०४ १

[[अथ चतुर्थप्रपाठके प्रथमोऽर्धः]]

33_0129 एन्द्र सानसिम् - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

१२९-१। रोहितकूलीये द्वे॥ द्वयोरिन्द्रो, विश्वामित्रो वा गायत्रीन्द्रः॥

ए꣤꣯न्द्र꣥सा꣤॥ न꣢सिꣳ꣡रयिम्। सजित्वा꣯नꣳस꣢दा꣡꣯साऽ२३हा꣢म्॥ वा꣡ऽ२३र्षी꣢॥ ष्ठा꣡मू꣯त꣢याऽ३१उवाये꣢ऽ३॥ भाऽ२३४रा꣥॥

33_0129 एन्द्र सानसिम् - 02 ...{Loading}...
लिखितम्

१२९-२।

ए꣤꣯न्द्र꣥सा꣯नसा꣤इम्॥ र꣢याऽ᳒२᳒इम्। सजि꣡त्वा꣯नꣳस꣢दा꣡꣯साऽ२३हा꣢म्॥ वा꣡र्षीऽ᳒२᳒ष्ठा꣡मूऽ२३॥ त꣢यो꣡ऽ२३४वा꣥। भा꣤ऽ५रोऽ६"हा꣥इ॥

34_0130 इन्द्रं वयम् - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

१३०-१। इन्द्राण्यास्सामनी द्वे॥ द्वयोरिन्द्राणी गायत्रीन्द्रः॥

इ꣡न्द्राम्। इ꣪न्द्रंवायाऽ᳒२᳒म्॥ म꣡हा। म꣪हा꣯धानाऽ᳒२᳒इ॥ इ꣡न्द्राम्। इ꣪न्द्रमर्भाऽ᳒२᳒इ॥ ह꣡वा। ह꣪वा꣯माहाऽ᳒२᳒इ॥ यु꣡जाम्। यु꣪जंवृत्राऽ᳒२᳒इ॥ षु꣡वा। षु꣪वज्रिणाऽ२३४३म्। ओ꣡ऽ२३४५इ॥ डा॥

34_0130 इन्द्रं वयम् - 02 ...{Loading}...
लिखितम्

१३०-२।

इ꣥न्द्रंवयाम्॥ म꣡हा। म꣪हा꣯धानाऽ२३इ। आ꣡औ꣢ऽ३हो꣢। इ꣡ह꣢। इहि꣡वाला꣢। ओ꣣ऽ२३४वा꣥॥ इन्द्रमर्भाइ॥ ह꣡वा। ह꣪वा꣯माहाऽ२३इ। आ꣡औ꣢ऽ३हो꣢। इ꣡ह꣢। इहि꣡वाला꣢। ओ꣣ऽ२३४वा꣥॥ युजंवृत्राइ॥ षु꣡वा। षु꣪वज्रिणाऽ२३म्। आ꣡औ꣢ऽ३हो꣢। इ꣡ह꣢। इहि꣡वाला꣢। ओ꣣ऽ२३४वा꣥॥ ई꣣ऽ२३४हा꣥॥

35_0131 अपिबत्कद्रुवः सुतमिन्द्रः - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

१३१-१। सहस्रबाहवीयम्॥ इन्द्रो गायत्रीन्द्रः॥

अ꣥पिबत्का꣯द्रूऽ६व꣥स्सुताम्॥ इ꣡न्द्राहोऽ᳒२᳒इ। स꣡हाहोऽ᳒२᳒। स्रा꣡बा꣢ऽ१हुवेऽ᳒२᳒॥ तत्रा꣡꣯दाऽ२३दी꣢॥ ष्टपौऽ᳒२᳒। हौऽ᳒२᳒। हु꣡वाऽ᳒२᳒इ। ई꣭ऽ३या꣢। सिया꣡म्। औऽ२३हो꣤वा꣥। हो꣤ऽ५इ॥ डा॥

36_0132 वयमिन्द्र त्वायवोऽभि - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

१३२-१। धृषतो मारुतस्य साम॥ धृषन्मरुत् गायत्रीन्द्रः॥

व꣢य꣡माऽ२३४इन्द्रा꣥॥ त्वा꣡ऽ२३। या꣡ऽ२᳐वा꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा। अ꣢भि꣡प्रनो꣰꣯ऽ२नुमो꣯वृषन्॥ विद्धा᳐इतु꣣वा꣢ऽ३॥ स्या꣡ऽ२᳐ना꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा॥ वा꣣ऽ२३४सो꣥॥

