१३१

१३१ ...{Loading}...

VH anukramaṇī

खिलानि ।

०१ आमिनोनिति भद्यते

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आमि॑नोनि॒ति भ॑द्यते ॥

०१ आमिनोनिति भद्यते ...{Loading}...

Griffith

He minishes, he splits in twain:

पदपाठः

आऽअमि॑नोन्। इ॒ति। भ॑द्यते। १३१.१।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • प्रजापतिर्वरुणो वा
  • प्राजापत्या गायत्री
  • कुन्ताप सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

ऐश्वर्य की प्राप्ति का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (आ-अमिनोन्) उन [विद्वानों] ने [विघ्न को] सब ओर से हटाया है, (इति) यह (भद्यते) कल्याणकारी है ॥१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य पूर्वज विद्वानों के समान विघ्नों को हटाकर अनेक प्रकार के ऐश्वर्य प्राप्त करें ॥१-॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १−(आ-अमिनोन्) डुमिञ् प्रक्षेपणे-लङ् छान्दसः। मिनोतिर्वधकर्मा-निघ० २।१९। समन्तात् नाशितवन्तः, ते विद्वांसो विघ्नम् (इति) अवधारणे (भद्यते) भदि कल्याणे सुखे च। कल्याणकरं भवति ॥

०२ तस्य अनु

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तस्य॑ अनु॒ निभ॑ञ्जनम् ॥

०२ तस्य अनु ...{Loading}...

Griffith

crush it and let it be destroyed.

पदपाठः

तस्य॑। अनु॒। निभ॑ञ्जनम्। १३१.२।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • प्रजापतिर्वरुणो वा
  • प्राजापत्या गायत्री
  • कुन्ताप सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

ऐश्वर्य की प्राप्ति का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (तस्य) हिंसक विघ्न का (अनु) लगातार (निभञ्जनम्) विनाश होवे ॥२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य पूर्वज विद्वानों के समान विघ्नों को हटाकर अनेक प्रकार के ऐश्वर्य प्राप्त करें ॥१-॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २−(तस्य) तर्द हिंसे-डप्रत्ययः। हिंसकस्य विघ्नस्य। चौरस्य (अनु) निरन्तरम् (निभञ्जनम्) विनाशनम् ॥

०३ वरुणो याति

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वरु॑णो॒ याति॒ वस्व॑भिः ॥

०३ वरुणो याति ...{Loading}...

Griffith

Varuna with the Vasus goes:

पदपाठः

वरू॑णः॒। याति॒। वस्व॑भिः। १३१.३।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • प्रजापतिर्वरुणो वा
  • प्राजापत्या गायत्री
  • कुन्ताप सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

ऐश्वर्य की प्राप्ति का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (वरुणः) श्रेष्ठ [धनी पुरुष] (वस्वभिः) श्रेष्ठ वस्तुओं के साथ (याति) चलता है ॥३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य पूर्वज विद्वानों के समान विघ्नों को हटाकर अनेक प्रकार के ऐश्वर्य प्राप्त करें ॥१-॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ३−(वरुणः) श्रेष्ठः। धनी पुरुषः (याति) गच्छति (वस्वभिः) वसुभिः। श्रेष्ठवस्तुभिः ॥

०४ शतं वा

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श॒तं वा॒ भार॑ती॒ शवः॑ ॥

०४ शतं वा ...{Loading}...

Griffith

the Wind God hath a hundred reins.

