१२४ ...{Loading}...
०१ कया नश्चित्र
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
कया॑ नश्चि॒त्र आ भु॑वदू॒ती स॒दावृ॑धः॒ सखा॑।
कया॒ शचि॑ष्ठया वृ॒ता ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
कया॑ नश्चि॒त्र आ भु॑वदू॒ती स॒दावृ॑धः॒ सखा॑।
कया॒ शचि॑ष्ठया वृ॒ता ॥
०१ कया नश्चित्र ...{Loading}...
Griffith
With what help will he come to us, wonderful, ever-waxing Friend, With what most mighty company?
पदपाठः
कया॑। नः॒। चि॒त्रः। आ। भु॒व॒त्। ऊ॒ती। स॒दाऽवृ॑धः। सखा॑। कया॑। शचि॑ष्ठया। वृ॒ता। १२४.१।
अधिमन्त्रम् (VC)
- इन्द्रः
- वामदेवः
- गायत्री
- सूक्त-१२४
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
राजा और प्रजा के धर्म का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (चित्र !) विचित्र वा पूज्य और (सदावृधः) सदा बढ़ानेवाला [राजा] (नः) हमारी (कया) कमनीय वा क्रमणशील [आगे बढ़ती हुई], अथवा सुख देनेवाली [वा कौन सी] (ऊती) रक्षा से और (कया) कमनीय आदि [वा कौन सा] (शचिष्ठया) अति उत्तम वाणी वा कर्म वा बुद्धिवाले (वृता) बर्ताव से (सखा) [हमारा] सखा (आ) ठीक-ठीक (भुवत्) होवे ॥१॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - राजा और प्रजा प्रयत्न करके परस्पर प्रीति रक्खें ॥१॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: मन्त्र १-३ ऋग्वेद में हैं-४।३१।१-३ यजर्वेद २७।३९-४१ तथा ३६।४-६ सामवेद उ० १।१। तृच १२, म० १ सा० पू० २।८। ॥ १−(कया) अन्येष्वपि दृश्यते। पा० ३।२।१०१। कमेः क्रमेर्वा-डप्रत्ययः क्रमे रेफलोपः स्त्रियां टाप्। कः कमनो वा क्रमणो वा सुखो वा-निरु १०।२२। कमनीयया क्रमणशीलया गतिवत्या। सुखप्रदया। अथवा प्रश्नवाचकोऽस्ति (नः) अस्माकम् (चित्रः) अमिचिमि०। उ० ४।१६४। चिञ् चयने-क्त्र। चित्रं चायनीयम्-निरु० १२।६। अद्भुतः। पूज्यः (आ) समन्तात् (भुवत्) भवतेर्लेट्। भवेत् (ऊती) उत्या रक्षया। गत्या (सदावृधः) वृधु-क। सदा वर्धमानो वर्धयिता वा (सखा) सुहृद् (कया) (शचिष्ठया) शची-इष्ठन् मत्वर्थीयलोपः। शची=वाक्-निघ० १।११। कर्म-२।१। प्रज्ञा-३।११। अतिश्रेष्ठया वाचा क्रियया प्रज्ञया वा युक्त्या (वृता) वृतु-क्विप्। वृत्या। वर्तनेन ॥
०२ कस्त्वा सत्यो
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
कस्त्वा॑ स॒त्यो मदा॑नां॒ मंहि॑ष्ठो मत्स॒दन्ध॑सः।
दृ॒ढा चि॑दा॒रुजे॒ वसु॑ ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
कस्त्वा॑ स॒त्यो मदा॑नां॒ मंहि॑ष्ठो मत्स॒दन्ध॑सः।
दृ॒ढा चि॑दा॒रुजे॒ वसु॑ ॥
०२ कस्त्वा सत्यो ...{Loading}...
Griffith
What genuine and most liberal draught will spirit thee with juice to burst. Open e’en strongly-guarded wealth?
