१३२ ...{Loading}...
VH anukramaṇī
खिलानि ।
०१ आदलाबुकमेककम्
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
आदला॑बुक॒मेक॑कम् ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
आदला॑बुक॒मेक॑कम् ॥
०१ आदलाबुकमेककम् ...{Loading}...
Griffith
Then too the single bottle-gourd,
पदपाठः
आत्। अला॑बुक॒म्। एक॑कम्। १३२.१।
अधिमन्त्रम् (VC)
- प्रजापतिः
- प्राजापत्या गायत्री
- कुन्ताप सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
परमात्मा के गुणों का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - [वह ब्रह्म] (अलाबुकम्) न डूबनेवाला (आत्) और (एककम्) अकेला है ॥१॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - वह ब्रह्म निराधार अकेला होकर सबका आधार और बनानेवाला है, वायु आदि पदार्थ उसकी आज्ञा में चलते हैं। सब मनुष्य उसकी उपासना करें ॥१-४॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: [पदपाठ के लिये सूचना सूक्त १२७ देखो ॥]१−(आत्) अनन्तरम् (अलाबुकम्) नञि लम्बेर्नलोपश्च। उ० १।८७। नञ्+लबि अवस्रंसने-ऊ, ऊकारस्य उकारः, स च, णित् नलोपश्च, स्वार्थे कन्। न लम्बते कुत्रापि। अनधःपतनशीलम् निराधारं ब्रह्म (एककम्) स्वार्थे कन्। असहायम् ॥
०२ अलाबुकं निखातकम्
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
अला॑बुकं॒ निखा॑तकम् ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
अला॑बुकं॒ निखा॑तकम् ॥
०२ अलाबुकं निखातकम् ...{Loading}...
Griffith
the bottle-gourd dug from the earth,
पदपाठः
अला॑बुक॒म्। निखा॑तकम्। १३२.२।
अधिमन्त्रम् (VC)
- प्रजापतिः
- प्राजापत्या गायत्री
- कुन्ताप सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
परमात्मा के गुणों का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (अलाबुकम्) न डूबनेवाला और (निखातकम्) दृढ़ जमा हुआ है ॥२॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - वह ब्रह्म निराधार अकेला होकर सबका आधार और बनानेवाला है, वायु आदि पदार्थ उसकी आज्ञा में चलते हैं। सब मनुष्य उसकी उपासना करें ॥१-४॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: २−(अलाबुकम्) म० १। (निखातकम्) खनु अवदारणे-क्त, स्वार्थे कन्। खनित्वा दृढीकृत्य स्थापितम् ॥
०३ कर्करिको निखातकः
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
क॑र्करि॒को निखा॑तकः ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
क॑र्करि॒को निखा॑तकः ॥
०३ कर्करिको निखातकः ...{Loading}...
Griffith
The lute dug up from out the ground:
पदपाठः
क॒र्क॒रि॒कः। निखा॑तकः। १३२.३।
अधिमन्त्रम् (VC)
- प्रजापतिः
- प्राजापत्या गायत्री
- कुन्ताप सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
परमात्मा के गुणों का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - [वह परमात्मा] (कर्करिकः) बनानेवाला (निखातकः) दृढ़ जमा हुआ है ॥३॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - वह ब्रह्म निराधार अकेला होकर सबका आधार और बनानेवाला है, वायु आदि पदार्थ उसकी आज्ञा में चलते हैं। सब मनुष्य उसकी उपासना करें ॥१-४॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ३−(कर्करिकः) फर्फरीकादयश्च। उ० ४।२०। डुकृञ् करणे-ईकन्, कर्करादेशः, ईकारस्य इकारः। कर्ता। रचयिता (निखातकः) म० २। दृढीकृत्य स्थापितः ॥
०४ तद्वात उन्मथायति
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
तद्वात॒ उन्म॑थायति ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
तद्वात॒ उन्म॑थायति ॥
०४ तद्वात उन्मथायति ...{Loading}...
Griffith
this the wind stirs and agitates.
पदपाठः
तत्। वातः॒। उन्म॑थायति। १३२.४।
अधिमन्त्रम् (VC)
- प्रजापतिः
- प्राजापत्या गायत्री
- कुन्ताप सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
परमात्मा के गुणों का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (तत्) उस [ब्रह्म] को (वातः) वायु (उन्मथायति) अच्छे प्रकार मथन [मनन] करता है ॥४॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - वह ब्रह्म निराधार अकेला होकर सबका आधार और बनानेवाला है, वायु आदि पदार्थ उसकी आज्ञा में चलते हैं। सब मनुष्य उसकी उपासना करें ॥१-४॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ४−(तत्) ब्रह्म (वातः) वायुः (उन्मथायति) उत्तमतया मथनं मननं करोति ॥
०५ कुलायन् कृणवादिति
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
कुला॑यन् कृणवा॒दिति॑ ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
कुला॑यन् कृणवा॒दिति॑ ॥
०५ कुलायन् कृणवादिति ...{Loading}...
