०२ १

[[अथ द्वितीयप्रपाठके प्रथमोऽर्धः]]

42_0042 त्वमित्सप्रथा अस्यग्ने - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

४२-१। उभयत स्तोभम् गौतमम्॥ गोतमो बृहत्यग्निः॥

हा꣥꣯उत्वमित्सप्रथा꣯असिहाउ॥ आ꣡ग्ने꣯त्रा꣢꣯तः। ऋताᳲ꣡क꣪वाऽ२३४इः। हा꣣꣯हो꣢इ। त्वां꣡꣯विप्रा꣢꣯सस्स꣡मिधा꣢꣯। ना꣡दी꣯दिवा꣢ऽ३४ः। हा꣣꣯हो꣢इ॥ आ꣡विवासा꣢ऽ३४। हा꣣꣯हो꣢ऽ३॥ ति꣢वो꣡ऽ२३४वा꣥। धा꣤ऽ५सोऽ६"हा꣥इ॥

42_0042 त्वमित्सप्रथा अस्यग्ने - 02 ...{Loading}...
लिखितम्

४२-२। गौतमम्॥ गोतमो बृहत्यग्निः॥

त्वं꣥त्वाऽ६मे꣥॥ इ꣢त्सप्रऽ३था꣡यासा꣢᳐इ। आ꣣ऽ२३४सी꣥। आ꣡ग्ने꣯त्रा꣢꣯तः। ऋताᳲ꣡क꣪वाऽ२᳐इः। का꣣ऽ२३४वीः꣥। त्वा꣡꣯म्विप्रा꣢꣯सस्स꣡मिधा꣢꣯। ना꣡दी꣯दिवो꣢। दा꣣ऽ२३४इवाः꣥॥ आ꣡विवा꣢꣯सा꣡ऽ२३हा꣢॥ तिवे꣡꣯धाऽ२३सा꣢ऽ३४३ः। ओ꣡ऽ२३४५इ॥ डा॥

43_0043 आ नो - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

४३-१। आयुस्साम॥ अग्निर्बृहत्यग्निः॥

आ꣣꣯नो꣤꣯अ꣥ग्ने꣯वयो꣯वृ꣤ध꣥म्। ए꣢ऽ᳐३४। र꣣या꣢ऽ३꣡४꣡५꣡इम्॥ पा꣢꣯व᳐ऽ३का꣡श꣪ꣳसाऽ२३या꣢म्। रा꣡꣯स्वा꣢꣯चनउ꣡पमा꣢꣯ते꣯। पू꣡रु꣪स्पृहाऽ᳒२᳒म्॥ सु꣡नाइताइसू꣢ऽ३हा꣢इ॥ य꣣शस्त꣢रा꣡म्। औऽ२३हो꣤वा꣥। हो꣤ऽ५इ॥ डा॥

44_0044 यो विश्वा - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

४४-१। हरसी द्वे॥ द्वयोरग्निर्बृहत्यग्निः॥यो꣥꣯विश्वा꣢ऽ३दा꣤य꣥ते꣤꣯वसू꣥॥ हो꣡ताऽ᳒२᳒मा꣡न्द्रोऽ᳒२᳒। ज꣡ना꣯ना꣯म्। माधोऽ᳒२᳒र्ना꣡पाऽ᳒२᳒। त्रा꣡꣯प्रथमा꣯न्यस्मै꣯॥ प्रास्तोऽ᳒२᳒मा꣡याऽ२३। तु꣢वो꣡ऽ२३४वा꣥। ग्ना꣤ऽ५योऽ६"हा꣥इ॥

44_0044 यो विश्वा - 02 ...{Loading}...
लिखितम्

४४-२।

यो꣥꣯विश्वा꣯दयते꣯वसुहाउ॥ हो꣡ताऽ᳒२᳒मा꣡न्द्रोऽ᳒२᳒। ज꣡ना꣯ना꣯म्। ओवा꣢। ओ꣡वा꣢। मा꣡धोऽ᳒२᳒र्ना꣡पाऽ᳒२᳒। त्रा꣡꣯प्रथमा꣯न्यस्मै꣯। ओवा꣢। ओ꣡वा꣢॥ प्रा꣡स्तोऽ᳒२᳒मा꣡याऽ२३। तु꣢वो꣡ऽ२३४वा꣥। ग्ना꣤ऽ५योऽ६"हा꣥इ॥