36_0132 वयमिन्द्र त्वायवोऽभि - 02 ...{Loading}...
लिखितम्

१३२-२। अदारसृत्॥ भरद्वाजो गायत्रीन्द्रः॥

हा꣥꣯उवयमिन्द्रा॥ त्वाऽ᳒२᳒या꣡वाऽ᳒२ः᳒। अ꣡भिप्रनो꣯नुमोऽ᳒२᳒वा꣡र्षाऽ᳒२᳒न्॥ विद्धाऽ᳒२᳒इतू꣡वाऽ᳒२᳒॥ स्यनो꣡ऽ२३। वा꣡ऽ२᳐सा꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा॥ अ꣢स्म꣡भ्यं꣢गा꣯तुवि꣡त्त꣢मा꣣ऽ२३꣡४꣡५꣡म्॥

36_0132 वयमिन्द्र त्वायवोऽभि - 03 ...{Loading}...
लिखितम्

१३२-३। धृषतो मारुतस्य साम॥ धृषन्मरुत् गायत्रीन्द्रः॥

व꣥यमिन्द्रा॥ त्वा꣡या꣢ऽ᳐३वाः꣢। अ꣡भिप्रनो꣯नुमो꣢ऽ१वा꣢ऽ᳐३र्षा꣢न्॥ विद्धी᳐तू꣣ऽ२३४वा꣥। ओ꣣ऽ२३४हा꣥इ॥ स्य꣤नोवा꣥। वा꣤ऽ५सोऽ६"हा꣥इ॥

36_0132 वयमिन्द्र त्वायवोऽभि - 04 ...{Loading}...
लिखितम्

१३२-४। अदारसृती द्वे॥ द्वयोर्भरद्वाजो गायत्रीन्द्रः॥

व꣥या꣯मौ꣤꣯हो꣥। इ꣤न्द्रा꣥॥ त्वा꣡या꣢ऽ᳐३वाः꣢। अ꣡भिप्रनो꣯नुमो꣢ऽ१वा꣢ऽ᳐३र्षा꣢न्॥ विद्धी꣯त्वो꣣ऽ२३४हा꣥इ॥ स्या꣡नो꣢ऽ᳐३हा꣢इ। वसा꣡। औ꣢ऽ३हो꣤वा꣥। हो꣤ऽ५इ॥ डा॥

36_0132 वयमिन्द्र त्वायवोऽभि - 05 ...{Loading}...
लिखितम्

१३२-५।

व꣣या꣢मौ꣣꣯हो꣤वाहा꣥इ। इ꣤न्द्रा꣥। त्वा꣢औ꣣꣯हो꣤वाहा꣥इ। या꣤वाः꣥॥ आ꣡ऽ२३भी꣢। प्रा꣡ऽ२३नो꣢। ओ꣡इनुमो꣯वाऽ२३र्षा꣢न्॥ वा꣡ऽ२३इद्धी꣢। तू꣡ऽ२३वा꣢ऽ३॥ स्या꣡ऽ२᳐ना꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा॥ वा꣣ऽ२३४सो꣥॥

37_0133 आ घा - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

१३३-१। ऐध्मवाहानि हाराणि वा त्रीणि॥ त्रयाणामिध्मवाहो गायत्रीन्द्रः॥

आ꣥꣯घा꣯ये꣯अग्निमिन्धा꣤ता꣥इ॥ स्तृ꣢ण꣡न्तिबर्हिरा꣯नुषक्॥ ये꣢꣯षा꣡꣯मिन्द्रो꣯युवा꣯इहा॥ ऊवाइ। ऊवोऽ२३४। वा꣥। सा꣤ऽ५खोऽ६"हा꣥इ॥

