०५ १

[[अथ पञ्चमप्रपाठके प्रथमोऽर्धः]]

17_0161 अभि त्वा - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

१६१-१। आर्षभानि सैन्धुक्षितानि वा वाध्र्यश्वानि वा त्रीणि॥ त्रयाणामृषभो गायत्रीन्द्रः॥

अ꣥भि꣤त्वा꣥꣯वृषभा꣯सुता꣤इ॥ सू꣡तꣳसृ꣢जा꣯। मिपा꣡इता꣢ऽ१याऽ᳒२᳒इ॥ तृम्पा꣡वा꣢ऽ१याऽ२꣮॥ श्नुहाऽ३१उवाये꣢ऽ३॥ माऽ२३४दा꣥म्॥

17_0161 अभि त्वा - 02 ...{Loading}...
लिखितम्

१६१-२।

अ꣥भित्वा꣯वृषभा꣯सुते꣯अभ्या꣯हाउ॥ त्वा꣢꣯वृऽ३षा꣡भा꣢ऽ१सूताऽ᳒२᳒इ। सू꣡तꣳसृ꣢जा꣯। मिपा꣡इता꣢ऽ१याऽ२᳐इ॥ तृ꣣म्पा꣢ऽ३हो꣡इ। वि꣣या꣢ऽ३हो꣡॥ श्नु꣢ही꣡꣯माऽ२३दा꣢ऽ३४३म्। ओ꣡ऽ२३४५इ॥ डा॥

17_0161 अभि त्वा - 03 ...{Loading}...
लिखितम्

१६१-३।अ꣥भि꣤त्वा꣥꣯वृषभा꣯सुते꣤꣯। सु꣥तꣳसृजो꣤वा꣥॥ मि꣢पी꣯ता꣡याऽ᳒२᳒इ। सुतꣳ꣡सृजा꣢꣯मि। पी꣡꣯ताऽ२३या꣢इ॥ त्रा꣡ऽ२३म्पा꣢ऽ३॥ वा꣡ऽ२᳐या꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा॥ श्नु꣢ही꣯म꣡दा꣣ऽ२३꣡४꣡५꣡म्॥

18_0162 य इन्द्र - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

१६२-१। कौत्से पाञ्चवाजे वा दाशवाजे वा द्वे, ऐडं कौत्सम्॥ द्वयोः कुत्सो गायत्रीन्द्रः॥

या꣣ही꣢न्द्रा꣡ऽ२३। च꣤म꣥से꣤꣯षुवा꣯ईया꣥॥ सो꣡꣯मश्च꣢मू꣡꣯षुते꣢꣯सुतः꣡। सोमश्च꣢मू꣯। षुता꣡इसूऽ२३ताः꣢॥ पा꣡इबे꣢ऽ३द्धा꣢इ। आ꣡स्या꣢ऽ३हा꣢इ॥ त्वमी꣡꣯शाऽ२३इषा꣢ऽ३४३इ। ओ꣡ऽ२३४५इ॥ डा॥

18_0162 य इन्द्र - 02 ...{Loading}...
लिखितम्

१६२-२।

य꣥इन्द्रचा꣯माऽ६से꣥꣯षुवा॥ सो꣡꣯मश्चमू꣯षुता꣢ऽ१इसू꣢ऽ३ताः꣢। सो꣯मश्चमूऽ३। षू꣢ऽ३ता꣡इसू꣢ऽ३ताः꣢॥ आ꣡ऽ२꣮इ। पिबे꣯दस्यो꣣ऽ२३४हा꣥इ॥ त्व꣣मा꣢ऽ३इशा꣤ऽ५"इषाऽ६५६इ॥

19_0163 योगेयोगे तवस्तरम् - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

१६३-१। सौमेधानि पूर्वतिथानि वा पौर्वातिथानि वा त्रीणि॥ त्रयाणां सुमेधा गायत्रीन्द्रः॥

यो꣤꣯गे꣥꣯यो꣯गे꣯तव꣤स्त꣥रा꣤म्॥ वा꣡꣯जे꣯वा꣢꣯जे꣯हवा꣯महे꣯॥ सखा꣡꣯याऽ२३ई꣢ऽ३॥ द्र꣢मू꣡ऽ२३४वा꣥। ता꣤ऽ५योऽ६"हा꣥इ॥

