०९ २

[[अथ नवमप्रपाठके द्वितीयोऽर्धः]]

05_0346 श्रुधी हवम् - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

३४६-१। तैरश्च्ये द्वे॥ द्वयोः तिरश्च्यऽनुष्टुबिन्द्रः॥

श्रु꣥धी꣤॥ हा꣡वाऽ᳒२ꣳ᳒हा꣡वाऽ᳒२᳒म्। तिरश्चि꣡याः। इ꣢न्द्र꣡याऽ२३स्त्वा꣢। स꣡पौ꣭ऽ३हो꣢। र्य꣡ती꣭ऽ३या꣢॥ सुवी꣡꣯र्यस्यगो꣯मताः॥ रा꣢꣯या꣡स्पूऽ२३र्द्धी꣢॥ महाꣳ꣡ऽ२३। अ꣢सि꣣या꣢ऽ३४३॥ ओ꣡ऽ२३४५इ॥ डा॥

05_0346 श्रुधी हवम् - 02 ...{Loading}...
लिखितम्

३४६-२। तैरश्च्यम्॥

श्रु꣥धी꣯हा꣢ऽ३व꣤न्ति꣥र꣤श्चियाः꣥॥ इ꣢न्द्रा꣡य꣢स्त्वा꣡। स꣢प꣣र्य꣢ता꣡ये꣢ऽ३४। सुवी꣥꣯। रि꣣या꣢᳐। स्या꣣ऽ२३४गो꣥। मा꣡ताऽ᳒२ः᳒॥ रा꣡यास्पूर्द्धी꣢ऽ३। हा꣢ऽ३हा꣢इ॥ म꣤हाꣳऽ५असी। हो꣤ऽ५इ॥ डा॥

06_0347 असावि सोम - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

३४७-१। महावैश्वामित्रम्॥ विश्वामित्रोऽनुष्टुबिन्द्रः॥ सूर्यो वा।

अ꣣सा꣤꣯विसो꣣꣯म꣤इ꣥न्द्रते꣯। शा꣢विष्ठा꣣ऽ२३४धॄ꣥॥ ष्णो꣢ऽ३आ꣡गा꣢ऽ३ही꣢। आ꣡त्वा꣢꣯पृणा꣡ऽ२३हा꣢ऽ३। क्तु꣡ईऽ२᳐न्द्रा꣣ऽ२३४या꣥म्॥ र꣡जाः। सूर्यौ꣢वा᳐ओ꣣ऽ२३४वा꣥॥ न꣤राऽ५श्मिभीः॥ हो꣤ऽ५इ॥ डा॥

07_0348 एन्द्र याहि - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

३४८-१। काण्वे द्वे॥ द्वयोः कण्वोऽनुष्टुबिन्द्रः॥

ए꣥꣯न्द्रा꣢ऽ३या꣤꣯हि꣥ह꣤रिभा꣥इः॥ उ꣢पाकण्वाऽ३। स्या꣡सु꣢ष्टू꣣ऽ२३४ती꣥म्। दि꣢वो꣯अमूऽ३। ष्या꣡शा꣢᳐सा꣣ऽ२३४ताः꣥॥ दा꣡इवंय꣢याऽ३१उवाऽ२३॥ दा꣡ऽ२३इवा꣤ऽ३। वा꣢ऽ३४५सोऽ६"हा꣥इ॥

07_0348 एन्द्र याहि - 02 ...{Loading}...
लिखितम्

३४८-२।

ए꣤꣯न्द्र꣥या꣯हि ह꣤रि꣥भिः। उहु꣤वाहा꣥इ॥ उ꣡पकण्वस्य꣢सु꣡ष्टुति꣢म्। उहु꣡वाऽ२३हा꣢इ। दिवो꣡꣯अमू꣢ऽ३। ष्या꣡शा꣢᳐सा꣣ऽ२३४ताः꣥॥ दा꣡इवंय꣣या꣢उ। वाऽ३॥ देऽ२३४वा꣥। व꣤सोऽ५हा। हो꣤ऽ५इ॥ डा॥

