१५ १

[[अथ पञ्चदशप्रपाठके प्रथमोऽर्धः]]

30_0516 तवाहं सोम - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

५१६-१। वैष्णवे द्वे॥ द्वयोर्विष्णुर्बृहती सोमः॥ (वैष्णवाद्यम्)।

त꣥वा꣯हꣳसो॥ म꣢राऽ᳒२᳒रणा꣡। रण। सख्यइन्दो꣯दिवाऽ᳒२᳒इदिवा꣡इ। दिवे꣯। पुरू꣯णिबभ्रो꣯निचरन्तिमाऽ᳒२᳒मवा꣡। अव॥ परिधीꣳ꣯रतिताऽ᳒२ꣳ᳒इहा꣡ऽ२३इ। आ꣡ऽ२᳐इ। हा꣣ऽ२३४। औ꣥꣯हो꣯वा॥ ऊ꣢ऽ᳐३२᳐३४पा꣥॥ दी-८। प-१२। मा-६॥ १ (ठ्लू) ९८४॥

30_0516 तवाहं सोम - 02 ...{Loading}...
लिखितम्

५१६-२। वैष्णवोत्तरम्॥

त꣤वा꣥꣯। तवा꣤॥ अ꣢हꣳ꣡सो꣯मरा꣯रण। सख्याई꣢ऽ᳐३न्दो꣢। दिवा꣡औ꣢ऽ᳐३हो꣢। दा꣡इवेऽ᳒२᳒। पुरू꣡꣯णिबभ्रो꣯निचरन्तिमा꣢ऽ१मा꣢ऽ᳐३वा꣢॥ परा꣡औ꣢ऽ᳐३हो꣢॥ धा꣡इꣳरति꣢तो꣡ऽ२३४वा꣥।

30_0516 तवाहं सोम - 03 ...{Loading}...
लिखितम्

५१६-३। आङ्गिरसानि त्रीणि॥ त्रयाणामङ्गिरसो बृहती सोमः॥

त꣥वा꣯हꣳसो꣯माऽ६रा꣥꣯रणा॥ सा꣢ख्या᳐ई꣣ऽ२३४न्दो꣥। दि꣢वे᳐दा꣣ऽ२३४इवे꣥। पु꣤रू꣣꣯णि꣤ बभ्रो꣯नि꣣च꣤र꣥न्तिमा꣯म्। आ꣡वाऽ२३४हा꣥इ॥ पा꣤री꣥धा꣤इꣳरा꣥। ति꣢तो꣡ऽ२३४वा꣥। आ꣤ऽ५इहोऽ६"हा꣥इ॥ दी-६। प-८। मा-७॥ ३ (गे) ९८६॥

30_0516 तवाहं सोम - 04 ...{Loading}...
लिखितम्

५१६-४।

त꣤वा꣥꣯हꣳ꣤सो꣥꣯मरौ꣯। हो꣤ऽ५रणा꣤॥ सा꣡ख्य꣢इ꣡न्दोऽ२᳐॥ दि꣣वा꣢ऽ३४५इ। दी꣣ऽ२३४वे꣥। पू꣡रूऽ᳒२᳒णा꣡इबाऽ᳒२᳒। भ्रो꣡꣯निचराऽ२᳐। ति꣣मा꣢ऽ३४५म्। आ꣣ऽ२३४वा꣥॥ पा꣡रीऽ᳒२᳒धा꣡इꣳराऽ२᳐॥ ति꣣ताꣳ꣢ऽ३४५॥ ई꣣ऽ२३४ही꣥॥ दी-४। प-१२। मा-५॥ ४ (थु) ९८७॥

