०६ २

[[अथ षष्ठप्रपाठके द्वितीयोऽर्धः]]

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लिखितम्

२३७-१। लौशे द्वे॥ द्वयोर्लुशो बृहतीन्द्रः॥

ता꣤रो꣥॥ भा꣡इर्वो꣯वि꣢दाऽ३१उवाऽ२३। वाऽ२३४सू꣥म्। इ꣡न्द्रा꣰꣯ऽ२ꣳसबा꣡꣯ध꣢ऊ꣯त꣡ये꣰꣯ऽ२। बृहा꣡त्। बृ꣢हाऽ३१उ। वाऽ᳒२᳒। गा꣡꣯यन्त꣢स्सुत꣡सो꣢꣯मे꣯अध्वरे꣡꣯॥ हु꣢वे꣡꣯भाऽ२३रा꣢म्॥ ना꣡का꣯रि꣢णम्। इ꣡डाऽ२३भा꣢ऽ३४३। ओ꣡ऽ२३४५इ॥ डा॥

44_0237 तरोभिर्वो विदद्वसुमिन्द्रम् - 02 ...{Loading}...
लिखितम्

२३७-२।

ता꣤रो꣥॥ भा꣡इर्वो꣯वि꣢दाऽ३१उवाऽ२३। वाऽ२३४सू꣥म्। इ꣡न्द्रा꣰꣯ऽ२ꣳसबा꣡꣯ध꣢ऊ꣯त꣡ये꣰꣯ऽ२। बृहा꣡द्गा꣢ऽ१याऽ᳒२᳒। ता꣡स्सुतसोऽ᳒२᳒। मे꣯अ꣡ध्वराइ॥ हु꣢वे꣡꣯भाऽ२३रा꣢म्॥ ना꣡का꣯रि꣢णम्। इ꣡डाऽ२३भा꣢ऽ३४३। ओ꣡ऽ२३४५इ॥ डा॥

44_0237 तरोभिर्वो विदद्वसुमिन्द्रम् - 03 ...{Loading}...
लिखितम्

२३७-३। धानाके द्वे॥ द्वयोर्धानाको बृहतीन्द्रः॥

त꣥रो꣯भिर्वो꣯विदद्वा꣤सू꣥म्॥ इ꣢न्द्राम्। इन्द्रꣳसबा꣯धऽ३ऊ꣡ता꣢ऽ१याऽ᳒२᳒इ॥ बृहात्। बृहद्गा꣯यन्तस्सुतसो꣯मऽ३आ꣡ध्वा꣢ऽ१राऽ᳒२᳒इ॥ हुवाइ। हुवे꣯भरन्नका꣯रिणम्। इ꣡डाऽ२३भा꣢ऽ३४३। ओ꣡ऽ२३४५इ॥ डा॥

44_0237 तरोभिर्वो विदद्वसुमिन्द्रम् - 04 ...{Loading}...
लिखितम्

२३७-४। क्षुल्लककालेयम् वा॥

त꣥रो꣯भिर्वो꣯विदाऽ४द्वासू꣥म्॥ इ꣢न्द्रꣳसबाऽ३। ध꣡ऊऽ२᳐ता꣣ऽ२३४या꣥इ। बृ꣢हा꣡त्। बृ꣢हाऽ३१उ। वाऽ᳒२᳒। गा꣡꣯यन्त꣢स्सुत꣡सो꣢꣯मे꣯अध्वरे꣡꣯॥ हु꣢वे꣡꣯होइभाऽ२३रा꣢म्॥ ना꣡का꣯रि꣢णम्। इ꣡डाऽ२३भा꣢ऽ३४३। ओ꣡ऽ२३४५इ॥ डा॥

