०६ १

[[अथ षष्ठप्रपाठके प्रथमोऽर्धः]]

16_0209 अरं त - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

२०९-१। आभीशवम्॥ अभीशुः गायत्रीन्द्रः॥

अ꣥रन्तइन्द्रश्रवसे꣯ए। ए॥ ग꣢मा꣡इमशू꣢꣯रत्वा꣡꣯वता꣢ऽ३ः। हो꣡वा꣢ऽ३हा꣢इ॥ अ꣡राꣳशा꣢ऽ१क्राऽ२३। हो꣡वा꣢ऽ३हा꣢इ॥ परा꣡इमाऽ२३णा꣢ऽ३४३इ। ओ꣡ऽ२३४५इ॥ डा॥

17_0210 धानावन्तं करम्भिणमपूपवन्तमुक्थिनम् - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

२१०-१। पौषम्॥ पूषा गायत्रीन्द्रः॥

धा꣥꣯ना꣯व꣣न्तं꣢क꣣र꣤म्भि꣥णाम्॥ अ꣡पू꣯पवन्तमू꣢ऽ१क्थी꣢ऽ३ना꣢म्॥ इन्द्रा᳐प्रा꣣ऽ२३४ताः꣥। ओ꣣ऽ२३४हा꣥इ॥ जु꣤षोवा꣥। स्वा꣤ऽ५नोऽ६"हा꣥इ॥

18_0211 अपां फेनेन - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

२११-१। इन्द्रस्य क्षुरपवि॥ इन्द्रो गायत्रीन्द्रः॥

अ꣥पां꣤꣯फे꣯ने꣥꣯नन꣤मु꣥चेः꣤॥ शि꣡रइ꣢। द्रो꣡त्। अ꣪वाऽ२᳐र्त्ता꣣ऽ२३४याः꣥॥ वा꣡इश्वाऽ२३ः॥ या꣡ऽ२᳐दा꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा॥ ज꣢यस्पृ꣡धा꣣ऽ२३꣡४꣡५ः꣡॥

19_0212 इमे त - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

२१२-१। सौमित्रे द्वे॥ सुमित्रो गायत्रीन्द्रः॥

इ꣥मे꣯तआ॥ द्र꣢सो꣡꣯माः। होवा꣢ऽ३हो꣡इ। सु꣢ता꣡꣯सो꣯ये꣢ऽ३। चा꣡सो꣢तू꣣ऽ२३४वाः꣥॥ ते꣣ऽ४षा꣥꣯म्। हा꣢ऽ३हा꣢इ॥ मा꣡त्स्वप्र꣢भू꣡ऽ२३४वा꣥॥ वा꣤ऽ५सोऽ६"हा꣥इ॥

20_0213 तुभ्यं सुतासः - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

२१३-१।

तु꣤भ्यꣳहा꣥उ॥ सु꣢ता꣡꣯सस्सो꣯माः꣯। स्ती꣯र्णंबाऽ२३र्हीः꣢। वि꣡भाऽ᳒२᳒होऽ१इ। वाऽ२३सा꣢उ॥ स्तो꣡ता꣢ऽ३उवा꣢ऽ३॥ भ्य꣡आऽ२᳐इ। द्र꣣मॄ꣢ऽ३४औ꣥꣯हो꣯वा॥ डा꣣ऽ२३४या꣥॥

[[अथ एकादश खण्डः]]

21_0214 आ व - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

२१४-१। कौत्से द्वे॥ कुत्सो गायत्रीन्द्रः॥

आ꣥꣯वइन्द्राम्॥ कृ꣢विं꣡यथा। वा꣯जयाऽ२३न्ताः꣢। शता꣡क्रतुम्॥ मꣳहिष्ठाऽ२३ꣳसी꣢। चा꣡या꣭ऽ३उवा꣢ऽ३इ॥ दूऽ२३४भीः꣥॥

