०१ १

अथ प्रथम प्रपाठके प्रथमोऽर्द्धः

[[अथ प्रथम खण्डः]]

01_0001 अग्न आ - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

१-१। पर्कः॥ गोतमो गायत्र्यग्निः॥

ओ꣤ग्नाइ॥ आ꣢꣯या꣯हीऽ३वो꣡इतोयाऽ᳒२᳒इ। तो꣡याऽ᳒२᳒इ। गृ꣡णा꣯नो꣢꣯ह। व्यदा꣡तोयाऽ᳒२᳒इ। तो꣡याऽ᳒२᳒इ॥ ना꣡इहो꣢꣯ता꣡साऽ२३॥ त्सा꣡ऽ२᳐इबा꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा॥ ही꣣ऽ२३४षी꣥॥

01_0001 अग्न आ - 02 ...{Loading}...
लिखितम्

१-२। बर्हिष्यम्॥ कश्यपो गायत्र्यग्निः॥
अ꣤ग्न꣥आ꣤꣯या꣥꣯हिवी꣤॥ त꣡याइ। गृणा꣯नो꣯हव्यदा꣯ताऽ२३या꣢इ। नि꣡हो꣯ता꣯ सत्सि꣢ ब꣡र्हाऽ२३इषी꣢॥ ब꣡र्हाऽ२᳐इषा꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा॥ ब꣢र्ही᳐ऽ३षी꣡ऽ२३꣡४꣡५꣡॥

01_0001 अग्न आ - 03 ...{Loading}...
लिखितम्

१-३। पर्कः॥ गोतमो गायत्र्यग्निः॥

अ꣤ग्न꣥आ꣤꣯या꣥꣯हि। वा꣤ऽ५इतया꣤इ॥ गृ꣡णा꣯नो꣯हव्यदा꣢ऽ१ता꣢ऽ३ये꣢॥ निहो᳐ता꣣ऽ२३४सा꣥॥ त्सा꣡ऽ२३इबा꣢ऽ३। हा꣡ऽ२३४इषो꣥ऽ६हा꣥इ॥

02_0002 त्वमग्ने यज्ञानाम् - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

२-१। सौपर्णम्, सुपर्णोः वैश्वमनसम्॥ विश्वमनाः गायत्र्यग्निः॥

त्व꣤म꣥ग्ने꣯यज्ञा꣤꣯ना꣥꣯म्। त्व꣤म꣥ग्ना꣤इ॥ य꣢ज्ञा꣡꣯नाꣳ꣯हो꣯ता꣯। विश्वे꣯षाꣳ꣯हाऽ२३इताः꣢॥ दे꣯वै꣡꣯भाऽ२३इर्मा꣢। नु꣣षे꣯ज꣢ना꣡। औ꣢ऽ३हो꣤वा꣥। हो꣤ऽ५इ॥ डा॥

03_0003 अग्निं दूतम् - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

३-१। बृहद्भारद्वाजम्॥ (बृहदाग्नेयं, बृहद्वासौरम्)। भरद्वाजो गायत्र्यग्निः॥

अ꣥ग्निन्दू꣯ताम्॥ वृ꣢णी꣡꣯महाइ। हो꣯ता꣯रांऽ२३वी꣢। श्ववे꣡꣯दसाम्॥ अस्ययाऽ२३ज्ञा꣢। आ꣡। औ꣢ऽ३हो꣯वा꣢॥ स्या꣡सुक्र꣢तुम्। इ꣡डाऽ२३भा꣢ऽ३४३। ओ꣡ऽ२३४५इ॥ डा॥

04_0004 अग्निर्वृत्राणि जङ्घनद् - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

४-१। श्रौतर्षाणि त्रीणि श्रौतर्षम्॥ त्रयाणां श्रुतर्षिः गायत्र्यग्निः॥

अ꣥ग्निर्वृत्रा॥ णा꣡ऽ२᳐इजा꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा। घा꣣ऽ२३४ना꣥त्। द्र꣢विणस्यु꣡र्विप꣢न्य꣡या꣰꣯ऽ२। ओ꣡इसमिद्धाऽ२३श्शू꣢॥ क्रा꣡या꣯हु꣢तः। इ꣡डाऽ२३भा꣢ऽ३४३। ओ꣡ऽ२३४५इ॥ डा॥

