०४ २

[[अथ चतुर्थप्रपाठके द्वितीयोऽर्धः]]

01_0145 अपादु शिप्र्यन्धसः - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

१४५-१। औपगवे द्वे॥ द्वयोः उपगुः गायत्रीन्द्रः॥

अ꣥पा꣯दुशी॥ प्रि꣢य꣡न्धसाः। सुदक्षाऽ२३स्या꣢। प्रहो꣯षि꣡णः॥ इन्दो꣯राऽ२३इन्द्राः꣢॥ यवा꣡꣯शाऽ२३इराः꣢। ऐ꣯। हि꣡याऽ२᳐इ। हि꣣या꣢ऽ३४औ꣥꣯हो꣯वा॥ ए꣢ऽ᳐३। उ꣡पा꣢ऽ३१२३꣡४꣡५꣡॥

01_0145 अपादु शिप्र्यन्धसः - 02 ...{Loading}...
लिखितम्

१४५-२। औपगवोत्तरम् सौश्रवसम् वा॥

अ꣥पा꣯दू꣢ऽ३शि꣤प्रिय꣥न्धसाः॥ सु꣢द꣡क्षस्यप्रहो꣯षिणाः। इ꣢न्दौऽ᳒२᳒। हौऽ᳒२᳒। हु꣡वाऽ२३इ। आ꣢ऽ᳐३४इन्द्रो꣥॥ यवा꣯शा꣤इराः꣥॥ ऐ꣢꣯। हाऽ᳒२᳒ए꣡ऽ२३। हिया꣢ऽ३४औ꣥꣯हो꣯वा॥ ए꣢ऽ᳐३। उ꣡पा꣢ऽ३१२३꣡४꣡५꣡॥

02_0146 इमा उ - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

१४६-१। त्वाष्ट्रीसाम॥ त्वष्टा गायत्रीन्द्रः॥

इ꣥मा꣯उत्वा॥ पु꣡रूऽ᳒२᳒वा꣡साऽ᳒२᳒उ। अ꣡भिप्रनो꣯नवूऽ᳒२᳒र्गा꣡इराऽ२ः᳐॥ औ꣣꣯हो꣢ऽ१इ। गा꣢꣯वो꣯वा꣡त्साऽ२३म्॥ ना꣡ऽ२३धे꣤ऽ३। ना꣢ऽ३४५वोऽ६"हा꣥इ॥

03_0147 अत्राह गोरमन्वत - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

१४७-१। त्वष्टुरातिथ्ये द्वे॥ त्वष्टा गायत्रीन्द्रः॥ (त्वष्टृचन्द्रमसौ वा)।

आ꣤त्रा꣥॥ हा꣢꣯गो꣡꣯रमन्वताउवाऽ२३। हो꣡वाऽ२३हो꣡इ॥ ना꣯मत्वष्टुरपी꣯चियाउवाऽ२३। हो꣡वाऽ२३हो꣡इ॥ इ꣢त्था꣡꣯चन्द्रमसो꣯गृहाउवाऽ२३। हो꣡वाऽ२३हो꣡ऽ२᳐। वा꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा॥ ऊ꣣ऽ२३४पा꣥॥

03_0147 अत्राह गोरमन्वत - 02 ...{Loading}...
लिखितम्

१४७-२।हा꣤वात्रा꣥॥ हा꣢꣯गो꣡꣯रमन्वताउवाऽ२३। हो꣡इयाऽ२३। हाऽ᳒२᳒ऊ꣡वाइ॥ ना꣯मत्वष्टुरपी꣯चियामियाउवाऽ२३हो꣡वाऽ२३हाऽ᳒२᳒ई꣡या॥ इ꣢त्था꣡꣯चन्द्रमसो꣯गृहाउवाऽ२३। हो꣡इयाऽ२३। हाऽ᳒२᳒ऊ꣡वाऽ२᳐। या꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा॥ ऊ꣣ऽ२३४पा꣥॥

04_0148 यदिन्द्रो अनयद्रितो - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