Griffith
Let him prepare a nest, they say:
पदपाठः
कुला॑यन्। कृणवा॒त्। इति॑। १३२.५।
अधिमन्त्रम् (VC)
- प्रजापतिः
- प्राजापत्या गायत्री
- कुन्ताप सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
परमात्मा के गुणों का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (कुलायन्) स्थानों को (कृणवात्) वह [परमात्मा] बनाता है, (इति) ऐसा [मानते हैं] ॥॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - परमात्मा ने यह सब बड़े लोक बनाये हैं। मनुष्य अपने हृदय को सदा बढ़ाता जावे, कभी संकुचित न करे ॥-७॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: −(कुलायन्) अ० २०।१२।८। कुलायन्। स्थानानि (कृणवात्) लडर्थे लेट्। करोति रचयति परमेश्वरः (इति) एवं मन्यते ॥
०६ उग्रं वनिषदाततम्
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
उ॒ग्रं व॑नि॒षदा॑ततम् ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
उ॒ग्रं व॑नि॒षदा॑ततम् ॥
०६ उग्रं वनिषदाततम् ...{Loading}...
Griffith
he shall obtain it strong and stretched.
पदपाठः
उ॒ग्रम्। व॑नि॒षत्। आ॑ततम्। १३२.६।
अधिमन्त्रम् (VC)
- प्रजापतिः
- प्राजापत्या गायत्री
- कुन्ताप सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
परमात्मा के गुणों का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (उग्रम्) दृढ़ और (आततम्) सब ओर फैला हुआ पदार्थ (वनिषत्) यह [मनुष्य] माँगे ॥६॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - परमात्मा ने यह सब बड़े लोक बनाये हैं। मनुष्य अपने हृदय को सदा बढ़ाता जावे, कभी संकुचित न करे ॥-७॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ६−(उग्रम्) दृढम् (वनिषत्) वनु याचने लिङर्थे लुङ्। परस्मैपदं च। अवनिष्ट, याचतां मनुष्यः (आततम्) समन्ताद् विस्तृतं पदार्थम् ॥
०७ न वनिषदनाततम्
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
न व॑निष॒दना॑ततम् ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
न व॑निष॒दना॑ततम् ॥
०७ न वनिषदनाततम् ...{Loading}...
Griffith
He shall not gain it unspread out.
पदपाठः
न। व॑निष॒त्। अना॑ततम्। १३२.७।
अधिमन्त्रम् (VC)
- प्रजापतिः
- प्राजापत्या गायत्री
- कुन्ताप सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
परमात्मा के गुणों का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (अनाततम्) बिना फैले हुए पदार्थ को (न वनिषत्) वह न माँगे ॥७॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - परमात्मा ने यह सब बड़े लोक बनाये हैं। मनुष्य अपने हृदय को सदा बढ़ाता जावे, कभी संकुचित न करे ॥-७॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ७−(न) निषेधे (वनिषत्) म० ६। याचतां सः (अनाततम्) अविस्तृतम्। सङ्कुचितं पदार्थम् ॥
०८ क एषाम्
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
क ए॑षां॒ कर्क॑री लिखत् ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
क ए॑षां॒ कर्क॑री लिखत् ॥
०८ क एषाम् ...{Loading}...
Griffith
Who among these will touch the lute?
पदपाठः
कः। ए॑षा॒म्। कर्क॑री। लिखत्। १३२.८।
अधिमन्त्रम् (VC)
- प्रजापतिः
- प्राजापत्या गायत्री
- कुन्ताप सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
परमात्मा के गुणों का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (कः) कौन (एषाम्) इनके बीच (कर्करी) कर्करी [झारी जलपात्र, वा जलतरंग आदि बाजा] लिखत्) छोड़े [बजावे] ॥८॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - चुने हुए विद्वान् मनुष्य और विदुषी स्त्रियाँ संसार में उत्तम उत्तम बाजों के साथ वेद-विद्या का गान करके आत्मा और शरीर की बल बढ़ानेवाली चमत्कारी क्रियाओं का प्रकाश करें ॥८-१२॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ८−(कः) (एषाम्) मनुष्याणां मध्ये (कर्करी) अर्त्तिकमिभ्रमि०। उ० ३।१३२। सौत्रो धातुः, कर्क हासे-अरप्रत्ययः, यद्वा, कर्कं हासं राति, रा दाने-क, गौरादित्वात् ङीष्, विभक्तेर्लुक्। कर्करीम्। सनालजलपात्रम्। जलतरङ्गादिवाद्यम् (लिखत्) लिख अक्षरविन्यासे। अक्षरविन्यासरीत्या वादयेत् ॥
०९ क एषाम्
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
क ए॑षां दु॒न्दुभिं॑ हनत् ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
क ए॑षां दु॒न्दुभिं॑ हनत् ॥
०९ क एषाम् ...{Loading}...