30_0516 तवाहं सोम - 05 ...{Loading}...
लिखितम्

५१६-५।

त꣣वा꣤꣯हꣳ꣣सो꣤꣯म꣥रा꣯रण। सख्यइ꣢न्दो꣣꣯दि꣤वे꣯दि꣥वाइ॥ स꣢ख्य꣡इन्दो꣯दि꣢वे꣡꣯दाऽ२३ इवे꣢। पुरू꣡꣯णिबभ्रो꣯निचरन्ति꣢मा꣡꣯माऽ२३वा꣢॥ परा꣡इधाऽ२३इꣳरा꣢॥ तिता꣡ऽ२३ꣳ इहा꣢ऽ᳐३४३इ। ओ꣡ऽ२३४५इ॥ डा॥ दी-१०। प-८। मा-९॥ ५ (बो) ९८८॥

31_0517 मृज्यमानः सुहस्त्या - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

५१७-१। औक्ष्णोरंध्राणि त्रीणि॥ (स्वारम्)। त्रयाणामुक्ष्णोरन्ध्रो बृहती सोमः॥

मृ꣥ज्यमा꣯नाः॥ सु꣢हस्तियाऽ᳐३। सा꣡मू꣢ऽ᳐३द्रा꣤इवा꣥। च꣢मिन्वसाऽ᳐३इ। रा꣡यी꣢ऽ३᳐म्पा꣤इशा꣥। गं꣢बहुलाऽ᳐३म्। पू꣡रूऽ२᳐स्पॄ꣣ऽ२३४हा꣥म्॥ प꣡वमा꣢꣯। ना꣡। औ꣢ऽ᳐३हो꣢॥ भियो꣡ऽ२३४वा꣥। षा꣤ऽ५सोऽ६"हा꣥इ॥ दी-२। प-१२। मा-७॥ ६ (छे) ९८९॥

31_0517 मृज्यमानः सुहस्त्या - 02 ...{Loading}...
लिखितम्

५१७-२।

मृ꣥ज्यमा꣯नाः॥ सु꣢हस्ता꣡याऽ᳒२᳒। स꣡मुद्रे꣢꣯वा꣯। चा꣡मि꣪न्वासाऽ२३४इ॥ र꣣या꣢᳐ ऽ᳐३४इम्पि꣣शा꣢। गं꣡बहुलंपूरु꣪स्पृहाऽ᳒२᳒म्॥ प꣡वाऽ२३। मा꣡ऽ२᳐ना꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा॥ भि꣡या꣰꣯ऽ२र्षसी꣣ऽ२३꣡४꣡५꣡॥

31_0517 मृज्यमानः सुहस्त्या - 03 ...{Loading}...
लिखितम्

५१७-३।

मृ꣥ज्यमा꣯नाः॥ सु꣢ह। स्ति꣡या। सा꣢ऽ१मूऽ᳒२᳒द्रा꣡इवाऽ᳒२᳒। चमि। न्व꣡साइ। रा꣢ऽ१यीऽ᳒२᳒म्पा꣡इशाऽ᳒२᳒। गं꣡बहु꣢लं꣡पुरु꣢। स्पृ꣡हाम्॥ पा꣢ऽ१वाऽ᳒२᳒मा꣡नाऽ२३॥ भा꣡ऽ२᳐या꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा॥ षा꣣ऽ२३४सी꣥॥

31_0517 मृज्यमानः सुहस्त्या - 04 ...{Loading}...
लिखितम्

५१७-४। आग्नेयानि त्रीणि॥ त्रयाणामग्निर्बृहती सोमः॥

मृ꣥ज्याऽ६ए꣥॥ मा꣡꣯नस्सुहस्तियाऔ꣢ऽ᳐३हो꣢। समुद्रे꣡꣯वा꣯चमिन्वसाऔ꣢ऽ᳐३हो꣢। रयिं꣡पिशङ्गंबहुलंपुरुस्पृहाऔ꣢ऽ᳐३हो꣢॥ पव꣡माऽ२३ना꣢ऽ᳐३॥ भि꣢यो꣡ऽ२३४वा꣥। षा꣤ऽ५सोऽ६"हा꣥इ॥ दी-३। प-७। मा-५॥ ९ (ठु) ९९२॥

