣯हो꣢ऽ१इ। (त्रिः)। भुवत्। इडा। स्वा꣢꣯दिष्ठ꣡या। मा꣢꣯दि꣡ष्ठया॥ जनत्। इडा। प꣢वस्व꣡सो। मा꣢꣯धा꣡꣯रया॥ वृधत्। इडा। इ꣢न्द्रा꣯य꣡पा। ता꣢꣯वा꣡इसुताः॥ करत्। इडाऽ२३। हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। ओ꣣꣯हा꣢꣯।(द्विः)। ओ꣣꣯हा꣢꣯इ। इ꣡याहा꣢उ।(त्रिः)। औ꣣꣯हो꣢ऽ१इ।(द्विः)। औ꣣꣯हो꣢ऽ१२᳐। या꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा॥ ए꣢ऽ᳐३। धे꣢꣯नु꣡॥
७०-१। पयस्साम॥ प्रजापतिर्गायत्र्यग्निः॥
इ꣢योऽ᳐३। इया꣢। इ꣡योऽ᳒२᳒इ꣡या। इ꣢योऽ᳐३। इया꣢। अग्ने꣯युꣳक्ष्वा꣯हीऽ᳐३ ये꣢꣯तवा। अग्ने꣡꣯युꣳक्ष्वा। ही꣢꣯ये꣡꣯तवा। अ꣢ग्ने꣯युꣳक्ष्वा꣯हीऽ᳐३ये꣢꣯तवा॥ इयोऽ᳐३। इया꣢। इ꣡योऽ᳒२᳒इ꣡या। इ꣢योऽ᳐३। इया꣢। अश्वा꣯सो꣯दा꣯इवाऽ᳐३सा꣢꣯धवाः। अश्वा꣡꣯सो꣯दाइ। वा꣢꣯सा꣡꣯धवाः। अ꣢श्वा꣯सो꣯दा꣯इवाऽ᳐३सा꣢꣯धवाः॥ इयोऽ᳐३। इया꣢। इ꣡योऽ᳒२᳒इ꣡या। इ꣢योऽ᳐३। इया꣢। अरंवहा꣯न्तीऽ᳐३आ꣢꣯शवाः। अरं꣡वहा। ती꣢꣯या꣡꣯शवाः। अ꣢रंवहा꣯न्ती ऽ᳐३आ꣢꣯शवाः॥ इयोऽ᳐३। इया꣢। इ꣡योऽ᳒२᳒इ꣡या। इ꣢यो꣯इयाऽ᳐३उवा꣢ऽ᳐३॥ आऽ᳒२᳒। (त्रिः)। ह꣡स्(स्थि)ए꣢ऽ᳐३प꣡याऽ२३꣡४꣡५ः꣡॥
७१-१। स्वर्ज्योतिषी द्वे॥ प्रजापतिर्जगती आदित्यः, सोमो वा॥
हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। स्व꣡र्विश्व꣢म्।(त्रिः)। अ꣡रू꣯रु꣢चत्।(त्रिः)। उष꣡सᳲपृश्निराऽ᳒२᳒ ग्रा꣡याः॥ हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। स्व꣡र्विश्व꣢म्।(त्रिः)। उ꣡क्षा꣯मि꣢मे꣯।(त्रिः)। तिभु꣡वने꣯ षुवाऽ᳒२᳒जा꣡यूः॥ हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। स्व꣡र्विश्व꣢म्।(त्रिः)। मा꣡꣯या꣯वि꣢नः।(त्रिः)। ममि꣡रे꣯ अस्यमाऽ᳒२᳒या꣡या॥ हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। स्व꣡र्विश्व꣢म्।(त्रिः)। नृ꣡चक्ष꣢सः।(त्रिः)। पित꣡रो꣯ गर्भमाऽ᳒२᳒दा꣡धूः। हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। स्व꣡र्विश्व꣢म्।(द्विः)। सु꣡वाऽ२३र्विश्वा꣢उ। वाऽ᳐३॥ ए꣢ऽ᳐३। सु꣡वाऽ२३꣡४꣡५ः꣡॥
७१-२।
हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। ज्यो꣡꣯तिर्विश्व꣢म्।(त्रिः)। अ꣡रू꣯रु꣢चत्।(त्रिः)। उष꣡सᳲ पृश्निरा꣢ऽ᳐३। ग्रा꣤याः꣥॥ हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। ज्यो꣡꣯तिर्विश्व꣢म्।(त्रिः)। उ꣡क्षा꣯मि꣢मे꣯।(त्रिः)। तिभु꣡वने꣯षुवा꣢ऽ᳐३। जा꣤यूः꣥॥ हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। ज्यो꣡꣯तिर्विश्व꣢म्।(त्रिः)। मा꣡꣯या꣯वि꣢नः। (त्रिः)। ममि꣡रे꣯अस्यमा꣢ऽ᳐३। या꣤या꣥॥ हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। ज्यो꣡꣯तिर्विश्व꣢म्।(त्रिः)। नृ꣡चक्ष꣢सः।(त्रिः)। पित꣡रो꣯गर्भमा꣢ऽ᳐३। दा꣤धूः꣥॥ हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। ज्यो꣡꣯तिर्विश्व꣢म्। (द्विः)। ज्यो꣡꣯ताऽ२३इर्विश्वा꣢उ। वाऽ᳐३॥ ए꣢ऽ᳐३। ज्यो꣡꣯ती꣣ऽ२३꣡४꣡५ः꣡॥ दी-४९। प-४३। मा-४५॥ १० (दु) १२१॥
[[अथ चतुर्थः खण्डः]] ७२-१। यण्वम्॥ प्रजापतिर्गायत्रीन्द्रः॥