44_0044 यो विश्वा - 03 ...{Loading}...
लिखितम्

४४-३। दैर्घश्रवसे द्वे॥ द्वयोर्दीर्घश्रवा बृहत्यग्निः॥

यो꣥꣯विश्वा꣯दयते꣯वस्वो꣯हा꣯ओ꣯हाऽ६ए꣥॥ हो꣡꣯ता꣰꣯ऽ२मन्द्रो꣡꣯जना꣰꣯ऽ२ना꣯म्। ओ꣭ऽ३हा꣢। ओ꣭ऽ३हा꣢ऽ३᳐ए꣢ऽ३४॥ म꣣धो꣢ऽ३᳐४र्न꣣पा꣢॥ त्रा꣡प्रथ꣢। मा꣯ना꣡यस्मा꣢इ। ओ꣭ऽ३हा꣢। ओ꣭ऽ३हा꣢ऽ३᳐ए꣢ऽ३४॥ प्र꣣स्तो꣢ऽ३४मा꣣꣯या꣢ऽ३॥ तु꣢वो꣡ऽ२३४वा꣥। ग्ना꣤ऽ५योऽ६"हा꣥इ॥

44_0044 यो विश्वा - 04 ...{Loading}...
लिखितम्

४४-४।

यो꣥꣯विश्वा꣯दयते꣯वसूऽ६ए꣥॥ हो꣡꣯ता꣯मन्द्रो꣯जना꣯ना꣯म्॥ माधो꣢ऽ१र्नापौ꣢। वाऽ᳐३२॥ त्रा꣡꣯प्रथमा꣯न्यस्मै꣯। प्रास्तो꣢ऽ१मायौ꣢। वाऽ᳐३२॥ त्वग्न꣡ये꣢꣯। इ꣡डाऽ२३भा꣢ऽ३४३। ओ꣡ऽ२३४५इ॥ डा॥

[[अथ पञ्चम खण्डः]]

45_0045 एना वो - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

४५-१। आग्नेये द्वे॥ द्वयोरग्निर्बृहत्यग्निः॥

ए꣥꣯ना꣯वो꣯अग्निन्ना꣤मसा꣥॥ ऊ꣡र्जो꣯न꣢पा꣯। ता꣡मा꣢ऽ१हुवेऽ᳒२᳒। प्रा꣡यञ्चे꣢꣯तिष्ठमरतिम्। सुवा꣡ध्वा꣢ऽ१राऽ᳒२᳒म्॥ विश्वा꣡स्या꣢ऽ१दूऽ᳒२᳒॥ ता꣡ममृ꣢तम्। इ꣡डाऽ२३भा꣢ऽ३४३। ओ꣡ऽ२३४५इ॥ डा॥

45_0045 एना वो - 02 ...{Loading}...
लिखितम्

४५-२।

ए꣥꣯ना꣯वो꣯अग्निन्नमसा꣯हाउ॥ ऊ꣡र्जो꣯न꣢पा꣯। ता꣡मा꣢ऽ१हुवेऽ२३। हा꣢उ। प्रा꣡यञ्चे꣢꣯तिष्ठमरतिम्। सुवा꣡ध्वा꣢ऽ१राऽ२३म्। हा꣢उ॥ विश्वा꣡स्या꣢ऽ१दूऽ२३। हा꣢उ॥ ता꣡ममृ꣢तम्। इ꣡डाऽ२३भा꣢ऽ३४३। ओ꣡ऽ२३४५इ॥ डा॥

45_0045 एना वो - 03 ...{Loading}...
लिखितम्

४५-३। मनाज्ये द्वे॥ द्वयोर्गोतमो बृहत्यग्निः॥

ए꣥꣯ना꣤꣯वो꣥꣯अग्नि꣤मेऽ५न꣤म꣥सा꣤॥ ऊ꣢꣯र्जो꣡꣯नपा꣢꣯तमा꣡꣯हु꣢वे꣯। प्रा꣡ऽ२३या꣢म्। चा꣡इतिष्ठ꣢म्। आ꣡रति꣢म्। सुवा꣡ध्वा꣢ऽ१राऽ᳒२᳒म्॥ विश्वा꣡स्या꣢ऽ१दूऽ᳒२᳒॥ ता꣡ममृ꣢तम्। इ꣡डाऽ२३भा꣢ऽ३४३। ओ꣡ऽ२३४५इ॥ डा॥