१४८-१। पौषे द्वे॥ द्वयोः पूषा गायत्रीन्द्र पूषणौ॥

य꣥दिन्द्रो꣯या॥ ना꣡याऽ२३त्। ओ꣡मो꣢ऽ३म्। ओ꣤वा꣥। रि꣡तो꣯मही꣯रापाऽ२३ः। ओ꣡मो꣢ऽ३म्। ओ꣤वा꣥॥ वृ꣡षावृ꣪षाऽ२᳐॥ त꣣मा꣢ऽ३४औ꣥꣯हो꣯वा॥ त꣡त्र꣢पू꣯षा꣡꣯भु꣢वत्स꣡चा꣣ऽ२३꣡४꣡५꣡॥

04_0148 यदिन्द्रो अनयद्रितो - 02 ...{Loading}...
लिखितम्

१४८-२।

य꣥दिन्द्रो꣯अनयद्रिताऽ६ए꣥॥ म꣡ही꣯रापाऽ᳒२ः᳒। म꣡ही꣯रापाऽ२३ः॥ वा꣡र्ष꣢न्ता꣣ऽ२३४माः꣥॥ त꣡त्रापूषा꣢ऽ३। पू꣡ऽ२᳐षा꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा॥ भु꣢वत्स꣡चा꣣ऽ२३꣡४꣡५꣡॥

04_0149 गौर्धयति मरुताम् - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

१४९-१। श्यावाश्वे द्वे॥ द्वयोः श्यावाश्वो विराड्गायत्रीन्द्रः॥ मरुतो वा।

गौ꣥꣯र्धयाऽ६ए꣥॥ ति꣢मरुताऽ३म्। श्र꣡वास्यु꣪र्मा꣭ऽ३। ता꣢मघो꣣ऽ२३४ना꣥म्॥ यु꣡क्ताव꣪ह्नाइः॥ र꣣था꣢ऽ३। ना꣡ऽ२᳐मा꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा॥ ऊ꣣ऽ२३४पा꣥॥

04_0149 गौर्धयति मरुताम् - 02 ...{Loading}...
लिखितम्

१४९-२।

गौ꣥꣯र्धयतिमरुताऽ६मे꣥॥ श्र꣢वस्यु꣡र्मा꣰꣯ऽ२ता꣡꣯मघो꣯ना꣰꣯ऽ२म्। उहु꣡वाऽ२३हा꣢इ॥ युक्ता꣡꣯वाऽ२३ह्नीः꣢॥ उहु꣡वाऽ२३हा꣢इ᳐। र꣣था꣢꣯ना꣡म्। औऽ२३हो꣤वा꣥। हो꣤ऽ५इ॥ डा॥

06_0150 उप नो - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

१५०-१। सुतंरयिष्ठीये द्वे॥ द्वयोः प्रजापतिर्निचृत् गायत्रीन्द्रः॥उ꣢प꣡नोऽ२३ह꣤रिभि꣥स्सुतो꣤वा꣥॥ या꣢꣯हि꣡मदा꣢ऽ३ना꣯म्प꣢। ता꣡ऽ२३इ॥ उ꣢प꣣नो꣢ऽ३। हा꣢ऽ३ओ꣡ऽ२३४वा꣥॥ रा꣣ऽ२३४इभीः꣥। सु꣢ता꣡म्। औऽ२३हो꣤वा꣥। हो꣤ऽ५इ॥ डा॥

06_0150 उप नो - 02 ...{Loading}...
लिखितम्

१५०-२।

उ꣥पनो꣯हा꣯हो꣤हा꣥। रा꣤इभीः꣥॥ सू꣡ऽ२३ता꣢म्। या꣡हिम꣢दा꣯। नां꣡꣯पाऽ२३ता꣢इ॥ उ꣣पा꣢᳐नो꣣ऽ२३४हा꣥॥ रा꣡ऽ२᳐इभा꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा॥ सु꣢तꣳ꣡रयि꣢ष्ठा꣡ऽ२३꣡४꣡५ः꣡॥

