१२ २

[[अथ पावमानगानम्]]

[[अथ द्वादशप्रपाठके द्वितीयोऽर्धः। ]]

[[पञ्चमोऽध्यायः]]

[[अथ प्रथमः खण्डः]]

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लिखितम्

४६७-१। आजिगम्॥ अजिगो प्रजापतिर्वा गायत्री सोमः॥ओ꣡म्॥ उ꣥च्चा꣤॥ ते꣢꣯जा꣯ऽ३ता꣡म꣪न्धासाऽ᳒२ः᳒। दिवि꣡सद्भू꣯म्या꣯ददाइ॥ उ꣢ग्रꣳ꣡शाऽ२३ र्मा꣢ऽ३॥ मा꣡ऽ२᳐हा꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा॥ उ꣢᳐प्। श्रा꣣ऽ२३४वाः꣥॥

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लिखितम्

४६७-२। आभीकम्॥ अङ्गिरसो गायत्री सोमः॥

उ꣢च्चा꣡꣯तेऽ२३४जा꣥। त꣢म꣡न्धाऽ२३४साः꣥। दि꣢वा꣡इसाऽ२३४द्भू꣥॥ मि꣢या꣡꣯ददाइ॥ उ꣢ग्रꣳ꣡शाऽ२३र्मा꣢॥ महा꣡ये꣢ऽ३। श्रा꣡ऽ२᳐वा꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा॥ वा꣣ऽ२३꣡४꣡५꣡इ॥ दी-४। प-८। मा-५॥ २ (दु) ८१५॥

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लिखितम्

४६७-३। ऋषभः पावमानम्॥ ऋषभो गायत्री सोमः॥

हा꣥꣯हा꣯उच्चा꣯ते꣯जा॥ हा꣢ऽ३। हा꣢ऽ३इ। ता꣡माऽ२᳐न्धा꣣ऽ२३४साः꣥। दि꣢वि꣡सद्भू꣯ मिया꣢ऽ१दा꣢ऽ३दे꣢॥ उग्रꣳशा꣣ऽ२३४र्मा꣥॥ ओ꣡मो꣢ऽ३। म꣤होवा꣥। श्रा꣤ऽ५वोऽ६" हा꣥इ॥

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लिखितम्

४६७-४। आभीकम्॥ अङ्गिरसो गायत्री सोमः॥

ऊ꣡ऽ२३४च्चा꣯ते꣯जाऽ५। तमौ꣯हो꣤न्धासाः꣥॥ दि꣢वि꣡सद्भू꣯मिया꣢ऽ१दा꣢ऽ३दे꣢॥ उग्रꣳ᳐शा꣣ऽ२३४र्मा꣥॥ मा꣡हा꣭ऽ३उवा꣢ऽ३४३। श्रा꣢ऽ३४५वोऽ६"हा꣥इ॥ दी-४। प-६। मा-३॥ ४ (ति) ८१७॥

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लिखितम्

४६७-५। बाभ्रवे द्वे॥ द्वयोः बभ्रुर्गायत्री सोमः॥

उ꣥च्चा꣯ते꣯जा॥ त꣢म꣡। धासाऽ२३ः। ओ꣡꣯मो꣭ऽ३वा꣢। दि꣡विस꣢द्भू꣯। मिया꣡दा꣢ऽ१देऽ२३॥ ओ꣡꣯मो꣭ऽ३वा꣢॥ उ꣡ग्राꣳशा꣢ऽ१र्माऽ२३॥ ओ꣡꣯मो꣭ऽ३वा꣢ऽ३। मा꣡ऽ२᳐हा꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा॥ श्र꣢वऽ३ई꣡ऽ२३꣡४꣡५꣡॥ दी-८। प-११। मा-३॥ ५ (टि) ८१८॥