इ꣡न्द्र꣢मि꣡द्गा꣢꣯थि꣡नो꣯बृ꣢ह꣡त्। एऽ᳒२᳒। इ꣡न्द्रम꣢र्के꣡꣯भिः। अ꣢र्किणो꣡वा॥ औ꣢꣯हो꣯वा꣯ औ꣯हो꣯वा꣯औ꣯हो꣯वा꣯। औ꣯हो꣡हा꣢इ।(त्रिः)। इन्द्रंवा꣯णी꣯र꣡नूऽ२३षता꣢उ। वाऽ᳐३। ईऽ २३४डा꣥॥ श्रीः॥ औ꣢꣯हो꣯वा꣯औ꣯हो꣯वा꣯औ꣯हो꣯वा꣯। औ꣯हो꣡हा꣢इ।(त्रिः)। इन्द्रइद्ध꣡र्यो ऽ२३स्सचा꣢ऽ३। सं꣢मिश्लआ꣯व꣡चोऽ२३युजा꣢ऽ३॥ औ꣢꣯हो꣯वा꣯औ꣯हो꣯वा꣯औ꣯हो꣯वा꣯। औ꣯हो꣡हा꣢इ।(त्रिः)। इन्द्रो꣯वज्री꣯हि꣡राऽ२३ण्यया꣢उ। वाऽ᳐३॥ ईऽ२३४डा꣥॥ श्रीः॥ औ꣢꣯हो꣯वा꣯औ꣯हो꣯वा꣯औ꣯हो꣯वा꣯। औ꣯हो꣡हा꣢इ।(त्रिः)। इन्द्रवा꣯जे꣯षु꣡नोऽ२३अवा꣢ऽ᳐३। स꣢हस्रप्रध꣡नाऽ२३इषुचा꣢ऽ᳐३॥ औ꣢꣯हो꣯वा꣯औ꣯हो꣯वा꣯औ꣯हो꣯वा꣯। औ꣯हो꣡हा꣢इ।(त्रिः)। उग्र उग्रा꣯भि꣡रूऽ२३तिभा꣢उ। वाऽ᳐३॥ इ꣡ट्(स्थि)इडाऽ२३꣡४꣡५꣡॥ दी-७१। प-३७। मा-३६॥ ११ (खू) १२२॥
७३-१। अपत्यम्॥ प्रजापतिर्गायत्रीसोमः॥
हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। उच्चा꣯ते꣯जा꣯त꣡माऽ२३न्धसा꣢ऽ᳐३ः॥ हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। दिविसद्भू꣯ मि꣡याऽ२३ददा꣢ऽ᳐३इ। हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। उग्रꣳशर्मम꣡हाऽ२३इश्रवा꣢उ। वाऽ᳐३॥ ईऽ२३४डा꣥॥ श्रीः॥ हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। सनइन्द्रा꣯य꣡याऽ२३ज्यवा꣢ऽ᳐३इ॥ हा꣢꣯उहा꣯उ हा꣯उ। वरुणा꣯यम꣡रूऽ२३द्भिया꣢ऽ᳐३ः॥ हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। वरिवो꣯वित्प꣡राऽ२३इ स्रवा꣢उ। वाऽ᳐३॥ ईऽ२३४डा꣥॥ श्रीः॥ हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। ए꣯ना꣯विश्वा꣯नि꣡आऽ२३ र्यआ꣢ऽ᳐३॥ हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। द्युम्ना꣯निमा꣯नु꣡षाऽ२३णा꣢ऽ᳐३म्॥ हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। सिषा꣯सन्तो꣯व꣡नाऽ२३महा꣢उ। वाऽ᳐३॥ इ꣡ट्(स्थि)इडाऽ२३꣡४꣡५꣡॥ दी-४१। प-२४। मा-४१॥ १२ (घ) १२३॥
७४-१। आयुर्नवस्तोभे द्वे॥ आयुस्साम। प्रजापतिर्विष्टारपंक्तिरिन्द्रः॥
हा꣢उहाउहाउवा। वि꣡श्वतो꣢꣯दा꣯वन्विश्व꣡तो꣯न꣢आ꣡꣯भर꣢॥ हाउहाउहाउवा। य꣡न्त्वा꣯शविष्ठ꣢मी꣡꣯महे꣢꣯। हाउहाउहाउवा। आ꣡꣯युः। हा꣢उहाउहाउवा॥ सू꣡꣯वः। हा꣢उहाउहाउवा। ज्यो꣡꣯तिः। हा꣢उहाउहाउवाऽ३॥ ईऽ२३꣡४꣡५꣡॥
७४-२। नवस्तोभम्॥
वि꣡श्वतो꣢꣯दा꣯वन्विश्व꣡तो꣯न꣢आ꣡꣯। भ꣣रा꣢꣯ओ꣣꣯वा꣯।(त्रिः)। हा꣢꣯ओ꣣꣯वा꣯।(त्रिः)। हा꣢ऽ᳐३ ओ꣡ऽ२३४वा꣥।(द्विः)। हा꣢उवा॥ वि꣡श्वतो꣢꣯दा꣯वन्विश्व꣡तो꣯न꣢आ꣡꣯भर꣢। भ꣣रा꣢꣯ओ꣣꣯वा꣯। (त्रिः)। हा꣢꣯ओ꣣꣯वा꣯।(त्रिः)। हा꣢ऽ᳐३ओ꣡ऽ२३४वा꣥।(द्विः)। हा꣢उवा। य꣡न्त्वा꣯शविष्ठ꣢ मी꣡꣯महे꣢꣯। म꣣हा꣢꣯ओ꣣꣯वा꣯।(त्रिः)। हा꣢꣯ओ꣣꣯वा꣯।(त्रिः)। हा꣢ऽ᳐३ओ꣡ऽ२३४वा꣥।(द्विः)। हा꣢उवा। ई꣡꣯डा꣯। इ꣣डा꣢꣯ओ꣣꣯वा꣯।(त्रिः)। हा꣢꣯ओ꣣꣯वा꣯।(त्रिः)। हा꣢ऽ᳐३ओ꣡ऽ२३४वा꣥।(द्विः)। हा꣢उवा॥ सू꣡꣯वः। सु꣣वा꣢꣯ओ꣣꣯वा꣯।(त्रिः)। हा꣢꣯ओ꣣꣯वा꣯।(त्रिः)। हा꣢ऽ᳐३ओ꣡ऽ२३४वा꣥। (द्विः)। हा꣢उवा॥ ज्यो꣡꣯तिः। ज्यो꣣꣯ता꣢꣯ओ꣣꣯वा꣯।(त्रिः)। हा꣢꣯ओ꣣꣯वा꣯।(त्रिः)। हा꣢ऽ᳐३ ओ꣡ऽ२३४वा꣥।(द्विः)। हा꣢उवाऽ३॥ इ꣡ट्(स्थि)इडाऽ२३꣡४꣡५꣡॥ दी-१२६। प-६१। मा-५९॥ १४ (को) १२५॥
