अग्ने॒ भव॑ सुष॒मिधा॒ समि॑द्ध उ॒त ब॒र्हिरु॑र्वि॒या वि स्तृ॑णीताम्॥ ७.०१७.०१

उ॒त द्वार॑ उश॒तीर्वि श्र॑यन्तामु॒त दे॒वाँ उ॑श॒त आ व॑हे॒ह॥ ७.०१७.०२

अग्ने॑ वी॒हि ह॒विषा॒ यक्षि॑ दे॒वान्स्व॑ध्व॒रा कृ॑णुहि जातवेदः॥ ७.०१७.०३

स्व॒ध्व॒रा क॑रति जा॒तवे॑दा॒ यक्ष॑द्दे॒वाँ अ॒मृता॑न्पि॒प्रय॑च्च॥ ७.०१७.०४

वंस्व॒ विश्वा॒ वार्या॑णि प्रचेतः स॒त्या भ॑वन्त्वा॒शिषो॑ नो अ॒द्य॥ ७.०१७.०५

त्वामु॒ ते द॑धिरे हव्य॒वाहं॑ दे॒वासो॑ अग्न ऊ॒र्ज आ नपा॑तम्॥ ७.०१७.०६

ते ते॑ दे॒वाय॒ दाश॑तः स्याम म॒हो नो॒ रत्ना॒ वि द॑ध इया॒नः॥ ७.०१७.०७