Griffith
Who among these will beat the drum?
पदपाठः
कः। एषाम्। दु॒न्दुभि॑म्। हनत्। १३२.९।
अधिमन्त्रम् (VC)
- प्रजापतिः
- प्राजापत्या गायत्री
- कुन्ताप सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
परमात्मा के गुणों का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (कः) कौन (एषाम्) इनके बीच (दुन्दुभिम्) दुन्दुभि [ढोल] (हनत्) बजावे ॥९॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - चुने हुए विद्वान् मनुष्य और विदुषी स्त्रियाँ संसार में उत्तम उत्तम बाजों के साथ वेद-विद्या का गान करके आत्मा और शरीर की बल बढ़ानेवाली चमत्कारी क्रियाओं का प्रकाश करें ॥८-१२॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ९−(कः) (एषाम्) (दन्दुभिम्) अथ० ।२०।१। बृहड्ढक्काम् (हनत्) वादयेत् ॥
१० यदीयं हनत्कथम्
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
यदी॒यं ह॑न॒त्कथं॑ हनत् ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
यदी॒यं ह॑न॒त्कथं॑ हनत् ॥
१० यदीयं हनत्कथम् ...{Loading}...
Griffith
How, if he beat it, will he beat?
पदपाठः
यदि॑। इ॒यम्। ह॑न॒त्। कथम्। हनत्। १३२.१०।
अधिमन्त्रम् (VC)
- प्रजापतिः
- आसुरी जगती
- कुन्ताप सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
परमात्मा के गुणों का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (यदि) जो (इयम्) यह [प्रजा, पुरुष वा स्त्री] (हनत्) बजावे, (कथम्) कैसे (हनत्) बजावे ॥१०॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - चुने हुए विद्वान् मनुष्य और विदुषी स्त्रियाँ संसार में उत्तम उत्तम बाजों के साथ वेद-विद्या का गान करके आत्मा और शरीर की बल बढ़ानेवाली चमत्कारी क्रियाओं का प्रकाश करें ॥८-१२॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: १०−(यदि) सम्भावनायम् (इयम्) दृश्यमाना स्त्रीपुरुषरूपा प्रजा (हनत्) (कथम्) केन प्रकारेण (हनत्) ॥
११ देवी हनत्कुहनत्
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
दे॒वी ह॑न॒त्कुह॑नत् ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
दे॒वी ह॑न॒त्कुह॑नत् ॥
११ देवी हनत्कुहनत् ...{Loading}...
Griffith
Where beating will the Goddess
पदपाठः
दे॒वी। ह॑न॒त्। कुह॑नत्। १३२.११।
अधिमन्त्रम् (VC)
- प्रजापतिः
- दैवी जगती
- कुन्ताप सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
परमात्मा के गुणों का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (देवी) देवी [उत्तम प्रजा, मनुष्य वा स्त्री] (पर्यागारम्) घर-घर पर (पुनःपुनः) बार-बार (हनत्) बजावे और (कुहनत्) चमत्कार दिखावे ॥११, १२॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - चुने हुए विद्वान् मनुष्य और विदुषी स्त्रियाँ संसार में उत्तम उत्तम बाजों के साथ वेद-विद्या का गान करके आत्मा और शरीर की बल बढ़ानेवाली चमत्कारी क्रियाओं का प्रकाश करें ॥८-१२॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ११−(देवी) दिव्यगुणवती प्रजा (हनत्) (कुहनत्) कुह विस्मापने। विस्मापयेत्। चमत्कारं कुर्यात् ॥
१२ पर्यागारं पुनःपुनः
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
पर्या॑गारं॒ पुनः॑पुनः ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
पर्या॑गारं॒ पुनः॑पुनः ॥
१२ पर्यागारं पुनःपुनः ...{Loading}...
Griffith
beat again again about the house?
