१०० ...{Loading}...
०१ अधा हीन्द्र
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
अधा॒ हीन्द्र॑ गिर्वण॒ उप॑ त्वा॒ कामा॑न्म॒हः स॑सृ॒ज्महे॑।
उ॒देव॒ यन्त॑ उ॒दभिः॑ ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
अधा॒ हीन्द्र॑ गिर्वण॒ उप॑ त्वा॒ कामा॑न्म॒हः स॑सृ॒ज्महे॑।
उ॒देव॒ यन्त॑ उ॒दभिः॑ ॥
०१ अधा हीन्द्र ...{Loading}...
Griffith
Now have we, Indra, Friend of Song, sent our great wishes forth to thee. Coming like floods that follow floods.
पदपाठः
अध॑। हि। इ॒न्द्र॒। गि॒र्व॒णः॒। उप॑। त्वा॒। कामा॑न्। म॒हः। स॒सृ॒ज्महे॑। उ॒दाऽइ॑व। यन्तः॑। उ॒दऽभिः॑। १००.१।
अधिमन्त्रम् (VC)
- इन्द्रः
- नृमेधः
- उष्णिक्
- सूक्त-१००
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
राजा और प्रजा के कर्तव्य का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (गिर्वणः) हे स्तुतियों से सेवनीय (इन्द्र) इन्द्र ! [महाप्रतापी राजन्] (अद्य हि) अब ही (त्वा) तुझे (महः) अपनी बड़ी (कामान्) कामनाओं को, (उदा) जल [जल की बाढ़] के पीछे (उदभिः) दूसरी जलों की बाढ़ों के साथ (यन्तः इव) चलते हुए पुरुषों के समान हमने (उप) आदर से (ससृज्महे) समर्पण किया है ॥१॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - जैसे नदी की बाढ़ अति वेग से लगातार चली आती हो और गामों और प्राणी आदि को वहाये ले जाती हो, उसे देख लोग घबड़ाकर भागते हैं, वैसे ही प्रजागण दुष्टों से बचने के लिये राजा की शरण शीघ्र लेवें ॥१॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: यह तृच ऋग्वेद में है-८।९८। [सायणभाष्य ८७]। ७-९, सामवेद-उ० १।१। तृच २३ और मन्त्र १ साम० पू० ।२।८ ॥ १−(अद्य) सम्प्रति (हि) (इन्द्र) महाप्रतापिन् राजन् (गिर्वणः) स्तुतिभिः सेवनीय (उप) पूजायाम् (त्वा) त्वाम् (कामान्) कमनीयान् मनोरथान् (महः) महतः। विशालान्, (ससृज्महे) वय समर्पितवन्तः (उदा) उदकेन। जलप्रवाहेण (इव) यथा (यन्तः) गच्छन्तः पुरुषाः (उदभिः) उदकैः। अन्यजलप्रवाहैः ॥
०२ वार्ण त्वा
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वार्ण त्वा॑ य॒व्याभि॒र्वर्ध॑न्ति शूर॒ ब्रह्मा॑णि।
वा॑वृ॒ध्वांसं॑ चिदद्रिवो दि॒वेदि॑वे ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
वार्ण त्वा॑ य॒व्याभि॒र्वर्ध॑न्ति शूर॒ ब्रह्मा॑णि।
वा॑वृ॒ध्वांसं॑ चिदद्रिवो दि॒वेदि॑वे ॥
०२ वार्ण त्वा ...{Loading}...
Griffith
As rivers swell the ocean, so, Hero, our prayers increase thy might, Though of thyself, O Thunderer, waxing day by day.
