०१२ १

[[अथ द्वादशप्रपाठके प्रथमोऽर्धः]]

03_0439 ब्रह्माण इन्द्रम् - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

४३९-१। श्लोके द्वे॥ द्वयोः प्रजापतिस्त्रिष्टुबिन्द्रः॥

हा꣥꣯उस्वरता॥ ब्र꣢ह्मा꣡णाऽ᳒२ः᳒। इ꣡न्द्रम्। आ। म꣢ह꣡याऽ२᳐न्तो꣣ऽ२३४। कैः꣥॥ अ꣡वाऽ᳒२᳒र्द्धया꣡न्। अ꣢हये꣯ह᳐। त꣣वा꣢ऽ३४५इ। ऊऽ६५६॥ श्लो꣢꣯क꣡यताऽ२३꣡४꣡५꣡॥

03_0439 ब्रह्माण इन्द्रम् - 02 ...{Loading}...
लिखितम्

४३९-२।

हा꣥꣯उ। अभि। स्वरता॥ ब्र꣢ह्मा꣡꣯णआइन्द्राऽ᳒२᳒म्। मह꣡याऽ२᳐न्तो꣣ऽ२३४। कैः꣥॥ अ꣢वर्द्धा꣡याऽ᳒२᳒न्॥ अहये꣯हन्त꣡वाऽ२३४५ऊऽ६५६॥ श्लो꣣ऽ२३४काः꣥॥

04_0440 अनवस्ते रथमश्वाय - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

४४०-१। अनुश्लोके द्वे॥ द्वयोः प्रजापतिस्त्रिष्टुबिन्द्रः॥ त्वष्टा वा।

हा꣥꣯उस्वरता॥ स्व꣢रतस्व꣡राऽ२३ता꣢। आ꣡नव꣢स्ते꣯र꣡थ꣢म। श्वा꣯या꣡ता꣢ऽ१क्षूऽ२३४ः॥ हा꣥꣯उस्वरता। स्व꣢रतस्व꣡राऽ२३ता꣢। त्व꣡ष्टा꣢꣯व꣡ज्रं꣢पु꣡रुहू꣢꣯। ता꣡द्यु꣪मान्ताऽ२३४म्। हा꣥꣯उस्वरता॥ स्व꣢रतस्व꣡। राऽ२᳐। ता꣣ऽ२३४। औ꣥꣯हो꣯वा॥ स्व꣢रऽ३ता꣡ऽ२३꣡४꣡५꣡॥

05_0441 शं पदम् - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

४४१-१।

औ꣣꣯हो꣢᳐इ। श꣣म्प꣤दा꣥म्॥ म꣢घꣳ꣡रया꣢ऽ३१२३४इ। षिणाइ। न꣡का꣯ममव्रतो꣯हिनो꣯तिनस्पृश꣢त्॥ रयिमो꣣ऽ२३४५इ॥ डा॥

06_0442 सदा गावः - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

४४२-१। वाचस्सामनी द्वे॥ द्वयोर्वाग्पंक्तिर्वाक्॥

सा꣤दा꣥॥ गा꣡꣯वश्शुचयो꣯विश्व꣢धा꣡꣯याऽ२३साः꣢᳐॥ सा꣣ऽ२३४दा꣥॥ दा꣡इवा꣯अ꣢रो꣡ऽ२३४वा꣥॥ पा꣣ऽ२३४साः꣥॥

07_0443 आ याहि - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

४४३-१।

औ꣣꣯हो꣢ऽ३इ। आ꣤याही꣥॥ व꣡नाऽ᳒२᳒सा꣡꣯सहा। गावस्स꣢च। ता꣡व꣪र्त्तानीऽ᳒२᳒म्॥ या꣡त्। ऊऽ२३॥ ध꣢भिरो꣣ऽ२३४५इ॥ डा॥

08_0444 उप प्रक्षे - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

४४४-१। माधुछन्दसम्॥ मधुछन्दास्त्रिष्टुभ्मरुतः॥

ओ꣤वा। उप꣥प्रक्षे꣤꣯मधु꣥मतिक्षिय꣤न्तः꣥। ओ꣤वा॥ ओ꣡इ। पुष्ये꣯मरयिन्धी꣯महे꣯त꣢आ꣡ऽ२३इन्द्रा꣢। ओ꣡। वाओवा꣢॥ ओ꣡॥ वा꣢꣯हाऽ३१उवाऽ२३॥ ऊ꣢ऽ᳐३४पा꣥॥

