१२९ ...{Loading}...
VH anukramaṇī
खिलानि ।
०१ एता अश्वा
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ए॒ता अश्वा॒ आ प्ल॑वन्ते ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
ए॒ता अश्वा॒ आ प्ल॑वन्ते ॥
०१ एता अश्वा ...{Loading}...
Griffith
These mares come springing forward to Pratipa Pratisutvana. (with next verse)
पदपाठः
ए॒ताः। अश्वाः॒। प्ल॑वन्ते। १२९.१।
अधिमन्त्रम् (VC)
- प्रजापतिः
- प्राजापत्या गायत्री
- कुन्ताप सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
मनुष्य के लिये प्रयत्न का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (एताः) यह (अश्वाः) व्यापक प्रजाएँ (प्रतीपम्) प्रत्यक्ष व्यापक (सुत्वनम् प्राति) ऐश्वर्यवाले [परमेश्वर] के लिये (आ) आकर (प्लवन्ते) चलती हैं ॥१, २॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - संसार के सब पदार्थ उत्पन्न होकर परमेश्वर की आज्ञा में वर्त्तमान हैं ॥१, २॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: [पदपाठ के लिये सूचना सूक्त १२७ देखो]१−(एताः) उपस्थिताः (अश्वाः), अशू व्याप्तौ-क्वन्, टाप्। व्यापिकाः प्रजाः (आ) आगत्य (प्लवन्ते) गच्छन्ति ॥
०२ प्रतीपं प्राति
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प्र॑ती॒पं प्राति॑ सु॒त्वन॑म् ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
प्र॑ती॒पं प्राति॑ सु॒त्वन॑म् ॥
०२ प्रतीपं प्राति ...{Loading}...
Griffith
These mares come springing forward to Pratipa Pratisutvana. (with previous verse)
पदपाठः
प्र॒ती॒पम्। प्राति॑। सु॒त्वन॑म्। १२९.२।
अधिमन्त्रम् (VC)
- प्रजापतिः
- प्राजापत्या गायत्री
- कुन्ताप सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
मनुष्य के लिये प्रयत्न का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (एताः) यह (अश्वाः) व्यापक प्रजाएँ (प्रतीपम्) प्रत्यक्ष व्यापक (सुत्वनम् प्राति) ऐश्वर्यवाले [परमेश्वर] के लिये (आ) आकर (प्लवन्ते) चलती हैं ॥१, २॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - संसार के सब पदार्थ उत्पन्न होकर परमेश्वर की आज्ञा में वर्त्तमान हैं ॥१, २॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: २−(प्रतीपम्) आप्नोतेर्ह्रस्वश्च उ० २। ५८। प्रति+आप्लृ व्याप्तौ-क्विप्। ऋक्पूरब्धूःपथामानक्षे। पा० ५। ४। ७४। अप्रत्ययः। द्व्यन्तरुपसर्गेभ्योऽप ईत्। पा०। ६। ३। ९३। इति ईत्। प्रत्यक्षव्यापकम् (प्राति) सांहितिको दीर्घः। प्रति। उद्दिश्य (सुत्वनम्) सुयजोर्ङ्वनिप्। पा०। ३। २। १०३। षु प्रसवैश्वर्ययोः-ङ्वनिप्, तुक् च। उत्पादकम्। ऐश्वर्यवन्तं परमेश्वरम् ॥
०३ तासामेका हरिक्निका
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तासा॒मेका॒ हरि॑क्निका ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
तासा॒मेका॒ हरि॑क्निका ॥
०३ तासामेका हरिक्निका ...{Loading}...
Griffith
One of them is Hariknika. Hariknika, what seekest thou? (with next verse)
पदपाठः
तासा॒म्। एका॒। हरि॑क्निका। १२९.३।
अधिमन्त्रम् (VC)
- प्रजापतिः
- प्राजापत्या गायत्री
- कुन्ताप सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
मनुष्य के लिये प्रयत्न का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (तासाम्) उन [व्यापक प्रजाओं] के बीच (एका) एक [स्त्री प्रजा] (हरिक्निका) मनुष्य में प्रीति करनेवाली है ॥३॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - सृष्टि के बीच माता अपने पुरुष से प्रीति करके सन्तान उत्पन्न करके उनको कुमार्ग से बचाके तेजस्वी और सुमार्गी बनावे ॥३-६॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ३−(तासाम्) पूर्वोक्तप्रजानां मध्ये (एका) स्त्री प्रजा (हरिक्निका) हरयो मनुष्याः-निघ० २।३। क्वुन् शिल्पिसंज्ञयोरपूर्वस्यापि। उ० २।३२। कनी दीप्तिकान्तिगतिषु-क्वुन्, टाप्, अत इत्त्वम्। धातोः अकारलोपः। हरिक्निका। मनुष्येच्छुका ॥
०४ हरिक्निके किमिच्छसि
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हरि॑क्नि॒के किमि॑च्छसि ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
हरि॑क्नि॒के किमि॑च्छसि ॥
०४ हरिक्निके किमिच्छसि ...{Loading}...