७५-१। रायो वाजीयम्॥ रायोवाजः पंक्तिरिन्द्रः॥
ए꣡स्वादोः꣢॥ इत्था꣡꣯विषू꣯वतो꣯मधोᳲ꣯पिबन्तिगौऽ᳒२᳒रियाः꣡। इडा। या꣯इन्द्रे꣯ण सया꣢ऽ१वा꣢ऽ᳐३रीः꣢। वृष्णा꣡꣯मदन्तिशो꣢ऽ᳐३। भा꣤था꣥॥ व꣡स्वी꣯रनुस्वराऽ२३हो꣡इ॥ जाय꣢माऽ᳐३१उवाऽ२३॥ इ꣡ट्(स्थि)इडाऽ२३꣡४꣡५꣡॥
७६-१। बार्हद्गिरम्॥ बृहद्गिरिः पथ्यापंक्तिरिन्द्रः॥
इ꣢न्द्रो꣯मदा॥ य꣡वा꣯वृधे꣯शवसे꣯वृत्रहाऽ᳒२᳒नृभा꣡इ। अथा। तमिन्महत्सुवा꣢ऽ१ जा꣢ऽ᳐३इषू꣢। ऊ꣯ति꣡मर्भे꣯हवा꣢ऽ᳐३। मा꣤हा꣥इ॥ स꣡वा꣯जे꣯षुप्रनाऽ२३हो꣡इ॥ वाइष꣢दा ऽ᳐३१उवाऽ२३॥ आऽ२३४था꣥॥ दी-८। प-९। मा-६॥ १६ (दू) १२७॥
७७-१। संकृति॥ प्रजापतिः देवा वा पंक्तिरिन्द्रः॥
ए꣡स्वादोः꣢॥ इत्था꣡꣯विषूऽ२३हो꣡ऽ२३। व꣡ताऽ२३ः। हा꣢꣯ओ꣣꣯वा꣯।(त्रिः)। हा꣢ऽ᳐३ओ꣡ऽ२३४वा꣥।(द्विः)। हा꣢उवा। म꣡धोᳲ꣯पि꣢बन्तिगौ꣯र्यः꣡। या꣯इन्द्रे꣯ण꣢सया꣡꣯वरीः꣢꣯॥ वृ꣡ष्णा꣢꣯म꣡दन्ति꣢शो꣯भ꣡था꣢꣯॥ व꣡स्वी꣢꣯र꣡नुस्व꣢रा꣡꣯ज्यम्। हा꣢꣯ओ꣣꣯वा꣯।(त्रिः)। हा꣢ऽ᳐३ओ꣡ ऽ२३४वा꣥।(द्विः)। हा꣢उवाऽ३॥ हौ꣢ऽ᳐३। आ꣢ऽ᳐३। ऊ꣢ऽ᳐३। ईऽ२३꣡४꣡५꣡॥
७७-२। पार्थुरश्मम्॥ पृथुरश्मिः प्रजापतिः पंक्तिरिन्द्रः॥
ए꣡स्वादोः꣢। ओ꣣ऽ२३४वा꣥॥ इ꣢त्था꣡꣯विषूऽ᳒२᳒वताः꣡। अथा॥ एमधोः꣢᳐। ओ꣣ऽ२३४वा꣥॥ पि꣢ब꣡न्तिगौऽ᳒२᳒रियाः꣡। अथा॥ एयाई꣢। ओ꣣ऽ२३४वा꣥॥ द्रे꣢꣯ण꣡स याऽ᳒२᳒वरा꣡इ। अथा॥ एवृष्णा꣢। ओ꣣ऽ२३४वा꣥॥ म꣢द꣡न्तिशोऽ᳒२᳒भथा꣡। अथा॥ एवस्वीः꣢। ओ꣣ऽ२३४वा꣥॥ अ꣢नु꣡स्वराऽ᳒२᳒जिया꣡म्। अथाऽ२३꣡४꣡५꣡॥ दी-२। प-२०। मा-८॥ १८ (ञै) १२९॥
७८-१। श्येन वृषके द्वे॥ (श्येनम्) षट् प्रजापतिपदानि जगतीरिन्द्रः॥
ऊ꣡भा꣢इ॥ यदि꣡न्द्ररोऽ᳒२᳒दसा꣡इ। इडा॥ आपा꣢॥ प्रा꣯थ꣡उषाऽ᳒२᳒इवा꣡। इडा॥ माहा꣢॥ तन्त्वा꣡꣯महाऽ᳒२᳒इना꣡म्। इडा॥ साम्रा꣢॥ जंच꣡र्षणाऽ᳒२᳒इना꣡म्। इडा॥ देवी꣢। जनि꣡त्र्यजाऽ᳒२᳒इजना꣡त्॥ इडा॥ भाद्रा꣢॥ जनि꣡त्र्यजाऽ᳒२᳒इजना꣡त्॥ इडा ऽ२३꣡४꣡५꣡॥
७९-१। वृषकम्॥ प्रजापतिः पंक्तिरिन्द्रः॥
ए꣡स्वादोः꣢।(द्विः)। इत्था꣡꣯विषूऽ᳒२᳒वताः꣡। इडा॥ एमधोः꣢॥(द्विः) पिब꣡न्ति गौऽ᳒२᳒रियाः꣡। इडा॥ एयाई꣢॥(द्विः)। द्रे꣯ण꣡सयाऽ᳒२᳒वरा꣡इ। इडा॥ एवृष्णा꣢॥(द्विः)॥ मद꣡न्तिशोऽ᳒२᳒भथा꣡। इडा॥ एवस्वीः꣢।(द्विः)। अनु꣡स्वराऽ᳒२᳒जिया꣡म्। इडाऽ२३꣡४꣡५꣡॥
[[अथ पञ्चमः खण्डः]]
८०-१। भद्रम्॥ प्रजापतिर्भुवनो द्विपदाविराड्विश्वेदेवाः॥
हो꣡꣯इहा꣯।(त्रिः)। इ꣢हो꣡꣯इहा꣯।(त्रिः)। औ꣯होऽ᳒२᳒। इ꣡हा।(द्वे-द्विः)। औ꣯हो꣢꣯ इ꣣हा꣢ऽ᳐३४। औ꣥꣯हो꣯वा॥ इ꣢मा꣡꣯नुकंभुवना꣢꣯सी꣯षधे꣯माऽ३। इ꣡हा। इन्द्रश्च꣢वि꣡श्वे꣯च꣢दे꣯वा ऽ३ः। इ꣡हा। हो꣯इहा꣯।(त्रिः)। इ꣢हो꣡꣯इहा꣯।(त्रिः)। औ꣯होऽ᳒२᳒। इ꣡हा।(द्वे-द्विः)। औ꣯हो꣢꣯ इ꣣हा꣢ऽ᳐३४। औ꣥꣯हो꣯वा॥ ए꣢ऽ᳐३। भ꣢द्र꣡म्॥ दी-४२। प-३०। मा-१६॥ २१ (ञू) १३२॥
८०-२। श्रेयस्साम॥ प्रजापतिः विराड्विश्वेदेवाः॥
हो꣡꣯इया꣯।(त्रिः)। इ꣢यो꣡꣯इया꣯।(त्रिः)। औ꣯होऽ᳒२᳒। इ꣡या।(द्वे-द्विः)। औ꣯हो꣢꣯ इ꣣या꣢ऽ᳐३४। औ꣥꣯हो꣯वा॥ इ꣢मा꣡꣯नुकंभुवना꣢꣯सी꣯षधे꣯माऽ३। इ꣡या। इन्द्रश्च꣢वि꣡श्वे꣯च꣢दे꣯वा ऽ३ः। इ꣡या। हो꣯इया꣯।(त्रिः)। इ꣢यो꣡꣯इया꣯।(त्रिः)। औ꣯होऽ᳒२᳒। इ꣡या।(द्वे-द्विः)। औ꣯हो꣢꣯इ꣣या꣢ऽ᳐३४। औ꣥꣯हो꣯वा॥ ए꣢ऽ᳐३। श्रे꣡꣯याऽ२३꣡४꣡५ः꣡॥ दी-४३। प-३०। मा-१६॥ २२ (णू) १३३॥
