उच्छिष्टोच्छिष्टोपहतं यच् च पापेन दत्तं मृतसूतकाद् वा वसोः पवित्रम् अग्निः सवितुश् च रश्मयः पुनन्त्व् अन्नम् मम दुष्कृतं च यद् अन्यत् मै०
उप० ६.९। मु० उप० परेन्त्ल्य् मेत्रिचल्। तुल०- नीचे अगला एक छो़डकर।
उच्छिष्टो जनितुः पिता। अ०वे० ११.७.१५४।
उच्छिष्टोपहतं च यत्। वि०स्मृ० ४८.२०२। देखें-काकोच्छिष्टो० तथा तुलना पूर्व किन्तु एक।
उच् छुक्रम् अत्कम् अजते सिमस्मात्। ऋ०वे० १.९५.७३।
उच् छुक्रेण (मै०सं० उञ् शुक्रेण) शोचिषा द्यां इनक्षन् (तै०सं० । आ०मं०पा० इनक्षत्)। ऋ०वे० १०.४५.७४; वा०सं० १२.२४४; तै०सं०
४.२.२.२४; मै०सं० २.७.९४, ८६.१४; का०सं० १६.९४; आ०मं०पा० २.११.२५४।
उच् छुष्मा (मै०सं० उञ् शुष्मा) ओषधीनाम्। (अ०वे० छुष्मौषधीनाम्)। ऋ०वे० १०.९७.८१; अ०वे० ४.४.४१; वा०सं० १२.८२१; तै०सं० ४.२.६.३; मै०सं० २.७.१३१, ९४.१; का०सं० १६.१३१।
उच्छुष्मो अग्ने यजमानायैधि। तै०सं० १.६.२.२. प्रतीकः उच्छुष्मो अग्ने आप०श्रौ०सू० ४.९.३।
उच् छुष्मौषधीनाम्। देखें-उच् छुष्मा।
उच्छोचनप्रशोचनौ। अ०वे० ७.९५.१३।
उच्छोचयन्न् अग्निर् इवाभिदुन्वन्। अ०वे० ५.२२.२२।
उच् छोचस्व कृणुहि वस्यसो नः। ऋ०वे० ४.२.२०३।
उच् छोचिषा सहसस् पुत्र स्तुतः। ऋ०वे० ३.१८.४१।
उच् छ्मञ्च्ं, तथा उच्च्छाञ्च्ं, देखें-उच् छ्वञ्चो, तथा उच्छ्वञ्च्ं।
उच् छयस्व बहुर् भव। अ०वे० ६.१४२.११. प्रतीकः उच् छ्रयस्व कौ० सू० २४.१।
उच् छ्रयस्व (मै०सं० उञ् श्रयस्व) महते सौभगाय। ऋ०वे० ३.८.२४; अ०वे० ३.१२.२४; मै०सं० ४.१३.१४, १९९.७; का०सं० १५.१२४; आ०ब्रा०२.२.१३; तै० ब्रा० ३.६.१.२४; पा०गृ०सू० ३.४.४२; हि०गृ०सू० १.२७.३४।
उच् छ्रयस्व (मै०सं० मा०श्रौ०सू० उञ् श्रयस्व) वनस्पते। ऋ०वे० ३.८.३१; वा०सं० ४.१०१; मै०सं० १.२.१११, २०.१७, ४.१३.११, १९९.४;
का०सं० १५.१२१; आ०ब्रा०२.२.६; का०ब्रा० १०.२, तै० ब्रा० ३.६.१.११; श०ब्रा० ३.२.१.३५१; आ०श्रौ०सू० ३.१.९; शा०श्रौ०सू० ५.१५.३; आप०श्रौ०सू०
११.९.१३१; मा०श्रौ०सू० २.२.३.१५. प्रतीकः उच् छ्रयस्व का०श्रौ०सू० ७.४.२; उङ् श्रयस्व मा०श्रौ०सू० ५.२.८.९।
उच्छ्रीयमाणायानु बू्रहि। श०ब्रा० ३.७.१.१३; आप०श्रौ०सू० ७.१०.६. प्रतीकः उच्छ्रीयमाणाय। शा०श्रौ०सू० ५.१५.३।
उच्छ्वञ्चमाना। (तै०आ० उच्छ्मञ्चं) पृथिवी सु तिष्ठतु (तै०आ० पृथिवी हि तिष्ठसि)। ऋ०वे० १०.१८.१२१; अ०वे० १८.३.५११; तै०आ० ६.७.११. प्रतीकः उच्छ्वञ्चमाना शा०श्रौ०सू० ४.१५.८।
उच् छ्वञ्चस्व नि नम वर्धमानः। ऋ०वे० १०.१४२.६३।
उच् छ्वञ्चस्व। (तै०आ० च्छ्मञ्चस्व) पृथिवि मा नि बाधथाः (तै०आ० मा वि बाधिथाः)। ऋ०वे० १०.१८.१११; अ०वे० १८.३.५०१; तै०आ०
६.७.११. प्रतीकः उच् छ्वञ्चस्व शा०श्रौ०सू० ४.१५.८।
उच् छ्वैत्रेयो नृषाह्याय तस्थौ। ऋ०वे० १.३३.१४४।
उछन्ती दुहिता दिवः। ऋ०वे० ७.८१.१२; सा०वे० १.३०३२, २.१०१२. देखें-व्युछन्ती इत्यादि।
उछन्ती न प्रमीयसे। ऋ०वे० ५.७९.१०४।
उछन्ती या कृणोषि मंहना महि। ऋ०वे० ७.८१.४१।
उछन्तीर् अद्य चितयन्त भोजान्। ऋ०वे० ४.५१.३१।
उछन्तीर् अव्रञ् छुचयः पावकाः। ऋ०वे० ४.५१.२४।
उछन्तीर् मां उषसः सूदयन्तु। ऋ०वे० ४.३९.१३।
उछन्तून्ना मरुतो घृतेन। अ०वे० ३.१२.४३. सामान्य संस्करण का- उक्षन्तूद्ना, जो द्रष्टव्य है।
उछन्त्याम् उषसि वह्निर् उक्थैः। ऋ०वे० १.१८४.१२।
उछन्त्यां मे यजता। ऋ०वे० ५.६४.७१।
उच्छन्न उषसः सुदिना अरिप्राः। ऋ०वे० ७.९०.४१; आ०ब्रा०५.१८.८; आ०श्रौ०सू० ८.१०.१।
उछा दिवो दुहितः प्रत्नवन् नः। ऋ०वे० ६.६५.६१।
उज् जातम् इन्द्र ते शवः। ऋ०वे० ८.६२.१०१।
उज् जातेन भिनदद् उज् जनित्वैः। ऋ०वे० १०.४५.१०४; वा०सं० १२.२७४; तै०सं० ४.२.२.४४; मै०सं० २.७.९४, ८७.४; का०सं० १६.९४; आप०मं०पा० २.११.२९४।
उज् जायतां परशुर् ज्योतिषा सह। ऋ०वे० १०.४३.९१; अ०वे० २०.१७.१९१।
उज् जिघ्नन्त आ पथ्यो न पर्वतान्। ऋ०वे० १.६४.११२।
उज्जिहानाय स्वाहा। तै०सं० ७.१.१९.३; का०सं० अश्व० १.१०।
उज् जिहीते निचाय्या। ऋ०वे० १.१०५.१८३; नि० ५.२१३।
उज् जिहीध्वे स्तनयति। अ०वे० ८.७.२११।
उज्जीवस आ इरयतं सुदानू। ऋ०वे० १.११७.२४४।
उज्जेष आ रभामहे। अ०वे० ४.१७.१२।
उञ् श् इत्यादि), देखें- उच् छं इत्यादि।
उत् (खिल के कुछ भेद)। बृ० दे० ७.११८।
उत ऋतुभिर् ऋतुपाः पाहि सोमम्। ऋ०वे० ३.४७.३१।
उत ऋतुभिर् ऋभवो मादयध्वम्। ऋ०वे० ४.३४.२२।
उत ऋभव उत राये नो अश्विना। ऋ०वे० ५.४६.४३।
उत कण्वं नृषदः पुत्रम् आहुः। ऋ०वे० १०.३१.१११।
उत क्रतुं सुदानवः। ऋ०वे० ६.१६.८२।
उत क्रत्वा पणींर् अभि। ऋ०वे० ८.६६.१०४; नि० ६.२६।
उत क्षत्राय रोदसी सम् अञ्ञन्। ऋ०वे० ३.३८.३२।
उत क्षितिभ्योऽवनीर् अविन्दः। ऋ०वे० ६.६१.३३।
उत क्षियन्ति सुक्षितिम्। ऋ०वे० ७.७४.६४।
उत क्षोदन्ति रोदसी महित्वा। ऋ०वे० ७.५८.१३।
उत खिल्या उर्वराणां भवन्ति। ऋ०वे० १०.१४२.३३।
उत गव्यं शताव्यम्। ऋ०वे० ५.६१.५२।
उत गाव इवादन्ति (तै० ब्रा० इवादन्)। ऋ०वे० १०.१४६.३१; तै० ब्रा० २.५.५.६१।
उत गोर् अङ्गैः पुरुधायजन्त। अ०वे० ७.५.५२।