Griffith
One of them is Hariknika. Hariknika, what seekest thou? (with previous verse)
पदपाठः
हरि॑क्नि॒के। किम्। इ॑च्छसि। १२९.४।
अधिमन्त्रम् (VC)
- प्रजापतिः
- प्राजापत्या गायत्री
- कुन्ताप सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
मनुष्य के लिये प्रयत्न का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (हरिक्निके) हे मनुष्य में प्रीति करनेवाली ! तू (किम्) क्या (इच्छसि) चाहती है ॥४॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - सृष्टि के बीच माता अपने पुरुष से प्रीति करके सन्तान उत्पन्न करके उनको कुमार्ग से बचाके तेजस्वी और सुमार्गी बनावे ॥३-६॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ४−(हरिक्निके) म० ३। हे मनुष्येच्छुके (किम्) (इच्छसि) कामयसे ॥
०५ साधुं पुत्रम्
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सा॒धुं पु॒त्रं हि॑र॒ण्यय॑म् ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
सा॒धुं पु॒त्रं हि॑र॒ण्यय॑म् ॥
०५ साधुं पुत्रम् ...{Loading}...
Griffith
The excellent, the golden son: where now hast thou aban- doned him? (with next verse)
पदपाठः
सा॒धुम्। पु॒त्रम्। हि॑र॒ण्यय॑म्। १२९.५।
अधिमन्त्रम् (VC)
- प्रजापतिः
- प्राजापत्या गायत्री
- कुन्ताप सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
मनुष्य के लिये प्रयत्न का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (साधुम्) साधु [कार्य साधनेवाले], (हिरण्ययम्) तेजोमय (पुत्रम्) पुत्र [सन्तान] को (क्व) कहाँ (आहतम्) ताडा हुआ (परास्यः) तूने दूर फेंक दिया है ॥, ६॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - सृष्टि के बीच माता अपने पुरुष से प्रीति करके सन्तान उत्पन्न करके उनको कुमार्ग से बचाके तेजस्वी और सुमार्गी बनावें ॥३-६॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: −(साधुम्) कार्यसाधकम् (पुत्रम्) सन्तानम् (हिरण्ययम्) तेजोमयम् ॥
०६ क्वाहतं परास्यः
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क्वाह॑तं॒ परा॑स्यः ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
क्वाह॑तं॒ परा॑स्यः ॥
०६ क्वाहतं परास्यः ...{Loading}...
Griffith
The excellent, the golden son: where now hast thou aban- doned him? (with previous verse)
पदपाठः
क्व। आह॑त॒म्। परा॑स्यः। १२९.६।
अधिमन्त्रम् (VC)
- प्रजापतिः
- याजुषी गायत्री
- कुन्ताप सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
मनुष्य के लिये प्रयत्न का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (साधुम्) साधु [कार्य साधनेवाले], (हिरण्ययम्) तेजोमय (पुत्रम्) पुत्र [सन्तान] को (क्व) कहाँ (आहतम्) ताडा हुआ (परास्यः) तूने दूर फेंक दिया है ॥, ६॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - सृष्टि के बीच माता अपने पुरुष से प्रीति करके सन्तान उत्पन्न करके उनको कुमार्ग से बचाके तेजस्वी और सुमार्गी बनावें ॥३-६॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ६−(क्व) कुत्र (आहतम्) ताडितम् (परास्यः) असु क्षेपणे। परा दूरे आस्यः अक्षिपः ॥
०७ यत्रामूस्तिस्रः शिंशपाः
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यत्रा॒मूस्तिस्रः॑ शिंश॒पाः ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
यत्रा॒मूस्तिस्रः॑ शिंश॒पाः ॥
०७ यत्रामूस्तिस्रः शिंशपाः ...{Loading}...