८१-१। तन्तुसाम॥ प्रजापतिर्गायत्री सोमः॥
हा꣢꣯उतन्तुः।(त्रिः)। हा꣯उविश्वम्।(त्रिः)। अचिक्रदद्वा꣯र्षा꣡꣯हराइः॥ म꣢हा꣯ न्मित्रो꣯ना꣯द꣡र्शताः॥ सꣳ꣢सू꣯रिये꣯णा꣯दि꣡द्युताइ॥ हा꣢꣯उतन्तुः।(त्रिः)। हा꣯उविश्वम्। (द्विः)। हा꣯उ। वा꣡ऽ२᳐इ। श्वा꣣ऽ२३४। औ꣥꣯हो꣯वा॥ ए꣢ऽ᳐३। त꣡न्तू꣣ऽ२३꣡४꣡५ः꣡॥
८१-२। ओतुसाम॥
हा꣢꣯वो꣯तुः।(त्रिः)। हा꣯वै꣯ही꣯।(त्रिः)। अचिक्रदद्वा꣯र्षा꣡꣯हराइः॥ म꣢हा꣯न्मित्रो꣯ना꣯ द꣡र्शताः॥ सꣳ꣢सू꣯रिये꣯णा꣯दि꣡द्युताइ॥ हा꣢꣯वो꣯तुः।(त्रिः)। हा꣯वै꣯ही꣯।(द्विः)। हा꣯उ। आ꣡ऽ२᳐इ। हा꣣ऽ२३४। औ꣥꣯हो꣯वा॥ ए꣢ऽ᳐३। ओ꣡꣯तू꣣ऽ२३꣡४꣡५ः꣡॥ दी-३९। प-२०। मा-१३॥ २४ (नि) १३५॥
८२-१। सहस्साम॥ प्रजापतिर्विराडिन्द्रः॥हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। पिबा꣡꣯सो꣯माम्। इन्द्र। म꣢न्द꣣तु꣤त्वा꣥॥ हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। यन्ते꣡꣯सुषा। वा꣢ऽ᳐३ह꣡रि। अ꣢श्व꣣अ꣤द्रीः꣥॥ हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। सो꣯तु꣡र्बा꣯हू। भ्या꣢ऽ᳐३ꣳसु꣡य। तो꣢꣯न꣣अ꣤र्वा꣥॥ हा꣢उहाउहाउ। वा। ए꣯। दि꣡शः॥ हा꣢उहाउहाउ। वा। ए꣯। प्रदि꣡शः। हा꣢उहाउहाउ। वा। ए꣯। उद्दि꣡शः। हा꣢उहाउहाउ। वाऽ᳐३॥ ए꣢ऽ३। स꣡हा꣣ऽ२३꣡४꣡५ः꣡॥
८२-२। महस्साम॥ प्रजापतिर्विराडिन्द्रः॥
हा꣢उहाउहाउवा॥ पि꣡बा꣢꣯सो꣡꣯ममि꣢न्द्रम꣡न्दतु꣢त्वा꣯। हाउहाउहाउवा॥ य꣡न्ते꣯ सु꣢षा꣡꣯वह꣢र्यश्वा꣡꣯द्रिः॥ हा꣢उहाउहाउवा। सो꣯तु꣡र्बा꣢꣯हु꣡भ्याꣳ꣢꣯सु꣡यतो꣢꣯ना꣡꣯र्वा꣯। हा꣢उहाउ हाउवा। ए꣯भू꣡꣯मिः॥ हा꣢उहाउहाउवा॥ ए꣯अन्त꣡रिक्षम्। हा꣢उहाउहाउवा॥ ए꣯द्यौः꣡꣯। हा꣢उहाउहाउवाऽ᳐३। ए꣢ऽ᳐३म꣡हा꣣ऽ२३꣡४꣡५ः꣡॥
८३-१। वार्कजम्भे द्वे॥ वृकजम्भो बृहतीन्द्रः॥ वार्कजम्भाद्यम्।
हा꣢꣯उप्रवइन्द्रा꣯यबृहा꣡ता꣢इ॥ म꣡रुतो꣯ब्रह्मअर्चता। हा꣢उ। वृत्रꣳ꣡हनतिवृत्रहा। हा꣢उ। शाऽ᳐३ता꣡क्रातू꣢ऽ᳐३ः। हा꣢उ॥ वा꣡ज्रे꣢꣯णशा꣡। हा꣢उ॥ ता꣡ऽ२᳐पा꣣ऽ२३४ औ꣥꣯हो꣯वा॥ र्व꣢णाऽ३ह꣡स्॥ दी-६। प-११। मा-११॥ २७ (क) १३८॥
८३-२। वार्कजम्भोत्तरम्॥
हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। वि꣡श्वे꣯षा꣢꣯म्।(त्रिः)। भू꣯ता꣡꣯ना꣯म्।(त्रिः)। स्तो꣯भा꣯ना꣢꣯म्। (त्रिः)। प्रवइन्द्रा꣯यबृहा꣡ता꣢इ। हा꣡ता꣢इ॥(द्विः)। मरुतो꣯ब्रह्मअर्चा꣡ता꣢। चा꣡ता꣢॥ (द्विः)। वृत्रꣳहनतिवृत्रहा꣯शतक्रा꣡तूः꣢। क्रा꣡तूः꣢॥(द्विः)। वज्रे꣯णशतपर्वा꣡णा꣢। र्वा꣡णा꣢।(द्विः)। हा꣯उहा꣯उहा꣯उ। वि꣡श्वे꣯षा꣢꣯म्।(त्रिः)। भू꣯ता꣡꣯ना꣯म्।(त्रिः)। स्तो꣯भा꣯ ना꣢꣯म्।(द्विः)। स्तो꣣꣯भा꣯ना꣢ऽ᳐३४। औ꣥꣯हो꣯वा॥ ई꣣ऽ२३꣡४꣡५꣡॥
८४-१। इषस्साम॥ प्रजापतिस्त्रिष्टुबिन्द्रः॥
हा꣣꣯ह। हा꣢ऽ᳐३। ओ꣢ऽ३४वा꣥।(त्रीणि-त्रिः)। आ꣤सा꣥। वि꣡दाइ। वा꣢ऽ᳐३ ङ्गो꣡꣯ऋ। जी꣢꣯क꣣म꣤न्धाः꣥॥ ना꣤या꣥। स्मि꣡न्नाइ। द्रो꣢ऽ᳐३ज꣡नु। षे꣢꣯मु꣣वो꣤꣯चा꣥॥ बो꣤धा꣥। म꣡साइ। त्वा꣢ऽ᳐३ह꣡रि। अ꣢श्व꣣य꣤ज्ञैः꣥॥ बो꣤धा꣥। न꣡स्तो। मा꣢ऽ᳐३म꣡न्ध। सो꣢꣯म꣣दे꣤꣯षू꣥। हा꣣꣯ह। हा꣢ऽ᳐३। ओ꣢ऽ३४वा꣥।(त्रीणि-द्विः)। हा꣣꣯ह। हा꣢ऽ᳐३। ओ꣢ऽ᳐३४५वाऽ६५६॥ ई꣣ऽ२३꣡४꣡५꣡ष्॥
