०९८

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०१ त्वामिद्धि हवामहे

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

त्वामिद्धि हवा॑महे सा॒ता वाज॑स्य का॒रवः॑।
त्वां वृ॒त्रेष्वि॑न्द्र॒ सत्प॑तिं॒ नर॑स्त्वां॒ काष्ठा॒स्वर्व॑तः ॥

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Griffith

That we may win us wealth and spoil we poets verily call on thee. In war men call on thee, Indra, the hero’s Lord, in the steed’s, race-course call on thee.

पदपाठः

त्वाम्। इत्। हि। हवा॑महे। सा॒ता। वाज॑स्य। का॒रवः॑। त्वाम्। वृ॒त्रेषु॑। इ॒न्द्र॒। सत्ऽप॑तिम्। नरः॑। त्वाम्। काष्ठासु। अर्व॑तः। ९८.१।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • इन्द्रः
  • शंयुः
  • प्रगाथः
  • सूक्त-९८
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

राजा के धर्म का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (इन्द्र) हे इन्द्र ! [बड़े ऐश्वर्यवाले राजन्] (कारवः) काम करनेवाले, (नरः) नेता लोग हम (त्वाम्) तुझको (इति हि) ही (वाजस्य) विज्ञान के (साता) लाभ में, (सत्पतिम्) सत्पुरुषों के पालनेवाले (त्वाम्) तुझको (वृत्रेषु) धनों में, और (त्वाम्) तुझको (काष्ठासु) बड़ाइयों के बीच (अर्वतः) घोड़ों को जैसे (हवामहे) पुकारते हैं ॥१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - कार्यकर्ता लोग राजा के सहाय से विद्या, धन और विजय की प्राप्ति करें ॥१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: मन्त्र १, २ ऋग्वेद में है-६।४६।१, २ यजुर्वेद-२७।३७, ३८ सामवेद उ० २।१।१२ और मन्त्र १ साम०-पू० ३।।२ ॥ १−(त्वाम्) (इत्) एव (हि) (हवामहे) आह्वयामः (साता) सातौ। विभागे। लाभे (वाजस्य) विज्ञानस्य (कारवः) कर्तारः (त्वाम्) (वृत्रेषु) धनेषु (इन्द्र) परमैश्वर्यवन् राजन् (सत्पतिम्) सत्पुरुषाणां पालकम् (नरः) नेतारः (त्वाम्) (काष्ठासु) हनिकुषिनीरमिकाशिभ्यः क्थन्। उ० २।२। काशृ दीप्तौ-क्थन्। काष्ठोत्कर्षे स्थितौ दिशि-अमरः २३।४१। उत्कर्षेषु (अर्वतः) अश्वानिव ॥

अधिमन्त्रम् (VC)
  • इन्द्रः
  • शंयुः
  • प्रगाथः
  • सूक्त-९८
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

राजा के धर्म का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (इन्द्र) हे इन्द्र ! [बड़े ऐश्वर्यवाले राजन्] (कारवः) काम करनेवाले, (नरः) नेता लोग हम (त्वाम्) तुझको (इति हि) ही (वाजस्य) विज्ञान के (साता) लाभ में, (सत्पतिम्) सत्पुरुषों के पालनेवाले (त्वाम्) तुझको (वृत्रेषु) धनों में, और (त्वाम्) तुझको (काष्ठासु) बड़ाइयों के बीच (अर्वतः) घोड़ों को जैसे (हवामहे) पुकारते हैं ॥१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - कार्यकर्ता लोग राजा के सहाय से विद्या, धन और विजय की प्राप्ति करें ॥१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: मन्त्र १, २ ऋग्वेद में है-६।४६।१, २ यजुर्वेद-२७।३७, ३८ सामवेद उ० २।१।१२ और मन्त्र १ साम०-पू० ३।।२ ॥ १−(त्वाम्) (इत्) एव (हि) (हवामहे) आह्वयामः (साता) सातौ। विभागे। लाभे (वाजस्य) विज्ञानस्य (कारवः) कर्तारः (त्वाम्) (वृत्रेषु) धनेषु (इन्द्र) परमैश्वर्यवन् राजन् (सत्पतिम्) सत्पुरुषाणां पालकम् (नरः) नेतारः (त्वाम्) (काष्ठासु) हनिकुषिनीरमिकाशिभ्यः क्थन्। उ० २।२। काशृ दीप्तौ-क्थन्। काष्ठोत्कर्षे स्थितौ दिशि-अमरः २३।४१। उत्कर्षेषु (अर्वतः) अश्वानिव ॥

अधिमन्त्रम् (VC)
  • इन्द्रः
  • शंयुः
  • प्रगाथः
  • सूक्त-९८
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