Griffith
There where around those distant trees, three Sisus that are standing there, (with next verse)
पदपाठः
यत्र॑। अ॒मूः। तिस्रः॑। शिंश॒पाः। १२९.७।
अधिमन्त्रम् (VC)
- प्रजापतिः
- प्राजापत्या गायत्री
- कुन्ताप सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
मनुष्य के लिये प्रयत्न का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (यत्र) जहाँ (अमूः) वे (तिस्रः) तीन [माता, पिता और आचार्य रूप प्रजाएँ] (शिंशपाः) बालक को पालनेवाली हैं ॥७॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - जिस कुल में माता, पिता और आचार्य सुशिक्षक है, वहाँ सन्तान सदा सुखी रहते हैं, और जैसे अजगर साँप अपने श्वास से खैंचकर प्राणियों को खा जाते हैं, वैसे ही विद्वान् सन्तानों को तीनों क्लेश नहीं सताते हैं ॥७-१०॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ७−(यत्र) यस्मिन् कुले (अमूः) प्रसिद्धाः (तिस्रः) मातापित्राचार्यरूपाः प्रजाः (शिंशपाः) छान्दसं रूपम्। शिशुपाः। बालानां पालिकाः ॥
०८ परि त्रयः
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परि॑ त्रयः ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
परि॑ त्रयः ॥
०८ परि त्रयः ...{Loading}...
Griffith
There where around those distant trees, three Sisus that are standing there, (with previous verse)
पदपाठः
परि॑। त्रयः। १२९.८।
अधिमन्त्रम् (VC)
- प्रजापतिः
- दैवी बृहती
- कुन्ताप सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
मनुष्य के लिये प्रयत्न का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - [वहाँ] (त्रयः) तीन [आध्यात्मिक, आधिभौतिक और आधिदैविक क्लेश रूप] (पृदाकवः) अजगर [बड़े साँप] (शृङ्गम्) (धमन्तः) सींग फूँकते हुए [बाजे के समान फुफकार मारते हुए] (परि) अलग (आसते) बैठते हैं ॥८-१०॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - जिस कुल में माता, पिता और आचार्य सुशिक्षक है, वहाँ सन्तान सदा सुखी रहते हैं, और जैसे अजगर साँप अपने श्वास से खैंचकर प्राणियों को खा जाते हैं, वैसे ही विद्वान् सन्तानों को तीनों क्लेश नहीं सताते हैं ॥७-१०॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ८−(परि) पृथग्भावे (त्रयः) आध्यात्मिकाधिभौतिकाधिदैविकक्लेशाः ॥
०९ पृदाकवः
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पृदा॑कवः ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
पृदा॑कवः ॥
०९ पृदाकवः ...{Loading}...
Griffith
Three adders, breathing angrily, are blowing loud the threatening horn. (with next verse)
पदपाठः
पृदा॑कवः। १२९.।
अधिमन्त्रम् (VC)
- प्रजापतिः
- दैवी बृहती
- कुन्ताप सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
मनुष्य के लिये प्रयत्न का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - [वहाँ] (त्रयः) तीन [आध्यात्मिक, आधिभौतिक और आधिदैविक क्लेश रूप] (पृदाकवः) अजगर [बड़े साँप] (शृङ्गम्) (धमन्तः) सींग फूँकते हुए [बाजे के समान फुफकार मारते हुए] (परि) अलग (आसते) बैठते हैं ॥८-१०॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - जिस कुल में माता, पिता और आचार्य सुशिक्षक है, वहाँ सन्तान सदा सुखी रहते हैं, और जैसे अजगर साँप अपने श्वास से खैंचकर प्राणियों को खा जाते हैं, वैसे ही विद्वान् सन्तानों को तीनों क्लेश नहीं सताते हैं ॥७-१०॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ९−(पृदाकवः) अजगराः। बृहत्सर्पाः ॥
१० शृङ्गं धमन्त
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शृङ्गं॑ ध॒मन्त॑ आसते ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
शृङ्गं॑ ध॒मन्त॑ आसते ॥
१० शृङ्गं धमन्त ...{Loading}...