31_0517 मृज्यमानः सुहस्त्या - 05 ...{Loading}...
लिखितम्

५१७-५।

मृ꣥ज्य꣤मा꣥꣯नस्सुहस्त्यो꣤। वाहा꣥इ॥ स꣢मुद्रा꣡इवा। च꣪मीऽ२᳐न्वा꣣ऽ२३४सी꣥। र꣣या꣢ऽ᳐३४इम्पि꣣शा꣢। गं꣡बहु꣢लम्। पू꣡रु꣪स्पृहाऽ२३४म्॥ प꣣वा꣢ऽ३४मा꣣꣯ना꣢ऽ᳐३॥ भि꣢यो꣡ऽ२३४वा꣥। षा꣤ऽ५सोऽ६"हा꣥इ॥ दी-२। प-१०। मा-६॥ १० (ञू) ९९३॥

31_0517 मृज्यमानः सुहस्त्या - 06 ...{Loading}...
लिखितम्

५१७-६।

मृ꣤ज्यमा꣯नाऽ५स्सुहस्ति꣤या॥ स꣡मूऽ᳒२᳒द्रा꣡इवाऽ᳒२᳒। च꣡माऽ᳒२᳒इन्वा꣡सीऽ᳒२᳒। रयिं꣡पिशङ्गंबहुलं

31_0517 मृज्यमानः सुहस्त्या - 07 ...{Loading}...
लिखितम्

५१७-७। ऐडमौक्ष्णोरन्ध्रम्॥ उक्ष्णोरन्ध्रो बृहती सोमः॥

मृ꣥ज्य꣤मा꣥꣯नस्सुहस्त्या꣯। समुद्रे꣯वो꣤वा꣥॥ चा꣡मिन्व꣢सि। रा꣡यिं꣪पिशा꣢ऽ᳐३। हा꣢ऽ३हा꣢॥ गं꣡बहु꣢लं꣡पुरु꣢स्पृ꣡ह꣢म्। प꣡वमाना꣢ऽ३। हा꣢ऽ᳐३हा꣢॥ भिय꣡र्षाऽ२३ सा꣢ऽ᳐३४३इ। ओ꣡ऽ२३४५इ॥ डा॥ दी-३। प-११। मा-३॥ १२ (टि) ९९५॥

31_0517 मृज्यमानः सुहस्त्या - 08 ...{Loading}...
लिखितम्

५१७-८। वाजजित्॥ प्रजापतिर्बृहती सोमः॥

मृ꣥ज्य꣤मा꣥꣯नस्सुहा꣤॥ स्ति꣡याऽ᳒२᳒। स꣡मूऽ᳒२᳒हो꣡। द्रे꣯वाऽ᳒२᳒हो꣡। चा꣢꣯मि꣡न्वसाइ। रयाऽ᳒२᳒इꣳहो꣡इ। पिशाऽ᳒२᳒हो꣡। ग꣢म्ब꣡हुलाम्। पू꣢꣯रु꣡स्पृहाम्। पवाऽ᳒२᳒हो꣡। मा꣯नाऽ᳒२᳒ हो꣡। भी꣢꣯य꣡र्षसा꣢ऽ᳐३१उवाऽ२३। वा꣢꣯जी꣡꣯जिगी꣢ऽ᳐३वाꣳ꣢ऽ१॥ दी-८। प-१३। मा-६॥ १३ (डू) ९९६॥

32_0518 अभि सोमास - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

५१८-१। वैश्वदेवे द्वे॥ द्वयोर्विश्वेदेवा गायत्री सोमः॥

हा꣢ऽ३᳐हा꣢इ। अभिसो꣯मा꣯सऽ३᳐आ꣡या꣢ऽ१वाऽ२३ः॥ हा꣢ऽ३᳐हा꣢इ। पवन्ते꣯ मदिऽ३᳐या꣡म्मा꣢ऽ१दाऽ२३म्॥ हा꣢ऽ३᳐हा꣢इ। समुद्रस्या꣯धिविष्टपे꣯मऽ३᳐ना꣡इषा꣢ऽ१ इणाऽ२३ः॥ हा꣢ऽ३᳐हा꣢इ। मत्सरा꣯सो꣯मऽ३दा꣡च्यू꣢ऽ१ताऽ२३ः। हा꣢ऽ३᳐हा꣢ऽ ३४३इ। ओ꣡ऽ२३४५इ॥ डा॥ दी-७। प-११। मा-१३॥ १४ (चि) ९९७॥

