०११ १

[[अथ एकादशप्रपाठके प्रथमोऽर्धः]]

11_0401 आ गन्ता - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

४०१-१। बृहत्कम्॥ बृहत्ककुभ्मरुतः॥

आ꣤꣯ग꣥न्ता꣤॥ मा꣢꣯रिष꣡ण्याऽ२३ता꣢। प्रा꣡स्था꣯वा꣢꣯नो꣯मा꣡꣯पस्था꣢꣯त। सा꣡म꣪न्यावाऽ᳒२ः᳒॥ दृ꣡ढाची꣢ऽ३द्या꣢ऽ३॥ म꣤योवा꣥। ष्णा꣤ऽ५वोऽ६"हा꣥इ॥

12_0402 आ याह्ययउ - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

४०२-१। सौयवसानि त्रीणि॥ त्रयाणां सूयवसः ककुबिन्द्रः॥

आ꣤꣯या꣥꣯ही꣤॥ अ꣢य꣡मिन्दवे꣯। श्वपाऽ२३ता꣢इ। गो꣡पत꣢उ। र्वा꣡रा꣢ऽ१पाताऽ२३४इ॥ सो꣣꣯मा꣢ऽ३म्॥ सो꣡꣯माऽ२३। पा꣡ऽ२᳐ता꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा॥ पी꣣ऽ२३४बा꣥॥

12_0402 आ याह्ययउ - 02 ...{Loading}...
लिखितम्

४०२-२।

आ꣤꣯या꣥꣯हिया꣤॥ या꣢ऽ३मा꣡इन्दा꣢ऽ३वे꣢। आ꣡श्वप꣢ते꣯गो꣡꣯पते꣢꣯। ऊ꣡। र्व꣪राऽ२३हा꣢ऽ३इ। पा꣢ऽ३ता꣢इ॥ सो꣡ऽ२३४मꣳहा꣥इ॥ सो꣡। म। पते꣢ऽ३हा꣢ऽ३इ। पा꣡ऽ२३४इबा। ए꣥꣯हियाऽ६हा꣥। हो꣤ऽ५इ॥ डा॥

12_0402 आ याह्ययउ - 03 ...{Loading}...
लिखितम्

४०२-३।

आ꣥꣯या꣯ह्ययमिन्दाऽ६वा꣥इ॥ अ꣢श्वा꣡पा꣢ऽ१ताऽ᳒२᳒इ। गो꣯पा꣡ताऊ꣢ऽ३। र्व꣡राऽ२᳐पा꣣ऽ२३४ता꣥इ॥ सो꣡मꣳसोमा꣢ऽ३१॥ प꣢ता꣡इ। पिबा꣢ऽ३ओ꣡ऽ२३४वा꣥॥ ऊ꣣ऽ२३४पा꣥। ऊ꣤पा꣥॥

13_0403 त्वया ह - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

४०३-१। धेनुषाम॥ मरुतः ककुबिन्द्रः॥

त्व꣥या꣯हस्वीत्॥ यू꣡जा꣯व꣢यम्। प्रा꣡ति꣪श्वासाऽ᳒२᳒। तं꣡वृष꣢भ। ब्रू꣡वी꣢ऽ१माहाऽ२३४इ॥ सꣳ꣣स्था꣢ऽ३इ॥ जा꣡नस्य꣢गो꣡ऽ२३४वा꣥॥ मा꣣ऽ२३४ताः꣥॥

08_0494 स पवस्व - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

४९४-१। वार्त्रघ्नम्॥ इन्द्रो गायत्रीन्द्रो वृत्रहा॥

स꣣हो꣢ऽ३४३इ। प꣢व꣣स्व꣥॥ य꣡आऽ᳒२᳒विथा꣡। इ꣢न्द्रं꣡वृत्रा꣢ऽ३। या꣡ह꣢न्ता꣣ऽ२३४ वे꣥। ओ꣡वा꣢ऽ३ओ꣤वा꣥॥ व꣢व्रि꣡वाऽ२३ꣳसा꣢म्॥ मा꣡ही꣢꣯रपा꣡। औ꣢ऽ३हो꣤वा꣥। हो꣤ऽ५इ॥ डा॥