19_0163 योगेयोगे तवस्तरम् - 02 ...{Loading}...
लिखितम्

१६३-२।

यो꣥꣯गे꣯यो꣯गे꣯तवस्ताऽ६रा꣥म्॥ वा꣡꣯जे꣰꣯ऽ२वा꣡꣯जे꣰꣯ऽ२ह꣡वा꣰꣯ऽ२महेऽ३। हो꣡वा꣢ऽ३हा꣢इ॥ सा꣡खाऽ᳒२᳒या꣡ईऽ२३। हो꣡वा꣢ऽ३हा꣢इ। द्रमू꣡ऽ२३। ता꣡ऽ२᳐या꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा॥ ऊ꣢ऽ᳐३२᳐३४पा꣥॥

19_0163 योगेयोगे तवस्तरम् - 03 ...{Loading}...
लिखितम्

१६३-३। सौमेधम्॥यो꣥꣯गे꣯यो꣯गे꣯तवा꣯हा꣯उस्ता꣤रा꣥म्॥ वा꣡जे꣯वा꣢꣯जे꣯। हवाऽ᳒२᳒मा꣡हाइ। हूवाइ। औ꣢ऽ३होऽ२३४वा꣥। सा꣡खा꣢꣯यइ꣡। द्रमूऽ᳒२᳒ता꣡याइ। हूवाइ। औ꣢ऽ३होऽ२३४वा꣥॥ स꣣खा꣯य꣢आ꣡॥ हूवाऽ᳒२᳒इ। औ꣭ऽ३होऽ२३४५वाऽ६५६॥ द्र꣢मूऽ३त꣡येऽ२३꣡४꣡५꣡॥

20_0164 आ त्वेता - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

१६४-१। दैवातिथं मैधातिथं वा॥ देवतिथिर्गायत्रीन्द्रः॥

आ꣣꣯तू꣢ऽ३४। ए꣯ता꣯नि। षी꣥꣯दाऽ६ता꣥॥ इ꣢न्द्रम꣡भाइ। प्र꣢गा꣯य꣡ता। साखा꣢꣯यस्तो꣡꣯म। वा। औ꣢ऽ३हो꣢। व꣡वाऽ२᳐हा꣣ऽ२३४साः꣥॥ ह꣢या꣡इ। साखा꣢꣯यस्तो꣡꣯म। वा। औ꣢ऽ३हो꣢॥ हि꣡म्माऽ२३। हा꣢ऽ३४५सोऽ६"हा꣥इ॥

[[अथ षष्ठ खण्डः]]

21_0165 इदं ह्यन्वोजसा - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

१६५-१। आङ्गिरसं माधुछन्दसम् वा॥ मधुछन्दा वर्धमाना गायत्रीन्द्रः॥

इ꣥दाऽ६मे꣥॥ हि꣢यऽ३नू꣡ओ꣢ऽ१जासाऽ᳒२᳒। सू꣡तꣳ꣢रा꣡धा꣢। ना꣡म्पा꣢ऽ१ताऽ᳒२᳒इ। पि꣡बा꣯तुवस्यागि꣪र्वाणाऽ२३४ः॥ पि꣣बा꣢ऽ३४तु꣣वा꣢ऽ३॥ स्या꣡ऽ२᳐गा꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा॥ वा꣣ऽ२३४णाः꣥॥

21_0165 इदं ह्यन्वोजसा - 02 ...{Loading}...
लिखितम्

१६५-२। (आङ्गिरसं) क्रौञ्चम् वा॥ क्रौञ्चो वर्धमाना गायत्रीन्द्रः॥

इ꣥दꣳहियाऽ४औहो꣥॥ नू꣭ऽ३ओ꣢जा꣣ऽ२३४सा꣥। सू꣡तꣳ꣢रा꣡धा꣢। ना꣭ऽ᳐३२म्। पा꣣ऽ२३४ता꣥इ॥ पि꣡बा꣯तुवस्याऽ२३। ग꣤। वाहा꣥इ॥ वा꣡ऽ२३४णाः। ए꣥꣯हियाऽ६हा꣥। हो꣤ऽ५इ॥ डा॥

21_0165 इदं ह्यन्वोजसा - 03 ...{Loading}...
लिखितम्

१६५-३। आङ्गिरसं घृतश्चुन्निधनं प्राजापत्यं माधुश्चन्दसं वा॥प्रजापतिर्वर्धमाना गायत्रीन्द्रः॥