09_0445 अर्चन्त्यर्कं मरुतः - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

४४५-१। मारुतम्॥ मरुतस्त्रिष्टुभ्मरुतः॥

अ꣤र्च्च꣥न्तिया꣤॥ क꣡म्मरुतस्सु꣢वा꣡ऽ२३र्काः꣢॥ आ꣡स्तो꣢꣯भता꣡इ॥ श्रु꣢तो꣡꣯युवा꣯सआइन्द्रा꣭ऽ३उवा꣢ऽ३॥ ऊ꣢ऽ᳐३४पा꣥॥

10_0446 प्र व - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

४४६-१। उद्वꣳशपुत्रः॥ प्रजापतिस्त्रिष्टुबिन्द्रो वृत्रहा॥

प्र꣥वाः꣤॥ आ꣡इन्द्रा꣯यवृत्रहान्त꣪माऽ२३या꣢॥ वा꣡इप्रा꣯यगा꣯थंगा꣢ऽ१या꣢ऽ३ता꣢। यां꣡जुजौ꣢वाऽ३। उ꣢प्। षा꣡ऽ२꣮तोऽ३५"हा꣢इ॥

[[अथ एकादश खण्डः]]

11_0447 अचेत्यग्निश्चिकितिर्हव्यवाड्न सुमद्रथः - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

४४७-१। शाम्ये द्वे॥ द्वयोर्धुरो गायत्र्यग्निः॥अ꣤चे꣥꣯ती꣤॥ अ꣢ग्निः꣡। चिकाऽ२३इती꣢ऽ३ः॥ हा꣡ऽ२३व्या꣢ऽ३॥ वा꣡ऽ२᳐ण्ना꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा॥ सु꣢म꣡द्रथा꣣ऽ२३꣡४꣡५ः꣡॥

11_0447 अचेत्यग्निश्चिकितिर्हव्यवाड्न सुमद्रथः - 02 ...{Loading}...
लिखितम्

४४७-२।

अ꣤चे꣥꣯तिया꣤॥ ग्ना꣡इश्चाइकाइतीऽ२३ः। हौ꣡꣯होइ। औ꣢ऽ३होऽ२३꣡४꣡५꣡॥ ह꣡व्याऽ२३॥ वा꣡ऽ२᳐ण्ना꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा॥ ए꣢ऽ᳐३। सु꣢म꣡द्रथा꣣ऽ२३꣡४꣡५ः꣡॥

12_0448 अग्ने त्वम् - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

४४८-१। गूर्द्दः॥ प्रजापतिः पंक्तिरग्निः॥

ओ꣤ग्ना꣥इ॥ त्व꣡न्नोऽ२३आ꣢। हि꣡म्माऽ२३। ताऽ२३४माः꣥। उ꣢त꣡त्रा꣢꣯ता꣡꣯शि꣢वो꣡꣯भु꣢वः॥ शिवो꣡꣯भुवाऽ२३ः॥ व꣤रोवा꣥। था꣤ऽ५योऽ६"हा꣥इ॥

12_0448 अग्ने त्वम् - 02 ...{Loading}...
लिखितम्

४४८-२।

अ꣥ग्नौ꣯। होइ। त्वौ꣯। होइ॥ नो꣢꣯अ꣡न्तमा꣢ऽ३१उवाऽ२३॥ ऊऽ२३४ता꣥॥ त्रा꣣꣯ता꣢᳐ओ꣣ऽ२३४वा꣥॥ शि꣢वो꣡꣯भु꣢वा꣣ऽ२३꣡४꣡५ः꣡॥

12_0448 अग्ने त्वम् - 03 ...{Loading}...
लिखितम्

४४८-३। गूर्द्दः॥ प्रजापतिः पंक्तिरग्निः॥

अ꣥ग्ने꣯तू꣢ऽ३व꣤न्नो꣥꣯अ꣤न्तमाः꣥॥ उ꣢त꣡त्रा꣢꣯ता꣡꣯शि꣢वो꣡꣯भु꣢वः॥ व꣡राऽ२३॥ औ꣯हौ꣢᳐हो꣣ऽ२३४वा꣥। था꣤ऽ५योऽ६"हा꣥इ॥

