१४२

१४२ ...{Loading}...

०१ अभुत्स्यु प्र

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

अभु॑त्स्यु॒ प्र दे॒व्या सा॒कं वा॒चाह॑म॒श्विनोः॑।
व्या॑वर्दे॒व्या म॒तिं वि रा॒तिं मर्त्ये॑भ्यः ॥

०१ अभुत्स्यु प्र ...{Loading}...

Griffith

Together with the Goddess, with the Asvins’ Speech have I awoke. Thou, Goddess, hast disclosed the hymn and holy gift from mortal men.

पदपाठः

अभु॑त्सि। ऊं॒ इति॑। प्र। दे॒व्या। सा॒कम्। वा॒चा। अ॒हम्। अ॒श्विनोः॑। वि। आ॒वः॒। दे॒वि॒। आ। मतिम्। वि। रा॒तिम्। मर्त्ये॑भ्यः। १४२.१।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अश्विनौ
  • शशकर्णः
  • अनुष्टुप्
  • सूक्त १४२
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

दिन और राति के उत्तम प्रयोग का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (अहम्) मैं (देव्या) उत्तम गुणवाली (वाचा साकम्) वाणी के साथ (अश्विनोः) दोनों अश्वी [व्यापक दिन-राति] के बीच (उ) अवश्य (प्र अभुत्सि) जागा हूँ। (देवि) हे देवी ! [प्रकाशमान उषा-म० २] तूने (आ) आकर (मर्त्येभ्यः) मनुष्यों के लिये (मतिम्) बुद्धि और (रातिम्) धन को (वि) विशेष करके (वि आवः) खोल दिया है ॥१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य प्रभात समय उठकर दिन-राति विद्या और धन को प्राप्त करें ॥१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: यह सूक्त ऋग्वेद में है-८।९।१६-२१ ॥ १−(प्र अभुत्सि) बुध अवगमने-लुङ्। प्रबुद्धोऽस्मि (उ) अवश्यम् (देव्या) उत्तमगुणवत्या (साकम्) सह (वाचा) वाण्या (अहम्) (अश्विनोः) सू० १४०। म० २। व्यापकयोः। अहोरात्रमध्ये (वि आवः) वृणोतेर्लुङ्। त्वं विवृतां विस्तृतां कृतवती (देवि) हे द्योतमाने उषः-म० २। (आ) आगत्य (मतिम्) बुद्धिम् (वि) विशेषेण (रातिम्) धनम् (मर्त्येभ्यः) मनुष्याणां हिताय ॥

०२ प्र बोधयोषो

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प्र बो॑धयोषो अ॒श्विना॒ प्र दे॑वि सूनृते महि।
प्र य॑ज्ञहोतरानु॒षक्प्र मदा॑य॒ श्रवो॑ बृ॒हत् ॥

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Griffith

Awake the Asvins, Goddess Dawn! Up, mighty Lady of Sweet Strains! Rise straightway, priest of sacrifice! High glory to the glad- dening draught!

पदपाठः

प्र। बो॒ध॒य॒। उ॒षः॒। अ॒श्विना॑। प्र। दे॒वि॒। सू॒नृ॒ते॒। म॒हि॒। प्र। य॒ज्ञ॒ऽहो॒तः॒। आ॒नु॒षक्। प्र। मदा॑य। श्रवः॑। बृ॒हत्। १४२.२।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अश्विनौ
  • शशकर्णः
  • अनुष्टुप्
  • सूक्त १४२
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

दिन और राति के उत्तम प्रयोग का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (उषः) हे उषा ! [प्रभात वेला] (अश्विनौ) दोनों अश्वी [व्यापक दिन-राति] को (प्र बोधय) जगादे, (देवि) हे देवी ! [व्यवहारकुशल] (सूनृते) हे अन्नवाली ! (महि) हे पूजनीया ! [उषा] (प्र=प्र बोधय) जगादे। (यज्ञहोतः) हे उत्तम संगति देनेवाले ! [विद्वान्] (आनुषक्) लगातार (प्र) जगादे, (बृहत्) बड़े (श्रवः) यश के लिये और (मदाय) आनन्द के लिये (प्र) जगादे ॥२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य प्रातःकाल उठकर सदा अन्न आदि धन, कीर्ति और आनन्द के लिये प्रयत्न करें ॥२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २−(प्र बोधय) जागरय (उषः) हे प्रभातवेले (अश्विनौ) व्यापकौ”। अहोरात्रौ (प्र) प्र बोधय (देवि) हे व्यवहारकुशले (सूनृते) अथ० ३।१२।२। सूनृता यज्ञनाम-निघ० २।७, अर्शआद्यच्, टाप्। हे अन्नवति (महि) हे महति (प्र) प्र बोधय (यज्ञहोतः) हे उत्तमसंगतिदातः। विद्वन् (आनुषक्) अथ० ४।३२।१। अनुषक्तं निरन्तरम् (प्र) प्र बोधय (मदाय) हर्षाय (श्रवः) विभक्तेर्लुक्। श्रवसे। यशसे (बृहत्) बृहते। महते ॥

