०३ २

[[अथ तृतीयप्रपाठके द्वितीयोऽर्धः]]

[[अथ प्रथम खण्डः]]

19_0115 तद्वो गाय - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

११५-१। मार्गीयवम्॥ मृगयुर्गायत्रीन्द्रः॥

ओ꣡म्॥ त꣥द्वौ꣯हो꣤वा꣥॥ गा꣡याऽ२᳐। सु꣣ता꣢इ᳐सा꣣ऽ२३४चा꣥। पु꣡रुहू꣢꣯ता꣯। यसा꣡त्वा꣢ऽ१नाऽ᳒२᳒इ॥ शं꣡यत्। हा। औ꣢ऽ३हो꣢इ᳐। गा꣣ऽ२३४वा꣥इ॥ ना꣡ऽ२᳐शा꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा॥ ए꣢ऽ᳐३। कि꣡नेऽ२३꣡४꣡५꣡॥

19_0115 तद्वो गाय - 02 ...{Loading}...
लिखितम्

११५-२।

त꣥द्वो꣯गा꣯या॥ सु꣢ताइसचाऽ᳐३। पू꣡रुऽ२३हू꣯ता꣢ऽ३४। हा꣣꣯हो꣢ऽ३। या꣡स꣢त्वा꣣ऽ२३४ना꣥इ॥ शं꣢य꣡द्गाऽ२३वे꣢॥ नशौऽ᳒२᳒। हौऽ᳒२᳒। हु꣡वोऽ२३४। वा꣥। का꣤ऽ५इनोऽ६"हा꣥इ॥

19_0115 तद्वो गाय - 03 ...{Loading}...
लिखितम्

११५-३।

त꣥द्वो꣯गा꣯यसुते꣯सचाऽ६ए꣥॥ पु꣢रुहू꣯ता꣡꣯यसत्वने꣢꣯। पु꣡रुहू꣢꣯ता꣯। या꣡स꣪त्त्वाऽ२३ना꣢ऽ३४इ। शंय꣥त्। गौ꣢वा᳐ओ꣣ऽ२३४वा꣥॥ ना꣡ऽ२३शा꣤ऽ३॥ का꣢ऽ᳐३४५इनोऽ६"हा꣥इ॥

19_0115 तद्वो गाय - 04 ...{Loading}...
लिखितम्

११५-४। ईनिधनं मार्गीयवम्॥ मृगयुः गायत्रीन्द्रः॥

त꣥द्वो꣯गा꣯यसुते꣯सचाऽ६ए꣥॥ पु꣢रुहू꣯ता꣡꣯यसत्वनाइ॥ शंयद्गाऽ२३वे꣢॥ ऐऽ᳒२᳒होऽ१आऽ२३इही꣢। नशा꣡ऽ२३। का꣡ऽ२᳐इना꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा॥ ई꣣ऽ२३꣡४꣡५꣡॥

20_0116 यस्ते नूनम् - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

११६-१। आश्वम्॥ अश्वो गायत्रीन्द्रः॥

य꣤स्ते꣯नू꣯नाऽ५ꣳशतक्र꣤ताउ॥ इ꣡न्द्रद्युम्नितमो꣯माऽ᳒२᳒दाः꣡॥ ते꣢꣯न꣡नू꣯नाऽ२३म्मा꣢॥ दा꣡इमा꣭ऽ३उवा꣢ऽ३॥ देऽ२३꣡४꣡५ः꣡॥

21_0117 गाव उप - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

११७-१। ऐटते द्वे॥ द्वयोरिटन्वान् गायत्रीन्द्रः॥

गा꣤꣯वः꣥। ए꣤गावाः꣥॥ उ꣢पव। दाऽ᳐३। वा꣡ऽ२᳐दा꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा। वा꣣ऽ२३४टे꣥॥ म꣢ही᳐या꣣ऽ२३४ज्ञा꣥॥ स्य꣣रा꣢ऽ३। स्या꣡ऽ२᳐रा꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा। प्सू꣣ऽ२३४दा꣥॥ उ꣢भा᳐का꣣ऽ२३४र्णा꣥॥ हि꣣रा꣢ऽ३। हा꣡ऽ२᳐इरा꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा॥ ण्या꣣ऽ२३४या꣥॥

21_0117 गाव उप - 02 ...{Loading}...
लिखितम्

११७-२।

ओ꣢इ᳐गा꣣ऽ२३४वाः꣥॥ उ꣢पवऽ३दा꣡। वाटा꣢ओ꣣ऽ२३४वा꣥। म꣢ही꣡꣯यज्ञस्य꣢रप्सु꣡दा꣢ऽ३॥ ओ꣢ऊ꣣ऽ२३४भा꣥॥ का꣡र्णा꣢ओ꣣ऽ२३४वा꣥॥ हि꣢रण्य꣡याऽ२३꣡४꣡५꣡॥

