०५ २

[[अथ पञ्चमप्रपाठके द्वितीयोऽर्धः]]

35_0179 इन्द्रो दधीचो - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

१७९-१। त्वष्टुरातिथ्ये द्वे॥ द्वयोस्त्वष्टा गायत्रीन्द्रः॥

इ꣡न्द्रो꣯दधी꣯चो꣯अस्थभिरियाऽ᳒२᳒ई꣭ऽ३या꣢॥ वृत्रा꣡꣯ण्यप्रतिष्कुतइयाऽ᳒२᳒ई꣭ऽ३या꣢॥ जघा꣡꣯ननवती꣯र्नवइयाऽ᳒२᳒॥ ई꣡ऽ२᳐। या꣣ऽ२३४। औ꣥꣯हो꣯वा॥ ऊ꣣ऽ२३४पा꣥॥

35_0179 इन्द्रो दधीचो - 02 ...{Loading}...
लिखितम्

१७९-२।

इ꣥न्द्रो꣯दधाइ॥ चो꣢अस्था꣣ऽ२३४भीः꣥। वृ꣢त्रा꣡꣯णिया। प्रा꣢꣯ति꣡ष्कुताः। ज꣢घा꣡꣯नाऽ२३ना꣢᳐॥ व꣣ती꣯र्न꣢वा꣡। औ꣢ऽ३हो꣤वा꣥। हो꣤ऽ५इ॥ डा॥

36_0180 इन्द्रेहित्स्यन्धसो विश्वेभिः - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

१८०-१। पौषम्॥ पूषा गायत्रीन्द्रः॥

इ꣥न्द्रे꣯हिमा꣯हाउ॥ त्सी꣢ऽ३आ꣡न्धा꣢ऽ३साः꣢। वा꣡इश्वे꣢꣯भिस्सो꣡ऽ२३हा꣢ऽ३। मा꣡प꣢र्वा꣣ऽ२३४भीः꣥। म꣡हाऽ२३ꣳ॥ आ꣡ऽ२᳐भा꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा॥ ष्टि꣢रो꣡꣯जसा꣣ऽ२३꣡४꣡५꣡॥

37_0181 आ तू - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

१८१-१। इन्द्रस्य माया॥ इन्द्रो गायत्रीन्द्रो॥ वृत्रहा वा।

आ꣣꣯तू꣢꣯औ꣣꣯हो꣥꣯॥(द्विः)। न꣢इ꣡न्द्र꣢वृ꣡त्राऽ२३४हा꣥न्। अ꣢स्मा꣡꣯क꣢म꣡र्ध꣢म्। आ꣡꣯गाऽ२३ही꣢। गा꣡हीऽ᳒२᳒॥ मा꣡हाऽ᳒२᳒न्मा꣡हीऽ२३॥ भि꣢रू꣡ऽ२३४वा꣥॥ ता꣤ऽ५इभोऽ६"हा꣥इ॥

38_0182 ओजस्तदस्य तित्विष - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

१८२-१। इन्द्रस्य सांवर्ते द्वे॥ द्वयोरिन्द्रो गायत्रीन्द्रः॥

हा꣥। हा꣢उवाऽ३। ओ꣡꣯जस्तदस्य꣢तित्विषे꣣ऽ२३४। हा꣥। हा꣢उवा। उभे꣡꣯यत्समवर्त꣢या꣣ऽ२३४त्॥ हा꣥। हा꣢उवाऽ३। इ꣡न्द्रश्चर्मे꣰꣯ऽ२वरो꣡꣯दसी꣣ऽ२३꣡४꣡५꣡॥

38_0182 ओजस्तदस्य तित्विष - 02 ...{Loading}...
लिखितम्

१८२-२।

ओ꣤꣯जस्तदाऽ५स्यतित्वि꣤षाइ॥ उ꣢भे꣡꣯यत्समवर्तयादा꣢ऽ१इन्द्राऽ२३ः॥ चा꣡ऽ२᳐र्मा꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा। व꣢रो꣡꣯दसी꣣ऽ२३꣡४꣡५꣡॥