राजा के धर्म का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (इन्द्र) हे इन्द्र ! [बड़े ऐश्वर्यवाले राजन्] (कारवः) काम करनेवाले, (नरः) नेता लोग हम (त्वाम्) तुझको (इति हि) ही (वाजस्य) विज्ञान के (साता) लाभ में, (सत्पतिम्) सत्पुरुषों के पालनेवाले (त्वाम्) तुझको (वृत्रेषु) धनों में, और (त्वाम्) तुझको (काष्ठासु) बड़ाइयों के बीच (अर्वतः) घोड़ों को जैसे (हवामहे) पुकारते हैं ॥१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - कार्यकर्ता लोग राजा के सहाय से विद्या, धन और विजय की प्राप्ति करें ॥१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: मन्त्र १, २ ऋग्वेद में है-६।४६।१, २ यजुर्वेद-२७।३७, ३८ सामवेद उ० २।१।१२ और मन्त्र १ साम०-पू० ३।।२ ॥ १−(त्वाम्) (इत्) एव (हि) (हवामहे) आह्वयामः (साता) सातौ। विभागे। लाभे (वाजस्य) विज्ञानस्य (कारवः) कर्तारः (त्वाम्) (वृत्रेषु) धनेषु (इन्द्र) परमैश्वर्यवन् राजन् (सत्पतिम्) सत्पुरुषाणां पालकम् (नरः) नेतारः (त्वाम्) (काष्ठासु) हनिकुषिनीरमिकाशिभ्यः क्थन्। उ० २।२। काशृ दीप्तौ-क्थन्। काष्ठोत्कर्षे स्थितौ दिशि-अमरः २३।४१। उत्कर्षेषु (अर्वतः) अश्वानिव ॥

०२ स त्वम्

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स त्वं न॑श्चित्र वज्रहस्त धृष्णु॒या म॒ह स्त॑वा॒नो अ॑द्रिवः।
गामश्वं॑ र॒थ्य᳡मिन्द्र॒ सं कि॑र स॒त्रा वाजं॒ न जि॒ग्युषे॑ ॥

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Griffith

As such, O Wonderful whose hand holds thunder, praised as mighty, Caster of the Stone. Pour on us boldly, Indra, kie and chariot-steeds, ever to be the conqueror’s strength.

पदपाठः

सः। त्वम्। नः॒। चि॒त्र॒। व॒ज्र॒ऽह॒स्त॒। धृ॒ष्णु॒ऽया। म॒हः। स्त॒वा॒नः। अ॒द्रि॒ऽवः॒। गाम्। अश्व॑म्। र॒थ्य॑म्। इ॒न्द्र। सम् कि॒र॒। स॒त्रा। वाज॑म्। न। जि॒ग्युषे॑। ९८.२।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • इन्द्रः
  • शंयुः
  • प्रगाथः
  • सूक्त-९८
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

राजा के धर्म का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (चित्र) हे अद्भुत स्वभाववाले ! (वज्रहस्त) हे हाथ में वज्र रखनेवाले ! (अद्रिवः) हे अन्नवाले ! (इन्द्र) इन्द्र ! [महाप्रतापी राजन्] (सः) सो (धृष्णुया) निर्भय (महः) बड़े लोगों की (स्तवानः) स्तुति करता हुआ (त्वम्) तू (नः) हमारे लिये (रथ्यम्) रथ के योग्य (गाम्) बैल और (अश्वम्) घोड़ों को (सं किर) संग्रह कर, (न) जैसे (सत्रा) सत्य के साथ (जिग्युषे) जीतनेवाले वीर को (वाजम्) अन्न आदि पदार्थ [देते हैं] ॥२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जैसे विजयी योद्धा लोग खान-पान आदि पदार्थों से प्रतिष्ठा पाते हैं, वैसे ही अन्य विद्वान् लोग अपनी चतुराई के कारण योग्य प्रतिष्ठा और धन प्राप्त करें •॥२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २−(सः) (त्वम्) (नः) अस्मभ्यम् (चित्रे) अद्भुतस्वभाव (वज्रहस्त) शस्त्रपाणे (धृष्णुया) विभक्तेर्या-पा० ७।१।३९। धृष्णुः। प्रगल्भः (महः) महतः पुरुषान् (स्तवानः) प्रशंसन् (अद्रिवः) हे अन्नवन् (गाम्) वृषभम् (अश्वम्) तुरुङ्गम् (रथ्यम्) रथस्य वोढारम् (इन्द्र) महाप्रतापिन् राजन् (सं किर) संगृहाण (सत्रा) सत्येन (वाजम्) अन्नादिकम् (न) यथा (जिग्युषे) जयतेः-क्वसु। जयशीलस्य ॥