पदपाठः

श॒तम्। वा॒। भार॑ती॒। शवः॑। १३१.४।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • प्रजापतिर्वरुणो वा
  • प्राजापत्या गायत्री
  • कुन्ताप सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

ऐश्वर्य की प्राप्ति का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (शतम्) सौ (भारती) पोषण करनेवाली विद्याएँ (वा) और (शवः) बल हैं ॥४॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य पूर्वज विद्वानों के समान विघ्नों को हटाकर अनेक प्रकार के ऐश्वर्य प्राप्त करें ॥१-॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ४−(शतम्) बहु (वा) चार्थे (भारती) अथ० ।१२।८। डुभृञ् धारणपोषणयोः-अतच्, स्वार्थे अण्, ङीप्, बहुवचनस्यैकवचनम्। भारती वाक्-निघ० १।११। भारत्यः। विद्याः (शवः) शवांसि बलानि ॥

०५ शतमाश्वा हिरण्ययाः

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श॒तमा॒श्वा हि॑र॒ण्ययाः॑।
श॒तं र॒थ्या हि॑र॒ण्ययाः॑।
श॒तं कु॒था हि॑र॒ण्ययाः॑।
श॒तं नि॒ष्का हि॑र॒ण्ययाः॑ ॥

०५ शतमाश्वा हिरण्ययाः ...{Loading}...

Griffith

A hundred golden steeds hath he, a hundred chariots wrought of gold.
A hundred bits of golden bronze, a hundred golden necklaces.

पदपाठः

श॒तम्। आ॒श्वाः। हि॑र॒ण्ययाः॑। श॒तम्। र॒थ्या। हि॑र॒ण्ययाः॑। श॒तम्। कु॒थाः। हि॑र॒ण्ययाः॑। श॒तम्। नि॒ष्काः। हि॑र॒ण्ययाः॑। १३१.५।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • प्रजापतिर्वरुणो वा
  • अनुष्टुप्
  • कुन्ताप सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

ऐश्वर्य की प्राप्ति का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (शतम्) सौ (हिरण्ययाः) सुनहरे (आश्वाः) घोड़े हैं। (शतम्) सौ (हिरण्ययाः) सुनहरे (रथ्याः) रथ हैं। (शतम्) सौ (हिरण्ययाः) सुनहरी (कुथाः) हाथी की झूलें हैं। (शतम्) सौ (हिरण्ययाः) सुनहरे (निष्काः) हार हैं ॥॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य पूर्वज विद्वानों के समान विघ्नों को हटाकर अनेक प्रकार के ऐश्वर्य प्राप्त करें ॥१-॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: −(शतम्) (आश्वाः) स्वार्थे अण्। अश्वाः। तुरगाः (हिरण्ययाः) हिरण्यमयाः। सुवर्णयुक्ताः। तेजोमयाः (शतम्) (रथ्याः) खलगोरथात्। पा० ४।२।०। रथ-य। रथसमूहाः (हिरण्ययाः) (शतम्) (कुथाः) कुथ, कुन्थ संश्लेषणे-अच्। गजपृष्ठस्थचित्रकम्बलाः। (हिरण्ययाः) (शतम्) (निष्काः) निस् निश्चयेन+कै शब्दे-क। उरोभूषणानि। हाराः (हिरण्ययाः) ॥

०६ अहुल कुश

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अहु॑ल कुश वर्त्तक ॥

०६ अहुल कुश ...{Loading}...

Griffith

Lover of Kusa grass, Unploughed!

पदपाठः

अह॑ल। कुश। वर्त्तक। १३१.६।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • प्रजापतिर्वरुणो वा
  • प्राजापत्या गायत्री
  • कुन्ताप सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

ऐश्वर्य की प्राप्ति का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (अहल) हे प्रकाशमान ! (कुश) हे पापनाशक ! (वर्त्तक) हे प्रवृत्ति करनेवाले ! [मनुष्य] ॥६॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - सब मनुष्य और स्त्रियाँ सदा उपकार करके क्लेशों से बचें और परस्पर प्रीति से रहें ॥६-११॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ६−(अहल) शकिशम्योर्नित्। उ० १।११२”। अहि गतौ दीप्तौ च-कलप्रत्ययः। हे दीप्यमान (कुश) कु पापं श्यतीति, शो तनूकरणे-डप्रत्ययः। हे पापनाशक (वर्त्तक) वृतु वर्तने-ण्वुल्। हे प्रवृत्तिशील ॥

०७ शफेन इव

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श॒फेन॑ इ॒व ओ॑हते ॥

०७ शफेन इव ...{Loading}...