44_0237 तरोभिर्वो विदद्वसुमिन्द्रम् - 05 ...{Loading}...
लिखितम्

२३७-५। कालेयानि त्रीणि॥ त्रयाणां कलिः बृहतीन्द्रः॥

त꣡रोऽ२३भिर्वो꣢। वि꣤दाऽ५द्वसूम्॥ इ꣢न्द्रꣳसबा꣯ऽ३धा꣡ऊ꣢ऽ१ताया꣭ऽ३इ। ओ꣢ऽ३४वा꣥। ओ꣣ऽ२३४वा꣥। बृ꣢हद्गा꣯यन्तस्सुतसो꣯ऽ३मा꣡अ꣪ध्वारा꣭ऽ३इ। ओ꣢ऽ३४वा꣥। ओ꣣ऽ२३४वा꣥॥ हु꣡वाइभराम्॥ नाका꣢रा꣣ऽ२३४इणा꣥म्। ओ꣣ऽ२३४वा꣥। ओ꣣ऽ२३४५इ॥ डा॥

44_0237 तरोभिर्वो विदद्वसुमिन्द्रम् - 06 ...{Loading}...
लिखितम्

२३७-६।

त꣡रो꣯भिर्वोऽ२᳐। वि꣣द꣢द्वा꣣ऽ२३४सू꣥म्॥ इ꣢न्द्रꣳसबा꣯ऽ३धा꣡ऊ꣢ऽ१तायाऽ᳒२᳒इ। औ꣭ऽ३हो꣢ऽ३वा꣢। औ꣭ऽ३हो꣢ऽ३वा꣢। बृहद्गा꣯यन्तस्सुतसो꣯ऽ३मा꣡अ꣪ध्वाराऽ᳒२᳒इ। औ꣭ऽ३हो꣢ऽ३वा꣢। औ꣭ऽ३हो꣢ऽ३वा꣢॥ हु꣡वाइभा꣢ऽ१राऽ᳒२᳒म्। औ꣭ऽ३हो꣢ऽ३वा꣢। औ꣭ऽ३हो꣢ऽ३वा꣢॥ ना꣡का꣯रि꣢णम्। इ꣡डाऽ२३भा꣢ऽ३४३। ओ꣡ऽ२३४५इ॥ डा॥

44_0237 तरोभिर्वो विदद्वसुमिन्द्रम् - 07 ...{Loading}...
लिखितम्

२३७-७। कालेयम्॥

त꣥रो꣯भा꣢ऽ३इर्वो꣤꣯वि꣥द꣤द्वसू꣥म्॥ इ꣢न्द्राꣳ꣡स꣢बा꣡। ध꣢ऊ꣣꣯त꣢या꣡ऽ२३इ। बृ꣢ह꣣द्गा꣯या꣢ऽ३। ता꣡ऽ२३४ः। सुत꣣सो꣤꣯मे꣥꣯अ। ध्वा꣢ऽ३रा꣢इ॥ हु꣡वाइभ꣣रौ꣢। वाऽ३४३ओ꣢ऽ३४वा꣥॥ न꣤काऽ५रिणाम्। हो꣤ऽ५इ॥ डा॥

45_0238 तरणिरित्सिषासति वाजम् - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

२३८-१। ऐषिरे द्वे॥ द्वयोरिषिरो बृहतीन्द्रः॥

त꣥रणिरीत्॥ सि꣣षा꣢ऽ३सा꣤ती꣥। वा꣢꣯जा꣡म्पु꣢रा꣡म्। धि꣢या꣯यु꣡जा। आवा꣢ऽ३आ꣤इन्द्रा꣥म्॥ पु꣢रू꣡हू꣢꣯त꣡म्। न꣢मे꣯गा꣡इरा॥ नाइमी꣢ऽ३न्ता꣤ष्टे꣥॥ वा꣢꣯सु꣡द्रुवाऽ२३꣡४꣡५꣡म्॥

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लिखितम्

२३८-२।

त꣤राहा꣥उ॥ णि꣢रित्सिऽ३षा꣡सति꣢। हयाइ। हयाइ। वा꣡जंपु꣢रम्॥ धिया꣡यूजौ꣢꣯। हो꣯वाऽ३हा꣢इ॥ आ꣡꣯वइन्द्रंपु꣢रुहू꣯तम्। नमा꣡इगाइरौ꣢꣯। हो꣯वाऽ३हा꣢इ॥ ने꣯मिन्तष्टे꣯वाऽ३सा꣡॥ औ꣢ऽ३हो꣯वा꣯हा꣢ऽ३४औ꣥꣯हो꣯वा॥ उ꣢प्। द्रू꣣ऽ२३४वा꣥म्॥