15_0405 त्वं न - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

४०५-१। आभरे द्वे॥ द्वयोरिन्द्रः ककुबिन्द्रः॥

त्व꣤न्न꣥ई꣤॥ द्र꣢आ꣡꣯भाऽ२३रा꣢। ओ꣡जो꣯नृ꣢म्णम्। शा꣡तक्रता꣢ऽ३उ। वी꣡च꣢र्षा꣣ऽ२३४णा꣥इ॥ आ꣡वी꣯रंपा꣢ऽ३हा꣢ऽ३॥ ता꣡ऽ२᳐ना꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा॥ सा꣣ऽ२३४हा꣥म्॥

15_0405 त्वं न - 02 ...{Loading}...
लिखितम्

४०५-२।

त्व꣤न्न꣥इन्द्रा꣤॥ आ꣡꣯भाऽ२३रा꣢। ओ꣡जो꣯नृ꣢म्णम्। शा꣡तक्रता꣢ऽ३उ। वी꣡च꣢र्षा꣣ऽ२३४णा꣥इ॥ आ꣢꣯वी꣡꣯राऽ२३म्पा꣢॥ त꣣ना꣯स꣢हा꣡म्। औऽ२३हो꣤वा꣥। हो꣤ऽ५इ॥ डा॥

16_0406 अधा हीन्द्र - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

४०६-१। ऐषिराणि त्रीणि॥ त्रयाणां वायुः ककुबिन्द्रः॥

अ꣤धा꣥꣯हिया꣤॥ द्र꣢गि꣡र्वाऽ२३णाः꣢। उ꣡पत्वा꣢꣯का꣯। मई꣡꣯माऽ२३हा꣢इ। ससृ꣡ग्माऽ२३हा꣢इ॥ ऊ꣡देऽ᳒२᳒॥ वग्मा꣡ऽ२३न्ताः꣢। उ꣡दाऽ२३भा꣢इः। इ꣤डाऽ५भीः। हो꣤ऽ५इ॥ डा॥

16_0406 अधा हीन्द्र - 02 ...{Loading}...
लिखितम्

४०६-२।

अ꣥धा꣯ही꣯न्द्रगिर्वाऽ६णाः꣥॥ ऊ꣡पत्वा꣢꣯का꣯। मा꣡ई꣢ऽ१माहाऽ᳒२᳒इ। सा꣡सृ꣪ग्माहाऽ᳒२᳒इ॥ ऊ꣡दे꣢ऽ१वाग्माऽ२३॥ त꣤ओवा꣥। दा꣤ऽ५भोऽ६"हा꣥इ॥

16_0406 अधा हीन्द्र - 03 ...{Loading}...
लिखितम्

४०६-३।

अ꣥धा꣯ही꣯न्द्रगिर्वणाऽ६ए꣥॥ उ꣡पत्वा꣢꣯का꣯। मा꣡ई꣢ऽ१माहा꣢ऽ३इ। सा꣡सृ꣢ग्मा꣣ऽ२३४हा꣥इ॥ उ꣢दौ꣭ऽ३हो꣢ऽ३। वा꣭ऽ३हा꣢ऽ३॥ ग्मा꣡ऽ२᳐। त꣣ऊ꣢ऽ३४औ꣥꣯हो꣯वा॥ द꣢भीऽ३रे꣡ऽ२३꣡४꣡५꣡॥

17_0407 सीदन्तस्ते वयो - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

४०७-१। सीदन्तीये द्वे॥ द्वयोः प्रजापतिः ककुबिन्द्रः॥

सा꣢ऽ᳐३४इ। दन्त꣥स्ते꣯व꣤। यो꣥꣯याऽ६था꣥॥ गो꣢꣯श्रा꣡इते꣢꣯म꣡। धौ꣢꣯मदि꣡राइ। वा꣢ऽ३इव꣤क्ष꣥। णा꣣ऽ२३꣡४꣡५꣡इ॥ अ꣢भि꣡त्वा꣯माइन्द्रा꣢ऽ३नो꣤ऽ३॥ नू꣢ऽ३४५। मा꣣ऽ२३꣡४꣡५ः꣡॥

17_0407 सीदन्तस्ते वयो - 02 ...{Loading}...
लिखितम्

४०७-२।

सी꣣꣯द꣤न्त꣥स्ते꣯व꣤यः꣥। य꣣था꣢ऽ३। गो꣡ऽ२३४। श्री꣯ते꣥꣯म꣤धौ꣥꣯म। दि꣤रा꣥इ॥ वि꣣वा꣢ऽ३। हा꣢ऽ३। क्षा꣡ऽ२३४णा꣥इ॥ अ꣣भी꣢ऽ३। हो꣢ऽ३इ। त्वा꣡ऽ२३४मी꣥॥ द्र꣣नो꣢ऽ३। नू꣡ऽ२३४माः। उ꣥हुवाऽ६हा꣥उ॥ वा॥