04_0004 अग्निर्वृत्राणि जङ्घनद् - 02 ...{Loading}...
लिखितम्

४-२।अ꣣ग्नि꣢रौ꣣꣯हो꣤वाहा꣥इ। वृत्रा꣤णी꣥॥ जा꣡ङ्घा꣢ऽ३ना꣢त्। औ꣡हो꣢ऽ३वा꣢ऽ३। द्र꣡विणा꣣ऽ२३४स्यूः꣥। ओ꣡इवोइप꣪न्ययाऽ᳒२᳒॥ स꣡माये꣢ऽ३᳐। धा꣡ऽ२᳐श्शू꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा। क्र꣢या꣡꣯हुता꣣ऽ२३꣡४꣡५ः꣡॥

04_0004 अग्निर्वृत्राणि जङ्घनद् - 03 ...{Loading}...
लिखितम्

४-३।

ओ꣤ग्नीः꣥॥ वृ꣢त्रा꣡꣯णिजङ्घनात्। औ꣣꣯हौ꣢हो꣣ऽ२३४वा꣥। द्र꣢विणस्यु꣡र्विप꣢न्य꣡या। औ꣣꣯हौ꣢हो꣣ऽ२३४वा꣥॥ स꣡मिद्ध꣢श्शुक्र꣡या। औ꣣꣯हौ꣢हो꣣ऽ२३४वा꣥॥ हो꣤ऽ५तोऽ६"हा꣥इ॥

05_0005 प्रेष्ठं वो - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

५-१। औशनम्॥ उशना विराड्गायत्र्यग्निः॥

प्रे꣤꣯ष्ठं꣥वाः꣤॥ अ꣡ताऽ२३इथी꣢म्। स्तौ꣡षे꣯मि꣢त्रम्। इव꣡प्राऽ२३या꣢म्॥ अ꣡ग्नाइरा꣢ऽ३था꣢ऽ३म्॥ ना꣡वाऽ२३हा꣢ऽ३४३इ॥ दा꣡ऽ२३४यो꣥ऽ६"हा꣥इ॥

05_0005 प्रेष्ठं वो - 02 ...{Loading}...
लिखितम्

५-२। शैरीषम्॥ शिरीषो उशना गायत्र्यग्निः॥

प्रे꣤꣯ष्ठं꣥वः। ओ꣤हाइ॥ अ꣡ताऽ२३इथी꣢म्। स्तुषाइमित्रा᳐ऽ३म्। इ꣡वाऽ२᳐प्रा꣣ऽ२३४या꣥म्॥ औ꣢꣯होऽ१इ। अग्ने꣢꣯रा꣡थाऽ२३म्॥ ना꣡ऽ२३वे꣤ऽ३। दा꣢ऽ३४५योऽ६"हा꣥इ॥

05_0005 प्रेष्ठं वो - 03 ...{Loading}...
लिखितम्

५-३। औशनम्॥ उशना विराड्गायत्र्यग्निः॥

प्रे꣥꣯ष्ठंवो꣯हाउ॥ अ꣡तिथाइम्। स्तुषे꣯मित्रमिवप्राऽ२३या꣢म्॥ अ꣡ग्नाये꣢ऽ३। रा꣡ऽ२᳐था꣣ऽ२३४ औ꣥꣯हो꣯वा॥ न꣢वे꣡꣯दिया꣣ऽ२᳐३꣡४꣡५꣡म्॥