12_0448 अग्ने त्वम् - 04 ...{Loading}...
लिखितम्

४४८-४। अत्यर्द्दः॥ विश्वामित्रः पंक्तिरग्निः॥अ꣥ग्ने꣯। हो꣢ऽ३इ। त्व꣤न्नो꣥꣯अ꣤। तमाः꣥॥ उ꣢ताऽ᳒२᳒। हाऽ᳒२᳒इ। औ꣭ऽ३हो꣢ऽ३१इ॥ त्राताऽ२᳐॥ शि꣣वो꣢ऽ३४५॥ भू꣣ऽ२३४वाः꣥॥

13_0449 भगो न - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

४४९-१। सान्तनिके द्वे॥ द्वयोः प्रजापतिर्गायत्र्यग्निः॥

भा꣤गाः꣥॥ न꣡चित्रः॥ अग्निर्महोऽ२३ना꣢ऽ३म्॥ दा꣡ऽ२᳐धा꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा॥ ति꣢र꣡त्ना꣣ऽ२३꣡४꣡५꣡म्॥

13_0449 भगो न - 02 ...{Loading}...
लिखितम्

४४९-२।

भ꣤गो꣥꣯न꣤चि꣥त्राः꣤॥ अ꣢ग्नि꣡र्महोऽ२३ना꣢ऽ३म्॥ दा꣡ऽ२᳐धा꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा॥ ए꣢ऽ᳐३। ति꣢र꣡त्ना꣣ऽ२३꣡४꣡५꣡म्॥

14_0450 विश्वस्य प्र - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

४५०-१। धनम् द्वे॥ द्वयोः प्रजापतिर्गायत्री विश्वेदेवाः॥

वि꣥श्वस्या॥ प्र꣢स्तो꣡भाऽ᳒२᳒। पुरो꣯वा꣯साऽ३न्। य꣡दिवे꣣ऽ२३४हा꣥॥ नू꣡ऽ२३॥ ना꣡ऽ२᳐मा꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा॥ धा꣣ऽ२३४ना꣥म्॥

14_0450 विश्वस्य प्र - 02 ...{Loading}...
लिखितम्

४५०-२। धर्मसाम॥

औ꣥꣯हो꣯इविश्वस्या॥ प्र꣢स्तो꣡भाऽ᳒२᳒। पुरौ꣯हो꣯वऽ३हा꣢इ। वा꣡साऽ᳒२᳒न्। य꣡दिवे꣯हा॥ नूऽ२३॥ ना꣡ऽ२᳐मा꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा॥ धा꣣ऽ२३४र्मा꣥॥

15_0451 उषा अप - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

४५१-१। उषसस्साम॥ उषा पंक्तिरुषा॥उ꣥षा꣯अपा॥ स्वा꣡सु꣢ष्टा꣣ऽ२३४माः꣥। सं꣡वाऽ᳒२᳒र्त्तया꣡। ति꣪वाऽ२᳐र्त्ता꣣ऽ२३४नी꣥म्॥ सू꣡ऽ२᳐जा꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा॥ ए꣢ऽ᳐३। त꣡ता꣣ऽ२३꣡४꣡५꣡॥

16_0452 इमा नु - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

४५२-१। भारद्वाजम्॥ भरद्वाजः पंक्तिर्विश्वेदेवाः॥

इ꣥मा꣤꣯नुकं꣥भू꣤ऽ५व꣤ना॥ सी꣢꣯ष꣡धाऽ२᳐इमा꣣ऽ२उवाऽ३। ई꣢ऽ३४हा꣥। इ꣢न्द्रश्च꣡वाऽ२᳐इश्वा꣣ऽ२उवाऽ३। ई꣢ऽ३४हा꣥॥ च꣣दे꣢ऽ३। वा꣡ऽ२᳐या꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा॥ वी꣣ऽ२३४शाः꣥॥

17_0453 वि स्रुतयो - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

४५३-१। रातिसाम॥ इन्द्रो गायत्रीन्द्रः॥

वि꣤स्रू꣥वि꣤स्रू꣥॥ ता꣡याऽ᳒२᳒स्ता꣡याऽ᳒२ः᳒। यथा꣯प꣡थः॥ आइन्द्राऽ᳒२᳒त्वा꣡द्याऽ२३॥ तु꣢रो꣡ऽ२३४वा꣥। ता꣤ऽ५यो"ऽ६हा꣥इ॥

18_0454 अया वाजम् - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

४५४-१। भारद्वाजम्॥ भरद्वाजस्त्रिष्टुबिन्द्रः॥

अ꣥या꣯वा꣯जाम्॥ दा꣡इवहि। तꣳ꣢स꣣ने꣤मा꣥। म꣢दे꣯मशऽ३ता꣡हि꣪माऽ᳒२ः᳒॥ शता꣡ऽ२३॥ हा꣡ऽ२᳐इमा꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा॥ सु꣢वीऽ३रा꣡ऽ२३꣡४꣡५ः꣡॥

