१०३ ...{Loading}...
०१ अग्निमीडिष्वावसे गाथाभिः
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
अ॒ग्निमी॑डि॒ष्वाव॑से॒ गाथा॑भिः शी॒रशो॑चिषम्।
अ॒ग्निं रा॒ये पु॑रुमीढ श्रु॒तं नरो॒ऽग्निं सु॑दी॒तये॑ छ॒र्दिः ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
अ॒ग्निमी॑डि॒ष्वाव॑से॒ गाथा॑भिः शी॒रशो॑चिषम्।
अ॒ग्निं रा॒ये पु॑रुमीढ श्रु॒तं नरो॒ऽग्निं सु॑दी॒तये॑ छ॒र्दिः ॥
०१ अग्निमीडिष्वावसे गाथाभिः ...{Loading}...
Griffith
Solicit with your hymns, for aid, Agni the God with piercing flame, For riches famous Agni, Purmilha ‘and ye men, Agni to light our dwelling well.
पदपाठः
अ॒ग्निम्। ई॒लि॒ष्व॒। अव॑से। गाथा॑भिः। शी॒रऽशो॑चिषम्। अ॒ग्निम्। रा॒ये। पु॒रु॒ऽमी॒ल्ह॒। श्रु॒तम्। नरः॑। अ॒ग्निम्। सु॒ऽदी॒तये॑। छ॒र्दिः। १०३.१।
अधिमन्त्रम् (VC)
- अग्निः
- सुदीतिपुरुमीढौ
- बृहती
- सूक्त-१०३
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
परमेश्वर के गुणों का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (पुरुमीढ) हे बहुत ज्ञान से सींचे हुए मनुष्य ! (नरः) नर [नेता] होकर तू (गाथाभिः) गाने योग्य क्रियाओं के साथ (अवसे) अपनी रक्षा के लिये (शीरशोचिषम्) बड़े प्रकाशवाले (अग्निम्) अग्नि [प्रकाशस्वरूप परमात्मा] को, (राये) धन के लिये (श्रुतम्) विख्यात (अग्निम्) अग्नि [प्रकाशस्वरूप परमात्मा] को और (सुदीतये) सुन्दर प्रकाश के लिये (छर्दिः) घर सदृश (अग्निम्) अग्नि [प्रकाशस्वरूप परमात्मा] को (ईडिष्व) खोज ॥१॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मनुष्य परमात्मा की भक्ति से अपनी रक्षा के लिये धन और विद्या को बढ़ावें ॥१॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: यह मन्त्र ऋग्वेद में है-८।७१ [सायणभाष्य ६०]।१४, सामवेद-पू० १।।६ ॥ १−(अग्निम्) प्रकाशस्वरूपं परमात्मानम् (ईडिष्व) अ० २०।१०२।१। अधीष्व। अन्विच्छ (अवसे) रक्षणाय (गाथाभिः) गानयोग्यक्रियाभिः (शीरशोचिषम्) स्फायितञ्चिवञ्चि०। उ० २।१३। शीङ् स्वप्ने-रक्। अर्चिशुचि० उ० २।१०८। शुच शोके-इसि। महाप्रकाशयुक्तम् (अग्निम्) (राये) धनाय (पुरुमीढ) मिह सेचने-क्त। बहुज्ञानेन मीढ सिक्त वर्धित मनुष्य (श्रुतम्) विख्यातम् (नरः) नेता सन् (अग्निम्) (सुदीतये) पलोपः। सुदीप्तये। शोभनप्रकाशाय (छर्दिः) अर्चिशुचिहुसृपिछादिच्छर्दिभ्य इसिः। उ० २।१०८। छर्द सन्दीपने-इसि। गृहम्-निघ० ३।४ ॥
०२ अग्न आ
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अग्न॒ आ या॑ह्य॒ग्निभि॒र्होता॑रं त्वा वृणीमहे।
आ त्वाम॑नक्तु॒ प्रय॑ता ह॒विष्म॑ती॒ यजि॑ष्ठं ब॒र्हिरा॒सदे॑ ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
अग्न॒ आ या॑ह्य॒ग्निभि॒र्होता॑रं त्वा वृणीमहे।
आ त्वाम॑नक्तु॒ प्रय॑ता ह॒विष्म॑ती॒ यजि॑ष्ठं ब॒र्हिरा॒सदे॑ ॥
०२ अग्न आ ...{Loading}...
Griffith
Agni, come hither with thy fires: we choose thee as our Hotai- priest. Let the extended ladle full of oil balm thee, best priest, to sit on sacred grass.
