१६ २

[[अथ षोडशप्रपाठके द्वितीयोऽर्धः]]

[[अथ नवमः खण्डः]]

10_0554 अभि प्रियाणि - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

५५४-१। कावम्॥ (कुत्सो)। कविः जगती सोमसूर्यौ॥

आ꣢भि᳐प्री꣣ऽ२३४या꣥। णी꣢पा᳐वा꣣ऽ२३४ता꣥इ। चा꣢꣯नो꣡꣯हिताऽ२३ः॥ ना꣢मा᳐नी꣣ ऽ२३४या꣥। ह्वो꣢अ᳐धी꣣ऽ२३४ये꣥। षू꣢꣯व꣡र्द्धताये꣢ऽ३॥ आ꣢सू᳐री꣣ऽ२३४या꣥। स्या꣢बॄ᳐हा꣣ ऽ२३४ताः꣥। बॄ꣢꣯ह꣡न्नधाये꣢ऽ३॥ रा꣢थं᳐वा꣣ऽ२३४इश्वा꣥। चा꣢मा᳐रू꣣ऽ२३४हा꣥त्। वि꣢चा᳐ ऽ३१उवाऽ२३॥ क्षाऽ२३४णाः꣥॥ दी-४। प-१३। मा-८॥ १ (दै) १०८९॥

10_0554 अभि प्रियाणि - 02 ...{Loading}...
लिखितम्

५५४-२। ऐडंकावम्॥ कविर्जगती सोमसूर्यौ॥

ए꣤ऽ५। अ꣤भिप्रि꣥याऽ२᳐। णि꣣प꣤वता꣥इ। ए꣤ऽ५। च꣤नो꣯हि꣥ताः॥ ए꣤ऽ५। ना꣤꣯मा꣯नि꣥याऽ२᳐। ह्वो꣣꣯अ꣤धिया꣥इ। ए꣤ऽ५। षु꣤वर्द्ध꣥ताइ॥ ए꣤ऽ५। आ꣤꣯सू꣯रि꣥याऽ२᳐। स्य꣣बृ꣤हताः꣥। ए꣤ऽ५। बृ꣤हन्न꣥धी॥ ए꣤ऽ५। र꣤थंवि꣥श्वाऽ२᳐। च꣣म꣤रुहा꣥त्। ए꣤ऽ५। वि꣤चक्ष꣥णाः। हो꣤ऽ५इ॥ डा॥

10_0554 अभि प्रियाणि - 03 ...{Loading}...
लिखितम्

५५४-३। वाजसनि॥ वाजसनिः जगती सोमसूर्यौ॥

अ꣥भ्यौ꣯हो꣯वा꣯हा꣯इप्रिया꣤णी꣥॥ प꣡वता꣢इ᳐चा꣣ऽ२३४नो꣥। हि꣢ताः꣡। ना꣢꣯मा꣡नि꣢यह्वो꣯ अधिये꣯षुवर्द्धता꣡इ॥ आ꣢꣯सू꣡र्य꣢स्यबृहतो꣯बृहन्नधा꣡इ॥ र꣢थ꣡म्। वाइश्व꣢ञ्चमरु꣡ह꣢त्। विचाऽ३᳐१उवाऽ२३॥ क्षा꣢ऽ᳐३णा꣡ऽ२३꣡४꣡५ः꣡॥

10_0554 अभि प्रियाणि - 04 ...{Loading}...
लिखितम्

५५४-४। वाजजिनी द्वे॥ द्वयोर्वाजजित् (प्रजापतिः) जगती सोमसूर्यौ॥

अ꣢भिप्रि꣡या। णी꣢꣯प꣡वताइ। होइहोवा꣢ऽ᳐३हो꣡ये꣢ऽ३४। चनो꣥꣯हिताः꣤। हा꣥꣯हो꣤। वाहा꣥इ॥ ना꣢꣯मा꣯नि꣡या। ह्वो꣢꣯अ꣡धियाइ। होइहोवा꣢ऽ᳐३हो꣡ये꣢ऽ३४। षुव꣥र्द्धता꣤इ। हा꣥꣯हो꣤। वाहा꣥इ॥ आ꣢꣯सू꣯रि꣡या। स्या꣢꣯बृ꣡हताः। होइहोवा꣢ऽ᳐३हो꣡ये꣢ऽ३४। बृह꣥न्नधी꣤। हा꣥꣯हो꣤। वाहा꣥इ॥ र꣢थंवि꣡श्वा। चा꣢꣯म꣡रुहात्। होइहोवा꣢ऽ᳐३हो꣡ये꣢ऽ३४। विच꣥क्षणाः꣤। हा꣥꣯हो꣤। वा꣥ऽ६हा꣥उ। वा॥ वा꣢꣯जी꣡꣯जिगी꣢ऽ३वाꣳ꣢ऽ१॥ दी-१५। प-२६। मा-१६॥ ४ (पू) १०९२॥