८४-२। विश्वज्योतिस्साम॥ई꣡ऽ२꣮यो।(त्रिः)। ऐ꣣꣯ही꣢꣯।(त्रिः)। हꣳ꣡।(त्रिः)। ओ꣣꣯हा꣢꣯।(द्विः)। ओ꣣꣯हा꣢꣯इ। असा꣯वि꣡दाइ। व꣢ङ्गो꣡꣯ऋजीऽ᳒२᳒। कमा꣡ऽ२꣮न्धाः॥ ई꣡ऽ२꣮यो।(त्रिः)। ऐ꣣꣯ही꣢꣯।(त्रिः)। हꣳ꣡।(त्रिः)। ओ꣣꣯हा꣢꣯।(द्विः)। ओ꣣꣯हा꣢꣯इ। नियस्मि꣡न्नाइ। द्रो꣢꣯ज꣡नुषेऽ᳒२᳒म्। उवो꣡ ऽ२꣮चा॥ ई꣡ऽ२꣮यो।(त्रिः)। ऐ꣣꣯ही꣢꣯।(त्रिः)। हꣳ꣡।(त्रिः)। ओ꣣꣯हा꣢꣯।(द्विः)। ओ꣣꣯हा꣢꣯इ। बो꣢꣯धा꣯म꣡साइ। त्वा꣢꣯ह꣡रियाऽ᳒२᳒। श्वया꣡ऽ२꣮ज्ञैः॥ ई꣡ऽ२꣮यो।(त्रिः)। ऐ꣣꣯ही꣢꣯।(त्रिः)। हꣳ꣡।(त्रिः)। ओ꣣꣯हा꣢꣯।(द्विः)। ओ꣣꣯हा꣢꣯इ। बो꣯धा꣯न꣡स्तो। मा꣢꣯म꣡न्धसोऽ᳒२᳒। मदा꣡ ऽ२꣮इषू। ई꣡ऽ२꣮यो।(त्रिः)। ऐ꣣꣯ही꣢꣯।(त्रिः)। हꣳ꣡।(त्रिः)। ओ꣣꣯हा꣢꣯।(द्विः)। ओ꣭ऽ᳐३हा꣢उ। वाऽ᳐३॥ ए꣢ऽ᳐३। वि꣢श्व꣡ज्यो꣯ती꣣ऽ२३꣡४꣡५ः꣡॥
३.२
[[अथ तृतीयप्रपाठके द्वितीयोऽर्धः]]
[[अथ षष्ठः खण्डः]]
८५-१। द्रविणम्॥ प्रजापतिर्गायत्री मित्रावरुणोऽर्यमा॥
हा꣢꣯उमहि।(त्रिः)। म꣡हीऽ᳒२᳒म꣡हि।(त्रिः)। मा꣯हे꣢꣯मा꣣꣯हे꣢꣯।(त्रिः)। म꣡हित्री꣯णा꣯ मवाऽ᳒२᳒र꣡स्तू। औ꣢꣯हौ꣯हो꣡꣯वाऽ᳒२᳒॥ द्युक्षं꣡मित्रस्याऽ᳒२᳒र्य꣡म्णाः। औ꣢꣯हौ꣯हो꣡꣯वाऽ᳒२᳒॥ दुरा꣯ ध꣡र्षंवरूऽ᳒२᳒ण꣡स्या। औ꣢꣯हौ꣯हो꣡꣯वाऽ२३॥ हा꣢꣯उमहि।(त्रिः)। म꣡हीऽ᳒२᳒म꣡हि।(त्रिः)। मा꣯हे꣢꣯मा꣣꣯हे꣢꣯।(द्विः)। महि꣡। माऽ२᳐हा꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा॥ ए꣢꣯। म꣡हि।(द्वे-द्विः)। ए꣢꣯। म꣡ही꣣ऽ२३꣡४꣡५꣡॥
८५-२। विष्पर्द्धसस्साम॥ प्रजापतिर्गायत्री मित्रावरणोऽर्यमा॥
हा꣢꣯उदिवि।(त्रिः)॥ दि꣡वीऽ᳒२᳒दि꣡वि।(त्रिः)। दा꣯इवे꣢꣯दा꣣꣯इवे꣢꣯।(त्रिः)। म꣡हित्री꣯णा꣯ मवाऽ᳒२᳒र꣡स्तू॥ द्यु꣢क्षं꣡मित्रस्याऽ᳒२᳒र्य꣡म्णाः॥ दु꣢रा꣯ध꣡र्षंवरूऽ᳒२᳒ण꣡स्या॥ हा꣢꣯उदिवि। (त्रिः)। दि꣡वीऽ᳒२᳒दि꣡वि।(त्रिः)। दा꣯इवे꣢꣯दा꣣꣯इवे꣢꣯।(द्विः)। दिवि꣡। दाऽ२᳐इवा꣣ऽ२३४ औ꣥꣯हो꣯वा। ए꣢꣯। दि꣡वि।(द्वे-द्विः)। ए꣢꣯। दि꣡वी꣣ऽ२३꣡४꣡५꣡॥ दी-३४। प-२८। मा-१९॥ २ (दो) १४३॥
८६-१। यामम्॥ यमस्त्रिष्टुबादित्यान्तर्गतः परः पुरुषः॥
औ꣢꣯हो꣯इ। इया꣯हा꣯उ। औ꣯हौ꣡हो꣢ऽ᳐३वा꣢। ना꣡के꣢꣯सु꣡पा। ण꣢मु꣡पय꣢त्पतन्तम्॥ औ꣯हो꣯इ। इया꣯हा꣯उ। औ꣯हौ꣡हो꣢ऽ᳐३वा꣢। हा꣡र्द्दा꣢꣯वे꣡꣯ना। तो꣢꣯अ꣡भ्यच꣢क्षतत्वौ꣯॥ हो꣯इ। इया꣯हा꣯उ। औ꣯हौ꣡हो꣢ऽ᳐३वा꣢। हा꣡इर꣢ण्य꣡पा। क्षं꣢व꣡रुण꣢स्यदू꣯तम्॥ औ꣯हो꣯इ। इया꣯हा꣯उ। औ꣯हौ꣡हो꣢ऽ᳐३वा꣢॥ या꣡म꣢स्य꣡यो। नौ꣢꣯श꣡कुनं꣢भुरण्युम्। औ꣯हो꣯इ। इया꣯हा꣯उ। औ꣯हौ꣡ हो꣢ऽ᳐३वा꣢ऽ᳐३। हा꣢उवाऽ३॥ ईऽ२३꣡४꣡५꣡॥ दी-३१। प-२५। मा-१६॥ ३ (ङ्रू) १४४॥
८७-१। माधुच्छन्दसम्॥ मधुछन्दा गायत्रीन्द्रः॥सु꣢रू꣯पकृत्नु꣡मू꣢꣯त꣡ये꣢꣯सुदु꣡घा꣢꣯मा꣡॥ व꣢गोऽ᳒२᳒। दु꣡ह꣢याऽ३१उवाऽ२३। ईऽ२३४ डा꣥। सू꣣ऽ२३४वाः꣥॥ जु꣢हू꣡꣯माऽ२३सी꣢॥ द्य꣡विद्यवि꣢याऽ३१उवाऽ२३॥ ज्योऽ२३४ तीः꣥॥
८८-१। वसिष्ठ शफौ द्वौ॥ वसिष्ठस्त्रिष्टुप्सोम धातृविष्णवः॥
