०१ २

[[अथ प्रथमप्रपाठके द्वितीयोऽर्धः]]

21_0021 अग्निं वो - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

२१-१। सैन्धुक्षितानि॥ त्रयाणां सिन्धुक्षिद्गायत्र्यग्निः॥ (स्वारं सैन्धुक्षितम्)।अ꣥ग्निंवो꣯वृधा꣤न्ता꣥म्॥ आ꣡ध्वरा꣢꣯णा꣯म्। पुरू꣡तामौ꣢꣯। हो꣯वाऽ३᳐हा꣢इ॥ आ꣡च्छाऽ᳒२᳒ना꣡प्त्रेऽ२३॥ स꣢हो꣡ऽ२३४वा꣥। स्वा꣤ऽ५तोऽ६"हा꣥इ॥

21_0021 अग्निं वो - 02 ...{Loading}...
लिखितम्

२१-२।

अ꣥ग्निंवाऽ६ए꣥॥ वृ꣢ध꣡न्ताम्। अध्वरा꣯णा꣯म्पुरू꣯तममच्छाऽ᳒२᳒होऽ१इ॥ नाऽ२३प्त्रे꣢। सहा꣡स्वाऽ२३४५ताऽ६५६इ॥ ई꣣ऽ२३४ती꣥॥

21_0021 अग्निं वो - 03 ...{Loading}...
लिखितम्

२१-३। ऐडं सैंधुक्षितम्॥

अ꣥ग्निं꣤वः꣥। ओ꣤हाइ॥ वृ꣡धाऽ२३न्ता꣢म्। अ꣡ध्वरा꣯णा꣯म्पुरू꣢ऽ१ता꣢᳐ऽ३मा꣢म्॥ अच्छा꣯नप्त्रो꣣ऽ२३४हा꣥इ॥ सा꣡हा꣢ऽ३हा꣢। स्वता꣡। औ꣢ऽ३᳐हो꣤वा꣥॥ हो꣤ऽ५इ॥ डा॥

22_0022 अग्निस्तिग्मेन शोचिषा - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

२२-१। हरसी द्वे॥ द्वयोरग्निर्गायत्र्यग्निः॥

आ꣡ग्ना꣢᳐ओ꣣ऽ२३४वा꣥॥ ति꣢ग्मे꣯नऽ३᳐शो꣡। चाइषा꣢᳐ओ꣣ऽ२३४वा꣥॥ याꣳ꣡सा꣢᳐ओ꣣ऽ२३४वा꣥॥ वा꣡इश्वान्निया। त्राइणा꣢᳐ओ꣣ऽ२३४वा꣥॥ अ꣢ग्नि꣡र्नो꣰꣯ऽ२वꣳसते꣯र꣣यी꣢ऽ१म्॥

22_0022 अग्निस्तिग्मेन शोचिषा - 02 ...{Loading}...
लिखितम्

२२-२।

ओ꣤हा꣥। ओ꣤ग्नीः꣥॥ ता꣣ऽ२३४इग्मे꣥। ना꣢शो᳐चा꣣ऽ२३४इषा꣥। यꣳ꣡साऽ२᳐द्वा꣣ऽ२३४इश्वा꣥म्। नि꣢यत्रा꣣ऽ२३४इणा꣥म्॥ अ꣢ग्नि꣡र्नो꣰꣯ऽ२᳐। वꣳ꣡साऽ२᳐ता꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा॥ रा꣣ऽ२३४यी꣥म्॥

22_0022 अग्निस्तिग्मेन शोचिषा - 03 ...{Loading}...
लिखितम्

२२-३। इहवद्वामदेव्यम्॥ वामदेवो गायत्र्यग्निः॥अ꣥ग्नि꣤स्ति꣥ग्मे꣤꣯न꣥शो꣯चि꣤षा꣥꣯। इ꣤हा॥ यꣳ꣡सद्विश्वन्यत्रिणाऽ᳒२᳒म्। इ꣡हा꣢॥ अग्नि꣡र्नो꣯वꣳसताऽ᳒२᳒इ। इ꣡हा꣢ऽ३॥ रा꣡ऽ२३४यो꣥ऽ६"हा꣥इ॥