Griffith

Fat is not reckoned in the hoof.

पदपाठः

श॒फेन॑। इ॒व। ओ॑हते। १३१.७।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • प्रजापतिर्वरुणो वा
  • प्राजापत्या गायत्री
  • कुन्ताप सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

ऐश्वर्य की प्राप्ति का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (शफेन इव) खुर से जैसे, (ओहते) वह [शत्रु] मारा जाता है ॥७॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - सब मनुष्य और स्त्रियाँ सदा उपकार करके क्लेशों से बचें और परस्पर प्रीति से रहें ॥६-११॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ७−(शफेन) खुरेण (इव) यथा (ओहते) उहिर् अर्दने। हन्यते स शत्रुः ॥

०८ आय वनेनती

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आय॑ व॒नेन॑ती॒ जनी॑ ॥

०८ आय वनेनती ...{Loading}...

Griffith

the entrails and the clotted blood.

पदपाठः

आऽअय॑। व॒नेन॑ती॒। जनी॑। १३१.८।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • प्रजापतिर्वरुणो वा
  • प्राजापत्या गायत्री
  • कुन्ताप सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

ऐश्वर्य की प्राप्ति का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (वनेनती) उपकार में झुकनेवाली (जनी) माता होकर (आय) तू आ ॥८॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - सब मनुष्य और स्त्रियाँ सदा उपकार करके क्लेशों से बचें और परस्पर प्रीति से रहें ॥६-११॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ८−(आय) अय गतौ। आगच्छ (वनेनती) वन उपकारे-अच्। पातेर्डतिः। उ० ४।७। णम प्रह्वत्वे शब्दे च-डति, ङीप्। उपकारे नम्रा (जनी) जन जनने-इन्, ङीप् जनयित्री। माता सती त्वम् ॥

०९ वनिष्ठा नाव

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वनि॑ष्ठा॒ नाव॑ गृ॒ह्यन्ति॑ ॥

०९ वनिष्ठा नाव ...{Loading}...

Griffith

The ladle doth not hold apart

पदपाठः

वनि॑ष्ठाः॒। न। अव॑। गृ॒ह्यन्‍त‍ि॑। १३१.९।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • प्रजापतिर्वरुणो वा
  • प्राजापत्या गायत्री
  • कुन्ताप सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

ऐश्वर्य की प्राप्ति का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (वनिष्ठाः) अत्यन्त उपकारी लोग (न) नहीं (अव गृह्यन्ति) रुकते हैं ॥९॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - सब मनुष्य और स्त्रियाँ सदा उपकार करके क्लेशों से बचें और परस्पर प्रीति से रहें ॥६-११॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ९−(वनिष्ठाः) वनितृ-इष्ठन्, तृचो लोपः। वनितृतमाः। उपकारितमाः (न) निषेधे (अव गृह्यन्ति) अवग्रहं प्रतिरोधं प्राप्नुवन्ति ॥

१० इदं मह्यम्

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इ॒दं मह्यं॒ मदू॒रिति॑ ॥

१० इदं मह्यम् ...{Loading}...

Griffith

This O Mandurika, is mine.

पदपाठः

इ॒दम्। मह्य॒म्। मदूः॒। इति॑। १३१.१०।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • प्रजापतिर्वरुणो वा
  • प्राजापत्या गायत्री
  • कुन्ताप सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

ऐश्वर्य की प्राप्ति का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (इदम्) यह [वचन] (मह्यम्) मेरे लिये (मदूः) आनन्द देनेवाली नीति है−(इति) यह निश्चय है ॥१०॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - सब मनुष्य और स्त्रियाँ सदा उपकार करके क्लेशों से बचें और परस्पर प्रीति से रहें ॥६-११॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १०−(इदम्) वचनम् (मह्यम्) मनुष्याय (मदूः) कृषिचमि०। उ० १।८०। मदी हर्षे-ऊप्रत्ययः। हर्षकरी नीतिः (इति) अवधारणे ॥

११ ते वृक्षाः

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ते वृ॒क्षाः स॒ह ति॑ष्ठति ॥

११ ते वृक्षाः ...{Loading}...