०३ यदुषो यासि

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यदु॑षो॒ यासि॑ भा॒नुना॒ सं सूर्ये॑ण रोचसे।
आ हा॒यम॒श्विनो॒ रथो॑ व॒र्तिर्या॑ति नृ॒पाय्य॑म् ॥

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Griffith

Thou, Dawn, approaching with thy light, shinest together with the Sun, And to this man-protecting home the chariot of the Asvins comes.

पदपाठः

यत्। उ॒षः॒। यासि॑। भा॒नुना॑। सम्। सूर्ये॑ण। रो॒च॒से॒। आ। ह॒। अ॒यम्। अ॒श्विनोः॑। रथः॑। व॒र्तिः। या॒ति॒। नृ॒ऽपाय्य॑म्। १४२.३।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अश्विनौ
  • शशकर्णः
  • अनुष्टुप्
  • सूक्त १४२
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

दिन और राति के उत्तम प्रयोग का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (उषः) हे उषा ! [प्रभात वेला] (यत्) जब तू (भानुना) प्रकाश के साथ (यासि) चलती है, [तब] तू (सूर्येण) सूर्य के साथ (सम्) ठीक प्रकार से (रोचसे) रुचती है [प्रिय लगती है।] [तभी] (अश्विनोः) दोनों अश्वी [व्यापक दिन-राति] का (अयम्) यह (रथः) रथ (ह) भी (नृपाय्यम्) नरों [नेताओं] से पालने योग्य (वर्तिः) घर पर (आ याति) आता है ॥३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जैसे उषा सूर्य के साथ सदा शोभायमान होती है, वैसे ही मनुष्य ज्ञान के साथ शोभा बढ़ाकर दिन-राति को सफल करें ॥३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ३−(यत्) यदा (उषः) हे प्रभातवेले (यासि) गच्छसि (भानुना) दीप्त्या सह (सम्) सम्यक् (सूर्येण) (रोचसे) रुचि (प्रिया) भवसि (आ याति) आगच्छति (ह) अपि (अयम्) दृश्यमानः (अश्विनोः) व्यापकयोः। अहोरात्रयोः (रथः) (वर्तिः) सू० १४१।१। गृहम् (नृपाय्यम्) श्रुदक्षिस्पृहि०। उ० ३।९६। पा रक्षणे-आय्य। नृभिर्नेतृभिः पातव्यं पालनीयम् ॥

०४ यदापीतासो अंशवो

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यदापी॑तासो अं॒शवो॒ गावो॒ न दु॒ह्र ऊध॑भिः।
यद्वा॒ वाणी॒रनु॑षत॒ प्र दे॑व॒यन्तो॑ अ॒श्विना॑ ॥

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Griffith

When yellow stalks give forth the juice as cows from udders pour their milk, And voices sound the song of praise, the Asvins’ worshippers show first.

पदपाठः

यत्। आऽपी॑तासः। अं॒शवः॑। गावः॑। न। दु॒ह्रे। ऊध॑ऽभिः। यत्। वा॒। वाणीः॑। अनू॑षत। प्र। दे॒व॒ऽयन्तः॑। अ॒श्विना॑। १४२.४।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अश्विनौ
  • शशकर्णः
  • अनुष्टुप्
  • सूक्त १४२
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

दिन और राति के उत्तम प्रयोग का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (यत्) जब (आपीतासः) अच्छे प्रकार पीये हुए (अंशवः) बटे हुए सोम रस [तत्त्व रस] (दुह्रे) दुहे जाते हैं, (गावः न) जैसे गौएँ (ऊधभिः) लेवाओं [अयनों, थनों के स्थानों] से [दूध दुहती हैं]। (वा) और (यत्) जब (देवयन्तः) दिव्य गुण चाहनेवाले लोग (वाणीः) वाणियों से (अश्विना) दोनों अश्वी [व्यापक दिन-राति] को (प्र) अच्छे प्रकार (अनूषत) सराहते हैं ॥४॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य दिन-राति तत्त्व का ग्रहण करके यशस्वी, बलवान् और कार्यकुशल होवें ॥४-६॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ४−(यत्) यदा (आपीतासः) समन्तात् कृतपानाः (अंशवः) अंश विभाजने-कु। विभक्ताः सोमाः। तत्त्वरसाः (गावः) धेनवः (न) यथा (दुह्रे) अथ० १०।१०।३२। प्रपूर्यन्ते (ऊधभिः) आपीनैः। क्षीराधारैः (यत्) यदा (वा) समुच्चये (वाणीः) वाणीभिः (अनूषत) णू स्तवने, लङर्थे लुङ्। नुवन्ति। स्तुवन्ति (प्र) प्रकर्षेण (देवयन्तः) देवान् दिव्यगुणान् कामयमानाः पुरुषाः (अश्विना) व्यापकौ। अहोरात्रौ ॥