22_0215 अतश्चिदिन्द्र न - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

२१५-१।

अ꣥तश्चिदिन्द्रनउपाऽ६ए꣥॥ आ꣡या꣯हि꣢श। तवा꣡꣯जाऽ२३या꣢ऽ३४॥ इ꣣षा꣢ऽ३४स꣣हा꣢ऽ३॥ स्र꣢वो꣡ऽ२३४वा꣥। जा꣤ऽ५योऽ६"हा꣥इ॥

23_0216 आ बुन्दम् - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

२१६-१। औषसम्॥ उषा गायत्रीन्द्रः॥

आ꣥꣯बुन्दंवॄ॥ त्र꣢हा꣡꣯द। दाइ। जातᳲपृच्छा꣢ऽ३त्। वि꣡माऽ२᳐ता꣣ऽ२३४रा꣥म्॥ क꣢उ꣡ग्राऽ२३ᳲके꣢॥ हा꣡शृण्वि꣢रे꣯। इ꣡डाऽ२३भा꣢ऽ३४३। ओ꣡ऽ२३४५इ॥ डा॥

24_0217 बृबदुक्थंहवामहे सृप्रकरस्नमूतये - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

२१७-१। भारद्वाजम्॥ भरद्वाजो गायत्रीन्द्रः॥बृ꣥बदुक्थꣳहाऽ६वा꣥꣯महाइ॥ सा꣡र्प्राऽ᳒२᳒का꣡राऽ᳒२᳒। स्नमू꣯। त꣡याइ॥ सा꣢ऽ१धाऽ᳒२ᳲ᳒का꣡र्ण्वाऽ२३। त꣢मो꣡ऽ२३४वा꣥। वा꣤ऽ५सोऽ६"हा꣥इ॥

25_0218 ऋजुनीती नो - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

२१८-१। कौत्सम्॥ कुत्सो गायत्रीन्द्रः॥

ऋ꣥जुनी꣯ती꣤꣯नो꣥꣯व꣤रु꣥णः। इ꣤हा॥ मि꣢त्रो꣡꣯नयति꣢वि꣡द्वाऽ२३न्त्साः꣢। इ꣡हा꣢॥ अर्यमा꣡꣯दाऽ२३इवा꣢इ। इ꣡हा꣢॥ स꣡जोषा꣭ऽ३उवा꣢ऽ३॥ ई꣢ऽ३४हा꣥॥

26_0219 दूरादिहेव यत्सतोऽरुणप्सुरशिश्वितत् - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

२१९-१। औषसम्॥ उषा गायत्रीन्द्रः॥

दू꣢꣯रा꣡꣯दीऽ२३हे꣤꣯वय꣥त्सताः॥ अ꣢रुण꣡प्सुर꣢शि꣡श्वाऽ२३इता꣢त्॥ विभा꣡꣯नूंऽ२३वी꣢॥ श्वा꣡था꣯त꣢नत्। इ꣡डाऽ२३भा꣢ऽ३४३। ओ꣡ऽ२३४५इ॥ डा॥

27_0220 आ नो - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

२२०-१। मित्रावरुणयोः संयोजनम्॥ मित्रावरुणौ गायत्रीन्द्रः॥ मित्रावरुणौ।

आ꣣꣯नो꣤꣯मि꣥त्रा꣯। व꣢रुणाऽ३। औ꣢꣯हो꣡वाऽ२३४॥ घृतै꣣꣯र्गव्यू꣤꣯ति꣥मु। क्ष꣢ताऽ३म्। औ꣢꣯हो꣡वाऽ᳒२᳒॥ मा꣡ध्वा꣢꣯र꣡जा꣰꣯ऽ२ꣳसिसूऽ३। औ꣢꣯हो꣡वाऽ᳒२᳒॥ क्रतू꣯। इ꣡डाऽ२३भा꣢ऽ३४३। ओ꣡ऽ२३४५इ॥ डा॥