पदपाठः
अग्ने॑। आ। या॒हि॒। अ॒ग्निऽभिः॑। होता॑रम्। त्वा॒। वृ॒णी॒म॒हे॒। आ। त्वाम्। अ॒न॒क्तु॒। प्रऽय॑ता। ह॒विष्म॑ती। वजि॑ष्ठम्। ब॒र्हिः। आ॒ऽसदे॑। १०३.२।
अधिमन्त्रम् (VC)
- अग्निः
- भर्गः
- प्रगाथः
- सूक्त-१०३
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
परमेश्वर के गुणों का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (अग्ने) हे अग्नि ! [प्रकाशस्वरूप परमेश्वर] (अग्निभिः) ज्ञानप्रकाशों के साथ (आ याहि) तू प्राप्त हो, (होतारम्) दानी (त्वा) तुझको (वृणीमहे) हम स्वीकार करते हैं। (प्रयता) नियमयुक्त (हविष्मती) भक्तिवाली प्रजा (बर्हिः) वृद्धि (आसदे) पाने के लिये (यजिष्ठम्) अत्यन्त संयोग-वियोग करनेवाले (त्वा) तुझको (आ) सब प्रकार से (अनक्तु) प्राप्त होवे ॥२॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मनुष्य परमात्मा की आज्ञा में रहकर सदा वृद्धि करें ॥२॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: मन्त्र २, ३ ऋग्वेद में हैं-८।६० [सायणभाष्य ४९]।१, २ सामवेद-उ० ७।२।७ ॥ २−(अग्ने) हे प्रकाशस्वरूप परमेश्वर (आ याहि) प्राप्तो भव (अग्निभिः) ज्ञानप्रकाशैः (होतारम्) दातारम् (त्वा) त्वाम् (वृणीमहे) स्वीकुर्मः (आ) समन्तात् (त्वाम्) परमेश्वरम् (अनक्तु) अञ्जू गतौ। प्राप्नोतु (प्रयता) यम-क्त। नियमयुक्त (हविष्मती) भक्तिमती प्रजा (यजिष्ठम्) यष्टृ-इष्ठन्। अतिशयेन यष्टारं संयोगवियोगकर्तारम् (बर्हिः) वृद्धिम् (आसदे) प्राप्तुम् ॥
०३ अच्छा हि
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अच्छा॒ हि त्वा॑ सहसः सूनो अङ्गिरः॒ स्रुच॒श्चर॑न्त्यध्व॒रे।
ऊ॒र्जो नपा॑तं घृ॒तके॑शमीमहे॒ऽग्निं य॒ज्ञेषु॑ पू॒र्व्यम् ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
अच्छा॒ हि त्वा॑ सहसः सूनो अङ्गिरः॒ स्रुच॒श्चर॑न्त्यध्व॒रे।
ऊ॒र्जो नपा॑तं घृ॒तके॑शमीमहे॒ऽग्निं य॒ज्ञेषु॑ पू॒र्व्यम् ॥
०३ अच्छा हि ...{Loading}...
Griffith
For unto thee, O Angiras, O Son of Strength, move ladles in the sacrifice, To Agni, Child of Force, whose locks drop oil, we seek, fore- most in sacrificial rites.
पदपाठः
अच्छ॑। हि। त्वा॒। स॒ह॒सः॒। सू॒नो॒ इति॑। अ॒ङ्गि॒रः॒। स्रुचः॑। चर॑न्ति। अ॒ध्व॒रे। ऊ॒र्जः। नपा॑तम्। घृ॒तऽके॑शम्। ई॒म॒हे॒। अ॒ग्निम्। य॒ज्ञेषु॑। पू॒र्व्यम्। १०३.३।
अधिमन्त्रम् (VC)
- अग्निः
- भर्गः
- प्रगाथः
- सूक्त-१०३
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
परमेश्वर के गुणों का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (सहसः सूनो) हे बल के पहुँचानेवाले ! (अङ्गिरः) हे ज्ञानी परमेश्वर ! (स्रुचः) चलनेवाली प्रजाएँ। (अध्वरे) बिना हिंसावाले व्यवहार में (त्वा) तुझको (हि) ही (अच्छ) अच्छे प्रकार (चरन्ति) प्राप्त होती हैं। (ऊर्जः) बल के (नपातम्) न गिरानेवाले [रक्षक] (यज्ञेषु) यज्ञों [संयोग-वियोग व्यवहारों] में (पूर्व्यम्) पुराने (अग्निम्) अग्नि [प्रकाशस्वरूप परमेश्वर] से (घृतकेशम्) जल और प्रकाश को (ईमहे) हम माँगते हैं ॥३॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मनुष्यों को चाहिये कि परमेश्वर के बनाये पदार्थों से उपकार लेकर उन्नति करें ॥३॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ३−(अच्छ) सुष्ठु प्रकारेण (हि) एव (त्वा) (सहसः) बलस्य (सूनो) प्रेरक (अङ्गिरः) हे ज्ञानिन् परमेश्वर। (स्रुचः) चिक् च। उ० २।६२। स्रु गतौ-क्विप् चिगागमः। गतिशीलाः प्रजाः (चरन्ति) गच्छन्ति। प्राप्नुवन्ति (अध्वरे) हिंसारहिते व्यवहारे (ऊर्जः) बलस्य (नपातम्) नपातयितारम्। रक्षकम् (घृतकेशम्) घृतं जलं केशं प्रकाशं च (ईमहे) याचामहे (अग्निम्) प्रकाशस्वरूपं परमेश्वरम् (यज्ञेषु) संयोगवियोगव्यवहारेषु (पूर्व्यम्) पुरातनम् ॥