37_0133 आ घा - 02 ...{Loading}...
लिखितम्

१३३-२। इहवदैध्मवाहम्॥

आ꣥꣯घा꣯यइ꣤हा॥ ग्नि꣢मा꣡इ। धाता꣢ओ꣣ऽ२३४वा꣥। ई꣣ऽ२३४हा꣥। स्तृ꣢णन्तिबर्हिऽ३रा꣡। नूषा꣢ओ꣣ऽ२३४वा꣥। ई꣣ऽ२३४हा꣥॥ ये꣢꣯षा꣡म्। आइन्द्रा꣢ओ꣣ऽ२३४वा꣥॥ ई꣣ऽ२३४हा꣥। यु꣡वा। यु꣪वाऽ२᳐सा꣣ऽ२३४५खाऽ६५६॥ ई꣣ऽ२३४हा꣥॥

37_0133 आ घा - 03 ...{Loading}...
लिखितम्

१३३-३।

औ꣥꣯हो꣯आ꣯घा꣯याऽ६ए꣥॥ ग्नि꣢मा꣡इन्धाता꣢। औ꣣꣯होऽ२३४वा꣥। स्तृ꣢णन्तिबर्हिऽ३रा꣡नूषा꣢। औ꣣꣯होऽ२३४वा꣥॥ ये꣢꣯षा꣡माइन्द्रा꣢। औ꣣꣯होऽ२३४वा꣥॥ यु꣣वा꣢ऽ३। सा꣡ऽ२३४खा। उ꣥हुवाऽ६हा꣥उ॥ वा॥

38_0134 भिन्धि विश्वा - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

१३४-१। पैड्वस्य पैल्वस्य वा साम॥ पैल्वो गायत्रीन्द्रः॥

भि꣥। ध्यो꣤हाइ॥ वा꣡इश्वाअपा। द्वाइषा꣢ओ꣣ऽ२३४वा꣥॥ पा꣡रा꣢ओ꣣ऽ२३४वा꣥॥ बा꣡꣯धो꣯जहाइ। मार्द्धा꣢ओ꣣ऽ२३४वा꣥॥ व꣡सु꣢स्पा꣯र्ह꣡न्तदा꣯भ꣢रा꣣ऽ२३꣡४꣡५꣡॥

[[अथ तृतीय खण्डः]]

39_0135 इहेव शृण्व - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

१३५-१। ऐषम्॥ इषो गायत्रीन्द्रः॥इ꣢हे꣡꣯वाऽ२३शृ꣤ण्वए꣥꣯षाम्॥ क꣡शा꣯हस्ते꣯षुया꣢ऽ१द्वा꣢ऽ᳐३दा꣢न्। निया꣯मञ्चीऽ३त्रा꣤ऽ३मृ꣢ञ्ज꣣ता꣥इ॥ नि꣢या꣡꣯मं꣢चा꣡इ। त्र꣪माऽ२᳐र्ञ्जा꣣ऽ२३४ता꣥इ॥ ए꣣꣯हिया꣢ऽ३४। औ꣣꣯हो꣤꣯वा꣥॥ ए꣢꣯हियौ꣡꣯होइ। ए꣢꣯हियौ꣡꣯होऽ२३इ। एऽ२३४ही꣥॥

40_0136 इम उ - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

१३६-१। पौषम्॥ पूषा गायत्रीन्द्रः॥ मरुतः।

इ꣤म꣣उ꣤त्वा꣯वि꣣च꣤क्ष꣥ते꣯। ए꣢ऽ᳐३। स꣤खायाः꣥॥ इ꣡न्द्रसो꣯माऽ२३इनाः꣢। हो꣡इहोवा꣢॥ पुष्टा꣡꣯वाऽ२३न्ताः꣢। हो꣡इहोवा꣢ऽ᳐३॥ य꣢थो꣡ऽ२३४वा꣥। पा꣤ऽ५शोऽ६"हा꣥इ॥

41_0137 समस्य मन्यवे - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

१३७-१। मरुतां संवेशीयम् सिन्धुषाम॥ मरुतो गायत्रीन्द्रः॥

स꣡मस्यामाऽ᳒२᳒। न्या꣯वे꣡꣯विशाः॥ विश्वा꣯नामाऽ᳒२᳒। ता꣯कृ꣡ष्टयाः॥ समुद्रायेऽ᳒२᳒॥ वसिं꣡धाऽ२३वा꣢ऽ३४३ः। ओ꣡ऽ२३४५इ॥ डा॥

42_0138 देवानामिदवो महत्तदा - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