08_0349 आ त्वा - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

३४९-१। वैश्वामित्रम्॥ विश्वामित्रोऽनुष्टुबिन्द्रः॥

आ꣥꣯त्वा꣯गा꣢ऽ३इरो꣤꣯र꣥थी꣤꣯रिवा꣥॥ अ꣢स्थुस्सुते꣯ऽ३षू꣡गि꣪र्वाणा꣭ऽ३ः। ओ꣢ऽ३४वा꣥। ओ꣣ऽ२३४वा꣥॥ अ꣢भित्वा꣯सऽ३मा꣡नू꣢ऽ१षाता꣭ऽ३॥ ओ꣢ऽ३४वा꣥। ओ꣣ऽ२३४वा꣥॥ गा꣡꣯वोवा꣢ऽ३त्सा꣢ऽ३म्। न꣢धो꣡ऽ२३४वा꣥। ना꣤ऽ५वोऽ६"हा꣥इ॥

09_0350 एतो न्विन्द्रम् - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

३५०-१। शुद्धाशुद्धीये द्वे॥ (पदान्त निधनंशुद्धाशुद्धीयम्) द्वयोरिन्द्रोऽनुष्टुबिन्द्रः॥

ए꣤꣯तो꣥꣯न्वि꣤न्द्रꣳ꣥स्त꣤वा꣥꣯मा꣤॥ शु꣢द्धꣳ꣡शुद्धे꣯न꣢सा꣡ऽ२३म्ना꣢। शुद्धै꣡꣯रुक्थै꣯र्वा꣯वृ꣢ध्वा꣡ऽ२३ꣳ सा꣢म्॥ शुद्धै꣡꣯राऽ२३शी꣢ऽ३॥ र्वा꣡ऽ२᳐न्। म꣣मा꣢ऽ३४औ꣥꣯हो꣯वा॥ तू꣣ऽ२३꣡४꣡५꣡॥

09_0350 एतो न्विन्द्रम् - 02 ...{Loading}...
लिखितम्

३५०-२। ऐडँशुद्धाशुद्धीयम्॥

ए꣥꣯तो꣯न्विन्द्रꣳस्तवाऽ६मा꣥॥ शु꣢द्धꣳ꣡शुद्धे꣢। न। सा꣡म्नाऽ᳒२᳒॥ शु꣡द्धाइरू꣢ऽ३क्था꣢ऽ३इः। वा꣡꣯वाऽ२᳐र्ध्वा꣣ऽ२३४ꣳसा꣥म्॥ शु꣢द्धै꣡꣯राऽ२३शी꣢॥ र्वा꣡न्मम꣢त्तु। इ꣡डाऽ२३भा꣢ऽ३४३। ओ꣡ऽ२३४५इ॥ डा॥

10_0351 यो रयिम् - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

३५१-१। रयिष्ठे द्वे॥ द्वयोः गोतमोऽनुष्टुबिन्द्रः॥

यो꣥꣯रयिंवो꣯रया꣯हाउ॥ ता꣣ऽ२३४माः꣥। यो꣡꣯द्युम्नै꣯र्द्युम्नवत्त꣢मः। सो꣡꣯मस्सुतस्सआऽ२३ हो꣡इ। द्र꣪ताऽ᳒२᳒इ। अ꣡स्तिस्वधा꣯पताऽ२३हो꣡ये꣢ऽ३॥ मदोऽ२३४५इ॥ डा॥

10_0351 यो रयिम् - 02 ...{Loading}...
लिखितम्

३५१-२।

यो꣣꣯र꣤यिं꣣वो꣤꣯र꣥यि। त꣣मोऽ२३४हा꣥इ॥ यो꣣꣯द्यु꣤म्नै꣣꣯र्द्यु꣤म्नव꣥। त꣣मोऽ२३४हा꣥इ॥ सो꣣꣯म꣤स्सुत꣣स्स꣤इ꣥। द्र꣣तोऽ२३४हा꣥इ॥ अ꣣स्ति꣤स्व꣥धा꣯पते꣯। म꣣दोऽ२३४हा꣥। हो꣤ऽ५इ॥ डा॥

[[अथ प्रथम खण्डः]]

11_0352 प्रत्यस्मै पिपीषते - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