उत ग्ना अग्निर् अध्वरे। ऋ०वे० ४.९.४१।
उत ग्ना व्यन्तु (तै० ब्रा० वियन्तु) देवपत्नीः। ऋ०वे० ५.४६.८१; अ०वे० ७.४९.२१; मै०सं० ४.१३.१०१, २१३.१०; तै० ब्रा० ३.५.१२.११; नि० १२.४६१.प्रतीकः उत ग्ना व्यन्तु। शा०श्रौ०सू० १.१५.४।
उत घा नेमो अस्तुतः। ऋ०वे० ५.६१.८१।
उत घा स रथीतमः। ऋ०वे० ६.५६.२१।
उत चक्षुः शतक्रतो। ऋ०वे० ३.३७.२२; अ०वे० २०.१९.२।
उत च्यवन्ते अच्युता ध्रुवाणि। ऋ०वे० १.१६७.८३।
उत च्यौत्ना ज्रयांसि च। ऋ०वे० ८.२.३३२।
उत जायाम् अजानये। अ०वे० ६.६०.१४।
उत ते सुष्टुता हरी। ऋ०वे० ८.१३.२३१।
उत त्यं वीरं धनसाम् ऋजीषिणम्। ऋ०वे० ८.८६.४१।
उत त्यं चमसं नवम्। ऋ०वे० १.२०.६१।
उत त्यद् आश्वश्व्यम्। ऋ०वे० ५.६.१०४, ८.६.२४१, ३१.१८२; तै०सं० १.८.२२.४४; मै०सं० ४.११.२२, १६५.३; का०सं० ११.१२२; तै० ब्रा०
२.७.१३.२।
उत त्यद् वां जुरते अश्विना भूत्। ऋ०वे० ७.६८.६१।
उत त्यन् नो मारुतं शर्ध आ गमत्। ऋ०वे० ५.४६.५१।
उत त्यं पुत्रम् अग्रुवः। ऋ०वे० ४.३०.१६१।
उत त्यं भुज्युम् अश्विना सखायः। ऋ०वे० ७.६८.७१।
उत त्या तुर्वशायदू। ऋ०वे० ४.३०.१७१।
उत त्या दैव्या भिषजा। ऋ०वे० ८.१८.८१; तै० ब्रा० ३.७.१०.५१; आप०श्रौ०सू० १४.२९.११; शा०गृ०सू० १.१६.७. तुल०- बृ. दा. ६.४९।
उत त्या नो इत्यादि, देखें- उत स्या नो इत्यादि।
उत त्या मे यशसा श्वेतनायै। ऋ०वे० १.१२२.४१।
उत त्या मे रौद्राव् अर्चिमन्ता। ऋ०वे० १०.६१.१५१।
उत त्या मे हवम् आ जग्म्यातम्। ऋ०वे० ६.५०.१०१; बृ. दा. ५.११७।
उत त्या यजता हरी। ऋ०वे० ४.१५.८१।
उत त्या सद्य आर्या। ऋ०वे० ४.३०.१८१।
उत त्या हरितो दश (सा०वे० रथे)। ऋ०वे० ९.६३.९१; सा०वे० २.५६८१।
उत त्ये देवी सुभगे मिथूदृशा। ऋ०वे० २.३१.५१।
उत त्ये नः पर्वतासः सुशस्तयः। ऋ०वे० ५.४६.६१।
उत त्ये नो मरुतो मन्दसानाः। ऋ०वे० ७.३६.७१।
उत त्ये मा ध्वन्यस्य जुष्टाः। ऋ०वे० ५.३३.१०१।
उत त्ये मा पौरुकुत्स्यस्य सूरेः। ऋ०वे० ५.३३.८१।
उत त्ये मा मारुताश्वस्य शोणाः। ऋ०वे० ५.३३.९१।
उत त्राता तनूनाम्। ऋ०वे० ६.४८.२४; सा०वे० २.५४४; वा०सं० २७.४४४; मै०सं० २.१३.९४, १५९.१३; का०सं० ३९.१२४; आप०श्रौ०सू० १७.९.१४।
उत त्राता शिवो भवा (सा०वे० भुवो) वरूथ्यः। ऋ०वे० ५.२४.१२; सा०वे० १.४४८२, २.४५७२; वा०सं० ३.२५२, १५.४८२, २५.४७२; तै०सं०
१.५.६.३२, ४.४.४.८२; मै०सं० १.५.३२, ६९.९; का०सं० ७.१२, ८; श०ब्रा० २.३.४.३१२; कौ० सू० ६८.३१२।
उत त्रातासि पाकस्य। अ०वे० ४.१९.३३।
उत त्रायस्व गृणत उत स्तीन्। ऋ०वे० १०.१४८.४४।
उत त्रायस्व गृणतो मघोनः। ऋ०वे० १०.२२.१५३।
उत त्रायेथां सुत्रात्रा। ऋ०वे० ५.७०.३२; सा०वे० २.३३७२।
उत त्रिधातु प्रथयद् वि भूम। ऋ०वे० ४.४२.४४।
उत त्रिमाता विदथेषु सम्राट्। ऋ०वे० ३.५६.५२।
उत त्र्युधा पुरुध प्रजावान्। ऋ०वे० ३.५६.३२।
उत त्वः पश्यन् न ददर्श वाचम्। ऋ०वे० १०.७१.४१; नि० १.१९१।
उत त्वं सख्ये स्थिरपीतम् आहुः। ऋ०वे० १०.७१.५१; नि० १.२०१।
उत त्वं सूनो सहसो नो अद्य। ऋ०वे० ६.५०.९१. तुल०- बृ. दा. ५.११७।
उत त्वचं ददतो वाजसातौ। ऋ०वे० ५.३३.७३।
उत त्वं तिष्ठ मध्यमे। अ०वे० १.१७.२२।
उत त्वं अस्मयुर् वसो। ऋ०वे० ३.४१.७३; अ०वे० २०.२३.७३।
उत त्वं मघवञ् छ्रणु। ऋ०वे० ८.४५.६१।
उत त्वः शृण्वन् न शृणोत्य् एनाम्। ऋ०वे० १०.७१.४२; नि० १.१९२।
उत त्वष्टोत विभवानु मंसते। ऋ०वे० ५.४६.४४।
उत त्वा गोपा अदृशन्। नीलरुद्र उप० १०३। देखें-उतैनं गोपा।
उत त्वाग्ने मम स्तुतः। ऋ०वे० ८.४३.१७१।
उत त्वा धीतयो मम। ऋ०वे० ८.४४.२२१।
उत त्वा नमसा वयम्। ऋ०वे० ८.४३.१२१।
उत त्वाबधिरं वयम्। ऋ०वे० ८.४५.१७१।
उत त्वा भृगुवच् छुचे। ऋ०वे० ८.४३.१३१।
उत त्वाम् अदिते महि। ऋ०वे० ८.६७.१०१; आ०श्रौ०सू० २.१.२९, ३.८.१; शा०श्रौ०सू० २.२.१४, ९.२७.२ (भाष्य). तुल०- बृ. दा. ६.९०।
उत त्वाम् अरुणं वयम्। ऋ०वे० ९.४५.३१।
उत त्वा विश्वा भूतानि। नीलरुद्र उप० १०५।
उत त्वा स्त्री शसीयसी। ऋ०वे० ५.६१.६१।
उत त्वोतासो बर्हणा। ऋ०वे० १०.२२.९२।
उत त्वोदहार्यः। नीलरुद्र उप० १०४। नीचे देखें- अदृशन्नुदहार्यः।
उत दासं कौलितरम्। ऋ०वे० ४.३०.१४१।
उत दासस्य वर्चिनः। ऋ०वे० ४.३०.१५१।
उत दासा परिविषे। ऋ०वे० १०.६२.१०१।
उत दुर्गेषु पथिकृद् विदानः। ऋ०वे० ६.२१.१२२।
उत दूराद् अव भिन्दन्त्य् एनम्। अ०वे० ५.१८.९४।
उत देवा अवहितम्। ऋ०वे० १०.१३७.११; अ०वे० ४.१३.११; मै०सं० ४.१४.२१, २१७.१६; शा०श्रौ०सू० १६.१३.४. प्रतीकः उत देवाः वै० सू०
३८.१; कौ० सू० ५८.३, ११; ऋ० वि० ४.९.४. तुल०- बृ. दा. ८.४९. शंतातीय की तरह निर्देशित (जाँचें- सूक्त) कौ० सू० ९.४।
उत देवाँ उशत आ वहेह। ऋ०वे० ७.१७.२२।
उत देवी देवपुत्रे ऋतावृधा। ऋ०वे० १.१०६.३२।
उत द्यावापृथिवी क्षत्रम् उरु। ऋ०वे० ६.५०.३१।
उत द्यावापृथिवी याथना परि। ऋ०वे० ५.५५.७३।
उत द्युक्षं यथा नरः। ऋ०वे० ७.३१.२३; सा०वे० २.६७२।
उत द्युमत् सुवीर्यम्। ऋ०वे० १.७४.९१।