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लिखितम्

४६७-६। ग्वानिधनबाभ्रवम्॥उ꣥च्चा꣯ते꣯जा॥ त꣢म꣡न्धाऽ२३साः꣢। दि꣡विस꣢द्भू꣯। मिया꣡꣯दाऽ२३दा꣢इ॥ ऊ꣡ग्रा꣢ऽ३ꣳहा꣢इ। शा꣡र्मा꣢ऽ३हा꣢इ॥ म꣣हा꣢ऽ३हो꣡ये꣢ऽ३। श्रा꣡ऽ२᳐वा꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा॥ ग्वा꣣ऽ२३४भीः꣥॥

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लिखितम्

४६७-७। इन्द्राण्यास्साम॥ इन्द्राणी गायत्री सोमः॥

उ꣥च्चा꣤꣯ते꣥꣯जा꣯त꣤मा। धा꣡साऽ२३ः। ओ꣡꣯मो꣭ऽ३वा꣢। दि꣡विस꣢द्भू꣯। मिया꣡दा꣢ऽ१ देऽ२३। ओ꣡꣯मो꣭ऽ३वा꣢। उ꣡ग्राꣳशा꣢ऽ१र्माऽ२३। ओ꣡꣯मो꣭ऽ३वा꣢। महा꣡ये꣢ऽ३। श्रा꣡ऽ२᳐ वा꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा। ऊ꣢ऽ᳐३२᳐३४पा꣥॥ दी-९। प-११। मा-२॥ ७ (त्ला) ८२०॥

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लिखितम्

४६७-८। शैशवे द्वे॥ द्वयोः शिशुर्गायत्री सोमः॥

उ꣥च्चा꣯ते꣯जा꣯तमन्धा꣤साः꣥॥ दि꣢वि꣡सद्भू꣯म्या꣯ददाइ॥ उ꣢ग्रꣳ꣡शाऽ२३४र्मा꣥॥ म꣣हा꣢ऽ३इश्रा꣤ऽ५वा"ऽ६५६ः॥ दी-५। प-४। मा-४॥ ८ (भी) ८२१॥

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लिखितम्

४६७-९।

उ꣥च्चा꣯ते꣯जा꣯तमन्धाऽ६साः꣥॥ दि꣢वि꣡सद्भू꣯। म्या꣯दाऽ२३दा꣢इ। उ। ग्रꣳ꣡शाऽ२३र्मा꣢॥ म꣡हाऽ᳒२᳒। हाऽ᳒२᳒इ। औ꣭ऽ३हो꣢ऽ३१इ। श्रवाऽ᳒२ः᳒। हाऽ᳒२᳒इ। औ꣭ऽ३हो꣢ऽ३१इ॥ इ꣣या꣢ऽ३हो꣡इ। इ꣣योऽ२३४५वाऽ६५६॥ ऊ꣣ऽ२३꣡४꣡५꣡॥ दी-५। प-१४। मा-८॥ ९ (र्भै) ८२२॥

४६७-१०। दोहसामनी द्वे॥ द्वयोः प्रजापतिर्गायत्री सोमः॥

उ꣣च्चा꣢ऽ३४औ꣣꣯हो꣤꣯वा꣥॥ ते꣡जाऽ२᳐। त꣣मा꣢ऽ३४५। धा꣣ऽ२३४साः꣥। दि꣢वि꣡सद्भू꣯म्या꣯ददे꣢꣯॥ ऊ꣡ग्र꣪ꣳशाऽ२३र्मा꣢॥ म꣣हिश्र꣢वा꣡। औ꣢ऽ३हो꣤वा꣥॥ हो꣤ऽ५इ॥ डा॥

४६७-११। दोहीयसाम॥उ꣥च्चा꣯ते꣯जा꣯तमन्धसो꣯दो꣯हा꣯इदो꣯हाऽ६ए꣥॥ दि꣢वि꣡सद्भू꣯म्या꣯ददे꣢꣯। दो꣭ऽ३हा꣢इ। दो꣭ऽ३हा꣢ऽ३ए꣢॥ उग्रꣳ꣡शाऽ२३र्मा꣢। दो꣭ऽ३हा꣢इ। दो꣭ऽ३हा꣢ऽ३ए꣢॥ महि꣡श्राऽ२३ वा꣢ऽ३४३ः। ओ꣡ऽ२३४५इ॥ डा॥ दी-१०। प-१०। मा-८॥ ११ (में) ८२४॥

