०७९ ...{Loading}...
Griffith
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०१ इन्द्र क्रतुम्
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
इन्द्र॒ क्रतुं॑ न॒ आ भ॑र पि॒ता पु॒त्रेभ्यो॒ यथा॑।
शिक्षा॑ णो अ॒स्मिन्पु॑रुहूत॒ याम॑नि जी॒वा ज्योति॑रशीमहि ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
इन्द्र॒ क्रतुं॑ न॒ आ भ॑र पि॒ता पु॒त्रेभ्यो॒ यथा॑।
शिक्षा॑ णो अ॒स्मिन्पु॑रुहूत॒ याम॑नि जी॒वा ज्योति॑रशीमहि ॥
०१ इन्द्र क्रतुम् ...{Loading}...
Griffith
O Indra, give us wisdom as a sire gives wisdom to his sons. Guide us, O Much-invoked, on this our foray: may we, living, still enjoy the light.
पदपाठः
इन्द्र॑। क्रतु॑म्। नः॒। आ। भ॒र॒। पि॒ता। पु॒त्रेभ्यः॑। यथा॑। शिक्ष॑। नः॒। अ॒स्मिन्। पु॒रु॒ऽहू॒त॒। याम॑नि। जी॒वाः। ज्योतिः॑। अ॒शी॒म॒हि॒। ७९.१।
अधिमन्त्रम् (VC)
- इन्द्रः
- शक्तिरथवा वसिष्ठः
- प्रगाथः
- सूक्त-७९
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
राजा के कर्तव्य का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (इन्द्र) हे इन्द्र ! [परम ऐश्वर्यवाले राजन्] तू (नः) हमारे लिये (क्रतुम्) बुद्धि (आ भर) भर दे, (यथा) जैसे (पिता) पिता (पुत्रेभ्यः) पुत्रों [सन्तानों] के लिये। (पुरुहूत) हे बहुत प्रकार बुलाये गये [राजन् !] अस्मिन् इस (यामनि) समय वा मार्ग में (नः) हमें (शिक्ष) शिक्षा दे, [जिससे] (जीवाः) हम जीव लोग (ज्योतिः) प्रकाश को (अशीमहि) पावें ॥१॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - राजा उत्तम-उत्तम विद्यालय, शिल्पालय आदि खोलकर प्रजा का हित करे, जैसे पिता सन्तानों का हित करता है, जिससे लोग अज्ञान के अन्धकार से छूटकर ज्ञान के प्रकाश को प्राप्त होवें ॥१॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: मन्त्र १ आचुका है-अ० १८।३।६७ ॥ १−अयं मन्त्रो व्याख्यातः- अ० १८।३।६७ ॥
०२ मा नो
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
मा नो॒ अज्ञा॑ता वृ॒जना॑ दुरा॒ध्यो॒३॒॑ माशि॑वासो॒ अव॑ क्रमुः।
त्वया॑ व॒यं प्र॒वतः॒ शश्व॑तीर॒पोऽति॑ शूर तरामसि ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
मा नो॒ अज्ञा॑ता वृ॒जना॑ दुरा॒ध्यो॒३॒॑ माशि॑वासो॒ अव॑ क्रमुः।
त्वया॑ व॒यं प्र॒वतः॒ शश्व॑तीर॒पोऽति॑ शूर तरामसि ॥
०२ मा नो ...{Loading}...
Griffith
Grant that no mighty foes, unknown, malevolent, unhallowed, tread us to the ground. With thine assistance, Hero! may we pass through all the waters that are rushing down.
पदपाठः
मा। नः॒। अज्ञा॑ताः। वृ॒जनाः॑। दुः॒ऽआ॒ध्यः॑। मा। आशि॑वासः। अव॑। क्र॒मुः॒। त्वया॑। व॒यम्। प्र॒ऽवतः॑। शश्व॑तीः। अ॒पः। अति॑। शू॒र॒। त॒रा॒म॒सि॒। ७९.२।
अधिमन्त्रम् (VC)
- इन्द्रः
- शक्तिरथवा वसिष्ठः
- प्रगाथः
- सूक्त-७९
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
राजा के कर्तव्य का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (नः) हमको (मा) न तो (अज्ञाताः) अनजाने हुए (वृजनाः) पापी, (दुराध्यः) दुष्ट बुद्धिवाले, और (मा) न (अशिवासः) अकल्याणकारी लोग (अव क्रमुः) उल्लङ्घन करें। (शूर) हे शूर (त्वया) तेरे साथ (वयम्) हम (प्रवतः) नीचे देशों [खाई, सुरङ्ग आदि] और (शश्वतीः) बढ़ते हुए (अपः) जलों को (अति) लाँघकर (तरामसि) पार हो जावें ॥२॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - राजा ऐसा प्रबन्ध करे कि गुप्त दुराचारी लोग प्रजा को न सतावें और नौका, यान, विमान आदि से अपने लोग कठिन मार्गों को सुख से पार करें ॥२॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: यह मन्त्र ऋग्वेद में है-७।३२।२७ सामवेद-उ० ६।३।६ ॥ २−(मा) निषेधे (नः) अस्मान् (अज्ञाताः) अविदिताः। गुप्ताः (वृजनाः) पापिनः (दुराध्यः) दुर्+आङ्+ध्यै चिन्तायाम्-क्विप्। दुराधियः। दुष्टाभिप्रायाः (मा) निषेधे (अशिवासः) अकल्याणकराः (अव क्रमुः) अवक्रम्यन्तु। उल्लङ्घयन्तु (त्वया) (वयम्) (प्रवतः) निम्नान् देशान् (शश्वतीः) वर्तमाने पृषद्बृहन्महज्जगच्छतृवच्च। उ० २।८४। टुओश्वि गतिवृद्ध्योः-अति, अभ्यासवकारलोपे इकारस्य अकारः। वर्धमानाः। बह्वीः-निघ० ३।१। (अपः) जलानि (अति) अतीत्य (शूर) निर्भय (तरामसि) उल्लङ्घेमहि ॥