23_0023 अग्ने मृड - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

२३-१। यामम्॥ यमो गायत्र्यग्निः॥

अ꣡ग्नाइमृ꣪डाऽ२᳐। म꣣हाꣳ꣢आ꣣ऽ२३४सी꣥॥ अ꣡यआ꣯दाऽ२᳐इ। व꣣यु꣢ञ्जा꣣ऽ२३४ना꣥म्॥ इ꣡ये꣯थबाऽ२३॥ हिरा꣢ऽ३सा꣤ऽ५"दाऽ६५६म्॥

23_0023 अग्ने मृड - 02 ...{Loading}...
लिखितम्

२३-२। उत्तरयामम्॥ यमो गायत्र्यग्निः॥

अ꣣ग्ने꣤꣯मृड꣣म꣤हा꣣꣯ऽꣳअ꣤सि꣥। ओ꣣꣯हा꣢ऽ३ओ꣤हा꣥॥ अ꣣य꣤आ꣣꣯दे꣤꣯वयु꣣ञ्ज꣤न꣥म्। ओ꣣꣯हा꣢ऽ३᳐ओ꣤हा꣥॥ इ꣢ये꣡꣯थाऽ२३ब꣢॥ हि꣣रा꣢ऽ३सा꣤ऽ५"दाऽ६५६म्॥

24_0024 अग्ने रक्षा - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

२४-१। राक्षोघ्नम्॥ अग्निर्गायत्र्यग्निः॥

अ꣥ग्ने꣯रा꣢ऽ३क्षा꣤꣯णो꣥꣯अꣳ꣤हसाः꣥॥ प्र꣡तिस्मदे꣯व꣢रि꣡षाऽ२३ताः꣢॥ तपा꣡इष्ठाऽ२३इरा꣢॥ जरो꣡꣯दाऽ२३हा꣢ऽ३४३। ओ꣡ऽ२३४५इ॥ डा॥

25_0025 अग्ने युङ्क्ष्वा - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

२५-१। राक्षोघ्नम्॥ अग्निर्गायत्र्यग्निः॥

अ꣥ग्ने꣯यू꣢ऽ३ङ्क्ष्वा꣤꣯हि꣥ये꣤꣯तवा꣥॥ अ꣡श्वा꣯सो꣯दे꣯व꣢सा꣡꣯धाऽ२३वाः꣢॥ अरं꣡वाऽ२३हा꣢॥ तिया꣡꣯शाऽ२३वा꣢ऽ३४३ः। ओ꣡ऽ२३४५इ॥ डा॥

26_0026 नि त्वा - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

२६-१। वैश्वमनसम्॥ विश्वमना गायत्र्यग्निः॥नि꣥त्वा꣯। हो꣢ऽ३इ। न꣤। क्षिया꣥॥ वा꣡इश्प꣢ता꣡इ। द्यु꣢म꣡न्त꣢म्। धा꣡इ। माहे꣢वा꣣ऽ२३४या꣥म्॥ सुवो꣤हाइ॥ रा꣢꣯म꣡ग्ना꣢꣯ओ꣡ऽ२३४वा꣥। हो꣤ऽ५तोऽ६"हा꣥इ॥

27_0027 अग्निर्मूर्धा दिवः - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

२७-१। अग्नेः आर्षेयम्॥ अग्निर्गायत्र्यग्निः॥

अ꣥ग्निर्मू꣯र्धा꣯दीऽ६वᳲ꣥ककूत्॥ पा꣡तीऽ᳒२ᳲ᳒पा꣡र्थीऽ᳒२᳒। विया꣡꣯अयाम्॥ आपाऽ᳒२ꣳ᳒रा꣡इताऽ᳒२᳒॥ सिजि꣡न्वाऽ२३ता꣢᳐ऽ३४३इ। ओ꣡ऽ२३४५इ॥ डा॥