Griffith

Thy trees are standing in a clump.

पदपाठः

ते। वृ॒क्षाः। स॒ह। तिष्ठति। १३१.११।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • प्रजापतिर्वरुणो वा
  • प्राजापत्या गायत्री
  • कुन्ताप सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

ऐश्वर्य की प्राप्ति का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (ते) वे (वृक्षाः) स्वीकार करने योग्य पुरुष (सह) मिलकर (तिष्ठति) रहते हैं ॥११॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - सब मनुष्य और स्त्रियाँ सदा उपकार करके क्लेशों से बचें और परस्पर प्रीति से रहें ॥६-११॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ११−(ते) पूर्वोक्ताः (वृक्षाः) वृक्ष वरणे-क। स्वीकरणीयाः पुरुषाः (सह) एकीभूय (तिष्ठति) तिष्ठन्ति। वर्तन्ते ॥

१२ पाक बलिः

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पाक॑ ब॒लिः ॥

१२ पाक बलिः ...{Loading}...

Griffith

The plain domestic sacrifice,

पदपाठः

पाक॑। ब॒लिः। १३१.१२।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • प्रजापतिर्वरुणो वा
  • दैवी बृहती
  • कुन्ताप सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

ऐश्वर्य की प्राप्ति का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (पाक) हे रक्षक श्रेष्ठ पुरुष ! (बलिः) बलि [भोजन आदि की भेंट होवे] ॥१२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य उचित रीति से भोजन आदि का उपहार वा दान और कर आदि का ग्रहण करके दृढ़चित्त होकर शत्रुओं का नाश करे ॥१२-१६॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १२−(पाक) इण्भीकापा०। उ० ३।४३। पा रक्षणे-कन्। पाकः प्रशस्यनाम-निघ० ३।८। पाकः पक्तव्यो भवति विपक्वप्रज्ञ आदित्यः-निरु० ३।१२। हे रक्षक। प्रशस्य (बलिः) सर्वधातुभ्य इन्। उ० ४।११८। बल प्राणने धान्यावरोधने च-इन्। भोजनादिदानम्। उपहारः। राजग्राह्यः करः ॥

१३ शक बलिः

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शक॑ ब॒लिः ॥

१३ शक बलिः ...{Loading}...

Griffith

the sacrifice with burning dung.

पदपाठः

शक॑। ब॒लिः। १३१.१३।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • प्रजापतिर्वरुणो वा
  • दैवी बृहती
  • कुन्ताप सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

ऐश्वर्य की प्राप्ति का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (शक) हे समर्थ ! (बलिः) बलि [राजा का ग्राह्य कर आदि का लेना होवे] ॥१३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य उचित रीति से भोजन आदि का उपहार वा दान और कर आदि का ग्रहण करके दृढ़चित्त होकर शत्रुओं का नाश करे ॥१२-१६॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १३−(शक) शक्लृ सामर्थ्ये-अच्। हे समर्थ (बलिः) म० १२। राजग्राह्यकरः ॥

१४ अश्वत्थ खदिरो

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अश्व॑त्थ॒ खदि॑रो ध॒वः ॥

१४ अश्वत्थ खदिरो ...{Loading}...

Griffith

Asvattha, Dhava, Khadira,

पदपाठः

अश्व॑त्थ॒। खदि॑रः। ध॒वः। १३१.१४।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • प्रजापतिर्वरुणो वा
  • प्राजापत्या गायत्री
  • कुन्ताप सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