10_0554 अभि प्रियाणि - 05 ...{Loading}...
लिखितम्

५५४-५।

अ꣢भिप्रि꣡या। णी꣢꣯प꣡वताइ। चा꣢꣯नो꣡꣯हिताः। होवा꣢ऽ᳐३हो꣡इ॥ ना꣢꣯मा꣯नि꣡या। ह्वो꣢꣯अ꣡धियाइ। षू꣢꣯व꣡र्द्धताइ। होवा꣢ऽ᳐३हो꣡इ॥ आ꣢꣯सू꣯रि꣡या। स्या꣢꣯बृ꣡हताः। बॄ꣢꣯ह꣡ न्नधाइ। होवा꣢ऽ᳐३हो꣡॥ र꣢थंवि꣡श्वा। चा꣢꣯म꣡रुहात्। वी꣢꣯च꣡क्षणाः। होवा꣢ऽ३हो꣡ऽ२᳐। वा꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा॥ वा꣢꣯जी꣡꣯जिगी꣢꣯वा꣡꣯विश्वा꣢꣯ध꣡ना꣰꣯ऽ२नी꣣ऽ२३꣡४꣡५꣡॥

10_0554 अभि प्रियाणि - 06 ...{Loading}...
लिखितम्

५५४-६। स्वारंकावम्॥ कविः प्रजापतिर्जगती सोमसूर्यौ॥

अ꣥भ्यो꣤वा॥ प्रि꣢या꣡꣯णिपवताइ। च꣢नो꣯हा꣡इताऽ᳒२ः᳒। ना꣡꣯मा꣯नियह्वो꣯अधियाइ। षु꣢वर्द्धा꣡ताऽ᳒२᳒इ। आ꣡꣯सू꣯र्यस्यबृहतो। बृ꣢हन्ना꣡धीऽ२३॥ रा꣡था꣢ऽ᳐३म्वा꣤इश्वा꣥। च꣢मरू꣡हाऽ२३त्। वा꣡इचा꣢ऽ᳐३क्षा꣤ऽ५णा"ऽ६५६ः॥ दी-७। प-१०। मा-१०॥ ६ (ञौ) १०९४॥

11_0555 अचोदसो नो - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

५५५-१। उद्वद्भार्गवम्॥ भृगुर्जगती सोमो देवाश्च॥

अ꣢चो꣯दा꣡सोऽ२३। नो꣢꣯धनू꣡वाऽ२३। तू꣢꣯इ꣡न्दवाः॥ प्र꣢स्वा꣯ना꣡सोऽ२३। बृ꣢हद्दा꣡इवेऽ२३। षू꣢꣯ह꣡रयाः॥ वि꣢चिदा꣡श्नाऽ२३। ना꣢꣯इषा꣡याऽ२३ः। आ꣢꣯रा꣡꣯तयाः॥ अ꣢र्यो꣯ना꣡स्साऽ२३। तू꣢꣯सना꣡इषाऽ२३। तू꣢꣯नो꣡꣯धिया꣢ऽ३१उ"वाऽ२३꣡४꣡५꣡॥

11_0555 अचोदसो नो - 02 ...{Loading}...
लिखितम्

५५५-२। आङ्गिरसे द्वे॥ द्वयोः अङ्गिरसो जगती सोमो देवाश्च॥

आ꣡चो꣢꣯द꣣सो꣢। नो꣣꣯ध꣤नुवन्तु꣥। इ꣤न्दवाः꣥॥ प्रा꣡स्वा꣢꣯ना꣣꣯सो꣢᳐॥ बृ꣣ह꣤द्दे꣯वे꣯षु꣥। ह꣤रयाः꣥। वा꣡इचि꣢द꣣श्ना꣢᳐। ना꣣꣯इ꣤षयो꣯अ꣥। रा꣤꣯तयाः꣥॥ आ꣡र्यो꣢꣯न꣣स्सा꣢᳐। तु꣣स꣤निष꣥। तु꣤नो ऽ५धियाउ॥ वा॥

11_0555 अचोदसो नो - 03 ...{Loading}...
लिखितम्

५५५-३।

हा꣢꣯उहो꣯वा᳐ऽ३हा꣢इ। अचो꣯दसो꣯नो꣯ऽ३धा꣡। नु꣢वाऽ᳐३न्तू꣤ऽ३। इ꣢न्दवा꣣ ऽ२३꣡४꣡५ः꣡॥ हा꣢꣯उहो꣯वाऽ᳐३हा꣢इ। प्रस्वा꣯ना꣯सो꣯बॄऽ᳐३हा꣡त्। दे꣢꣯वेऽ᳐३षू꣤ऽ३। ह꣢र᳐या꣣ ऽ२३꣡४꣡५ः꣡॥ हा꣢꣯उहो꣯वाऽ᳐३हा꣢इ। विचिदश्ना꣯ना꣯ऽ३आ꣡इ। ष꣢योऽ᳐३आ꣤ऽ३। रा꣢꣯तया꣣ ऽ२३꣡४꣡५ः꣡॥ हा꣢꣯उहो꣯वाऽ᳐३हा꣢इ। अर्यो꣯नस्सन्तुऽ᳐३सा꣡। नि꣢षाऽ᳐३न्तू꣤ऽ३। नो꣢꣯धियाऽ᳐३२उवाऽ३꣡४꣡५꣡॥