पदपाठः
कः। त्वा॒। स॒त्यः। मदा॑नाम्। मंहि॑ष्ठः। म॒त्स॒त्। अन्ध॑सः। दृ॒ह्ला। चि॒त्। आ॒ऽरुजे॑। वसु॑। १२४.२।
अधिमन्त्रम् (VC)
- इन्द्रः
- वामदेवः
- गायत्री
- सूक्त-१२४
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
राजा और प्रजा के धर्म का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (कः) कमनीय वा आगे बढ़ता हुआ, वा सुख देनेवाला (सत्यः) सत्यशीलवाला, (मदानाम्) आनन्दों और (अन्धसः) अन्न का (मंहिष्ठः) महादानी राजा (दृढा) दृढ़ (वसु) धनों को (चित्) अवश्य (आरुजे) खोल देने के लिये (त्वा) तुझे [प्रजा जन] को (मत्सत्) तृप्त करे ॥२॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - सत्यशील राजा सुनीति से प्रजा को प्रसन्न रखकर धन-धान्य को बढ़ावे ॥२॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: २−(कः) म० १। कमनीयः। क्रमणशीलः। सुखप्रदः (त्वा) त्वां प्रजाजनम् (सत्यः) सत्सु साधुः (मदानाम्) आनन्दानाम् (मंहिष्ठः) अ० २०।१।१। दातृतमः (मत्सत्) आनन्दयेत् (अन्धसः) अन्नस्य (दृढा) दृढानि (चित्) अवश्यम् (आरुजे) दृशे विख्ये च। पा० ३।४।११। आ+रुजो भङ्गे-केन् तुमर्थे। समन्ताद् भङ्क्तुम्। प्रकाशयितुम् (वसु) वसूनि। धनानि ॥
०३ अभी षु
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अ॒भी षु णः॒ सखी॑नामवि॒ता ज॑रितॄ॒णाम्।
श॒तं भ॑वास्यू॒तिभिः॑ ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
अ॒भी षु णः॒ सखी॑नामवि॒ता ज॑रितॄ॒णाम्।
श॒तं भ॑वास्यू॒तिभिः॑ ॥
०३ अभी षु ...{Loading}...
Griffith
Do thou who art protector us thy friends who praise thee With hundred aids approach us.
पदपाठः
अ॒भि। सु। नः॒। सखी॑नाम्। अ॒वि॒ता। ज॒रि॒तॄ॒णाम्। श॒तम्। भ॒वा॒सि॒। ऊ॒तिऽभिः॑। १२४.३।
अधिमन्त्रम् (VC)
- इन्द्रः
- वामदेवः
- पादनिचृद्गायत्री
- सूक्त-१२४
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
राजा और प्रजा के धर्म का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - [हे राजन् !] (सखीनाम्) [अपने] सखाओं और (जरितॄणाम्) स्तुति करनेवाले (नः) हम लोगों का (सु) उत्तम (अविता) रक्षक होकर तू (शतम्) सौ प्रकार से (ऊतिभिः) रक्षाओं के साथ (अभि) सामने (भवासि) होवे ॥३॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - जिस प्रकार प्रजागण राजा के हित के लिये प्रयत्न करें, वैसे ही राजा भी उनका हित करे ॥३॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ३−(अभि) अभिमुखम् (सु) (नः) अस्माकम् (सखीनाम्) सुहृदाम् (अविता) रक्षकः (जरितॄणाम्) स्तोतॄणाम्। सद्गुणविदाम् (शतम्) बहुप्रकारेण (भवासि) लेटि रूपम्। भवेः (ऊतिभिः) रक्षाभिः ॥
०४ इमा नु
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इ॒मा नु कं॒ भुव॑ना सीषधा॒मेन्द्र॑श्च॒ विश्वे॑ च दे॒वाः।
य॒ज्ञं च॑ नस्त॒न्वं᳡ च प्र॒जां चा॑दि॒त्यैरिन्द्रः॑ स॒ह ची॑क्लृपाति ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
इ॒मा नु कं॒ भुव॑ना सीषधा॒मेन्द्र॑श्च॒ विश्वे॑ च दे॒वाः।
य॒ज्ञं च॑ नस्त॒न्वं᳡ च प्र॒जां चा॑दि॒त्यैरिन्द्रः॑ स॒ह ची॑क्लृपाति ॥
०४ इमा नु ...{Loading}...