19_0455 ऊर्जा मित्रो - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

४५५-१। ऐषम्॥ इषस्त्रिष्टुभ्मित्रावरुणौ॥

ऊ꣤र्जा꣥॥ मि꣡त्रो꣯वरुणᳲपिन्व꣢ता꣡ऽ२३इडाः꣢॥ पी꣡꣯वरी꣯मिषंकृणुही꣯नआइन्द्रा꣭ऽ३उवा꣢ऽ३॥ ऊ꣢ऽ᳐३४पा꣥॥

20_0456 इन्द्रो विश्वस्य - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

४५६-१। वैराजे द्वे॥ द्वयोरिन्द्रो गायत्रीन्द्रः॥इ꣣न्द्रो꣢ऽ३४॥ वि꣣श्व꣤स्य꣥रा꣯॥ ज꣢ति"हो꣣ऽ२३४५इ॥ डा॥

20_0456 इन्द्रो विश्वस्य - 02 ...{Loading}...
लिखितम्

४५६-२।

इ꣡न्द्राऽ᳒२᳒होऽ१इ॥ वाऽ᳒२᳒इश्वा꣡॥ स्य꣢राऽ᳒२᳒ज꣡ति꣢॥ हो꣡वाऽ२३हो꣡ऽ२३४५इ॥ डा॥

[[अथ द्वादश खण्डः]]

21_0457 त्रिकद्रुकेषु महिषो - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

४५७-१। वाजजित्॥ प्रजापतिरष्टिर्विष्णुः॥

ओ꣢᳐इत्रि꣣क꣥। द्रु꣡काइ। षू꣢ऽ३म꣡हि꣢षो꣡। यवा꣢꣯शि꣣र꣥म्। तु꣣वी꣢शु꣣ष्मः꣥॥ ओ꣢᳐इतृ꣣ऽ२३४म्पा꣥त्। सो꣡꣯माम्। अपिबा꣢ऽ३द्वि꣡। ष्णुना꣢꣯सु꣣त꣥म्। य꣣था꣢꣯व꣣श꣥म्। ओ꣢᳐इसा꣣ऽ२३४ई꣥म्। म꣡मा। दा꣢ऽ३म꣡हि꣢क꣡। मक꣢र्त꣣वे꣥꣯। म꣣हा꣢꣯मु꣣रु꣥म्॥ ओ꣢᳐इसा꣣ऽ२३४इना꣥म्। स꣡श्चात्। दे꣢꣯वो꣡꣯दे꣢꣯वा꣡म्। स꣤त्यइन्दुस्सत्याऽ५मिन्द्राउ॥ वा॥

22_0458 अयं सहस्रमानवो - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

४५८-१। गोरांगिरसस्य सामनी द्वे॥ द्वयोर्गौरतिजगतीन्द्रः॥

अ꣥यꣳसहो꣤हा꣥इ॥ स्र꣣मा꣢᳐ना꣣ऽ२३४वाः꣥। दृ꣢शाᳲ꣡क꣢वी꣯ना꣡꣯म्मतिर्ज्यो꣯। ति꣢र्विधा꣣ऽ२३४र्मा꣥॥ ब्र꣢ध्ना꣡स्स꣢मा꣡इची꣢꣯रुष꣡सः꣢। समा꣡इरा꣢ऽ१याऽ२᳐त्। अ꣣रा꣢ऽ३। हो꣡वा꣢ऽ३। पा꣤। स꣥स्स꣤चे꣥꣯। त꣣सा꣢ऽ३ः। स्वा꣡सरे꣢꣯॥ मन्यु꣡माऽ२३न्ताः꣢᳐॥ चि꣣तो꣢᳐॥ या꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा॥ गो꣣ऽ२३꣡४꣡५ः꣡॥

22_0458 अयं सहस्रमानवो - 02 ...{Loading}...
लिखितम्

४५८-२।

अ꣥यꣳसहस्रमा꣯नाऽ६वाः꣥॥ दृ꣢शाᳲ꣡क꣢वी꣯ना꣡꣯मतिर्ज्यो꣯। ति꣢र्वि꣡धाऽ२३र्मा꣢॥ ब्रध्ना꣡स्स꣢मा꣡इची꣢꣯रुष꣡सः꣢। समा꣡इरा꣢ऽ१याऽ२३त्। ओ꣭ऽ३वा꣢। अरे꣯प꣡स꣢स्स꣡चे꣢꣯तसः। स्वा꣡सरे꣢꣯॥ मन्यु꣡माऽ२३न्ताः꣢। ओ꣭ऽ३वा꣢᳐। चि꣣ता꣢ऽ३ः। गो꣡ऽ२᳐रा꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा॥ बा꣣ऽ२३꣡४꣡५꣡॥