45_0238 तरणिरित्सिषासति वाजम् - 03 ...{Loading}...
लिखितम्

२३८-३। गौश्रृंगे द्वे॥ द्वयोर्गौश्रृंगो बृहतीन्द्रः॥

त꣤र꣣णि꣤रि꣣त्सि꣤षा꣥꣯। सा꣢ऽ३ती꣤। वा꣯जं꣥पु꣤रं꣥ध्या꣯युजा꣤॥ वा꣡꣯जंपुरंध्या꣯युजा꣯। वआ-ऽ२३इन्द्रा꣢ऽ३४म्। पुरुहू꣯त꣣न्न꣤मे꣥꣯। गा꣢ऽ३इरा꣢॥ ने꣯मा꣡इन्ताऽ२३ष्टे꣢॥ वसुद्रु꣡व꣢म्॥ इ꣡डाऽ२३भा꣢ऽ३४३। ओ꣡ऽ२३४५इ॥ डा॥

45_0238 तरणिरित्सिषासति वाजम् - 04 ...{Loading}...
लिखितम्

२३८-४।

त꣤र꣣णि꣤रि꣣त्सि꣤षा꣥꣯। स꣣ती꣢ऽ३। वा꣡ऽ२३४। जंपुरं꣥धिया꣯। यु꣤जा꣥॥ वा꣡꣯जंपुरंध्या꣯युजा꣯वइन्द्रंपुरुहू꣯तन्नमाऽ᳒२᳒इगा꣡इराऽ᳒२᳒। हाऽ᳒२᳒ऊ꣡ऊवाइ॥ ने꣢꣯मि꣡न्तष्टे꣯वसोवा꣢ऽ३ओ꣡ऽ२३४वा꣥॥ द्रू꣤ऽ५वोऽ६"हा꣥इ॥

46_0239 पिबा सुतस्य - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

२३९-१। पृष्ठम्॥ पृष्ठो बृहतीन्द्रः॥

पि꣥बा꣤ऽ३सु꣢त꣣स्य꣤रसि꣥नाः॥ म꣡त्स्वा꣯नइन्द्रगो꣯मताऽ२३हो꣡इया। आ꣢꣯पि꣡र्नो꣯-बो꣯धिसधमा꣯द्ये꣯वृधाऽ२३हो꣡इया॥ अ꣢स्माꣳ꣡꣯आऽ२३वा꣢॥ तुता꣡इधाऽ२३या꣢ऽ३४३ः। ओ꣡ऽ२३४५इ॥ डा॥

46_0239 पिबा सुतस्य - 02 ...{Loading}...
लिखितम्

२३९-२। शौल्कम्॥ शुल्को बृहतीन्द्रः॥ अभीवर्तौ द्वौ। द्वयोर्जमदग्निः।

पि꣥बा꣯सुतस्यरसिनो꣯हाउ॥ म꣡त्स्वा꣯नइन्द्र꣢गो꣡꣯माऽ२᳐तः꣣। हा꣢ओ꣣ऽ२३४वा꣥। आ꣢꣯पि꣡र्नो꣯बो꣯धिसधमा꣯दि꣢ये꣡꣯वाऽ२᳐र्द्धे꣣꣯। हा꣢ओ꣣ऽ२३४वा꣥। अ꣢स्माꣳ꣡꣯अवन्तु꣢ते꣡꣯धाऽ२᳐यः꣣। हा꣢ओ꣣ऽ२३४वा꣥। ई꣣ऽ२३꣡४꣡५꣡॥