18_0408 वयमु त्वामपूर्व्य - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

४०८-१। सौभरे द्वे॥ (पक्थम्)। द्वयोः सुभरिः ककुबिन्द्रः॥

व꣥यमु꣣त्वा꣢꣯म꣣पू꣤꣯र्वि꣥या॥ स्थू꣢꣯र꣡न्नकच्चिद्भरन्तआव꣪स्यावाऽ२३४ः॥ वज्रि꣥न्। चि꣣त्रा꣢ऽ३म्॥ हा꣡ऽ२३वा꣤ऽ३। मा꣢ऽ३४५होऽ६"हा꣥इ॥

18_0408 वयमु त्वामपूर्व्य - 02 ...{Loading}...
लिखितम्

४०८-२। सौभरम्॥

व꣥य꣤मु꣥त्वा꣤꣯म꣥पू꣯र्व्यस्थू꣯र꣤न्नकच्चि꣥द्भरन्तः। ओ꣤वा꣥॥ हा꣢ऽ३हा꣢᳐इ। अ꣣व꣢स्या꣡वाऽ२३꣡४꣡५ः꣡॥ हा꣢ऽ३हा꣢᳐इ। व꣣ज्रिञ्चि꣢त्रा꣡ऽ२३꣡४꣡५꣡म्॥ हा꣢ऽ३हा꣢᳐इ॥ ह꣣वा꣢ऽ३। मा꣡ऽ२३४हाइ। उ꣥हुवाऽ६हा꣥उ॥ वा॥

[[अथ सप्तम खण्डः]]

19_0409 स्वादोरित्था विषूवतो - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

४०९-१। यामम्॥ यमः पंक्तिरिन्द्रः॥

स्वा꣤꣯दो꣣꣯रि꣤त्था꣣꣯वि꣤षू꣥꣯। व꣣ता꣢ऽ३ः। मा꣡ऽ२३४। धोᳲ꣯पि꣥बन्तिगौ꣯। रि꣤याः꣥॥ या꣡꣯इन्द्रे꣯ण꣢। सया꣡꣯वाऽ२३रीः꣢। वृ꣡ष्णा꣢꣯म꣡द꣢। तिशो꣡꣯भाऽ२३था꣢॥ व꣡स्वाइरा꣢ऽ१नूऽ᳒२᳒॥ स्वा꣡रा꣯जि꣢यम्। इ꣡डाऽ२३भा꣢ऽ३४३। ओ꣡ऽ२३४५इ॥ डा॥

20_0410 इत्था हि - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

४१०-१। गृत्समदस्य मदौ द्वौ॥ द्वयोः गृत्समदः पंक्तिरिन्द्रः॥इ꣥त्था꣯हिसो॥ म꣢इ꣡न्माऽ२३दाः꣢। ब्र꣡ह्म꣢चका꣡꣯। र꣢व꣡र्द्धाऽ२३ना꣢म्। श꣡विष्ठ꣢व। ज्रिन्नो꣡꣯जाऽ२३सा꣢। पृथिव्या꣡꣯निश्श꣢शा꣯अ꣡हि꣢म्॥ अ꣡र्चाना꣢ऽ१नूऽ᳒२᳒॥ स्वरौ꣡होऽ᳒२᳒। जि꣡यमोऽ२३४५इ॥ डा॥

20_0410 इत्था हि - 02 ...{Loading}...
लिखितम्

४१०-२।

इ꣤त्था꣯हिसोऽ५मइन्म꣤दाः॥ ब्र꣡ह्म꣢चका꣡꣯। र꣢व꣡र्द्धाऽ२३ना꣢म्। शाविष्ठा꣣ऽ२३४वा꣥। ज्रि꣢न्नो᳐जा꣣ऽ२३४सा꣥। पृ꣢थिव्या꣡꣯निश्श꣢शा꣯अ꣡हि꣢म्॥ अ꣡र्चा꣢ऽ३न्हो꣡इ। अ꣪नूऽ२३हो꣡॥ स्वारा꣯जि꣢यम्। इ꣡डाऽ२३भा꣢ऽ३४३। ओ꣡ऽ२३४५इ॥ डा॥