इ꣥दꣳह्यनूऽ६ओ꣥꣯जसा॥ सु꣢तꣳ꣡राधा꣢। ना꣡म्पातौ꣢꣯। हो꣯वाऽ३हा꣢इ। पिबा꣡तुव꣢। स्यगा꣡इर्वाणौ꣢꣯। हो꣯वाऽ३हा꣢इ॥ पिबा꣡तुवौ꣢꣯। हो꣯वाऽ३हा꣢॥ स्यगा꣡ये꣢ऽ३ः। वा꣡ऽ२᳐ना꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा॥ घृ꣢तश्चु꣡ता꣣ऽ२३꣡४꣡५ः꣡॥

22_0166 महां इन्द्रः - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

१६६-१। वाम्राणि प्रैयमेधानि वा त्रीणि॥ त्रयाणां वम्रो गायत्रीन्द्रः॥

म꣤हाꣳइ꣥न्द्राः॥ पु꣢रश्च꣡नो। मा꣢ऽ१हीऽ᳒२᳒त्वा꣡माऽ᳒२᳒। स्तुव। ज्रि꣡णाइ॥ द्यौऽ᳒२᳒र्ना꣡प्राऽ᳒२᳒॥ थिना꣡꣯शाऽ२३वा꣢ऽ३४३ः। ओ꣡ऽ२३४५इ॥ डा॥

22_0166 महां इन्द्रः - 02 ...{Loading}...
लिखितम्

१६६-२।

म꣥हा꣯हाꣳ꣯इ꣤न्द्राः꣥॥ पू꣢ऽ३रा꣡श्चा꣢ऽ३नो꣢। म꣡हाऽ२᳐इत्वा꣣ऽ२३४मा꣥। स्तु꣢वौ꣭ऽ३हौ꣢ऽ३। ह꣤वाऽ५ज्रिणाइ। द्यौ꣡꣯र्नप्र। थि꣢ना꣡श꣪वाऽ२३ः॥ द्यौ꣡ऽ२᳐र्ना꣣ऽ२३४प्रा꣥॥ थि꣢नौ꣭ऽ३हौ꣢ऽ३। ह꣤वोवा꣥। शा꣤ऽ५वोऽ६"हा꣥इ॥

22_0166 महां इन्द्रः - 03 ...{Loading}...
लिखितम्

१६६-३।

म꣤हाꣳ꣯इन्द्राऽ५ᳲपुरश्च꣤नाः॥ मा꣣हि꣢त्वा꣭ऽ३२३२३मा꣢। स्तु꣣व꣢ज्रा꣭ऽ३२३२३इणा꣢इ॥ द्यौ꣯र्ना꣭ऽ३२३२३प्रा꣢॥ थि꣣ना꣯श꣢वा꣭ऽ३२३२३४३ः। ओ꣡ऽ२३४५इ॥ डा॥

23_0167 आ तू - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

१६७-१। गौरीविते द्वे॥ द्वयोर्गौरीवितिर्गायत्रीन्द्रः॥

आ꣥꣯तू꣯नआ॥ द्र꣢क्षु꣡माऽ२३न्ता꣢म्। चा꣡इत्रंग्रा꣢꣯भा꣡ऽ२३ꣳहा꣢इ। सं꣡गृऽ᳒२᳒भा꣡या। महा꣢꣯हस्तो꣣ऽ२३४हा꣥इ। द꣡क्षाऽ᳒२᳒इणा꣡इना। महाऽ२३॥ हा꣡ऽ२᳐स्ता꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा॥ द꣡क्षि꣢णेऽ३ना꣡ऽ२३꣡४꣡५꣡॥

23_0167 आ तू - 02 ...{Loading}...
लिखितम्

१६७-२।

आ꣥꣯तू꣯नइन्द्रक्षुमा꣤न्ता꣥म्। चि꣡त्राऽ२ꣳ᳐ग्रा꣣ऽ२३४भा꣥म्। सं꣢गृभा꣣ऽ२३४या꣥॥ मा꣭ऽ३हा꣢ऽ३॥ हा꣡ऽ२᳐स्ता꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा॥ द꣡क्षि꣢णे꣯ना꣣ऽ२३꣡४꣡५꣡॥