45_0045 एना वो - 04 ...{Loading}...
लिखितम्

४५-४।

ए꣥꣯ना꣤꣯वो꣥꣯अग्नि꣤न्नम꣥सो꣯। जो꣯नपो꣤वा꣥॥ ता꣡मा꣯हु꣢वे꣯। प्रा꣡ऽ२३या꣢म्। चा꣡इतिष्ठ꣢म। रा꣡ऽ२३ती꣢म्। स्वध्वर꣡म्॥ विश्वस्याऽ२३दू꣢॥ ता꣡ममृ꣢तम्। इ꣡डाऽ२३भा꣢ऽ३४३। ओ꣡ऽ२३४५इ॥ डा॥

46_0046 शेषे वनेषु - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

४६-१। दैवराजम्॥ देवराड् (गौतमः) बृहत्यग्निः॥

शे꣤꣯षे꣯वनाऽ५इषुमा꣯तृ꣤षू॥ सां꣡त्वा꣢꣯म꣡र्ता꣢꣯सः। इ꣡न्धाऽ२३ता꣢इ। आ꣡तन्द्रो꣢꣯हव्यं꣡वह꣢। सा꣡इ। ह꣪वीऽ२᳐ष्का꣣ऽ२३४र्त्ताः꣥॥ आ꣡दिद्दे꣢꣯वा꣡इ॥ षु꣢रा꣡꣯जाऽ२३सा꣢ऽ३४३इ। ओ꣡ऽ२३४५इ॥ डा॥

47_0047 अदर्शि गातुवित्तमो - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

४७-१। गाथिनस्साम॥ कौशिको गाथिः बृहत्यग्निः॥

अ꣥दर्शिगा꣯तुवित्तमाऽ६ए꣥॥ या꣡स्मिन्(स्थि)व्र꣢ता꣡꣯निया꣢꣯दधुः꣡। ऊपो꣯षुजा꣢ऽ३। हा꣢ऽ३᳐हा꣢इ। तमा꣡꣯रिय꣢स्यव꣡र्द्ध꣢नम्॥ अ꣡ग्नाइन्नक्षा꣢ऽ३। हा꣢ऽ३᳐हा꣢॥ तुनो꣯गि꣡रः꣢। इ꣡डाऽ२३भा꣢ऽ३४३। ओ꣡ऽ२३४५इ॥ डा॥

48_0048 अग्निरुक्थे पुरोहितो - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

४८-१। बार्हदुक्थे द्वे॥ द्वयोर्बृहदुक्थो बृहत्यग्निः॥

अ꣥ग्निरुक्थाइ॥ पु꣣रो꣢ऽ३हा꣤इताः꣥। ग्रा꣢꣯वा꣡꣯णो꣢꣯ब꣡। हि꣣रा꣢ऽ३ध्वा꣤रा꣥इ। ऋ꣢चा꣡꣯या꣯मिमरुतो꣯ब्रह्माण꣪स्पाताऽ᳒२᳒इ॥ दा꣡इवाऽ᳒२᳒आ꣡वाऽ२३ः॥ व꣢रो꣡ऽ२३४वा꣥। णा꣤ऽ५योऽ६"हा꣥इ॥

48_0048 अग्निरुक्थे पुरोहितो - 02 ...{Loading}...
लिखितम्

४८-२।

अ꣥ग्निरुक्था꣯औ꣯हो꣤होहा꣥इ॥ पु꣣रौ꣢᳐वाओ꣣ऽ२३४वा꣥। हि꣤ताः। ग्रा꣢꣯वा꣡꣯णो꣢꣯ब꣡। हि꣣रौ꣢᳐वाओ꣣ऽ२३४वा꣥। ध्व꣤राइ। ऋ꣢चौ꣭ऽ३हो꣢। या꣡꣯मिमरुतो꣯ब्रह्माण꣪स्पाताऽ᳒२᳒इ॥ दा꣡इवाऽ᳒२᳒आ꣡वाऽ२३ः॥ व꣢रो꣡ऽ२३४वा꣥। णा꣤ऽ५योऽ६"हा꣥इ॥

49_0049 अग्निमीडिष्वावसे गाथाभिः - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

४९-१। पौरुमीढम्॥ पुरुमीढो बृहत्यग्निः॥

अ꣥ग्नि꣤मी꣥꣯। डि꣣ष्वा꣢ऽ३४औ꣣꣯हो꣤꣯वा꣥॥ आ꣡वसे꣢꣯। गा꣡꣯था꣢꣯भिश्शी꣯। रशो꣡꣯चाऽ२३इषा꣢म्। अग्निꣳ꣡रा꣯याइ। पुरुमाऽ२३इढा꣢। श्रुत꣡न्नरो॥ अग्निस्सूऽ२३दी꣢। तया꣡इच्छाऽ२३४५र्दीऽ६५६ः॥ द꣡क्षा꣢ऽ३या꣡ऽ२३꣡४꣡५꣡॥

