१३ २

[[अथ त्रयोदशप्रपाठके द्वितीयोऽर्धः]]

[[अथ द्वितीयः खण्डः]]

41_0477 प्र सोमासो - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

४७७-१। सौभरे द्वे॥ द्वयोः सुभरिर्गायत्री सोमः॥

प्र꣢सो᳐मा꣣ऽ२३४साः꣥॥ म꣢दच्यु꣡तः꣢। औ꣡ऽ२३हो꣯वा꣢ऽ३। श्र꣡वाऽ२᳐सा꣣ऽ२३४ इनाः꣥। ओ꣡इम꣪घोनाऽ᳒२᳒म्॥ सु꣡ताऽ२३ः॥ वा꣡ऽ२᳐इदा꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा॥ थे꣢꣯अक्रमू꣣ ऽ२३꣡४꣡५ः꣡॥

42_0478 प्र सोमासो - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

४७८-१।

प्र꣥सो꣯मा꣯साः॥ वा꣡इपश्चि꣢तः। आ꣡पो꣢ऽ१नायाऽ᳒२᳒। ता꣡ऊ꣯र्म꣢यः॥ वा꣡ना꣢ऽ१ निमाऽ᳒२᳒। आ꣡औ꣢ऽ३हो꣢। हि꣡षा꣢꣯इव। इ꣡डाऽ२३भा꣢ऽ३४३। ओ꣡ऽ२३४५इ॥ डा॥

43_0479 पवस्वेन्दो वृषा - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

४७९-१। वृषकाणि त्रीणि॥ त्रयाणामिन्द्रो गायत्री सोमः॥

प꣤वस्वे꣯न्दोऽ५वृषा꣯सु꣤ताः॥ कृ꣢धी꣡꣯नो꣯यशसो꣯जनाये꣢ऽ३॥ वा꣢इश्वा᳐आ꣣ऽ २३४पा꣥॥ द्वा꣡ऽ२᳐इषा꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा॥ जा꣣ऽ२३४ही꣥॥ दी-७। प-५। मा-३॥ ३ (ञु) ८८५॥

44_0480 वृषा ह्यसि - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

४८०-१।

वृ꣤षा꣥꣯हिया꣤॥ सि꣢भा꣡꣯नूऽ२३ना꣢। द्युम꣡न्तन्त्वा꣯हावा꣢ऽ१माहाऽ२३४इ॥ प꣣वा꣢ऽ३॥ मा꣡नसु꣢वो꣡ऽ२३४वा꣥॥ दॄ꣣ऽ२३४शा꣥म्॥ दी-३। प-६। मा-२॥ ४ (टा) ८८६॥

44_0480 वृषा ह्यसि - 02 ...{Loading}...
लिखितम्

४८०-२।

वृ꣤षा꣯हियाऽ५सिभा꣯नु꣤ना॥ द्यु꣢म꣡न्तन्त्वा꣢꣯ह꣡वा꣰꣯ऽ२महे꣯। हाऽ᳒२᳒इ। ऊऽ᳒२᳒। हो꣭ऽ३वा꣢᳐। प꣡वमा꣢꣯नसुवर्दृ꣡श꣢म्। हाऽ᳒२᳒इ। ऊऽ᳒२᳒। हो꣭ऽ३वा꣢᳐॥ हु꣣वो꣢ऽ३४५इ॥ डा॥

45_0481 इन्दुः पविष्ट - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

४८१-१। बाभ्रोस्सामानि त्रीणि॥ कौम्भ्यस्य वा। त्रयाणां बभ्रुर्गायत्री सोमः॥

इ꣣न्दु꣢रौ꣣꣯हो꣤वाहा꣥इ। पा꣤वी꣥॥ ष्ट꣢चा꣡ऽ२꣮इ। तनो꣣ऽ२३४हा꣥। हा꣢꣯हो꣡इ। हो꣭ऽ३हा꣢। प्रियाᳲ꣡क꣢वी꣯। ना꣡꣯म्म। ति꣢रो꣣ऽ२३४हा꣥। हा꣢꣯हो꣡इ। हो꣭ऽ३हा꣢॥ सृ꣡जा ऽ२꣮त्। अश्वो꣣ऽ२३४हा꣥। हा꣢꣯हो꣡इ। हो꣭ऽ३हा꣢ऽ३॥ रा꣡ऽ२᳐था꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा॥ ई꣣ऽ२३४वा꣥॥