11_0555 अचोदसो नो - 04 ...{Loading}...
लिखितम्

५५५-४। सामराजे द्वे॥ सामराजो जगती सोमो देवाश्च॥

अ꣥चो꣤हाइ॥ दा꣡सो꣯नो꣯धनुवा। तु꣢इन्दा꣡वाऽ᳒२ः᳒। प्र꣡स्वा꣯ना꣯꣯सो꣯बृहद्दे꣯वाइ। षु꣢हरा꣡याऽ२ः᳐। वि꣣चोऽ२३४हा꣥इ। अ꣣श्नोऽ२३४हा꣥इ। ना꣢꣯इषयः। अ꣣रोऽ२३४हा꣥इ। ता꣡याः꣢॥ अर्यो꣣ऽ२३४हा꣥इ। न꣣स्सोऽ२३४हा꣥॥ तू꣢सा᳐नी꣣ऽ२३४षा꣥। तू꣡ना꣭ऽ३ उवा꣢ऽ᳐३॥ धीऽ२३४याः꣥॥ दी-७। प-१५। मा-१४॥ १० (ञी) १०९८॥

11_0555 अचोदसो नो - 05 ...{Loading}...
लिखितम्

५५५-५। स्वार सामराजम्॥

अ꣥चौ꣯हो꣤वा꣥॥ दा꣡सो꣯नो꣯धनुवा। तु꣢इन्दा꣡वाऽ᳒२ः᳒। प्र꣡स्वा꣯ना꣯सो꣯बृहद्दे꣯वाइ। षु꣢꣢हरा꣡याऽ२३ः। वा꣡इची꣢ऽ३दा꣤श्ना꣥। ना꣢इषा꣣ऽ२३४याः꣥। हो꣢इ᳐। अ꣣रा꣢᳐ता꣣ऽ२३४ याः꣥॥ हो꣢ऽ३इ। आ꣡र्यो꣢ऽ३ना꣤स्सा꣥॥ तू꣢सा᳐नी꣣ऽ२३४षा꣥। हो꣢। तु꣣नो꣢ऽ᳐३धा꣤ऽ५" याऽ६५६ः॥

11_0555 अचोदसो नो - 06 ...{Loading}...
लिखितम्

५५५-६। सिमानान्निषेधः॥

अ꣥चो꣤। वाहा꣥इ॥ दा꣡सो꣯नो꣯धनुवा। तु꣢इन्दा꣡वाऽ᳒२ः᳒। प्रा꣡स्वा꣯ना꣯सो꣯ बृहद्दे꣯वाइ। षु꣢हरा꣡याऽ२३ः। वा꣡ऽ२३इची꣢त्। आ꣡ऽ२३श्ना꣢ऽ३४। ना꣣꣯इ꣤ष꣣यो꣤꣯अरा꣥꣯। ता꣢ऽ३याः꣢॥ आ꣡ऽ२३र्यो꣢॥ ना꣡ऽ२३स्सा꣢ऽ३४। तुस꣣नि꣤ष꣥। तु꣣नो꣢ऽ३धा꣤ऽ५ या"ऽ६५६ः॥

12_0556 एष प्र - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

५५६-१। वैधृतं वासिष्ठम्॥ वसिष्ठो जगती इन्द्रः॥

ए꣢꣯ष꣡प्रकोशेऽ᳒२᳒। म। धु꣡माꣳऽ२᳐। अ꣣चा꣢इ᳐क्रा꣣ऽ२३४दा꣥त्॥ इ꣢न्द्रा꣡स्य꣢ वा꣡ज्राऽ᳒२ः᳒। व। पु꣡षोऽ२᳐। व꣣पु꣢ष्टा꣣ऽ२३४माः꣥। अ꣢भा꣡ऋ꣢ता꣡स्याऽ᳒२᳒। सु। दु꣡घाऽ२ः᳐। घृ꣣ता꣢᳐श्चू꣣ऽ२३४ताः꣥। वा꣢꣯श्रा꣡꣯अ꣢र्षा꣡न्तीऽ᳒२᳒। प। य꣡साऽ२३। चधा꣢ऽ᳐३इना꣤ऽ५ वा"ऽ६५६ः॥