50_0050 श्रुधि श्रुत्कर्ण - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

५०-१। कार्णश्रवसम्॥ प्रास्कण्वं वा। कर्णश्रवा बृहत्यग्निः॥

श्रु꣣धी꣢ऽ३। श्रू꣡ऽ२३४। धिश्रुत्क꣥र्णव꣤। ह्निभा꣥इः॥ दे꣢꣯वै꣡꣯रग्ने꣯स꣢या꣡꣯वाऽ२३भीः꣢। आ꣡꣯सी꣯दतुबर्हिषिमित्रो꣯अर्याऽ२३मा꣢॥ प्रा꣯त꣡र्याऽ२३वा꣢ऽ३॥ भा꣡ऽ२᳐इरा꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा॥ ए꣢ऽ᳐३। ध्व꣢र꣣आ꣢॥

51_0051 प्र दैवोदासो - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

५१-१। दैवोदासम्॥ दिवोदासो बृहत्यग्निः॥

प्र꣥दै꣯वो꣯दा꣯सो꣤ग्नीः꣥॥ दे꣢꣯व꣡इन्द्रोन꣢म꣡ज्मना। अनुमाऽ२३ता꣢। रं꣡पृथिवींवि꣢वा꣡꣯वृताइ॥ तस्थौ꣯नाऽ२३का꣢॥ स्या꣡शर्म꣢णि। इ꣡डाऽ२३भा꣢ऽ३४३। ओ꣡ऽ२३४५इ॥ डा॥

52_0052 अध ज्मो - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

५२-१। सौक्रतवम्॥ सुक्रतुर्बृहत्यग्निः॥

अ꣥धज्मा꣯ओ꣤वा꣥॥ ध꣡वादा꣢ऽ१इवाऽ᳒२ः᳒। बृहतो꣡꣯रो꣯चाना꣢ऽ१दाधीऽ᳒२᳒। आ꣡। यौ꣯। हौ꣢꣯हो᳐ऽ३वा꣢। वा꣡र्धस्व꣢तन्वा꣯। गा꣡इरा꣢ऽ१ममाऽ᳒२᳒। आ꣡जातासौ꣢꣯। हौ꣯होऽ३वा꣢ऽ३४॥ हा꣥। हा꣢उवाऽ३॥ क्र꣢तो꣯पृणा꣣ऽ२३꣡४꣡५꣡॥

53_0053 कायमानो वना - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

५३-१। काण्वे द्वे॥ द्वयोः कण्वो बृहत्यग्निः॥

का꣤꣯यमा꣯नोऽ५वना꣯तु꣤वाम्॥ य꣢न्मा꣡꣯तॄ꣢꣯रा꣡। जाग꣢न्ना꣣ऽ२३४पाः꣥। न꣢तत्ते꣯अग्नेऽ३᳐। प्र꣡मृषे꣢ऽ३हा꣢ऽ३इ। नि꣡वाऽ२᳐र्ता꣣ऽ२३४ना꣥म्॥ य꣢द्दू꣡꣯राऽ२३इसा꣢न्॥ इ꣣हा꣯भु꣢वा꣡। औ꣢ऽ३हो꣤वा꣥। हो꣤ऽ५इ॥ डा॥

53_0053 कायमानो वना - 02 ...{Loading}...
लिखितम्

५३-२।

ए꣤काया꣥॥ मा꣡꣯नो। व꣣ना꣢तू꣣ऽ२३४वा꣥म्। ओ꣢इ᳐। तू꣣ऽ२३४वा꣥म्। उ꣤हुवाहा꣥इ। औ꣭ऽ३᳐हो꣢ऽ३१इ। य꣢न्मा꣡꣯तॄ꣢꣯रा꣡। जाग꣢न्ना꣣ऽ२३४पाः꣥। आ꣣ऽ२३४पाः꣥। उ꣤हुवाहा꣥इ। औ꣭ऽ३᳐हो꣢ऽ३१इ॥ न꣢त꣡त्त꣢आ꣡। ग्ना꣢ऽ३इप्र꣡मृषा꣢ऽ३इ। नि꣡वाऽ२᳐र्ता꣣ऽ२३४ना꣥म्। ता꣣ऽ२३४ना꣥म्। उ꣤हुवाहा꣥इ। औ꣭ऽ३᳐हो꣢ऽ३१इ॥ य꣢द्दू꣡꣯रे꣢꣯सा꣡न्। इहा꣢भू꣣ऽ२३४वाः꣥। भू꣣ऽ२३४वाः꣥॥ उ꣤हुवाहा꣥इ। औ꣭ऽ३᳐हो꣢ऽ३१२᳐। या꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा॥ ऊ꣣ऽ२३४पा꣥॥