३५२-१। कौल्मबर्हिषे द्वे॥ द्वयोः कुल्मबर्हिरनुष्टुबिन्द्रः॥प्र꣥त्यस्मै꣯पिपा꣯हाउ॥ आ꣡इषा꣢ऽ३ता꣢इ। वा꣡इश्वा꣢꣯निवा꣡इ। दूषे꣢ऽ३हा꣢ऽ३इ। भा꣢ऽ३रा꣢। आ꣡रा꣰꣯ऽ२ङ्गमा꣡॥ याजा꣢ऽ३हा꣢ऽ३। ग्मा꣢ऽ३या꣢इ॥ अ꣡पाऽ२३। श्चा꣡ऽ२᳐दा꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा॥ घ्व꣡ने꣰꣯ऽ२नरा꣣ऽ२३꣡४꣡५ः꣡॥

11_0352 प्रत्यस्मै पिपीषते - 02 ...{Loading}...
लिखितम्

३५२-२।

प्र꣥त्यस्मै꣯पीऽ६पी꣥꣯षताइ॥ वा꣡इश्वा꣢꣯निवा꣡इ। दूषे꣢꣯भा꣡राऽ᳒२᳒। आ꣡रा꣰꣯ऽ२ङ्गमा꣡। यजग्मा॥ याइ। अपश्चा꣯दघ्वनाऽ२३हो꣡इ। न꣢रा꣡। औ꣢ऽ३हो꣤वा꣥। हो꣤ऽ५इ॥ डा॥

11_0352 प्रत्यस्मै पिपीषते - 03 ...{Loading}...
लिखितम्

३५२-३। नानदम्॥ इन्द्रोऽनुष्टुबिन्द्रः॥

प्र꣣त्य꣤स्मै꣥꣯पि꣤पी꣥꣯। ष꣣ता꣢ऽ३इ। वा꣡ऽ२३४इ। श्वा꣯नि꣥विदुषे꣯। भा꣤रा꣥॥ अ꣤रङ्गमा꣣꣯य꣤ज꣥। ग्म꣣योऽ२३४हा꣥इ॥ आ꣤प꣥श्चा꣤दा꣥॥ घ्व꣢नो꣡ऽ२३४वा꣥। ना꣤ऽ५रोऽ६"हा꣥इ॥

12_0353 आ नो - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

३५३-१। शाकपूतम्॥ शाकपूतिरनुष्टुबिन्द्रः॥

आ꣥꣯नो꣯वयो꣯वयश्शाऽ६या꣥म्॥ म꣢हा꣯न्तङ्गह्वरा꣣ऽ२३४इष्ठा꣥म्। म꣢हा꣯न्तंपू꣯र्विना꣣ऽ२३४ इष्ठा꣥म्॥ उ꣢ग्रं꣡वाऽ२३चाः꣢᳐॥ अ꣣पा꣢ऽ३वा꣤ऽ५"धाऽ६५६इः॥

13_0354 आ त्वा - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

३५४-१। कौल्मलबर्हिषे द्वे॥ द्वयोः कुल्मलबर्हिरनुष्टुबिन्द्रः॥

आ꣥꣯त्वा꣯रथंयथौ꣯हो꣤वा꣥॥ ता꣡या꣢᳐इसू꣣ऽ२३४म्ना꣥। य꣡वर्त्तया꣯मसितुविकूर्मी꣢म्। आ꣣ऽ२३४र्ती꣥। ष꣡ह꣢म्॥ आ꣡इन्द्रा꣢ऽ३ꣳशा꣤वी꣥॥ ष्ठ꣢स꣡त्पाऽ२३ती꣢ऽ३४३म्। ओ꣡ऽ२३४५इ॥ डा॥