१३८-१। हाविष्मते द्वे॥ द्वयोर्हविष्मान् गायत्रीन्द्रः॥ (विश्वेदेवाः वा)।

दे꣥꣯वा꣯। ना꣯म्। इ꣣दा꣢᳐ओ꣣ऽ२३४वा꣥॥ ओ꣡वा꣢ओ꣣ऽ२३४वा꣥। मा꣣ऽ२३४हा꣥त्। त꣢दा꣡꣯वृणाइ। माहा꣢ओ꣣ऽ२३४वा꣥। वा꣣ऽ२३४या꣥म्॥ वृ꣢ष्णा꣡꣯मस्मा॥ भ्यामा꣢ओ꣣ऽ२३४वा꣥॥ ता꣣ऽ२३४ये꣥॥

42_0138 देवानामिदवो महत्तदा - 02 ...{Loading}...
लिखितम्

१३८-२। हाविष्मतम्॥

हा꣥꣯उदे꣯वा꣯ना꣯मिदवो꣯महद्धाउ॥ त꣢दा꣡꣯वृणा꣢ऽ३इ। मा꣡हे꣢वा꣣ऽ२३४या꣥म्। ऐऽ᳒२᳒होऽ१आऽ२३इही꣢॥ वृ꣡ष्णामा꣢ऽ३स्मा꣢॥ भ्यमू꣡ऽ२३। ता꣡ऽ२᳐या꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा॥ ह꣢वि꣡ष्मते꣣ऽ२३꣡४꣡५꣡॥

42_0138 देवानामिदवो महत्तदा - 03 ...{Loading}...
लिखितम्

१३८-३। हाविष्कृते द्वे॥ द्वयोर्हविष्कृद्गायत्रीन्द्रः॥ (विश्वेदेवाः)।दे꣥꣯वा꣯ना꣯मिदवो꣯हा꣯उमा꣤हा꣥त्॥ त꣢दा꣡꣯वृणाइ। महाइवाऽ२३या꣢म्॥ वृ꣡ष्णाऽ᳒२ꣳ᳒होऽ१इ। आऽ२३स्मा꣢॥ भ्यमू꣡ऽ२३। ता꣡ऽ२᳐या꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा॥ ह꣢विष्कृ꣡ते꣣ऽ२३꣡४꣡५꣡॥

42_0138 देवानामिदवो महत्तदा - 04 ...{Loading}...
लिखितम्

१३८-४।

दे꣥꣯वा꣯ना꣯मिदवो꣯मा꣤हा꣥त्॥ ता꣡दा꣯वृ꣢णी꣯। महा꣡इवाऽ२३या꣢म्॥ वृ꣡ष्णा꣯माऽ२३स्मा꣢ऽ३॥ भ्य꣢मू꣡ऽ२३४वा꣥। ता꣤ऽ५योऽ६"हा꣥इ॥

43_0139 सोमानां स्वरणम् - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

१३९-१। काक्षीवतम्॥ कक्षीवान् विराड्गायत्री ब्रह्मणस्पतिः॥

सो꣥꣯मा꣢ऽ३नाꣳ꣤꣯स्वरणा꣥म्॥ कृ꣢णू꣡हि꣢ब्र꣡। ह्म꣢णस्प꣡ताये꣢ऽ३। ओ꣢ऽ३४। हा꣣꣯हो꣢इ॥ क꣡क्षाइवाऽ२३न्ता꣢म्॥ यऔ꣣꣯हो꣢इ᳐। औ꣣꣯हो꣡ऽ२३४वा꣥। शा꣤ऽ५इजोऽ६"हा꣥इ॥

44_0140 बोधन्मना इदस्तु - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

१४०-१। औषसम्॥ उषो गायत्रीन्द्रः॥

बो꣥꣯धन्मनाः॥ इ꣡दाऽ᳒२᳒स्तू꣡नाऽ᳒२ः᳒। वृत्र꣡हा꣢꣯भू꣡। रि꣪याऽ२᳐सू꣣ऽ२३४तीः꣥॥ शृ꣣णा꣢ऽ३४औहो꣥॥ तु꣣शक्र꣢आ꣡। शि। षाम्। औऽ२३हो꣤वा꣥। हो꣤ऽ५इ॥ डा॥