22_0118 अरमश्वाय गायत - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

११८-१। श्रौतकक्षे द्वे॥ द्वयोः श्रुतकक्षो गायत्रीन्द्रः॥

अ꣣रा꣢ऽ३४म्। अश्वा꣯य। गा꣥꣯याऽ६ता꣥॥ श्रू꣡तक꣢। क्षा꣯रा꣡ङ्गावा꣢इ᳐। आ꣣ऽ२३४रा꣥म्। हा꣢ऽ᳐३हा꣢इ॥ इ꣡। द्रास्याऽ२३धा꣢॥ हिं꣡माये꣢ऽ३। म्नो꣢। या꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा॥ ई꣣ऽ२३४ती꣥॥

22_0118 अरमश्वाय गायत - 02 ...{Loading}...
लिखितम्

११८-२।

अ꣤र꣥म꣤श्वा꣥꣯यगा꣯यता꣯। रमश्वो꣤वा꣥॥ या꣡गा꣯य꣢त। श्रु꣡त꣢क। क्षा꣡ऽ२३। हा꣢ऽ३हा꣢ऽ३इ। आ꣡राऽ२᳐ङ्गा꣣ऽ२३४वा꣥इ॥ आ꣡रमिन्द्रा꣢ऽ३। हा꣢ऽ३हा꣢॥ स्या꣡धा꣢꣯म्ना꣡। औ꣢ऽ३हो꣤वा꣥। हो꣤ऽ५इ॥ डा॥

23_0119 तमिन्द्रं वाजयामसि - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

११९-१। तन्वस्यसाम॥ तन्वः गायत्रीन्द्रः॥

त꣢मि꣡न्द्राऽ२३म्वा꣤꣯जया꣥꣯मसी॥ मा꣡हे꣯वृ꣢त्रा꣯। यहा꣡न्ता꣢ऽ१वेऽ᳒२᳒॥ सवा꣡र्षा꣢ऽ१वाऽ२३॥ ष꣢भो꣡ऽ२३४वा꣥। भू꣤ऽ५वोऽ६"हा꣥इ॥

23_0119 तमिन्द्रं वाजयामसि - 02 ...{Loading}...
लिखितम्

११९-२। दावसुनिधनम्॥ दावसुर्गायत्रीन्द्रः॥

त꣢मि꣡न्द्राऽ२३म्वा꣤꣯जया꣯मसिहा꣥उ॥ मा꣡हे꣯वृ꣢त्रा꣯। यहा꣡न्ता꣢ऽ१वेऽ२३। हो꣡वा꣢ऽ᳐३हा꣢इ॥ सवा꣡र्षा꣢ऽ१वाऽ२३। हो꣡वा꣢ऽ᳐३हा꣢॥ षभो꣡ऽ२३। भू꣡ऽ२᳐वा꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा॥ ए꣢ऽ᳐३। दा꣢꣯व꣡सू꣣ऽ२३꣡४꣡५꣡॥

23_0119 तमिन्द्रं वाजयामसि - 03 ...{Loading}...
लिखितम्

११९-३। निवेष्ट्वः॥ वसिष्ठो गायत्रीन्द्रः॥

त꣥मिन्द्रंवा꣯जया꣯मसीऽ६ए꣥॥ म꣢हाऽ३हा꣢इ। वृत्रा꣯ऽ३या꣡ह꣪न्तवेऽ᳒२᳒। ओऽ᳒२᳒। ईऽ᳒२᳒ई꣭ऽ३या꣢। ओ꣡मोवा꣢॥ सहे꣯वा꣡र्षाऽ᳒२᳒। ओऽ᳒२᳒। ईऽ᳒२᳒ई꣭ऽ३या꣢। ओ꣡मोवा꣢॥ वृष। भो꣡ऽ२᳐। या꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा॥ भू꣣ऽ२३४वा꣥त्॥

