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०१ अग्निं दूतम्

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अ॒ग्निं दू॒तं वृ॑णीमहे॒ होता॑रं वि॒श्ववे॑दसम्।
अ॒स्य य॒ज्ञस्य॑ सु॒क्रतु॑म् ॥

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Griffith

Agni we choose, the messenger, the herald, master of all wealth,. Well skilled in this our sacrifice.

पदपाठः

अ॒ग्निम्। दू॒तम्। वृणी॒म॒हे॒। होता॑रम्। वि॒श्वऽवे॑दसम्। अ॒स्य। य॒ज्ञस्य॑। सु॒क्रतु॑म्। १०१.१।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अग्निः
  • मेध्यातिथिः
  • गायत्री
  • सूक्त-१०१
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

भौतिक अग्नि के गुणों का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (दूतम्) पदार्थों के पहुँचानेवाले वा तपानेवाले, (होतारम्) वेग आदि देनेवाले, (विश्ववेदसम्) सब धनों के प्राप्त करानेवाले, (अस्य) इस [प्रसिद्ध] (यज्ञस्य) यज्ञ [संयोग-वियोग व्यवहार] के (सुक्रतुम्) सुधारनेवाले (अग्निम्) अग्नि [आग, बिजुली, सूर्य] को (वृणीमहे) हम स्वीकार करते हैं ॥१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्यों को चाहिये कि कला यन्त्र, यान, विमान आदि में वेग से चलाने के लिये और शरीरों में भोजन आदि द्वारा बल बढ़ाने लिये बिजुली आदि अग्नि को काम में लावें ॥१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: यह तृच ऋग्वेद में है-१।१२।१-३, सामवेद उ० २।१। तृच ६ तथा म० १ साम० पू० १।१।३ ॥ १−(अग्निम्) विद्युत्सूर्यपार्थिवाग्निरूपम् (दूतम्) पदार्थानां प्रापकं तापकं वा (वृणीमहे) स्वीकुर्मः (होतारम्) वेगादिदातारम् (विश्ववेदसम्) सर्वधनप्रापकम् (अस्य) प्रसिद्धस्य (यज्ञस्य) संयोगवियोगव्यवहारस्य (सुक्रतुम्) शोभनकर्तारम् ॥

०२ अग्निमग्निं हवीमभिः

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अ॒ग्निम॑ग्निं॒ हवी॑मभिः॒ सदा॑ हवन्त वि॒श्पति॑म्।
ह॑व्य॒वाहं॑ पुरुप्रि॒यम् ॥

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Griffith

With calls they ever invocate Agni, Agni, Lord of the House, Oblation-bearer, much-beloved.

पदपाठः

अ॒ग्निम्ऽअ॑ग्निम्। हवी॑ऽभिः। सदा॑। ह॒व॒न्त॒। वि॒श्पति॑म्। ह॒व्य॒ऽवाह॑म्। पु॒रु॒ऽप्रि॒यम्। १०१.२।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अग्निः
  • मेध्यातिथिः
  • गायत्री
  • सूक्त-१०१
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

भौतिक अग्नि के गुणों का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - [हे मनुष्यो !] (हवीमभिः) ग्रहण करने योग्य व्यवहारों से (विश्पतिम्) प्रजाओं के पालनेवाले, (हव्यवाहम्) देने-लेने योग्य पदार्थों के पहुँचानेवाले, (पुरुप्रियम्) बहुत प्रिय करनेवाले (अग्निमग्निम्) अग्नि-अग्नि [अर्थात् पृथिवी की आग, बिजुली और सूर्य] को (सदा) सदा (हवन्त) तुम ग्रहण करो ॥२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्यों को योग्य है कि प्रसिद्ध अग्नि, बिजुली और सूर्य को कला यन्त्र आदि में प्रयुक्त करके सदा सुख की वृद्धि करें ॥२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २−(अग्निमग्निम्) प्रत्येकप्रकारं विद्युत्सूर्यपार्थिवाग्निरूपम् (हवीमभिः) अथ० २०।७२।३। ग्राह्यव्यवहारैः (सदा) (हवन्त) गृह्णीत (विश्पतिम्) प्रजानां पालकम् (हव्यवाहम्) दातव्यग्राह्यपदार्थप्रापकम् (पुरुप्रियम्) बहुहितकरम् ॥

०३ अग्ने देवाँ

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अग्ने॑ दे॒वाँ इ॒हा व॑ह जज्ञा॒नो वृ॒क्तब॑र्हिषे।
असि॒ होता॑ न॒ ईड्यः॑ ॥

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Griffith

Bring the Gods hither, Agni, born for him who strews the sacred grass. Thou art our herald, meet for praise.

पदपाठः

अग्ने॑। दे॒वान्। इ॒ह। आ। व॒ह॒। ज॒ज्ञा॒नः। वृ॒क्तऽब॑र्हिषे। असि॑। होता॑। नः॒। ईड्यः॑। १०१.३।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अग्निः
  • मेध्यातिथिः
  • गायत्री
  • सूक्त-१०१
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

भौतिक अग्नि के गुणों का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (अग्ने) हे अग्नि ! [आग, बिजुली और सूर्य] (जज्ञानः) प्रकट होता हुआ तू (देवान्) दिव्य पदार्थों को (इह) यहाँ (वृक्तबर्हिषे) हिंसा छोड़नेवाले विद्वान् के लिये (आ वह) ला। तू (नः) हमारे लिये (होता) धन देनेवाला और (ईड्यः) खोजने योग्य (असि) है ॥३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य अग्नि, बिजुली और सूर्य की विद्या को खोज करके अनेक प्रकार उपयोग करें और उत्तम-उत्तम पदार्थ प्राप्त करके सुखी होवें ॥३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ३−(अग्ने) हे विद्युत्सूर्यपार्थिवाग्निरूप (देवान्) दिव्यपदार्थान् (इह) (आ वह) प्रापय (जज्ञानः) प्रादुर्भूतः सन् (वृक्तबर्हिषे) अ० २०।२।१। त्यक्तहिंसाय विदुषे (असि) (होता) धनस्य दाता (नः) अस्मभ्यम् (ईड्यः) अध्येष्टव्यः ॥