06_0006 त्वं नो - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

६-१। सांवर्गम्॥ (संवर्गः) साकमश्वः गायत्र्यग्निः॥त्व꣥न्नो꣯या॥ ग्ने꣢꣯म꣡हो꣢꣯भिः। पा꣡꣯होइवी꣢ऽ३श्वा꣢। स्या꣡꣯अरा꣯तेः꣢꣯॥ उ꣡ताद्वा꣢ऽ१इषाऽ᳒२ः᳒॥ म꣡र्त्य꣢स्य। इ꣡डाऽ२३भा꣢ऽ३४३। ओ꣡ऽ२३४५इ॥ डा॥

06_0006 त्वं नो - 02 ...{Loading}...
लिखितम्

६-२। वार्त्रघ्नम्॥ साकमश्वः गायत्र्यग्निः॥

त्वां꣤꣯त्वन्नो꣥꣯अग्ने꣯म꣤। हो꣥ऽ६भा꣥इः॥ पा꣢꣯हि꣡विश्वाऔ꣢ऽ३हो꣢। स्या꣡औ꣢ऽ३हो꣢। आ꣡रातेः꣢। उ꣡ताद्वा꣢ऽ१इषाऽ᳒२ः᳒। म꣡र्ताऽ२᳐या꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा॥ स्या꣣ऽ२३꣡४꣡५꣡॥

07_0007 एह्यू षु - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

७-१। शौनश्शेपम्॥ वत्सः गायत्र्यग्निः॥

ए꣥꣯ह्यू꣯षू꣢ऽ३ब्र꣤वा꣯णा꣥ऽ६इता꣥इ॥ अ꣡ग्नइत्थे꣯तरा꣯गाऽ᳒२᳒इराः꣡॥ ए꣢꣯भाऽ᳒२᳒इर्व꣡र्द्धा॥ स꣡याऽ२३हा꣢ऽ᳐३४३इ॥ दू꣡ऽ२३४भो꣥ऽ६"हा꣥इ॥

07_0007 एह्यू षु - 02 ...{Loading}...
लिखितम्

७-२। शौनश्शेपम्॥ शौनश्शेपः गायत्र्यग्निः॥

ए꣥꣯ह्यू꣯षुब्रवौ꣯ हो꣤णाइता꣥इ॥ अ꣡ग्नइत्थे꣯तरा꣢ऽ१गी꣢ऽ३राः꣢॥ एभि᳐र्वा꣣ऽ२३४र्द्धा꣥॥ स꣡याऽ२३हा꣢ऽ᳐३४३इ॥ दू꣡ऽ२३४भो꣥ऽ६"हा꣥इ॥

08_0008 आ ते - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

८-१। वात्से द्वे॥ वत्सो गायत्र्यग्निः॥

आ꣥꣯ते꣯वत्साः॥ म꣡नो꣯य꣢मत्। प꣡रमा꣢꣯त्। चित्स꣡धाऽ२३स्था꣢त्॥ अ꣡ग्नाइ त्वा꣢᳐ऽ३ङ्का꣢᳐ऽ३॥ म꣤योवा꣥। गा꣤ऽ५इरोऽ६"हा꣥इ॥

08_0008 आ ते - 02 ...{Loading}...
लिखितम्

८-२। काण्वम्॥ कण्वः गायत्र्यग्निः॥आ꣤꣯ते꣥꣯वत्सो꣤꣯मनो꣥꣯यमत्। ऐ꣤याहा꣥इ॥ प꣢रमा꣡꣯च्चित्सधस्था꣯दै꣯याऽ२३हो꣡इया॥ अग्ने꣯त्वां꣯का꣯मयऐ꣯याऽ२३हो꣡इया॥ गि꣢रा꣯। इ꣡डाऽ२३भा꣢ऽ३४३। ओ꣡ऽ२३४५इ॥ डा॥

09_0009 त्वामग्ने पुष्करादध्यथर्वा - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

९-१। अग्नेरार्षेयम्॥ अग्निः गायत्र्यग्निः॥

त्वा꣥꣯मग्ने꣯पू꣯ष्काऽ६रा꣥꣯दधी॥ आ꣡थ꣢र्वा꣯। ना꣡इः। अ꣪माऽ२᳐न्था꣣ऽ२३४ता꣥॥ मू꣣ऽ२३४र्ध्नो꣥। वा꣣ऽ२३४इश्वा꣥। स्य꣤वोवा꣥। घा꣤ऽ५तोऽ६"हा꣥इ॥