32_0518 अभि सोमास - 02 ...{Loading}...
लिखितम्

५१८-२।

आ꣤भी꣥सो꣤मा꣥॥ स꣢आऽ३१उवाऽ२३। याऽ२३४वाः꣥। पा꣤व꣥न्ता꣤इमा꣥। दि꣢याऽ३१उवाऽ२३। माऽ२३४दा꣥म्। सा꣤मु꣥द्र꣤स्या꣥॥ धि꣢वि꣡ष्टापे꣯म꣢नाऽ᳐३१ उवाये꣢ऽ᳐३। षीऽ२३४णाः꣥। मा꣤त्सा꣥रा꣤साः꣥॥ म꣢दाऽ३१उवाऽ᳐२३॥ च्यूऽ२३४ ताः꣥॥

32_0518 अभि सोमास - 03 ...{Loading}...
लिखितम्

५१८-३। इन्द्रसामनी द्वे॥ द्वयोरिन्द्रो बृहती सोमः॥

अ꣢भि꣡सो꣢ऽ᳐३मा꣤꣯सआ꣥꣯यवाः॥ प꣡वन्ते꣢꣯म꣡दिय꣢म्म꣡। दा। औ꣢ऽ᳐३हो꣢। आ꣡औ꣢ऽ३हो꣢॥ समुद्र꣡स्या꣯धिवि꣢ष्ट꣡पे꣯म꣢नी꣯षि꣡। णा। औ꣢ऽ᳐३हो꣢। आ꣡औ꣢ऽ३हो꣢। मत्सरा꣡꣯सो꣯म꣢दच्यु꣡। ता। औ꣢ऽ᳐३हो꣢॥ आ꣡औ꣢ऽ३हो꣢ऽ३४३। ओ꣡ऽ२३४५इ॥ डा॥

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लिखितम्

५१८-४।

अ꣥भि꣤सो꣯मा꣥꣯सआ꣯। हो꣤ऽ५यवाः꣤॥ प꣡वन्ते꣯मद्यम्मदम्पवन्ते꣯म। दि꣢याꣳ꣡ होइ। माऽ२३दा꣢म्॥ समुद्र꣡स्या꣯धिविष्टपे꣯मनी꣯षिणाः। म꣢ना꣡होइ। षाऽ२३ इणाः꣢। मत्सरा꣡꣯सो꣯मदच्युताः। म꣢दा꣡होइ। च्यूऽ२३ता꣢ऽ᳐३४३ः। ओ꣡ऽ२३४५इ॥ डा॥

32_0518 अभि सोमास - 05 ...{Loading}...
लिखितम्

५१८-५। स्वः पृष्ठमाङ्गिरसम्॥ अङ्गिरसो बृहती सोमः॥

अ꣡भाऽ२᳐इसो꣣꣯मा꣢ऽ३४। औ꣣꣯हो꣤ऽ५सआ꣯य꣤वाः॥ प꣡वाऽ२᳐न्ते꣣꣯मा꣢ऽ३४। औ꣣꣯हो꣤ऽ५दियम्म꣤दाम्। स꣡मूऽ२᳐द्र꣣स्या꣢ऽ३४। औ꣣꣯हो꣤ऽ५धिविष्ट꣤पाइ। ओ꣡ये꣢ऽ᳐३। मा꣡ऽ२᳐ना꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा। षी꣣ऽ२३४णाः꣥। ऊ꣣ऽ२३४पा꣥। ऊ꣣ऽ२३४पा꣥॥ म꣣त्स रा꣢꣯सो꣡ऽ२३॥ मा꣡ऽ२᳐दा꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा॥ च्यू꣣ऽ२३४ताः꣥॥