23_0167 आ तू - 03 ...{Loading}...
लिखितम्

१६७-३। आपाले वा आकूपारे वा द्वे॥ द्वयोराकूपारो गायत्रीन्द्रः॥

आ꣤꣯तू꣯न꣥इ꣤। द्र꣥क्षुमाऽ६न्ता꣥म्॥ चि꣢त्रं꣡ग्रा꣯भꣳसंगृभाऽ᳒२᳒या꣡। चि꣢त्रं꣡ग्रा꣯भꣳसम्। गॄ। औ꣢ऽ३हो꣢इ᳐। भा꣣ऽ२३४या꣥॥ ऐ꣢꣯हो꣡इ। महा꣯हस्ती꣯दक्षाऽ२३हो꣡इ॥ औ꣢꣯हो꣡। वा꣣꣯होऽ२३४वा꣥। णा꣤ऽ५इनोऽ६"हा꣥इ॥

23_0167 आ तू - 04 ...{Loading}...
लिखितम्

१६७-४।

आ꣥꣯तू꣯नइन्द्रक्षुमाऽ६न्ता꣥म्॥ चि꣢त्रं꣡ग्रा꣯भꣳसंगृभा꣯या। चि꣢त्रं꣡ग्रा꣯भꣳसम्। गॄऽ२३। ई꣢ऽ३४हा꣥। भा꣣ऽ२३४या꣥॥ ऐ꣢꣯हो꣡इ। महा꣯हस्ती꣯दक्षाऽ२३हो꣡इ। औ꣢꣯हो꣡। वा꣣꣯होऽ२३४वा꣥। णा꣤ऽ५इनोऽ६"हा꣥इ॥

24_0168 अभि प्र - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

१६८-१। धुरोस्सामनी द्वे॥ द्वयोर्धुरो गायत्रीन्द्रः॥

अ꣤भी꣥अ꣤भी꣥॥ प्र꣢गो꣯ऽ३पा꣡तिं꣪गिराऽ᳒२᳒। इ꣡न्द्रमर्चयाथा꣢ऽ१विदाऽ२᳐इ॥ सू꣣꣯नू꣢ऽ३ꣳहो꣡इ। सत्यो꣣ऽ२३४हा꣥॥ स्या꣡ऽ२᳐सा꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा॥ प꣢तिऽ३मे꣡ऽ२३꣡४꣡५꣡॥

24_0168 अभि प्र - 02 ...{Loading}...
लिखितम्

१६८-२।

अ꣤भी꣥अ꣤भी꣥॥ प्र꣢गो꣡। प꣢तिं꣣गि꣢रा꣡। इन्द्राम्। अ꣣र्चा꣢या꣣ऽ२३४था꣥। हि꣭म्ऽ३(स्थि)हि꣢म्ऽ३। आ꣡ऽ२३४इविदाइ॥ सू꣯नुꣳ꣣स꣤त्य꣣स्य꣤सा꣥॥ हि꣭म्ऽ३(स्थि)हि꣢म्ऽ३। ओ꣡ऽ२३४वा꣥॥ पा꣤ऽ५तोऽ६"हा꣥इ॥

24_0168 अभि प्र - 03 ...{Loading}...
लिखितम्

१६८-३। महागौरीवितं गौरीवितं वा॥ शाक्त्यः गौरीवितिर्गायत्रीन्द्रः॥

अ꣥भि। प्र꣣गो꣢ऽ३। प꣤तिंगि꣥रा॥ इ꣡न्द्रमर्चयथा꣯विदाऽ२३इ। सू꣡नुꣳसत्या꣢ऽ३१२३। स्य꣤साऽ५त्पताइम्॥ सू꣡नुꣳसत्या꣢ऽ३१२३। स्य꣤सोवा꣥। पा꣤ऽ५तोऽ६"हा꣥इ॥

25_0169 कया नश्चित्र - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

१६९-१। वाचस्सामनी द्वे॥ द्वयोर्वाक् गायत्रीन्द्रः॥

क꣥या꣯नश्ची॥ त्र꣢आ꣡भू꣢ऽ३वा꣢त्। ऊ꣯ता꣡इस꣢। दा꣡। वार्द्ध꣢स्सा꣣ऽ२३४खा꣥॥ क꣡याशा꣢ऽ३ची꣢ऽ३॥ ष्ठा꣡ऽ२३या꣤ऽ३। वा꣢ऽ३४५र्तोऽ६"हा꣥इ॥