10_0010 अग्ने विवस्वदा - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

१०-१। वाध्र्यश्वम्॥ (वध्र्यश्वोऽनूपो वा) वाध्र्यश्वः। गायत्र्यग्निः॥

अ꣤ग्ने꣥꣯वि꣤व꣥स्वदा꣤꣯भ꣥रो꣤। वाहा꣥इ॥ अ꣢स्मभ्यमू꣯तऽ३या꣡इमहे꣢꣯। ओ꣡। वा꣢ऽ३᳐हा꣢इ। ओ꣡। वा꣢ऽ३᳐हा꣢इ॥ दा꣡इवो꣢ऽ१हियाऽ᳒२᳒। ओ꣡। वा꣢ऽ३हा꣢इ। ओ꣡। वा꣢ऽ३᳐हा꣢ऽ३᳐इ॥ सा꣡ऽ२᳐इना꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा। दृ꣢षेऽ१॥

[[अथ द्वितीयः खण्डः]]

11_0011 नमस्ते अग्न - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

११-१। सांवर्गम्॥ सांवर्गः। अग्निः गायत्र्यग्निः॥

न꣤म꣥स्तौ꣯। हो꣤ग्ना꣥इ॥ ओ꣡जसा꣢ऽ३इ। गृ꣡णाऽ२᳐न्ता꣣ऽ२३४इदे꣥। वा꣡कृ꣪ष्टयाऽ᳒२ः᳒॥ अ꣡माये꣢ऽ३ः॥ आ꣡ऽ२᳐मा꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा॥ त्र꣢मर्द᳐या꣣ऽ२३꣡४꣡५꣡॥

12_0012 दूतं वो - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

१२-१। वैश्वमनसम्॥ विश्वमनाः गायत्र्यग्निः॥

दू꣥꣯ता꣤ऽ३म्वो꣢ऽ३वि꣤श्ववे꣥꣯दसाम्॥ ह꣢व्यवा꣡꣯हाम्। अ꣪माऽ२᳐र्त्ता꣣ऽ२३४या꣥म्॥ या꣡जिष्ठ꣢म्। ऋ꣡। जसे꣢ऽ३᳐हा꣢इ॥ गिरा꣡। औ꣢ऽ᳐३हो꣤वा꣥। हो꣤ऽ५इ॥ डा॥

13_0013 उप त्वा - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

१३-१। श्नाभम्॥ श्नाभो गायत्र्यग्निः॥

उ꣥पत्वा꣯जा॥ म꣡यो꣰꣯ऽ२गि꣡। र꣢ओ꣡इय꣪यूऽ᳒२ः᳒। दा꣡इदिश꣢ती꣯र्हविष्कृ꣡। त꣢ओ꣡इय꣪यूऽ᳒२ः᳒॥ वा꣯यो꣡꣯राऽ२३नी꣢॥ क꣣या꣢ऽ᳐३स्था꣤ऽ५इराऽ६५६न्॥ अ꣡श्वा꣢ऽ३᳐गा꣡꣯वाऽ२३꣡४꣡५ः꣡॥

श्रुतिरेव गरीयसी

13_0013 उप त्वा - 02 ...{Loading}...
लिखितम्

१३-२। श्नौष्टीयम्॥ श्नौष्टम्। श्नुष्टो गायत्र्यग्निः॥

उ꣥पत्वा꣯जा꣯माऽ६यो꣥꣯गिराः॥ दा꣡इदिश꣢। ता꣡इः। ह꣪वीऽ२᳐ष्का꣣ऽ२३४र्त्ताः꣥॥ वा꣯यो꣯रना꣯हा꣯इका꣤या꣥॥ स्था꣡इरा꣢। औ꣣꣯होऽ२३४वा꣥॥ ई꣤डा꣥॥