उत द्युम्नस्य शवसा। ऋ०वे० ५.७.३३; तै०सं० २.१.११.३३; मै०सं० ४.१२.४३, १८७.१२।
उत द्वार उशतीर् वि श्रयन्ताम्। ऋ०वे० ७.१७.२१।
उत द्विबर्हा अमिनः सहोभिः। ऋ०वे० ६.१९.१२; वा०सं० ७.३९२; तै०सं० ४.१.२१.१२; का०सं० ४.८२; मै०सं० १.३.२५२, ३८.१२; श०ब्रा०
४.३.३.१८२; तै० ब्रा० ३.५.७.५२; नि० ६.१७. खण्ड, अमिनः सहोभिः। नि० ६.१६।
उत द्विषो मर्त्यस्य। ऋ०वे० ८.७१.१३; सा०वे० १.६.३।
उत न ईं त्वष्टा गन्त्व् अछ। ऋ०वे० १.१८६.६१।
उत न ईं मतयोऽश्वयोगाः। ऋ०वे० १.१८६.७१।
उत न ईं मरुतो वृद्धसेनाः। ऋ०वे० १.१८६.८१।
उत न एना पवया पवस्व। ऋ०वे० ९.९७.५३१; सा०वे० २.४५५१।
उत न एषु नृषु श्रवो धुः। ऋ०वे० ७.३४.१८१।
उत नः कर्णशोभना। ऋ०वे० ८.७८.३१।
उत नः पितुम् आ भर। ऋ०वे० ८.३२.८१।
उत नः प्रिया प्रियासु। ऋ०वे० ६.६१.१०१; सा०वे० २.८१११; आ०ब्रा०५.१.१२; तै० ब्रा० २.४.६.११; आ०श्रौ०सू० २.१२.५, ७.१०.५. प्रतीकः उत नः
प्रिया शा०श्रौ०सू० १०.४.५, ८.४, ११.६.२।
उत नग्ना बोभुवती। अ०वे० ५.७.८१।
उत नः सिन्धुर् अपाम्। ऋ०वे० ८.२५.१४१।
उत नः सुत्रात्रो देवगोपाः। ऋ०वे० ६.६८.७१।
उत नः सुद्योत्मा जीराश्वः। ऋ०वे० १.१४१.१२१।
उत नः सुभगाँ अरिः। ऋ०वे० १.४.६१; अ०वे० २०.६८.६१।
उत नूनं यद् इन्द्रियम्। ऋ०वे० ४.३०.२३१।
उत नेष्ट्राद् अजुषत प्रयो हितम्। ऋ०वे० २.३७.४२।
उत नो गाव उपहूता उपहूताः (व.ल. उतोपहूताः) आप०श्रौ०सू० १२.२६.४। नीचे देखें- प्रत्य् एता।
उत नो गोमतस् कृधि। ऋ०वे० ८.३२.९१।
उत नो गोमतीर् इषः। ऋ०वे० ५.७९.८१, ८.५.९१, ९.६२.२४१; सा०वे० २.४१३१।
उत नो गोविद् अश्ववित्। ऋ०वे० ९.५५.३१; सा०वे० २.३२७१।
उत नो गोषणिं धियम्। ऋ०वे० ६.५३.१०१; सा०वे० २.९४३१।
उत नो दिव्या इषः। ऋ०वे० ८.५.२११।
उत नो देव देवान्। ऋ०वे० ८.७५.२१; तै०सं० २.६.११.११, १७४.१३; का०सं० ७.१७१।
उत नो देवाव् अश्विना शुभस् पती। ऋ०वे० १०.९३.६१।
उत नो देव्य् अदितिः। ऋ०वे० ८.२५.१०१; शा०श्रौ०सू० ११.६.२।
उत नो धियो गोअग्राः। ऋ०वे० १.९०.५१; आ०श्रौ०सू० ९.११.१८।
उत नो नक्तम् अपां वृषण्वसू। ऋ०वे० १०.९३.५१
उत नो ब्रह्मन्न् अविषः (मै०सं० ब्रह्मन् हविषः)। ऋ०वे० ३.१३.६१; मै०सं० ४.११.२१, १६४.३; का०सं० २.१५१; आ०ब्रा०२.४०.४, ४१.६; श०ब्रा० ११.४.३.१९१; शा०श्रौ०सू० ३.७.५; का०श्रौ०सू० ५.१३.३१. प्रतीकः उत नो ब्रह्मन् मा०श्रौ०सू० ५.१.५.७६।
उत नो रुद्रा चिन् मृडताम् अश्विना। ऋ०वे० १०.९३.७१।
उत नो वाजसातये। ऋ०वे० ९.१३.४१; सा०वे० २.५४०१।
उत नो विष्णुर् उत वातो अस्रिधः। ऋ०वे० ५.४६.४१।
उत नोऽहिर् बुध्नयः शृणोतु। ऋ०वे० ६.५०.१४१; वा०सं० ३४.५३१; मै०सं० १.६.२१, ८८.१२; आ०श्रौ०सू० ५.२०.६; शा०श्रौ०सू० ८.६.८; आप०श्रौ०सू० ५.१९.४१, १३.१६.३; नि० १२.३३१. प्रतीकः उत नोऽहिर् बुध्नयः। मा०श्रौ०सू० १.५.५.१०, ८.५।
उत नोऽहिर् बुध्न्यो मयस् कः। ऋ०वे० १.१८६.५१।
उत पद्याभिर् इत्यादि। देखें- उतो इत्यादि।
उत पव्या रथानाम्। ऋ०वे० ५.५२.९३; नि० ५.५।
उत पश्यन्न् अश्नुवन् दीर्घम् आयुः। ऋ०वे० १.११६.२५३; का०सं० १७.१८३।
उत पुत्रः पितरं क्षत्रम् ईडे। अ०वे० ५.१.८१. प्रतीकः उत पुत्रः। कौ० सू० २१.१५।
उत पूर्वस्य निघ्नतः। अ०वे० १०.१.२७३।
उत पूर्वां अवनोर् व्राधतश् चित्। ऋ०वे० १०.६९.१०४।
उत पूषा भवसि देव यामभिः। ऋ०वे० ५.८१.५२।
उत पृथिव्याम् अव स्यन्ति विद्युतः। अ०वे० ९.२.१४३।
उत पोता नि षीदति। ऋ०वे० ४.९.३३।
उत प्र गाय गण आ निषद्य। ऋ०वे० ६.४०.१३।
उत प्रचेतसो मदे। ऋ०वे० ८.७.१२३।
उत प्रजा उत प्रसूष्व् अन्तः। ऋ०वे० १.६७.९२।
उत प्रजां सुवीर्यम्। ऋ०वे० ८.६.२३३।
उत(!) प्रजाता भग इद् वः स्याम। मा०श्रौ०सू० २.३.३.७२. देखें-ऋतप्रजाता।
उत प्रजाभ्योऽविदो मनीषाम्। ऋ०वे० ५.८३.१०४।
उत प्रजायै गृणते वयो धुः। ऋ०वे० ७.३६.९३; आप०श्रौ०सू० १३.१८.१३; मा०श्रौ०सू० २.५.४.१२३।
उत प्र णेष्य् अभि वस्यो अस्मान्। ऋ०वे० १.३१.१८३. तुल०- प्र णो यक्ष्य्।
उत प्रधिम् उद् अहन्न् अस्य विद्वान्। ऋ०वे० १०.१०२.७१।
उत प्रपित्व उत मध्ये अह्नाम्। ऋ०वे० ७.४१.४२; अ०वे० ३.१६.४२; वा०सं० ३४.३७२; तै० ब्रा० २.८.९.८२; आ०मं०पा० १.१४.४२।
उत प्र पिप्य ऊधर् अघ्न्यायाः। ऋ०वे० ९.९३.३१; सा०वे० २.७७०१।
उत प्र रिक्था अध नु प्रयज्यो। ऋ०वे० ३.६.२२।
उत प्र वर्धया मतिम्। ऋ०वे० ८.६.३२३।
उत प्रशस्तिर् अद्रिवः। ऋ०वे० ८.६.२२२।
उत प्रहाम् अतिदीव्या जयाति। (अ०वे० ७.५०.६१, अतिदीवा जयति)। ऋ०वे० १०.४२.९१; अ०वे० ७.५०.६१, २०.८९.९१।
उत प्रास्तौद् उच् च विद्वाँ (मै०सं० विद्वँ) अगायत्। ऋ०वे० १०.६७.३४; अ०वे० २०.९१.३४; तै०सं० ३.४.११.३४; मै०सं० ४.१२.६४, १९७.३;
का०सं० २३.१२४।
उत प्रियं मधुने युञ्ञाथां रथम्। ऋ०वे० ४.४५.३२।
उत् प्रियः सुतसोमो मियेधः। ऋ०वे० ३.३२.१२२।
उत प्रिये सदन आ शुशुक्वान्। ऋ०वे० १.१८९.४२।
उत बभ्रुः सुमङ्गलः। (नीलरुद्र उप० बभ्रुर् विलोहितः) वा०सं० १६.६२; तै०सं० ४.५.१.२२; मै०सं० २.९.२२, १२१.८; का०सं० १७.११२; नीलरुद्र
उप० ९२.