०५ प्र द्युम्नाय

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प्र द्यु॒म्नाय॒ प्र शव॑से॒ प्र नृ॒षाह्या॑य॒ शर्म॑णे।
प्र दक्षा॑य प्रचेतसा ॥

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Griffith

Forward for glory and for strength, protection that shall con- quer men, And power and skill, most sapient Ones!

पदपाठः

प्र। द्यु॒म्नाय॑। प्र। शव॑से। प्र। नृ॒ऽसह्या॑य। शर्म॑णे। प्र। दक्षा॑य। प्र॒ऽचे॒त॒सा॒। १४२.५।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अश्विनौ
  • शशकर्णः
  • गायत्री
  • सूक्त १४२
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

दिन और राति के उत्तम प्रयोग का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - [तब] (प्रचेतसा) हे उत्तम ज्ञान देनेवाले ! तुम दोनों (द्युम्नाय) चमकते हुए यश के लिये (प्र=प्रभवथः) समर्थ होते हो, (शवसे) बल के लिये (प्र) समर्थ होते हो, (नृषह्याय) मनुष्यों को सहाय देनेवाले (शर्मणे) शरण [घर आदि] के लिये (प्र) समर्थ होते हो, और (दक्षाय) चतुराई [कार्यकुशलता] के लिये (प्र) समर्थ होते हो ॥॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य दिन-राति तत्त्व का ग्रहण करके यशस्वी, बलवान् और कार्यकुशल होवें ॥४-६॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: −(प्र) प्रभवथः। समर्थौ भवथः (द्युम्नाय) द्योतमानाय यशसे (प्र) प्रभवथः (शवसे) बलाय (प्र) प्रभवथः (नृषह्याय) शकिसहोश्च। पा० ३।१।९९। षह क्षमायां-यत्, सहितायां दीर्घः। नॄणां सहायाय (शर्मणे) गृहाय। शरणाय (प्र) प्रभवथः (दक्षाय) दक्षत्वाय। कार्यकुशलत्वाय (प्रचतसा) हे प्रकृष्टज्ञानप्रदौ ॥

०६ यन्नूनं धीभिरश्विना

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यन्नू॒नं धी॒भिर॑श्विना पि॒तुर्योना॑ नि॒षीद॑थः।
यद्वा॑ सु॒म्नेभि॑रुक्थ्या ॥

०६ यन्नूनं धीभिरश्विना ...{Loading}...

Griffith

When, Asvins worthy of our lauds, ye seat you in the father’s house. With wisdom or the bliss ye bring.

पदपाठः

यत्। नू॒नम्। धी॒भिः। अ॒श्वि॒ना॒। पि॒तुः। योना॑। नि॒ऽसीद॑थः। यत्। वा॒। सु॒म्नेभिः॑। उ॒क्थ्या॒। १४२.६।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अश्विनौ
  • शशकर्णः
  • गायत्री
  • सूक्त १४२
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

दिन और राति के उत्तम प्रयोग का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (यत्) क्योंकि (नूनम्) अवश्य, (उक्थ्या) हे बड़ाई योग्य (अश्विना) दोनों अश्वी [व्यापक दिन-राति] (धीभिः) कर्मों के साथ, (वा) और (यत्) क्योंकि (सुम्नेभिः) अनेक सुखों के साथ (पितुः) पालन करनेवाले पुरुष के (योना) घर में (निषीदथः) दोनों बैठते हो ॥६॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य दिन-राति तत्त्व का ग्रहण करके यशस्वी, बलवान् और कार्यकुशल होवें ॥४-६॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ६−(यत्) यतः (नूनम्) अवश्यम् (धीभिः) कर्मभिः-निघ० २।१। (अश्विना) हे व्यापकौ। अहोरात्रौ (पितुः) पालनकर्तुः पुरुषस्य (योना) योनौ। गृहे (निषीदथः) उपविशथः। निवसथः (यत्) यतः (वा) समुच्चये (सुम्नेभिः) सुम्नैः। अनेकसुखैः (उक्थ्या) हे उक्थ्यौ। प्रशस्यौ ॥