Griffith
Three adders, breathing angrily, are blowing loud the threatening horn. (with previous verse)
पदपाठः
शृङ्ग॑म्। ध॒मन्तः॑। आसते। १२९.१०।
अधिमन्त्रम् (VC)
- प्रजापतिः
- प्राजापत्या गायत्री
- कुन्ताप सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
मनुष्य के लिये प्रयत्न का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - [वहाँ] (त्रयः) तीन [आध्यात्मिक, आधिभौतिक और आधिदैविक क्लेश रूप] (पृदाकवः) अजगर [बड़े साँप] (शृङ्गम्) (धमन्तः) सींग फूँकते हुए [बाजे के समान फुफकार मारते हुए] (परि) अलग (आसते) बैठते हैं ॥८-१०॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - जिस कुल में माता, पिता और आचार्य सुशिक्षक है, वहाँ सन्तान सदा सुखी रहते हैं, और जैसे अजगर साँप अपने श्वास से खैंचकर प्राणियों को खा जाते हैं, वैसे ही विद्वान् सन्तानों को तीनों क्लेश नहीं सताते हैं ॥७-१०॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: १०−(शृङ्गम्) वाद्यविशेषं यथा, तथा श्वासशब्दम् (घञन्तः) ध्मा शब्दाग्निसंयोगयोः-शतृ। दीर्घश्वासेन शब्दयन्तः (आसते) उपविशन्ति ॥
११ अयन्महा ते
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अ॒यन्म॒हा ते॑ अर्वा॒हः ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
अ॒यन्म॒हा ते॑ अर्वा॒हः ॥
११ अयन्महा ते ...{Loading}...
Griffith
Hither hath come a stallion: he is known by droppings on his way, (with next verse)
पदपाठः
अ॒यत्। म॒हा। ते॒। अर्वा॒हः। १२९.११।
अधिमन्त्रम् (VC)
- प्रजापतिः
- प्राजापत्या गायत्री
- कुन्ताप सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
मनुष्य के लिये प्रयत्न का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - [हे स्त्री !] (अर्वाहः) ज्ञान पहुँचानेवाला [मनुष्य] (महा) महत्त्व के साथ (ते) तेरे लिये (अयत्) प्राप्त होता है ॥११॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - स्त्री-पुरुष मिलकर धर्मव्यवहार में एक-दूसरे के सहायक होकर संसार का उपकार करें ॥११-१४॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ११−(अयत्) अयते। प्राप्यते (महा) मह पूजायाम् क्विप्। महत्त्वेन (ते) तुभ्यम् (अर्वाहः) ऋ गतौ-विच्+वह प्रापणे-अण्। ज्ञानप्रापको विद्वान् ॥
१२ स इच्छकम्
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स इच्छकं॒ सघा॑घते ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
स इच्छकं॒ सघा॑घते ॥
१२ स इच्छकम् ...{Loading}...
Griffith
Hither hath come a stallion: he is known by droppings on his way, (with previous verse)
पदपाठः
सः। इच्छक॒म्। सघा॑घते। १२९.१२।
अधिमन्त्रम् (VC)
- प्रजापतिः
- प्राजापत्या गायत्री
- कुन्ताप सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
मनुष्य के लिये प्रयत्न का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (सः) वह [मनुष्य] (इच्छकम्) इच्छावाले को (सघाघते) सहाय करता है ॥१२॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - स्त्री-पुरुष मिलकर धर्मव्यवहार में एक-दूसरे के सहायक होकर संसार का उपकार करें ॥११-१४॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: १२−(सः) मनुष्यः (इच्छकम्) इषु इच्छायाम्-शकप्रत्ययः। इच्छायुक्तम् (सघाघते) षह क्षमायाम् इत्यस्य रूपम्। यद्वा, षघ हिंसायाम् अत्र सहाये। साहयते ॥
१३ सघाघते गोमीद्या
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सघा॑घते॒ गोमी॒द्या गोग॑ती॒रिति॑ ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
सघा॑घते॒ गोमी॒द्या गोग॑ती॒रिति॑ ॥
१३ सघाघते गोमीद्या ...{Loading}...
Griffith
As by their dung the course of kine. What wouldst thou in the home of men? (with next verse)
पदपाठः
सघा॑घते॒। गोमीद्या। गोगी॑तीः॒। इति॑। १२९.१३।
अधिमन्त्रम् (VC)
- प्रजापतिः
- साम्नी गायत्री
- कुन्ताप सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
मनुष्य के लिये प्रयत्न का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (गोमीद्या) वेदवाणी जाननेवाली [स्त्री] (गोगतीः) पृथिवी पर गतिवाली [प्रजाओं] को (सघाघते) सहाय करती हैं, (इति) ऐसा [निश्चय] हैं ॥१३॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - स्त्री-पुरुष मिलकर धर्मव्यवहार में एक-दूसरे के सहायक होकर संसार का उपकार करें ॥११-१४॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: १३−(सघाघते) म० १। साहयते (गोमीद्या) गौर्वाङ्नाम-निघ० १।११। अघ्न्यादयश्च। उ० ४।११२। मिदृ मेधाहिंसनयोः-यक्, टाप्, दीर्घश्च। गां वेदवाणीं मेदते प्रजानाति या सा (गोगतीः) गवि पृथिव्यां गतियुक्ताः प्रजाः (इति) एवमस्ति ॥
१४ पुमां कुस्ते
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पुमां॑ कु॒स्ते निमि॑च्छसि ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
पुमां॑ कु॒स्ते निमि॑च्छसि ॥
१४ पुमां कुस्ते ...{Loading}...