13_0354 आ त्वा - 02 ...{Loading}...
लिखितम्

३५४-२।आ꣣꣯त्वा꣤꣯र꣣थँ꣤यथो꣥꣯। त꣣या꣢इ᳐। आ꣣꣯त्वा꣤꣯र꣥थाम्॥ य꣢थो꣡ताया꣢᳐। औ꣣꣯होऽ२३४वा꣥। ई꣣ऽ२३४हा꣥। सु꣢म्ना꣯यवर्त्तऽ३या꣡मसि꣢᳐। औ꣣꣯हो꣢ऽ३१इ। औऽ२᳐हो꣣ऽ२३४वा꣥॥ तु꣢विकू꣯र्मिमृऽ३ ता꣡इषह꣢᳐म्। औ꣣꣯हो꣢ऽ३१इ। औऽ२᳐हो꣣ऽ२३४वा꣥॥ इ꣢न्द्रꣳ शविष्ठऽ३सा꣡त्पति꣢᳐ म्। औ꣣꣯हो꣢ऽ३१ इ। औऽ२᳐हो꣣ऽ२३४५वाऽ६५६॥ ई꣣ऽ२३४हा꣥॥

14_0355 स पूर्व्यो - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

३५५-१। मधुश्चुन्निधनम्॥ प्रजापतिरनुष्टुबिन्द्रः॥

स꣥पू꣯र्व्यो꣯महो꣯नाऽ६मे꣥॥ वे꣢꣯नᳲक्रतूऽ३भा꣡इरा꣯नजे꣢ऽ३। हा꣢ऽ३हा꣢। औ꣭ऽ३हो꣢ऽ३वा꣢। आ꣡इहीऽ᳒२᳒। यस्यद्वा꣯रा꣯ऽ३मा꣡नुᳲपिता꣢ऽ३। हा꣢ऽ३हा꣢। औ꣭ऽ३हो꣢ऽ३वा꣢। आ꣡इहीऽ᳒२᳒॥ दा꣡इवे꣯षुधा꣢ऽ३। हा꣢ऽ३हा꣢इ। औ꣭ऽ३हो꣢ऽ३वा꣢। आ꣡इहीऽ᳒२᳒॥ यआ꣡ऽ२३। ना꣡ऽ२᳐जा꣣ऽ२३४ औ꣥꣯हो꣯वा॥ म꣢धुश्चु꣡ता꣣ऽ२३꣡४꣡५ः꣡॥

15_0356 यदी वहन्त्याशवो - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

३५६-१। उषसस्साम॥ उषानुष्टुबिन्द्रः॥

य꣤दी꣥꣯व꣤ह꣥न्त्या꣯श꣤वः꣥। य꣤। द्येयादी꣥॥ ओ꣡इवहन्ताआ꣢ऽ१शावाऽ᳒२ः᳒। ओ꣡इभ्रा꣯जमा꣯ना꣯ रथाइषू꣢ऽ१वाऽ᳒२᳒। ओ꣡इपिबन्तो꣯मदिरांमा꣢ऽ१धूऽ᳒२᳒॥ ओ꣡इ। तत्रश्रवाꣳ꣯सिकोवा꣢ऽ३ओ꣡ऽ २३४वा꣥॥ ण्वा꣤ऽ५तोऽ६"हा꣥इ॥

16_0357 त्यमु वो - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

३५७-१। भारद्वाजम्॥ भरद्वाजोऽनुष्टुबिन्द्रः॥

त्य꣣मु꣤वो꣥꣯अ। प्र꣣हा꣢᳐। हा꣣ऽ२३४णा꣥म्॥ गृ꣢णी꣯षे꣡꣯शवसः꣢। प꣡ताइम्। आइन्द्रा꣢ऽ३म्वा꣤इश्वा꣥। स꣡हा꣢ऽ३ꣳहो꣡ये꣢ऽ३४। ना꣥र꣣मो꣢ऽ३इ॥ श꣢चि꣡ष्ठाऽ२३४म्वी꣥॥ श्व꣡वा꣢ऽ३हो꣡ऽ२३४। वा꣥। दा꣤ऽ५सोऽ६"हा꣥इ॥

17_0358 दधिक्राव्णो अकारिषम् - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