उत बर्हिर् उर्विया वि स्तृणीताम्। ऋ०वे० ७.१७.१२।
उत ब्रध्नस्य शासने रणन्ति। ऋ०वे० ३.७.५२।
उत ब्रह्मण्या वयम्। ऋ०वे० ८.६.३३१।
उत ब्रह्माणो मरुतो मे अस्य। ऋ०वे० ५.२९.३१।
उत ब्रह्माण्य् अङ्गिरो जुषस्व। ऋ०वे० ४.३.१५३।
उत ब्रह्मा नि षीदति। ऋ०वे० ४.९.४३।
उत ब्रुवन्तु जन्तवः। ऋ०वे० १.७४.३१; सा०वे० २.७३२१; तै०सं० ३.५.११.४१; मै०सं० ४.१०.३१, १४८.५; का०सं० ८.१६१, १५.१२;
आ०ब्रा०१.१६.१३; का०ब्रा० ८.१; आ०श्रौ०सू० २.१६.७, १८.१५; शा०श्रौ०सू० ३.१३.१७।
उत ब्रुवन्तु नो निदः। ऋ०वे० १.४.५१; अ०वे० २०.६८.५१।
उत भ्रातुर् अभुञ्ञतः। ऋ०वे० ८.१.६२; सा०वे० १.२९२२।
उत भ्रातोत नः सखा। ऋ०वे० १०.१८६.२२; सा०वे० २.११९१२; कौ० सू० ११७.४२।
उत म ऋज्रे पुरयस्य रघ्वी। ऋ०वे० ६.६३.९१।
उत मन्ये पितुर् अद्रुहो मनः। ऋ०वे० १.१५९.२१।
उत माता गवाम् असि। ऋ०वे० ४.५२.३२; सा०वे० २.१०७७२।
उत माता बृहद्दिवा शृणोतु नः। ऋ०वे० १०.६४.१०१. प्रतीकः उत माता बृहद्दिवा शा०श्रौ०सू० १०.७.१२।
उत माता महिषम् अन्व् अवेनत्। ऋ०वे० ४.१८.११; तै०सं० ३.२.११.३१; मै०सं० ४.१२.५१, १९२.६
उत मा स्रामाद् यवयन्त्व् इन्दवः। ऋ०वे० ८.४८.५४।
उत मित्रो भवसि देव धर्मभिः। ऋ०वे० ५.८१.४४।
उत मेधं शृतपाकं पचन्तु। ऋ०वे० १.१६२.१०४; वा०सं० २५.३३४; तै०सं० ४.६.८.४४; मै०सं० ३.१६.१४, १८२.१३; का०सं० अश्व० ६.४४।
उत मे प्रयियोर् वयियोः। ऋ०वे० ८.१९.३७१।
उत मेऽरपद् युवतिर् ममन्दुषी। ऋ०वे० ५.६१.९१।
उत मे वोचताद् इति। ऋ०वे० ५.६१.१८१।
उत यत् पतयो दश। अ०वे० ५.१७.८१।
उत यस् तुग्र्ये सचा। ऋ०वे० ८.३२.२०२।
उत यासि सवितस् त्रीणि रोचना। ऋ०वे० ५.८१.४१।
उत यो द्यां अति सर्पात् परस्तात्। अ०वे० ४.१६.४१।
उत यो मानुषेष्व् आ। ऋ०वे० १.२५.१५१।
उत योषणे दिव्ये मही नः। ऋ०वे० ७.२.६१।
उत राज्ञाम् उत्तमं मानवानाम्। अ०वे० ४.२२.५४. देखें-अथो राजन्न्।
उत रात्रीम् उभयतः परीयसे। ऋ०वे० ५.८१.४३।
उत वज्रो गभस्त्योः। ऋ०वे० ८.१२.७२।
उत वः शंसम् उशिजाम् इव श्मसि। ऋ०वे० २.३१.६१।
उत वा परि वृणक्षि बप्सत्। ऋ०वे० १०.१४२.३१।
उत वां विक्षु मद्यास्व् अन्धः। ऋ०वे० १.१५३.४१. प्रतीकः उत वां विक्षु शा०श्रौ०सू० ३.८.१९।
उत वां ककुहो मृगः। ऋ०वे० ५.७५.४३।
उत वाजिनं पुरुनिष्षिध्वानम्। ऋ०वे० ४.३८.२१।
उत वात पितासि नः। ऋ०वे० १०.१८६.२१; सा०वे० २.११९११; कौ० सू० ११७.४१।
उत वाताँ स्तरच् छूशुवानः। ऋ०वे० ४.२७.२४।
उत वा ते सहस्रिणः। ऋ०वे० ४.४८.५३; तै०सं० २.२.१२.७३; मै०सं० ४.१४.२३, २१६.५।
उत वा दिवो असुराय मन्म। ऋ०वे० ५.४१.३३।
उत वा मर्त्यानाम्। ऋ०वे० १०.३३.८२।
उत वामस्य वसुनश् चिकेतति। ऋ०वे० ८.१.३१३।
उत वाम् उषसो बुधि (गो०ब्रा० बुधिः)। ऋ०वे० १.१३७.२४; गो०ब्रा० २.३.१३।
उत वा यस्य वाजिनः। ऋ०वे० १.८६.३१।
उत वा यः सहस्य प्रविद्वान्। ऋ०वे० १.१४७.५१।
उत वायो घृतस्नाः। ऋ०वे० ८.४६.२८२।
उत वा यो नो मर्चयाद् अनागसः। ऋ०वे० २.२३.७१।
उत वा शक्रो रत्नं दधाति। अ०वे० ५.१.७३।
उत वा षड्ढा मनसोत क्लप्ताः। तै०आ० ३.११.५२।
उत वा सन्ति भूयसीः। ऋ०वे० १.११.८४; सा०वे० २.६०२४।
उत वेश्मेव दृश्यते। ऋ०वे० १०.१४६.३२. देखें-उतो इत्यादि।
उत व्रजम् अपवर्तासि गोनाम्। ऋ०वे० ४.२०.८२।
उत व्रतानि सोम ते। ऋ०वे० १०.२५.३१।
उत शिक्ष स्वपत्यस्य शिक्षोः। ऋ०वे० ३.१९.३२; तै०सं० १.३.१४.६२; मै०सं० ४.१४.१५२, २४०.९।
उत शुक्राः शुचयश् चामृतासः। अ०वे० १२.३.२७२।
उत शुष्णस्य धृष्णुया। ऋ०वे० ४.३०.१३१।
उत शूद्र उतार्ये। अ०वे० १९.६२.१४। देखें-शूद्राय चार्याय, तथा तुलना नीचे अगला।
उत शूद्रम् उतार्यम्। अ०वे० ४.२०.८४. तुल०- यच् छूद्रे, तथा यश् च शूद्र।
उत श्यावो धनम् आदत्त वाजी। ऋ०वे० १०.३१.११२।
उत श्रवसा (मै०सं० श्रवस आ ) पृथिवीम्। वा०सं० ३८.१७३; तै०सं० ४.१.६.३३; मै०सं० ४.९.१५, १२१.१६; तै०आ० ४.३.१३। देखें-अभि
श्रवोभिः।
उत श्रवो विविदे श्येनो अत्र। ऋ०वे० ४.२६.५४।
उत श्रुतं वृषणा पस्त्यावतः। ऋ०वे० १.१५१.२४।
उत श्रुतं शयवे हूयमाना। ऋ०वे० ७.६८.८२।
उत श्रुतं सदने विश्वतः सीम्। ऋ०वे० १.१२२.६२।
उत श्रोत्रस्य श्रोत्रम् अन्नस्यान्नम्। श०ब्रा० १४.७.२.२१२; बृ० उ० ४.४.२१२।
उत श्रोषन्तु नो भुवः। सा०वे० १.१७२३।
उत श्वेत आशुपत्वा। अ०वे० २०.१३५.८१; आ०ब्रा०६.३५.१२१; गो०ब्रा० २.६.१४१; शा०श्रौ०सू० १२.१९.४१। उत श्वेतं वसुधितिं निरेके। ऋ०वे० ७.९०.३४; वा०सं० २७.२४४; मै०सं० ४.१४.२४, २१७.३; तै०ब्रा० २.८.१.१४। उत सखास्य् अश्विनोः। ऋ०वे० ४.५२.३१; सा०वे० २.१०७७१।
उत सव्यः शतक्रतो। ऋ०वे० १.८२.५२।
उत सातीर् अहर्विदा। ऋ०वे० ८.५.९२।
उत सिन्धुं विबाल्यम्। ऋ०वे० ४.३०.१२१।
उत सिन्धूँर् अहर्विदा। ऋ०वे० ८.५.२१२।
उत सु त्ये पयोवृधा। ऋ०वे० ८.२.४२१।
उत सूर्यस्य रश्मिभिः सम् उच्यसि। ऋ०वे० ५.८१.४२; का०ब्रा० २५.९।
उत सोमस्य भ्रातासि। अ०वे० ४.४.५३।
उत स्तवसे वेन्यस्यार्कैः। ऋ०वे० १०.१४८.५२।
उत स्तवाम नूतना कृतानि। ऋ०वे० २.११.६२।
उत स्तामुर् मघवन्न् अक्रपिष्ट। ऋ०वे० ७.२०.९२।
उत स्तुतासो मरुतो व्यन्तु। ऋ०वे० ७.५७.६१।
उत स्तुतो मघवा शंभविष्ठः। ऋ०वे० १.१७१.३२।
उत स्तुषे विष्पर्धसो रथानाम्। ऋ०वे० ८.२३.२३।
उत स्तोतारं मघवा वसौ धात्। ऋ०वे० ४.१७.१३४।
उत स्त्रियं मायया शाशदानाम्। ऋ०वे० ७.१०४.२४२; अ०वे० ८.४.२४२।
उत स्थ केशदृंहणीः। अ०वे० ६.२१.३३।
उत स्म ते परुष्ण्याम्। ऋ०वे० ५.५२.९१।