39_0183 अयमु ते - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

१८३-१। शौनश्शेपम्, च्यावनं वा॥ शुनश्शेपो गायत्रीन्द्रः॥

अ꣤या꣣ऽ५मु। ता꣤ऽ३इसा꣢ऽ३मा꣤꣯तसा꣥इ॥ का꣡पो꣯त꣢इ। वगा꣡र्भा꣢ऽ१धीऽ᳒२᳒म्॥ वा꣡चाऽ᳒२᳒स्ता꣡च्चीऽ२३त्॥ न꣢ओ꣡ऽ२३४वा꣥। हा꣤ऽ५सोऽ६"हा꣥इ॥

40_0184 वात आ - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

१८४-१। प्रतीचीनेडं काशीतम्॥ काशीतो गायत्रीन्द्रो, वायुर्वा॥

वा꣤꣯त꣥आ꣤꣯वा꣥꣯तु। भा꣤ऽ५इषजा꣤म्॥ शा꣡म्भुम꣢यः। भुनो꣡हृ꣪दाऽ२३४इ। हा꣣꣯हो꣢इ॥ प्र꣡नआ꣯यूꣳषी꣢ऽ३ता꣢॥ रिषा꣡त्। औऽ२३हो꣤वा꣥। ई꣤डा꣥॥

[[अथ अष्टम खण्डः]]

41_0185 यं रक्षन्ति - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

१८५-१। सौमित्रम्॥ सुमित्रो गायत्रीन्द्रो विश्वेदेवा वा॥

यꣳ꣤रक्ष꣥न्तिप्र꣤चे꣥꣯तसाः꣤॥ व꣡रुणो꣯मित्रो꣯अर्याऽ२᳐३मा꣢। न꣡। काइस्साऽ२३दा꣢॥ हिं꣡माये꣢ऽ३। भ्या꣡ऽ२᳐ता꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा॥ जा꣣ऽ२३४नाः꣥॥

42_0186 गव्यो षु - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

१८६-१। श्यावाश्वे द्वे॥ द्वयोश्श्यावाश्वोः गायत्रीन्द्रः॥

ग꣥व्यो꣤꣯षुणो꣥꣯य꣤था꣥꣯पुरा꣤॥ अ꣢श्वयो꣯त꣡रथा। याव꣢रिवस्या꣡॥ म꣢। हो꣡꣯माऽ२३। हो꣯ना꣢ऽ३४औ꣥꣯हो꣯वा। ऊ꣣ऽ२३४पा꣥॥

42_0186 गव्यो षु - 02 ...{Loading}...
लिखितम्

१८६-२।ग꣥व्यो꣯षुणो꣯यथा꣯पुराऽ६ए꣥॥ अ꣢श्वयोऽ१त। रथाऽ᳒२᳒। या꣡॥ व꣢रि꣡वाऽ᳒२᳒स्या꣡। म꣢हो꣡꣯। महोऽ२᳐ना꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा॥ ई꣣ऽ२३꣡४꣡५꣡॥

43_0187 इमास्त इन्द्र - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

१८७-१। शैखण्डिनम्॥ शिखण्डी गायत्रीन्द्रः॥

इ꣥मा꣯स्तई॥ द्र꣢पृ꣡श्नयो꣯घृतंदू꣭ऽ३हा꣢। औ꣣꣯हो꣭ऽ३हा꣢ऽ३। हा꣢ऽ३इ। ता꣡आऽ२᳐शा꣣ऽ२३४इरा꣥म्॥ ए꣣꣯ना꣢ऽ३४मृ꣣ता꣢ऽ३॥ स्य꣢पो꣡ऽ२३४वा꣥। प्यू꣤ऽ५षोऽ६"हा꣥इ॥