28_0028 इममू षु - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

२८-१। सोमसाम॥ सोमो गायत्र्यग्निः॥

इ꣥ममू꣯षू॥ त्व꣢मा꣡स्माऽ२३४का꣥म्। सा꣡नीऽ᳒२ꣳ᳒हो꣡इ। गायाऽ᳒२᳒हो꣡। त्र꣢न्न꣡व्याऽ२३ꣳसा꣢म्॥ आ꣡ग्नेऽ᳒२᳒हो꣡इ। दाइवाऽ᳒२᳒हो꣡॥ षु꣢प्रा꣡वोऽ२३चा꣢ऽ᳐३४३ः। ओ꣡ऽ२३४५इ॥ डा॥

29_0029 तं त्वा - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

२९-१। गौपवनम्॥ गोपवनो गायत्र्यग्निः॥

तं꣥त्वा꣯गो꣯पा॥ वा꣡नोऽ२᳐गा꣣ऽ२३४इरा꣥। ज꣢ना꣡इष्ठ꣢दा꣡। ग्न꣪याऽ२᳐ङ्गा꣣ऽ२३४इराः꣥॥ स꣢पौवा᳐ओ꣣ऽ२३४वा꣥। कौ꣢वा᳐ओ꣣ऽ२३४वा꣥॥ श्रु꣤धीऽ५हवाम्॥ हो꣤ऽ५इ॥ डा॥

30_0030 परि वाजपतिः - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

३०-१। सौर्यम्॥ सूर्यवर्च्चा वा वसुरोचिर्वा गायत्र्यग्निः॥

प꣤र्यौ꣥꣯। हो꣤इवाजा꣥॥ प꣢ता꣡इᳲका꣢ऽ१वीऽ᳒२ः᳒। आ꣡ग्निर्ह꣢व्या꣯। ना꣡य꣪क्रमीऽ᳒२᳒त्॥ द꣡धाऽ२३त्॥ रा꣡ऽ२᳐त्ना꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा॥ नि꣢दा꣯शु꣡षे꣣ऽ२३꣡४꣡५꣡।

31_0031 उदु त्यम् - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

३१-१। सौर्यम्॥ सूर्यो गायत्री सूर्यः॥उ꣤दु꣥त्य꣤म्। ओहाइ॥ जा꣡। त꣪वेऽ२᳐दा꣣ऽ२३४सा꣥म्। दे꣢꣯वं꣡वहा। तीके꣢ता꣣ऽ२३४वाः꣥॥ दा꣡ऽ२३४र्शे꣯हा꣥इ॥ वा꣡इश्वा꣢꣯यसू꣡꣯। र्याम्। औऽ२३हो꣤वा꣥। हो꣤ऽ५इ॥ डा॥

32_0032 कविमग्निमुप स्तुहि - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

३२-१। कावम्॥ कविर्वसुरोचिर्गायत्र्यग्निः॥

क꣥विमग्नीम्॥ उ꣢पा꣡ऽ२३। स्तू꣡ऽ२᳐हा꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा॥ स꣢त्य꣡ध꣢र्मा꣯णमध्वरे꣡꣯॥ दे꣢꣯वाम्॥ अमी꣯वचा꣡꣯ताऽ२३ना꣢᳐ऽ३४३म्। ओ꣡ऽ२३४५इ॥ डा॥

33_0033 शं नो - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

३३-१। काशीतम्॥ कापीतं वा सुमन्दं वा। पारावतो (पारावतिर्वा) गायत्र्यग्निः॥

श꣥न्नो꣯दे꣯वीः॥ अ꣢भि꣡ष्टाऽ२३या꣢ऽ३४इ॥ श꣥न्नो꣯भवा॥ तु꣢पी꣡꣯ताऽ२३या꣢ऽ᳐३४इ॥ शं꣥यो꣯रभी॥ स्र꣢व꣡। तूऽ२᳐। ना꣣ऽ२३४। औ꣥꣯हो꣯वा॥ ऊ꣣ऽ२३४पा꣥॥