ऐश्वर्य की प्राप्ति का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (अश्वत्थ) हे अश्वत्थामा ! [बलवानों में ठहरनेवाले वीर] (खदिरः) दृढ़चित्तवाला (धवः) मनुष्य [होवे] ॥१४॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य उचित रीति से भोजन आदि का उपहार वा दान और कर आदि का ग्रहण करके दृढ़चित्त होकर शत्रुओं का नाश करे ॥१२-१६॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १४−(अश्वत्थ) अथ० ३।६।१। अश्व+ष्ठा गतिनिवृत्तौ-क, पृषोदरादिरूपम्। अश्वेषु बलवत्सु स्थितिशील। अश्वत्थामन् वीर (खदिरः) अथ० ३।६।१। खद स्थैर्यहिंसयोः-किरच्। स्थिरचित्तः (धवः) अथ० ।।। धावु गतिशुद्ध्योः-पचाद्यच्, ह्रस्वः। धव इति मनुष्यनाम तद्वियोगाद्विधवा-निरु० ३।१। शुद्धः। मनुष्यः ॥

१५ अरदुपरम

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अर॑दुपरम ॥

१५ अरदुपरम ...{Loading}...

Griffith

leaf taken from the Aratu.

पदपाठः

अर॑दुपरम्। १३१.१५।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • प्रजापतिर्वरुणो वा
  • याजुषी गायत्री
  • कुन्ताप सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

ऐश्वर्य की प्राप्ति का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (अरदुपरम) हे हिंसा से निवृत्तिवाले ! ॥१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य उचित रीति से भोजन आदि का उपहार वा दान और कर आदि का ग्रहण करके दृढ़चित्त होकर शत्रुओं का नाश करे ॥१२-१६॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १−(अरदुपरम) वर्त्तमाने पृषद्बृहन्महज्। उ० २।८४। ऋ हिंसायाम-अति+उप-रम निवृत्तौ-घञ्। हिंसनात् निवृत्तिशील ॥

१६ शयो हत

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शयो॑ ह॒त इ॑व ॥

१६ शयो हत ...{Loading}...

Griffith

lies on the ground as he were slain.

पदपाठः

शयः॑। ह॒तः। इ॒व। १३१.१६।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • प्रजापतिर्वरुणो वा
  • याजुषी गायत्री
  • कुन्ताप सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

ऐश्वर्य की प्राप्ति का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (शयः) साँप [के समान शत्रु] (हतः) मारा हुआ (इव) जैसे है ॥१६॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य उचित रीति से भोजन आदि का उपहार वा दान और कर आदि का ग्रहण करके दृढ़चित्त होकर शत्रुओं का नाश करे ॥१२-१६॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १६−(शयः) शीङ् शयने-अच्। सर्पः। सर्प इव शत्रुः (हतः) नाशितः (इव) यथा ॥

१७ व्याप पूरुषः

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व्याप॒ पूरु॑षः ॥

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Griffith

The man pervaded thoroughly

पदपाठः

व्याप॒। पूरु॑षः। १३१.१७।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • प्रजापतिर्वरुणो वा
  • दैवी पङ्क्तिः
  • कुन्ताप सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

ऐश्वर्य की प्राप्ति का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (अत्यर्धर्च) हे अत्यन्त बढ़ी हुई स्तुतिवाले ! (पूरुषः) इस पुरुष ने (अदूहमित्याम्) अनष्ट ज्ञान के बीच (परस्वतः) पालन सामर्थ्यवाले [मनुष्य] के (पूषकम्) बढ़ती करनेवाले व्यवहार को (व्याप) फैलाया है ॥१७-१९॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य विद्या आदि की प्राप्ति से संसार का उपकार करके अपनी कीर्ति फैलावे, जैसे लोहार धौंकनी की खालों को वायु से फुलाकर फैलाता है ॥१७-२०॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १७−(व्याप) व्यापितवान्। विस्तारितवान् (पूरुषः) अयं मनुष्यः ॥

१८ अदूहमित्यां पूषकम्

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अदू॑हमि॒त्यां पूष॑कम् ॥

१८ अदूहमित्यां पूषकम् ...{Loading}...