14_0014 उप त्वाग्ने - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

१४-१। वैश्वामित्रम्॥ विश्वामित्रो गायत्र्यग्निः॥

उ꣢पा꣡त्वाऽ२३ग्ने꣤꣯दिवे꣥꣯दिवाइ॥ दो꣡षाऽ᳒२᳒वा꣡स्ताऽ᳒२ः᳒। धिया꣡꣯वयम्॥ नामोऽ᳒२᳒भा꣡राऽ᳒२᳒॥ तये꣡꣯माऽ२३सा꣢ऽ३४३इ। ओ꣡ऽ२३४५इ॥ डा॥

15_0015 जराबोध तद्विविड्ढि - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

१५-१। जराबोधीये द्वे॥ द्वयोरग्निर्गायत्री रुद्रः॥

जा꣤रा꣥। बो꣡धाऽ᳒२᳒बो꣡धाऽ᳒२᳒। त꣡द्विविड्ढाइ॥ वि꣢शे꣯वा꣡इशेऽ᳒२᳒॥ य꣡ज्ञाऽ२३। या꣯या꣢᳐ऽ३४ औ꣥꣯हो꣯वा॥ स्तो꣡꣯मꣳरु꣢द्रा꣡꣯यदृ꣢शी꣯का꣡म्॥

15_0015 जराबोध तद्विविड्ढि - 02 ...{Loading}...
लिखितम्

१५-२।ज꣥रा꣯बो꣯धो꣤वा꣥॥ ता꣡द्विवि꣢ड्ढा꣡इ। वि꣢शा꣡इवाऽ२᳐३इशे꣢। यज्ञिया꣡꣯या। स्तो꣯माꣳरु꣪द्राऽ२३"या꣤। दृ꣥। शी꣣꣯को꣢ऽ३४५इ॥ डा॥

16_0016 प्रति त्यम् - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

१६-१। मारुतम्॥ मरुतो गायत्र्यग्निः॥

प्र꣢ति꣡त्याऽ२३ञ्चा꣤꣯रुम꣥ध्वराम्॥ गो꣢꣯पी꣯था꣡꣯। या। प्राहू꣢या꣣ऽ२३४सा꣥इ॥ म꣢रु꣡द्भिः꣢। आ꣡। ग्नाआ꣢꣯गहा꣡। औ꣢ऽ᳐३हो꣤वा꣥। हो꣤ऽ५इ॥ डा॥

17_0017 अश्वं न - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

१७-१। भार्गवे द्वे॥ वारवन्तीयम्। द्वयोः भृगुः शुनश्शेपो वा गायत्र्यग्निः॥

आ꣡श्वा꣢। औ꣣꣯होऽ२३४वा꣥। ना꣡त्वा꣢। औ꣣꣯होऽ२३४वा꣥॥ वा꣤꣯र꣥वन्तंवन्द꣤ध्या। आ꣡ग्ना꣢। औ꣣꣯होऽ२३४वा꣥॥ न꣤मो꣥꣯भिस्सम्रा꣤꣯ज꣥न्ता꣤म्॥ आ꣡ध्वरा꣢꣯णा꣡म्। औऽ२३हो꣤वा꣥। हो꣤ऽ५इ॥ डा॥

17_0017 अश्वं न - 02 ...{Loading}...
लिखितम्

१७-२।

अ꣤श्व꣥न्न꣤त्वा꣥꣯वा꣤꣯र꣥वन्ता꣤म्॥ व꣢न्द꣡ध्या꣯अग्निन्नमो꣯भाइः। स꣢म्म्रा꣡꣯ज꣢। तमा꣡ध्वरा꣢ऽ३४। औ꣣꣯हो꣤꣯वा꣥॥ इ꣡हा꣣ऽ२३४हा꣥इ। औ꣣꣯हो꣢ऽ३१२᳐। या꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा॥ णा꣣ऽ२३꣡४꣡५꣡म्॥

