१०४ ...{Loading}...
०१ इमा उ
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
इ॒मा उ॑ त्वा पुरूवसो॒ गिरो॑ वर्धन्तु॒ या मम॑।
पा॑व॒कव॑र्णाः॒ शुच॑यो विप॒श्चितो॒ऽभि स्तोमै॑रनूषत ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
इ॒मा उ॑ त्वा पुरूवसो॒ गिरो॑ वर्धन्तु॒ या मम॑।
पा॑व॒कव॑र्णाः॒ शुच॑यो विप॒श्चितो॒ऽभि स्तोमै॑रनूषत ॥
०१ इमा उ ...{Loading}...
Griffith
May these my songs of praise exalt thee, Lord who hast abun- dant wealth. Men skilled in holy hymns, bright with the hues of fire, have sung them with their lauds to thee.
पदपाठः
इ॒माः। ऊं॒ इति॑। त्वा॒। पु॒रु॒व॒सो॒ इति॑ पुरुऽवसो। गिरः॑। व॒र्ध॒न्तु॒। या। मम॑। पा॒व॒कऽव॑र्णाः। शुच॑यः। वि॒पः॒ऽचितः॑। अ॒भि। स्तोमैः॑। अ॒नू॒ष॒त॒। १०४.१।
अधिमन्त्रम् (VC)
- इन्द्रः
- मेध्यातिथिः
- प्रगाथः
- सूक्त-१०४
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
परमेश्वर के गुणों का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (पुरूवसो) हे बहुत धनवाले ! [परमात्मन्] (मम) मेरी (याः) जो (गिरः) वाणियाँ हैं, (इमाः) वे (त्वा) तुझको (उ) निश्चय करके (वर्धन्तु) बढ़ावें [विख्यात करें]। (पावकवर्णाः) अग्नि के समान तेजस्वी, (शुचयः) पवित्र (विपश्चितः) विद्वान् लोगों ने (स्तोमैः) स्तोत्रों से [तेरी] (अभि) सब ओर से (अनूषत) प्रशंसा की है ॥१॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - विद्वान् लोग पूर्वज विद्वानों के समान परमेश्वर के उपकारों की स्तुति करके अपनी उन्नति करें ॥१॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: मन्त्र १, २ ऋग्वेद में है-८।३।३, ४ यजुर्वेद-३३।८१, ८३ सामवेद-उ० ७।३।१८ म० १ साम०-पू० ३।६।८ ॥ १−(इमाः) वक्ष्यमाणाः (उ) निश्चयेन (त्वा) (पुरूवसो) हे बहुधनवन् (गिरः) वाण्यः (वर्धन्तु) वर्धयन्तु विख्यातं कुर्वन्तु (याः) (मम) (पावकवर्णाः) अग्निवत्तेजस्विनः। ब्रह्मवर्चस्विनः (शुचयः) पवित्राः (विपश्चितः) विद्वांसः (अभि) सर्वतः (स्तोमैः) स्तोत्रैः (अनूषत) अस्तुवन् ॥
०२ अयं सहस्रमृषिभिः
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
अ॒यं स॒हस्र॒मृषि॑भिः॒ सह॑स्कृतः समु॒द्र इ॑व पप्रथे।
स॒त्यः सो अ॑स्य महि॒मा गृ॑णे॒ शवो॑ य॒ज्ञेषु॑ विप्र॒राज्ये॑ ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
अ॒यं स॒हस्र॒मृषि॑भिः॒ सह॑स्कृतः समु॒द्र इ॑व पप्रथे।
स॒त्यः सो अ॑स्य महि॒मा गृ॑णे॒ शवो॑ य॒ज्ञेषु॑ विप्र॒राज्ये॑ ॥
०२ अयं सहस्रमृषिभिः ...{Loading}...