32_0518 अभि सोमास - 06 ...{Loading}...
लिखितम्

५१८-६। इन्द्रसामानि त्रीणि॥ त्रयाणामिन्द्रो बृहती सोमः॥

औ꣤꣯हो꣥꣯वा꣤। अ꣥भि꣤सो꣯मा꣥꣯सआ꣯य꣤वः꣥। औ꣤꣯हो꣥꣯वा꣤। प꣡वाऽ२᳐। ते꣣꣯मा꣢ऽ३ओ꣤ऽ५ वाऽ६५६।

32_0518 अभि सोमास - 07 ...{Loading}...
लिखितम्

५१८-७।

अ꣥भिसो꣯मा꣯सआ꣯याऽ६वाः꣥। प꣡वाऽ२᳐। ते꣣꣯मा꣢ऽ᳐३ओ꣤ऽ५वाऽ६५६। दि꣢यं-म꣡द꣢म्। स꣡मूऽ२᳐। द्र꣣स्या꣢ऽ३ओ꣤ऽ५वाऽ६५६। धि꣢विष्ट꣡पे꣰꣯ऽ२मनी꣯षि꣡णा꣰꣯ऽ२ः᳐॥ म꣡त्साऽ२᳐॥ रा꣣꣯सा꣢ऽ᳐३ओ꣤ऽ५वाऽ६५६। म꣢दच्यु꣡ता꣣ऽ२३꣡४꣡५ः꣡॥

32_0518 अभि सोमास - 08 ...{Loading}...
लिखितम्

५१८-८।

अ꣥भिसो꣯मा꣯सआ꣯याऽ६वाः꣥॥ प꣡वन्ताइमा। दि꣪याऽ२᳐म्मा꣣ऽ२३४दा꣥म्। स꣣मुद्र꣢स्या꣡। धि꣢वि꣡ष्टपाइ। मना꣢ऽ᳐३इषा꣤इणाः꣥॥ मा꣡त्स꣢रा꣯सो꣡ऽ२३॥ मा꣡ऽ२᳐ दा꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा॥ च्यू꣣ऽ२३४ताः꣥॥ दी-६। प-९। मा-१०॥ २१ (घौ) १००४॥

33_0519 पुनानः सोम - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

५१९-१। सोमसाम॥ सोमो बृहती सोमः॥

पु꣥ना꣯न꣤स्सो꣥꣯मजा꣤꣯गृ꣥विर꣤व्याः॥ वा꣡꣯रैᳲ꣯पारि꣪प्रियाऽ᳒२ः᳒। त्वं꣡विप्रो꣯अभवो꣯ ङ्गाइराऽ२३४। स्त꣣मा꣢ऽ३॥ मा꣡ध्वा꣢꣯यज्ञा꣡ऽ२३म्। मा꣡ऽ२᳐इमा꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा॥ क्षा꣣ऽ२३४णाः꣥॥

34_0520 इन्द्राय पवते - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

५२०-१। सोमसाम॥ सोमो बृहतीन्द्रो मरुत्वान्॥

इ꣥न्द्रा꣯यपा॥ व꣢ताऽ᳒२᳒इमा꣡दाऽ᳒२ः᳒। सो꣡꣯मो꣯मरुत्वताऽ᳒२᳒इसू꣡ताऽ᳒२ः᳒। स। हा꣡स्रधा꣢꣯रः।

34_0520 इन्द्राय पवते - 02 ...{Loading}...
लिखितम्

५२०-२। स्वᳲपृष्ठमाङ्गिरसम्॥ अङ्गिरसो बृहतीन्द्रो मरुत्वान्॥

इ꣥न्द्रा꣯यपा॥ व꣢ते꣯म꣡दाः। सो꣢꣯मो꣯मा꣡रूऽ᳒२᳒। त्व꣡तेहोऽ᳒२᳒इ। सू꣡ताऽ᳒२ः᳒। स। हा꣡स्रधा꣢꣯रः। अ꣡तिअव्यमा। षाता꣢᳐ओ꣣ऽ२३४वा꣥। ऊ꣣ऽ२३४पा꣥॥ त꣡मीहोऽ᳒२᳒इ। मा꣡र्जाऽ᳒२᳒॥ तिआ꣡꣯याऽ२३वा꣢ऽ᳐३४३ः। ओ꣡ऽ२३४५इ॥ डा॥