45_0141 अद्य नो - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

१४१-१। दक्षणिधनमौक्षम्॥ भरद्वाजो गायत्री सविता॥

अ꣥द्य꣤नो꣥꣯दे꣯वसवितः। औ꣤꣯हो꣥꣯वा꣤॥ इ꣢ह꣡श्रुधाइ। प्रजा꣯वाऽ२३त्सा꣢। वी꣯स्सौ꣡꣯भगाम्॥ परा꣯दूऽ२३ष्वा꣢ऽ३। हो꣡वा꣢ऽ᳐३हा꣢॥ प्नियꣳ꣡सूऽ२३४५वाऽ६५६॥ द꣡क्षा꣢ऽ३या꣡ऽ२३꣡४꣡५꣡॥

45_0141 अद्य नो - 02 ...{Loading}...
लिखितम्

१४१-२। मौक्षम्॥ भरद्वाजो गायत्री सविता॥अ꣣द्या꣢ऽ३४। नो꣯दे꣯व꣥सा꣯। वि꣤ताः꣥॥ प्र꣢जा꣯व꣡त्सा। वी꣢꣯स्सौ꣡꣯भगाम्॥ पारा꣢ऽ३दू꣤ष्वा꣥॥ प्नि꣢यꣳसु꣡वोवा꣢ऽ३। ओ꣡ऽ२᳐। वा꣣ऽ२३४। औ꣥꣯हो꣯वा॥ अ꣢स्म꣡भ्यं꣢गा꣯तुवि꣡त्त꣢मा꣣ऽ२३꣡४꣡५꣡म्॥

46_0142 क्वऽ३स्य वृषभो - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

१४२-१। भारद्वाजानि त्रीणि॥ त्रयाणां भरद्वाजो गायत्रीन्द्रः॥

कू꣡ऽ२३४वस्यवाऽ५र्षभो꣯यु꣤वा॥ तु꣢विग्री꣡वोऽ᳒२᳒। अना꣡꣯नताः॥ ब्रह्मा꣯काऽ२३स्ता꣢म्॥ ऐऽ᳒२᳒होऽ१आऽ२३इही꣢। सप꣡र्याऽ२३ता꣢ऽ३४३इ। ओ꣡ऽ२३४५इ॥ डा॥

46_0142 क्वऽ३स्य वृषभो - 02 ...{Loading}...
लिखितम्

१४२-२।

कु꣤वा꣥कु꣤वा꣥॥ स्य꣢वृषऽ३भो꣡यु꣪वा꣭ऽ३। ओ꣢ऽ३४। हा꣣꣯हो꣢इ। तुविग्री꣯वो꣯अऽ३ना꣡न꣪ता꣭ऽ३ः। ओ꣢ऽ३४। हा꣣꣯हो꣢इ॥ ब्र꣡ह्माऽ᳐२३॥ का꣡ऽ२᳐स्ता꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा॥ स꣢पर्यती꣣ऽ२३꣡४꣡५꣡॥

46_0142 क्वऽ३स्य वृषभो - 03 ...{Loading}...
लिखितम्

१४२-३।

ऐ꣥꣯ही꣯यै꣯ही꣯। क्वस्यवृषभो꣯यु꣤वा॥ ऐ꣥꣯ही꣯यै꣯ही꣯। तुविग्री꣯वो꣯अना꣯न꣤ताः॥ ऐ꣥꣯ही꣯यै꣯ही꣯। ब्रह्मा꣯कस्तꣳसपर्य꣤ती॥ ऐ꣥꣯ही꣯यै꣯ही꣯। आ꣡ऽ२᳐इ॥ हि꣣या꣢ऽ३४औ꣥꣯हो꣯वा॥ आ꣣ऽ२३४इही꣥॥

47_0143 उपह्वरे गिरीणाम् - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

१४३-१। शाक्त्यसामनी द्वे॥ द्वयोः शाक्त्यो गायत्रीन्द्रः॥

उ꣡पह्व꣢रा꣡इ। गिराऽ᳒२᳒इणा꣡म्॥ संगामे꣢꣯चा꣡। नदाऽ᳒२᳒इना꣡म्॥ धियावि꣢प्रो꣡। अजाय꣢ता꣡॥ अयाम्। अ꣢याऽ३१उ। वाऽ२३॥ ऊ꣢ऽ᳐३४पा꣥॥