23_0119 तमिन्द्रं वाजयामसि - 04 ...{Loading}...
लिखितम्

११९-४। इडानाꣳसंक्षारः॥ इडा गायत्रीन्द्रः॥

औ꣢꣯हो꣯इहुवाऽ३हो꣡इ। त꣢मिन्द्रंवाऽ३जा꣤ऽ३या꣢꣯म꣣सि꣥॥ औ꣢꣯हो꣯इहुवाऽ३हो꣡इ। म꣢हे꣯वृत्राऽ३या꣤ऽ३ह꣢न्त꣣वे꣥꣯॥ औ꣢꣯हो꣯इहुवाऽ३हो꣡इ। स꣣वा꣢र्षा꣣ऽ२३४वॄ꣥॥ ष꣢भो꣡꣯भु꣢वत्। इ꣡डाऽ२३भा꣢ऽ३। ए꣤हीडा꣥। हो꣤ऽ५इ॥ डा॥

24_0120 त्वमिन्द्र बलादधि - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

१२०-१। शार्यातानि त्रीणि॥ त्रयाणां शर्यातिर्गायत्रीन्द्रः॥

हा꣥꣯उत्वमिन्द्रा॥ ब꣢ला꣡दधि꣢। हाऽ३उहा꣢उ। स꣡हसो꣢꣯जा꣯। ता꣡ओ꣢ऽ१जसा꣢ऽ३ः। हा꣢ऽ३उहा꣢उ॥ त्वाꣳ꣡सन्वृषा꣢ऽ३न्। हा꣢ऽ३उहा꣢उ॥ वृषा꣡ये꣢ऽ३त्। आ꣡ऽ२᳐सा꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा॥ वृ꣢धेऽ१॥

24_0120 त्वमिन्द्र बलादधि - 02 ...{Loading}...
लिखितम्

१२०-२।

त्व꣥मिन्द्रबला꣯दधीऽ६ए꣥॥ स꣡हसो꣢꣯जा꣯। ता꣡ओ꣢ऽ१जसः꣢᳐। इ꣣या꣢ऽ३हो꣡इ। इ꣣या꣢यो꣣ऽ२३४वा꣥॥ त्वाꣳ꣡सन्वृष꣢न्। इ꣣या꣢ऽ३हो꣡इ। इ꣣या꣢यो꣣ऽ२३४वा꣥॥ वृ꣢षा꣡ये꣢ऽ३त्। आ꣡ऽ२᳐सा꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा॥ म꣢हेऽ१॥

24_0120 त्वमिन्द्र बलादधि - 03 ...{Loading}...
लिखितम्

१२०-३।

त्व꣤मि꣥न्द्रब꣤ला꣥꣯द꣤धि꣥स꣤ह꣥साः꣤॥ जा꣡ताऽ᳒२ः᳒। ओ꣡꣯जसाऽ२३४ः। इहो꣥꣯इहा꣤॥ त्वाꣳ꣡सन्वृषा꣢ऽ३४न्। इहो꣥꣯इहा꣤॥ वृ꣢षा꣡ये꣢ऽ३त्। आ꣡ऽ२᳐सा꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा॥ ई꣣ऽ२३४हा꣥॥

25_0121 यज्ञ इन्द्रमवर्धयद्यद्भूमिम् - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

१२१-१। इन्द्राण्यास्साम॥ इन्द्राणी गायत्रीन्द्रः॥

य꣥ज्ञइन्द्रमवर्धाऽ६या꣥त्॥ य꣢द्भू꣡꣯मिम्। व्या। व्य꣪वाऽ२᳐र्त्ता꣣ऽ२३४या꣥त्॥ चा꣣ऽ२३४क्रा꣥। णा꣣ऽ२३४ओ꣥। पा꣡श꣢न्दिवि꣡॥ च꣢क्रा꣣꣯ण꣢ओ꣡ऽ२३॥ पा꣡ऽ२᳐शा꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा॥ दी꣣ऽ२३४वी꣥॥

26_0122 यदिन्द्राहं यथा - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

१२२-१। गौषूक्तम्॥ गौषूक्तिर्गायत्रीन्द्रः॥

य꣤दि꣥न्द्रा꣯हं꣤यथौ꣥꣯। हौ꣤꣯होवाहा꣥इ। तुवा꣤म्॥ ई꣢꣯शी꣡꣯यवस्व꣢औऽ᳒२᳒। हु꣡वाइ। हुवाये꣢। का꣡ईऽ᳒२᳒त्॥ स्तो꣯ता꣡꣯मे꣯गो꣯स꣢खौऽ᳒२᳒। हु꣡वाइ। हुवाये꣢॥ सा꣡याऽ२३त्। हो꣡ऽ२᳐वा꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा॥ अ꣢ग्नि꣡रा꣯हु꣢ता꣣ऽ२३꣡४꣡५ः꣡॥