हा꣡उप्राथाः꣢॥ च꣡यस्यसप्रथः। च꣢नाऽ᳒२᳒। माऽ३उवा꣢ऽ३। ई꣢꣯हा꣯।(त्रिः)। हु꣡वाइ। ओ꣣ऽ२३४वा꣥। ई꣣ऽ२३४डा꣥। आ꣡꣯नुष्टु꣢भस्यहवि꣡षः꣢। ह꣡वाऽ᳒२᳒इः। याऽ३ उवा꣢ऽ३। ई꣢꣯हा꣯।(त्रिः)। हु꣡वाइ। ओ꣣ऽ२३४वा꣥। ई꣣ऽ२३४डा꣥॥ धा꣢꣯तु꣡र्द्युता꣯ना꣢꣯ त्सवितुः꣡। च꣢वाऽ᳒२᳒इ। ष्णाऽ३उवा꣢ऽ३। ई꣢꣯हा꣯।(त्रिः)। हु꣡वाइ। ओ꣣ऽ२३४वा꣥। ई꣣ऽ२३४डा꣥॥ र꣢थन्तर꣡मा꣯जभा꣢꣯रा꣯। व꣡साऽ᳒२᳒इ। ष्ठाऽ३उवा꣢ऽ३। ई꣢꣯हा꣯।(त्रिः)। हु꣡वाइ। ओ꣣ऽ२३४वा꣥। ई꣣ऽ२३४डा꣥॥ ए꣢ऽ᳐३। द्यु꣡त्॥
८८-२।
प्रा꣡थाः꣢॥ च꣡यस्यसप्रथः। च꣢नाऽ᳒२᳒। माऽ३१उवाऽ२३। ई꣢꣯डा꣯।(त्रिः)। हो꣡इ। हो। वा꣢꣯हाऽ३१उवाऽ२३। ईऽ२३४हा꣥। आ꣡꣯नुष्टु꣢भस्यहवि꣡षः꣢। ह꣡वाऽ᳒२᳒इः। याऽ३१उवाऽ२३। ई꣢꣯डा꣯।(त्रिः)। हो꣡इ। हो। वा꣢꣯हाऽ३१उवाऽ२३। ईऽ२३४हा꣥॥ धा꣢꣯तु꣡र्द्युता꣯ना꣢꣯त्सवितुः꣡। च꣢वाऽ᳒२᳒इ। ष्णाऽ३१उवाऽ२३। ई꣢꣯डा꣯।(त्रिः)। हो꣡इ। हो। वा꣢꣯हाऽ३१उवाऽ२३। ईऽ२३४हा꣥॥ र꣢थन्तर꣡मा꣯जभा꣢꣯रा꣯। व꣡साऽ᳒२᳒इ। ष्ठाऽ३१उवा ऽ२३। ई꣢꣯डा꣯।(त्रिः)। हो꣡इ। हो। वा꣢꣯हाऽ३१उवाऽ२३। ईऽ२३४हा꣥। ए꣢ऽ᳐३॥ द्यु꣡ता꣣ऽ२३꣡४꣡५ः꣡॥
८९-१। शुक्रसाम॥ प्रजापतिर्गायत्री वायुः॥
हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। शुक्र꣡म्।(त्रिः)। शु꣢क्रꣳ꣡शुक्र꣢म्।(त्रिः)। शु꣣क्रꣳ꣢शू꣡क्र꣢म्। (त्रिः)। नियुत्वा꣯न्वा꣯यऽ᳐३वा꣡गा꣢ऽ१हीऽ᳒२᳒॥ अयꣳशुक्रो꣯अऽ᳐३या꣡मा꣢ऽ१इताऽ᳒२᳒इ॥ गन्ता꣯सिसुन्वऽ३तो꣡गॄ꣢ऽ१हाऽ२३म्॥ हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। शुक्र꣡म्।(त्रिः)। शु꣢क्रꣳ꣡ शुक्र꣢म्।(त्रिः)। शु꣣क्रꣳ꣢शू꣡क्र꣢म्।(द्विः)। शु꣣क्र꣢म्। शू꣡ऽ२᳐। क्रा꣣ऽ२३४। औ꣥꣯हो꣯वा॥ ए꣢꣯॥ शुक्र꣡म्॥(द्वे-त्रिः)॥ दी-१५। प-३२। मा-३१॥ ७ (फ) १४८॥
९०-१। चन्द्रसाम॥ प्रजापतिर्गायत्रीत्वष्टाचन्द्रः॥
हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। चन्द्र꣡म्।(त्रिः)। च꣢न्द्र꣡ञ्चन्द्र꣢म्।(त्रिः)। च꣣न्द्र꣢ञ्चा꣡न्द्र꣢म्। (त्रिः)। अत्रा꣯हगो꣯रऽ३मा꣡न्वा꣢ऽ१ताऽ᳒२᳒॥ ना꣯मत्वष्टुरऽ३पा꣡इचा꣢ऽ१याऽ᳒२᳒म्। इत्था꣯ चन्द्रमऽ३सो꣡गॄ꣢ऽ१हाऽ२३इ॥ हा꣢꣯उहा꣯उहा꣯उ। चन्द्र꣡म्।(त्रिः)। च꣢न्द्र꣡ञ्चन्द्र꣢म्। (त्रिः)। च꣣न्द्र꣢ञ्चा꣡न्द्र꣢म्।(द्विः)। च꣣न्द्र꣢म्। चा꣡ऽ२᳐। द्रा꣣ऽ२३४। औ꣥꣯हो꣯वा॥ ए꣢꣯। चन्द्र꣡म्॥(द्वे-त्रिः)॥
[[अथ सप्तमः खण्डः]] ९१-१। वायोः स्वरसामानि षट्॥ वायुरनुष्टुबिन्द्रः॥
ए꣢꣯यज्जा꣯यथाः॥ अपू꣯र्वि꣡या। हा꣢उ। मघव꣡न्वॄ। हा꣢उ। त्रहत्या꣡꣯या। हा꣢उ। तत्पृथि꣡वीम्। हा꣢उ। अप्रथ꣡याः। हा꣢उ। ए꣯औ꣯हो꣯वा꣯दि꣡शाः꣢॥ तदस्त꣡भ्नाः। हा꣢उ॥ उतो꣯दि꣡वाम्। हा꣢उ। ए꣯औ꣯हो꣯वाऽ᳐३॥ अ꣡स्(स्थि)पयाऽ२३꣡४꣡५ः꣡॥
९१-२। द्वितीयं स्वरसाम॥
ए꣢꣯हा꣯उयज्जा꣯यथाः॥ अपू꣯र्वि꣡या। होइ।(त्रिः)। हा꣢उहाउहाउ। मघव꣡न्वॄ। होइ।(त्रिः)। हा꣢उहाउहाउ॥ त्रहत्या꣡꣯या। होइ।(त्रिः)। हा꣢उहाउहाउ। तत्पृ थि꣡वीम्। होइ।(त्रिः)। हा꣢उहाउहाउ। अप्रथ꣡याः। होइ।(त्रिः)। हा꣢उहाउहाउ। ए꣯औ꣯हो꣯वा꣯दी꣡शाः꣢॥ तदस्त꣡भ्नाः। होइ।(त्रिः)। हा꣢उहाउहाउ॥ उतो꣯दि꣡वाम्। होइ।(त्रिः)। हा꣢उहाउहाउ। ए꣯औ꣯हो꣯वाऽ᳐३॥ ह꣡स्(स्थि)पयाऽ२३꣡४꣡५ः꣡॥ दी-१३। प-३९। मा-५३॥ १० (ढि) १५१॥
९१-३। तृतीयं स्वरसाम॥