23_0459 एन्द्र याह्युप - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

४५९-१। प्रयस्वत्॥ प्रजापति(रष्टि) रत्यष्टिरिन्द्रः॥

ए꣤꣯न्द्र꣥या꣯ह्यु꣤प꣥नाः꣤॥ पा꣡राऽ२᳐वा꣣ऽ२३४ताः꣥। ना꣡꣯यमच्छा। वि꣢द꣡था꣯नाइ। वास꣢᳐त्पा꣣ऽ२३४तीः꣥। अ꣡स्तारा꣢ऽ३जे꣢ऽ३। वा꣡स꣢त्पा꣣ऽ२३४तीः꣥। ह꣤वा꣥꣯महे꣯त्वा꣯प्र꣤य꣥स्वन्ताः꣤। सु꣢ता꣡इषू꣢ऽ३वा꣢॥ पुत्रा꣡꣯सो꣯ना। पि꣢त꣡रंवा। जासा꣢᳐ता꣣ऽ२३४या꣥इ॥ मꣳ꣡हाइष्ठा꣢ऽ३म्वा꣢ऽ३॥ जा꣡ऽ२३सा꣤ऽ३। ता꣢ऽ३४५योऽ६"हा꣥इ॥

24_0460 तमिन्द्रं जोहवीमि - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

४६०-१। अक्षय्यम्॥ रेवत्प्रजापतिरतिजगतीन्द्रः॥

त꣤मिन्द्रं꣥जो꣯हवी꣯मिमघ꣤वा꣥꣯ना꣤म्॥ ऊ꣣ऽ२३४ग्रा꣥म्। स꣢त्रा꣡꣯होइ। दधा꣯नमप्रताऽ२᳐इष्कू꣣ऽ२३४ता꣥म्। श्र꣡वाऽ२३ꣳसा꣡ऽ२᳐इ। भू꣣ऽ२३४री꣥। मꣳ꣡हिष्ठो꣯गी꣯र्भिरा। च꣪याऽ२᳐ज्ञा꣣ऽ२३४याः꣥। वा꣢꣯वा꣡र्त्ताऽ᳒२᳒॥ रा꣯ये꣡꣯होइ। नो꣢꣯विश्वा꣯सुपा꣣ऽ२३४था꣥। कृ꣣णो꣢ऽ३। तू꣡ऽ२᳐वा꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा॥ ऊ꣣ऽ२३४पा꣥॥

25_0461 अस्तु श्रौषट् - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

४६१-१। याज्ञतुरम्॥ यज्ञतुरोऽत्यष्टिरिन्द्रः॥

अ꣥स्तुश्रौ꣯षाट्॥ पु꣢रो꣡꣯अग्निंधि꣢या꣡꣯दधे꣢꣯। हा꣡। औ꣢ऽ३होऽ२३४वा꣥। आ꣡꣯नुत्यच्छर्द्धो꣢꣯दि꣡। व्याम्। वृ꣪णाऽ२३हा꣢᳐इ। मा꣣ऽ२३४हे꣥। इ꣡न्द्रावा꣢ऽ३यू꣢ऽ३। वृ꣡णीऽ२᳐मा꣣ऽ२३४हा꣥इ। य꣡द्धक्रा꣯णा꣯विवा꣢ऽ१स्वा꣢ऽ३ता꣢इ। ना꣯भा꣡꣯सन्दा꣯यना꣢ऽ३। व्या꣤सा꣥इ। अ꣡धप्रनू꣯नमुपया। ति꣢धी꣯ता꣡या ऽ२३ः। हा꣡। औ꣢ऽ३होऽ२३४वा꣥॥ दा꣡इवा꣢ऽ१ꣳअच्छाऽ२३। हा꣡। औ꣢ऽ३होऽ२३४वा꣥। न꣢धो꣡ऽ२३४वा꣥। ता꣤ऽ५योऽ६"हा꣥इ॥