26_0122 यदिन्द्राहं यथा - 02 ...{Loading}...
लिखितम्

१२२-२। आश्वसूक्तम्॥ आश्वसूक्तिर्गायत्रीन्द्रः॥

आ꣢औ꣣꣯हो꣤वाहा꣥इ। यदिन्द्रा꣯हाम्॥ य꣢था꣡। त्वम्। ऐ꣢꣯ही꣯यै꣣꣯ही꣢ऽ१। आइशी꣯य꣢वस्वआ꣡इकइत्॥ ऐ꣢꣯ही꣯यै꣣꣯ही꣢ऽ१॥ आऽ᳒२᳒इ। स्तो꣡ताऽ᳒२᳒मा꣡इगोऽ᳒२᳒॥ सखा꣡ऽ२३। सा꣡ऽ२᳐या꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा॥ शु꣢क्र꣡आ꣯हु꣢ता꣣ऽ२३꣡४꣡५ः꣡॥

27_0123 पन्यपन्यमित्सोतार आ - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

१२३-१। गौरीवितम्॥ गौरीवितिर्गायत्रीन्द्रः॥

प꣤न्यं꣥पन्यमि꣤त्। सो꣥꣯ताऽ६राः꣥॥ प꣡न्यंपन्यमित्सो꣢ऽ१ता꣢ऽ३राः꣢। आ꣡। धा꣢꣯वत꣣। म꣢दि꣣या꣤या꣥॥ सो꣡मंवी꣢꣯। रा꣡ऽ२३॥ यशू꣢ऽ३रा꣤ऽ५"याऽ६५६॥

28_0124 इदं वसो - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

१२४-१। गाराणि त्रीणि॥ त्रयाणां गरो गायत्रीन्द्रः॥

इ꣥दंवसाउ॥ सु꣢त꣡माऽ२३न्धाः꣢। पि꣡बा꣰꣯ऽ२सुपू꣯। णमु꣡दाऽ२३रा꣢ऽ३४म्॥ अ꣣ना꣢ऽ३४भ꣣या꣢ऽ३इन्। र꣤रोवा꣥॥ मा꣤ऽ५तोऽ६"हा꣥इ॥

28_0124 इदं वसो - 02 ...{Loading}...
लिखितम्

१२४-२।

इ꣥दा꣤ऽ३म्व꣢सो꣣꣯सु꣤तम꣥न्धाः॥ पि꣢बा꣡꣯सूऽ२३पू꣢ऽ३। ण꣡मूऽ२᳐दा꣣ऽ२३४रा꣥म्॥ आ꣡ऽ२३ना꣢॥ भाऽ᳒२᳒या꣡इन्। र꣪राऽ२३। हा꣢उवाऽ३॥ मा꣡꣯ते꣣ऽ२३꣡४꣡५꣡॥

28_0124 इदं वसो - 03 ...{Loading}...
लिखितम्

१२४-३। गारम्॥

इ꣥दंवसो꣯सुतमन्धाऽ६ए꣥॥ पि꣢बा꣯सुपू꣯ऽ३र्णा꣡मु꣪दरौ꣢꣯। होऽ३वा꣢। पि꣡बा꣯सुपू꣯र्णामु꣪दरौ꣢꣯। होऽ३वा꣢॥ आ꣡नाभा꣢ऽ३यी꣢न्॥ र꣡रिमा꣢꣯ता꣡। औ꣢ऽ३हो꣤वा꣥। हो꣤ऽ५इ॥ डा॥

[[अथ द्वितीय खण्डः]]

29_0125 उद्धेदभि श्रुतामघम् - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

१२५-१। ऐडं सौपर्णम्॥ शरुप्रवेतसं वा। त्रयाणां सुपर्णो गायत्रीन्द्रः॥ (सूर्यः)।

उ꣥द्घे꣯दभ्यो꣤वा꣥॥ श्रू꣡ता꣢᳐मा꣣ऽ२३४घा꣥म्। वृ꣢षा꣡भ꣢न्ना꣡। रि꣪याऽ२᳐पा꣣ऽ२३४सा꣥म्॥ आऽ᳒२᳒स्ता꣡। राऽ२३मे꣢॥ षा꣡इसू꣢꣯रिया꣡। औ꣢ऽ३हो꣤वा꣥। हो꣤ऽ५इ॥ डा॥

29_0125 उद्धेदभि श्रुतामघम् - 02 ...{Loading}...
लिखितम्

१२५-२। स्वारसौपर्णम्॥ शरुप्रवेतसं वा।

उ꣥द्घे꣯दभिश्रुता꣯माऽ६घा꣥म्॥ वृ꣤षभ꣣न्न꣤र्या꣥꣯। हि꣡म्। पा꣣ऽ२३४सा꣥म्॥ आ꣡स्ता꣢ऽ३उवा꣢॥ रा꣯मा꣡इ। षि꣢सू꣡ऽ२३४वा꣥। रा꣤ऽ५योऽ६"हा꣥इ॥