Griffith
He with his might enhanced by Rishis thousand-fold, hath like an ocean spread himself. His majesty is praised as true at solemn rites, his power where holy singers rule
पदपाठः
अ॒यम्। स॒हस्र॑म्। ऋषि॑ऽभिः। सहः॑ऽकृतः। स॒मु॒द्रःऽइ॑व। प॒प्र॒थे॒। स॒त्यः। सः। अ॒स्य॒। म॒हि॒मा। गृ॒णे॒। शवः॑। य॒ज्ञेषु॑। वि॒प्र॒ऽराज्ये॑। १०४.२।
अधिमन्त्रम् (VC)
- इन्द्रः
- मेध्यातिथिः
- प्रगाथः
- सूक्त-१०४
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
परमेश्वर के गुणों का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (समुद्रः इव) आकाश के समान वर्तमान (अयम्) इस [परमेश्वर] ने (ऋषिभिः) ऋषियों [वेदार्थ जाननेवालों] द्वारा (सहस्कृतः) पराक्रम करनेवालों को (सहस्रम्) सहस्र प्रकार से (पप्रथे) फैलाया है। (अस्य) इस [परमात्मा] की (सः) वह (महिमा) महिमा (सत्यः) सत्य है, (विप्रराज्ये) विद्वानों के राज्य के बीच (यज्ञेषु) यज्ञों [श्रेष्ठ व्यवहारों] में (शवः) उस बल की (गृणे) मैं बड़ाई करता हूँ ॥२॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मनुष्यों को चाहिये कि परमात्मा की सदा स्तुति करते रहें, क्योंकि वह विद्वानों को प्राप्त होकर राज्य करनेवाले पुरुष का बल बढ़ाता है ॥२॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: २−(अयम्) परमेश्वरः (सहस्रम्) बहुप्रकारेण (ऋषिभिः) वेदार्थविद्भिः (सहस्कृतः) पराक्रमकर्तॄन् (समुद्रः) अन्तरिक्षम् (इव) यथा (पप्रथे) विस्तारितवान् (सत्यः) यथार्थः (सः) (अस्य) परमेश्वरस्य (महिमा) महत्त्वम् (गृणे) स्तौमि (शवः) बलम् (यज्ञेषु) श्रेष्ठव्यवहारेषु (विप्रराज्ये) मेधाविनां राष्ट्रे ॥
०३ आ नो
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
आ नो॒ विश्वा॑सु॒ हव्य॒ इन्द्रः॑ स॒मत्सु॑ भूषतु।
उप॒ ब्रह्मा॑णि॒ सव॑नानि वृत्र॒हा प॑रम॒ज्या ऋची॑षमः ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
आ नो॒ विश्वा॑सु॒ हव्य॒ इन्द्रः॑ स॒मत्सु॑ भूषतु।
उप॒ ब्रह्मा॑णि॒ सव॑नानि वृत्र॒हा प॑रम॒ज्या ऋची॑षमः ॥
०३ आ नो ...{Loading}...
Griffith
May Indra, who in every fight must be invoked, be near to us. May the most mighty Vritra-slayer, meet for praise, come to libations and to hymns.