पदपाठः
परिऽआ॑गारम्। पुनः॑ऽपुनः। १३२.१२।
अधिमन्त्रम् (VC)
- प्रजापतिः
- प्राजापत्या गायत्री
- कुन्ताप सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
परमात्मा के गुणों का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (देवी) देवी [उत्तम प्रजा, मनुष्य वा स्त्री] (पर्यागारम्) घर-घर पर (पुनःपुनः) बार-बार (हनत्) बजावे और (कुहनत्) चमत्कार दिखावे ॥११, १२॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - चुने हुए विद्वान् मनुष्य और विदुषी स्त्रियाँ संसार में उत्तम उत्तम बाजों के साथ वेद-विद्या का गान करके आत्मा और शरीर की बल बढ़ानेवाली चमत्कारी क्रियाओं का प्रकाश करें ॥८-१२॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: १२−(पर्यागारम्) परि+अग कुटिलायां गतौ-घञ्, आगमृच्छति ऋ गतौ-अण्। आगारं गृहम्। प्रतिगृहम्। (पुनःपुनः) वारंवारम् ॥
१३ त्रीण्युष्ट्रस्य नामानि
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
त्रीण्यु॒ष्ट्रस्य॒ नामा॑नि ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
त्रीण्यु॒ष्ट्रस्य॒ नामा॑नि ॥
१३ त्रीण्युष्ट्रस्य नामानि ...{Loading}...
Griffith
Three are the names the camel bears,
पदपाठः
त्रीणि। उ॒ष्ट्र॒स्य॒। नामा॑नि। १३२.१३।
अधिमन्त्रम् (VC)
- प्रजापतिः
- दैवी जगती
- कुन्ताप सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
परमात्मा के गुणों का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (उष्ट्रस्य) प्रतापी [परमात्मा] के (त्रीणि) तीन (नामानि) नाम ॥१३॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - परमात्मा अपने अनन्त गुण, कर्म, स्वभाव के कारण नामों की गणना में नहीं आ सकता है, जो मनुष्य उसके केवलहिरण्य आदि नाम बताते हैं, वे बालक के समान थोड़ी बुद्धिवाले हैं ॥१३-१६॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: पण्डित सेवकलाल कृष्णदास संशोधित पुस्तक में मन्त्र १३-१६ का पाठ इस प्रकार है ॥ त्रीण्युष्ट्र॑स्य॒ नामा॑नि ॥१३॥ (उष्ट्रस्य) प्रतापी [परमात्मा] के (त्रीणि) तीन (नामानि) नाम हैं ॥१३॥१३−(त्रीणि) त्रिसंख्याकानि (उष्ट्रस्य) उषिखनिभ्यां कित्। उ० ४।१६२। उष दाहे वधे च-ष्ट्रन् कित्। प्रतापिनः परमेश्वरस्य (नामानि) संज्ञाः ॥
१४ हिरण्य इत्येके
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
हि॑र॒ण्य इत्येके॑ अब्रवीत् ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
हि॑र॒ण्य इत्येके॑ अब्रवीत् ॥
१४ हिरण्य इत्येके ...{Loading}...
Griffith
Golden is one of them, he said.
पदपाठः
हि॒र॒ण्यः। इति॑। एके॑। अब्रवीत्। १३२.१४।
अधिमन्त्रम् (VC)
- प्रजापतिः
- आसुरी जगती
- कुन्ताप सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
परमात्मा के गुणों का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (हिरण्यः) हिरण्य [तेजोमय], (वा) और (द्वौ) दो (नीलशिखण्डवाहनः) नीलशिखण्ड [नीलों निधियों वा निवास स्थानों का पहुँचानेवाला] तथा वाहन [सब का लेचलनेवाला] है, (इति) ऐसा (ये शिशवः) बालक हैं, (एके) वे कोई-कोई (अब्रवीत्) कहते हैं ॥१४-१६॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - परमात्मा अपने अनन्त गुण, कर्म, स्वभाव के कारण नामों की गणना में नहीं आ सकता है, जो मनुष्य उसके केवलहिरण्य आदि नाम बताते हैं, वे बालक के समान थोड़ी बुद्धिवाले हैं ॥१३-१६॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: पण्डित सेवकलाल कृष्णदास संशोधित पुस्तक में मन्त्र १३-१६ का पाठ इस प्रकार है ॥ हिर॑ण्य॒मित्येक॑मब्रवीत् ॥१४॥ (एकम्) एक (हिरण्यम्) हिरण्य [तेजोमय], (वा) और (द्वे) दो (यशः) यश [कीर्ति] तथा (शवः) बल है, (इति) ऐसा (अब्रवीत्) [वह, मनुष्य] कहता है ॥१४, १॥१४−(हिरण्यः) हिरण्यः=हिरण्यमयः-निरु० १०।२३। तेजोमयः (इति) एवम् (एके) केचित्। (अब्रवीत्) लडर्थे लङ्, बहुवचनस्यैकवचनम् अब्रुवन्। ब्रुवन्ति ॥
१५ द्वौ वा
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
द्वौ वा॒ ये शि॑शवः ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
द्वौ वा॒ ये शि॑शवः ॥
१५ द्वौ वा ...{Loading}...