29_0125 उद्धेदभि श्रुतामघम् - 03 ...{Loading}...
लिखितम्

१२५-३। विलम्बसौपर्णम्॥ शरुप्रवेतसं वा।

उ꣤द्घे꣯द꣥भि꣤श्रु꣥ता꣤꣯म꣥घम्। ई꣤य꣥इ꣤याहा꣥इ॥ वृ꣤षभ꣣न्न꣤र्या꣥꣯। हा꣢ऽ३हा꣢ऽ३इ। पा꣡ऽ२३४सा꣥म्॥ आ꣡स्ता꣢ऽ३उवा꣢ऽ३॥ रा꣡ऽ२᳐मा꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा॥ षि꣢सू꣯रिया꣣ऽ२३꣡४꣡५꣡॥

30_0126 यदद्य कच्च - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

१२६-१। शाकलम्॥ शकलो गायत्री इन्द्रसूर्यौ॥य꣤दद्यकाऽ५च्चवृत्र꣤हान्॥ उ꣢द꣡गा꣯अभि꣢सू꣡꣯राऽ२३या꣢॥ सा꣡र्वाऽ᳒२᳒म्॥ ता꣡दिन्द्र꣢ता꣡ये꣢ऽ᳐३। हि꣡म्। वा꣢ऽ᳐३४५शोऽ६"हा꣥इ॥

31_0127 य आनयत्परावतः - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

१२७-१। आभरद्वसवे द्वे॥ द्वयोराभरद्वसुर्गायत्रीन्द्रः॥

य꣤आहा꣥उ॥ आ꣡नायाऽ᳒२᳒त्। आ꣡नायाऽ२३त्। पा꣡राऽ२᳐वा꣣ऽ२३४ताः꣥। सु꣡नी꣯तीतूऽ᳒२᳒। सु꣡नी꣯तीतूऽ२३। र्वा꣡शं꣢या꣣ऽ२३४दू꣥म्। इ꣡न्द्रस्सानाऽ᳒२ः᳒। इ꣡न्द्रस्सानाऽ२३ः॥ यू꣡ऽ२᳐वा꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा॥ सा꣣ऽ२३४खा꣥॥

31_0127 य आनयत्परावतः - 02 ...{Loading}...
लिखितम्

१२७-२।

य꣤आ꣯न꣥य꣤त्। प꣥रा꣯वाऽ६ताः꣥॥ सु꣡नी꣯ती꣯तुर्वशां꣢ऽ१या꣢ऽ३दू꣢म्॥ इ꣡न्द्रस्सनो꣯युवा꣢ऽ१सा꣢ऽ३खा꣢। इन्द्रो꣣ऽ२३४ग्ना꣥इ॥ इ꣢न्द्रा꣡औ꣢ऽ३होऽ२३४। ग्ना꣥इ॥ आ꣡इन्द्रो꣢꣯अ। ग्ना꣡ऽ२᳐। या꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा॥ ई꣣ऽ२३४न्द्राः꣥॥

32_0128 मा न - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

१२८-१। तान्वे द्वे॥ द्वयोस्तन्वो गायत्रीन्द्रः॥

मा꣥꣯नइन्द्रा꣯भिया꣯दा꣤इशाः꣥॥ सू꣡रो꣯अ꣢क्तु। षुवा꣡꣯याऽ२३मा꣢ऽ३४त्॥ तु꣣वा꣢ऽ३४यु꣣जा꣢॥ वना꣡इमाऽ२३ता꣢ऽ३४३त्। ओ꣡ऽ२३४५इ॥ डा॥

32_0128 मा न - 02 ...{Loading}...
लिखितम्

१२८-२।

मा꣥꣯ना꣤ऽ३आ꣢ऽ३इन्द्रा꣤꣯भिया꣥꣯दिशाः॥ सू꣢रो᳐आ꣣ऽ२३४क्तू꣥। षू꣢आ᳐या꣣ऽ२३४मा꣥त्॥ त्वा꣡꣯युजा꣯वनौ꣭ऽ३हो꣢॥ मतौऽ᳒२᳒। हु꣡वाइ। औ꣭ऽ३होऽ२३४५वाऽ६५६॥ ए꣢ऽ᳐३। य꣡यूऽ२३꣡४꣡५ः꣡॥