१३९

१३९ ...{Loading}...

०१ आ नूनमश्विना

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

आ नू॒नम॑श्विना यु॒वं व॒त्सस्य॑ गन्त॒मव॑से।
प्रास्मै॑ यच्छतमवृ॒कं पृथु छ॒र्दिर्यु॑यु॒तं या अरा॑तयः ॥

०१ आ नूनमश्विना ...{Loading}...

Griffith

To help and favour Vatsa now, O Asvins, come ye hitherward. Bestow on him a dwelling spacious and secure, and keep malig- nites afar.

पदपाठः

आ। नू॒नम्। अ॒श्वि॒ना॒। यु॒वम्। व॒त्सस्य॑। ग॒न्त॒म्। अव॑से। प्र। अस्मै॑। य॒च्छ॒त॒म्। अ॒वृ॒कम्। पृ॒थु। छ॒र्दिः। यु॒यु॒तम्। याः। अरा॑तयः। १३९.१।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अश्विनौ
  • शशकर्णः
  • बृहती
  • सूक्त १३९
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

गुरुजनों के गुणों का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (अश्विना) हे दोनों अश्वी [चतुर माता-पिता, अथवा राजा और मन्त्री] (युवाम्) तुम दोनों (वत्सस्य) निवास करनेवाले [प्रजा जन] की (अवसे) रक्षा के लिये (नूनम्) अवश्य (आ गन्तम्) आओ। और (अस्मै) उसको (अवृकम्) बिना भेड़ियेवाला [भेड़िये के समान चोर डाकू के बिना], (पृथु) चौड़ा (छर्दिः) घर (प्र यच्छतम्) दो और (या) जो (अरातयः) कर न देनेवाली प्रजाएँ हैं, [उन्हें] (युयुतम्) अलग करो ॥१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - चतुर माता-पिता तथा राजा और मन्त्री सब गुरुजन प्रजा की रक्षा करें और शत्रुओं को हटावें ॥१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: चार सूक्त १३९-१४२ के २१ मन्त्र ऋग्वेद में हैं-८।९।१-२१ ॥ यह सूक्त ऋग्वेद में है-८।९।१- ॥ १−(आ गन्तम्) आगच्छतम् (नूनम्) अवश्यम् (अश्विना) अथ० २।२९।६। अश्विनौ राजानौ पुण्यकृतावित्यैतिहासिकाः-निरु० १२।१। हे चतुरमातापितरौ राजामात्यौ वा (युवम्) युवाम् (वत्सस्य) अथ० २०।१३८।१। वस निवासे-सप्रत्ययः। निवासशीलस्य प्रजाजनस्य (अवसे) रक्षणाय (प्र यच्छतम्) प्रदत्तम् (अस्मै) प्रजाजनाय (अवृकम्) अथ० ४।३।१। वृको हिंस्रजन्तुविशेषः, तद्रहितम्। वृकसमानचौरादिरहितम् (पृथु) विस्तीर्णम् (छर्दिः) गृहम् (युयुतम्) पृथक्कुरुतम् (याः) (अरातयः) अथ० १।२९।२। अदानशीलाः शत्रुभूताः प्रजाः ॥

०२ यदन्तरिक्षे यद्दिवि

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यद॒न्तरि॑क्षे॒ यद्दि॒वि यत्पञ्च॒ मानु॑षाँ॒ अनु॑।
नृ॒म्णं तद्ध॑त्तमश्विना ॥

०२ यदन्तरिक्षे यद्दिवि ...{Loading}...

Griffith

All manliness that is in heaven, with the Five Tribes, or in mid- air, Bestow, ye Asvins, upon us.