17_0017 अश्वं न - 03 ...{Loading}...
लिखितम्

१७-३।

अ꣥श्वन्नत्वा꣯औ꣯हो꣤हा꣥इ॥ वा꣢रा᳐वा꣣ऽ२३४न्ता꣥म्। व꣢न्दा꣡ध्याऽ२३४हा꣥इ। अ꣡ग्नाइन्नमा꣢ऽ३४। औ꣣꣯हो꣤꣯वा꣥। इ꣡हा꣣ऽ२३४हा꣥इ। उ꣢हु᳐वा꣣ऽ२३४भीः꣥॥ स꣢म्म्रा꣡꣯ज꣢। ता꣡म꣪ध्वरा꣢ऽ३४। औ꣣꣯हो꣤꣯वा꣥॥ इ꣡हा꣣ऽ२३४हा꣥इ। औ꣣꣯हो꣢ऽ३᳐१२३४। णाम्। ए꣥꣯हियाऽ६हा꣥। हो꣤ऽ५इ॥ डा॥

18_0018 और्वभृगुवच्छुचिमप्नवानवदा हुवे - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

१८-१। सामुद्रे द्वे॥ समुद्रस्य वासो वा। और्वः द्वयोरग्निः गायत्र्यग्निः॥
औ꣥꣯र्वभृगुव꣤त्। ओहाइ॥ शू꣣ऽ२३४ची꣥म्। आ꣡प्नवा꣢꣯न। वदाऽ᳒२᳒हु꣡वाऽ᳒२᳒इ। हु꣡व꣢ओ꣡इ॥ अग्नाऽ᳒२᳒इꣳस꣡मूऽ᳒२᳒॥ स꣡मु꣢ओ꣡। द्र꣢वा꣡ससा꣢ऽ३१उवाऽ२३꣡४꣡५꣡॥

18_0018 और्वभृगुवच्छुचिमप्नवानवदा हुवे - 02 ...{Loading}...
लिखितम्

१८-२। (वैधारया ऋषिर्वा)

औ꣥꣯र्वभृगुव꣤च्छुचि꣥म्। ए꣤ऽ५। शु꣤चीम्॥ आ꣡प्नवा꣢꣯न। वदा꣡ऽ२३हुवा꣢इ। हुवा꣡ऽ२३इ। हु꣢व꣣ए꣢॥ अ꣡ग्नाइꣳसा꣢ऽ३मू꣢॥ समू꣡ऽ२३। स꣢मु꣣ए꣢ऽ३। द्रा꣡ऽ२᳐वा꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा॥ स꣢साऽ३मे꣡ऽ२३꣡४꣡५꣡॥

19_0019 अग्निमिन्धानो मनसा - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

१९-१। असंगम्॥ आसंगः अत्रिः गायत्र्यग्निः॥

अ꣥ग्नि꣤मि꣥न्धा꣯नो꣤꣯मन꣥सौ꣯। हौ꣤꣯होवाहा꣥इ॥ धि꣣यꣳ꣤स꣥चे꣯तमौ꣯। हो꣭ऽ३हा꣢ऽ३। हो꣡ऽ२३४र्तियाः॥ अ꣡ग्नाये꣢ऽ३᳐म्। आ꣡ऽ२᳐इंधा꣣ऽ२३४औ꣥꣯हो꣯वा॥ वि꣢व꣡स्वभी꣣ऽ२३꣡४꣡५ः꣡॥

20_0020 आदित्प्रत्नस्य रेतसो - 01 ...{Loading}...
लिखितम्

२०-१। निधनकामम्॥ प्रजापतिर्गायत्र्यग्निः॥

आ꣤꣯दित्प्रत्नाऽ५स्यरे꣯त꣤साः॥ ज्यो꣡꣯तिᳲपश्यन्तिवा꣯साऽ᳒२᳒रा꣡म्॥ प꣢रो꣡꣯याऽ᳒२᳒दि꣡ध्यताइ॥ दि꣢वि꣡। होइ। होइ। औ꣢꣯हो꣡꣯औ꣢꣯हो꣡वाऽ२३꣡४꣡५꣡हाउ॥ वा॥

[[अथ तृतीय खण्डः]]