07_0151 इष्टा होत्रा - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

१५१-१। इष्टाहोत्रीयम्॥ अप्सरसो गायत्रीन्द्रः॥

इ꣥ष्टा꣯हो꣤त्राः꣥॥ आ꣡सृ꣢क्षा꣣ऽ२३४ता꣥। इ꣢न्द्रं꣡वृधा। तो꣪ऽ२᳐ध्वा꣣ऽ२३४रा꣥इ॥ आ꣡च्छा꣢ऽ३᳐वो꣤भॄ꣥॥ थ꣣मो꣢ऽ३जा꣤ऽ५साऽ६५६॥ ए꣢ऽ᳐३। उ꣢दधि꣡र्निधी꣢ऽ१ः॥

08_0152 अहमिद्धि पितुष्परि - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

१५२-१। प्रजापतेर्निधनकामं सिन्धुषाम वा॥ प्रजापतिर्गायत्रीन्द्रः॥ सूर्यो वा।

अ꣤हमिद्धाऽ५इपितुᳲप꣤राइ॥ मे꣢꣯धा꣡꣯मृतस्यजग्रहा। अ꣢हꣳ꣡सू꣯र्याः॥ इ꣪वाऽ२३४। हा꣣꣯हो꣢इ॥ ज꣡नि। होइ। होइ। औ꣢꣯हो꣡꣯औ꣢꣯हो꣡वाऽ२३꣡४꣡५꣡हाउ॥ वा॥

09_0153 रेवतीर्नः सधमाद - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

१५३-१। रेवत्यः वाजदावर्यो वा॥ वाजदावर्यो प्रजापतिर्गायत्रीन्द्रः॥

रे꣥꣯वती꣯र्नाः॥ स꣡धाऽ२᳐मा꣣ऽ२३४दा꣥इ। इ꣡न्द्राऽ२᳐इसा꣣ऽ२३४न्तू꣥। तु꣢वि꣡वाऽ᳒२᳒जाः꣡॥ क्षूऽ२३मा꣢॥ तोऽ᳒२᳒या꣡। भि꣢र्मो꣡ऽ२३४वा꣥। दा꣤ऽ५इमोऽ६"हा꣥इ॥

10_0154 सोमः पूषा - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

१५४-१। सौमापौषं गोअश्वीयं वा॥ सोमपूषणावृषी गायत्रीन्द्रः॥सो꣥꣯मᳲपू꣯षा॥ च꣢चा꣡इततुः꣢। अ꣣या꣢᳐यो꣣ऽ२३४वा꣥। वा꣡इश्वा꣯साꣳ꣢꣯सुक्षिती꣯। ना꣡म्। अ꣣या꣢᳐यो꣣ऽ२३४वा꣥॥ दा꣡इव꣪त्राराऽ२३॥ थियो꣢ऽ३र्हा꣤ऽ५इताऽ६५६॥ गा꣡꣯वो꣰꣯ऽ२अ꣡श्वा꣣ऽ२३꣡४꣡५ः꣡॥

[[अथ पञ्चम खण्डः]]

11_0155 पान्तमा वो - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

१५५-१। वैतहव्यानि त्रीणि॥ त्रयाणां वीतहव्योऽनुष्टुबिन्द्रः॥

पा꣤꣯न्त꣥मा꣤꣯वो꣥꣯अ꣤न्ध꣥साः꣤॥ इ꣢न्द्रा꣡माभि꣢। प्रगा꣡याता꣢ऽ३। हा꣢ऽ३हा꣢इ। विश्वा꣡साह꣢म्। शता꣡क्रातू꣢ऽ३म्। हा꣢ऽ३हा꣢इ॥ मꣳहा꣡इष्ठञ्चा꣢ऽ३। हा꣢ऽ३हा꣢॥ षणा꣡ऽ२᳐इ। ना꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा॥ ऊ꣢ऽ᳐३२᳐३४पा꣥॥