Griffith
As by their dung the course of kine. What wouldst thou in the home of men? (with previous verse)
पदपाठः
कु॒स्ते। निमि॑च्छसि। १२९.१४।
अधिमन्त्रम् (VC)
- प्रजापतिः
- प्राजापत्या गायत्री
- कुन्ताप सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
मनुष्य के लिये प्रयत्न का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - [हे मनुष्य !] (पुमान्) रक्षक पुरुष होकर (कुस्ते) मिलाप के व्यवहार में (निमिच्छसि) चलता रहता है ॥१४॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - स्त्री-पुरुष मिलकर धर्मव्यवहार में एक-दूसरे के सहायक होकर संसार का उपकार करें ॥११-१४॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: १४−(पुमान्) पातेर्डुमसुन्। उ० ४।११८। पुमस्। रक्षकः सन् (कुस्ते) अञ्जिघृसिभ्यः क्तः। उ० ३।८९। कुस संश्लेषणे-क्त। संयोगव्यवहारे (निमिच्छिसि) मियक्षति, म्यक्षतीति गतिकर्मा-निघ० २।१४। इत्यस्य रूपम्। यद्वा मिच्छ उत्क्लेशे=पीडने, इत्ययमपि गतौ। नितरां गच्छसि ॥
१५ पल्प बद्ध
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पल्प॑ बद्ध॒ वयो॒ इति॑ ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
पल्प॑ बद्ध॒ वयो॒ इति॑ ॥
१५ पल्प बद्ध ...{Loading}...
Griffith
Barley and ripened rice I seek. On rice and barley hast thou fed, (with next verse)
पदपाठः
पल्प॑। बद्ध॒। वयः॒। इति॑। १२९.१५।
अधिमन्त्रम् (VC)
- प्रजापतिः
- प्राजापत्या गायत्री
- कुन्ताप सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
मनुष्य के लिये प्रयत्न का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (पल्प) हे रक्षक ! (बद्ध) हे प्रबन्ध करनेवाले ! [पुरुष] (वयः इति) यह जीवन है ॥१॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मनुष्य सावधान जितेन्द्रिय होकर पाप से बचने का उपाय करते रहें ॥१, १६॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: १−(पल्प) पानीविषिभ्यः पः। उ० ३।२३। पल गतौ रक्षणे च-पप्रत्ययः। हे रक्षक (बद्ध) कर्तरि क्त। हे प्रबन्धक (वयः) जीवनम् (इति) अवधारणे ॥
१६ बद्ध वो
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बद्ध॑ वो॒ अघा॒ इति॑ ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
बद्ध॑ वो॒ अघा॒ इति॑ ॥
१६ बद्ध वो ...{Loading}...
Griffith
Barley and ripened rice I seek. On rice and barley hast thou fed, (with previous verse)
पदपाठः
बद्ध॑। वः॒। अघाः॒। इति॑। १२९.१६।
अधिमन्त्रम् (VC)
- प्रजापतिः
- याजुष्युष्णिक्
- कुन्ताप सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
मनुष्य के लिये प्रयत्न का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (अघाः) हे पापियो ! (वः) तुह्मारा (बद्ध इति) यह [प्राणी] प्रबन्ध करनेवाला है ॥१६॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मनुष्य सावधान जितेन्द्रिय होकर पाप से बचने का उपाय करते रहें ॥१, १६॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: १६−(बद्ध) विभक्तेर्लुक्। प्रबन्धकः (वः) युष्माकम् (अघाः) अघं पापम्-अर्शआद्यच्। हे पापिनः (इति) ॥
१७ अजागार केविका
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अजा॑गार॒ केवि॒का ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
अजा॑गार॒ केवि॒का ॥
१७ अजागार केविका ...{Loading}...