47_0143 उपह्वरे गिरीणाम् - 02 ...{Loading}...
लिखितम्

१४३-२।इ꣣दा꣢मी꣣ऽ२३४दा꣥म्। इ꣢दा꣡मि꣢द꣣क꣢᳐म्। इ꣣दा꣢मी꣣ऽ२३४दा꣥म्। उ꣢पह्वरे꣯गिऽ३रा꣡इणा꣢म्॥ इ꣣दा꣢मी꣣ऽ२३४दा꣥म्। इ꣢दा꣡मि꣢द꣣क꣢म्। इ꣣दा꣢मी꣣ऽ२३४दा꣥म्। सं꣢गमे꣯चनऽ३दा꣡इना꣢म्॥ इ꣣दा꣢मी꣣ऽ२३४दा꣥म्। इ꣢दा꣡मि꣢द꣣क꣢म्। इ꣣दा꣢मी꣣ऽ२३४दा꣥म्। धि꣢या꣯विप्रो꣯अऽ३जा꣡याता꣢॥ इ꣣दा꣢मी꣣ऽ२३४दा꣥म्। इ꣢दा꣡मि꣢द꣣क꣢म्। इ꣣दा꣢ऽ३मा꣤ऽ५इदाऽ६५६म्॥ गो꣡꣯ष्प꣢दे꣡꣯पृट्॥

48_0144 प्र सम्राजम् - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

१४४-१। वार्षन्धरे द्वे॥ द्वयोर्वृषन्धरो गायत्रीन्द्रः॥

प्र꣥सम्रा꣯जाम्॥ चा꣡र्षाऽ᳒२᳒णा꣡इनाऽ᳒२᳒म्। आ꣡इन्द्राऽ᳒२ꣳ᳒स्तो꣡ताऽ२३। न꣡व्याऽ२᳐ङ्गा꣣ऽ२३४इर्भीः꣥॥ ना꣡राऽ᳒२᳒न्ना꣡र्षाऽ२३॥ ह꣤म्मोवा꣥। हा꣤ऽ५इष्ठोऽ६"हा꣥इ॥

48_0144 प्र सम्राजम् - 02 ...{Loading}...
लिखितम्

१४४-२।

प्र꣤स꣥म्रा꣯जो꣤हाइ॥ चा꣡र्षाणी꣢ऽ३ना꣢म्। आ꣡इन्द्राꣳस्तो꣢ऽ३ता꣢ऽ३। न꣡व्याऽ२᳐ङ्गा꣣ऽ२३४इर्भीः꣥॥ नार꣣मो꣢इ᳐। नृ꣣। षा꣥꣯ह꣣मो꣢ऽ३इ॥ मꣳ꣤हाऽ५इष्ठाम्। हो꣤ऽ५इ॥ डा॥

48_0144 प्र सम्राजम् - 03 ...{Loading}...
लिखितम्

१४४-३। कुत्सस्य प्रस्तोकौ द्वौ॥ द्वयोः कुत्सो गायत्रीन्द्रः॥

प्र꣣सं꣤म्रा꣣꣯ज꣤ञ्च꣥। ष꣣णा꣢ऽ᳐३२३४इना꣥म्॥ इ꣢न्द्राꣳ꣡स्तो꣢ऽ३ता꣢ऽ३। न꣡व्याऽ२᳐ङ्गा꣣ऽ२३४इर्भीः꣥॥ न꣤र꣥न्नृषा꣤꣯हं꣥मा꣤ऽ५ꣳहि। आऽ६हा꣥उवा॥ ष्ठा꣣ऽ२३꣡४꣡५꣡म्॥

48_0144 प्र सम्राजम् - 04 ...{Loading}...
लिखितम्

१४४-४।

प्र꣤सं꣥म्रा꣤꣯ज꣥ञ्चर्षणी꣯ना꣤꣯मिन्द्रꣳ꣥स्तो꣯ता꣯न꣤। व्य꣥ङ्गाऽ६इर्भीः꣥॥ इ꣡न्द्रꣳस्तो꣯ता꣯नव्यङ्गाऽ२३इर्भी꣢ऽ३४ः॥ नरं꣥नृषा꣤꣯ह꣥म्। मा꣤ऽ५ꣳहिष्ठा꣤म्॥ स꣢हमै꣯है꣯ऽ३हो꣡ऽ२᳐। या꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा॥ मꣳ꣢हिऽ३ष्ठा꣡ऽ२३꣡४꣡५꣡म्॥

[[अथ तुरीय खण्डः]]