21_0411 इन्द्रो मदाय - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

४११-१। आभीके द्वे॥ द्वयोराभीकः पंक्तिरिन्द्रः॥

इ꣢न्द्रो꣯मदा꣯यवाऽ३। वा꣤र्द्धा꣥इ॥ श꣢वसे꣯वृत्रहाऽ३। नॄ꣤भीः꣥। त꣢मिन्महत्सुवाऽ३। जा꣤इषू꣥॥ ऊ꣢꣯तिमर्भे꣯हवाऽ३। मा꣤हा꣥इ॥ सा꣤वा꣥। जा꣡इषुप्र꣢नो꣡ऽ२३४वा꣥। वा꣤ऽ५इषोऽ६"हा꣥इ॥

21_0411 इन्द्रो मदाय - 02 ...{Loading}...
लिखितम्

४११-२।

इ꣤न्द्रो꣯मदाऽ५यवा꣯वृ꣤धाइ॥ श꣡वसे꣢꣯वृ। त्रहा꣡नॄभी꣢ऽ३४ः। ता꣥म्। इ꣢न्मा᳐हा꣣ऽ२३४त्सु꣥वाऽ६। हा꣥उ॥ जा꣤इषू꣥। ऊ꣡꣯तिमर्भे꣯हवा꣢ऽ१। मा꣢ऽ३हा꣤इ॥ सावा꣥। जा꣡इषुप्र꣢नो꣡ऽ२३४वा꣥। वा꣤ऽ५इषोऽ६"हा꣥इ॥

21_0411 इन्द्रो मदाय - 03 ...{Loading}...
लिखितम्

४११-३। आभीशवे द्वे॥ द्वयोरभीशुः पंक्तिरिन्द्रः॥

इ꣤न्द्रो꣯मदाऽ५यवा꣯वृ꣤धाइ॥ श꣡वसे꣢꣯वृ। त्रहाऽ᳒२᳒नृ꣡भिः꣢। आ꣡औ꣢ऽ३हो꣢। औ꣯हो꣡वाऽ२३꣡४꣡५꣡। हꣳ꣣ऽ२३꣡४꣡५꣡। त꣢मि꣡न्मह। त्सु꣢वाऽ᳒२᳒जि꣡षु꣢। आ꣡औ꣢ऽ३हो꣢। औ꣯हो꣡वाऽ२३꣡४꣡५꣡। हꣳ꣣ऽ२३꣡४꣡५꣡। ऊ꣢꣯ति꣡मर्भे꣢꣯। हवाऽ᳒२᳒म꣡हे꣢꣯। आ꣡औ꣢ऽ३हो꣢। औ꣯हो꣡वाऽ२३꣡४꣡५꣡। हꣳ꣣ऽ२३꣡४꣡५꣡॥ स꣡वा꣯जे꣯षूप्रा꣢ऽ३नो꣤ऽ३॥ वा꣢ऽ३४५इषोऽ६"हा꣥इ॥

21_0411 इन्द्रो मदाय - 04 ...{Loading}...
लिखितम्

४११-४।इ꣤न्द्रो꣥꣯म꣤दा꣥꣯यवा꣯वृधे꣯श꣤व꣥से꣯वॄ꣤॥ त्र꣢हा꣡नॄ꣢ऽ१भीऽ᳒२ः᳒। ता꣡मिन्म꣢ह। त्सू꣡आ꣢ऽ१जिषू꣢ऽ३। ऊ꣡ती꣢᳐मा꣣ऽ२३४र्भा꣥इ। ह꣢वाऽ᳒२᳒मा꣡हाइ॥ सवा꣯जे꣯षूप्रा꣢ऽ३नो꣤ऽ३॥ वा꣢ऽ३४५इषोऽ६"हा꣥इ॥