54_0054 नि त्वामग्ने - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

५४-१। मानवाद्ये द्वे॥ द्वयोर्मनुर्बृहत्यग्निः॥

नि꣥त्वा꣯मग्नाइ॥ म꣢नुर्द्दा꣣ऽ२३४धा꣥इ। ज्यो꣡तिर्ज꣢ना꣯। या꣡श꣪श्वाताऽ᳒२᳒इ। दी꣯। दा꣡इ। थक꣢। ण्वा꣡ऋ꣪तजा꣢ऽ३। त꣡ऊऽ२᳐क्षा꣣ऽ२३४इताः꣥। य꣡न्न꣢मस्या꣡ऽ२३॥ ता꣡ऽ२᳐इकृ꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा॥ ष्टा꣣ऽ२३४याः꣥॥

54_0054 नि त्वामग्ने - 02 ...{Loading}...
लिखितम्

५४-२। मानवोत्तरम्॥

हो꣤वाइ। नित्वा꣯म꣥ग्ने꣯म꣤नु꣥र्दधे꣯। हो꣤वाइ॥ ज्यो꣡꣯तिर्जना꣯यशश्वते꣯। दाइदे꣢ऽ१थक꣢। ण्वा꣡ऋ꣪तजा꣢ऽ३१। त꣪ऊऽ२᳐क्षा꣣ऽ२३४इताः꣥॥ य꣢न्ना꣡माऽ२३स्या꣢ऽ३॥ ता꣡ऽ२᳐इकृ꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा॥ ष्टा꣣ऽ२३४याः꣥॥

[[अथ षष्ठ खण्डः]]

01_0055 देवो वो - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

५५-१। द्रविणम्॥ अग्निर्बृहत्यग्निः॥

दे꣥꣯वो꣤ऽ३वो꣢ऽ३द्र꣤विणो꣥꣯दाः॥ पू꣢꣯र्णां꣡꣯विव꣢ष्ट्वा꣯सि꣡च꣢म्। ऊ꣡द्वा꣢ऽ१सिञ्चाऽ᳒२᳒। ध्वमु꣡पवा꣢꣯पृणध्वम्॥ आ꣡दि꣪द्वोदेऽ᳒२᳒॥ व꣡ओ꣯ह꣢ते꣯। इ꣡डाऽ२३भा꣢ऽ३४३। ओ꣡ऽ२३४५इ॥ डा॥

02_0056 प्रैतु ब्रह्मणस्पतिः - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

५६-१। बार्हस्पत्यम्॥ बृहस्पतिर्बृहत्यग्निः॥ (ब्रह्मणस्पतिर्वा)।

प्रै꣥꣯तू꣢ऽ३ब्र꣤ह्म꣥ण꣤स्पतीः꣥॥ प्र꣢दा꣡इविये꣢। तुसू꣡नृता꣢ऽ३। अ꣡च्छाऽ२᳐वा꣣ऽ२३४इरा꣥म्। न꣡र्यम्प꣢। ङ्क्तिरा꣡धा꣢ऽ१साऽ२३म्॥ दे꣡꣯वाऽ२᳐या꣣ऽ२३४ज्ञा꣥म्॥ ना꣡ऽ२᳐या꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा॥ तू꣣ऽ२३४नाः꣥॥

03_0057 ऊर्ध्व ऊ - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

५७-१। वीङ्कम्॥ वसिष्ठो बृहत्यग्निः॥ (यूपो वा)।

ऊ꣢꣯र्ध्वऊ꣯षुणऽ३᳐ऊ꣡ताऽ२३४या꣥इ॥ ति꣡ष्ठा꣯दे꣯वो꣯नसविता। ऊ꣯र्ध्वो꣯वाऽ२३जा꣢। स्या꣡सनि꣢ता꣯। या꣡दं꣪जिभीऽ᳒२ः᳒॥ वा꣯घा꣡द्भीऽ᳒२ः᳒॥ वी꣡वीऽ᳒२᳒॥ ह्वया꣡꣯माऽ२३हा꣢ऽ३४३इ। ओ꣡ऽ२३४५इ॥ डा॥