45_0481 इन्दुः पविष्ट - 02 ...{Loading}...
लिखितम्

४८१-२।

इ꣤न्दुᳲ꣥पविष्टचे꣤꣯त꣥नᳲप्रियᳲ꣤क꣥वा꣤इ॥ हि꣭म्ऽ३(स्थि)हि꣢म्। नाम्मा꣣ऽ२३४ तीः꣥॥ सृ꣡जादाऽ२३श्वा꣢म्॥ हि꣭म्ऽ३(स्थि)हि꣢म्ऽ३। रा꣡ऽ२᳐था꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा॥ ई꣣ऽ२३४वा꣥॥

45_0481 इन्दुः पविष्ट - 03 ...{Loading}...
लिखितम्

४८१-३।

इ꣤न्दुᳲ꣥पविष्टचे꣤꣯त꣥नᳲप्रियᳲ꣤क꣥वी꣯ना꣤꣯म्म꣥ति꣤स्सृ꣥। जा꣤ऽ५दश्वा꣤म्॥ ओ꣡वाऽ२३। ओ꣡वाऽ२३॥ रा꣡ऽ२᳐था꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा॥ ई꣣ऽ२३४वा꣥॥

46_0482 असृक्षत प्र - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

४८२-१। कार्तवेशस्य सामानि त्रीणि॥ त्रयाणां कृतवेशोगायत्री सोमः॥

अ꣥सृक्षा꣢ऽ३ता꣤प्र꣥वा꣤꣯जिनाः꣥॥ गा꣡व्याऽ᳒२᳒सो꣡माऽ᳒२᳒। सो꣯अ। श्व꣡या॥ शू꣢ऽ१ क्राऽ᳒२᳒सो꣡वीऽ᳒२᳒॥ रयाऽ᳒२᳒श꣡वः꣢। ओ꣡ऽ२३४५इ॥ डा॥ दी-२। प-८। मा-४॥ ९ (जी) ८९१॥

46_0482 असृक्षत प्र - 02 ...{Loading}...
लिखितम्

४८२-२।

अ꣥सृक्षताऱप्राऽ६वा꣥꣯जिनाः॥ ग꣢व्या꣡꣯सोऱमाऱसोऱअश्वयाऽ२३हो꣡इ॥ शु꣢क्रा꣡꣯सोऱ वा꣢ऽ३१इ॥ र꣢या꣡ऽ२३। शा꣡ऽ२᳐वा꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा॥ ग्वा꣣ऽ२३४भीः꣥॥

46_0482 असृक्षत प्र - 03 ...{Loading}...
लिखितम्

४८२-३।

अ꣣सृ꣤क्षतप्र꣣वा꣤꣯जिनः꣥। ए꣢ऽ᳐३। ग꣤व्यासो꣥꣯मा॥ सो꣢ऽ३आ꣡श्वा꣢ऽ३या꣢॥ शु꣡क्रा ऽ२᳐सो꣣ऽ२३४वी꣥॥ र꣢यो꣡ऽ२३४वा꣥। शा꣤ऽ५वोऽ६"हा꣥इ॥

47_0483 पवस्व देव - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

४८३-१। शाम्मदे द्वे॥ द्वयोः शम्मद्गायत्रीन्द्रवायू॥

पा꣤व꣥स्वा꣤दे꣥॥ व꣣या꣢ऽ३। वा꣡ऽ२᳐या꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा। यू꣣ऽ२३४षा꣥क्। आ꣤इन्द्रं꣥ ग꣤च्छा꣥। तु꣣ता꣢ऽ३इ। तू꣡ऽ२᳐ता꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा। मा꣣ऽ२३४दाः꣥॥ वा꣢꣯यूऽ᳒२ꣳ᳒होऽ१इ। आऽ२३रो꣢᳐। ह꣣धा꣢ऽ३। हा꣡ऽ२᳐धा꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा॥ मा꣣ऽ२३४णा꣥॥