पदपाठः
वाः। न। त्वा॒। य॒व्याभिः॑। वर्ध॑न्ति। शू॒र॒। ब्रह्मा॑णि। व॒वृध्वांस॑म्। चि॒त्। आ॒द्रि॒ऽवः॒। दि॒वेऽदि॑वे। १००.।
अधिमन्त्रम् (VC)
- इन्द्रः
- नृमेधः
- उष्णिक्
- सूक्त-१००
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
राजा और प्रजा के कर्तव्य का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (अद्रिवः) हे वज्रधारी (शूर) शूर ! [राजन्] (दिवे दिवे) दिन-दिन (वावृध्वांसम्) बढ़ते हुए (चित्) भी (त्वा) तुझको (ब्रह्माणि) वेदज्ञान (वर्धन्ति) बढ़ाते हैं, (न) जैसे (वाः) जल को (यव्याभिः) जौ आदि अन्न की हित करनेवाली नालियों से [बढ़ाते हैं] ॥२॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - राजा वेदानुकूल चलकर अपनी और प्रजा की वृद्धि करे, जैसे जल को नल से ऊँचा लेजाकर अन्न आदि बढ़ाते हैं ॥२॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: २−(वाः) जलम् (न) यथा (त्वा) त्वाम् (यव्याभिः) खलयवमाषतिलवृषब्रह्मणश्च। पा० ।१।७। यव-यत्। यवेभ्यो हिताभिर्जलनालीभिः। नदीभिः। यव्याः नदीनाम-निघ० १।१३। (वर्धन्ति) वर्धयन्ति। उन्नयन्ति (शूर) (ब्रह्माणि) वेदज्ञानानि (वावृध्वांसम्) वर्धतेः क्वसु। वर्धमानम् (चित्) अपि (अद्रिवः) वज्रिन् (दिवे दिवे) दिने दिने ॥
०३ युञ्जन्ति हरी
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यु॒ञ्जन्ति॒ हरी॑ इषि॒रस्य॒ गाथ॑यो॒रौ रथ॑ उ॒रुयु॑गे।
इ॑न्द्र॒वाहा॑ वचो॒युजा॑ ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
यु॒ञ्जन्ति॒ हरी॑ इषि॒रस्य॒ गाथ॑यो॒रौ रथ॑ उ॒रुयु॑गे।
इ॑न्द्र॒वाहा॑ वचो॒युजा॑ ॥
०३ युञ्जन्ति हरी ...{Loading}...
Griffith
With holy song they bind to the broad wide-yoked car the bay steeds of the rapid God, Bearers of India, yoked by prayer.
पदपाठः
यु॒ञ्जन्ति। हरी॒ इति॑। इ॒षि॒रस्य॑। गाथ॑या। उ॒रौ। रथे॑। उ॒रुऽयु॑गे। इ॒न्द्र॒ऽवाहा॑। व॒चः॒ऽयुजा॑। १००.३।
अधिमन्त्रम् (VC)
- इन्द्रः
- नृमेधः
- उष्णिक्
- सूक्त-१००
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
राजा और प्रजा के कर्तव्य का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (गाथया) प्रशंसा के साथ (इषिरस्य) शीघ्रगामी [राजा] के (उरुयुगे) बड़े जुएवाले, (उरौ) बड़े (रथे) रथ में (इन्द्रवाहा) इन्द्र [बड़े ऐश्वर्यवाले राजा] को ले चलनेवाले, (वचोयुजा) वचन से जुतनेवाले (हरी) दो घोड़ों को (युञ्जन्ति) वे [सारथी आदि] जोतते हैं ॥३॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - राजा धर्म की रक्षा के लिये सुशिक्षित शीघ्रगामी घोड़ों के रथ से चलकर प्रशंसा पावें ॥३॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ३−(युञ्जन्ति) योजयन्ति (हरी) अश्वौ (इषिरस्य) शीघ्रगामिनो राज्ञः (गाथया) गायनीयया प्रशंसया (उरौ) महति (रथे) याने (उरुयुगे) महायुगयुक्ते (इन्द्रवाहा) इन्द्रस्य वोढारौ (वचोयुजा) वचनेन युज्यमानौ। सुशिक्षितौ ॥