33_0033 शं नो - 02 ...{Loading}...
लिखितम्

३३-२। काशीतोत्तरम्॥ पारावतो गायत्र्यग्निः॥

हु꣣वा꣢᳐ऽ३हो꣡ऽ२३४इ। शन्नो꣯दे꣥꣯वीः꣯। अ꣤भिष्ट꣥याइ॥ हु꣣वा꣢ऽ३हो꣡ऽ२३४इ। शन्नो꣯भ꣥व। तु꣤पी꣯त꣥याइ॥ हु꣣वा꣢ऽ३᳐हो꣡ऽ२३४इ। शंयो꣯र꣥भि। स्र꣤वन्तु꣥नाः॥ हु꣣वा꣢ऽ३हो꣡ऽ२᳐। वा꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा॥ ऊ꣣ऽ२३४पा꣥॥

34_0034 कस्य नूनम् - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

३४-१। मनाज्ये द्वे॥ द्वयोर्गोतमो (गोराङ्गिरसो वा) गायत्र्यग्निः॥

क꣡स्यानू꣢ऽ१नाऽ२᳐म्। प꣣री꣢णा꣣ऽ२३४सी꣥॥ धि꣡यो꣯जिन्वाऽ२᳐। सि꣣स꣢त्पा꣣ऽ२३४ता꣥इ। गो꣡षा꣢꣯ता꣯या꣡ऽ२३॥ स्या꣡ऽ२᳐ता꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा॥ उ꣢प्‌᳐। गी꣣ऽ२३४राः꣥॥

34_0034 कस्य नूनम् - 02 ...{Loading}...
लिखितम्

३४-२। गौराङ्गिरसस्य साम॥ गौतमस्य मनाज्यं वा मनाज्योत्तरं वा॥ओ꣢꣯हो꣯इहुऽ३᳐वा꣡ऽ२३इ। हु꣢व꣣ए꣢। कस्यनू꣯नांऽ३᳐पा꣤ऽ३री꣢꣯ण꣣सि꣥॥ ओ꣢꣯हो꣯इहुऽ३᳐वा꣡ऽ२३इ। हु꣢व꣣ए꣢। धियो꣯जिन्वाऽ३᳐सी꣤ऽ३स꣢त्प꣣ता꣥इ॥ ओ꣢꣯हो꣯इहुऽ३᳐वा꣡ऽ२३इ। हु꣢व꣣ए꣢। गो꣯षा꣯ता꣯य॥ स्य꣣ता꣢ऽ३इगा꣤ऽ५"इराऽ६५६ः॥

[[अथ तुरीय खण्डः]]

35_0035 यज्ञायज्ञा वो - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

३५-१। उपहवौ द्वौ॥ द्वयोर्भरद्वाजो बृहत्यग्निः॥

य꣥ज्ञा꣯यज्ञा॥ वो꣢꣯अग्नयाऽ३᳐इ। गि꣡राऽ२᳐गि꣣रा꣢ऽ३᳐४। हा꣣꣯हो꣢ऽ३᳐इ। चा꣡द꣢क्षा꣣ऽ२३४सा꣥इ। प्र꣡प्रा꣰꣯ऽ२वय꣡ममृतंजा꣢꣯। ता꣡वे꣢ऽ१दासाऽ᳒२᳒म्॥ प्रिय꣡म्मित्राम्। न꣢शꣳ꣡सिषाम्॥ ए꣣꣯हिया꣢। औ꣣꣯हौ꣯होऽ२३४५इ॥ डा॥

35_0035 यज्ञायज्ञा वो - 02 ...{Loading}...
लिखितम्

३५-२।

य꣤ज्ञा꣣꣯य꣤ज्ञा꣥꣯। हो꣢इ। वोऽ३᳐ग्न꣢य꣣ए꣢ऽ३४। हि꣥या॥ गि꣣रा꣯गि꣢रा꣡। चाऽ२᳐द꣣क्ष꣢सा꣡इ। प्र꣢प्रा꣣꣯व꣢या꣡म्। अ꣢मृ꣡तंजा꣢ऽ३᳐। त꣡वेऽ२᳐दा꣣ऽ२३४सा꣥म्॥ प्रि꣢य꣡म्मित्राम्। न꣢शꣳ꣡सिषाम्॥ ए꣣꣯हिया꣢। औ꣣꣯होऽ२३४५इ॥ डा॥