पदपाठः

यत्। अ॒न्तरि॑क्षे। यत्। दि॒वि। यत्। पञ्च॑। मानु॑षाम्। अनु॑। नृ॒म्णम्। तत्। ध॒त्त॒म्। अ॒श्वि॒ना॒। १३९.२।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अश्विनौ
  • शशकर्णः
  • गायत्री
  • सूक्त १३९
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

गुरुजनों के गुणों का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (यत्) जो [धन] (अन्तरिक्षे) आकाश में, (यत्) जो (दिवि) सूर्य आदि के प्रकाश में और (यत्) जो (पञ्च) पाँच [पृथिवी आदि पाँच तत्त्वों] से संबन्धवाले (मानुषान् अनु) मनुष्यों में है, (अश्विना) हे दोनों अश्वी ! [चतुर माता-पिता] (तत्) उस (नृम्णम्) धन को (धत्त) दान करो ॥२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - माता-पिता आदि गुरुजन प्रबन्ध करें कि सब लोग आपस में खगोलविद्या, सूर्य, बिजुली, अग्नि आदि विद्याएँ जानकर धनी होवें ॥२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २−(यत्) धनम् (अन्तरिक्षे) आकाशे (यत्) (दिवि) सूर्यादिप्रकाशे (यत्) (पञ्च) पृथिव्यादिपञ्चभूतसम्बन्धिनः (मानुषान् अनु) लक्षणे अनोः कर्मप्रवचनीयत्वात्। कर्मप्रवचनीययुक्ते द्वितीया। पा० २।३।८। इति द्वितीया। मनुष्यान् प्रति (नृम्णम्) धनम् (तत्) तादृशम् (धत्त) दत्त (अश्विना) म० १। हे चतुरमातापितरौ ॥

०३ ये वाम्

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ये वां॒ दंसां॑स्यश्विना॒ विप्रा॑सः परिमामृ॒शुः।
ए॒वेत्का॒ण्वस्य॑ बोधतम् ॥

०३ ये वाम् ...{Loading}...

Griffith

Remember Karnva first of all among the singers,, Asvins, who Have thought upon your wondrous deeds.

पदपाठः

ये। वा॒म्। दंसां॑सि। अ॒श्वि॒ना॒। विप्रा॑सः। प॒रि॒ऽम॒मृ॒क्षुः। ए॒व। इत्। का॒ण्वस्य॑। बो॒ध॒त॒म्। १३९.३।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अश्विनौ
  • शशकर्णः
  • गायत्री
  • सूक्त १३९
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

गुरुजनों के गुणों का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (अश्विना) हे दोनों अश्वी ! [चतुर माता-पिता] (वाम्) तुम दोनों के (दंसांसि) कर्मों को (ये) जिन (विप्रासः) बुद्धिमानों ने (परिममृशुः) विचारा है, (एव इत्) वैसे ही [उन के बीच] (काण्वस्य) बुद्धिमान् के किये कर्म का (बोधतम्) तुम दोनों ज्ञान करो ॥३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जैसे विद्वान् लोग माता-पिता आदि गुरुजनों को उत्तम प्रकार से विचारें, वैसे ही गुरुजन भी विद्वानों का आदर करें ॥३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ३−(ये) (वाम्) युवयोः (दंसांसि) कर्माणि (अश्विना) म० १। हे चतुरमातापितरौ। गुरुजनौ (विप्रासः) विप्राः। मेधाविनः (परिमामृशुः) मृशु स्पर्शे प्रणिधाने च-लिट्। विचारितवन्तः (एव) एवम्। तथा (इत्) अवधारणे (काण्वस्य) कण्वेन मेधाविना प्रणीतस्य कर्मणः (बोधतम्) बोधं कुरुतम् ॥

०४ अयं वाम्

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अ॒यं वां॑ घ॒र्मो अ॑श्विना॒ स्तोमे॑न॒ परि॑ षिच्यते।
अ॒यं सोमो॒ मधु॑मान्वाजिनीवसू॒ येन॑ वृ॒त्रं चि॑केतथः ॥

०४ अयं वाम् ...{Loading}...

Griffith

Asvins, for you with song of praise this hot oblation is effused, This your sweet Soma juice, ye Lords of wealth and spoil, through which ye think upon the foe.