३५८-१। (दधिक्रम्) दधिक्राव्णम्॥ अग्निरनुष्टुबिनन्द्रः॥ दधिक्रा वा।

ओ꣤हाइ। द꣥धिक्रा꣤꣯व्णो꣥꣯अका꣯रिषम्। ओ꣤हाइ॥ ओ꣡हाइ। जिष्णो꣯रश्वस्यवा꣯जिनाऽ२३हो꣡इ। सु꣢रभि꣡नो꣯मु꣢खा꣡꣯काऽ२३रा꣢त्॥ प्र꣡नाऽ२३हो꣡इ। आ꣯यूऽ२३हो꣡॥ षि꣢ता꣡꣯राऽ२३ इषा꣢ऽ३४३त्। ओ꣡ऽ२३४५इ॥ डा॥

18_0359 पुरां भिन्दुर्युवा - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

३५९-१। मारुतम्॥ मरुतोऽनुष्टुबिन्द्रः॥पु꣥रां꣯भि꣣न्दु꣢र्यु꣣वा꣤꣯क꣥वीः॥ अ꣡मितौ꣯जा꣯अ꣢जा꣡꣯याऽ२३ता꣢। आ꣡इन्द्रो꣯विश्वा꣢ऽ३। स्या꣡क꣢र्मा꣣ऽ२३४णाः꣥॥ ध꣡र्त्ता। वाज्रौ꣢वा᳐ओ꣣ऽ२३४वा꣥॥ पु꣤रूऽ५ष्टुताः। हो꣤ऽ५इ॥ डा॥

[[अथ द्वितीय खण्डः]]

19_0360 प्रप्र वस्त्रिष्टुभमिषम् - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

३६०-१। वामदेव्यम्॥ वामदेवोऽनुष्टुबिन्द्रः॥

प्र꣥प्रवस्त्रिष्टुभमिषमो꣯हा꣯ओ꣯हाऽ६ए꣥॥ व꣢न्द꣡द्वीरा꣢। यआ꣡इन्द꣪वेऽ᳒२᳒। ओ꣭ऽ३हा꣢। ओ꣭ऽ३हा꣢ऽ३ए꣢। धि꣡या꣯वो꣯मे꣯धसा꣢ऽ१ता꣢ऽ३या꣢इ। ओ꣭ऽ३हा꣢। ओ꣭ऽ३हा꣢ऽ३ए꣢॥ पु꣡रांधी꣢ऽ३या꣢ऽ३। वि꣢वो꣡ऽ२३४वा꣥। सा꣤ऽ५तोऽ६"हा꣥इ॥

20_0361 कश्यपस्य स्वर्विदो - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

३६१-१। काश्यपम्॥ कश्यपोऽनुष्टुबिन्द्रः॥

क꣥श्यपस्यसुवर्विदाऽ६ए꣥॥ या꣡वा꣯हु꣢स्स। युजा꣡वा꣢ऽ१इतीऽ२३४। य꣣यो꣤꣯र्वि꣣श्व꣤मपि꣥। व्र꣣ता꣢ऽ३म्॥ य꣡ज्ञान्धी꣢ऽ३राः꣢॥ निचा꣡ऽ२३। आ꣡ऽ२᳐या꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा॥ ऊ꣣ऽ२३४पा꣥॥

21_0362 अर्चत प्रार्चता - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

३६२-१। प्रैयमेधम्॥ प्रियमेधानुष्टुबिन्द्रः॥

अ꣢र्चतप्रा꣯र्चता᳐ना꣣ऽ२३४राः꣥॥ प्रि꣢यमे꣯धाऽ३सो꣤ऽ३अ꣢र्च꣣त꣥। अ꣢र्च꣡न्तुपूऽ२३त्रा꣤ऽ३का꣢꣯उ꣣त꣥॥ पु꣡रमिद्धाऽ२३॥ ष्णुवा꣢ऽ३र्चा꣤ऽ५"ताऽ६५६॥

22_0363 उक्थमिन्द्राय शंस्यम् - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

३६३-१। बार्हदुक्थम्॥ बृहदुक्थोऽनुष्टुबिन्द्रः॥

उ꣥क्थमिन्द्रा॥ य꣢शꣳ꣡साऽ२३या꣢म्। वा꣡र्द्धनं꣢पु। रुनि꣡श्शाऽ२३इधा꣢इ। श꣡क्रोया꣢ऽ३था꣢ऽ३। सू꣡ते꣢᳐षू꣣ऽ२३४नाः꣥॥ रा꣢꣯र꣡णाऽ२३त्सा꣢॥ खिया꣡इषूऽ२३चा꣢ऽ३४३। ओ꣡ऽ२३४५इ॥ डा॥