35_0035 यज्ञायज्ञा वो - 03 ...{Loading}...
लिखितम्

३५-३। श्नौष्टीगवम्॥ श्नुष्टीगुर्बृहत्यग्निः॥

या꣡ज्ञा꣯याज्ञाऽ᳒२᳒। वो꣡अग्नायाऽ᳒२᳒इ॥ गा꣡इरा꣯गाइराऽ᳒२᳒। चा꣡द꣪क्षासाऽ᳒२᳒इ। प्र꣡प्रावायाऽ᳒२᳒म्। अमृ꣡तंजा꣢ऽ३᳐। त꣡वेऽ२᳐दा꣣ऽ२३४सा꣥म्॥ प्रा꣡यम्माइत्राऽ᳒२᳒म्॥ ना꣡श꣪ꣳसाऽ२३इषा꣢ऽ᳐३४३म्। ओ꣡ऽ२३४५इ॥ डा॥

35_0035 यज्ञायज्ञा वो - 04 ...{Loading}...
लिखितम्

३५-४। यज्ञायज्ञीयम्॥ (भरद्वाजः) अग्निर्वैश्वानरो बृहत्यग्निः॥

य꣤ज्ञा꣣ऽ५य। ज्ञा꣤ऽ३वो꣢ऽ३᳐ग्ना꣤या꣥इ॥ गा꣡इरा꣯गिरा। चा꣢ऽ३᳐दा꣡क्षा꣢ऽ३᳐सा꣢इ। प्र꣡प्रा꣰꣯ऽ२᳐वय꣡ममृतम्। जा꣯ताऽ२३वा꣢। हि꣡म्माइ॥ दा꣢ऽ३सा꣢म्॥ प्रा꣡यम्मित्रन्नशाऽ२ꣳ᳐सि꣣षा꣢उ॥ वाऽ३꣡४꣡५꣡॥

36_0036 पाहिनो अग्न - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

३६-१। कार्त्तयशम्॥ कृतयशाः बृहत्यग्निः॥

पा꣥꣯हिनो꣢᳐ऽ३अ꣤ग्न꣥ए꣤꣯कया꣥॥ पा꣡हियु꣢त। द्विता꣡या꣢ऽ१याऽ᳒२᳒। पा꣡हिगी꣢꣯र्भिस्तिसृभिः। ऊ꣯र्जा꣡म्पा꣢ऽ१ताऽ᳒२᳒इ॥ पा꣡हिच꣢तौ꣭ऽ३। हो꣢᳐ऽ३वा꣢॥ सृभि꣡र्वाऽ२३सा꣢ऽ३४३उ। ओ꣡ऽ२३४५इ॥ डा॥

36_0036 पाहिनो अग्न - 02 ...{Loading}...
लिखितम्

३६-२। नार्मेधम्॥ नृमेधा (भरद्वाजः) बृहत्यग्निः॥

पा꣥꣯हिनो꣯अग्नए꣯कयाऽ६ए꣥॥ पा꣢꣯। हो꣡इ। उ꣢। ता꣡। द्वि꣢ता꣡या꣢ऽ३᳐या꣢। पा꣡꣯होऽ२᳐इगा꣣ऽ२३४इर्भीः꣥। ता꣡इसृभिः꣢॥ ऊ꣯र्जा꣡म्पाता꣢। औ꣣꣯हौ꣯होऽ२३४वा꣥। पा꣡ऽ२३४हिहा꣥इ॥ च꣢ता꣡सृभा꣢। औ꣣꣯हौ꣯होऽ२३४वा꣥॥ वा꣡ऽ२३४साउ। ए꣥꣯हियाऽ६हा꣥। हो꣤ऽ५इ॥ डा॥