04_0058 प्र यो - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

५८-१। विष्पर्धसस्साम॥ विष्पर्धा बृहत्यग्निः॥

प्र꣤यो꣯रा꣯याऽ५इनिनी꣯ष꣤ताइ॥ म꣡र्तो꣯यस्तेव꣢सो꣡꣯दा꣯शत्। सवी꣯राऽ२३न्धा꣢। ता꣡अग्न꣢उ। क्थशꣳसि꣡नम्॥ त्मना꣯साऽ२३हा꣢॥ स्रपो꣡꣯षाऽ२३इणा꣢ऽ३४३म्। ओ꣡ऽ२३४५इ॥ डा॥

05_0059 प्र वो - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

५९-१। ऐतवाध्य्रम्॥ ऐतवद्ध्रिर्बृहत्यग्निः॥प्र꣥वाः꣤॥ य꣢ह्वं꣡पुरूऽ२३णा꣢म्। विशां꣡꣯दे꣯व꣢य꣡ताऽ२३इना꣢म्। अग्निꣳ꣡सू꣯क्ते꣯भिर्वचो꣯भिर्वृ꣢णी꣡꣯माऽ२३हा꣢इ। याꣳ꣡साऽ᳒२᳒मा꣡इदाऽ᳒२᳒न्॥ य꣡इंध꣢ते꣯। इ꣡डाऽ२३भा꣢ऽ३४३। ओ꣡ऽ२३४५इ॥ डा॥

06_0060 अयमग्निः सुवीर्यस्येशे - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

६०-१। दोहस्साम॥ दोहो बृहत्यग्निः॥

अ꣥यमग्निस्सुवी꣯र्यस्यहाउ॥ आ꣡इशे꣢꣯हि꣡सौ꣯भग꣢स्य। हो꣡वा꣢ऽ᳐३हा꣢इ। रा꣯य꣡ई꣯शे꣢꣯स्व꣡पत्य꣢। स्या꣡गो꣢ऽ१माताऽ२३ः। हो꣡वा꣢ऽ᳐३हा꣢इ॥ ई꣯शे꣡꣯हाऽ२३इवॄ꣢ऽ३। हो꣡वा꣢ऽ᳐३हा꣢॥ त्रा꣡हथा꣢꣯ना꣯म्। इ꣡डाऽ२३भा꣢ऽ३४३। ओ꣡ऽ२३४५इ॥ डा॥

07_0061 त्वमग्ने गृहपतिस्त्वम् - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

६१-१। समन्तम्॥ अग्निर्वसिष्ठो वा बृहत्यग्निः॥

त्व꣤म꣥ग्ने꣯गृह꣤प꣥ता꣤इः॥ त्वꣳ꣡हो꣯तानो꣢꣯अ꣡ध्वराइ। त्वंपोऽ२३ता꣢। वा꣡इश्ववा꣢꣯। रप्र꣡चाइताः꣢꣯। औ꣣꣯हो꣢ऽ३४वा꣣꣯हा꣢इ॥ य꣡। क्षाइयाऽ२३सी꣢ऽ३। हो꣡वा꣢ऽ३᳐हा꣢इ॥ चवा꣡꣯राऽ२३या꣢ऽ३४३म्। ओ꣡ऽ२३४५इ॥ डा॥

07_0061 त्वमग्ने गृहपतिस्त्वम् - 02 ...{Loading}...
लिखितम्

६१-२। समन्ते द्वे॥ द्वयोर्वरुणो बृहत्यग्निः॥।

त्व꣤म꣥ग्ने꣯गृ। हा꣤ऽ५पतीः꣤॥ त्वꣳ꣢हो꣣ऽ२३४ता꣥। नो꣢अध्वा꣣ऽ२३४रा꣥इ। त्वा꣡ऽ२᳐म्पो꣣ऽ२३४ता꣥। वि꣢श्वा᳐वा꣣ऽ२३४रा꣥। प्र꣢चे꣯ताऽ३ः॥ य꣡क्षाये꣢ऽ३॥ या꣡ऽ२᳐सा꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा॥ च꣢वा꣡꣯रिया꣣ऽ२३꣡४꣡५꣡म्॥