44_0188 अया धिया - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

१८८-१। वैतहव्यम्॥ वीतहव्यो गायत्रीन्द्रः॥

अ꣥या꣯धिया꣯चगव्याऽ६या꣥॥ पु꣡रुणा꣢ऽ३। म꣢᳐न्पू꣣ऽ२३४रू꣥। ष्टू꣡तौ꣢। वाऽ३२॥ यत्सो꣯मे꣯ऽ३सो꣢꣯म꣣आ꣢॥ या꣡त्सो꣯मे꣰꣯ऽ२सो꣡꣯। म꣢ओ꣡ऽ२३४वा꣥। भू꣤ऽ५वोऽ६"हा꣥इ॥

45_0189 पावका नः - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

१८९-१। भारद्वाजम्॥ भरद्वाजो गायत्रीन्द्रः॥ सरस्वती वा।

पा꣥꣯वका꣯नई꣤या꣥॥ स꣢रा꣡स्वा꣢ऽ१तीऽ᳒२᳒। वा꣡जे꣯भि꣢र्वा꣯। जिना꣡इवा꣢ऽ१तीऽ᳒२᳒॥ य꣡ज्ञाऽ२३म्॥ वा꣡ऽ२᳐ष्टू꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा॥ धि꣢या꣡꣯वसू꣣ऽ२३꣡४꣡५ः꣡॥

46_0190 क इमम् - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

१९०-१। आरुणस्य वैतहव्यस्य साम, सौभरं वा॥ अरुणो वीतहव्यः गायत्रीन्द्रः॥

क꣤इ꣥म꣤म्। उ꣥हु꣤वाहा꣥इ॥ ना꣢꣯हुऽ३षा꣡इषू꣢ऽ१वाऽ᳒२᳒। आ꣡इन्द्रꣳसो꣯म꣢। स्यता꣡र्पा꣢ऽ१याऽ᳒२᳒त्। स꣡नो꣰꣯ऽ२व꣡सू꣢꣯। निया꣡भा꣢ऽ१राऽ᳒२᳒त्॥ स꣡नो꣰꣯ऽ२व꣡सू꣢꣯नि॥ आ꣡ऽ२३। भरा꣢उवा। आ꣡꣯गहि꣢ये꣡꣯हिताइमे꣢ऽ१॥

47_0191 आ याहि - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

१९१-१। सौभरम्॥ सुभरिर्गायत्रीन्द्रः॥आ꣥꣯या꣯हिसू॥ षु꣢मा꣡हा꣢ऽ१इतेऽ᳒२᳒। षुमा꣡हा꣢ऽ१इतेऽ᳒२᳒। आ꣡इंद्रसोम꣢म्। पिबा꣡इम꣢म्। पिबा꣡आ꣢ऽ१इमाऽ२᳐म्॥ ए꣣꣯दंब꣢र्हा꣡इः॥ स꣢दो꣡꣯माऽ२३मा꣢ऽ३४३। ओ꣡ऽ२३४५इ॥ डा॥

48_0192 महि त्रीणामवरस्तु - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

१९२-१। पाष्ठौहे द्वे॥ पष्ठवाड्गायत्रीन्द्रः॥ (मित्रावरुणोऽर्यमा)।

म꣣हा꣢इ᳐त्रा꣣ऽ२३४इणा꣥म्॥ अ꣡वाऽ᳒२᳒र꣡स्तू। द्यु꣣क्षं꣢मा꣣ऽ२३४इत्रा꣥॥ स्या꣡ऽ᳒२᳒र्य꣡म्णाः॥ दु꣣रा꣢᳐धा꣣ऽ२३४र्षा꣥म्॥ व꣢रौ꣡꣯होऽ२३४। वा꣥। णा꣤ऽ५स्योऽ६"हा꣥इ॥

48_0192 महि त्रीणामवरस्तु - 02 ...{Loading}...
लिखितम्

१९२-२।

म꣥हित्री꣯णा꣯मवरस्तूऽ६ए꣥॥ द्यु꣢क्षं꣡मित्रस्या꣯र्यम्णाः॥ दु꣢रा꣡꣯धाऽ२३र्षा꣢म्॥ वरौ꣡होऽ᳒२᳒। हि꣡म्माऽ᳒२᳒। ण। स्यो꣡ऽ२᳐। या꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा॥ हा꣢꣯ओ꣡वा꣢। ओ꣡वा꣣ऽ२३꣡४꣡५꣡॥