13_0557 प्रो अयासीदिन्दुरिन्द्रस्य - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

५५७-१। लौशे द्वे॥ द्वयोर्लुशो जगती इन्द्रसोमौ॥

प्रो꣢᳐या꣣ऽ२३४सी꣥त्। इ꣡न्दुरिन्द्राऽ२३। स्या꣤ऽ३नि꣢ष्कृ꣣त꣥म्। स꣣खा꣢꣯स꣣ख्युः꣥। न꣡प्रमिनाऽ२३। ती꣤ऽ३स꣢ङ्गि꣣र꣥म्। म꣣र्य꣢इ꣣व꣥। यु꣡वतिभाऽ२३इः। सा꣤ऽ३म꣢र्ष꣣ति꣥। सो꣣꣯मᳲ꣢क꣣ला꣥। शे꣡꣯शतयाऽ२३। मना꣢ऽ᳐३पा꣤ऽ५था"ऽ६५६॥ दी-७। प-१२। मा-७॥ १४ (ठे) ११०२॥

13_0557 प्रो अयासीदिन्दुरिन्द्रस्य - 02 ...{Loading}...
लिखितम्

५५७-२।

प्रो꣣꣯या꣤꣯सी꣯दि꣣न्दु꣤रि꣣न्द्र꣤स्य꣥निः। कृ꣣ता꣢म्। कृता꣣ऽ२३꣡४꣡५꣡म्॥ स꣣खा꣢ऽ३१२३४। सख्यु꣥र्न꣤प्रमि꣥ना꣯तिसम्। गि꣤रा꣥ङ्गि꣤रा꣥म्॥ म꣣र्या꣢ऽ३१२३४ः। इव꣥युवति꣤ भि꣥स्स꣤म꣥। ष꣤ता꣥इष꣤ता꣥इ॥ सो꣣꣯मा꣢ऽ३१२३४ः। कलशे꣥꣯शत꣤या꣥꣯। म꣣ना꣢ऽ᳐३पा꣤ऽ५ था"ऽ६५६॥

13_0557 प्रो अयासीदिन्दुरिन्द्रस्य - 03 ...{Loading}...
लिखितम्

५५७-३। प्रवद्भार्गवम्॥ भृगुः जगती इन्द्रसोमौ॥

प्रो꣢꣯अया꣡꣯साइत्। इ꣢न्दुरि꣡न्द्रा। स्याऽ᳒२᳒नि꣡ष्कृताम्॥ स꣢खा꣯स꣡ख्यूः। न꣢प्र꣡मिना। ताऽ᳒२᳒इस꣡ङ्गिराम्॥ म꣢र्यइ꣡वा। यु꣢वति꣡भाइः। साऽ᳒२᳒म꣡र्षताइ॥ सो꣢꣯मᳲक꣡ला। शे꣢꣯श꣡तया। माऽ᳒२᳒ना꣡꣯पथा꣢ऽ३१उ॥ वाऽ२३꣡४꣡५꣡॥ दी-६। प-१३। मा-१२॥ १६ (गा) ११०४॥

13_0557 प्रो अयासीदिन्दुरिन्द्रस्य - 04 ...{Loading}...
लिखितम्

५५७-४। तन्त्रम्॥ विरूपो जगती इन्द्रसोमौ॥

प्रो꣢꣯अया꣡꣯साइत्। इ꣢न्दुरि꣡न्द्रा। स्या꣢꣯नि꣡ष्कृताऽ२३म्॥ सखा꣢꣯स꣣ख्युः꣥। न꣣प्रा꣢᳐मि꣣ना꣥꣯। ति꣣स꣢ङ्गा꣣ऽ२३४इरा꣥म्॥ म꣢र्यइ꣡वा। यु꣢वति꣡भाइः। सा꣢꣯म꣡र्षताये꣢ऽ३॥ सो꣯मᳲ꣢क꣣ला꣥। शे꣣꣯शा꣢᳐त꣣या꣥꣯। म꣣ना꣢ऽ᳐३पा꣤ऽ५था"ऽ६५६॥ दी-९। प-१२। मा-१०॥ १७ (थौ) ११०५॥

13_0557 प्रो अयासीदिन्दुरिन्द्रस्य - 05 ...{Loading}...
लिखितम्

५५७-५। यामम्॥ यमो जगती इन्द्रसमौ॥

आ꣡ऽ᳒२᳒इ। इ꣡या। प्रो꣯अया꣯साइदि꣪न्दुरिन्द्राऽ२३। स्या꣤ऽ३नि꣢ष्कृ꣣त꣥म्॥ स꣡खा꣯सख्यूर्न꣪प्रमिनाऽ२३। ती꣤ऽ३स꣢ङ्गि꣣र꣥म्॥ म꣡र्यइवायु꣪वतिभाऽ२३इः। सा꣤ऽ३ म꣢र्ष꣣ति꣥॥ आ꣡ऽ᳒२᳒इ। इ꣡या। सो꣯मᳲकलाशे꣢ऽ१शतयाऽ२३। मना꣢ऽ᳐३पा꣤ऽ५ था"ऽ६५६॥