ए꣢꣯हा꣯उ। औ꣡꣯होऽ᳒२᳒। यज्जा꣯यथाऽ३ः। अ꣢पू꣯र्विया॥ हो꣡ववाऽ२३हो꣡इ। मा। घवन्वृत्रहत्या꣯या। होववाऽ२३हो꣡इ। तात्। पृथिवी꣯मप्राथयाः। होववाऽ२३ हो꣡इ। ए꣢꣯औ꣯हो꣯वा꣯दी꣡शाः꣢॥ हो꣡ववाऽ२३हो꣡इ। तात्। अस्तभ्ना꣯उतो꣯दिवाम्। होव वाऽ२३हो꣡इ। ए꣢꣯औ꣯हो꣯वाऽ३॥ ह꣡स्(स्थि)इडा꣯पयाऽ२३꣡४꣡५ः꣡॥
९१-४। चतुर्थं स्वरसाम॥
या꣡ज्जा꣢या꣡ज्जा꣢॥ य꣡था꣯अपू꣯र्वियाऔ꣢ऽ᳐३हो꣢। हाऽ᳒२᳒इ꣡या। औ꣢ऽ᳐३हो꣢। मा꣡घवन्वृत्रहत्या꣯याऔ꣢ऽ᳐३हो꣢। हाऽ᳒२᳒इ꣡या। औ꣢ऽ᳐३हो꣢॥ ता꣡त्पृथिवी꣯मप्राथया औ꣢ऽ᳐३हो꣢। हाऽ᳒२᳒इ꣡या। औ꣢ऽ᳐३हो꣢॥ ता꣡दस्तभ्ना꣯उतो꣯दिवामौ꣢ऽ᳐३हो꣢। हाऽ᳒२᳒इ꣡या। औ꣢ऽ᳐३हो꣯वा꣯हा꣢उवाऽ३। ए꣢ऽ᳐३। प꣡याऽ२३꣡४꣡५ः꣡॥ दी-८। प-१५। मा-११॥ १२ (ण) १५३॥
९१-५। पञ्चमं स्वरसाम॥
हु꣢वौ꣡꣯हो꣢ऽ१इ।(त्रिः)। य꣢ज्जा꣡य꣢थाः꣡। अ꣢पू꣡र्वि꣢या꣡॥ म꣢घ꣡व꣢न्वॄ꣡। त्र꣢ह꣡त्या꣢꣯या꣡॥ त꣢त्पॄ꣡थि꣢वी꣡म्। अ꣢प्रा꣡थ꣢याः꣡॥ त꣢द꣡स्त꣢भ्नाः꣡। उ꣢तो꣡दि꣢वा꣡म्॥ हु꣢वौ꣡꣯हो꣢ऽ१इ।(द्विः)। हु꣢वौ꣡꣯हो꣢ऽ१२꣮। उहुवाऽ᳐३हा꣢उ। वाऽ३॥ ह꣡स्॥ दी-७। प-१७। मा-१२॥ १३ (छा) १५४॥
९२-१। षष्ठं स्वरसाम॥
यो꣢꣯रयिंवो꣯राऽ३यि꣢न्तमाः॥ योद्युम्ना꣣ऽ२३४इर्द्यू꣥। म्ना꣢꣯व꣡त्तमाऽ२३ः। सो꣢मा᳐स्सू꣣ऽ२३४ताः꣥। सा꣢꣯इ꣡न्द्रताये꣢ऽ᳐३॥ अ꣢स्ति᳐स्वा꣣ऽ२३४धा꣥॥ प꣣ते꣢ऽ᳐३। मा꣡ऽ२३४दाः। उ꣥हुवाऽ६हा꣥उ। वा॥ अ꣡स्॥ दी-४। प-११। मा-८॥ १४ (तै) १५५॥
१। विष्णोस्त्रीणि स्वरीयांसि, पञ्चानुगानम्॥ पञ्चानां वायुरनुष्टुबिन्द्रः॥
हा꣡꣯उहो꣯हाइ।(त्रिः)। अ꣢न्त꣡रिक्षꣳ꣢सु꣡वर्द्दिवंज꣢ग। न्मा꣡।(द्वे-त्रिः)। परा꣯त्पर मै꣯रय꣢। ता꣡।(द्वे-द्विः)।परा꣯त्परमै꣯रय꣢। त। औ꣡꣯होवा꣣꣯हा꣢उ। वा॥ ए꣯। यज्ञो꣡꣯दि꣢वो꣡꣯मू꣢꣯र्द्धा꣡꣯दे꣯व꣢मा꣡꣯दनो꣢꣯घर्मो꣡꣯
२।
हा꣡꣯उहो꣯हाइ।(त्रिः)। अ꣢न्त꣡रिक्षꣳ꣢सु꣡वर्द्दिवंज꣢ग। न्मा꣡।(द्वे-त्रिः)। परा꣯त्पर मै꣯रय꣢। ता꣡।(द्वे-द्विः)। परा꣯त्परमै꣯रय꣢। त। औ꣡꣯होवा꣣꣯हा꣢उ। वा। ए꣯। पृथिव्य꣡ न्तरिक्ष꣢न्द्यौ꣡꣯रा꣯पᳲक꣢निक्रदा꣡꣯त्सिन्धु꣢रा꣡꣯पो꣯म꣢रु꣡तो꣯मा꣢꣯दयन्तां꣯घर्मो꣡꣯ज्यो꣯तिः॥
३।
हा꣡꣯उहो꣯हाइ।(त्रिः)। अ꣢न्त꣡रिक्षꣳ꣢सु꣡वर्द्दिवंज꣢ग। न्मा꣡।(द्वे-त्रिः)। परा꣯त्पर मै꣯रय꣢। ता꣡।(द्वे-त्रिः)। दि꣢वो꣡꣯मू꣯र्द्धा꣯नꣳसमै꣯र꣢यन्। हो꣡ये꣢ऽ᳐३। होऽ२३४वा꣥॥ य꣡शो꣯ घ꣢र्मो꣡꣯ज्यो꣯तिः। यशस्समै꣯र꣢यन्। हो꣡ये꣢ऽ᳐३। होऽ२३४वा꣥॥ ते꣡꣯जो꣯घ꣢र्मो꣡꣯ज्यो꣯तिः। ते꣯जस्समै꣯र꣢यन्। हो꣡ये꣢ऽ᳐३। होऽ२३४वा꣥॥ सु꣡वर्घ꣢र्मो꣡꣯ज्यो꣯तिः। सुवस्समै꣯र꣢यन्। हो꣡ये꣢ऽ᳐३। होऽ२३४वा꣥॥ ज्यो꣡꣯तिर्घ꣢र्मो꣡꣯ज्यो꣯तिः। ज्यो꣯तिस्समै꣯र꣢यन्। हो꣡ये꣢ऽ᳐३। होऽ२३४५वाऽ६५६॥ घ꣢र्म्मो꣡घ꣢र्म्मो꣡꣯ज्यो꣯तिः॥ दी-३९। प-३५। मा-१६॥ १७ (ङु) १५८॥
४।
हा꣡꣯उहो꣯हाइ।(त्रिः)। अ꣢न्त꣡रिक्षꣳ꣢सु꣡वर्द्दिवंज꣢ग। न्मा꣡।(द्वे-त्रिः)। परा꣯त्पर मै꣯रय꣢। ता꣡।(द्वे-द्विः)। परा꣯त्परमै꣯रय꣢। त। औ꣡꣯होवा꣣꣯हा꣢उ। वा॥ ए꣯। इ꣡डां꣯य꣢च्छह꣡स्कृतिं꣢यच्छ। ए꣯। म꣡न꣢ओ꣡꣯जो꣯य꣢च्छ। ए꣯। म꣡नो꣯म꣢हिमा꣡꣯नंय꣢च्छ। ए꣯। य꣡शस्स्त्विषिंय꣢च्छ। ए꣯। प्रजां꣡꣯वर्च्चो꣯य꣢च्छ। ए꣯। पशू꣡꣯न्विशंय꣢च्छ। ए꣯। ब्र꣡ह्म क्ष꣢त्रं꣡यच्छ꣢। ए꣯। स्व꣡र्ज्यो꣯तिर्य꣢च्छ॥