11_0155 पान्तमा वो - 02 ...{Loading}...
लिखितम्

१५५-२।

पा꣤꣯न्त꣥मा꣤꣯वो꣥꣯अ꣤न्ध꣥सः। इ꣤हा॥ इ꣢न्द्रम꣡भाइ। प्र꣢गा꣯य꣡ताऽ᳒२᳒। इ꣡हा꣢। वि꣡श्वा꣯सा꣯हꣳशताऽ᳒२᳒क्रतू꣡म्। इहा꣢॥ मꣳहाऽ᳒२᳒इष्ठञ्चा꣡। इहा꣢। षणाऽ᳒२᳒इना꣡म्॥ इहा꣣ऽ२३꣡४꣡५꣡॥

11_0155 पान्तमा वो - 03 ...{Loading}...
लिखितम्

१५५-३। ओकोनिधनं वैतहव्यम्॥

पा꣣ऽ५न्तम्। आ꣤ऽ३वो꣢ऽ३अ꣤न्धसाः꣥॥ आ꣡इन्द्रामभाइ। प्र꣪गाऽ२᳐या꣣ऽ२३४ता꣥। वि꣡श्वाऽ२᳐सा꣣ऽ२३४हा꣥म्॥ शा꣢ऽ३ता꣡क्रा꣢ऽ३तू꣢म्॥ मꣳ꣡हि꣢ष्ठञ्च꣡र्ष꣢। णा꣡ये꣢ऽ३। ना꣡ऽ२᳐मा꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा॥ ओ꣢ऽ३काऽ२३꣡४꣡५ः꣡॥

12_0156 प्र व - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

१५६-१। शाक्त्यानि षट्, शाक्त्ये सामनी द्वे॥ षण्णां शाक्त्यो गायत्रीन्द्रः॥

प्र꣡वइन्द्राऽ२᳐। य꣣मा꣢᳐दा꣣ऽ२३४ना꣥म्॥ प्र꣢वाऽ᳒२᳒इ꣡न्द्रा। औ꣢ऽ३हो꣢। या꣣ऽ२३४मा꣥। दा꣢ऽ३ना꣢म्॥ हराऽ᳒२᳒अ꣡श्वा। औ꣢ऽ३हो꣢। या꣣ऽ२३४गा꣥॥ या꣢ऽ३ता꣢॥ सखाऽ᳒२᳒या꣡स्सो। औ꣢ऽ३हो꣢ऽ३। मा꣡पोऽ२३४वा꣥। आ꣤ऽ५व्नोऽ६"हा꣥इ॥

12_0156 प्र व - 02 ...{Loading}...
लिखितम्

१५६-२।

प्र꣡वाऽ᳒२᳒इ꣡न्द्रा। औ꣢ऽ३हो꣢। या꣣ऽ२३४मा꣥। दा꣢ऽ३ना꣢म्॥ ह꣡राऽ᳒२᳒अ꣡श्वा। औ꣢ऽ३हो꣢। या꣣ऽ२३४गा꣥। या꣢ऽ३ता꣢॥ स꣡खाऽ᳒२᳒या꣡स्सो। औ꣢ऽ३हो꣢ऽ३॥ मा꣡पोऽ२३४वा꣥। आ꣤ऽ५व्नोऽ६"हा꣥इ॥

12_0156 प्र व - 03 ...{Loading}...
लिखितम्

१५६-३। गौरीविते द्वे॥

प्र꣢वई꣭ऽ३या꣢। ई꣭ऽ३या꣢। इ꣡न्द्रो꣯ई꣭ऽ३या꣢। ई꣭ऽ३या꣢। या꣣ऽ२३४मा꣥। दा꣢ऽ३ना꣢म्॥ हरई꣭ऽ३या꣢। ई꣭ऽ३या꣢। आ꣡श्वो꣯ई꣭ऽ३या꣢। ई꣭ऽ३या꣢। या꣣ऽ२३४गा꣥। या꣢ऽ३ता꣢॥ सखई꣭ऽ३या꣢। ई꣭ऽ३या꣢। या꣡स्सो꣯ई꣭ऽ३या꣢। ई꣭ऽ३या꣢ऽ३॥ मा꣡पोऽ२३४वा꣥। आ꣤ऽ५व्नोऽ६"हा꣥इ॥