Griffith
As the big serpent feeds on sheep. Cow’s hoof and horse’s tail hast thou, (with next verse)
पदपाठः
अजा॑गार॒। केवि॒का। १२९.१७।
अधिमन्त्रम् (VC)
- प्रजापतिः
- याजुष्युष्णिक्
- कुन्ताप सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
मनुष्य के लिये प्रयत्न का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (केविका) सेवा करनेवाली [बुद्धि] (अजागार) जागती हुई है ॥१७॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - सेवा करनेवाली अर्थात् उचित काम में लगी हुई बुद्धि तीव्र होती है, घुड़चढ़े को उत्तम घोड़ा घुड़साल में मिलता है, गोशाला में नहीं ॥१७, १८॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: १७−(अजागार) जागरिता सावधाना अभवत् (केविका) केवृ सेवने-ण्वुल्, टाप् अत इत्त्वम्। सेविका बुद्धिः ॥
१८ अश्वस्य वारो
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अश्व॑स्य॒ वारो॑ गोशपद्य॒के ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
अश्व॑स्य॒ वारो॑ गोशपद्य॒के ॥
१८ अश्वस्य वारो ...{Loading}...
Griffith
As the big serpent feeds on sheep. Cow’s hoof and horse’s tail hast thou, (with previous verse)
पदपाठः
अश्व॑स्य॒। वारः॑। गोशपद्य॒के। १२९.१८।
अधिमन्त्रम् (VC)
- प्रजापतिः
- याजुषी पङ्क्तिः
- कुन्ताप सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
मनुष्य के लिये प्रयत्न का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (अश्वस्य वारः) अश्ववार [घुड़चढ़ा, घोड़ा लेने को] (गोशपद्यके) गौओं के सोने के स्थान में [व्यर्थ है] ॥१८॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - सेवा करनेवाली अर्थात् उचित काम में लगी हुई बुद्धि तीव्र होती है, घुड़चढ़े को उत्तम घोड़ा घुड़साल में मिलता है, गोशाला में नहीं ॥१७, १८॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: १८−(अश्वस्य) तुरङ्गस्य (वारः) वारयिता। आरूढः (गोशपद्यके) गो+शीङ् शयने-ड+पद-यत्, स्वार्थे कन्। गोशयनस्थाने। गोष्ठे ॥
१९ श्येनीपती सा
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श्येनी॒पती॒ सा ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
श्येनी॒पती॒ सा ॥
१९ श्येनीपती सा ...{Loading}...
Griffith
Winged with a falcon’s pinion is that harmless swelling of thy tongue. (with next verse)
पदपाठः
श्येनी॒पती॑। सा। १२९.१९।
अधिमन्त्रम् (VC)
- प्रजापतिः
- याजुषी गायत्री
- कुन्ताप सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
मनुष्य के लिये प्रयत्न का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (सा) वह [सेवा करनेवाली बुद्धि-म० १७] (श्येनीपती) शीघ्र गतिवाली प्रजाओं की स्वामिनी होकर ॥१९॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - उत्तम बुद्धिवाला मनुष्य शीघ्र काम करनेवाला, स्वस्थ और उपकारी वचन बोलनेवाला होता है ॥१९, २०॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: १९−(श्येनीपती) अ० ३।३।३। श्यैङ् गतौ-इनच्, ङीप्+पति-ङीप्। श्येनीनां शीघ्रगामिनीनां प्रजानां स्वामिनी (सा) केविका बुद्धिः-म० १७ ॥
२० अनामयोपजिह्विका
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अ॑नाम॒योप॑जि॒ह्विका॑ ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
अ॑नाम॒योप॑जि॒ह्विका॑ ॥
२० अनामयोपजिह्विका ...{Loading}...
Griffith
Winged with a falcon’s pinion is that harmless swelling of thy tongue. (with previous verse)
पदपाठः
अ॒ना॒म॒या। उप॑जि॒ह्विका॑। १२९.२०।
अधिमन्त्रम् (VC)
- प्रजापतिः
- प्राजापत्या गायत्री
- कुन्ताप सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
मनुष्य के लिये प्रयत्न का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (अनामया) नीरोग और (उपजिह्विका) उपकारी जिह्वा [वाणी]वाली है ॥२०॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - उत्तम बुद्धिवाला मनुष्य शीघ्र काम करनेवाला, स्वस्थ और उपकारी वचन बोलनेवाला होता है ॥१९, २०॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: २०−(अनामया) वलिमलितनिभ्यः कयन्। उ० ४।९९। अम पीडने चुरा०-कयन्, टाप्। रोगरहिता। (उपजिह्विका) शेवायह्वजिह्वा०। उ० १।१४। जि जये-वन् डुक् च, टाप्। उप उपकारिका जिह्वा वाणी यस्याः सा ॥