46_0239 पिबा सुतस्य - 03 ...{Loading}...
लिखितम्

२३९-३। जमदग्नेरभीवर्तः॥ जमदग्निर्बृहतीन्द्रः॥

पि꣥बा꣯सुतस्यरसिनो꣯मत्स्वा꣯हाउ॥ ना꣡ऽ᳒२ः᳒। इ꣡न्द्राऽ᳒२᳒गो꣡꣯मताऽ२३ः। हा꣢उ। आ꣯पि꣡र्नो꣰꣯ऽ२बो꣯। धिसा꣡ध꣪माऽ᳒२᳒। दि꣡ये꣯वृधाऽ२३। हा꣢उ॥ अस्माꣳ꣡अ꣪वाऽ२३। हा꣢॥ तु꣣ते꣢ऽ३हो꣡ऽ२᳐। या꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा॥ धि꣢य᳐ऊ꣣ऽ२३꣡४꣡५꣡।

47_0240 त्वं ह्येहि - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

२४०-१। कौल्मलबर्हिषे द्वे॥ कुल्मलबर्हिर्बृहतीन्द्रः॥

तु꣥वा꣤ऽ३ꣳहो꣢ऽ३ए꣤꣯हिचे꣥꣯रवाइ॥ वि꣢दा꣡꣯भगंवसूऽ᳒२᳒त्ता꣡याऽ२३४इ। उ꣥द्वा꣯वृषस्वमघा꣤वा꣥न्॥ ऐ꣢꣯हो꣡इ। गाऽ᳒२᳒वि꣡ष्टयाइ॥ उदिन्द्रा꣯श्वमोवा꣢ऽ३ओ꣡ऽ२३४वा꣥। ष्टा꣤ऽ५योऽ६"हा꣥इ॥

47_0240 त्वं ह्येहि - 02 ...{Loading}...
लिखितम्

२४०-२।

त्वꣳ꣥ह्ये꣯हिचे꣯राऽ६वा꣥इ॥ वि꣢दा꣡꣯भगंवसूत्ता꣢ऽ१याऽ२३४इ। उद्वा꣥꣯वृषस्व। मा꣤ऽ५घवा꣤न्॥ आ꣡इहि꣢या꣡इ। ग꣢विष्टा꣡याऽ᳒२᳒इ॥ उ꣡दिन्द्राऽ᳒२᳒अ꣡श्वमी। ओ꣢ऽ३१म्। ओ꣣ऽ२३४वा꣥। ष्टा꣤ऽ५योऽ६"हा꣥इ॥

48_0241 न हि - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

२४१-१। वसिष्ठस्यजनित्रे द्वे॥ द्वयोर्वसिष्ठो बृहतीन्द्रः॥ (मरुतः) जनित्राद्यम्।

न꣥हिवा꣢ऽ३श्चा꣤र꣥मं꣤चना꣥॥ हु꣢वे꣡होऽ᳒२᳒इ। व꣡सिष्ठᳲपराइम꣪ꣳसाताऽ᳒२᳒इ। अस्मा꣡꣯कमद्यमरुताऽ२ः᳐। सु꣣ता꣢इ᳐सा꣣ऽ२३४चा꣥॥ वा꣡इश्वे꣢ऽ३हो꣡इ। पिबा꣢ऽ३हो꣡॥ तु꣢का꣡ऽ२३। मा꣡ऽ२᳐इना꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा॥ ज꣢नि꣡त्राऽ२३꣡४꣡५꣡म्॥

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लिखितम्

२४१-२। जनित्रोत्तरम्॥

न꣣हिव꣤श्च꣥रमम्। च꣣ना꣢ऽ३। व꣤सिष्ठाः꣥॥ हो꣡इ। होइ। पराइम꣪ꣳसाताऽ२३४इ। अस्मा꣣꣯क꣤मद्य꣣म꣤रुतः꣥। सु꣣ता꣢ऽ३इसा꣤चा꣥॥ वा꣡इश्वे꣯पि꣢बन्तुकौ꣭ऽ३। हो꣢ऽ३१ये꣢ऽ३॥ मा꣡ऽ२᳐इना꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा॥ ज꣢निऽ३त्रा꣡ऽ२३꣡४꣡५꣡म्॥