47_0483 पवस्व देव - 02 ...{Loading}...
लिखितम्

४८३-२।

प꣣व꣤स्व꣥दे꣯वऐऱ। ही꣢ऐ᳐ही꣣ऽ२३४या꣥॥ आ꣡꣯युषागैऽ᳒२᳒ही꣡ऐऽ᳒२᳒ही꣭ऽ३या꣢। इ꣡न्द्रंगच्छतु तेऱमदऐऽ᳒२᳒ही꣡ऐऽ᳒२᳒ही꣭ऽ३या꣢॥ वा꣡यूमारो꣢ऽ३१२३॥ ह꣢धो꣡ऽ२३४वा꣥। मा꣤ऽ५णोऽ६" हा꣥इ॥ दी-४। प-७। मा-६॥ १३ (थृ) ८९५॥

48_0484 पवमानो अजीजनद्दिवश्चित्रम् - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

४८४-१। जनित्रे द्वे॥ द्वयोर्वसिष्ठो गायत्री सोमवैश्वानरौ॥

पा꣤वा꣥॥ मा꣡꣯नो। अ꣣जी꣢जा꣣ऽ२३४ना꣥त्। दि꣢व꣡श्चित्राम्। नतन्यतूम्॥ ज्योति꣢र्वैऱश्वा꣡ऽ२३॥ ना꣡ऽ२᳐रा꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा॥ बॄ꣣ऽ२३४हा꣥त्॥ दी-४। प-८। मा-५॥ १४ (दु) ८९६॥

48_0484 पवमानो अजीजनद्दिवश्चित्रम् - 02 ...{Loading}...
लिखितम्

४८४-२।

प꣥वमाऱनाः॥ अ꣡जाइजा꣢ऽ३ना꣢त्। दिव꣡श्चि꣢त्रा꣡ऽ२३ꣳहा꣢ऽ३इ। ना꣡त꣢ न्या꣣ऽ२३४तू꣥म्॥ ज्यो꣣ऽ२३४तीः꣥। वा꣣ऽ२३४इश्वा꣥॥ न꣤रोवा꣥। बॄ꣤ऽ५होऽ६"हा꣥इ॥

49_0485 परि स्वानास - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

४८५-१। प्रक्रीडास्त्रयः॥ (प्रक्रीडम्)। मरुतो गायत्री सोमः॥

पा꣤री꣥॥ स्वा꣢꣯नाऱसइन्दवोऱमदाऱयब। ह꣡णाऽ२᳐३गिरा꣢ऽ३४। म꣣धो꣢ऽ३४ अ꣣र्षा꣢ऽ३॥ ति꣢धो꣡ऽ२३४वा꣥। रा꣤ऽ५योऽ६"हा꣥इ॥ दी-४। प-६। मा-३॥ १६ (ति) ८९८॥

49_0485 परि स्वानास - 02 ...{Loading}...
लिखितम्

४८५-२। संक्रीडम्॥

पा꣤री꣥॥ स्वा꣢꣯ना꣡꣯सइन्दवाउवाऽ२३हो꣡वाऽ२३हाऽ᳒२᳒ई꣡या॥ मदाऱयबर्हणाऱ-गिराउवाऽ२३हो꣡वाऽ२३हाऽ᳒२᳒ई꣡या॥ मधोऱअर्षन्तिधाऱरयाउवाऽ२३हो꣡वाऽ२३ हाऽ᳒२᳒ई꣡याऽ२᳐। वा꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा॥ ऊ꣣ऽ२३४पा꣥॥

49_0485 परि स्वानास - 03 ...{Loading}...
लिखितम्

४८५-३। निक्रीडम्॥

पा꣣ऽ५रि। स्वाऱना꣤ऽ३सा꣢ऽ३इ꣤न्दवाः꣥॥ म꣡दा꣰꣯ऽ२यबर्ह꣡णा꣰꣯ऽ२गिरा꣡॥ मधोऽ२३र्षा꣢॥ ऊ꣡र्मि꣪रिवाऽ᳒२᳒। ई꣭ऽ३या꣢। ति꣣धाऱर꣢या꣡। औ꣢ऽ३हो꣤वा꣥। हो꣤ऽ५इ॥ डा॥