34_0520 इन्द्राय पवते - 03 ...{Loading}...
लिखितम्

५२०-३। सोमसाम॥ सोमो बृहतीन्द्रो मरुत्वान्॥

इ꣥न्द्रा꣯या꣢ऽ᳐३पा꣤व꣥ता꣤इमदाः꣥॥ सो꣡꣯मो꣯मरुत्वता꣢ऽ१इसू꣢ऽ᳐३ताः꣢। स। हा꣡स्रधा꣢꣯रः॥ अ꣡तिअव्यमा꣢ऽ᳐३। षा꣤ती꣥॥ त꣢मा꣡औ꣢ऽ᳐३हो꣢ऽ᳐३इ। मा꣤र्जा꣥॥ ता꣡ऽ२᳐ या꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा॥ या꣣ऽ२३४वाः꣥॥ दी-६। प-१०। मा-१०॥ २५ (ङौ) १००८॥

35_0521 पवस्व वाजसातमोऽभि - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

५२१-१। सोमसाम॥ देवाः देवताः सोमश्च॥

प꣤व꣥स्ववा꣯जसा꣤꣯। इहा। ता꣣ऽ२३४माः꣥। अ꣢भि꣡विश्वा꣢꣯निवा꣡꣯रिया꣢꣯। त्वꣳ꣡साऽ२᳐ मू꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा। द्रᳲ꣡प्र꣢थमे꣡꣯विध꣢र्मन्॥ दा꣡इवाये꣢ऽ३॥ भ्या꣡ऽ२᳐स्सो꣣ऽ२३४ औ꣥꣯हो꣯वा॥ म꣢मत्स꣣रा꣢ऽ१ः॥ दी-१०। प-९। मा-६॥ २६ (भू) १००९॥

36_0522 पवमाना असृक्षत - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

५२२-१। पवित्रम्॥ आदित्योबृहतीमरुत्वान्त्सोमः॥

प꣤व꣥मा꣯ना꣯असृक्षतपवा꣤इ॥ त्रा꣡मतिधा꣯रया꣯मरुत्वन्तो꣯मत्सरा꣯इन्द्री꣢ऽ३याः꣢॥ हयाः꣡॥ माऽ२३इधा꣢म्॥ अ꣡भाये꣢ऽ३। प्रा꣡ऽ२᳐या꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा॥ सी꣣ऽ२३४ चा꣥॥

[[अथ षष्ठः खण्डः]]

37_0523 प्र तु - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

५२३-१। औशनानि पञ्च॥ उशनास्त्रिष्टुबश्वः अग्निर्वा॥ओ꣢इ᳐प्र꣣तु꣥। इ꣣हा꣢ऽ३१। द्र꣢वा꣡। परिको꣢ऽ᳐३। श꣢न्नि꣣षी꣤दा꣥॥ ओ꣢इ᳐नृ꣣भिः꣥। इ꣣हा꣢ऽ३१। पु꣢ना꣡। नो꣢ऽ᳐३अ꣡भि। वा꣢᳐ज꣣म꣤र्षा꣥॥ ओ꣢᳐अ꣣श्व꣥म्। इ꣣हा꣢ऽ३१। न꣢त्वा꣡। वा꣢ऽ३जि꣡नम्। म꣢र्ज꣣य꣤न्ताः꣥॥ ओ꣢᳐अ꣣च्छ꣥। इ꣣हा꣢ऽ३१। ब꣢र्हा꣡इः। र꣢श꣡ना꣯। भा꣢ऽ३४३इः। ना꣢ऽ᳐३या꣤ऽ५न्ताऽ६"५६इ॥