36_0036 पाहिनो अग्न - 03 ...{Loading}...
लिखितम्

३६-३। कार्त्तवेशम्॥ कृतवेशो (भरद्वाजः) बृहत्यग्निः॥

पा꣤꣯हि꣣नो꣤꣯अ꣥ग्नए꣯। क꣣या꣢ऽ३। पा꣡ऽ२३४। हियु꣥तद्विती꣯। या꣤या꣥॥ पा꣤꣯हि꣣गी꣤꣯र्भि꣣स्ति꣤सृ꣣भि꣤रू꣥꣯र्जा꣯म्। पा꣢ऽ३ता꣢इ॥ पा꣡꣯होइचा꣢ऽ᳐३ता꣢ऽ३᳐४। हा꣥꣯ओ꣤वा꣥॥ सृ꣡भि꣢र्वसो꣯॥ उ꣡पा꣣ऽ२३꣡४꣡५꣡॥

37_0037 बृहद्भिरग्ने अर्चिभिः - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

३७-१। पृश्नि॥ भरद्वाजो बृहत्यग्निः॥

बृ꣢हा꣡द्भीऽ२३र꣤ग्ने꣯अर्चिभिर्हा꣥उ॥ शु꣢क्रा꣡इणदे꣢꣯वशो꣯चि꣡षा꣢꣯। भ꣡राद्वा꣢ऽ१जेऽ२३। हो꣡वा꣢ऽ३᳐हा꣢इ। स꣡मिधा꣢꣯नः। या꣡वि꣪ष्ठियाऽ२३। हो꣡वा꣢ऽ३᳐हा꣢इ॥ रे꣯वा꣡त्पा꣢ऽ१वाऽ२३। हो꣡वा꣢ऽ३᳐हा꣢इ॥ का꣡दी꣯दि꣢हि। इ꣡डाऽ२३भा꣢ऽ३४३। ओ꣡ऽ२३४५इ॥ डा॥

37_0037 बृहद्भिरग्ने अर्चिभिः - 02 ...{Loading}...
लिखितम्

३७-२। पृश्नि॥ भरद्वाजो बृहत्यग्निः॥

बृ꣥हद्भिरग्ने꣯अर्चिभीऽ६रे꣥॥ शु꣢क्रा꣡इणदे꣢꣯वशो꣯चि꣡षा꣢꣯। भ꣡राद्वा꣢ऽ१जेऽ२३। ओ꣭ऽ३वा꣢। स꣡मिधा꣢꣯नः। या꣡वि꣪ष्ठियाऽ२३। ओ꣭ऽ३वा꣢॥ रे꣯वा꣡त्पा꣢ऽ१वाऽ२३। ओ꣭ऽ३वा꣢॥ का꣡दी꣯दि꣢हि। इ꣡डाऽ२३भा꣢ऽ३४३। ओ꣡ऽ२३४५इ॥ डा॥

38_0038 त्वे अग्ने - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

३८-१। उरोराङ्गिरसस्य साम॥ उरुर्बृहत्यग्निः॥

त्वे꣡꣯आऽ२३ग्ने꣤꣯स्वा꣯हुतहा꣥उ॥ प्रि꣢या꣡꣯सस्स꣢न्तुसू꣯र꣡यः꣢। य꣡न्तारो꣢ऽ१याऽ२३४इ। मघ꣣वा꣤꣯नो꣥꣯ज꣤ना꣥꣯। ना꣢ऽ३᳐म्॥ ऊ꣡र्व꣪न्दयाऽ२३हा꣢॥ तगो꣡꣯ना꣰꣯ऽ२म्। इ꣡डाऽ२३भा꣢ऽ३४३। ओ꣡ऽ२३४५इ॥ डा॥

39_0039 अग्ने जरितर्विश्पतिस्तपानो - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

३९-१। पौरुमद्गे द्वे॥ द्वयोर्गोतमो बृहत्यग्निः॥

अ꣤ग्ने꣥꣯ज꣤रि꣥तर्विश्प꣤तिः꣥। औ꣯हो꣤वा। एहि꣥या꣯। हाउ॥ त꣢पा꣯नो꣡꣯दे꣰꣯ऽ२वरक्ष꣡सः꣢। अ꣡प्रोषा꣢ऽ१इवाऽ᳒२᳒न्। गा꣡र्हपता꣢ऽ३इ। मा꣡हा꣢ऽꣳआ꣣ऽ२३४सी꣥॥ दि꣡वाः। पायौ꣢वाओ꣣ऽ२३४वा꣥॥ हा꣢ऽ३᳐हा꣢इ। दु꣤रोऽ५णयूः। हो꣤ऽ५इ॥ डा॥