21_0411 इन्द्रो मदाय - 05 ...{Loading}...
लिखितम्

४११-५। बार्हद्गिराणि त्रीणि॥ त्रयाणां बृहद्गिरिः पंक्तिरिन्द्रः॥

इ꣣न्द्रो꣢ऽ३१२३४। मदा॥ य꣡वा꣯वृधे꣯शवाऽ२᳐सा꣣ऽ२३४इवॄ꣥। त्र꣢हा꣭ऽ३। औ꣢꣯होऽ३वा꣢। आ꣭ऽ३। औ꣢᳐हो꣣ऽ२३४वा꣥। नृ꣤भाइः। त꣡मिन्महत्स्वा꣯जिषू꣯तिमाऽ२३र्भा꣢इ। हवा꣭ऽ३। औ꣢꣯होऽ३वा꣢। आ꣭ऽ३। औ꣢᳐हो꣣ऽ२३४वा꣥। म꣤हाइ॥ स꣡वा꣯जे꣯षुप्रना꣭ऽ३। औ꣢꣯होऽ३वा꣢। आ꣭ऽ३। औ꣢᳐हो꣣ऽ२३४वा꣥॥ वा꣤ऽ५इषोऽ६"हा꣥इ॥

21_0411 इन्द्रो मदाय - 06 ...{Loading}...
लिखितम्

४११-६।

इ꣣न्द्रो꣢ऽ३४। मदा꣯य। वा꣥꣯वाऽ६र्द्धा꣥इ॥ श꣡वसे꣢꣯वृ। त्रहा꣡नॄभी꣢ऽ३ः। हा꣤꣯उहौ꣥꣯। हो꣣꣯वा꣢। ता꣡मिन्म꣢ह। त्सू꣡आ꣢ऽ१जिषू꣢ऽ३। हा꣤꣯उहौ꣥꣯। हो꣣꣯वा꣢। ऊ꣡तिम꣢र्भे꣯। हवा꣡माहे꣢ऽ३। हा꣤꣯उहौ꣥꣯। हो꣣꣯वा꣢॥ स꣡वा꣯जे꣯षूप्रा꣢ऽ३नो꣤ऽ३॥ वा꣢ऽ३४५इषोऽ६"हा꣥इ॥

21_0411 इन्द्रो मदाय - 07 ...{Loading}...
लिखितम्

४११-७।

ओ꣥꣯हा꣯इ। इ꣣न्द्रो꣢ऽ३४। मदा꣯य। वा꣥꣯वाऽ६र्द्धा꣥इ॥ श꣡वसे꣢꣯वृ। त्रहा꣡नॄभी꣢ऽ३ः। आ꣤꣯उहौ꣥꣯। हो꣣꣯वा꣢। ता꣡मिन्म꣢ह। त्सू꣡आ꣢ऽ१जिषू꣢ऽ३। आ꣤꣯उहौ꣥꣯। हो꣣꣯वा꣢। ऊ꣯ति꣡मर्भाइ। ह꣢वौ꣯। होऽ३वा꣢। मा꣡हाऽ᳒२᳒इ॥ स꣡वा꣯जे꣯षूप्रा꣢ऽ३नो꣢॥ विषा꣡त्। औऽ२३हो꣤वा꣥। हो꣤ऽ५इ॥ डा॥

22_0412 इन्द्र तुभ्यमिदद्रिवोऽनुत्तम् - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

४१२-१। स्वाराज्यम्॥ इन्द्रः पंक्तिरिन्द्रः॥

इ꣥न्द्रतुभ्यमिदद्रिवाऽ६ए꣥॥ आ꣡नुत्तं꣢वज्रिन्वी꣯रि꣡यम्॥ यद्धात्या꣢ऽ१म्माऽ᳒२᳒। या꣡इनंमृ꣢गम्। त꣡वात्या꣢ऽ१न्माऽ᳒२᳒। या꣡या꣯व꣢धीः꣯॥ अ꣡र्चाना꣢ऽ१नूऽ᳒२᳒॥ स्वा꣡रा꣯जि꣢यम्। इ꣡डाऽ२३भा꣢ऽ३४३। ओ꣡ऽ२३४५इ॥ डा॥

24_0413 इन्द्र नृम्णंहि - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

४१३-१। संघेशीयम् धृष्णुसाम॥ कश्यपः पंक्तिरिन्द्रः॥प्रा꣡इहीऽ᳒२᳒। अभी꣡꣯हिधृष्णुहाऔ꣢ऽ३हो꣢॥ ना꣡ताऽ᳒२᳒इ। व꣡ज्रो꣯नियꣳसताऔ꣢ऽ३हो꣢। आ꣡इन्द्राऽ᳒२᳒। नृम्णꣳ꣡हिते꣯शवाऔ꣢ऽ३हो꣢। हा꣡नाऽ᳒२ः᳒। वृत्रं꣡जया꣯अपाऔ꣢ऽ३हो꣢॥ आ꣡र्चाऽ᳒२᳒ना꣡नूऽ᳒२᳒। स्वा꣡रा꣯जि꣢यम्। इ꣡डाऽ२३भा꣢ऽ३४३। ओ꣡ऽ२३४५इ॥ डा॥