49_0242 मा चिदन्यद्वि - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

२४२-१। मैधातिथं दैवातिथं वा॥ मेधातिथिर्बृहतीन्द्रः॥

मा꣥꣯चिदन्यदो꣤हा꣥इ॥ वि꣣शा꣢ऽ३ꣳसा꣤ता꣥। स꣡खा꣯याऽ᳒२᳒होऽ१इ। माऔ꣢ऽ३हो꣢। रा꣡इषा꣢उवा। ण्या꣡ता꣢उवा। इ꣡न्द्रमित्स्तो꣯ता꣯वृषणाऔ꣢ऽ३हो꣢। सा꣡चा꣢उवा। सू꣡ता꣢उवा। मु꣡हुरुक्थाऔ꣢ऽ३हो꣢। चशा꣡। औ꣢꣯हो꣡। वा꣣꣯होऽ२३४वा꣥। सा꣤ऽ५तोऽ६"हा꣥इ॥

[[अथ द्वितीय खण्डः]]

01_0243 न किष्टम् - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

२४३-१। वैखानसम्॥ वैखानसा बृहतीन्द्रः॥न꣥किष्टा꣢ऽ३ङ्क꣤र्म꣥णा꣤꣯नशा꣥त्॥ य꣢श्चा꣡का꣢꣯रा꣡। स꣢दा꣣꣯वृ꣢धा꣡ऽ२३म्। स꣢दा꣣꣯वृधा꣢म्। इन्द्रा꣡न्न꣢या꣡। ज्ञै꣢꣯र्वि꣣श्व꣢गू꣡। त꣪मा꣰꣯ऽ२र्भ्वसा꣡ऽ२३म्। त꣢मृ꣣भ्वसा꣢म्॥ अधा꣡र्ष्ट꣢न्धा꣡। ष्णु꣢मो꣣꣯ज꣢सा꣡ऽ२३॥ ष्णु꣢मो꣣꣯जसा꣢ऽ३४३॥ ओ꣡ऽ२३४५इ॥ डा॥

01_0243 न किष्टम् - 02 ...{Loading}...
लिखितम्

२४३-२। पौरुहन्मनं प्राकर्षं वा॥ पुरुहन्मा बृहतीन्द्रः॥

न꣣कि꣤ष्ट꣣ङ्कर्म꣤णा꣥꣯नशत्। हो꣢ऽ३४इ। य꣥श्चका꣢ऽ३रा꣤स꣥दा꣤꣯वृधा꣥म्॥ आ꣡इन्द्राऽ᳒२᳒न्ना꣡याऽ᳒२᳒। ज्ञै꣡꣯र्विश्वगू꣯र्तामृ꣪भ्वासाऽ᳒२᳒म्॥ अ꣡धाऽ᳒२᳒होऽ१। ष्टाऽ२३न्धॄ꣢ऽ३४॥ हा꣥꣯ओ꣤वा꣥॥ ष्णु꣢मो꣡꣯जसा꣣ऽ२३꣡४꣡५꣡॥

02_0244 य ऋते - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

२४४-१। सात्यम्॥ सत्यो बृहतीन्द्रः॥

य꣥ऋता꣢ऽ३इची꣤द꣥भि꣤श्रिषाः꣥॥ पू꣡राऽ᳒२᳒जा꣡त्रूऽ᳒२᳒। भ्यआ꣯तृ꣡दा꣢ऽ३ः। हो꣡वा꣢ऽ३हा꣢इ। सा꣡न्धाऽ᳒२᳒ता꣡साऽ᳒२᳒म्। धा꣡इंम꣢घ꣡वा꣰꣯ऽ२पुरू꣯व꣡सुः꣢। हो꣡वा꣢ऽ३हा꣢इ॥ ना꣡इष्काऽ᳒२᳒र्ता꣡वीऽ᳒२᳒॥ ह्रुतंपु꣡नः꣢। हो꣡। वाऽ२᳐। हा꣣ऽ२३४। औ꣥꣯हो꣯वा॥ ऊ꣣ऽ२३४पा꣥॥