Griffith

The biestings only have they milked:

पदपाठः

अदू॑हमि॒त्याम्। पूष॑कम्। १३१.१८।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • प्रजापतिर्वरुणो वा
  • प्राजापत्या गायत्री
  • कुन्ताप सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

ऐश्वर्य की प्राप्ति का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (अत्यर्धर्च) हे अत्यन्त बढ़ी हुई स्तुतिवाले ! (पूरुषः) इस पुरुष ने (अदूहमित्याम्) अनष्ट ज्ञान के बीच (परस्वतः) पालन सामर्थ्यवाले [मनुष्य] के (पूषकम्) बढ़ती करनेवाले व्यवहार को (व्याप) फैलाया है ॥१७-१९॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य विद्या आदि की प्राप्ति से संसार का उपकार करके अपनी कीर्ति फैलावे, जैसे लोहार धौंकनी की खालों को वायु से फुलाकर फैलाता है ॥१७-२०॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १८−(अदूहमित्याम्) अ+दुहिर् अर्दने-क+माङ् माने-क्तिन्। अनष्टायां मित्यां ज्ञाने, (पूषकम्) पूष वृद्धौ-ण्वुल्। वृद्धिकरं व्यवहारम् ॥

१९ अत्यर्धर्च परस्वतः

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अत्य॑र्ध॒र्च प॑र॒स्वतः॑ ॥

१९ अत्यर्धर्च परस्वतः ...{Loading}...

Griffith

one and a half of the wild ass,

पदपाठः

अत्य॑र्ध॒र्च। प॑रस्व॒तः॑। १३१.१९।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • प्रजापतिर्वरुणो वा
  • प्राजापत्या गायत्री
  • कुन्ताप सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

ऐश्वर्य की प्राप्ति का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (अत्यर्धर्च) हे अत्यन्त बढ़ी हुई स्तुतिवाले ! (पूरुषः) इस पुरुष ने (अदूहमित्याम्) अनष्ट ज्ञान के बीच (परस्वतः) पालन सामर्थ्यवाले [मनुष्य] के (पूषकम्) बढ़ती करनेवाले व्यवहार को (व्याप) फैलाया है ॥१७-१९॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य विद्या आदि की प्राप्ति से संसार का उपकार करके अपनी कीर्ति फैलावे, जैसे लोहार धौंकनी की खालों को वायु से फुलाकर फैलाता है ॥१७-२०॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १९−(अत्यर्धर्च) ऋधु वृद्धौ-घञ्, ऋच स्तुतौ क्विप्। ऋक्पूरब्धूः०। पा० ।४।७४। समासान्तस्य अप्रत्ययः। हे अतिशयेन प्रवृद्धस्तुतियुक्त (परस्वतः) पॄ पालनपूरणयोः-असुन्, मतुप्। पालनसामर्थ्ययुक्तस्य मनुष्यस्य ॥

२० दौव हस्तिनो

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

दौव॑ ह॒स्तिनो॑ दृ॒ती ॥

२० दौव हस्तिनो ...{Loading}...

Griffith

And two hides of an elephant.

पदपाठः

दौव॑। ह॒स्तिनः॑। दृ॒ती। १३१.२०।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • प्रजापतिर्वरुणो वा
  • याजुष्युष्णिक्
  • कुन्ताप सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

ऐश्वर्य की प्राप्ति का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - [जैसे] (हस्तिनः) धौंकनीवाले की (दौव) दोनों (दृती) खालें [धोंकनी फैलती हैं] ॥२०॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य विद्या आदि की प्राप्ति से संसार का उपकार करके अपनी कीर्ति फैलावे, जैसे लोहार धौंकनी की खालों को वायु से फुलाकर फैलाता है ॥१७-२०॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २०−(दौव) द्वौ (हस्तिनः) हसिमृग्रिण्०। उ० ३।८६। हसे विकाशे-तन्, इनि। हस्त भस्रा। भस्रावतः पुरुषस्य (दृती) दृणातेर्ह्रस्वः। उ० ४।१८४। दृ विदारणे-तिप्रत्ययः, ह्रस्वश्च। द्वे चर्मनिर्मितपात्रे ॥