37_0523 प्र तु - 02 ...{Loading}...
लिखितम्

५२३-२। वृषौशनंसाम॥

प्र꣤तु꣥। ए꣤प्रतू꣥। द्र꣢वा꣡।(द्विः)। परिको꣢ऽ᳐३। श꣢न्नि꣣षी꣤दा꣥॥ नृ꣤भिः꣥। ए꣤नृभीः꣥। पु꣢ना꣡।(द्विः)। नो꣢ऽ᳐३अ꣡भि। वा꣢᳐ज꣣म꣤र्षा꣥॥ अ꣤श्व꣥म्। ए꣤अश्वा꣥म्। न꣢त्वा꣡।(द्विः)। वा꣢ऽ᳐३जि꣡नम्। म꣢र्ज꣣य꣤न्ताः꣥। अ꣤च्छ꣥। ए꣤अच्छा꣥। ब꣢र्हा꣡इ। ब꣢र्हा꣡इः। र꣢शना꣡꣯भिः꣢᳐। न꣣ये꣢ऽ३४। हि꣥याऽ६हा꣥उवा॥ ता꣣ऽ२३꣡४꣡५꣡इ॥ दी-१। प-२६। मा-१५॥ २९ (कु) १०१२॥

37_0523 प्र तु - 03 ...{Loading}...
लिखितम्

५२३-३। जानस्याभीवर्तौ द्वौ॥

प्र꣤तु꣥द्रा꣤॥ वा꣡परिको꣯शाम्। निषी꣢ऽ᳐३दा꣢। सा꣡इदा꣢᳐। औ꣣꣯हो꣢इ। औ꣣꣯हो꣭ऽ३वा꣢। नृ꣡भिᳲपुना꣯नो꣯अभिवा। ज꣪माऽ२३र्षा꣢। आ꣡र्षा꣢। औ꣣꣯हो꣢इ। औ꣣꣯हो꣭ऽ३वा꣢। अ꣡श्व न्नत्वा꣯वा꣯जिनम्मा। ज꣪याऽ२३न्ताः꣢। या꣡न्ता꣢। औ꣣꣯हो꣢इ। औ꣣꣯हो꣭ऽ३वा꣢॥ अच्छा꣡꣯ब꣢र्हा꣡इः॥ र꣢शना꣡꣯भिः꣢। न꣣ये꣢ऽ३४। हि꣥याऽ६हा꣥उवा॥ ता꣣ऽ२३꣡४꣡५꣡इ॥

37_0523 प्र तु - 04 ...{Loading}...
लिखितम्

५२३-४।

हा꣥꣯ओऽ६हा꣥। उ꣣हुवा꣢ऽ३४। ओ꣥ऽ६हा꣥। प्र꣢तु꣡द्रवा। परिको꣢ऽ᳐३। श꣢न्नि꣣ षी꣤दा꣥॥नृ꣢भा꣡इᳲपु꣢ना꣡। नो꣢ऽ३अ꣡भि। वा꣢᳐ज꣣म꣤र्षा꣥॥ अ꣢श्व꣡न्नत्वा। वा꣢ऽ᳐३जि꣡नम्। म꣢र्ज꣣य꣤न्ताः꣥॥

37_0523 प्र तु - 05 ...{Loading}...
लिखितम्

५२३-५। त्रिष्टुबौशनम्॥

प्रा꣤तू꣥॥ द्र꣡वापरिको꣯शाम्। निषी꣢ऽ३दा꣢। नृभा꣡इᳲपु꣢ना꣡। नो꣢᳐ऽ३अ꣡भि। वा꣢᳐ज꣣म꣤र्षा꣥॥ अ꣡श्वन्नत्वा꣯वा꣯जिनम्मा। ज꣪याऽ२३न्ताः꣢॥ अच्छा꣡꣯ब꣢र्हा꣡इः। र꣢श꣡ना꣯। भा꣢ऽ᳐३४३इः। ना꣢ऽ३या꣤ऽ५न्ता"ऽ६५६इ॥ दी-५। प-१२। मा-९॥ ३२ (फो) १०१५॥