४६७-१२। इन्द्राण्यास्साम॥ इन्द्राणी गायत्री सोमः॥

उ꣣च्चा꣢᳐ते꣣꣯जा꣤꣯तम꣥न्धसाः॥ दि꣢वा꣡इसाऽ२३४द्भू꣥। मि꣢याऽ᳒२᳒द꣡दे꣢꣯। ओ꣡꣯म्। ओ꣭ऽ३वा꣢। ओ꣭ऽ३वा꣢। व꣡वाऽ२३हो꣡इ॥ उ꣢ग्रꣳ꣡शाऽ२३र्मा꣢। ओ꣭ऽ३वा꣢। ओ꣭ऽ३वा꣢। व꣡वाऽ२३हो꣡इ॥ म꣢हि꣣श्र꣢वो꣡ऽ२᳐। या꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा॥ य꣢युरे꣣ऽ२३꣡४꣡५꣡॥ दी-६। प-१४। मा-८॥ १२ (घू) ८२५॥

४६७-१३। आमहीयवम्॥ अमहीयुर्गायत्री सोमः॥

उ꣥च्चा꣯ता꣢ऽ३इजा꣤꣯तम꣥न्धसाः॥ दि꣢वा꣡इसा꣢ऽ१द्भूऽ᳒२᳒। मि꣡याऽ२३ददा꣢इ॥ उग्रꣳ꣡श꣢र्मा꣡॥ महाऽ२३इश्रवा꣢उ। वाऽ३॥ स्तौ꣢꣯षेऽ३꣡४꣡५꣡॥ दी-३। प-७। मा-६॥ १३ (ठू) ८२६॥

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लिखितम्

४६८-१। आजिगम्॥ अजिगो गायत्री सोमेन्द्रौ॥

स्वा꣡꣯दाइष्ठाया꣢। म꣡दाइष्ठाया꣢॥ प꣡वस्व꣢सो꣯। मा꣡धा꣢ऽ१राऽ२३या꣢॥ इ꣡न्द्रायापा꣢। तवा꣡इसूऽ२३ता꣢ऽ३४३ः। ओ꣡ऽ२३४५इ॥ डा॥

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लिखितम्

४६८-२। सुरूपे द्वे॥ सुरूपर्गायत्री सोमेन्द्रौ॥

स्वा꣢꣯दिष्ठ꣡याऽ᳒२᳒। इ꣡याऽ᳒२᳒इ꣡या। म꣢दिष्ठा꣡याऽ᳒२᳒॥ पवस्व꣡सोऽ᳒२᳒। इ꣡याऽ᳒२᳒इ꣡या। म꣢धा꣯रा꣡याऽ᳒२᳒॥ इन्द्रा꣯य꣡पाऽ᳒२᳒। इ꣡याऽ᳒२᳒इ꣡या॥ त꣢वा꣡इसूऽ२३ता꣢ऽ३४३ः। ओ꣡ऽ२३४५इ॥ डा॥

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लिखितम्

४६८-३। सुरूपोत्तरम्॥स्वा꣢꣯दिष्ठ꣡यौहोऽ᳒२᳒। इ꣡या। म꣢दिष्ठा꣡याऽ᳒२᳒॥ पवस्व꣡सौहोऽ᳒२᳒। इ꣡या। म꣢धा꣯रा꣡याऽ᳒२᳒॥ इन्द्रा꣯य꣡पौहोऽ᳒२᳒। इ꣡या॥ त꣢वा꣡इसूऽ२३ता꣢ऽ३४३ः। ओ꣡ऽ२३४५ इ॥ डा॥