26_0462 प्र वो - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

४६२-१। एवयामरुतस्साम॥ एवयामरुदतिजगतीन्द्रः॥

प्रा꣡ऽ२३४। वो꣯म꣥हे꣤꣯म꣥त꣤यो꣥꣯यन्तुवि꣤ष्ण꣥वो꣤। हाइ॥ म꣢रुत्वताऽ३इगि꣡रिजा꣢ऽ३४ः। हा꣣꣯हो꣢इ। ए꣯वा꣡याऽ२᳐। मा꣣ऽ२३४रू꣥त्। प्रा꣡श꣪र्द्धायाऽ᳒२᳒। प्रा꣡य꣪ज्यावाऽ२३इ। सू꣡खा꣢᳐दा꣣ऽ२३४या꣥इ। त꣡वसे꣢꣯भंद꣡दिष्ट꣢ये꣯॥ धु꣡ना᳐इव्रा꣢ऽ३ता꣢ऽ३॥ या꣡ऽ२᳐शा꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा॥ वा꣣ऽ२३४से꣥॥

27_0463 अया रुचा - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

४६३-१। विषमाणि त्रीणि॥ भरद्वाजोऽत्यष्टिस्सोमः॥

आ꣤या꣥॥ रु꣡चा। हरि। ण्या꣢᳐पु꣣ना꣤नाः꣥। वि꣡श्वा꣯द्वे꣯षाꣳ꣯सितरतीऽ२३सा꣤ऽ३यु꣢ग्व꣣भिः꣥॥ सू꣢꣯रो꣡ऽ२३ना꣢ऽ३। सा꣡ऽ२᳐यू꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा॥ ग्वा꣣ऽ२३४भीः꣥॥

27_0463 अया रुचा - 02 ...{Loading}...
लिखितम्

४६३-२।

अ꣥या꣯रु꣣चा꣢꣯ह꣣रि꣤ण्या꣥॥ पु꣢ना꣯नः꣡। विश्वा꣯द्वाऽ२३इषा꣢। सा꣡इतर꣢। त्यौ꣯हो꣯। वाऽ३हा꣢ऽ३इ। सा꣡यूऽ२᳐ग्वा꣣ऽ२३४भीः꣥॥ सू꣢꣯रो꣡ऽ२३ना꣢᳐॥ स꣣यू꣢ऽ३ग्वा꣤ऽ५"भाऽ६५६इः॥

27_0463 अया रुचा - 03 ...{Loading}...
लिखितम्

४६३-३।

अ꣤या꣣꣯रु꣤चा꣣꣯हरि꣤ण्या꣥꣯। पू꣡ऽ२३४। ना꣯नो꣯विश्वा꣥꣯द्वे꣤षा꣥॥ सा꣡इतर꣢ति। सा꣡यु꣪ग्वाभीऽ᳒२ः᳒। सू꣡रोना꣢ऽ३। सा꣡यूऽ२᳐ग्वा꣣ऽ२३४भीः꣥। धा꣤꣯रा꣥꣯पृष्ठा꣤। स्या꣡रोऽ᳒२᳒चता꣡इ। पु꣢ना꣡नोआ꣢ऽ३। रू꣡षो꣢᳐हा꣣ऽ२३४रीः꣥। वि꣤श्वा꣥꣯यद्रू꣤। पा꣡परि꣢या꣯। सा꣡ऋ꣪क्वाभीऽ᳒२ः᳒॥ स꣡प्तासी꣢ऽ३ये꣢ऽ३॥ भा꣡ऽ२३इरा꣤ऽ३। क्वा꣢ऽ३४५भोऽ६"हा꣥इ॥