25_0414 यदुदीरत आजयो - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

४१४-१। संवेशीयम्॥ मरुतः पंक्तिरिन्द्रः॥

य꣤दुदी꣯राऽ५तआ꣯ज꣤याः॥ धृ꣢ष्ण꣡वे꣰꣯ऽ२धी꣯। यता꣡इधा꣢ऽ१नाऽ᳒२᳒म्। युꣳक्ष्वा꣡꣯मदच्युता꣢ऽ३। हा꣤री꣥। कꣳ꣢ह꣡नᳲकंवसा꣢ऽ३उ। दा꣤धाः꣥। अ꣢स्माꣳ꣡꣯आऽ२३इन्द्रा꣢॥ वसौ꣡꣯दाऽ२३धा꣢ऽ३४३ः। ओ꣡ऽ२३४५इ॥ डा॥

26_0415 अक्षन्नमीमदन्त ह्यव - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

४१५-१। यामे द्वे॥ यमः पंक्तिरिन्द्रः॥ चित्रा वा। (पितरो वा पूर्वस्य)।

अ꣣क्ष꣤न्न꣣मी꣤꣯म꣥द। त꣣ही꣢ऽ३। आ꣡ऽ२३४। वप्रि꣥या꣤꣯अ꣥धू꣯। ष꣤ता꣥। अ꣡स्तो꣢꣯षतस्व꣡भा꣢꣯नवः। वि꣡प्रा꣯नाऽ२३वी꣢। ष्ठा꣡या꣯म꣢ती꣯। यो꣡꣯जानू꣢ऽ३वा꣢ऽ३इ॥ द्रा꣡ऽ२᳐ता꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा॥ हा꣣ऽ२३४री꣥॥

27_0416 उपो षु - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

४१६-१। यामम्॥ यमः पंक्तिरिन्द्रः॥

उ꣣पो꣤꣯षु꣣शृ꣤णुही꣣꣯गि꣤रः꣥। ए꣢ऽ३। औ꣢ऽ३हो꣤ऽ५वा॥ मा꣡घ꣢वन्मा꣡꣯। तथाआ꣢ऽ१इवाऽ२३४। क꣣दा꣢ऽ३४न꣣स्सू꣢। ना꣡र्त्ता꣯व꣢तः। क꣡रइ꣢द। था꣡या꣢ऽ१साईऽ२३४त्॥ यो꣣꣯जा꣢ऽ३४नु꣣वा꣢ऽ३इ॥ द्रा꣡ऽ२᳐ता꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा॥ हा꣣ऽ२३४री꣥॥

28_0417 चन्द्रमा अप्स्वाऽ३ऽन्तरा - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

४१७-१। त्रैतानि त्रीणि॥ त्रयाणां त्रितः पंक्तिरिन्द्रो॥ विश्वेदेवाः।

च꣢न्द्र꣡मा꣯आ꣢उवा। प्सुवा꣡न्तारा꣢उवा। सुपर्णो꣡꣯धा꣢उवा॥ वते꣡꣯दिवि। नवो꣯हिरा꣢उवा। ण्यना꣡इमाया꣢उवा। पदं꣡विन्दा꣢उवा। तिवि꣡द्युताः॥ वित्तम्माआ꣢उवा। स्यरो꣡꣯दाऽ२३सा꣢ऽ३४३इ। ओ꣡ऽ२३४५इ॥ डा॥

28_0417 चन्द्रमा अप्स्वाऽ३ऽन्तरा - 02 ...{Loading}...
लिखितम्

४१७-२।च꣤न्द्र꣥मा꣯आ꣤॥ प्सू꣢ऽ३आ꣡न्ता꣢ऽ३रा꣢। सू꣡पर्णो꣢꣯धा꣯व। ता꣡ऽ२३इ। दि꣢वि꣣या꣢। न꣡वो꣰꣯ऽ२हि꣡रण्य꣢ने꣯मयᳲपदं꣡विन्द꣢। तिविद्यू꣡तोऽ२३४हा꣥इ॥ वि꣢त्तꣳ꣡होइ। मआऽ२३हो꣡॥ स्य꣢रो꣡꣯दाऽ२३सा꣢ऽ३४३इ। ओ꣡ऽ२३४५इ॥ डा॥