03_0245 आ त्वा - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

२४५-१। भारद्वाजानि चत्वारि, भारद्वाजम्॥ चतुर्णां भरद्वाजो बृहतीन्द्रः॥

आ꣥꣯त्वा꣯सहा॥ स्र꣢मा꣡शा꣢ऽ१ताऽ᳒२᳒म्। यू꣡क्ता꣯र꣢थे꣯हिरण्यये꣯। ब्र꣡ह्मायू꣢ऽ१जाऽ᳒२ः᳒। हा꣡रय꣢इ। द्रका꣡इशा꣢ऽ१इनाऽ᳒२ः᳒॥ व꣡हान्तू꣢ऽ१सोऽ२३॥ मा꣡ऽ२᳐पा꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा॥ ता꣣ऽ२३४ये꣥॥

03_0245 आ त्वा - 02 ...{Loading}...
लिखितम्

२४५-२। भारद्वाजं, कण्वबृहद्वा॥ कण्वो बृहतीन्द्रः॥

औ꣥꣯हो꣯आ꣯त्वा꣯सहाऽ६ए꣥॥ स्र꣢मा꣡शा꣢ऽ१ताऽ२३४म्। हा꣣꣯हो꣢इ। यू꣡क्ता꣯र꣢थे꣯हिरण्यये꣯। ब्र꣡ह्मायू꣢ऽ१जाऽ२३४ः। हा꣣꣯हो꣢इ। हा꣡रय꣢इ। द्रका꣡इशा꣢ऽ१इनाऽ२३४ः। हा꣣꣯हो꣢इ॥ व꣡हान्तू꣢ऽ१सोऽ२३४। हा꣣꣯हो꣢॥ म꣣पी꣢ऽ३। ता꣡ऽ२३४याइ। उ꣥हुवाऽ६हा꣥उ॥ वा॥

03_0245 आ त्वा - 03 ...{Loading}...
लिखितम्

२४५-३। भारद्वाजे द्वे॥ द्वयोर्भारद्वाजो बृहतीन्द्रः॥आ꣤꣯त्वा꣥꣯सह꣤स्र꣥मा꣤꣯श꣥त꣤मा॥ यु꣢क्ता꣡꣯रथेहि꣢र꣡ण्यये। ब्र꣢ह्मयु꣡जो꣯हरयइन्द्र꣢के꣡होऽ᳒२᳒इ। शा꣡इनाऽ२३ः। हा꣢उवा॥ व꣡हन्तुसोम꣢पौ꣣꣯हो꣢ऽ३। हिं꣡माऽ२᳐॥ त꣣या꣢ऽ३इ। ओ꣡ऽ२३४वा꣥॥ ऊ꣣ऽ२३꣡४꣡५꣡॥

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लिखितम्

२४५-४।

आ꣣꣯त्वा꣤꣯सह꣣स्र꣤मा꣥꣯। श꣣ता꣢म्। आ꣣꣯त्वा꣤꣯स꣥हा॥ स्र꣢मा꣡शत꣢म्। आ꣡ऽ२꣮इहिया꣣ऽ२३४हा꣥इ। यू꣡क्ता꣯र꣢थे꣯हिरण्यये꣯। ब्र꣡ह्मायू꣢ऽ१जाऽ२३ः। आ꣡ऽ२꣮इहिया꣣ऽ२३४हा꣥इ॥ हा꣡रय꣢इ। द्रका꣡इशा꣢ऽ१इनाऽ२३ः। आ꣡ऽ२꣮इहिया꣣ऽ२३४हा꣥इ॥ व꣡हान्तू꣢ऽ१सोऽ२३। आ꣡ऽ२꣮इहिया꣣ऽ२३४हा꣥इ॥ म꣢पी꣡꣯ताऽ२३या꣢ऽ३४३इ। ओ꣡ऽ२३४५इ॥ डा॥