39_0039 अग्ने जरितर्विश्पतिस्तपानो - 02 ...{Loading}...
लिखितम्

३९-२।

अ꣣ग्ने꣤꣯ज꣣रि꣤त꣥र्वि। श्प꣣ती꣢ऽ३ः। ता꣡ऽ२३४। पा꣯नो꣯दे꣥꣯वर। क्ष꣤साः꣥॥ ता꣡पा꣯नो꣯दे꣯वरक्षसो। अप्रोषी꣢ऽ३᳐वा꣢न्। गृ꣡ह꣢पता꣡इ। माहा꣢ऽꣳआ꣣ऽ२३४सी꣥॥ ओ꣣ऽ४हा꣥। ह꣣हा꣢इ᳐। दि꣣वस्पा꣢꣯यू꣡ऽ२३꣡४꣡५ः꣡॥ ओ꣣ऽ४हा꣥। ह꣣हा꣢इ᳐। दु꣣रो꣯ण꣢यू꣡ऽ२३꣡४꣡५ः꣡॥ ओ꣣ऽ४हा꣥। ह꣣हा꣢ऽ३᳐४३इ। ओ꣡ऽ२३४५इ॥ डा॥

40_0040 अग्ने विवस्वदुषसश्चित्रम् - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

४०-१। माण्डवे द्वे॥ जमदग्निः द्वयोर्मण्डुर्बृहत्यग्निः॥

अ꣥ग्ने꣯विवा꣯हाउ॥ स्वा꣢ऽ३दू꣡षा꣢ऽ३साः꣢। चा꣡इत्रा꣢ऽ३ꣳ᳐हा꣢इ। रा꣡धो꣢ऽ३हा꣢ऽ३᳐इ। अ꣡माऽ२᳐र्ता꣣ऽ२३४या꣥। आ꣡दा꣢ऽ१शुषेऽ᳒२᳒। जा꣡तवे꣢꣯दः। वहा꣡तू꣢ऽ१वाऽ᳒२᳒म्॥ अद्या꣡꣯होइ। दाऽ२३इवाꣳ꣢॥ उषः꣡। बूऽ२᳐धा꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा॥ हु꣢वे꣯व꣡सू꣣ऽ२३꣡४꣡५꣡॥

40_0040 अग्ने विवस्वदुषसश्चित्रम् - 02 ...{Loading}...
लिखितम्

४०-२। विदावसुनिधनम्। माण्डवम्॥

अ꣥ग्ने꣯विवस्वदुषा꣤साः꣥॥ चि꣢त्रꣳ꣡रा꣯धो꣢꣯अ꣡मा꣰꣯ऽ२र्तिय। आ꣡दा꣢ऽ१शुषेऽ᳒२᳒। जा꣡तवे꣢꣯दः। वहा꣡तू꣢ऽ१वाऽ᳒२᳒म्॥ अद्या꣡꣯दाऽ२३इवाꣳ꣢॥ उषः꣡। बूऽ२᳐धा꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा॥ वि꣢दा꣯व꣡सू꣣ऽ२३꣡४꣡५꣡॥

41_0041 त्वं नश्चित्र - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

४१-१। गाथम्॥ भरद्वाजो बृहत्यग्निः॥

त्व꣡न्नाऽ२३श्चि꣤त्रऊ꣥꣯त्या॥ व꣢सो꣡राधा꣢। सिचो꣡दा꣢ऽ१याऽ२३। आ꣡स्या꣢रा꣣ऽ२३४याः꣥। त्व꣡मग्ने꣢꣯। रथा꣡इरासा꣢ऽ३इ॥ वी꣡दा꣢गा꣣ऽ२३४धा꣥म्। तु꣢चा꣡ऽ२३हा꣢इ॥ तुना꣡। औ꣢ऽ३᳐हो꣤वा꣥। हो꣤ऽ५इ॥ डा॥