07_0061 त्वमग्ने गृहपतिस्त्वम् - 03 ...{Loading}...
लिखितम्

६१-३। समन्तम्॥

त्व꣥मा꣢ऽ३ग्ने꣤꣯गृ꣥हा꣤पतीः꣥॥ त्वꣳ꣡हो꣯ता꣢꣯नो꣯अ꣡ध्व꣢रे꣯। त्वा꣡ऽ२३म्पो꣯ता꣢। औ꣣꣯हो꣢ऽ३४इ। औ꣯हो꣥꣯। वा꣣꣯हा꣢इ। वा꣡इश्ववा꣢꣯। रप्र꣡चाइताः꣢꣯। औ꣣꣯हो꣢ऽ३४इ। औ꣯हो꣥꣯। वा꣣꣯हा꣢इ॥ य꣡क्षाइयासा꣢। औ꣣꣯हो꣢ऽ३४इ। औ꣯हो꣥꣯। वा꣣꣯हा꣢इ॥ चवा꣡꣯राऽ२३या꣢ऽ३४३म्। ओ꣡ऽ२३४५इ॥ डा॥

08_0062 सखायस्त्वा ववृमहे - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

६२-१। वाम्रम्॥ वाम्रो वैखानस आञ्जिग दानवो वा बृहत्यग्निः॥स꣥खा꣯यस्त्वा꣯औ꣯हो꣤होहा꣥इ॥ व꣢वृ᳐। मा꣣ऽ२३४हा꣥इ। दे꣢꣯वं꣡मर्ता꣢ऽ३हा꣢ऽ३।

[[अथ सप्तम खण्डः]]

09_0063 आ जुहोता - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

६३-१। त्रिष्टुप्श्यावाश्वम्॥ श्यावाश्वस्त्रिष्टुबग्निः॥

आ꣤꣯जु꣥हो꣯ता꣤॥ ह꣢वि꣡षा꣯मर्जयाऽ᳒२᳒ध्वा꣡उवाऽ᳒२᳒। नि꣡हो꣯ता꣯रंगृहपतिन्दधाऽ᳒२᳒इध्वा꣡उवाऽ२३४॥ इ꣣डा꣢ऽ३४स्प꣣दा꣢इ॥ न꣡मसा꣯रा꣯त꣢हा꣡व्याऽ᳒२᳒म्। सा꣡पर्य꣢ता꣡। याजतं꣢पा꣡ऽ२३। स्ति꣤योवा꣥। आ꣤ऽ५नोऽ६"हा꣥इ॥

10_0064 चित्र इच्छिशोस्तरुणस्य - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

६४-१। ऋतुषामणी द्वे॥ द्वयोर्ऋतुर्जगत्यग्निः॥

ओ꣡इ। चित्रइच्छाइशो꣢ऽ१स्तरुणाऽ२३। स्या꣤ऽ३व꣢क्ष꣣थः꣥॥ ओ꣡इ। नयो꣯मा꣯तारा꣢ऽ१वनुवाऽ२३इ। ती꣤ऽ३धा꣢꣯त꣣वे꣥꣯॥ ओ꣡इ। अनू꣯धा꣯याद꣪जी꣯जनाऽ२३त्। आ꣤ऽ३धा꣢꣯चि꣣दा꣥꣯॥ ओ꣡इ। ववक्षत्साद्यो꣢ऽ१महिदूऽ२३। तिया꣢ऽ३ञ्चा꣤ऽ५राऽ६५६न्॥ दू꣢꣯त्य꣡न्चरन्महे꣣ऽ२३꣡४꣡५꣡॥

10_0064 चित्र इच्छिशोस्तरुणस्य - 02 ...{Loading}...
लिखितम्

६४-२।

चि꣥त्राऽ६ए꣥॥ ए꣢ऽ३᳐१२३४। शिशो꣥꣯स्त꣤रु꣥णस्यवक्ष꣤थः꣥। क्ष꣤थः꣥। हिहिहियाऽ६हा꣥उ। ए꣢ऽ३᳐१२३४॥ नयो꣯मा꣥꣯त꣤रा꣥꣯वन्वे꣤꣯ति꣥धा꣤꣯त꣥वे꣯। त꣤वे꣥꣯। हिहिहियाऽ६हा꣥उ॥ ए꣢ऽ३᳐१२३४। अनू꣥꣯धा꣤꣯यदजी꣥꣯जनद꣤धा꣥꣯चिदा꣤꣯। चिदा꣥꣯। हिहिहियाऽ६हा꣥उ। ए꣢ऽ३᳐१२३४॥ ववक्ष꣥त्सद्यो꣤꣯महि꣥दू꣯ति꣤यं꣥च꣤र꣥न्। च꣤र꣥न्। हिहिहियाऽ६हा꣥उ। वा॥ ए꣢ऽ᳐३। ऋ꣢तू꣡न्॥