04_0246 आ मन्द्रैरिन्द्र - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

२४६-१। अग्नेर्वाम्राणि त्रीणि॥ त्रयाणां वम्रो बृहतीन्द्रः॥

आ꣥꣯मन्द्रै꣯रा॥ द्र꣢हरिभाइर्या꣯हिमयू꣯रऽ३रो꣡माभा꣢ऽ३इः। मा꣤त्वा꣥का꣤इची꣥त्। नि꣢ये᳐मू꣣ऽ२३४री꣥त्। न꣢पा꣯शि꣡नाः॥ अ꣢तिधा꣡न्वेऽ᳒२᳒॥ वताꣳ꣡ऽ२३। आ꣡ऽ२᳐इहा꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा॥ वा꣣ऽ२३४याः꣥॥

04_0246 आ मन्द्रैरिन्द्र - 02 ...{Loading}...
लिखितम्

२४६-२।

आ꣤꣯म꣥न्द्रै꣤꣯रि꣥न्द्र। हा꣤ऽ५रिभा꣤इः॥ या꣢꣯हि꣡मयूर꣢रो꣡꣯मभाइः। मा꣯त्वा꣯काऽ२३इची꣢त्। ना꣡इये꣯मु꣢रित्। नपा꣡꣯शाऽ२३इनाः꣢। अता꣡इधाऽ२३न्वे꣢। वताꣳ꣡ऽ२३। आ꣡ऽ२᳐इहा꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा। व꣢योऽ३भी꣡ऽ२३꣡४꣡५ः꣡॥

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लिखितम्

२४६-३।

आ꣤꣯म꣥न्द्रै꣤꣯रि꣥न्द्र। हा꣤ऽ५रिभीः꣤॥ या꣢꣯हि꣡मयूर꣢रो꣡꣯मभाउ। वाऽ᳒२᳒। मा꣡त्वाऽ᳒२᳒। के꣡꣯चिन्निये꣯मुरिन्न꣢पा꣡꣯शिनाउ। वाऽ᳒२᳒॥ आ꣡तीऽ᳒२᳒॥ ध꣡न्वे꣯व꣢ताऽ३१उवाऽ२३॥ ईऽ२३४ही꣥॥

05_0247 त्वमङ्ग प्र - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

२४७-१। गुङ्गो सामः, गौङ्गवम् वा॥ अग्निर्बृहतीन्द्रः॥त्व꣥मा꣢ऽ३ङ्गा꣤प्र꣥शꣳ꣤सिषाः꣥॥ दा꣡इवाऽ᳒२ः᳒। श꣡विष्ठ꣣मा꣢ऽ३। ता꣤या꣥म्। न꣢त्व꣡दन्यो꣯मघवाऽ२३ना꣡ऽ२᳐॥ स्ति꣣मा꣢ऽ३र्डा꣤इता꣥॥ आ꣡इन्द्रब्र꣢। वा꣡। औ꣢ऽ३हो꣢॥ मितो꣡ऽ२३४वा꣥। वा꣤ऽ५चोऽ६"हा꣥इ॥

06_0248 त्वमिन्द्र यशा - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

२४८-१। इन्द्रस्य यशश्चत्वारि सामानि॥ इन्द्रो बृहतीन्द्रः॥

त्व꣤मि꣥न्द्रा꣤। य꣢शाः꣡꣯। असाइ। ऋ꣢जी꣯षी꣡꣯शवसः꣢। प꣡ताइः। त्वं꣢वृत्रा꣯णीऽ३हꣳ꣢सि꣣या꣢। प्र꣡ती꣯नाएऽ᳒२᳒। क꣡इत्पूरूऽ᳒२᳒। अ꣡नूऽ᳒२᳒होऽ१। तश्च꣢। षा꣡ऽ२᳐णा꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा। धा꣣ऽ२३४र्त्तीः꣥॥