९३-१।
हा꣡꣯उहो꣯हाइ।(त्रिः)। अ꣢न्त꣡रिक्षं꣢सु꣡वर्द्दिवंज꣢ग। न्मा꣡।(द्वे-त्रिः)। परा꣯त्पर मै꣯रय꣢। ता꣡।(द्वे-त्रिः)। य꣢ज्जा꣯यथा꣯अपू꣯र्वा꣡या꣢॥ मघवन्वृत्रहत्या꣡या꣢॥ तत्पृथि वी꣯मप्रा꣯था꣡याः꣢॥
१। द्व्यनुगानम्॥ विष्णुर्वायुरनुष्टुबिन्द्रः॥
हा꣡꣯उहो꣯वा।(त्रिः)। परा꣯त्परमै꣯रय꣢। ता꣡।(द्वे-द्विः)। परा꣯त्परमै꣯रय꣢। त। औ꣡꣯होवा꣣꣯हा꣢उ। वा॥ इ꣡न्द्रो꣯धे꣢꣯नुः꣡।(त्रिः)। आ꣯पो꣯धे꣢꣯नुः꣡।(त्रिः)। भू꣯मिर्धे꣢꣯नुः꣡।(त्रिः)। अ꣢न्त꣡रिक्ष꣢न्धे꣯नु꣡।(त्रिः)। द्यौ꣯र्धे꣢꣯नुः꣡।(त्रिः)। परन्धे꣢꣯नु꣡।(त्रिः)। व्र꣢त꣡न्धे꣢꣯नु꣡।(त्रिः)। स꣢त्य꣡न्धे꣢꣯नु꣡।(त्रिः)। ऋतंधे꣢꣯नु꣡।(त्रिः)। इडा꣯धे꣢꣯नुः꣡।(त्रिः)। स्वर्धे꣢꣯नुः꣡।(त्रिः)। ज्यो꣯तिर्धे꣢꣯नुः꣡॥(त्रिः)॥
९४-१।
हा꣡꣯उहो꣯वा।(त्रिः)। परा꣯त्परमै꣯रय꣢। ता꣡।(द्वे-त्रिः)। य꣢ज्जा꣡꣯यथाः꣢꣯। अपू꣡꣯ र्विया꣢। अपू꣡꣯र्विया꣢ऽ᳐३। आ꣡पू꣢᳐र्वा꣣ऽ२३४या꣥॥ म꣡घव꣢न्वृ। त्रह꣡त्या꣯या꣢। त्रह꣡ त्या꣯या꣢ऽ᳐३। त्रा꣡ह꣢᳐त्या꣣ऽ२३४या꣥। त꣡त्पृथि꣢वी꣡꣯म्। अप्राथयाः꣢। अ꣡प्राथया꣢ऽ᳐३ः। आ꣡प्रा꣢᳐था꣣ऽ२३४याः꣥॥ त꣡दस्त꣢भ्नाः꣯। उतो꣡꣯दिवा꣢म्। उतो꣡꣯दिवा꣢ऽ᳐३म्। ऊ꣡तो꣢᳐ दा꣣ऽ२३४इवा꣥म्। हा꣡꣯उहो꣯वा।(त्रिः)। परा꣯त्परमै꣯रय꣢। ता꣡।(द्वे-द्विः)। परा꣯त्पर मै꣯रय꣢। त। औ꣡꣯होवा꣣꣯हा꣢उ। वा॥ ए꣯। ते꣡꣯जो꣯घ꣢र्म꣡स्संक्री꣯ड꣢न्ते꣯꣯वा꣯यु꣡गो꣯पा꣢꣯स्ते꣡꣯ज स्व꣢ती꣯र्मरु꣡द्भि꣢र्भु꣡वना꣢꣯निचक्रदुः॥
१। चतुरनुगानम्॥ विष्णुर्वायुरनुष्टुबिन्द्रः॥
हाऽ᳒२᳒ऊ꣡वाक्।(त्रिः)। होवा꣢।(द्विः)। हो꣡वा꣢ऽ᳐३। हा꣢उवा। ए꣯। तो꣯कं꣡प्र꣢जा꣡꣯ङ्गर्भो꣯नो꣢꣯
२।
हाऽ᳒२᳒ऊ꣡वाक्।(त्रिः)। होवा꣢।(त्रिः)। अयꣳ꣡सशिङ्क्ते꣢ऽ३। हो꣡इ। यस्मा꣢꣯ द्या꣡꣯वा꣯पृ꣢थिवी꣡꣯भुवना꣢꣯निचक्रदुः꣡। होइ। अ꣢यꣳ꣡सशिङ्क्ते꣢ऽ३। हो꣡इ। यस्मा꣢꣯दा꣡꣯प꣢ ओ꣡꣯षध꣢यो꣯भु꣡वना꣢꣯निचक्रदुः꣡। होइ॥ अ꣢यꣳ꣡सशिङ्क्ते꣢ऽ३। हो꣡इ। यस्मा꣯त्स꣢मु द्रि꣡या꣯भुवना꣢꣯निचक्रदुः꣡। होइ। अ꣢यꣳ꣡सशिङ्क्ते꣢ऽ३। हो꣡इ। यस्मा꣢꣯द्वि꣡श्वा꣯भू꣢꣯ता꣡꣯ भुवना꣢꣯निचक्रदुः꣡। होइ। हाऽ᳒२᳒ऊ꣡वाक्।(त्रिः)। होवा꣢।(द्विः)। हो꣡वा꣢ऽ᳐३। हा꣢उवा॥ ए꣯। आ꣡पः꣢। आ꣡पः꣢। आ꣡पा꣣ऽ२३꣡४꣡५ः꣡॥ दी-१९। प-३३। मा-२९॥ २३ (दो) १६४॥१।
हाऽ᳒२᳒ऊ꣡वाक्।(त्रिः)। होवा꣢।(त्रिः)। ये꣯भिर्विया। श्व꣣मै꣢꣯रा꣡याऽ᳒२ः᳒॥ ते꣯भिर्विया। श्नु꣣ही꣢꣯मा꣡दाऽ᳒२᳒म्॥ ये꣯भिर्भू꣯ताम्। स꣣ह꣢स्सा꣡हाऽ᳒२ः᳒॥ ते꣯भिस्ते꣡꣯ज꣢ आ꣡꣯पः꣢। आ꣡꣯पाऽ᳒२᳒। ये꣯भिर्व्य꣡न्तरिक्ष꣢मै꣡꣯रया꣢ऽ३ः। हा꣢उवा॥ ए꣯। आ꣡पः꣢। आ꣡पः꣢। आ꣡पा꣣ऽ२३꣡४꣡५ः꣡॥
९५-१।
हाऽ᳒२᳒ऊ꣡वाक्।(त्रिः)। होवा꣢।(त्रिः)। य꣡ज्जा꣯यथा꣯अपूहोऽ᳒२᳒। र्वा꣡याऽ᳒२᳒। म꣡घवन्वृत्रहाहोऽ᳒२᳒। त्या꣡याऽ᳒२᳒॥ त꣡त्पृथिवी꣯मप्राहोऽ᳒२᳒। था꣡याऽ᳒२ः᳒॥ त꣡दस्त भ्ना꣯उतोहोऽ᳒२᳒इ। दा꣡इवाऽ᳒२᳒म्। हाऽ᳒२᳒ऊ꣡वाक्।(त्रिः)। होवा꣢।(द्विः)। हो꣡वा꣢ऽ᳐३। हा꣢उवा॥ ए꣯। ते꣡꣯जो꣯घ꣢र्म꣡स्संक्री꣯ड꣢न्ते꣯शि꣡शुम꣢ती꣯र्वा꣯यु꣡गो꣯पा꣢꣯स्ते꣡꣯जस्व꣢ती꣯र्मरु꣡द्भि꣢ र्भु꣡वना꣢꣯निचक्रदू꣣ऽ२३꣡४꣡५ः꣡॥