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लिखितम्

४६८-४। जमदग्नेः शिल्पे द्वे॥ द्वयोः जमदग्निर्गायत्री सोमेन्द्रौ॥

ओ꣢इ᳐स्वा꣣ऽ२३४दी꣥॥ ष्ठ꣢या꣯ऽ३मा꣡दि꣪ष्ठया꣢᳐। ओ꣣ऽ२३४वा꣥। प꣡वस्व꣢सो꣯म धा꣡꣯रया꣢ऽ᳐३॥ ओ꣢᳐ई꣣ऽ२३४न्द्रा꣥॥ या꣡ऽ२᳐पा꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा॥ त꣢वे꣯सु꣣ता꣢ऽ१ः॥

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लिखितम्

४६८-५।

उ꣣हुवा꣢इ᳐। स्वा꣣ऽ२३४दी꣥॥ ष्ठ꣢या꣯ऽ३मा꣡दि꣪ष्ठया꣢᳐। ओ꣣ऽ२३४वा꣥। प꣡वस्व꣢ सो꣯मधा꣡꣯रया꣢ऽ᳐३॥ उहुवा꣢इ। इ꣤न्रा꣣ऽऽ५यपा॥ ता꣡ऽ२᳐वा꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा॥ सू꣣ऽ२३४ताः꣥॥

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लिखितम्

४६८-६। सँहितम्॥ सँहितः साध्या देवा गायत्री सोमेन्द्रौ॥

स्वा꣤꣯दाइष्ठ꣥या॥ म꣢दिष्ठयाऽ३। पा꣡वा꣢ऽ३स्वा꣤सो꣥। म꣢धा꣯रयाऽ३॥ आ꣡इन्द्रा꣢ऽ३ या꣤पा꣥ऽ६। हा꣥उ॥ त꣤वाऽ५इसुताउ॥ वा॥ दी-२। प-८। मा-५॥ १९ (जु) ८३२॥

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लिखितम्

४६८-७। शकुलः॥ वसिष्ठो गायत्री सोमेन्द्रौ॥

स्वा꣤꣯दि꣥ष्ठया꣯म꣤दि꣥ष्ठया꣯प꣤व꣥स्वसो꣯मधा꣤꣯र꣥या꣯इ꣤। द्राऽ५यपा꣤॥ त꣢वाऽ᳒२᳒इ। ऊऽ᳒२᳒। तवाऽ᳒२᳒इ। ऊ꣡ऽ२᳐॥ त꣣वा꣢ऽ३४औ꣥꣯हो꣯वा। सू꣣ऽ२३४ताः꣥॥ दी-८। प-८। मा-५॥ २० (डु) ८३३॥

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लिखितम्

४६८-८। गङ्भीरम्॥ जमदग्निर्गायत्री सोमेन्द्रौ॥औ꣥꣯हो꣯हि꣯म्(स्थि)हा꣯ए꣤हिया꣥। हा꣢ऽ३हा꣢इ। स्वा꣡꣯दाइष्ठाया꣢᳐। मा꣣ऽ२३४दी꣥॥ ओ꣢इ᳐मा꣣ऽ२३४दी꣥॥ औ꣯हो꣯हि꣯म्(स्थि)हा꣯ए꣤हिया꣥। हा꣢ऽ३हा꣢इ। ष्ठ꣡यापाव꣢। स्वा꣣ऽ२३४सो꣥॥ ओ꣢᳐स्वा꣣ऽ२३४सो꣥॥ औ꣯हो꣯हि꣯म्(स्थि)हा꣯ए꣤हिया꣥। हा꣢ऽ३हा꣢इ। म꣡धारया꣢᳐। ई꣣ऽ२३४न्द्रा꣥। ओ꣢᳐ई꣣ऽ२३४न्द्रा꣥॥ औ꣯हो꣯हि꣯म्(स्थि)हा꣯ए꣤हिया꣥। हा꣢ऽ३हा꣢इ। य꣡पातवा꣢इ। सू꣣ऽ२३४ताः꣥। ओ꣢इ᳐सू꣣ऽ२३४ताः꣥॥ औ꣯हो꣯हि꣯म्(स्थि) हा꣯ए꣤हिया꣥। हा꣢ऽ३हा꣢ऽ३४। औ꣥꣯हो꣯वा। ई꣣ऽ२३꣡४꣡५꣡॥