14_0558 धर्ता दिवः - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

५५८-१। दास(वात्स) शिरसी द्वे॥ द्वयोर्दसशिरा जगती सोमः॥

ध꣢र्ता꣡दाइवा꣢ऽ३। ओ꣤꣯वाऽ५ए॥ प꣢वते꣯कृत्विऽ३यो꣡रासा꣢ऽ३। ओ꣤꣯वाऽ५ए। द꣢क्षो꣡दाइवा꣢ऽ᳐३। ओ꣤꣯वाऽ५ए॥ ना꣢꣯मनुमा꣯दिऽ३यो꣡नॄभा꣢ऽ३। ओ꣤꣯वाऽ५ए॥ ह꣢रा꣡इस्सार्जा꣢ऽ३। ओ꣤꣯वाऽ५ए॥ नो꣢꣯अतियो꣯नऽ३सा꣡त्वाभा꣢ऽ३। ओ꣤꣯वाऽ५ए। वृ꣢था꣡पाजा꣢ऽ᳐३। ओ꣤꣯वाऽ५ए॥ सि꣢कृणुषाइनदा꣡इषूवा꣢ऽ३। ओ꣤꣯वाऽ५ए। हो꣤ऽ५इ॥ डा॥

14_0558 धर्ता दिवः - 02 ...{Loading}...
लिखितम्

५५८-२।

ध꣥र्ता꣯औ꣯हो꣤होहा꣥इ॥ दि꣢वः꣡। पवतेका꣢᳐। औ꣣꣯हो꣭ऽ३हा꣢ऽ᳐३। हा꣢। त्वियो꣡꣯रसो। दक्षो꣯देवा꣢᳐। औ꣣꣯हो꣭ऽ३हा꣢ऽ३। हा꣢। ना꣡꣯मनुमा। दि꣢यो꣡꣯नृभाइः। हराइस्सार्जा꣢᳐॥ औ꣣꣯हो꣭ऽ३हा꣢ऽ३। हा꣢। नो꣡꣯अतियो। न꣢स꣡त्वभाइः॥ वृथा꣯पाजा꣢᳐। औ꣣꣯हो꣭ऽ३हा꣢ऽ३। हा꣢॥ सिकृणू꣡षा꣢। औ꣣꣯हो꣭ऽ३हा꣢ऽ᳐३। हा꣢इ᳐। न꣣दी꣯षु꣢वा꣡। औ꣢꣯हो꣭ऽ३हा꣢ऽ३। हा꣢ऽ३४। औ꣥꣯हो꣯वा॥ ए꣢ऽ᳐३। न꣢दी꣡꣯षुवा꣢ऽ१॥ दी-१८। प-२८। मा-१०॥ २० (डौ) ११०८॥

15_0559 वृषा मतीनाम् - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

५५९-१। यामानि त्रीणि॥ (ऐडयामम्) त्रयाणां यमो जगती सोमेन्द्रौ॥

वृ꣢षा꣯मा꣡तीऽ२३। ना꣢꣯म्पवा꣡ताऽ२३इ। ए꣢ऽ᳐३। वि꣢चक्षणए᳐ऽ३॥ सो꣢꣯मो꣯ आ꣡ह्नाऽ२३म्। प्र꣢तरा꣡इताऽ२३। ए꣢ऽ᳐३। उ꣢षसा꣯न्दिवए᳐ऽ३॥ प्रा꣢꣯णा꣯सा꣡इन्धू ऽ२३। नां꣢꣯कला꣡शाꣳऽ२३। ए꣢ऽ᳐३। अ꣢चिक्रददेऽ᳐३॥ इ꣢न्द्रस्या꣡हाऽ२३। दि꣢या꣯ वा꣡इशाऽ२३न्। ए꣢ऽ᳐३। म꣢नी꣯षिभिरेऽ३४३। ओ꣡ऽ२३४५इ॥ डा॥

15_0559 वृषा मतीनाम् - 02 ...{Loading}...
लिखितम्

५५९-२।

वृ꣡षा꣢꣯मती꣯ना꣡꣯म्पव। ताइवा꣢ऽ१इचाऽ२३४। क्ष꣥। णा꣣ऽ२३꣡४꣡५ः꣡॥ सो꣡꣯मो꣢꣯ अ꣡ह्ना꣢꣯म्प्र꣡तरी꣢꣯। तो꣡षा꣢ऽ१साऽ२३४म्। दि꣥। वा꣣ऽ२३꣡४꣡५ः꣡॥ प्रा꣢꣯णा꣡꣯सिन्धू꣢꣯नां꣯कल꣡। शाꣳआ꣢ऽ१चाऽ२३४इ। क्र꣥। दा꣣ऽ२३꣡४꣡५꣡त्॥ आ꣡इन्द्रस्य꣢हा꣡꣯र्दिया꣯वि। शान्मा꣢ ऽ१नाऽ२३४इ। षिभा꣥ऽ२उ। वाऽ३꣡४꣡५꣡॥ दी-१३। प-१६। मा-१२॥ २२ (टा) १११०॥