49_0193 त्वावतः पुरूवसो - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

१९३-१। धुरासाकमश्वम्॥ साकमश्वो गायत्रीन्द्रः॥

त्वा꣡꣯वतो꣢ऽ३। हौ꣭ऽ३हो꣢ऽ३१इ॥ पुरू꣯व꣢सोऽ३। हौ꣭ऽ३हो꣢ऽ३१इ। व꣢य꣡मिन्द्रा꣢ऽ३। हौ꣭ऽ३हो꣢ऽ३१इ। प्रणे꣯ता꣢ऽ३ः। हौ꣭ऽ३हो꣢ऽ३१इ॥ स्मसिस्था꣢꣯ताऽ३ः। हौ꣭ऽ३हो꣢ऽ३१इ॥ हरी꣯णा꣢ऽ३म्। हौ꣭ऽ३हो꣢ऽ३१२३४५इ॥ डा॥

[[अथ नवम खण्डः]]

01_0194 उत्त्वा मन्दन्तु - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

१९४-१। यामम्॥ यमो गायत्रीन्द्रः॥

उ꣥त्वा꣯मन्दन्तुसो꣯हो꣤माः꣥॥ कृ꣢णौ꣡꣯हो। ष्व꣢रौ꣡꣯हो। धा꣢꣯अ꣡द्रिवाः॥ अ। वब्राऽ२३ह्मा꣢॥ द्वि꣡षाऽ᳒२ः᳒। हाऽ᳒२᳒इ। औ꣭ऽ३हो꣢ऽ३१ये꣢ऽ३। जा꣡ऽ२᳐हा꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा। ए꣢ऽ᳐३। य꣡यूऽ२३꣡४꣡५ः꣡॥

02_0195 गिर्वणः पाहि - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

१९५-१। आङ्गिरसं हरिश्रीनिधनम्॥ अङ्गिरा गायत्रीन्द्रः॥

गि꣤र्व꣥णᳲपा꣯हि꣤न꣥स्सुत꣤म्। गिर्व꣥णᳲपा꣤॥ हि꣡नस्सुताऽ᳒२᳒म्। म꣡धो꣯र्धा꣯रा꣯भि꣢रा꣡होऽ᳒२᳒। ज्या꣡सेऽ२३। हा꣢उवा॥ इ꣡न्द्रात्वाऽ२३दा꣢। तमा꣡ये꣢ऽ३त्। या꣡ऽ२᳐शा꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा॥ ह꣢रिऽ३श्री꣡ऽ२३꣡४꣡५ः꣡॥

03_0196 सदा व - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

१९६-१। वैरूपम्॥ विरूपो गायत्रीन्द्रः॥

सा꣤दा꣥॥ व꣢इन्द्राऽ३ः। च꣢र्कृ꣣षा꣤दा꣥। उ꣢पो꣯नुसाऽ३ः। सा꣡पर्य꣢न्॥ न꣣दे꣢꣯वा꣡ऽ२३ः॥ वृता꣢ऽ३४३ः। शू꣢ऽ३४३। रा꣢ऽ३आ꣤ऽ५इन्द्रा"ऽ६५६ः॥

04_0197 आ त्वा - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

१९७-१। आसितं सिन्धुषाम वा॥ आसितो गायत्रीन्द्रः॥

आ꣥꣯त्वा꣯विशन्त्विन्दाऽ६वाः꣥॥ स꣢मुद्र꣡मिव꣢सि꣡न्ध꣢वः। समुद्र꣡मि। व꣢सि꣡न्धाऽ२३वाः꣢। न꣡त्वा꣯मिन्द्रा꣯तिरि꣢च्यते꣯॥ नत्वा꣡꣯माऽ२३इन्द्रा꣢॥ तिरि꣡च्याऽ२३ता꣢ऽ३४३इ। ओ꣡ऽ२३४५इ॥ डा॥

05_0198 इन्द्रमिद्गाथिनो बृहदिन्द्रमर्केभिरर्किणः - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