Griffith
We will, with Indra and all Gods to help us, bring these existing worlds into subjection. Our sacrifice, our bodies, and our offspring shall Indra form together with the Adityas.
पदपाठः
इ॒मा। नु। क॒म्। भुव॑ना। सी॒स॒धा॒म॒। इन्द्रः॑। च॒। विश्वे॑। च॒। दे॒वाः। य॒ज्ञम्। च॒। नः॒। त॒न्व॑म्। च॒। प्र॒ऽजाम्। च॒। आ॒दि॒त्यैः। इन्द्रः॑। स॒ह। ची॒क्लृ॒पा॒ति॒। १२४.४।
अधिमन्त्रम् (VC)
- इन्द्रः
- वामदेवः
- त्रिष्टुप्
- सूक्त-१२४
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
राजा और प्रजा के धर्म का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (इमा) यह (भुवना) उत्पन्न पदार्थ, (च) और (इन्द्रः) इन्द्र [बड़े ऐश्वर्यवाला सभापति] (च) और (विश्वे) सब (देवाः) विद्वान् लोग हम (नु) शीघ्र (कम्) सुख को (सीषधाम) सिद्ध करें। (आदित्यैः सह) अखण्ड व्रतधारी विद्वानों के साथ (इन्द्रः) इन्द्र [बड़े ऐश्वर्यवाला सभापति] (नः) हमारे (यज्ञम्) यज्ञ [मेल-मिलाप आदि] को (च) और (तत्त्वम्) शरीर (च) और (प्रजाम्) प्रजा [सन्तान आदि] को (च) भी (चीक्लृपाति) समर्थ करे ॥४॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - सभापति राजा और सभासद् लोग संसार के सब पदार्थों से उपकार लेकर सबकी यथावत् रक्षा करें ॥४॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: मन्त्र ४-६ आचुके हैं-अथ० २०।६३।१-३ ॥ ४-६−एते मन्त्रा व्याख्याताः-अथ० ६३।१-३ ॥
०५ आदित्यैरिन्द्रः सगणो
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आ॑दि॒त्यैरिन्द्रः॒ सग॑णो म॒रुद्भि॑र॒स्माकं॑ भूत्ववि॒ता त॒नूना॑म्।
ह॒त्वाय॑ दे॒वा असु॑रा॒न्यदाय॑न्दे॒वा दे॑व॒त्वम॑भि॒रक्ष॑माणाः ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
आ॑दि॒त्यैरिन्द्रः॒ सग॑णो म॒रुद्भि॑र॒स्माकं॑ भूत्ववि॒ता त॒नूना॑म्।
ह॒त्वाय॑ दे॒वा असु॑रा॒न्यदाय॑न्दे॒वा दे॑व॒त्वम॑भि॒रक्ष॑माणाः ॥
०५ आदित्यैरिन्द्रः सगणो ...{Loading}...