पदपाठः
आ। नः॒। विश्वा॑सु। हव्यः॑। इन्द्रः॑। स॒मत्ऽसु॑। भू॒ष॒तु॒। उप॑। ब्रह्मा॑णि। सव॑नानि। वृ॒त्र॒ऽहा। प॒र॒म॒ऽज्याः। ऋची॑षम्। १०४.३।
अधिमन्त्रम् (VC)
- इन्द्रः
- मेध्यातिथिः
- प्रगाथः
- सूक्त-१०४
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
परमेश्वर के गुणों का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (विश्वासु) सब (समत्सु) संग्रामों में (हव्यः) पुकारने योग्य, (वृत्रहा) अन्धकार मिटानेवाला, (परमज्याः) बड़े शत्रुओं का मारनेवाला, (ऋचीषमः) स्तुति के समान गुणवाला (इन्द्रः) इन्द्र [परम ऐश्वर्यवाला परमात्मा] (नः) हमारे (ब्रह्माणि) वेदज्ञानों और (सवनानि) ऐश्वर्य की वस्तुओं को (आ) सब ओर से (उप) भले प्रकार (भूषतु) शोभायमान करे ॥३॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मनुष्य परमपिता परमेश्वर का आश्रय लेकर शत्रुओं का नाश करके ऐश्वर्य बढ़ावें ॥३॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: मन्त्र ३, ४ ऋग्वेद में हैं-८।९० [सायणभाष्य ७९]।१, २ सामवेद-उ० ७।१।२ मन्त्र १ साम० पू० ३।८।७ ॥ ३−(आ) समन्तात् (नः) अस्माकम् (विश्वासु) सर्वासु (हव्यः) आह्वातव्यः (इन्द्रः) परमेश्वरः (समत्सु) संग्रामेषु (भूषतु) अलंकरोतु (उप) पूजायाम् (ब्रह्माणि) वेदज्ञानानि (सवनानि) ऐश्वर्यवस्तूनि (वृत्रहा) अन्धकारनाशकः (परमज्याः) आतो मनिन् क्वनिब्वनिपश्च। पा० ३।२।७४। परम+ज्या वयोहानौ-विच्। महाशत्रूणां नाशयिता (ऋचीषमः) अथ० २०।३।१। स्तुतितुल्यगुणयुक्तः ॥
०४ त्वं दाता
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
त्वं दा॒ता प्र॑थ॒मो राध॑साम॒स्यसि॑ स॒त्य ई॑शान॒कृत्।
तु॑विद्यु॒म्नस्य॒ युज्या॑ वृणीमहे पु॒त्रस्य॒ शव॑सो म॒हः ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
त्वं दा॒ता प्र॑थ॒मो राध॑साम॒स्यसि॑ स॒त्य ई॑शान॒कृत्।
तु॑विद्यु॒म्नस्य॒ युज्या॑ वृणीमहे पु॒त्रस्य॒ शव॑सो म॒हः ॥
०४ त्वं दाता ...{Loading}...
Griffith
Thou art the best of all in sending bounteous gifts, true art thou,. lordly in thine act. We claim alliance with the very Glorious One, yea, with the- mighty Son of Strength.
पदपाठः
त्वम्। दा॒ता। प्र॒थ॒मः। राध॑साम्। अ॒सि॒। असि॑। स॒त्यः। ई॒शा॒न॒ऽकृत्। तु॒वि॒ऽद्यु॒म्नस्य॑। युज्या॑। आ। वृ॒णी॒म॒हे॒। पु॒त्रस्य॑। शव॑सः। म॒हः। १०४.४।
अधिमन्त्रम् (VC)
- इन्द्रः
- मेध्यातिथिः
- प्रगाथः
- सूक्त-१०४
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
परमेश्वर के गुणों का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - [हे परमेश्वर !] (त्वम्) तू (राधसाम्) धनों का (प्रथमः) सबसे पहिला (दाता) दाता (असि) है, और (सत्यः) सच्चा (ईशानकृत्) ऐश्वर्यवान् बनानेवाला (असि) है। (तुविद्युम्नस्य) बड़े यशस्वी पुरुष के (पुत्रस्य) पुत्र के (महः) बड़े (शवसा) बल के (युज्या) योग्य कामों को (आ) सब प्रकार (वृणीमहे) हम अङ्गीकार करते हैं ॥४॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य उत्तम घरानों में उत्पन्न होकर माता-पिता आदि से सुशिक्षा पाकर पराक्रम करते हैं, जगदीश्वर उनका ऐश्वर्य बढ़ाता है ॥४॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ४−(त्वम्) (दाता) दानी (प्रथमः) आदिमः (राधसाम्) धनानाम् (असि) (असि) (सत्यः) यथार्थः (ईशानकृत्) ऐश्वर्यवतां कर्ता (तुविद्युम्नस्य) बहुयशस्विनः पुरुषस्य (युज्या) युज-क्यप्। योग्यानि कर्माणि (आ) समन्तात् (वृणीमहे) स्वीकुर्मः (पुत्रस्य) (शवसः) बलस्य (महः) महतः ॥