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लिखितम्

४६८-९। सँहितः॥ साध्या देवा गायत्री सोमेन्द्रौ॥

स्वा꣤꣯दि꣥ष्ठया꣯म। दा꣤ऽ५इष्ठया꣤॥ प꣢वाऽ᳒२᳒। स्वा꣡ऽ२३सो꣢। म꣡धाऽ᳒२᳒रा꣡या॥ आऽ२३इन्द्रा꣢॥ याऽ᳒२᳒पा꣡। त꣪वाऽ२३॥ हा꣢उवाऽ३॥ सूऽ२३४ताः꣥॥

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लिखितम्

४६९-१। सोम सामनी द्वे॥ द्वयोः सोमो गायत्रीन्द्र सोमौ इन्द्रो वा॥

वृ꣥षा꣯पवा॥ स्व꣢धा꣯रा꣡याऽ᳒२᳒। मरु꣡त्वताइ। चमत्साऽ२३राः꣢॥ वा꣡इश्वा ऽ२३॥ दा꣡ऽ२᳐धा꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा॥ न꣢ओ꣡꣯जसा꣣ऽ२३꣡४꣡५꣡॥

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लिखितम्

४६९-२।

वृ꣤षाहा꣥उ॥ पा꣣ऽ२३४वा꣥। स्वा꣢धा᳐रा꣣ऽ२३४या꣥। मा꣣ऽ२३४रू꣥। त्वा꣣ऽ२३४ ता꣥इ। चा꣢म᳐त्सा꣣ऽ२३४राः꣥॥ वा꣡इश्वा꣢꣯दधा꣡ऽ२३॥ ना꣡ऽ२᳐ओ꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा॥ जा꣣ऽ२३४सा꣥॥

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लिखितम्

४६९-३। आशुभार्गवम्॥ भृगुर्गायत्रीन्द्र सोमौ इन्द्रो वा॥

वृ꣤षा꣥꣯पव꣤। स्व꣥धा꣯राऽ६या꣥॥ मा꣡रुत्वता꣢ऽ३इ। चा꣡माऽ२᳐त्सा꣣ऽ२३४राः꣥॥ वि꣡श्वादा꣢ऽ१धाऽ२᳐॥ न꣣ओ꣢ऽ३। जा꣡ऽ२३४सो꣥ऽ६"हा꣥इ॥

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लिखितम्

४६९-४। वैश्वदेवे द्वे॥ द्वयोर्विश्वेदेवा गायत्रीन्द्रसोमौ इन्द्रो वा॥आ꣤इवृ꣥षा꣤॥ प꣢वा꣡। इ꣣हा꣢। औ꣭ऽ३हो꣢। स्वधा꣡꣯राऽ२३४या꣥। म꣢। रू꣡। त्वते꣢ऽ३हा꣢इ। च। मा꣡। त्स꣪राऽ२३हा꣢ऽ३४इ॥ वि꣥श्वा꣯दधा꣯हाउ। नओ꣯जसा꣯ हाउ॥ ओ꣢꣯वाऽ३४३ओ꣢ऽ३४५वाऽ६५६॥ अ꣢स्मे꣡꣯रा꣯या꣰꣯ऽ२उत꣡श्रवाऽ२३꣡४꣡५ः꣡॥

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लिखितम्

४६९-५।

वृ꣥षा꣯। प꣣वा꣢ऽ३। ए꣤हिया꣥॥ स्व꣢धा꣡ऽ२᳐। र꣣या꣢ऽ३४औ꣣꣯हो꣤꣯वा꣥। मा꣡रू꣢ऽ३४। औ꣣꣯हो꣤꣯वा꣥॥ त्व꣡ते꣯चमा꣢ऽ१त्सा꣢ऽ३राः꣢॥ औ꣭ऽ३हो꣢ऽ३१ये꣢ऽ३। औ꣯होऽ२३४५ वाऽ६५६॥ वि꣡श्वा꣢꣯द꣡धा꣢꣯नओ꣡꣯जसा꣣ऽ२३꣡४꣡५꣡॥ दी-१०। प-११। मा-३॥ २७ (पिं) ८४०॥