12_0156 प्र व - 04 ...{Loading}...
लिखितम्

१५६-४।

प्र꣢वौ꣯हो꣡वाऽ᳒२᳒। इ꣡न्द्रौ꣯होवा꣢। या꣣ऽ२३४मा꣥। दा꣢ऽ३ना꣢म्॥ हरौ꣯हो꣡वाऽ᳒२᳒। आ꣡श्वौ꣯होवा꣢। या꣣ऽ२३४गा꣥। या꣢ऽ३ता꣢॥ सखौ꣯हो꣡वाऽ᳒२᳒। या꣡स्सौ꣯होवा꣢ऽ३॥ मा꣡पोऽ२३४वा꣥। आ꣤ऽ५व्नोऽ६"हा꣥इ॥

12_0156 प्र व - 05 ...{Loading}...
लिखितम्

१५६-५। शाक्त्यं साम॥

प्र꣢वो꣯दऽ३दा꣡। औ꣢ऽ३हो꣢। इ꣡न्द्रो꣯ददा। औ꣢ऽ३हो꣢। या꣣ऽ२३४मा꣥। दा꣢ऽ३ना꣢म्॥ हरिदऽ३दा꣡। औ꣢ऽ३हो꣢। आ꣡श्वो꣯ददा। औ꣢ऽ३हो꣢। या꣣ऽ२३४गा꣥। या꣢ऽ३ता꣢॥ सखिदऽ३दा꣡। औ꣢ऽ३हो꣢। या꣡स्सो꣯ददा। औ꣢ऽ३हो꣢ऽ३॥ मा꣡पोऽ२३४वा꣥। आ꣤ऽ५व्नोऽ६"हा꣥इ॥

12_0156 प्र व - 06 ...{Loading}...
लिखितम्

१५६-६। गौरीवितम्॥

प्र꣤वः꣥। प्रवाः꣤॥ इ꣢न्द्रा꣯ये꣯न्द्रा꣯। य꣡मादा꣢ऽ१नाऽ᳒२᳒म्। हराइहर्यश्वा꣯। य꣡गाया꣢ऽ१ताऽ᳒२᳒॥ स꣡खा꣯याऽ२३स्सो꣢ऽ३॥ मा꣡पोऽ२३४वा꣥। आ꣤ऽ५व्नोऽ६"हा꣥इ॥

13_0157 वयमु त्वा - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

१५७-१। काण्वे द्वे॥ द्वयोः कण्वो गायत्रीन्द्रः॥

व꣥यंवा꣤या꣥म्॥ ऊ꣣ऽ२३४त्वा꣥। ता꣢दी᳐दा꣣ऽ२३४र्थाः꣥। इ꣣न्द्र꣤त्वा꣥꣯य꣤न्तः꣥। स꣣खाऽ२३४याः꣥॥ क꣣ण्वा꣢ऽ३१२३४ः॥ उक्थे꣯भि꣥र्जरन्ते꣯। ए꣯हियाऽ६हा꣥। हो꣤ऽ५इ॥ डा॥

13_0157 वयमु त्वा - 02 ...{Loading}...
लिखितम्

१५७-२। काण्वम्॥

व꣥यमू꣢ऽ३त्वा꣤꣯तदिदर्थाः꣥॥ ऐ꣡꣯हिहाऽ᳒२᳒इ। वय꣡मुत्वा꣯तदिदर्था꣯इन्द्रत्वा꣯-यन्तस्स꣢खा꣡ऽ२३याः꣢॥ का꣣ऽ२३४ण्वाः꣥॥ ऊ꣡। क्थाइ। भि꣢र्जो꣡ऽ२३४वा꣥॥ र꣢न्ताऽ३याऽ२३꣡४꣡५꣡॥