उत स्म ते वनस्पते। ऋ०वे० १.२८.६१; आप०श्रौ०सू० १६.२६.३१।
उत स्म ते शुभे नरः। ऋ०वे० ५.५२.८३।
उत स्म दुर्गृभीयसे। ऋ०वे० ५.९.४१।
उत स्म मेऽव्यत्यै पृणासि। ऋ०वे० १०.९५.५२।
उत स्म यं शिशुं यथा। ऋ०वे० ५.९.३१।
उत स्मयेन्ते तन्वा विरूपे। ऋ०वे० ३.४.६२।
उत स्म राशिं परि यासि गोनाम्। ऋ०वे० ९.८७.९१।
उत स्म सद्म हर्यतस्य पस्त्योः। ऋ०वे० १०.९६.१०१; अ०वे० २०.३१.५१।
उत स्मा सद्य इत् परि। ऋ०वे० ४.३१.८१।
उत स्मासु प्रथमः सरिष्यन्। ऋ०वे० ४.३८.६१।
उत स्मास्य तन्यतोर् इव द्योः। ऋ०वे० ४.३८.८१।
उत स्मास्य द्रवतस् तुरण्यतः। ऋ०वे० ४.४०.३१; वा०सं० ९.१५१; तै०सं० १.७.८.३१; मै०सं० १.११.२१, १६३.४; का०सं० १३.१४१; श०ब्रा०
५.१.५.२०१।
उत स्मास्य पनयन्ति जनाः। ऋ०वे० ४.३८.९१।
उत स्मा हि त्वाम् आहुर् इत्। ऋ०वे० ४.३१.७१।
उत स्मैनं वस्त्रमथिं न तायुम्। ऋ०वे० ४.३८.५१; नि० ४.२४१।
उत स्य देवः सविता भगो नः। ऋ०वे० ६.५०.१३१।
उत स्य देवो भुवनस्य सक्षणिः। ऋ०वे० २.३१.४१।
उत स्य न इन्द्रो विश्वचर्षणिः। ऋ०वे० २.३१.३१।
उत स्य न उशिजाम् उर्विया कविः। ऋ०वे० १०.९२.१२१।
उत स्य वाजी क्षिपणिं तुरण्यति। ऋ०वे० ४.४०.४१; नि० २.२८१। देखें-एष स्य वाजी।
उत स्य वाजी सहुरिर् ऋतावा। ऋ०वे० ४.३८.७१।
उत स्य वाज्य् अरुषस् तुविष्वणिः। ऋ०वे० ५.५६.७१।
उत स्या नः सरस्वती। ऋ०वे० ६.६१.७१. प्रतीकः उत स्या नः सरस्वती घोरा शा०श्रौ०सू० १०.३.५, ६.७।
उत स्या नः सरस्वती जुषाणा। ऋ०वे० ७.९५.४१; मै०सं० ४.१४.७१, २२५.१५; आ०ब्रा०५.१८.८; का०ब्रा० २५.२, २६.११; आ०श्रौ०सू० ३.७.६,
८.१०.१; शा०श्रौ०सू० १०.१०.४, १७.८.१०।
उत स्या (तै०ब्रा० आप०श्रौ०सू० त्या) नो दिवा मतिः। ऋ०वे० ८.१८.७१; सा०वे० १.१०२१; तै०ब्रा० ३.७.१०.४१; आप०श्रौ०सू० १४.२९.११।
उत स्या वां रुशतो वप्ससो गीः। ऋ०वे० १.१८१.८१
उत स्या वां मधुमन् मक्षिकारपत्। ऋ०वे० १.११९.९१।
उत स्य श्वेतयावरी। ऋ०वे० ८.२६.१८१।
उत स्रामं धिष्ण्या सं रिणीथः। ऋ०वे० १.११७.१९२।
उत स्रुतिं विन्दत्य् अञ्ञसीनाम्। ऋ०वे० १०.३२.७४।
उत स्वयं तन्वः शुम्भमानाः। ऋ०वे० ७.५६.११२।
उत स्वया तन्वा सं वदे तत्। ऋ०वे० ७.८६.२१।
उत स्वराजे अदितिः। ऋ०वे० ८.१२.१४१।
उत स्वराजो अदितिः। ऋ०वे० ७.६६.६१; सा०वे० २.७०३१।
उत स्वराजो अश्विना। ऋ०वे० ८.९४.४३; सा०वे० १.१७४३, २.११३५३।
उत स्वसारा युवती भवन्ती। ऋ०वे० ३.५४.७३।
उत स्वस्या अरात्या अरिर् हि षः। ऋ०वे० ९.७९.३१।
उत स्वानासो दिवि षन्त्व् अग्नेः। ऋ०वे० ५.२.१०१; तै०सं० १.२.१४.७१।
उत स्वेन क्रतुना सं वदेत। ऋ०वे० १०.३१.२३।
उत स्वेन शवसा शूशुवुर् नरः। ऋ०वे० ७.७४.६३।
उत हन्ति पूर्वासिनम्। अ०वे० १०.१.२७१।
उत हृदोत मनसा जुषाणः। ऋ०वे० ७.९८.२३; अ०वे० २०.८७.२३।
उतागश् चक्रुषं देवाः। ऋ०वे० १०.१३७.१३; अ०वे० ४.१३.१३; मै०सं० ४.१४.२३, २१८.१।
उतातिविद्धभेषजी। अ०वे० ६.१०९.१२।
उतात्रये शतदुरेषु गातुवित्। ऋ०वे० १.५१.३२।
उतादः परुषे गवि। ऋ०वे० ६.५६.३१; नि० २.६।
उतादर्दर् मन्युना शम्बराणि वि। ऋ०वे० २.२४.२२।
उतादित्या जागृत यूयम् अस्मिन्। अ०वे० १.३०.१२।
उतादित्या दिव्या पार्थिवस्य। ऋ०वे० ५.६९.४२।
उतादित्सन्तं दापयतु प्रजानन्। अ०वे० ३.२०.८३।
देखें-अदित्सन्तं दापयति।
उतादृष्टश् च हन्यताम्। अ०वे० ५.२३.७४।
उताद्य स्यात् पुनर्णवः। अ०वे० १०.८.२३२।
उताधि वस्ते सुभगा मधुवृधम्। ऋ०वे० १०.७५.८४।
उताधीतं वि नश्यति। ऋ०वे० १.१७०.१४; नि० १.६४।
उतानागा ईषते वृष्ण्यावतः। ऋ०वे० ५.८३.२३; नि० १०.११३।
उता नो मित्रावरुणा इहागतम्। मै०सं० ४.९.१२१, १३३.७। देखें-उप नो इत्यादि।
उतान्तरिक्षं समिधा पृणाति। अ०वे० ११.५.४२।
उतान्तरिक्षम् उरु वातगोपम्। अ०वे० २.१२.१३. तुल०- शम् अन्तरिक्षं सह वातेन।
उतान्तरिक्षं ममिरे व्य् ओजसा। ऋ०वे० ५.५५.२३।
उतान्तरिक्षाद् अभि नः समीके। ऋ०वे० ३.३०.११३।
उतान्तरिक्षे पतन्तं यातुधानम्। अ०वे० ८.३.५३. देखें-यद् वान्तरि०।
उतान्तरिक्षे परि याहि राजन्। (अ०वे० याह्य अग्ने)। ऋ०वे० १०.८७.३३; अ०वे० ८.३.३३।
उतान्यस्य अरात्या वृको हि षः। ऋ०वे० ९.७९.३२।
उतान्यो अस्मद् यजते वि चावः (तै०ब्रा० यजते विचायः)। ऋ०वे० ५.७७.२३; मै०सं० ४.१२.६३, १९५.१७; तै०ब्रा० २.४.३.१३३; नि० १२.५३।
उतापरं तुविजात ब्रवाम। ऋ०वे० २.२८.८२।
उतापरीभ्यो मघवा वि जिग्ये। ऋ०वे० १.३२.१३४।
उतापरीषु कृणुते सखायम्। ऋ०वे० १०.११७.३४।
उतापवक्ता हृदयाविधश् चित्। ऋ०वे० १.२४.८४; वा०सं० ८.२३४; तै०सं० १.४.४५.१४; मै०सं० १.३.३९४, ४५.४; का०सं० ४.१३४; श०ब्रा०
४.४.५.५।
उतापवीरवान् युधा। ऋ०वे० १०.६०.३३।
उतापि धेना पुरुहूतम् ईट्टे। ऋ०वे० १०.१०४.१०२।
उतापृणम् मर्डितारं न विन्दते। ऋ०वे० १०.११७.१४. तुल०- उतो चित् स।
उताभये पुरुहूत श्रवोभिः। ऋ०वे० ३.३०.५१।
उतामूं द्यां वऋष्मणोप स्पृशामि। ऋ०वे० १०.१२५.७४; अ०वे० ४.३०.७४।
उतामृतत्वस्येशानः। (अ०वे० ०स्येश्वरः)। ऋ०वे० १०.९०.२३; अ०वे० १९.६.४३; आ०सं० ४.६३; वा०सं० ३१.२३; तै०आ० ३.१२.१३; श्वेत०उप०
३.१५३। देखें-अगला।
उतामृतस्य त्वं वेत्थ। अ०वे० ४.९.३३। देखें-पूर्व।
उतामृतासुर् व्रत एमि कृण्वन्। अ०वे० ५.१.७१. प्रतीकः उतामृतासुः। कौ० सू० २८.१२, ४६.१।
उतायम् इन्द्र यस् तव। ऋ०वे० ८.३२.२०३।
उतायं पिता महतां गर्गराणाम्। मै०सं० २.५.१०२, ६१.१६, ४.२.१०२, ३३.१७। देखें-अथो पिता।
उता यातं सङ्गवे प्रातर् अह्नः। ऋ०वे० ५.७६.३१; सा०वे० २.११०४१।
उतारब्धान् इत्यादि। देखें- उतालब्धं इत्यादि।