25_0169 कया नश्चित्र - 02 ...{Loading}...
लिखितम्

१६९-२।

हो꣥꣯वा꣯इ। हो꣯वा꣯इकया꣯नश्ची॥ त्र꣢आ꣡भू꣢ऽ३वा꣢ऽ३४त्॥ हो꣥꣯वा꣯इ। हो꣯वा꣯ऊ꣯ती꣯सदा॥ वृ꣢धा꣡स्सा꣢ऽ३खा꣢ऽ३४। हो꣥꣯वा꣯इ। हो꣯वा꣯इकया꣯शचाइ॥ ष्ठ꣢या꣡꣯। वाऽ२᳐र्ता꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा॥ ऊ꣣ऽ२३४पा꣥॥

25_0169 कया नश्चित्र - 03 ...{Loading}...
लिखितम्

१६९-३। महावामदेव्यम् वामदेव्यम् वा॥ वामदेवो गायत्रीन्द्रः॥

का꣣ऽ५या꣯। नश्चा꣤ऽ३इत्रा꣢ऽ३आ꣤꣯भुवा꣥त्॥ ऊ꣡। ती꣯स꣢दा꣡꣯वृध꣢स्स꣡। खा। औ꣢ऽ३हो꣯हा꣢इ। क꣡याऽ२३शचा꣢इ᳐॥ ष्ठ꣣यौ꣯हो꣢ऽ३। हि꣡म्माऽ᳒२᳒। वा꣡ऽ२꣮र्तोऽ३५"हा꣢इ॥

26_0170 त्यमु वः - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

१७०-१। इन्द्रस्य सत्रासाहीये अजितस्य आजिती वा द्वे॥ द्वयोरिन्द्रो गायत्रीन्द्रः॥

त्य꣥मुवाः॥ स꣢त्रा꣯सा꣡हाऽ᳒२᳒म्। वि꣡श्वा꣯सुगी꣯र्षूआ꣢ऽ१याताऽ᳒२᳒म्। आ꣡꣯च्याऽ२३॥ वा꣡ऽ२᳐या꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा॥ सि꣢यूऽ३त꣡येऽ२३꣡४꣡५꣡॥

26_0170 त्यमु वः - 02 ...{Loading}...
लिखितम्

१७०-२। सत्रासाहीयम्॥

त्या꣢ऽ३४म्। उव꣥स्सत्रा꣯सा꣤꣯ह꣥म्। ओऽ६वा꣥॥ वि꣡श्वा꣯सुगी꣯र्ष्वा꣯याऽ᳒२᳒ता꣡म्। आऽ᳒२᳒च्या꣡। वाऽ२३या꣢॥ सि꣡यौ꣭ऽ३हो꣢꣯। वा꣣꣯हा꣢ऽ३४३इ॥ ता꣡ऽ२३४यो꣥ऽ६"हा꣥इ॥

२७ ०१७१ सदसस्पतिमद्भुतं प्रियमिन्द्रस्य - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

१७१-१। वामदेव्यम्॥ वामदेवो गायत्रीन्द्रः॥ (मेधाः)।

सा꣤दा꣥॥ स꣡स्पताइम꣪द्भूता꣢। ओ꣣ऽ२३४वा꣥। प्रा꣡या꣢ओ꣣ऽ२३४वा꣥॥ आ꣡इन्द्रा। स्याका꣢मा꣣ऽ२३४५याऽ६५६म्॥ स꣢निं꣡मे꣰꣯ऽ२धा꣡꣯मया꣢꣯सिषा꣣ऽ२३꣡४꣡५꣡म्॥

28_0172 ये तेपन्था - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

१७२-१। अश्विनोस्साम॥ अश्विनौ गायत्रीन्द्रः॥

हा꣢इ। आप्सू᳐दा꣣ऽ२३४क्षाः꣥।(द्विः)। ये꣢꣯ते꣯पन्था꣯अऽ३धो꣡दि꣪वाऽ२३꣡४꣡५ः꣡॥ हा꣢इ। आप्सू᳐दा꣣ऽ२३४क्षाः꣥।(द्विः)। ये꣢꣯भिर्व्यश्वऽ३मा꣡इर꣪याऽ२३꣡४꣡५ः꣡॥ हा꣢इ। उ꣣ता꣢᳐श्रो꣣ऽ२३४षा꣥॥ तु꣢नो꣡ऽ२३। भू꣡ऽ२᳐वा꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा॥ ई꣣ऽ२३४ती꣥॥