11_0065 इदं त - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

६५-१। यामम्॥ कौत्सं वा। यमस्त्रिष्टुबग्निः॥ (विश्वेदेवाः)।

ओ꣣ऽ४हा꣥। ह꣣हा꣢इ। इदं꣡तए। का꣢ऽ᳐३म्प꣡रः। ऊ꣢त꣣ए꣤का꣥म्॥ तृ꣢ती꣡꣯ये꣯ना। ज्यो꣯तिषा꣢ऽ᳐३। सं꣢वि꣣श꣤स्वा꣥॥ सं꣢वे꣡꣯शनाः। त꣢नु꣡वे꣯। चा꣢᳐रु꣣रे꣤धी꣥॥ ओ꣣ऽ४हा꣥। ह꣣हा꣢इ। प्रियो꣡꣯दे꣯वा। ना꣢ऽ३म्प꣡र। मा꣢ऽ३४३इ। जा꣢ऽ३᳐ना꣤ऽ५इत्रा"ऽ६५६इ॥

12_0066 इमं स्तोममर्हते - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

६६-१। कौत्सम्॥ कुत्सो जगत्यग्निः यज्ञसारथिः अग्निः॥

इ꣣मꣳ꣢स्तो꣣ऽ२३४मा꣥म्। अ꣢र्हा᳐ते꣣ऽ२३४जा꣥। ता꣡वे꣢꣯द꣡से꣢ऽ३। हो꣡इ॥ र꣣था꣢मी꣣ऽ२३४वा꣥। सं꣢मा᳐हे꣣ऽ२३४मा꣥। मा꣡नी꣢꣯ष꣡या꣢ऽ३। हो꣡इ॥ भ꣣द्रा꣢ही꣣ऽ२३४नाः꣥। प्र꣢मा᳐ती꣣ऽ२३४रा꣥। स्या꣡सꣳ꣢स꣡दे꣢ऽ३। हो꣡इ॥ अ꣣ग्ना꣢इ᳐सा꣣ऽ२३४ख्या꣥इ। मा꣢रा᳐इषा꣣ऽ२३४मा꣥। वा꣡यं꣢त꣡वा꣢ऽ३। हो꣡ऽ२३४५इ॥ डा॥

13_0067 मूर्धानं दिवो - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

६७-१। अग्निर्वैश्वानरस्य सामनी द्वे॥ द्वयोरग्निर्वैश्वानरस्त्रिष्टुबग्निर्वैश्वानरः॥

मू꣥꣯र्धो꣤होहा꣥इ॥ नं꣢दा꣣ऽ२३४इवाः꣥। अ꣡रताइम्। पृथी꣢ऽ३व्याः꣢। वै꣯श्वा꣡꣯नराम्। ऋ꣢त꣡आ꣯। जा꣢᳐त꣣म꣤ग्नी꣥म्॥ क꣢विꣳ꣡सम्रा꣯जमतिथाइम्। ज꣪नाऽ२३ना꣢म्॥ आ꣯स꣡न्नᳲपा। त्रा꣢ऽ३ञ्ज꣡न। या꣢ऽ३४३। ता꣢ऽ३दा꣤ऽ५इवा"ऽ६५६ः॥

13_0067 मूर्धानं दिवो - 02 ...{Loading}...
लिखितम्

६७-२।

हो꣤꣯वा꣥꣯इ। मू꣯र्धो꣤हा꣥इ॥ नं꣢दा꣡इ। वा꣢ऽ३अ꣡र। तिं꣢पृ꣣थि꣤व्याः꣥। इ꣢हो꣯इयाऽ३। ई꣭ऽ३या꣢। वै꣯श्वा꣡꣯नराम्। ऋ꣢त꣡आ꣯। जा꣢त꣣म꣤ग्नी꣥म्। इ꣢हो꣯इयाऽ३। ई꣭ऽ३या꣢॥ कविꣳ꣡सम्रा। जा꣢ऽ३म꣡ति। थिं꣢ज꣣ना꣤ना꣥म्। इ꣢हो꣯इयाऽ३। ई꣭ऽ३या꣢॥ आ꣯स꣡न्नᳲपा। त्रा꣢ऽ३ञ्ज꣡न। यं꣢त꣣दे꣤वाः꣥। इ꣢हो꣯इयाऽ३। ई꣡ऽ२᳐। या꣣ऽ२३४। औ꣥꣯हो꣯वा॥ ई꣣ऽ२३꣡४꣡५꣡॥