उतारसस्य वृक्षस्य। अ०वे० ४.६.६३।
उतारुषस्य वि ष्यन्ति धाराः। ऋ०वे० १.८५.५३।
उतारुषाह चक्रे विभृत्रः। ऋ०वे० २.१०.२४।
उतारेभाणाँ ऋष्टिभिर् यातुधानान्। अ०वे० ८.३.७२। देखें-आलेभनाद्।
उतार्शम् असि वृष्ण्यम्। अ०वे० ४.४.५४।
उतालब्धं। (अ०वे० उतारब्धान्) स्पृणुहि जातवेदः। ऋ०वे० १०.८७.७१; अ०वे० ८.३.७१।
उतावमं भियसा नेशद् आद् उ ते। अ०वे० ५.१३.२४।
उतावमस्य पुरुहूत बोधि। ऋ०वे० ६.२१.५४।
उतावस्ताद् उत देवः परस्तात्। ऋ०वे० १०.८८.१४४।
उताविद्वान् निष्कृद् अया (?) कौ० सू० १२८.४१।
उताशितम् उप गच्छन्ति मृत्यवः। ऋ०वे० १०.११७.१२।
उताशिष्ठा अनु शृण्वन्ति वह्नयः। ऋ०वे० २.२४.१३१।
उताश्विनाव् अभ्रद् यत् तद् आसीत्। ऋ०वे० १०.१७.२३; अ०वे० १८.२.३३३; नि० १२.१०३।
उतासि परिपाणम्। अ०वे० ४.९.३१।
उतासि मैत्रावरुणो वसिष्ठ। ऋ०वे० ७.३३.१११; नि० ५.१४१।
उतासीनेषु सूरिषु। ऋ०वे० ६.४७.१९४।
उतासा द्यौर् बृहती दूरेअन्ता। अ०वे० ४.१६.३२।
उतास्मा अभवः पितुः। अ०वे० ४.६.३४।
उतास्माकम् आयुधा सन्ति तिग्मा। ऋ०वे० १०.१०८.५४।
उतास्मान् पात्व् अंहसः। ऋ०वे० ७.१५.३३; सा०वे० २.७३१३।
उतास्मिन्न् अल्प उदके निलीनः। अ०वे० ४.१६.३४।
उताहं नक्तम् उत सोम ते दिवा। ऋ०वे० ९.१०७.२०१। देखें-तवाहं इत्यादि।
उताहम् अद्मि पीव इत्। ऋ०वे० १०.८६.१४३; अ०वे० २०.१२६.१४३।
उताहम् अस्मि वीरिणी। ऋ०वे० १०.८६.९३; अ०वे० २०.१२६.९३।
उताहम् अस्मि संजया। ऋ०वे० १०.१५९.३३; आ०मं०पा० १.१६.३३।
उताहर् उत सूर्यम्। अ०वे० ८.५.६२।
उतूल परिमीढोऽसि। पा०गृ०सू० ३.७.२५। देखें-उलेन, तथा ऊलेन।
उतेदं विश्वं भुवनं वि राजसि। ऋ०वे० ५.८१.५३।
उतेदम् उत्तमं रजः। ऋ०वे० ९.२२.५३।
उतेदम् उत्तमाय्यम्। ऋ०वे० ९.२२.६३।
उतेदानीं भगवन्तः स्याम। ऋ०वे० ७.४१.४१; अ०वे० ३.१६.४१; वा०सं० ३४.३७१; तै०ब्रा० २.८.९.८१; आ०मं०पा० १.१४.४१ (आप०गृ०सू०
३.९.४). प्रतीकः उतेदानीम्। पा०गृ०सू० १.१३ (समालोचक टिप्पणी देखें-स्पेइजेर्, जातकर्म, पृ० १९।
उतेदृशे यथा वयम्। ऋ०वे० ६.४५.५३।
उतेन्द्र शर्यणावति। ऋ०वे० ८.६.३९२।
उतेम् अग्निः सरस्वती जुनन्ति। ऋ०वे० ७.४०.३३।
उतेम् अनंनमुः (का०ब्रा०। श०ब्रा० शा०श्रौ०सू० का०श्रौ०सू० उतस्व नंनमुः) तै०सं० ६.४.३.४; मै०सं० ४.५.२, ६५.१६; आ०ब्रा०२.२०.१२;
का०ब्रा० १२.१; श०ब्रा० ३.९.३.३१; आ०श्रौ०सू० ५.१.१४; शा०श्रौ०सू० ६.७.९; का०श्रौ०सू० ९.३.१५; आप०श्रौ०सू० १२.६.५; मा०श्रौ०सू० २.३.२.२५। उतेमं पश्य। मै०सं० ४.५.२, ६५.१६; मा०श्रौ०सू० २.३.२.२५. देखें-उतेमाः पश्य।
उतेम् अर्भे हवामहे। ऋ०वे० १.८१.१४; अ०वे० २०.५६.१४; मै०सं० ४.१२.४४, १८९.१४। देखें-ऊतिम् इत्यादि।
उतेम् अव त्वं वृषभ स्वधावः। ऋ०वे० ३.३५.३२।
उतेम् अवर्धन् नद्यः स्वगूर्ताः। ऋ०वे० १०.९५.७२; नि० १०.४७२।
उतेमाः पश्य। तै०सं० ६.४.३.४। देखें-उतेमं पश्य।
उतेम् (शा०श्रौ०सू० उतो) आ शु मानं पिपर्ति (आ०ब्रा०शा०श्रौ०सू० बिभर्ति)। अ०वे० २०.१३५.८३; आ०ब्रा०६.३५.१४३; गो०ब्रा० २.६.१४३;
शा०श्रौ०सू० १२.१९.४३।
उतेम् आहुर् नैषो अस्तीत्य् एनं। ऋ०वे० २.१२.५२; अ०वे० २०.३४.५२।
उतेयं भूमिर् वरुणस्य राज्ञः। अ०वे० ४.१६.३१. प्रतीकः उतेयं भूमिः। कौ० सू० १२७.३।
उतेव नंनमुः। देखें- उतेम् अनंनमुः।
उतेव प्रभ्वीर् उत संमितासः। अ०वे० १२.३.२७१।
उतेव मत्तो विलपन्न् अपायति। अ०वे० ६.२०.१२।
उतेव मे वरुणश् छन्त्स्य् अर्वन्। ऋ०वे० १.१६३.४३; वा०सं० २९.१५३; तै०सं० ४.६.७.२३; का०सं० ४०.६३।
उतेव स्त्रीभिः सह मोदमानः। श०ब्रा० १४.७.१.१४३; बृ० उ० ४.३.१४३।
उतेशिरे अमृतस्य स्वराजः। ऋ०वे० ५.५८.१४।
उतेशिषे प्रसवस्य त्वं एक इत्। ऋ०वे० ५.८१.५१।
उतैकं नेव दृश्यते। अ०वे० १०.८.२५२।
उतैधि पृत्सु नो वृधे। ऋ०वे० ५.९.७५, १०.७५, १६.५५, १७.५५
उतैनं विश्वा भूतानि। तै०सं० ४.५.१.३५; मै०सं० २.९.२५, १२१.१३; का०सं० १७.११५।
उतैनं गोपा अदृश्रन् (तै०सं० अदृशन्)। वा०सं० १६.७३; तै०सं० ४.५.१.३३; का०सं० १७.११३; मै०सं० २.९.२३, १२१.१२। देखें-उत त्वा गोपा।
उतैनम् आहुः समिथे वियन्तः। ऋ०वे० ४.३८.९३।
उतैनम् उदहार्यः। मै०सं० २.९.२४, १२१.१२; का०सं० १७.११४। नीचे देखें- अदृश्रन्न् उद्०।
उतैनां ब्रह्मणे दद्यात्। अ०वे० ३.२८.२३।
उतैनां भेदो नाददात्। अ०वे० १२.४.५०१।
उतैवाद्य पुरुकृत् सास्य् उक्थ्यः। ऋ०वे० २.१३.८४।
उतैषां स्थपतिर् हतः। अ०वे० २.३२.४२, ५.२३.११२. देखें-अप्य् एषां इत्यादि।
उतैषां ज्येष्ठ उत वा कनिष्ठः। अ०वे० १०.८.२८२; जै० उ० ब्रा० ३.१०.१२१।
उतैषां पितोत वा पुत्र एषाम्। अ०वे० १०.८.२८१। देखें-अगला।
उतैषां पुत्र उत वा पितैषां जै० उ० ब्रा० ३.१०.१२२। देखें-पूर्व।
उतो अपो द्यां तस्तभ्वांसम्। ऋ०वे० २.११.५३।
उतो अरण्यानिः (तै०ब्रा ०निस्) सायम्। ऋ०वे० १०.१४६.३३; तै०ब्रा० २.५.५.७३।
उतो असि नु जामिकृत्। अ०वे० ४.१९.१२।
उतो अस्माँ अमृतत्वे दधातन। ऋ०वे० ५.५५.४३।
उतो अस्य् अबन्धुकृत्। अ०वे० ४.१९.११; कौ० सू० ३९.७।
उतो अह क्रतुं रघुम्। ऋ०वे० ८.३३.१७३।
उतो आशु इत्यादि, देखें- उतेम् आशु इत्यादि।
उतो एति पृथिव्या रेणुम् अस्यन्। ऋ०वे० १०.१६८.१४।
उतो कविं पुरुभुजा युवं ह। ऋ०वे० १.११६.१४३।
उतो कृत्याकृतः प्रजाम्। अ०वे० ४.१९.१३।
उतो कृपन्त धीतयः। ऋ०वे० ९.९९.४३; सा०वे० २.९८३३।
उतो गृहपतिर् दमे। ऋ०वे० ४.९.४२।
उतो घा ते पुरुष्या इद् आ सन्। ऋ०वे० ७.२९.४१।
उतो चित् स मर्डितारं न विन्दते। ऋ०वे० १०.११७.२४। तुल०- उतापृणन्।