29_0173 भद्रम्भद्रं न - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

१७३-१। गौतमस्य भद्रम्॥ गोतमो गायत्रीन्द्रः॥

भ꣥द्रंभा꣤द्रा꣥म्॥ न꣢आ꣡꣯भाऽ२३रा꣢ऽ३॥ आ꣤इषा꣥मू꣤र्जा꣥म्॥ श꣢त꣡क्राऽ२३ता꣢ऽ३उ॥ या꣤दि꣥न्द्रा꣤मॄ꣥॥ डा꣡ऽ२᳐या꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा॥ सी꣣ऽ२३४नाः꣥॥

30_0174 अस्ति सोमो - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

१७४-१। अश्विनोस्साम॥ सोम साम वा, अश्विनौ गायत्रीन्द्रः॥

अ꣣स्ति꣤सो꣣꣯मो꣤꣯अयꣳ꣣सु꣤तः꣣। अ꣤। स्त्येआस्ती꣥॥ सो꣣꣯मो꣤꣯अयꣳ꣣सु꣤तᳲ꣣पिब꣤न्त्य꣥स्यम। रु꣣तोऽ२३४हा꣥इ॥ उ꣤तस्वराऽ५जो꣤वा꣥॥ श्वा꣤ऽ५इनोऽ६"हा꣥इ॥

[[अथ सप्तम खण्डः]]

31_0175 ईङ्खयन्तीरपस्युव इन्द्रम् - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

१७५-१। त्वाष्ट्री साम॥ त्वष्टा गायत्रीन्द्रः॥ई꣥꣯ङ्खयन्तीः॥ अ꣢पाऽ᳒२᳒स्यू꣡वाऽ᳒२ः᳒। आ꣡इन्द्रंजा꣢꣯तम्। ऊ꣡पा꣢ऽ१साताऽ᳒२᳒इ॥ वन्वा꣡꣯नाऽ२३साः꣢॥ सुवी꣡रिया꣢ऽ३१उवाऽ२३॥ वृ꣢धेऽ१॥

32_0176 न कि - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

१७६-१। गोधा साम॥ गोधा गायत्रीन्द्रो विश्वेदेवा वा॥

न꣥किदे꣯वाः॥ इ꣢ना꣡इ। इनीमासा꣢ऽ३इ। मा꣡सी꣭ऽ३या꣢। न꣥किया꣯यो॥ प꣢या꣡। पयामासा꣢ऽ३इ। मा꣡सी꣭ऽ३या꣢॥ म꣥न्त्रश्रुत्याम्॥ च꣢रा꣡। चरामासा꣢ऽ३इ। मा꣡सी꣭ऽ३या꣢॥

33_0177 दोषो आगाद् - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

१७७-१। सवितुस्साम॥ सविता गायत्री सविता॥

दो꣤꣯षो꣥꣯आ꣯गा꣤त्॥ बृ꣢ह꣡द्गा꣯या। द्युमद्गाऽ२३मा꣢न्। आ꣡꣯थर्व꣣णा꣢ऽ३॥ स्तु꣢हि꣡। औ꣭ऽ३हो꣢ऽ३४इ॥ दे꣣꣯वा꣢ऽ३म्। स꣤वोवा꣥। ता꣤ऽ५रोऽ६"हा꣥इ॥

34_0178 एषो उषा - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

१७८-१। उषसस्साम॥ उषा गायत्र्यश्विनौ॥ (सविता)।

ए꣥꣯षो꣯उषाः॥ आ꣡पू꣯र्वि꣢या꣯। व्यु꣡च्छ꣢ति। हो꣡वा꣢ऽ३हा꣢इ। प्रिया꣡꣯दाऽ२३इवा꣢ऽ३४ः॥ स्तु꣣षा꣢ऽ३४इवा꣣꣯मा꣢ऽ३॥ श्वि꣢नो꣡ऽ२३४वा꣥। बॄ꣤ऽ५होऽ६"हा꣥इ॥