१९८-१। यमस्य इन्द्रस्य वा अर्कः (अर्कम्)॥ यमो गायत्रीन्द्रः॥

इ꣥न्द्रमि꣣द्गा꣢꣯थि꣣नो꣤꣯बृ꣥हात्॥ इ꣢न्द्रा꣡म꣢र्का꣡इ। भि꣢रर्कि꣡णाः॥ इन्द्रंवाणी꣢ऽ३ः। हा꣢ऽ३हा꣢इ॥ अ꣤नूऽ५षता। हो꣤ऽ५इ॥ डा॥

06_0199 इन्द्र इषे - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

१९९-१। सौमित्रे द्वे॥ द्वयोः सुमित्रो गायत्रीन्द्रः॥ ऋभुर्वा।

इ꣤न्द्र꣥इषे꣤꣯द꣥दा꣯तुनः। ओ꣤हाइ॥ ऋ꣢भु। क्ष꣡णाऽ२᳐म्। ऋ꣣भुꣳ꣢᳐रा꣣ऽ२३४यी꣥म्। वा꣢꣯जी꣯ददातु꣣वा꣢ऽ३। वा꣢꣯जी꣡꣯ददा। तु꣢वो꣡ऽ२३४वा꣥। जा꣤ऽ५इनोऽ६"हा꣥इ॥

06_0199 इन्द्र इषे - 02 ...{Loading}...
लिखितम्

१९९-२।

इ꣥न्द्रइषे꣯ददा꣯तुनाऽ६ए꣥॥ ऋ꣢भुक्ष꣡णमृ꣢। भूऽ᳒२᳒१२३म्। रयी꣢ऽ३४३म्॥ वा꣡ऽ२३जी꣢॥ ददाऽ᳒२᳒ओ꣡ऽ२३। तु꣤वोवा꣥। जा꣤ऽ५इनोऽ६"हा꣥इ॥

07_0200 इन्द्रो अङ्ग - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

२००-१। इन्द्रस्याभयङ्करम्॥ इन्द्रो गायत्रीन्द्रः॥

इ꣥न्द्रो꣯अङ्गा॥ म꣢ह꣡द्भाऽ२३या꣢म्। आ꣡भी꣯ष꣢द। पचु꣡च्याऽ२३वा꣢ऽ३४त्। स꣣हा꣢ऽ३४इस्थि꣣रा꣢ऽ३ः। वि꣤चोवा꣥। षा꣤ऽ५णोऽ६"हा꣥इ॥

08_0201 इमा उ - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

२०१-१। त्वाष्ट्रीसाम॥ त्वष्टा गायत्रीन्द्रः॥

इ꣥मा꣯उत्वा॥ सु꣢ताइसु꣡ताइ। नक्षन्ताऽ२३इगी꣢ऽ३४ः। वनः꣥। गा꣢ऽ३इराः꣢॥ गा꣡꣯वोवा꣢ऽ३त्सा꣢ऽ३म्॥ न꣢धो꣡ऽ२३४वा꣥। ना꣤ऽ५वोऽ६"हा꣥इ॥

09_0202 इन्द्रा नु - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

२०२-१। पौषम्॥ पूषा गायत्रीन्द्रः॥ (इन्द्रापूषणौ वा)।

इ꣥न्द्रा꣯नुपू॥ ष꣢णा꣡꣯वाऽ२३या꣢म्। सा꣡ख्या꣯य꣢। सुव꣡स्ताऽ२३या꣢इ॥ हू꣡वेऽ᳒२᳒मा꣡वाऽ२३। ज꣢सो꣡ऽ२३४वा꣥॥ ता꣤ऽ५योऽ६"हा꣥इ॥