06_0248 त्वमिन्द्र यशा - 02 ...{Loading}...
लिखितम्

२४८-२। साध्रम्॥ सध्रो बृहतीन्द्रः॥

त्व꣥मा꣢ऽ३इन्द्रा꣤य꣥शा꣤꣯असा꣥इ॥ ऋ꣢जा꣡इषी꣢꣯शा꣡ऽ२᳐। व꣣सा꣢ऽ३४५ः। पा꣣ऽ२३४तीः꣥। त्वं꣡वृत्रा꣯णिहꣳ꣢स्यप्रती꣡꣯न्ये꣯क꣢इ꣡त्पु꣢। रू꣡॥ आना꣢ओ꣣ऽ२३४वा꣥। ता꣡श्चा꣢ओ꣣ऽ२३४वा꣥॥ ष꣤णाऽ५इधृतीः। हो꣤ऽ५इ॥ डा॥

06_0248 त्वमिन्द्र यशा - 03 ...{Loading}...
लिखितम्

२४८-३। (समीचीनं) साध्रम् वा॥ सध्रो बृहतीन्द्रः॥

हा꣥꣯उत्वमिन्द्रा॥ या꣢शा᳐आ꣣ऽ२३४सी꣥ऽ६। हा꣥उ। ऋ꣢जा᳐इषी꣣ऽ२३४शा꣥। वा꣢स᳐स्पा꣣ऽ२३४ती꣥ऽ६ः। हा꣥उ। त्वं꣢वृ꣡त्रा। णी꣢꣯हꣳ꣡सिया। हा꣥उ। प्र꣢ती᳐ना꣣ऽ२३४ए꣥। क꣢इ꣡त्पूऽ२३४रू꣥ऽ६। हा꣥उ॥ अ꣢नु꣡त्ताऽ२३४श्चा꣥ऽ६। हा꣥उ॥ षा꣡ऽ२᳐णा꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा॥ धा꣣ऽ२३४र्त्तीः꣥॥

06_0248 त्वमिन्द्र यशा - 04 ...{Loading}...
लिखितम्

२४८-४। (प्राचीनं) यशसी द्वे॥ द्वयोरिन्द्रो बृहतीन्द्रः॥

हा꣥꣯उत्वमिन्द्रा॥ य꣢शा꣡꣯असि꣢। हो꣡इ। होइ। होये꣢ऽ३४। हा꣥उहाउहाउ। ऋ꣢जी꣯षी꣡꣯शवस꣢स्प꣡तिः꣢। हो꣡इ। होइ। होये꣢ऽ३४। हा꣥उहाउहाउ॥ त्वं꣡वृत्रा꣯णिहꣳ꣢स्यप्रती꣡꣯न्ये꣯क꣢इ꣡त्पु꣢रू꣡। होइ। होइ। होये꣢ऽ३४। हा꣥उहाउहाउ॥ अ꣡नुत्त꣢श्चर्षणी꣯धृ꣡तिः꣢। हो꣡इ। होइ। होये꣢ऽ३४। हा꣥उहाउहाउवा॥ सु꣡वर्महा꣣ऽ२३꣡४꣡५ः꣡॥

06_0248 त्वमिन्द्र यशा - 05 ...{Loading}...
लिखितम्

२४८-५।हो꣥꣯त्वमिन्द्रा॥ य꣢शा꣡꣯असि꣢। हो꣡ये꣢ऽ३। होऽ२३꣡४꣡५꣡। ऋ꣢जी꣯षी꣡꣯शवस꣢स्प꣡तिः꣢। हो꣡ये꣢ऽ३। होऽ२३꣡४꣡५꣡॥ त्वं꣡वृत्रा꣯णिहꣳ꣢स्यप्रती꣡꣯न्ये꣯क꣢इ꣡त्पु꣢रू꣡। होये꣢ऽ३। होऽ२३꣡४꣡५꣡॥ अ꣡नुत्त꣢श्चर्षणी꣯धृ꣡तिः꣢। हो꣡ये꣢ऽ३। होऽ२३४वा꣥ऽ६। हा꣥उवा॥ सु꣡वर्मयाऽ२३꣡४꣡५ः꣡॥