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लिखितम्

४६९-६। इन्द्र सामनी द्वे॥ द्वयोरिन्द्रो गायत्रीन्द्रसोमौ इन्द्रो वा॥

वृ꣡षापावाऽ२३। हौ꣡꣯होइ। औ꣢ऽ३होऽ२३꣡४꣡५꣡॥ स्व꣡धारायाऽ२३। हौ꣡꣯होइ। औ꣢ऽ३होऽ२३꣡४꣡५꣡। म꣡रूत्वातेऽ२३। हौ꣡꣯होइ। औ꣢ऽ३होऽ२३꣡४꣡५꣡। च꣡मात्सारा ऽ२३ः। हौ꣡꣯होइ। औ꣢ऽ३होऽ२३꣡४꣡५꣡॥ वि꣡श्वादाधाऽ२३। हौ꣡꣯होइ। औ꣢ऽ३ होऽ२३꣡४꣡५꣡। न꣡ओजासाऽ२३। हौ꣡꣯होइ। औ꣢ऽ३हो꣢ऽ३४३॥ ओ꣡ऽ२३४५इ॥ डा॥

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लिखितम्

४६९-७।

वृ꣢षा꣡पावा꣢᳐। औ꣣꣯हौ꣯होऽ२३४वा꣥। स्व꣢धा꣡राया꣢᳐। औ꣣꣯हौ꣯होऽ२३४वा꣥॥ म꣢रू꣡त्वाता꣢᳐। औ꣣꣯हौ꣯होऽ२३४वा꣥। च꣢मा꣡त्सारा꣢᳐। औ꣣꣯हौ꣯होऽ२३४वा꣥॥ वि꣢श्वा꣡दाधा꣢᳐। औ꣣꣯हौ꣯होऽ२३४वा꣥॥ न꣢ओ꣡जासा꣢᳐। औ꣣꣯हौ꣯होऽ२३४वा꣥॥ हो꣤ऽ५इ॥ डा॥

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लिखितम्

४६९-८। यौक्ताश्वे द्वे॥ द्वयोर्युक्ताश्वो गायत्री सोमः इन्द्रो वा॥ (यौक्ताश्वाद्यम्)।

औ꣥꣯हो꣤होहा꣥इ। वृ꣤षा꣥॥ प꣢वस्वऽ३धा꣡राया꣢ऽ३। मा꣡रूऽ२᳐त्वा꣣ऽ२३४ता꣥इ। ओ꣡इ। च꣪माऽ२३। च꣡माऽ२᳐त्सा꣣ऽ२३४राः꣥॥ औ꣯हो꣤होहा꣥इ। वि꣤श्वा꣥॥ द꣡धाऽ२᳐ ना꣣ऽ२३४ओ꣥। जा꣢᳐सा꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा॥ ओ꣢इ। ज्वर꣣आ꣢॥ दी-४। प-१३। मा-९॥ ३० (दो) ८४३॥

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लिखितम्

४६९-९। यौक्ताश्वोत्तरम्॥वृ꣥षा꣯औ꣯हो꣤होहा꣥इ॥ प꣢वऽ३स्वा꣡धा꣢ऽ१राया꣢ऽ३। मा꣡रूऽ२᳐त्वा꣣ऽ२३४ता꣥इ। च꣣मा꣢ऽ३। ओ꣡इ। च꣪माऽ२᳐त्सा꣣ऽ२३४राः꣥॥ विश्वा꣯औ꣯हो꣤होहा꣥इ॥ द꣡धाऽ२᳐ ना꣣ऽ२३४ओ꣥। जा꣡ऽ२᳐सा꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा॥ ओ꣢इ᳐। जू꣣ऽ२३४वा꣥॥