50_0486 परि प्रासिष्यदत्कविः - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

४८६-१। औशनम्॥ उशना गायत्री सोमः॥

प꣥रिप्राऱसी॥ ष्य꣢दत्का꣡वीऽ᳒२ः᳒। सि꣡न्धोऱरूऱर्माऱवाधि꣪श्रिताऽ᳒२ः᳒॥ का꣡꣯रूऽ२३म्॥ बा꣡ऽ२᳐इभ्रा꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा॥ पु꣢रुस्पृ꣡हा꣣ऽ२३꣡४꣡५꣡म्॥

[[अथ तृतीयः खण्डः]]

01_0487 उपो षु - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

४८७-१। यामानि त्रीणि॥ त्रयाणां यमो गायत्री देवाः॥इ꣢हाऽ᳒२᳒इहा꣡। उपो꣯षुजा꣯तमाऽ᳒२᳒प्तुरा꣡म्। इहा॥ इ꣢हाऽ᳒२᳒इहा꣡। गो꣯भिर्भङ्गं पराऽ᳒२᳒इष्कृता꣡म्। इहा॥ इ꣢हाऽ᳒२᳒इहा꣡। इन्दुन्दे꣯वा꣯अयाऽ᳒२᳒सि"षूः꣡। इहा꣢ऽ१॥

01_0487 उपो षु - 02 ...{Loading}...
लिखितम्

४८७-२।

ऊ꣡पो꣯षुजा꣯तमाऽ᳒२᳒प्तुरा꣡म्। उपा॥ गो꣯भाऽ२३इर्हो꣡इ। भङ्गंपराऽ᳒२᳒इष्कृ ता꣡म्। उपा॥ इन्दूऽ२३ꣳहो꣡इ। दे꣯वा꣯अयाऽ᳒२᳒। सि꣡षु꣢राऽ३१उवाऽ२३। ऊ꣢ऽ᳐३२᳐३४पा꣥॥

01_0487 उपो षु - 03 ...{Loading}...
लिखितम्

४८७-३।

उ꣤पो꣥꣯ष्वौ꣤꣯। होइजाता꣥म्॥ आ꣡प्तू꣢ऽ३रा꣢म्। औ꣭ऽ३हो꣢ऽ३वा꣢ऽ३। गो꣡भि꣢र्भा꣣ ऽ२३४ङ्गा꣥म्॥ ओ꣡इपारि꣪ष्कृताऽ᳒२᳒म्॥ इ꣡न्दूऽ२३म्॥ दे꣯वा꣢ऽ३४औ꣥꣯हो꣯वा॥ अ꣢या꣯सिषू꣣ऽ२३꣡४꣡५ः꣡॥

02_0488 पुनानो अक्रमीदभि - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

४८८-१। (अंकतेः साम) वैरूपम्॥ अङ्कतिर्गायत्री सोमः॥

पु꣥नाऱनोऱआ॥ क्रा꣢मी᳐दा꣣ऽ२३४भी꣥। वि꣡श्वाऽ२᳐मा꣣ऽ२३४र्द्धाः꣥। वी꣢च᳐र्षा꣣ ऽ२३४णीः꣥॥ शु꣡म्भाऽ२᳐न्ता꣣ऽ२३४इवी꣥॥ प्रा꣡ऽ२᳐न्धा꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा॥ ती꣣ऽ२३४ भीः꣥॥

03_0489 आविशन्कलशं सुतो - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

४८९-१। औशने द्वे॥ द्वयोरुशना गायत्री सोमेन्द्रौ॥

आ꣥꣯विशन्काऱलाऽ६शꣳ꣥सुताः॥ वा꣡इश्वा꣢꣯अ꣡र्ष꣢न्। अभा꣡इश्राया꣢ऽ३ः। ओ꣭ऽ३ हा꣢ऽ३। ओ꣡वा꣢᳐। ओ꣣ऽ२३४हा꣥इ॥ इ꣡न्दूऽ२३ः॥ आ꣡ऽ२᳐इन्द्रा꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा॥ य꣢धीऱयते꣣ऽ२३꣡४꣡५꣡॥ दी-६। प-९। मा-१०॥ २४ (घौ) ९०६॥