28_0464 अभि त्यम् - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

४६४-१। सवितुस्साम॥ सवितात्यष्टिः सविता॥

अ꣥भि꣤त्यन्दे꣥꣯वꣳ꣤स꣥विता꣤꣯र꣥म्। औ꣯हौ꣤꣯होवाहा꣥इ॥ ओ꣡꣯णाऽ२३४योः꣥। क꣢वि꣡क्राऽ२३४तू꣥म्। आ꣢र्चा᳐मी꣣ऽ२३४सा꣥। त्या꣢सा᳐वा꣣ऽ२३४ꣳरा꣥। त्न꣢धा꣡꣯माऽ२३४भी꣥। प्रि꣢य꣡म्माऽ२३४ती꣥म्। औ꣢꣯हो꣡꣯औ꣢꣯हो꣡वाऽ२३४हा꣥उ॥ ऊ꣢र्ध्वा᳐या꣣ऽ२३४स्या꣥। आ꣢मा᳐ती꣣ऽ२३४र्भाः꣥। अ꣢दि꣡द्यूऽ२३४ता꣥त्। स꣢वी꣡꣯माऽ२३४नी꣥। औ꣢꣯हो꣡꣯औ꣢꣯हो꣡वाऽ२३४हा꣥उ॥ ही꣢र᳐ण्या꣣ऽ२३४पा꣥। णी꣢रा᳐मी꣣ऽ२३४मी꣥। त꣢सु꣡क्राऽ२३४तूः꣥। औ꣢꣯हो꣡꣯औ꣢꣯हो꣡वाऽ२३꣡४꣡५꣡हाउ। वा॥ ए꣢ऽ᳐३। कृ꣢पा꣡꣯सुवाऽ२३꣡४꣡५ः꣡॥

29_0465 अग्निं होतारम् - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

४६५-१। भारद्वाजे द्वे॥ भरद्वाजोऽत्यष्टिरग्निः॥

अ꣥ग्निꣳहो꣯ता॥ र꣢म्मन्ये꣯ऽ३दा꣡स्व꣢न्तम्। ओ᳐ऽ३वा꣢ऽ३। वा꣡सो꣢᳐स्सू꣣ऽ२३४नू꣥म्। स꣢हसो꣯जा꣯ऽ३ता꣡वे꣢ऽ१दासाऽ᳒२᳒म्। विप्रन्नजा꣯। ओ᳐ऽ३वा꣢ऽ३। त꣡वेऽ२᳐दा꣣ऽ२३४सा꣥म्। य꣢ऊ꣡र्ध्वा꣢ऽ१याऽ᳒२᳒। सुवा꣡ध्वा꣢ऽ१राऽ२ः꣮। दे꣯वो꣯दे꣯वा꣯। ओ᳐ऽ३वा꣢ऽ३। चि꣡याऽ२᳐का꣣ऽ२३४र्पा꣥। घृतो꣤वा। स्य꣢वि꣡भ्रा꣰꣯ऽ२ष्टिम्। अनुशुक्रशा। ओ᳐ऽ३वा꣢। चि꣡षः॥ आ꣯जुह्वाऽ२३ना꣢॥ स्यसा। ओ᳐ऽ३वा꣢ऽ३। पा꣡ऽ२᳐इषा꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा॥ ऊ꣣ऽ२३४पा꣥॥

29_0465 अग्निं होतारम् - 02 ...{Loading}...
लिखितम्

४६५-२।

अ꣤ग्निꣳ꣣हो꣯ता꣤꣯र꣥म्मन्ये꣯। दा꣡ऽ२३४। स्वन्तं꣥व꣤सो꣥꣯स्सू꣯नु꣤म्॥ स꣢हसो꣯जा꣯ऽ३ता꣡वे꣢ऽ१दासाऽ᳒२᳒म्। विप्रन्नजा꣯ऽ३ता꣡वे꣢ऽ१दासाऽ᳒२᳒म्। यऊ꣯र्ध्वया꣯ऽ३सू꣡व꣪ध्वाराऽ᳒२ः᳒। दे꣯वो꣯दे꣯꣯वा꣯ऽ३चा꣡या꣢ऽ१कृपाऽ᳒२᳒। घृता꣡स्य꣢वि꣡भ्रा꣢꣯ष्टिम꣡नुशु꣢। क्रा꣡शो꣢ऽ१चिषाऽ᳒२ः᳒। आ꣡꣯जूह्वा꣢ऽ३ना꣢ऽ३॥ स्या꣡ऽ२३सा꣤ऽ३। पा꣢ऽ३४५इषोऽ६"हा꣥इ॥