38_0524 प्र काव्यमुशनेव - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

५२४-१। वाराहाणि चत्वारि॥ चतुर्णां वराहस्त्रिष्टुब्देववराहौ॥प्रा꣤॥ का꣡꣯वियाऽ᳒२᳒म्। उ꣡शनेवाऽ᳒२᳒। ब्रुवा꣡ऽ२३णाः꣢। दे꣡꣯वो꣯देवाऽ᳒२᳒। ना꣡꣯ञ्जनिमाऽ᳒२᳒। विवा꣡ऽ२३क्ती꣢॥ म꣡हिव्राताऽ᳒२ः᳒। शु꣡चिबन्धूऽ᳒२ः᳒। पवा꣡ऽ२३ काः꣢॥ प꣡दा꣯वाराऽ᳒२᳒। हो꣡꣯अभियाऽ२᳐इ। ति꣣रा꣢ऽ३४औ꣥꣯हो꣯वा॥ भा꣣ऽ२३꣡४꣡५꣡न्॥

38_0524 प्र काव्यमुशनेव - 02 ...{Loading}...
लिखितम्

५२४-२।

प्र꣡का꣯वियाऽ᳒२᳒म्। उ꣡शनेवाऽ᳒२᳒। ब्रुवा꣡णाऽ᳒२ः᳒॥ दे꣡꣯वो꣯देवाऽ᳒२᳒। ना꣡꣯ञ्ज निमाऽ᳒२᳒। विवा꣡क्तीऽ᳒२᳒॥ म꣡हिव्राताऽ᳒२ः᳒। शु꣡चिबन्धूऽ᳒२ः᳒। पवा꣡काऽ᳒२ः᳒॥ प꣡दा꣯ वाराऽ᳒२᳒। हो꣡ऽ२᳐। भि꣣या꣢ऽ३४औ꣥꣯हो꣯वा॥ ति꣢रे꣡꣯भा꣣ऽ२३꣡४꣡५꣡न्॥ दी-८। प-१३। मा-७॥ ३४ (डे) १०१७॥

38_0524 प्र काव्यमुशनेव - 03 ...{Loading}...
लिखितम्

५२४-३।

प्र꣢का꣯व्यमुशने꣯वब्रूऽ᳐३वा꣡णो꣢᳐। दे꣣ऽ२३४वाः꣥॥ दे꣢꣯वा꣯ना꣯ञ्जनिमा꣯विऽ᳐३ वा꣡क्ती꣢᳐। मा꣣ऽ२३४ही꣥॥ व्र꣢तश्शुचिबन्धुᳲपऽ३वा꣡कः꣢। पा꣣ऽ२३४दा꣥॥ व꣢रा꣯हो꣯ अभ्ये꣯ति꣡राऽ२३। हा꣢उवाऽ३॥ भाऽ२३꣡४꣡५꣡न्॥ दी-९। प-९। मा-५॥ ३५ (धु) १०१८॥

38_0524 प्र काव्यमुशनेव - 04 ...{Loading}...
लिखितम्

५२४-४। वाराहम्॥

हा꣥꣯उहा꣯उ। हु꣡प्। प्र꣢का꣡꣯वियाम्। उ꣢श꣡ने꣯। व꣢ब्रु꣣वा꣤णाः꣥॥ दे꣢꣯वो꣡꣯दे꣯वा। ना꣢ऽ३ ञ्ज꣡नि। मा꣢᳐वि꣣व꣤क्ती꣥॥ म꣢हि꣡व्रताः। शुचिबा꣢ऽ᳐३। धुᳲ꣢प꣣वा꣤काः꣥॥ हा꣯उहा꣯उ। हु꣡प्। प꣢दा꣡꣯वरा। हो꣢ऽ᳐३अ꣡भि। आ꣢ऽ३४३इ। ती꣢ऽ३रा꣤ऽ५इभा"ऽ६५६न्॥