23_0364 विश्वानरस्य वस्पतिमनानतस्य - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

३६४-१। अग्नेर्वैश्वानरस्य सामनी द्वे॥ द्वयोरग्निरनुष्टुबग्निरिन्द्रो वैश्वानरो वा॥

वि꣥श्वा꣯नरा॥ स्य꣢वाऽ᳒२᳒स्पा꣡तीऽ᳒२᳒म्। आ꣡ना꣯न꣢त। स्यशा꣡वा꣢ऽ१साऽ᳒२ः᳒। ए꣡वै꣯श्चा꣢꣯। चर्ष꣡णाऽ᳒२᳒इना꣡म्॥ ऊऽ᳒२᳒ती꣡॥ हु꣢वा꣡इर꣢। था꣡ऽ२३४नो꣥ऽ६"हा꣥इ॥

23_0364 विश्वानरस्य वस्पतिमनानतस्य - 02 ...{Loading}...
लिखितम्

३६४-२।

वि꣣श्वा꣢ऽ३४। नरस्य꣥वौ꣯। हो꣤स्पाती꣥म्॥ अ꣢ना꣡꣯नता꣢ऽ३। स्या꣡शा꣢᳐वा꣣ऽ२३४साः꣥। ए꣡वै꣯श्चा꣢꣯। चर्ष꣡णाऽ२३४इना꣥म्॥ ऊ꣢꣯ती꣡꣯हु꣢वा꣡इर꣢॥ था꣡ऽ२३४नो꣥ऽ६"हा꣥इ॥

24_0365 स घा - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

३६५-१। शाकपूते द्वे॥ द्वयोः शाकपूतिरनुष्टुबिन्द्रः॥

स꣢घा꣡꣯यस्ता꣢ऽ३इ। ए꣢॥ दिवो꣡꣯नरा꣢ऽ३ः। ए꣢। धिया꣡꣯मर्ता꣢ऽ३। ए꣢। स्यश꣡मता꣢ऽ३ः। ए꣢॥ ऊ꣯ता꣡इसबृ꣢ऽ३। ए꣢। हतो꣡꣯दिवा꣢ऽ३ः। ए꣢॥ द्विषो꣡꣯अꣳहा꣢ऽ३ः। ए꣢। ना꣡तर꣢ति। इ꣡डाऽ२३भा꣢ऽ३४३। ओ꣡ऽ२३४५इ॥ डा॥

24_0365 स घा - 02 ...{Loading}...
लिखितम्

३६५-२।

स꣥घा꣯यस्ताइ॥ दि꣢वो꣯न꣡राः। धि꣢या꣯मा꣡र्ताऽ᳒२᳒। स्यशम꣡ताः॥ ऊ꣢꣯ती꣯सा꣡बृऽ᳒२᳒। हतो꣯दि꣡वाः॥ द्वि꣢षो꣯आꣳ꣡हाऽ᳒२ः᳒॥ ना꣡तर꣢ति। इ꣡डाऽ२३भा꣢ऽ३४३। ओ꣡ऽ२३४५इ॥ डा॥

25_0366 विभोष्ट इन्द्र - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

३६६-१। वरुणान्याः साम॥ वरुणान्यनुष्टुबिन्द्रः॥

वि꣥भो꣯ष्टइन्द्ररा꣯धाऽ६साः꣥॥ वि꣢भ्वी꣡꣯रा꣰꣯ऽ२ति꣡श्शत꣢क्रतो꣯। शताऽ᳒२᳒क्रा꣡ताउ॥ आथा꣯नो꣢꣯विश्वचर्षणे꣯। श्वचाऽ᳒२᳒र्षा꣡णाइ॥ द्यु꣢म्नꣳ꣡सुद꣢त्रमꣳहय᳐। त्र꣣मा꣢ऽ३ꣳहा꣤ऽ५"याऽ६५६॥

26_0367 वयश्चित्ते पतत्रिणो - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