28_0221 उदु त्ये - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

२२१-१। ऋतुषाम॥ ऋतवो गायत्रीन्द्रो, मरुतो वा॥

उ꣥दुत्ये꣯सू꣯नाऽ६वो꣥꣯गिराः॥ का꣡ष्ठा꣢꣯य। ज्ञा꣡इ। षु꣪वाऽ२᳐त्ना꣣ऽ२३४ता꣥॥ वा꣢꣯श्रा꣡꣯आऽ२३भी꣢ऽ३॥ ज्ञू꣡ऽ२३या꣤ऽ३। ता꣢ऽ३४५वोऽ६"हा꣥इ॥

29_0222 इदं विष्णुर्व - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

२२२-१। विष्णोस्साम॥ विष्णुर्निचृत्गायत्री विष्णुः॥इ꣥दाऽ६मे꣥॥ वि꣡ष्णूऽ२ः᳐। वि꣣च꣢क्रा꣣ऽ२३४मा꣥इ। त्रा꣡इधा꣯नि꣢। दधा꣡इपा꣢ऽ१दाऽ᳒२᳒म्॥ स꣡मूऽ᳒२᳒होऽ१। ढाऽ२३मा꣢ऽ३। स्या꣡ऽ२᳐पा꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा॥ ए꣢ऽ᳐३। सु꣢लेऽ१॥

[[अथ द्वादश खण्डः]]

30_0223 अतीहि मन्युषाविणम् - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

२२३-१। कौत्सम्॥ कुत्सो गायत्रीन्द्रः॥

अ꣥ती꣯हिमा। न्यु꣢षाऽ᳒२᳒वा꣡इणाऽ᳒२᳒म्। सुषुवाꣳ꣡साऽ᳒२᳒म्। हो꣡इ। ऊपै꣢ऽ१राया᳐ऽ२। अ꣣स्यरा꣢꣯ता꣡ऽ२३उ। सू꣡ऽ२᳐ता꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा। पी꣣ऽ२३४बा꣥॥

31_0224 कदु प्रचेतसे - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

२२४-१। काश्यपम्, आप्सरसं वा॥ कश्यपो गायत्रीन्द्रः॥

क꣣दु꣤प्र꣣चे꣤꣯त꣥से꣯। म꣣हा꣢ऽ३इ॥ वा꣡ऽ२३४चो। दे꣥꣯वा꣯हाउ। व꣤चोदे꣥꣯वा। य꣢श꣡स्याऽ२३ता꣢ऽ३४इ॥ त꣣दा꣢ऽ३४इद्धि꣣या꣢ऽ३॥ स्य꣢वो꣡ऽ२३४वा꣥। धा꣤ऽ५नोऽ६"हा꣥इ॥

32_0225 उक्थं च - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

२२५-१। बार्हदुक्थे द्वे॥ द्वयोर्बृहदुक्थो गायत्रीन्द्रः॥

उ꣥क्थ꣤ञ्च꣥नो꣤हाइ॥ श꣢स्य꣡मा꣯नम्। ना꣯गो꣯राऽ२३यीः꣢। आ꣡꣯चिके꣯ता॥ न꣢गा꣡꣯याऽ२३त्रा꣢म्॥ गी꣯। य꣡माऽ२᳐ना꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा॥ ऊ꣣ऽ२३४पा꣥॥

33_0226 इन्द्र उक्थेभिर्मन्दिष्ठो - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

२२६-१।

इ꣥न्द्रउक्थाइ॥ भि꣢र्मा꣡न्दाइष्ठो꣢ऽ३। वा꣡जा꣢᳐ना꣣ऽ२३४ञ्चा꣥। वा꣡꣯जप꣢तिः॥ ह꣡राऽ२᳐इवा꣣ऽ२३४न्त्सू꣥। ता꣡꣯ना꣰꣯ऽ२ꣳस꣡। खा। औ꣢ऽ३हो꣤वा꣥। हो꣤ऽ५इ॥ डा॥