29_0465 अग्निं होतारम् - 03 ...{Loading}...
लिखितम्

४६५-३। अवभृथसाम॥ बृहस्पतिरत्यष्टिरग्निः॥

अ꣣हा꣢वो᳐हा꣣ऽ२३४वाः꣥।(त्रिः)। अ꣢ग्नि꣡ष्टपती। प्र꣣ति꣢द꣣ह꣤ती꣥। अ꣢ग्निꣳ꣡हो। ता꣢꣯रम्माऽ३न्ये꣤ऽ३दा꣢꣯स्व꣣न्त꣥म्॥ व꣢सोः꣡। सू꣢꣯नुꣳसहसो꣯जाऽ३ता꣤ऽ३वे꣢꣯द꣣स꣥म्। वि꣢प्रा꣡म्। न꣢जाऽ३ता꣤ऽ३वे꣢꣯द꣣स꣥म्। य꣢ऊ꣡। ध्व꣢याऽ३सू꣤ऽ३व꣢ध्व꣣रः꣥। दे꣢꣯वो꣡। दे꣢꣯वाऽ३ची꣤ऽ३या꣢꣯कृ꣣पा꣥꣯॥ घृ꣢ता꣡। स्य꣢विभ्रा꣯ष्टिमनुशूऽ३क्रा꣤ऽ३शो꣢꣯चि꣣षः꣥॥ आ꣢꣯जू꣡। ह्वा꣢꣯नाऽ३स्या꣤ऽ३स꣢र्पि꣣षः꣥। अ꣣हा꣢वो᳐हा꣣ऽ२३४वाः꣥। (त्रिः)। अ꣢ग्नि꣡ष्टपती। प्र꣣ति꣢द꣣हा꣤ऽ५ताऽ६५६इ॥ ए꣢ऽ᳐३। वि꣡श्वꣳ꣢स꣡मत्रिणंद꣢ह।(द्वे-द्विः)। ए꣢ऽ᳐३। वि꣡श्वꣳ꣢स꣡मत्रिणंद꣢हा꣣ऽ२३꣡४꣡५꣡॥

29_0465 अग्निं होतारम् - 04 ...{Loading}...
लिखितम्

४६५-४। प्रवर्ग्यसाम॥ बृहस्पतिरत्यष्टिरग्निः॥

त्य꣢ग्ना᳐इः। प्र꣣ति꣢द꣣ह꣤ती꣥। हा꣢उ᳐हो꣣ऽ५हाउ। अ꣢ग्निꣳ꣡हो। ता꣢꣯रम्माऽ३न्ये꣤ऽ३दा꣢꣯स्व꣣न्त꣥म्॥ व꣢सोः꣡। सू꣢꣯नुꣳसहसो꣯जाऽ३ता꣤ऽ३वे꣢꣯द꣣स꣥म्। वि꣢प्रा꣡म्। न꣢जाऽ३ता꣤ऽ३वे꣢꣯द꣣स꣥म्। य꣢ऊ꣡। ध्व꣢याऽ३सू꣤ऽ३व꣢ध्व꣣रः꣥॥ दे꣢꣯वो꣡। दे꣢꣯वाऽ३ची꣤ऽ३या꣢꣯कृ꣣पा꣥꣯॥ घृ꣢ता꣡। स्य꣢विभ्रा꣯ष्टिमनुशूऽ३क्रा꣤ऽ३शो꣢꣯चि꣣षः꣥॥ आ꣢꣯जू꣡। ह्वा꣢꣯नाऽ३स्या꣤ऽ३स꣢र्पि꣣षः꣥। त्य꣢ग्ना᳐इः। प्र꣣ति꣢द꣣ह꣤ती꣥। हा꣢उ᳐हो꣣ऽ५हा᳐उ। वा॥ ए꣢ऽ᳐३। वि꣡श्वꣳ꣢स꣡मत्रिणंद꣢ह। एऽ᳐३। वि꣡श्वं꣢व्य꣡त्रिणंद꣢ह। एऽ᳐३। वि꣡श्व꣢न्य꣡त्रिणंद꣢हा꣣ऽ२३꣡४꣡५꣡॥

४६६।१। ऐषम्॥ इषोऽष्टिरिन्द्रः॥

ता꣡ऽ२३४वत्यन्नाऽ५रियन्नृ꣤ताउ॥ अ꣢प꣡इन्द्राऽ᳒२᳒। प्र꣡थमंपूऽ२᳐। र्वि꣣यं꣢दि꣣वि꣥। प्र꣣वा꣢꣯। चि꣣यं꣢कृ꣣त꣥म्। यो꣢꣯दे꣡꣯वास्याऽ᳒२᳒। श꣡वसाप्राऽ२᳐। रि꣣णा꣢꣯अ꣣सु꣥। रि꣣ण꣢न्न꣣पः꣥। भु꣢वो꣡꣯विश्वाऽ᳒२᳒म्। अ꣡भ्यदाऽ२᳐इ। व꣣मो꣢꣯ज꣣सा꣥꣯। वि꣣दे꣢꣯दू꣣꣯र्ज꣥म्। श꣣ता꣢᳐क्रा꣣ऽ२३४तूः꣥॥ वि꣤दाऽ५-इदिषाउ॥ वा॥ ओ꣡म्॥