14_0158 इन्द्राय मद्वने - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

१५८-१। गौरीविते द्वे॥ द्वयोर्गौरीवितो गायत्रीन्द्रः॥

इ꣤न्द्रा꣥꣯यम꣤द्व꣥ना꣤इ॥ सु꣢ता꣡म्। इन्द्रा꣯यमद्वने꣯सु꣢ता꣡म्। प꣢रा꣡इष्टोऽ२३भा꣢। तुनो꣡꣯गिरो॥ अर्कमाऽ२३र्चा꣢॥ तुका꣡꣯राऽ२३वा꣢ऽ३४३ः। ओ꣡ऽ२३४५इ॥ डा॥

14_0158 इन्द्राय मद्वने - 02 ...{Loading}...
लिखितम्

१५८-२।

इ꣥न्द्रा꣯यमद्वने꣯हाउ॥ ओ꣡इसू꣢ऽ३ता꣢म्। प꣡रिष्टो꣢꣯। भा꣡। तु꣪नोऽ२३हा꣢इ। गा꣡इराऽ᳒२ः᳒। प꣡रिष्टो꣯भा। तु꣪नोऽ२३हा꣢इ॥ गा꣡इराऽ᳒२ः᳒॥ अ꣡र्काऽ२३म्॥ आ꣡ऽ२᳐र्चा꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा॥ ए꣢ऽ᳐३। तु꣢काऽ३र꣡वाऽ२३꣡४꣡५ः꣡॥

14_0158 इन्द्राय मद्वने - 03 ...{Loading}...
लिखितम्

१५८-३। श्रौतकक्षम्॥ श्रुतकक्षो गायत्रीन्द्रः॥

इ꣤न्द्रा꣥꣯यम꣤द्व꣥ने꣯सुत꣤म्। इ꣥न्द्रा꣯यमो꣤वा꣥॥ द्वा꣢ऽ३ना꣡इसू꣢ऽ३ता꣢म्। प꣡रिष्टो꣢꣯। भा꣡ऽ२३। हा꣢ऽ३हा꣢ऽ३। तू꣡नोऽ२᳐गा꣣ऽ२३४इराः꣥॥ आ꣡र्कमर्चा꣢ऽ३। हा꣢ऽ३हा꣢॥ तुका꣡꣯राऽ२३वा꣢ऽ३४३ः। ओ꣡ऽ२३४५इ॥ डा॥

15_0159 अयं त - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

१५९-१। सौमित्रे द्वे॥ द्वयोः सुमित्रो गायत्रीन्द्रः॥

अ꣥यंतआ॥ द्र꣢सो꣡꣯मो। होवा꣢ऽ३हो꣡इ। नि꣢पू꣡꣯तो꣯आ꣢ऽ३। धी꣡ब꣢र्हा꣣ऽ२३४इषी꣥॥ आ꣡इही꣢꣯मस्या꣡ऽ२३॥ द्रा꣡ऽ२᳐वा꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा॥ पी꣣ऽ२३४बा꣥।

15_0159 अयं त - 02 ...{Loading}...
लिखितम्

१५९-२।

अ꣥यंतइन्द्रसोऽ४माः꣥॥ नि꣡पू꣯तो꣯अधिबाऽ᳒२᳒र्हा꣡इषीऽ᳒२᳒। ऐ꣯होऽ᳒२᳒इमा꣡स्या॥ द्र꣢वा꣯पा꣡इबाऽ᳒२᳒। आ꣡इही꣯मस्याद्र꣢वाऽ३१उवाऽ२३॥ पीऽ२३४बा꣥॥

15_0159 अयं त - 03 ...{Loading}...
लिखितम्

१५९-३। इहवद्दैवोदासम्॥ दिवोदासो गायत्रीन्द्रः॥

अ꣤यं꣣त꣤इन्द्रसो꣣ऽ४मः꣥। ना꣡ऽ२३४इ। पू꣯तो꣥꣯अ꣤धि꣥बर्हि꣤षी꣥॥ नि꣡पू꣯तो꣯अधि꣢ब꣡र्हाऽ२३इषी꣢॥ ऐ꣯हो꣡इमाऽ२३स्या꣢॥ द्रवा꣡꣯पाऽ२३४५इबाऽ६५६॥ ई꣣ऽ२३४हा꣥॥