03_0489 आविशन्कलशं सुतो - 02 ...{Loading}...
लिखितम्

४८९-२।आ꣤꣯विश꣣न्क꣤लश꣥म्। सु꣣ता꣢ऽ३ः। वा꣤इश्वाः꣥॥ अ꣡र्ष꣢न्। अभा꣡इश्राया꣢᳐। औ꣣꣯हौऱहोऽ२३४वा꣥॥ औ꣡हौ꣢꣯होऽ१इ। इन्दूरा꣢ऽ१इन्द्राऽ᳒२᳒। य। धी꣡꣯याऽ२᳐ता꣣ऽ२३४ औ꣥꣯हो꣯वा॥ ऊ꣣ऽ२३४पा꣥॥ दी-७। प-११। मा-९॥ २५ (च्चो) ९०७॥

04_0490 असर्जि रथ्यो - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

४९०-१। सोमसाम॥ सोमो गायत्री सोमः॥

अ꣥सर्जिरा॥ थि꣢। यो꣡꣯याऽ२३था꣢। पवि꣡त्रे꣢꣯। चा꣡। मु꣪वोऽ२᳐स्सू꣣ऽ२३४ ताः꣥॥ का꣢꣯र्ष्म꣡न्वाऽ२३जी꣢॥ नि꣡यक्र꣢मा꣡इत्। औऽ२३हो꣤वा꣥। हो꣤ऽ५इ॥ डा॥

05_0491 प्र यद्गावो - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

४९१-१। कार्ष्णे द्वे॥ द्वयोः कृष्णो गायत्री सोमः॥

प्र꣤यद्धा꣥उ। गा꣢꣯वोऱनऽ३भू꣡र्णा꣢ऽ१याऽ२३४ः। त्वे꣣꣯षा꣢ऽ३ः। आ꣡या꣰꣯ऽ२सोऱ अक्रमुः॥ घ्नन्ताᳲ꣡काऽ२३र्ष्णा꣢म्। अपा꣡त्वच꣢म्। औऱहो꣡ऽ२᳐हा꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा॥ ऊ꣢ऽ᳐३२᳐३४पा꣥॥

05_0491 प्र यद्गावो - 02 ...{Loading}...
लिखितम्

४९१-२।

प्र꣢य꣡द्गा꣢ऽ३वो꣤꣯नभू꣥꣯र्णयाः॥ त्वा꣡इषाऱअ꣢याऱ। सो꣡अ꣪क्रमूऽ२३ः॥ घ्ना꣡ऽ२३४ न्तो꣯हा꣥इ॥ का꣡ऽ२᳐र्ष्णा꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा॥ अ꣡प꣢त्व꣡चा꣣ऽ२३꣡४꣡५꣡म्॥

06_0492 अपघ्नन्पवसे मृधः - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

४९२-१। सोमसाम॥ (वैश्वदेवम्)। सोमो गायत्री सोमः॥

अ꣥पघ्नौ꣤꣯। होइपावा꣥॥ सा꣡इमा꣢ऽ१र्द्धाऽ᳒२ः᳒। क्रा꣡तुवि꣢त्सोऱ। ममा꣡त्सा꣢ऽ१ राऽ᳒२ः᳒॥ नु꣡दाऽ२३। स्वा꣡ऽ२᳐दा꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा॥ व꣢युञ्ज꣡नाऽ२३꣡४꣡५꣡म्॥

07_0493 अया पवस्व - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

४९३-१। सूर्यसाम॥ (वैश्वदेवम्)। सूर्यो गायत्री सोमः॥ए꣥꣯अयाऱपवा॥ स्व꣢धाऽ᳒२᳒। र꣡या꣢ऽ३१उवाऽ२३। ऊ꣢ऽ३४पा꣥। य꣡याऱसूऱर्य मरोऽ᳒२᳒। च꣡या꣢ऽ३१उवाऽ२३। ऊ꣢ऽ३४पा꣥॥ हि꣡न्वाऱनोऱमाऱनुषाऽ२३इर्हो꣡इ॥ आप꣢ आऽ३१उवाऽ२३॥ ऊ꣢ऽ᳐३२᳐३४पा꣥॥ दी-७। प-१०। मा-७॥ ३० (ञ्ले) ९१२॥