Griffith
Glory and power, these are two.
पदपाठः
द्वौ। वा॑। ये। शिशवः। १३२.१५।
अधिमन्त्रम् (VC)
- प्रजापतिः
- याजुषी गायत्री
- कुन्ताप सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
परमात्मा के गुणों का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (हिरण्यः) हिरण्य [तेजोमय], (वा) और (द्वौ) दो (नीलशिखण्डवाहनः) नीलशिखण्ड [नीलों निधियों वा निवास स्थानों का पहुँचानेवाला] तथा वाहन [सब का लेचलनेवाला] है, (इति) ऐसा (ये शिशवः) बालक हैं, (एके) वे कोई कोई (अब्रवीत्) कहते हैं ॥१४-१६॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - परमात्मा अपने अनन्त गुण, कर्म, स्वभाव के कारण नामों की गणना में नहीं आ सकता है, जो मनुष्य उसके केवलहिरण्य आदि नाम बताते हैं, वे बालक के समान थोड़ी बुद्धिवाले हैं ॥१३-१६॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: पण्डित सेवकलाल कृष्णदास संशोधित पुस्तक में मन्त्र १३-१६ का पाठ इस प्रकार है ॥ द्वे वा॒ यशः॒ शवः॑ ॥१॥ (एकम्) एक (हिरण्यम्) हिरण्य [तेजोमय], (वा) और (द्वे) दो (यशः) यश [कीर्ति] तथा (शवः) बल है, (इति) ऐसा (अब्रवीत्) [वह, मनुष्य] कहता है ॥१४, १॥१−(द्वौ) (वा) समुच्चये (ये) (शिशवः) वासाः। बालसमानस्वबुद्धयः। (नीलशिखण्डवाहनः) नीलशिखण्डश्च वाहनश्च। [नीलशिखण्डः-अथ० २।२७।६] स्फायितञ्चिवञ्चि०। उ० २।१३। णीञ् प्रापणे-रक्, रस्य लः। यद्वा नि+इल अतौ-कः। अण्डन् कृसृभृवृञः। उ० १।२९। शिखि गतौ-अण्डन् कित्। नीलानां निधीनां यद्वा नीलानां नीडानां निवासानां शिखण्डः प्रापकः [वाहनः] वह प्रापणे-ल्यु स च णित्। वोढा। सर्ववहनशीलः परमेश्वरः ॥
१६ नीलशिखण्डवाहनः
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
नील॑शिखण्ड॒वाह॑नः ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
नील॑शिखण्ड॒वाह॑नः ॥
१६ नीलशिखण्डवाहनः ...{Loading}...
Griffith
He with black tufts of hair shall strike.
पदपाठः
नील॑शिखण्ड॒वाह॑नः। १३२.१६।
अधिमन्त्रम् (VC)
- प्रजापतिः
- प्राजापत्या गायत्री
- कुन्ताप सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
परमात्मा के गुणों का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (हिरण्यः) हिरण्य [तेजोमय], (वा) और (द्वौ) दो (नीलशिखण्डवाहनः) नीलशिखण्ड [नीलों निधियों वा निवास स्थानों का पहुँचानेवाला] तथा वाहन [सब का लेचलनेवाला] है, (इति) ऐसा (ये शिशवः) बालक हैं, (एके) वे कोई कोई (अब्रवीत्) कहते हैं ॥१४-१६॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - परमात्मा अपने अनन्त गुण, कर्म, स्वभाव के कारण नामों की गणना में नहीं आ सकता है, जो मनुष्य उसके केवलहिरण्य आदि नाम बताते हैं, वे बालक के समान थोड़ी बुद्धिवाले हैं ॥१३-१६॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: पण्डित सेवकलाल कृष्णदास संशोधित पुस्तक में मन्त्र १३-१६ का पाठ इस प्रकार है ॥ नील॑शिखण्डो वा हनत् ॥१६॥ (नीलशिखण्डः) नील शिखण्ड [नीलों निधियों वा निवास स्थानों का पहुँचानेवाला परमेश्वर] (वा) निश्चय करके (हनत्) व्यापक है [हन गतौ, गच्छति व्याप्नोति] ॥१६॥