३६७-१। उषसम् औषसम् वा॥ उषानुष्टुबिन्द्रः॥ उषा वा।

व꣥यश्चा꣢ऽ३इत्ते꣤꣯पत꣥त्रिणाः॥ द्वि꣢पा꣡꣯च्चतुष्पा꣯दर्जुनाये꣢ऽ३। ऊ꣤षᳲ꣥प्रा꣤रा꣥न्। ऋ꣢तूꣳ꣯र꣡नू॥ दि꣢वो꣯आ꣡न्तेऽ२३॥ भा꣡ऽ२३या꣤ऽ३ः। पा꣢ऽ३४५रोऽ६"हा꣥इ॥

27_0368 अमी ये - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

३६८-१। देवानां रुचिः॥ रोचनम् वा। रुचिरनुष्टुबिन्द्रः॥ विश्वेदेवा वा।

अ꣥मी꣯ये꣯दे꣯वा꣯स्था꣤ना꣥॥ म꣡ध्यआ꣯रो꣯चने꣯दिवाः। क꣢द्वऋ꣡ताम्। क꣢दमा꣡र्ताऽ᳒२᳒म्॥ का꣡꣯प्रत्ना꣯व꣢आ꣡꣯हूऽ२३ती꣢ऽ३४३ः। ओ꣡ऽ२३४५इ॥ डा॥

28_0369 ऋचं साम - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

३६९-१। ऋक्साम्नोस्सामनी द्वे॥ द्वयोः ऋगनुष्टुबिन्द्रः॥

ऋ꣤चꣳ꣥सा꣤꣯म꣥यजा꣤॥ म꣡हाइ। या꣯भ्यां꣯कर्मा꣯णि꣢कृ꣡ण्वाऽ२३ता꣢इ। वि꣡ते꣯सदसि꣢रा꣡꣯जाऽ२३ताः꣢॥ यज्ञं꣡दाऽ२३इवे꣢॥ षू꣡वक्ष꣢तः॥ इ꣡डाऽ२३भा꣢ऽ३४३। ओ꣡ऽ२३४५इ॥ डा॥

28_0369 ऋचं साम - 02 ...{Loading}...
लिखितम्

३६९-२। साम्नस्साम॥ सामानुष्टुबिन्द्रः॥

ऋ꣥चꣳसा꣢ऽ३मा꣤य꣥जा꣤꣯महा꣥इ॥ या꣡भ्यां꣯क꣢र्मा꣯। णिका꣡र्ण्वा꣢ऽ१ताऽ᳒२᳒इ। ण्वा꣡ताऽ᳒२᳒इ। वा꣡इते꣯स꣢द। सिरा꣡जा꣢ऽ१ताऽ᳒२ः᳒। जा꣡ताऽ᳒२ः᳒॥ य꣡ज्ञांदा꣢ऽ१इवेऽ᳒२᳒॥ षू꣡वक्ष꣢तः। इ꣡डाऽ२३भा꣢ऽ३४३। ओ꣡ऽ२३४५इ॥ डा॥

[[अथ तृतीय खण्डः]]

29_0370 विश्वाः पृतना - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

३७०-१। त्रैशोकम्॥ त्रिशोको जगतीन्द्रः॥वि꣥श्वो꣤हाइ॥ पृ꣡तना꣢꣯अभिभू꣡꣯। त꣢र꣣न्न꣢राः꣡। स꣢जू꣡꣯स्तत꣢क्षुरा꣡इन्द्रञ्ज꣢जनूः꣡। च꣢रा꣯जा꣡सोऽ२३४हा꣥इ। क्र꣢त्वौ꣡꣯होइ। व꣢रौ꣡꣯होइ। स्थे꣯मन्याऽ२᳐मू꣣ऽ२३४री꣥म्॥ उतो꣤हाइ॥ उ꣢ग्र꣡मोऽ२३४जी꣥। ष्ठं꣢ता᳐रा꣣ऽ२३४सा꣥म्। हो꣢इ᳐। त꣣रा꣢ऽ३४। स्विनम्। ओ꣥ऽ६वा꣥॥ ओ꣢इ᳐दी꣣ऽ२३४वा꣥॥