08_0494 स पवस्व - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

४९४-१। वार्त्रघ्नम्॥ इन्द्रो गायत्रीन्द्रो वृत्रहा॥

स꣣हो꣢ऽ३४३इ। प꣢व꣣स्व꣥॥ य꣡आऽ᳒२᳒विथा꣡। इ꣢न्द्रं꣡वृत्रा꣢ऽ३। या꣡ह꣢न्ता꣣ऽ२३४ वे꣥। ओ꣡वा꣢ऽ३ओ꣤वा꣥॥ व꣢व्रि꣡वाऽ२३ꣳसा꣢म्॥ मा꣡ही꣢꣯रपा꣡। औ꣢ऽ३हो꣤वा꣥। हो꣤ऽ५इ॥ डा॥

09_0495 अया वीती - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

४९५-१। सोम सामानि त्रीणि॥ त्रयाणां सोमो गायत्री सोमः॥

अ꣥या꣯वी꣯ती॥ पा꣢꣯रि꣡स्रवा। य꣢स्तइ꣡न्दाउ। मा꣢꣯दा꣡इषुवा॥ अवाहा꣢ऽ३ न्ना꣢ऽ३॥ व꣢तो꣡ऽ२३४वा꣥। ना꣤ऽ५वोऽ६"हा꣥इ॥ दी-४। प-७। मा-४॥ ३२ (थी) ९१४॥

09_0495 अया वीती - 02 ...{Loading}...
लिखितम्

४९५-२।

अ꣢या꣡꣯वी꣯ता꣢᳐॥ औ꣣꣯हो꣡वा꣢᳐। औ꣣꣯हो꣢ऽ३४इ। औ꣢꣯। हो꣡ऽ२᳐। वा꣣ऽ२३४। औ꣥꣯हो꣯वा॥ प꣡रिस्र꣢व॥ यस्त꣡इन्दा꣢॥ औ꣣꣯हो꣡वा꣢᳐। औ꣣꣯हो꣢ऽ३४इ। औ꣢꣯। हो꣡ऽ२᳐। वा꣣ऽ२३४। औ꣥꣯हो꣯वा॥ म꣡दे꣰꣯ऽ२षुवा꣡꣯॥ अवा꣯हन्ना꣢᳐॥ औ꣣꣯हो꣡वा꣢᳐। औ꣣꣯हो꣢ऽ३४इ। औ꣢꣯। हो꣡ऽ२᳐। वा꣣ऽ२३४। औ꣥꣯हो꣯वा॥ व꣢ती꣡꣯र्नवाऽ२३꣡४꣡५꣡॥ दी-२१। प-२४। मा-४॥ ३३ (घी) ९१५॥

09_0495 अया वीती - 03 ...{Loading}...
लिखितम्

४९५-३।

अ꣤या꣣ऽ५वी꣯। ता꣤ऽ३इपा꣢ऽ३रि꣤स्रवा꣥॥ या꣡स्तइ꣢न्दो꣯। मदा꣡इषू꣢ऽ१वाऽ᳒२᳒॥ अ꣡वाहा꣢ऽ३न्ना꣢᳐॥ व꣣ती꣯र्न꣢वा꣡। औ꣢ऽ३हो꣤वा꣥। हो꣤ऽ५इ॥ डा॥ दी-३। प-९। मा-४॥ ३४ (ढी) ९१६॥

10_0496 परि द्युक्षम् - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

४९६-१। भारद्वाजम्॥ भरद्वाजो गायत्री सोमः॥प꣥रिद्युक्षाम्॥ ओ꣡इ। सनद्रायीऽ᳒२᳒म्। ओ꣡इ। भरद्वाजाऽ᳒२᳒म्। ओ꣡इ। नो꣯अन्धासाऽ२३४॥ स्वा꣣꣯नो꣢ऽ३४अ꣣र्षा꣢ऽ३॥ प꣤वोवा꣥। त्रा꣤ऽ५योऽ६"हा꣥इ॥