उतो चिद् अग्ने महिना पृथिव्याः। ऋ०वे० ३.७.१०३।
उतो जरन्तं न जहात्य् एकम्। तै०आ० ३.१४.१२।
उतो त (मै०सं० ता) इषवे नमः। वा०सं० १६.१२; तै०सं० ४.५.१.१२; मै०सं० २.९.२२, १२०.१६; का०सं० १७.११३; श०ब्रा० ९.१.१.१४; नीलरुद्र
उप० ४४।
उतो तत् सत्यम् इत् तव। ऋ०वे० ८.९३.५३; अ०वे० २०.११२.२३।
उतो तद् अद्य विद्याम। अ०वे० १०.८.२९३।
उतो तद् अस्मै मध्व् इच् चछद्यात्। ऋ०वे० १०.७३.९२; सा०वे० १.३३१२।
उतो ता इत्यादि, देखें- ’उतो त‘ इत्यादि।
उतो तृतीयं मनुषः स होता। ऋ०वे० २.१८.२२।
उतो ते तन्यतुर् यथा। ऋ०वे० ५.२५.८३।
उतो ते वृषणा (आ०सं० हरितौ) हरी। ऋ०वे० ८.१३.३१२; आ०सं० ४.९२।
उतो तेषाम् अभिगूर्तिर् न इन्वतु। ऋ०वे० १.१६२.६४, १२४; वा०सं० २५.२९४, ३५४; तै०सं० ४.६.८.२४, ९.१४; मै०सं० ३.१६.१४ (द्वितीयांश),
१८२.९, १८३.३; का०सं० अश्व० ६.४४, ५४।
उतो ते सप्त सप्ततिः ऋ०वे०खि० १०.१२७.२४; अ०वे० १९.४७.३४; शा०श्रौ०सू० ९.२८.१०४।
उतो ते हरितौ हरी। देखें- उतो ते वृषणा हरी।
उतोत्तरस्माद् अधराद् अघायोः। ऋ०वे० १०.४२.११२, ४३.११२, ४४.११२; अ०वे० ७.५१.१२, २०.१७.११२, ८९.११२, ९४.११२; तै०सं० ३.३.११.१२;
का०सं० १०.१३२; गो०ब्रा० २.४.१६२।
उतो त्वस्मै तन्वं वि सस्रे। ऋ०वे० १०.७१.४३; नि० १.१९३।
उतोदिता। (अ०वे० उतोदितौ) मघवन् सूर्यस्य। ऋ०वे० ७.४१.४३; अ०वे० ३.१६.४३; वा०सं० ३४.३७३; तै०ब्रा० २.८.९.८३; आ०मं०पा०
१.१४.४३।
उतोदीच्यां वृत्रहन् वृत्रहासि। तै०सं० २.४.१४.१२; मै०सं० ४.१२.२२, १८१.९; का०सं० ८.१७२। देखें-अगला।
उतोदीच्या दिशो वृत्रहँ छत्रुहोऽसि। अ०वे० ६.९८.३२। देखें-पूर्व।
उतो न (मै०सं० ना) उत् पुपूर्याः। ऋ०वे० ५.६.९३; सा०वे० २.३७४३; वा०सं० १५.४३३; तै०सं० २.२.१२.७३, ४.४.४.६३; मै०सं० २.१३.५३,
१५४.७।
उतो न एभि स्तवथैर् इह स्याः। ऋ०वे० ७.१.८३।
उतो न एभिः सुमना इह स्याः। ऋ०वे० ७.१.९३।
उतो ना उत्, देखें- उतो न उत्।
उतो नु कृत्व्यानां नृवाहसा। ऋ०वे० ८.२५.२३३।
उतो नु चिद् य ओजसा। ऋ०वे० ८.४०.१०३। तुल०- अगला
उतो नु चिद् य ओहते। ऋ०वे० ८.४०.११३। तुल०- पूर्व का
उतो नो अस्य कस्य चित्। ऋ०वे० ५.३८.४१।
उतो नो अस्य पूर्व्यः पतिर् दन्। ऋ०वे० १.१५३.४३।
उतो नो अस्या उषसो जुषेत हि। ऋ०वे० १.१३१.६१; अ०वे० २०.७२.३१।
उतो न्व् अस्य जोषम् आ। ऋ०वे० ८.९४.६१; सा०वे० २.११३७१।
उतो न्व् अस्य पपिवांसम् इन्द्रम्। ऋ०वे० ६.४७.१३; अ०वे० १८.१.४८३।
उतो न्व् अस्य यत् पदम्। ऋ०वे० ८.७२.१८१।
उतो न्व् अस्य यन् महत्। ऋ०वे० ८.७२.६१।
उतो न्व् इन्द्राय पातवे। मै०सं० २.७.१६३, १००.१२।
उतो पतिर् य उच्यते। ऋ०वे० ८.१३.९१।
उतो (शा०श्रौ०सू० उत) पद्याभिर् जविष्ठः (गो०ब्रा० शा०श्रौ०सू० यविष्ठः)। अ०वे० २०.१३५.८२; आ०ब्रा०६.३५.१३२; गो०ब्रा० २.६.१४२;
शा०श्रौ०सू० १२.१९.४२।
उतोपमानां प्रथमो नि षीदसि। ऋ०वे० ८.६१.२३; अ०वे० २०.११३.२३; सा०वे० २.५८४३।
उतो पितृभ्यां प्रविदानु घोषम्। ऋ०वे० ३.७.६१।
उतो पृथिव्या अधि। ऋ०वे० ९.५७.४२; सा०वे० २.१११४२।
उतो बहून् एकम् अहर् जहार। तै०आ० ३.१४.२३।
उतो मरुत्वतीर् विशो अभि प्रयः। ऋ०वे० ८.१३.२८३।
उतो मे अस्य वेदथः। ऋ०वे० ८.२६.११२।
उतो रयिः पृणतो नोप दस्यति। ऋ०वे० १०.११७.१३।
उतो विहुत्मतीनाम्। ऋ०वे० १.१३४.६४।
उतो वेश्मेव दृश्यते तै०ब्रा० २.५.५.६२। देखें-’उत‘ इत्यादि।
उतो शविष्ठ वृष्ण्यम्। ऋ०वे० ८.६.३१३।
उतोषो वस्व ईशिषे। ऋ०वे० ४.५२.३३; सा०वे० २.१०७७३।
उतो सह मन्यन्तेऽवरे। अ०वे० १०.७.२१३।
उतो समस्मिन्न् आ शिशीहि नो वसो। ऋ०वे० ८.२१.८३; नि० ५.२३।
उतो स मह्यम् इन्दुभिः। ऋ०वे० १.२३.१५१।
उतो समुद्रौ वरुणस्य कुक्षी। अ०वे० ४.१६.३३।
उतो सहस्रभर्णसम्। ऋ०वे० ९.६४.२६१।
उतो हि वां रत्नधेयानि सन्ति। ऋ०वे० ७.५३.३१।
उतो हि वां दात्रा सन्ति पूर्वा। ऋ०वे० ४.३८.११. तुल०- बृ. दा. ५.१।
उतो हि वां पूर्व्या आ विविद्रे। ऋ०वे० ३.५४.४१।
उत् कसन्तु हृदयानि। अ०वे० ११.९.२११।
उत्कूलनिकूलेभ्यस् त्रिष्ठिनम्। वा०सं० ३०.१४; उत्कूलविकूलाभ्यां त्रिस्थिनम् तै०ब्रा० ३.४.१.१०।
उत्कूलम् उद्वहो भव। अ०वे० १९.२५.१३।
उत् कृत्यां किरामि। वा०सं० ५.२३; श०ब्रा० ३.५.४.१३; का०श्रौ०सू० ८.५.९।
उत् केतुना बृहता देव आगन्। अ०वे० १३.२.९१।
उत्क्रंस्यते स्वाहा। तै०सं० ७.१.१९.३। देखें-उत्क्रमिष्यते।
उत्क्रमं जिन्व। वै० सू० २७.२७।
उत्क्रमाय त्वा। वा०सं० १५.९; पं०वि०ब्रा० १.१०.१२; वै० सू० २७.२७।
उत्क्रमिष्यते स्वाहा। का०सं० अश्व० १.१०। देखें-उत्क्रंस्यते।
उत्क्रमोऽसि। वा०सं० १५.९; गो०ब्रा० २.२.१४; पं०वि०ब्रा० १.१०.१२; वै० सू० २७.२७।
उत्क्रम्य स्वर्गं लोकम् इतो विमुक्ताः। श०ब्रा० १४.७.२.११४; बृ० उ० ४.४.११४।
उत्क्रान्ताय स्वाहा। तै०सं० ७.१.१९.३; का०सं० अश्व० १.१०।
उत्क्रान्तिं जिन्व। वै० सू० २७.२७।
उत्क्रान्तिर् असि। वा०सं० १५.९; गो०ब्रा० २.२.१४; पं०वि०ब्रा० १.१०.१२; वै० सू० २७.२७। नीचे देखें- आ क्रान्त्या०।
उत्क्रान्त्यै त्वा। वा०सं० १५.९; पं०वि०ब्रा० १.१०.१२; वै० सू० २७.२७।
उत्क्रान्त्योत्क्रान्त्या आक्रान्तिं जिन्व। मै०सं० २.८.८, ११३.४। नीचे देखें- आक्रान्त्या०।
उत्क्रामते स्वाहा। तै०सं० ७.१.१९.३; का०सं० अश्व० १.१०।
उत् क्राम महते सौभगाय। वा०सं० ११.२११; तै०सं० ४.१.२.४१; का०सं० १६.२१; मै०सं० २.७.२१, ७५.१७; श०ब्रा० ६.३.३.१३. प्रतीकः उत् क्राम