34_0227 आ याह्युप - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

२२७-१। कौत्सम्॥ कुत्सो गायत्रीन्द्रः॥

आ꣤꣯या꣥꣯ही꣤। उ꣡पन꣢स्सुत꣡म्। होवा꣢ऽ३हा꣢इ। वा꣡꣯जे꣰꣯ऽ२भिर्मा꣡꣯हृणी꣢꣯यथाऽ३ः। हो꣡वा꣢ऽ३हा꣢इ। महाꣳ꣡꣯इव꣢यु꣡वाऽ२३। हो꣡वा꣢ऽ३हा꣢ऽ᳐३इ। जा꣡ऽ२᳐ना꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा। ऊ꣢ऽ᳐३२᳐३४पा꣥॥

35_0228 कदा वसो - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

२२८-१। कौत्से द्वे॥ द्वयोः कुत्सो भुरिग्गायत्रीन्द्रः॥

ओ꣡ऽ᳒२᳒होऽ१इ। कदा꣢꣯व꣣सो꣥꣯। स्तो꣡त्रा꣢ऽ३म्। ह꣢र्य꣣ता꣤आ꣥॥ ओ꣡ऽ᳒२᳒होऽ१इ। अ꣣व꣢श्म꣣शा꣥꣯। रु꣣धा꣢दू꣣ऽ२३४वाः꣥॥ ओ꣡ऽ᳒२᳒होऽ१इ। दी꣣꣯र्घꣳ꣢सु꣣त꣥म्॥ वा꣣꣯ता꣢ऽ३४३। पी꣢ऽ३या꣤ऽ५याऽ६५६॥ ई꣣ऽ२३꣡४꣡५꣡॥

35_0228 कदा वसो - 02 ...{Loading}...
लिखितम्

२२८-२।

क꣣दा꣢ऽ३४औ꣣꣯हो꣤꣯वा꣥। व꣡सो। स्तोत्रा꣢ऽ३म्। ह꣢र्य꣣ता꣤आ꣥। अ꣡वा꣢ऽ३४। औ꣣꣯हो꣤꣯वा꣥। श्म꣡शाऽ२᳐। रु꣣धा꣢᳐दू꣣ऽ२३४वाः꣥। दी꣣꣯र्घा꣢ऽ३४औ꣣꣯हो꣤꣯वा꣥। सु꣡ताऽ२३म्। वा꣯ता꣢ऽ३४३। पी꣢ऽ३या꣤ऽ५याऽ६५६॥

36_0229 ब्राह्मणादिन्द्र राधसः - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

२२९-१। और्ध्वसद्मनम्॥ ऊर्ध्वसद्मा गायत्रीन्द्रः॥

ब्रा꣥꣯ह्मणा꣯दी॥ द्र꣢रा꣯ध꣡साः। पि꣢बा꣯सो꣡माऽ᳒२᳒म्। ऋतूꣳ꣯र꣡नू॥ त꣢वे꣯दाꣳ꣡साऽ२३॥ ख्या꣡ऽ२३मा꣤ऽ३। स्ता꣢ऽ३४५र्तोऽ६"हा꣥इ॥

37_0230 वयं घा - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

२३०-१। और्ध्वसद्मनम्॥ ऊर्ध्वसद्मा गायत्रीन्द्रः॥

व꣥यं꣤घा꣥꣯ते꣯अ꣤पि꣥स्मसा꣤इ॥ स्तो꣢꣯ता꣡꣯रइन्द्रगिर्वणाः। ववाऽ२३हो꣡इ॥ तूव꣪न्नोजीऽ᳒२᳒। व꣡वाऽ२३हो꣡॥ न्व꣢सो꣡ऽ२३। मा꣡ऽ२᳐पा꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा। ए꣢ऽ᳐३॥ उ꣡पा꣣ऽ२३꣡४꣡५꣡॥

38_0231 एन्द्र पृक्षु - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

२३१-१। अभीपादस्य औदलस्य साम॥ उदलो निचृत्गायत्रीन्द्रः॥

ए꣥꣯न्द्रपृक्षुका꣯सुचीऽ६दे꣥॥ नृ꣢म्णाम्। तनू꣯षुऽ३धा꣡इहा꣢ऽ१इनाऽ᳒२ः᳒॥ सा꣡त्रा꣯जि꣢दु॥ ग्रपौ꣡ऽ२३ꣳसिया꣢उ। वाऽ३॥ ऊ꣢ऽ᳐३४पा꣥॥