10_0203 न कि - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

२०३-१। इन्द्राण्यास्साम॥ इन्द्राणी गायत्रीन्द्रः॥

न꣤। क्येनाकी꣥॥ आ꣡इन्द्रत्वदुत्तराम्। न꣢ज्या꣡꣯यो꣰꣯ऽ२। अ꣡स्ताऽ२३इवॄ꣢। हि꣭म्ऽ३(स्थि)हि꣢म्। त्रा꣣ऽ२३४हा꣥न्॥ न꣡क्ये꣢꣯। वं꣡याऽ२३था꣢॥ हि꣭म्ऽ३(स्थि)हि꣢म्ऽ३४३। तू꣢᳐ऽ३४५वोऽ६"हा꣥इ॥

[[अथ दशम खण्डः]]

11_0204 तरणिं वो - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

२०४-१। श्यावाश्वं तारणं वा॥ श्यावाश्वो गायत्रीन्द्रः॥

त꣥रणिंवाः॥ ज꣡नाऽ२३ना꣢म्। त्रदं꣡वा꣯जा꣢ऽ३हा꣢ऽ३। स्या꣡गो꣢᳐मा꣣ऽ२३४ताः꣥॥ स꣢मा꣡꣯नाऽ२३मू꣢॥ प्र꣤शाऽ५ꣳसिषाम्। हो꣤ऽ५इ॥ डा॥

12_0205 असृग्रमिन्द्र ते - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

२०५-१। वैरूपम्॥ विरूपो गायत्रीन्द्रः॥

अ꣥सृग्रमा꣯इन्द्राऽ६ते꣥꣯गिराः॥ प्रा꣡तीऽ᳒२᳒त्वा꣡मूऽ᳒२᳒त्। अहा꣯। स꣡ता॥ सा꣢ऽ१जोऽ᳒२᳒षा꣡वाऽ᳒२᳒॥ षभाऽ᳒२᳒म्प꣡ति꣢म्। ओ꣡ऽ२३४५इ॥ डा।

13_0206 सुनीथो घा - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

२०६-१। सौमित्रम्॥ कौत्सं वा। सुमित्रो गायत्रीन्द्रः॥

सु꣤नी꣯थो꣯घाऽ५समर्ति꣤याः॥ य꣡म्मरुतो꣰꣯ऽ२य꣡मर्य꣢मा꣡꣯। मि꣢त्रा꣡꣯स्पां꣯त्य꣢द्रु꣡हः꣢॥ ऊ꣡। ऊ। वा꣢꣯हाऽ३१उवाऽ᳒२᳒। अ꣡ति꣢द्वि꣡षा꣣ऽ२३꣡४꣡५ः꣡॥

14_0207 यद्वीडाविन्द्र यत्स्थिरे - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

२०७-१। तौभम्॥ तुभो गायत्रीन्द्रः॥

औ꣢꣯हो꣯वा꣯औ꣯हो꣣ऽ२३४वा꣥। ओऽ६हा꣥। य꣢द्वी꣯डा꣯वीऽ३न्द्रा꣤ऽ३य꣢त्स्थि꣣रा꣥इ॥ औ꣢꣯हो꣯वा꣯औ꣯हो꣣ऽ२३४वा꣥। ओऽ६हा꣥। य꣢त्पर्शा꣯नेऽ३पा꣤ऽ३रा꣢꣯भृ꣣त꣥म्॥ औ꣢꣯हो꣯वा꣯औ꣯हो꣣ऽ२३४वा꣥। ओऽ६हा꣥। व꣢सुस्पा꣯र्हाऽ३न्ता꣤ऽ३दा꣢꣯भ꣣र꣥॥ औ꣢꣯हो꣯वा꣯औ꣯हो꣣ऽ२३४वा꣥। ओऽ६हा꣥। हो꣤ऽ५इ॥ डा॥

15_0208 श्रुतं वो - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

२०८-१। श्रौतम्॥ श्रुतो गायत्रीन्द्रः॥श्रु꣥ता꣤म्॥ वो꣡꣯वृत्रहन्तमम्। प्रशर्द्धञ्चर्ष꣢णा꣡ऽ२३इना꣢म्॥ आ꣯शा꣡इषाऽ२३-इरा꣢॥ ध꣣से꣯म꣢हा꣡। औ꣢ऽ३हो꣤वा꣥। हो꣤ऽ५इ॥ डा॥