पदपाठः

अ॒यम्। वा॒म्। घ॒र्मः। अ॒श्वि॒ना॒। स्तोमे॑न। परि॑। सि॒च्य॒ते॒। अ॒यम्। सोमः॑। मधु॑ऽमान्। वा॒जि॒नी॒व॒सू॒ इति॑ वाजिनीऽवसू। येन॑। वृ॒त्रम्। चिके॑तथः। १३९.४।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अश्विनौ
  • शशकर्णः
  • बृहती
  • सूक्त १३९
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

गुरुजनों के गुणों का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (अश्विना) हे दोनों अश्वी ! [चतुर माता-पिता, गुरुजनो] (वाम्) तुम दोनों का (अयम्) यह (घर्मः) पसीना (स्तोमेन) स्तुतियोग्य कर्म के साथ (परि सिच्यते) सिंचता है [बहता है], (वाजिनीवसू) हे बहुत वेगवाली वा बहुत अन्नवाली क्रियाओं में निवास करनेवाले दोनों ! (अयम्) वह [पसीना] (मधुमान्) उत्तम ज्ञानवाला (सोमः) सोम [तत्त्व रस] है, (येन) जिस [तत्त्व रस] से (वृत्रम्) रोकनेवाले शत्रु को (चिकेतथः) तुम दोनों जान लेते हो ॥४॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - गुरुजन महान् परिश्रम करके मधुविद्या अर्थात् तत्त्वज्ञान को प्राप्त करें और शत्रुओं को मारें ॥४॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ४−(अयम्) शरीरस्थः (वाम्) युवयोः (घर्मः) घर्मग्रीष्मौ। उ० १।१४९। घृ क्षरणदीप्त्यो-मक्। स्वेदः (अश्विना) म० १। हे चतुरमातापितरौ। गुरुजनौ (स्तोमेन) स्तुत्यकर्मणा (परि सिच्यते) आसिच्यते। वहति (अयम्) स घर्मः (सोमः) तत्त्वरसः (मधुमान्) मधुविद्यायुक्तः। श्रेष्ठज्ञानोपेतः (वाजिनीवसू) अथ० १४।२।। हे वेगवतीषु अन्नवतीषु वा क्रियासु निवासिनौ (येन) तत्त्वरसेन (वृत्रम्) आवरकं शत्रुम् (चिकेतथः) जानीथः ॥

०५ यदप्सु यद्वनस्पतौ

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यद॒प्सु यद्वन॒स्पतौ॒ यदोष॑धीषु पुरुदंससा कृ॒तम्।
तेन॑ माविष्टमश्विना ॥

०५ यदप्सु यद्वनस्पतौ ...{Loading}...

Griffith

Whatever ye have done in floods, in the tree, Wonder-workers, and in growing plants, Therewith, O Asvins, succour me.

पदपाठः

यत्। अ॒प्ऽसु। वन॒स्पतौ॑। यत्। ओष॑धीषु। पु॒रु॒दं॒स॒सा॒। कृ॒तम्। तेन॑। मा॒। अ॒वि॒ष्ट॒म्। अ॒श्वि॒ना॒। १३९.५।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अश्विनौ
  • शशकर्णः
  • ककुबुष्णिक्
  • सूक्त १३९
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

गुरुजनों के गुणों का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (पुरुदंससा) हे बहुत कर्मोंवाले दोनों ! (यत्) जो कुछ (कृतम्) क्रियाफल (अप्सु) जल में है, (यत्) जो (वनस्पतौ) वनस्पति [वृक्षों] में है, और (यत्) जो (ओषधीषु) ओषधियों [जौ चावल आदि] में है, (अश्विना) हे दोनों अश्वी ! [चतुर माता-पिता] (तेन) उस [क्रियाफल] से (मा) मेरी (अविष्टम्) रक्षा करो ॥॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - गुरुजन जिज्ञासुओं को जल आदि सब पदार्थों का तत्त्वज्ञान कराके, क्रियाकुशल बनावें ॥॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: −(यत्) (अप्सु) जलेषु (यत्) (वनस्पती) जाताविदमेकवचनम्। वनस्पतिषु वृक्षेषु (यत्) (ओषधीषु) यवव्रीह्यादिषु (पुरुदंससा) हे बहुकर्माणौ (कृतम्) क्रियाफलम् (तेन) क्रियाफलेन (मा) माम् (अविष्टम्) अवतेर्लोटि बाहुलकात् सिप्, तत इट्। रक्षतम् (अश्विना) म० १। हे चतुरमातापितरौ ॥