39_0232 एवा ह्यसि - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

२३२-१। आमहीयवं उक्थ्यामहीयवम् वा॥ अमहीयुर्गायत्रीन्द्रः॥

ए꣥꣯वा꣯हो꣢ऽ३अ꣤सिवी꣥꣯रयूः॥ ए꣢꣯वा꣡शू꣢ऽ१राऽ᳒२ः᳒। उ꣡ताऽ२३स्थिराः꣢। आ꣡इवा꣢꣯ते꣯रा꣡॥ धियाऽ२३म्मना꣢उ। वाऽ३। स्तो꣢꣯षे᳐ऽ२३꣡४꣡५꣡॥

[[अथ प्रथम खण्डः]]

40_0233 अभि त्वा - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

२३३-१। भरद्वाजस्यार्कौ द्वौ॥ द्वयोर्भरद्वाजो बृहतीन्द्रः॥ ईशानेन्द्रौ वा।

अ꣥भित्वा꣯शू॥ र꣢नो꣡नु꣪माऽ᳒२ः᳒। ओ꣡इनू꣢ऽ३माः꣢। आ꣡दुग्धा꣢꣯इ। वधा꣡इन꣪वाऽ᳒२ः᳒। ओ꣡इना꣢ऽ३वाः꣢। आ꣡इशा꣯न꣢मस्यजगतः। सुवा꣡र्दृश꣢म्। आ꣡र्दृ꣢ऽ३षा꣢म्॥ आ꣡इशा꣯न꣢मि॥ द्रता꣡स्थुषः꣢। आ꣡ऽ२३। स्थू꣡ऽ२᳐। षा꣣ऽ२३४। औ꣥꣯हो꣯वा॥ स्थु꣢षस्स्थु꣡षा꣣ऽ२३꣡४꣡५ः꣡॥

40_0233 अभि त्वा - 02 ...{Loading}...
लिखितम्

२३३-२।

अ꣥भित्वा꣢ऽ३शू꣤꣯र꣥नो꣤꣯नुमाः꣥॥ आ꣡दुग्धा꣢꣯इव। धा꣡इनाऽ२३वाः꣢। आ꣡इशा꣯न꣢मस्या꣡जग। ताः। सु꣪वाऽ२᳐र्दृ꣣ऽ२३४शा꣥म्॥ ई꣢꣯शा꣡꣯नाऽ२३मी꣢॥ द्रा꣡तस्थु꣢षः। इ꣡डाऽ२३भा꣢ऽ३४३। ओ꣡ऽ२३४५इ॥ डा॥

41_0234 त्वामिद्धि हवामहे - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

२३४-१। इन्द्रस्य भारद्वाजे द्वे॥ द्वयोर्भरद्वाजो बृहतीन्द्रः॥त्वा꣥꣯मिद्धी॥ ह꣢वाऽ᳒२᳒म꣡हे꣢꣯। आ꣡। औ꣢ऽ३हो꣯वा꣯हा꣢उवाऽ३। ऊ꣢ऽ३᳐४पा꣥॥ सा꣢꣯तौ꣯वा꣯ज। स्याऽ३काऽ᳒२᳒र꣡वः꣢। आ꣡। औ꣢ऽ३हो꣯वा꣯हा꣢उवाऽ३। ऊ꣢ऽ३᳐४पा꣥॥ त्वां꣡꣯वृत्राइषुइ꣢। द्रसाऽ᳒२᳒त्प꣡ति꣢म्। आ꣡। औ꣢ऽ३हो꣯वा꣯हा꣢उवाऽ३। ऊ꣢ऽ३᳐४पा꣥॥ न꣡रस्त्वां꣯का꣯ष्ठा꣢꣯। सुआऽ᳒२᳒र्व꣡तः꣢। आ꣡। औ꣢ऽ३हो꣯वा꣯हा꣢उवाऽ३॥ ऊ꣢ऽ᳐३२᳐३४पा꣥॥