28_0417 चन्द्रमा अप्स्वाऽ३ऽन्तरा - 03 ...{Loading}...
लिखितम्

४१७-३।

च꣥न्द्रमा꣢ऽ३आ꣤प्सु꣥व꣤न्तरा꣥॥ सू꣡पर्णो꣢꣯धा꣯। वता꣡इदा꣢ऽ१इवीऽ᳒२᳒। न꣡वो꣰꣯ऽ२हि꣡रण्य꣢ने꣯मयᳲपदं꣡विन्द꣢। तिविद्यू꣡ताऽ२३ः॥ वि꣢त्तꣳ꣡होइ। मआऽ२३हो꣡॥ स्य꣢रो꣡꣯दाऽ२३सा꣢ऽ३४३इ। ओ꣡ऽ२३४५इ॥ डा॥

28_0417 चन्द्रमा अप्स्वाऽ३ऽन्तरा - 04 ...{Loading}...
लिखितम्

४१७-४। सौपर्णे द्वे॥ द्वयोः सुपर्णः पंक्तिरिन्द्रो॥ विश्वेदेवाः।

च꣥न्द्र꣤मा꣥꣯अप्सुवा꣤। त꣡रा। सुपर्णो꣯धा꣯व꣢ते꣡꣯दाऽ२३इवी꣢। न꣡वाऽ२३हो꣡इ। हिरण्य꣢ने꣯मयᳲपदं꣡विन्द꣢। तिविद्यू꣡ताऽ२३ः॥ वि꣢त्तꣳ꣡होइ। मआऽ२३हो꣡॥ स्य꣢रो꣡ऽ२३। दा꣡ऽ२᳐सा꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा॥ ऊ꣢ऽ᳐३२᳐३४पा꣥॥

28_0417 चन्द्रमा अप्स्वाऽ३ऽन्तरा - 05 ...{Loading}...
लिखितम्

४१७-५।

च꣥न्द्रौ꣤꣯हो꣥꣯मा꣯अप्सु꣤व꣥न्त꣤रा꣯। ओ꣥ऽ६वा꣥॥ सु꣢पर्णो꣡꣯धा꣯वते꣯दाइवाये꣢ऽ३। हो꣡वा꣢ऽ३हो꣡ऽ᳐२इ। हु꣣वा꣢ऽ᳐३꣡४꣡५꣡इ। न꣡वो꣯हाइरण्यनाइमायाऽ२३ः। हो꣡वा꣢ऽ३हो꣡ऽ᳐२इ। हु꣣वा꣢ऽ᳐३꣡४꣡५꣡इ॥ प꣢दं꣡विन्दन्तिवाइद्यूताऽ२३ः। हो꣡वा꣢ऽ३हो꣡ऽ᳐२इ। हु꣣वा꣢ऽ᳐३꣡४꣡५꣡इ॥ वि꣢त्त꣡म्मे꣯अस्यरो꣯दासाये꣢ऽ३। हो꣡वा꣢ऽ३हो꣡ऽ᳐२इ। हु꣣वा꣢ऽ३ओ꣤ऽ५वाऽ६५६॥ ऊ꣢ऽ᳐३२᳐३४पा꣥॥

29_0418 प्रति प्रियतमंरथम् - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

४१८-१। लौशम्॥ लुशः पंक्तिरश्विनौ॥

प्रा꣡ऽ२३४। तिप्रि꣥य꣤त꣥मम्। रा꣤था꣥म्॥ वा꣡र्षणं꣢व। सुवा꣡꣯हाऽ२३ना꣢म्। स्तो꣡꣯तावा꣢ऽ३मा꣢ऽ३। श्वि꣡नाऽ२᳐वा꣣ऽ२३४र्षीः꣥। स्तो꣡꣯माइभी꣢ऽ३र्भू꣢ऽ३। षा꣡ति꣢प्रा꣣ऽ२३४ती꣥॥ मा꣡꣯ध्वाइमा꣢ऽ३मा꣢ऽ३॥ श्रू꣡ऽ२३ता꣤ऽ३म्। हा꣢ऽ३४५वोऽ६"हा꣥इ॥