15_0559 वृषा मतीनाम् - 03 ...{Loading}...
लिखितम्

५५९-३।

वृ꣡षाऽ᳒२᳒म꣡ताऽ᳒२᳒इ। ना꣡꣯म्पवते꣯वि꣢च꣡क्षाऽ२३णाः꣢॥ सो꣡꣯मोऽ᳒२᳒अ꣡ह्नाऽ᳒२᳒म्। प्र꣡तरी꣯ तो꣯ष꣢सा꣡꣯न्दाऽ२३इवाः꣢॥ प्रा꣡꣯णाऽ᳒२᳒सि꣡न्धूऽ᳒२᳒। नां꣡꣯कलशाꣳ꣯अ꣢चि꣡क्राऽ२३दा꣢त्॥ इ꣡न्द्राऽ᳒२᳒स्य꣡हाऽ᳒२᳒। दि꣡या꣯विशन्म꣢नी꣡꣯षाऽ२३इभा꣢ऽ३४३इः॥ ओ꣡ऽ२३४५इ॥ डा॥

16_0560 त्रिरस्मै सप्त - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

५६०-१। मरुतान्धेनु॥ मरुतो जगती सोमः॥

त्रा꣡ऽ२३४इः। अस्मै꣥꣯सप्त꣤धे꣥꣯न꣤वो꣥꣯दुदौ꣯। हो꣤ह्राइरा꣥इ॥ स꣢त्या꣡꣯मा꣯शिरम्परमाइ। वि꣢यो꣯मा꣡नीऽ᳒२᳒। चत्वा꣡꣯र्यन्या꣯भुवना। नि꣢निर्णा꣡इजाऽ२३इ॥ चा꣢रू᳐णा꣣ऽ२३४ इचा꣥॥ क्रे꣢꣯य꣡दृतैः꣢꣯। आ꣡वा꣢ऽ३र्द्धा꣤ऽ५ता"ऽ६५६॥ दी-११। प-१०। मा-९॥ २४ (ङो) १११२॥

17_0561 इन्द्राय सोम - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

५६१-१। इन्द्रस्यापामीवम्॥ इन्द्रो जगती इन्द्रसोमौ॥

इ꣢न्द्रा꣡। य꣢सो꣯मसुषुताऽ᳐३ᳲपा꣤ऽ३रि꣢स्र꣣व꣥॥ अ꣢पा꣡। मी꣢꣯वा꣯भवतुराऽ३क्षा꣤ऽ३ सा꣢꣯स꣣ह꣥॥ मा꣢꣯ता꣡इ। र꣢सस्यमत्सताऽ᳐३द्वा꣤ऽ३या꣢꣯वि꣣नः꣥॥ द्र꣢वा꣡इ। ण꣢स्वन्तइहस। तु꣣वा꣢ऽ᳐३इन्दा꣤ऽ५वा"ऽ६५६ः॥ दी-६। प-९। मा-६॥ २५ (घू) १११३॥

17_0561 इन्द्राय सोम - 02 ...{Loading}...
लिखितम्

५६१-२। वायोरभिक्रन्दम्॥ वायुः जगती इन्द्रसोमौ॥

इ꣤न्द्रा꣥꣯यसो꣯मसु꣤षु꣥तᳲप꣤र्यौ꣥꣯। हो꣤इस्रावा꣥॥ अ꣡पा꣯मी꣯वा꣯भवतुरक्षसा꣢ऽ१सा꣢ऽ᳐३हा꣢। मा꣡꣯ते꣯रसस्यमत्सतद्वया꣢ऽ१वी꣢ऽ३नो꣢᳐। द्रा꣣ऽ२३४वी꣥। णा꣣ऽ२३४स्वा꣥॥ ता꣡इ꣢ह꣣सा꣢ ऽ᳐३। हा꣡ऽ२३। तुवा꣢ऽ᳐३इन्दा꣤ऽ५वा"ऽ६५६ः॥