41_0234 त्वामिद्धि हवामहे - 02 ...{Loading}...
लिखितम्

२३४-२।

त्वा꣤꣯मिद्धिहवा꣥꣯महे꣯। सा꣯तौ꣯वा꣯जो꣤वा꣥॥ स्या꣡का꣢ऽ१रावाऽ᳒२ः᳒। त्वां꣡꣯वृत्राइषुइ꣢न्द्रसत्। पा꣡ति꣪न्नाराऽ᳒२ः᳒॥ त्वां꣡꣯काऽ२३ष्ठा꣢॥ सुअ꣡र्वाऽ२३ता꣢ऽ३४३ः। ओ꣡ऽ२३४५इ॥ डा॥

42_0235 अभि प्र - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

२३५-१। सान्नते द्वे॥ द्वयोः सन्नतिः बृहतीन्द्रः॥

अ꣥भिप्रवाः॥ सु꣢रा꣡꣯धाऽ२३सा꣢म्। इ꣡न्द्रमर्चयाथा꣢ऽ१विदाऽ२३४इ। यो꣣꣯जा꣢ऽ३४रि꣣तॄ꣢। भ्यो꣡꣯मघवा꣯पूरू꣢ऽ१वासूऽ᳒२ः᳒॥ स꣡हाऽ२३॥ स्रा꣡ऽ२᳐इणा꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा॥ व꣢शि꣡क्षती꣣ऽ२३꣡४꣡५꣡॥

42_0235 अभि प्र - 02 ...{Loading}...
लिखितम्

२३५-२।

अ꣡भाइप्र꣪वाऽ२ः᳐। सु꣣रा꣢धा꣣ऽ२३४सा꣥म्॥ इ꣡न्द्राम꣪र्चाऽ२३। या꣡ऽ२᳐था꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा। वी꣣ऽ२३४दे꣥। यो꣡꣯जरि꣢तृ꣡भ्यो꣢꣯मघ꣡वा꣰꣯ऽ२पुरू꣯व꣡सुः꣢॥ सहा॥ स्रे꣯णे꣯वऽ३शा꣡ये꣢ऽ३। क्षा꣡ऽ२᳐ता꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा॥ सु꣢भूऽ३त꣡येऽ२३꣡४꣡५꣡॥

42_0235 अभि प्र - 03 ...{Loading}...
लिखितम्

२३५-३। श्यैतम्॥ प्रजापतिर्बृहतीन्द्रः॥

अ꣤भि꣣प्रव꣤स्सु꣥रा꣯। ध꣣सा꣢ऽ३४औ꣣꣯हो꣤꣯वा꣥॥ आ꣡इन्द्रम꣢र्च। यथा꣡वि꣪दाऽ२३४इ॥ ओ꣥ऽ६हा꣥। यो꣡꣯जरि꣢तृ꣡भ्यः꣢। मा꣡घाऽ२३वा꣢। पु꣡रूऽ२᳐। वा꣣ऽ२३४सूः꣥॥ स꣢ह꣡स्रे꣯णाइवा꣢ऽ३शा꣢॥ हि꣡म्माये꣢ऽ३। क्षा꣡ऽ२᳐ता꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा॥ वा꣣ऽ२३४सू꣥॥

43_0236 तं वो - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

२३६-१। प्रजापतेर्नाविकम्॥ प्रजापतिर्बृहतीन्द्रः॥तं꣤वः꣥। ए꣤दास्मा꣥म्॥ ऋ꣢ती꣯ष꣡ह꣢म्। हाऽ᳒२᳒इ। आ꣡औ꣢ऽ३हो꣢। इ꣡हा꣢। वा꣡सो꣯र्म꣢न्दा꣯न꣡मन्ध꣢साऽ३ः। हाऽ᳒२᳒इ। आ꣡औ꣢ऽ३हो꣢। इ꣡हा꣢। अभि꣡वत्सन्नस्वसरे꣢꣯षुधे꣯न꣡वा꣰꣯ऽ२ः। हाऽ᳒२᳒इ। आ꣡औ꣢ऽ३हो꣢। इ꣡हा꣢॥ इ꣡न्द्र꣢म्। हाऽ᳒२᳒इ। आ꣡औ꣢ऽ३हो꣢। इ꣡हा꣢। गी꣣꣯र्भा꣢इः᳐। ना꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा॥ वा꣡꣯म᳐हे꣣ऽ२३꣡४꣡५꣡॥