तै०सं० ५.१.३.१; मै०सं० ३.१.४, ५.७; का०सं० १९.३; का०श्रौ०सू० १६.२.१८; आप०श्रौ०सू० १६.२.११; मा०श्रौ०सू० ६.१.१।
उत् क्रामातः परि चेद् अतप्तः। अ०वे० ९.५.६१. प्रतीकः उत् क्रामातः। कौ० सू० ६४.१६।
उत् क्रामातः पुरुष माव पत्थाः। अ०वे० ८.१.४१।
उत् तक्षतं स्वर्यं पर्वतेभ्यः। ऋ०वे० ७.१०४.४३; अ०वे० ८.४.४३।
उत्तभ्नुवन् पृथिवीं द्यां उतो परि। तै०आ० ६.८.१२ (द्वितीयांश). तुल०- उत् ते स्तभ्नामि।
उत्तम आसनम् आचरन्। अ०वे० २०.१२७.८२; शा०श्रौ०सू० १२.१७.१.२२।
उत्तमं तु महाव्रतम् आ०श्रौ०सू० ८.१३.३१२।
उत्तमं नाकं रोहेयम्। शा०श्रौ०सू० १६.१७.१३।
उत्तमं नाकम् (वा०सं० मै०सं० का०सं० । श०ब्रा० उत्तमे नाके) अधि रोहयेमम् (वा०सं० मै०सं० का०सं० । श०ब्रा० रोहयैनम्; तै०आ०
रोहेमम्)। अ०वे० १.९.२४, ४४, ६.६३.३४, ८४.४४, ११, १.४४; वा०सं० १२.६३४; तै०सं० ४.२.५.३४; मै०सं० २.७.१२४, ९०.१८; का०सं० १६.१२४; श०ब्रा० ७.२.१.१०; तै०आ० ६.४.२४। तुल०- स्वर् आ रोहन्तो अभि।
उत्तमं नाकं परमं व्योम। अ०वे० ११.१.३०४।
उत्तमरात्री णाम मृत्यो ते माता। कौ० सू० १३५.९१।
उत्तमाञ्ञनिम् इत्यादि। देखें- उत्तराञ्ञनीम् आञ्ञन्याम्।
उत्तमाञ्ञनी न्वर्त्मन्यात् वै० सू० ३२.२५; अ०वे० २०.१३३.६३, की पांडुलिपि में भी उत्तराञ्ञनीं वर्त्मभ्याम् के लिए।
उत्तमानि वि भेजिरे। अ०वे० ५.४.८४।
उत्तमेन तनूद्वितीयांश् तनूर् जिन्व। ऋ०वे० १५.७।
उत्तमेन पविनेन्द्राय सोमं सुषुतं मधुमन्तं पयस्वन्तं वृष्टिवनिम्। तै०सं० १.४.१.१। नीचे देखें- इन्द्राय त्वा सुषुत्तमम्।
उत्तमेन पविनोर्जस्वन्तम्। वा०सं० ६.३०३; श०ब्रा० ३.९.४.५।
उत्तमेन हविषा। (अ०वे० ब्रह्मणा) जातवेदः अ०वे० १.९.३२; तै०सं० ३.५.४.२२; मै०सं० १.४.३२, ५०.१४; का०सं० ५.६२।
उत्तमे नाक इह मादयन्ताम् (मा०श्रौ०सू० मादयध्वम्!) तै०सं० ३.५.१.१४; तै०ब्रा० ३.१.१.१२४; आप०श्रौ०सू० ७.५.१४; मा०श्रौ०सू० ६.२.३४।
देखें-नाकस्ये पृष्ठे सम्।
उत्तमे नाके इत्यादि। देखें-’उत्तमं नाकम् अधि‘ इत्यादि।
उत्तमेभ्यः स्वाहा। अ०वे० १९.२२.१२। तुल०- । कौ० सू० २६.४०, ४१.१५, ५०.१४।
उत्तमे लोक आ दधत्। अ०वे० ११.४.११४।
उत्तमे शिखरे देवी (तै०आ० विरुद्ध पाठन जाते)। तै०आ० १०.३०.११; महाना०उप०१५.५१।
उत्तमो अस्य् ओषधीनाम्। अ०वे० ६.१५.११, ८.५.१११, १९.३९.४१. प्रतीकः उत्तमो असि कौ० सू० १९.२६। देखें-त्वं उत्तमास्य्।
उत्तमो नाम कुष्ठासि। अ०वे० ५.४.९१।
उत्तमो नाम ते पिता। अ०वे० ५.४.९२। तुल०- ’जीवलो नाम‘ इत्यादि), ’विहल्हो नाम‘ इत्यादि), तथा ’सरूपो नाम‘ इत्यादि।
उत्तमोऽहं भूयासम् अधरे मत्सपत्नाः। का०सं० ३१.१४ (पञ्चमांश)। देखें-उत्तरस् त्वं, तथा उत्तरोऽहं।
उत्तमो हविषां कृतः। अ०वे० ६.१५.३२।
उत्तरं राष्ट्रं प्रजयोत्तरावत्। अ०वे० १२.३.१०१।
उत्तरतः परीत। आप०श्रौ०सू० ३.४.४; मा०श्रौ०सू० १.३.३.१४।
उत्तरतो मध्यतो अन्तरिक्षात्। अ०वे० १८.४.९४।
उत्तरं द्विषतो मां अयम्। अ०वे० १०.६.३११।
उत्तरपूर्वस्यां दिशि विषादी (तथा उत्तरापरस्यां दिश्य् अविषादी) नरकः, तस्मान् नः परि पाहि। तै०आ० १.१९.१।
उत्तरवक्त्राय नमः। मा०श्रौ०सू० ११.७.१।
उत्तरस् त्वं अधरे ते सपत्नाः। अ०वे० ४.२२.६१; तै०ब्रा० २.४.७.८१। नीचे देखें- उत्तमोऽहं।
उत्तरस्मिँ ज्योतिषि धारयन्तु। अ०वे० १.९.१४।
उत्तरस्यां दिश्य् उत्तरं धेहि पार्श्वम्। अ०वे० ४.१४.८२।
उत्तरस्यां देवयज्यायाम् उपहूतः। तै०सं० २.६.७.५; श०ब्रा० १.८.१.३०; तै०ब्रा० ३.५.८.३। तुल०- अगला, तथा उपहूतोऽयं यजमान उत्तरस्यां। उत्तरस्यां देवयज्यायाम् उपहूता। तै०ब्रा० ३.५.१३.३. तुल०- पूर्व।
उत्तरा अषाढा नक्षत्रम्। का०सं० ३९.१३।
उत्तराच् चाप्य् उदुम्बरम्। गो०गृ०सू० ४.७.२२४।
उत्तराञ्ञनीं वर्त्मभ्याम् (आ०श्रौ०सू० वर्तन्याम्)। अ०वे० २०.१३३.६; आ०श्रौ०सू० ८.३.१९। देखें-उत्तमाञ्ञनी न्वर्त्मन्यात्।
उत्तराञ्ञनीम् (वै०सू० उत्तमाञ्ञनिम्) आञ्ञन्याम्। अ०वे० ०.१३३.५; आ०श्रौ०सू० ८.३.१९; वै० सू० ३२.२५।
उत्तरात् त्वा सोमः सं ददातै। अ०वे० १२.३.२४४।
उत्तराद् अधराद् अभयं नो अस्तु। अ०वे० १९.१५.५४।
उत्तराद् अधराद् उत। अ०वे० ११.२.४२। तुल०- मोत्तराद् इत्यादि), तथा सोत्तराद् इत्यादि।
उत्तराद्वातो वातः। तै०सं० ४.३.३.२; मै०सं० २.७.२०, १०५.१४; का०सं० ३९.७।
उत्तरां देवयज्याम् आशास्ते। तै०ब्रा० ३.५.१०.५; श०ब्रा० १.९.१.१४; आ०श्रौ०सू० १.९.५; शा०श्रौ०सू० १.१४.१७।
उत्तरान् मरुतस् त्वा। अ०वे० १०.९.८२।
उत्तरान् मा शचीपतिः। अ०वे० १९.१६.१४, २७.१४४।
उत्तरापरस्यां इत्यादि, देखें-उत्तरपूर्वस्यां इत्यादि।
उत्तराम्-उत्तरां समाम्। ऋ०वे० ४.५७.७४; अ०वे० ३.१०.१४, १७.४४, १२.१.३३४; वा०सं० ३८.२८३; तै०सं० ४.३.११.५४; मै०सं० २.१३.१०४,
१६१.१३; का०सं० ३९.१०४; श०ब्रा० १४.३.१.३१४; सा०मं०ब्रा० १.८.८४, २.२.१४, १७४, ८.१; पा०गृ०सू० ३.३.५४।
उत्तरां पृथिवीम् अभि। अ०वे० ८.२.१५३।
उत्तरा सूर् अधरः पुत्र आसीत्। ऋ०वे० १.३२.९३।
उत्तराहम् उत्तरे। ऋ०वे० १०.१४५.३१; अ०वे० ३.१८.४१; आ०मं०पा० १.१५.३१ (आप०गृ०सू० ३.९.६)।
उत्तरेण तु ताव् उभौ। वै०सू० ९.१२२।
उत्तरेणेव गायत्रीम्। अ०वे० १०.८.४११।
उत्तरेद् उत्तराभ्यः। ऋ०वे० १०.१४५.३२; अ०वे० ३.१८.४२; आप० मं० पा० १.१५.३२।
उत्तरे प्रोष्ठपदा नक्षत्रम्। का०सं० ३९.१३।
उत्तरेभ्यः स्वाहा। अ०वे० १९.२२.१३। तुल०- । कौ० सू० ४८.३६।
उत्तरो द्विषतां भव। अ०वे० ५.२८.१०४।
उत्तरो धुरो वहति प्रदेदिशत्। ऋ०वे० १०.१०२.१०४ ।