18_0562 असावि सोमो - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

५६२-१। यामानि त्रीणि॥ त्रयाणां यमो जगती सोमश्येनौ॥

अ꣢सा꣯वि꣡सो। मो꣢꣯अ꣡रुषोऽ२३४। वृषा꣥꣯ह꣤राइः॥ रा꣢꣯जे꣯व꣡दा। स्मो꣢꣯अ꣡भिगा ऽ२३४ः। अचि꣥क्र꣤दात्। पु꣢ना꣯नो꣡꣯वा॥ रा꣢꣯म꣡तियाऽ२३४इ। षिअ꣥व्य꣤याम्। श्ये꣢꣯नो꣯न꣡यो। निं꣢घृ꣡तवाऽ२३। त꣤माऽ५सदात्। हो꣤ऽ५इ॥ डा॥ दी-११। प-१४। मा-११॥ २७ (घ) १११५॥

18_0562 असावि सोमो - 02 ...{Loading}...
लिखितम्

५६२-२।

आ꣢सा᳐वी꣣ऽ२३४सो꣥। मो꣢अ᳐रू꣣ऽ२३४षाः꣥। वा꣢꣯र्षा꣡꣯हराये꣢ऽ३ः॥ रा꣢जे᳐वा꣣ऽ२३४दा꣥। स्मो꣢अभी꣣ऽ२३४गाः꣥। आ꣢꣯चि꣡क्रदाऽ२३त्॥ पू꣢ना᳐नो꣣ऽ२३४वा꣥। रा꣢मा᳐ती꣣ऽ२३४ ये꣥। षी꣢꣯अ꣡व्ययाऽ२३म्॥ श्ये꣢नो᳐ना꣣ऽ२३४यो꣥। नि꣢घा᳐र्त्ता꣣ऽ२३४वा꣥। त꣣मा꣢ऽ᳐३। सा꣡ऽ२᳐दा꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा॥ दे꣢ऽ३। दि꣡वीऽ२३꣡४꣡५꣡॥

18_0562 असावि सोमो - 03 ...{Loading}...
लिखितम्

५६२-३।

अ꣤सा꣥꣯विसो꣤꣯मो꣥꣯अरुषो꣤꣯वृषा꣥꣯ह꣤। राइः॥ रा꣯जे꣥꣯वदस्मो꣤꣯अ꣥भि꣤गा꣯अ꣥चिक्र। दा꣤त्॥ पु꣥ना꣯नो꣤꣯वा꣯र꣥म꣤त्ये꣥꣯ष्यव्य꣤। याम्॥ श्ये꣥꣯नो꣤꣯नयो꣯निं꣥घृत꣤। वा। त꣣मा꣢ऽ᳐३। सा꣡ऽ२᳐ दा꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा॥ ए꣢ऽ᳐३। दि꣡वीऽ२३꣡४꣡५꣡॥

19_0563 प्र देवमच्छा - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

५६३-१। मरुतान्धेनु॥ मरुतो जगती सोमः॥

प्रा꣤दे꣥॥ व꣢म꣡च्छा꣢꣯म꣡धु꣢म। तआऽ᳒२᳒इन्दवाः꣡। आसि꣢ष्या꣣ऽ२३४दा꣥। त꣢गा꣡꣯वआ꣢꣯। नधाऽ᳒२᳒इनवाः꣡। बर्हि꣢षा꣣ऽ२३४दाः꣥। व꣢चना꣡꣯वा꣰꣯ऽ२। तऊऽ᳒२᳒धभा꣡इः॥ पारि꣢स्रू꣣ ऽ२३४ता꣥म्॥ उ꣢स्रि꣡या꣯निर्णिजन्धाइराये꣢ऽ᳐३॥ धाइरा꣢ऽ३४औ꣥꣯हो꣯वा॥ धा꣢ऽ᳐३इ रा꣡ऽ२३꣡४꣡५꣡इ॥

20_0564 अञ्जते व्यञ्जते - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

५६४-१। काक्षीवतानि(शार्गा११नि) त्रीणि॥ अञ्जतः कक्षीवान् जगती सोमः॥

अ꣢ञ्ज꣡ताइ। वि꣢यञ्ज꣡ताइ। स꣢मञ्जा꣡ताऽ᳒२᳒इ। क्रतुꣳरि꣡हा। ती꣢꣯म꣡धुवा। भि꣢यञ्जा꣡ताऽ᳒२᳒इ। सिन्धो꣯रु꣡च्छ्वा। से꣢꣯प꣡तया। त꣢मुक्षा꣡णाऽ᳒२᳒म्। हिरण्य꣡पा। वाᳲ꣢꣯प꣡शुमा। प्सू꣢꣯गृ꣡भ्णता꣢ऽ᳐३१उवा"ऽ२३꣡४꣡५꣡॥ दी-५। प-१२। मा-६॥ ३१ (फू) १११९॥

20_0564 अञ्जते व्यञ्जते - 02 ...{Loading}...
लिखितम्

५६४-२। व्यञ्जतᳲ कक्षीवान्॥

अ꣣ञ्जा꣢ऽ३हो꣡। ते꣢ऽ᳐३हो꣡इ। वि꣢यञ्जतेऽ᳐३सा꣤ऽ३म꣢ञ्ज꣣ता꣥इ॥ क्र꣣तू꣢ऽ३ꣳ हो꣡इ। रि꣣हा꣢ऽ᳐३हो꣡।