43_0236 तं वो - 02 ...{Loading}...
लिखितम्

२३६-२। अभीवर्तः॥ प्रजापतिर्बृहतीन्द्रः॥

तं꣥वो꣤ऽ३दा꣢ऽ३स्मा꣤मृती꣥꣯षहो꣤वा꣥॥ वा꣡सो꣯र्म꣢न्दा꣯। नमा꣡न्धा꣢ऽ१साऽ᳒२ः᳒। आ꣡भि-वत्सा꣢ऽ३१२३४म्। न꣣स्वस꣤रे꣥꣯। षु꣢धा꣡इना꣢ऽ१वाऽ᳒२ः᳒॥ इन्द्राꣳ꣡गा꣢ऽ१इर्भीऽ२ः᳐॥ न꣣वा꣢ऽ३। मा꣡ऽ२३४५॥ हा꣣ऽ२३꣡४꣡५꣡इ॥

43_0236 तं वो - 03 ...{Loading}...
लिखितम्

२३६-३। भागम्॥ भगो बृहतीन्द्रः॥

तं꣣वो꣤꣯दस्म꣣मृ꣤ती꣥꣯। ष꣣हा꣢ओ꣣ऽ२३४वा꣥॥ वा꣡सो꣯र्मन्दा꣯नमन्धासाऽ᳒२ः᳒। आ꣡भिवत्सन्नस्वसरे꣯षूधे꣢ऽ१नावाऽ᳒२ः᳒। ओ꣭ऽ३वा꣢॥ इन्द्रं꣡गाऽ२३४इर्भीः꣥॥ न꣢वा꣡꣯माऽ२३४५हा"ऽ६५६इ॥ भ꣢गाऽ३या꣡ऽ२३꣡४꣡५꣡॥

43_0236 तं वो - 04 ...{Loading}...
लिखितम्

२३६-४। अभीवर्तः॥ इन्द्रो बृहतीन्द्रः॥

त꣣म्वो꣤꣯दस्म꣣मृ꣤ती꣥꣯। ष꣣हा꣢ऽ३म्। वा꣡ऽ२३४। सो꣯र्म꣥न्दा꣯नम। धा꣤साः꣥॥ अ꣢भिवत्सन्नस्वसरे꣯षुऽ३धा꣡इ। नाऽ२३वाः꣢॥ इ꣡न्द्रंगी꣯र्भाइर्न्ना꣢ऽ३वा꣢॥ हि꣭म्ऽ३(स्थि)हि꣢म्ऽ३। हि꣭म्ऽ३(स्थि)हि꣢म्। नवानवो꣣ऽ२३४वा꣥। मा꣤ऽ५होऽ६"हा꣥इ॥

43_0236 तं वो - 05 ...{Loading}...
लिखितम्

२३६-५। नौधसम्॥ नोधा बृहतीन्द्रः॥

ता꣡ऽ२३४म्। वो꣯द꣥स्म꣤मृ꣥ती꣯। षा꣤हा꣥म्॥ व꣢सो꣡꣯र्मन्दा। ना꣢ऽ३मा꣡न्धा꣢ऽ३साः꣢। आ꣡ऽ२३भी꣢। वा꣡त्सन्न꣢। स्व꣡स꣢। रा꣡इ। षूधे꣢ना꣣ऽ२३४वाः꣥। आ꣡ऽ२३इन्द्रा꣢म्॥ गा꣡इर्भिर्न꣢वो꣡ऽ२३४वा꣥॥ मा꣣ऽ२३४हे꣥॥