Griffith
With the Adityas, with the band of Maruts, may Indra be pro- tector of our bodies. As when the Gods came after they had slaughtered the Asuras, keeping safe their Godlike nature,
पदपाठः
आ॒दि॒त्यैः। इन्द्रः॑। सऽग॑णः। म॒रुत्ऽभिः॑। अ॒स्माक॑म्। भू॒तु॒। अ॒वि॒ता। त॒नूना॑म्। ह॒त्वाय॑। दे॒वाः। असु॑रान्। यत्। आय॑न्। दे॒वाः। दे॒व॒ऽत्वम्। अ॒भि॒ऽरक्ष॑माणाः। १२४.५।
अधिमन्त्रम् (VC)
- इन्द्रः
- वामदेवः
- त्रिष्टुप्
- सूक्त-१२४
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
राजा और प्रजा के धर्म का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (सगणः) गणों [सुभट वीरों] के साथ वर्तमान (इन्द्रः) इन्द्र [बड़े ऐश्वर्यवाला सभापति] (आदित्यैः) अखण्ड व्रतधारी (मरुद्भिः) शूर मनुष्यों के साथ (अस्माकम्) हमारे (तनूनाम्) शरीरों का (अविता) रक्षक (भूतु) होवें। (यत्) क्योंकि (असुरान्) असुरों [दुराचारियों] को (हत्वाय) मारकर (देवाः) विजय चाहनेवाले, (अभिरक्षमाणाः) सब ओर से रक्षा करते हुए (देवाः) विद्वानों ने (देवत्वम्) देवतापन [उत्तम पद] (आयन्) पाया है ॥॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य शूर वीर विद्वानों के साथ प्रजा की रक्षा कर सके, वही अपने उत्तम कर्मों के कारण उत्तम पद सभापतित्व आदि के योग्य होवे ॥॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ४-६−एते मन्त्रा व्याख्याताः-अथ० ६३।१-३ ॥
०६ प्रत्यञ्चमर्कमनयञ्छचीभिरादित्स्वधामिषिराम्
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प्र॒त्यञ्च॑म॒र्कम॑नय॒ञ्छची॑भि॒रादित्स्व॒धामि॑षि॒रां पर्य॑पश्यन्।
अ॒या वाजं॑ दे॒वहि॑तं सनेम॒ मदे॑म श॒तहि॑माः सु॒वीराः॑ ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
प्र॒त्यञ्च॑म॒र्कम॑नय॒ञ्छची॑भि॒रादित्स्व॒धामि॑षि॒रां पर्य॑पश्यन्।
अ॒या वाजं॑ दे॒वहि॑तं सनेम॒ मदे॑म श॒तहि॑माः सु॒वीराः॑ ॥
०६ प्रत्यञ्चमर्कमनयञ्छचीभिरादित्स्वधामिषिराम् ...{Loading}...
Griffith
Brought the Sun hitherward with mighty powers, and looked about them on their vigorous Godhead. With this may we obtain strength God-appointed, and joy with brave sons through a hundred winters.
पदपाठः
प्र॒त्यञ्च॑म्। अ॒र्कम्। अ॒न॒य॒न्। शची॑भिः। आत। इत्। स्व॒धाम्। इ॒षि॒राम्। परि॑। अ॒प॒श्य॒न्। अ॒या। वाज॑म्। दे॒वऽहि॑तम्। स॒ने॒म॒। मदे॑म। श॒तऽहि॑माः। सु॒ऽवीराः॑। १२४.६।
अधिमन्त्रम् (VC)
- इन्द्रः
- वामदेवः
- गायत्री
- सूक्त-१२४
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
राजा और प्रजा के धर्म का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (प्रत्यञ्चम्) प्रत्यक्ष पाने योग्य (अर्कम्) पूजनीय व्यवहार को (शचीभिः) अपने कर्मों से (अनयन्) उन [विद्वानों] ने प्राप्त कराया है, और (आत् इत्) तभी (इषिराम्) चलानेवाली (स्वधाम्) आत्मधारण शक्ति को (परि) सब ओर (अपश्यन्) देखा है। (अया) इसी [नीति] से (शतहिमाः) सौ वर्षों तक जीते हुए (सुवीराः) उत्तम वीरोंवाले हम (देवहितम्) विद्वानों के हितकारी (वाजम्) विज्ञान को (सनेम) देवें और (मदेम) आनन्द करें ॥६॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - जैसे विद्वान् लोग अपने उत्तम कर्मों से संसार का उपकार करते रहे हैं, वैसे ही हम श्रेष्ठ ज्ञान की प्राप्ति से मनुष्यों को वीर बनाकर आनन्द देवें ॥६॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ४-६−एते मन्त्रा व्याख्याताः-अथ० ६३।१-३ ॥