16_0160 सुरूपकृत्नुमूतये सुदुघामिव - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

१६०-१। शाक्वरवर्णम्॥ शाक्वरवर्णो गायत्रीन्द्रः॥ (प्रजापतिर्वा)।

सू꣤रू꣥॥ प꣢कृ꣡त्नुमू꣯त꣢या꣡इ। सु꣢दु꣡घा꣢꣯म्। इ꣡वगोऽ᳒२᳒। दु꣡ह꣢याऽ३१उवाऽ२३। ऊ꣢ऽ᳐३४पा꣥॥ जु꣢हू꣡꣯माऽ२३सी꣢॥ द्य꣡विद्यवि꣢याऽ३१उवाऽ२३॥ ऊ꣢ऽ᳐३२᳐३४पा꣥॥

16_0160 सुरूपकृत्नुमूतये सुदुघामिव - 02 ...{Loading}...
लिखितम्

१६०-२। रैणवम्॥ रेणुर्गायत्रीन्द्रः॥ (प्रजापतिर्वा)।

सु꣥रू꣯हा꣯हाउ॥ प꣢कृ꣡त्नुमूऽ᳒२᳒ता꣡याऽ᳒२᳒इ। सुदु꣡घा꣢꣯म्। इ꣡वगोऽ᳒२᳒। दु꣡हे꣢꣯। ऐ꣯ही꣯यै꣣꣯ही꣢ऽ१॥ जु꣢हौऽ᳒२᳒। हौऽ᳒२᳒। हु꣡वाऽ᳒२᳒इ। मा꣡सीऽ᳒२᳒॥ द्य꣡विद्यवि॥ ऐ꣢꣯ही꣯यै꣣꣯ही꣢ऽ१॥

16_0160 सुरूपकृत्नुमूतये सुदुघामिव - 03 ...{Loading}...
लिखितम्

१६०-३। औदले द्वे उदलः वींकम्॥ वींको गायत्रीन्द्रः॥ (प्रजापतिर्वा)।

सु꣢रू꣯पकृत्नूऽ३मू꣡ताऽ२३४या꣥इ॥ ओ꣡इसुरू꣯पकृत्नूमू꣢ऽ१तायाऽ᳒२᳒इ। ओ꣡इसुदुघा꣯मिवागो꣢ऽ१दुहाऽ᳒२᳒इ। जु꣡हू꣯मसाऽ२इ। द्य꣣वि꣢द्या꣣ऽ२३४वी꣥। ऐ꣤ही꣥॥ जू꣡हूऽ᳒२᳒मा꣡सीऽ᳒२᳒॥ द्यवि꣡द्या। वीवीऽ२३। आ꣤औ꣥꣯होइ। आ꣤औ꣥꣯होऽ६वा꣥॥ ए꣢ऽ᳐३। द्य꣢विऽ३ई꣡ऽ२३꣡४꣡५꣡॥

16_0160 सुरूपकृत्नुमूतये सुदुघामिव - 04 ...{Loading}...
लिखितम्

१६०-४। औदलम्॥ उदलो गायत्रीन्द्रः॥ (प्रजापतिर्वा)।

सु꣤रू꣥꣯पकॄ꣤॥ त्नू꣡मूऽ᳒२᳒तया꣡इ। सु꣢दु꣡घा꣯मी꣢ऽ३। वा꣡गो꣢दू꣣ऽ२३४हा꣥इ॥ सु꣤दु꣥घा꣯मा꣤॥ वा꣡गोऽ᳒२᳒दुहा꣡इ॥ जु꣢हू꣡꣯माऽ२३सी꣢ऽ३। द्या꣡ऽ२३वी꣤ऽ३। द्या꣢ऽ३४५वोऽ६"हा꣥इ॥