20_0564 अञ्जते व्यञ्जते - 03 ...{Loading}...
लिखितम्

५६४-३। समञ्जतᳲ कक्षीवान्॥

हा꣤वाञ्जा꣥॥ ता꣡ऽ२३४इ। वि꣣य꣤ञ्ज꣥ते꣯स꣣म꣤ञ्ज꣥ते꣯। ए꣡हि꣣या꣢। ए꣡हि꣣या꣢ ऽ३४॥ हाउक्रातू꣥म्। रा꣡ऽ२३४इ। हन्तिम꣣धु꣤वा꣯भि꣣य꣤ञ्ज꣥ते꣯। ए꣡हि꣣या꣢। ए꣡हि꣣या꣢ ऽ३४॥ हाउसाइन्धोः꣥। ऊ꣡ऽ२३४त्। श्वा꣯से꣣꣯प꣤त꣣य꣤न्त꣥मुक्ष꣤ण꣥म्। ए꣡हि꣣या꣢। ए꣡हि꣣या꣢ ऽ३४॥ हाउहाइरा꣥। ण्या꣡ऽ२३४। पा꣯वाᳲ꣣꣯प꣤शु꣣म꣤प्सु꣣गृ꣤भ्ण꣥ते꣯। ए꣡हि꣣या꣢। ए꣡हि꣣या꣢ ऽ३४। हा꣥उ। हो꣤ऽ५इ॥ डा॥

21_0565 पवित्रं ते - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

५६५-१। अर्कपुष्पे द्वे॥ द्वयोरादित्यो जगती ब्रह्मणस्पतिः॥

प꣢वि꣡त्रंते꣢꣯वि꣡ततं꣢ब्र꣡ह्मण꣢स्पतेऽ᳐३। हु꣡वेऽ२३। हु꣡वेऽ२३। हो꣡वा꣢ऽ᳐३हा꣢ऽ᳐३। हा꣢इ॥ प्रभु꣡र्गा꣯त्रा꣢꣯णिप꣡रिये꣢꣯षिविश्व꣡ताऽ२३ः। हु꣡वेऽ२३। हु꣡वेऽ२३। हो꣡वा꣢ऽ᳐३ हा꣢ऽ᳐३। हा꣢इ॥ अ꣡तप्त꣢तनू꣯र्न्न꣡तदा꣰꣯ऽ२मो꣡꣯अश्नु꣢तेऽ᳐३। हु꣡वेऽ२३। हु꣡वेऽ२३। हो꣡वा꣢ ऽ᳐३हा꣢ऽ᳐३। हा꣢इ॥ शृता꣡꣯स꣢इ꣡द्वह꣢न्तस्स꣡न्तदा꣰꣯ऽ२शत। हु꣡वेऽ२३। हु꣡वेऽ२३। हो꣡वा꣢ऽ᳐३हा꣢ऽ᳐३। हा꣢ऽ३४। औ꣥꣯हो꣯वा॥ अ꣢र्को꣡꣯दे꣯वा꣯ना꣰꣯ऽ२म्परमे꣡꣯वियो꣰꣯ऽ२मा꣣ऽ २३꣡४꣡५꣡न्॥

21_0565 पवित्रं ते - 02 ...{Loading}...
लिखितम्

५६५-२। अर्कपुष्पोत्तरम्॥

प꣢वि꣡त्रंते꣢꣯वि꣡ततं꣢ब्र꣡ह्मण꣢स्पतेऽ३। हु꣡वाइ। औ꣢꣯हो꣡वाऽ᳒२᳒॥ प्रभु꣡र्गा꣯त्रा꣢꣯णि प꣡रिये꣢꣯षिविश्व꣡ताऽ२३ः। हु꣡वाइ। औ꣢꣯हो꣡वाऽ᳒२᳒॥ अ꣡तप्त꣢तनू꣯र्न्न꣡तदा꣰꣯ऽ२मो꣡꣯अश्नु꣢ते ऽ᳐३। हु꣡वाइ। औ꣢꣯हो꣡वाऽ᳒२᳒॥ शृता꣡꣯स꣢इ꣡द्वह꣢न्तस्स꣡न्तदा꣰꣯ऽ२शत। हु꣡वाइ। औ꣢꣯। हो꣡ऽ२᳐। वा꣣ऽ२३४। औ꣥꣯हो꣯वा॥ अ꣢र्क꣡स्य꣢दे꣯वाᳲ꣡꣯प꣢रमे꣡꣯वियो꣰꣯ऽ२मा꣣ऽ२३꣡४꣡५꣡न्॥