०७८ ...{Loading}...
Griffith
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०१ तद्वो गाय
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
तद्वो॑ गाय सु॒ते सचा॑ पुरुहू॒ताय॒ सत्व॑ने।
शं यद्गवे॒ न शा॒किने॑ ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
तद्वो॑ गाय सु॒ते सचा॑ पुरुहू॒ताय॒ सत्व॑ने।
शं यद्गवे॒ न शा॒किने॑ ॥
०१ तद्वो गाय ...{Loading}...
Griffith
Sing this, what time the juice is pressed, to him your Hero much-invoked, To please him as a mighty, Bull.
पदपाठः
तत्। वः॒। गा॒य॒। सु॒ते। सचा॑। पु॒रु॒ऽहू॒ताय॑। सत्व॑ने। शम्। यत्। गवे॑। न। शा॒किने॑। ७८.१।
अधिमन्त्रम् (VC)
- इन्द्रः
- शंयुः
- गायत्री
- सूक्त-७८
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
राजा और प्रजा के वर्ताव का उपदेश ॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - [हे विद्वानो !] (वः) अपने लिये (सुते) उत्पन्न संसार के बीच (सचा) नित्य मिलाप के साथ (पुरुहूताय) बहुतों से बुलाये गये, (शाकिने) शक्तिमान् (सत्वने) वीर राजा के लिये (तत्) उस कर्म को (गाय) तुम गाओ, (यत्) जो (न) अब (गवे) भूमि के लिये (शम्) सुखदायक [होवे] ॥१॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - विद्वान् लोग पुरुषार्थी राजा का उत्साह सर्वहितकारी काम करने के लिये बढ़ाते रहें ॥१॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: यह तृच ऋग्वेद में है-६।४।२२-२४ सामवेद-उ० ८।२। तृच ४। मन्त्र १ साम० पू० २।३।१ ॥ १−(तत्) प्रसिद्धं कर्म (वः) युष्मभ्यम् (गाय) गायत यूयम् (सुते) उत्पन्ने जगति (सचा) नित्यसम्बन्धेन (पुरुहूताय) बहुविधाहूताय (सत्वने) अ० ।२०।८। वीराय राज्ञे (शम्) सुखप्रदम् (यत्) कर्म (गवे) भूम्यै (न) सम्प्रति (शाकिने) शक्तिमते ॥
०२ न घा
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न घा॒ वसु॒र्नि य॑मते दा॒नं वाज॑स्य॒ गोम॑तः।
यत्सी॒मुप॒ श्रव॒द्गिरः॑ ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
न घा॒ वसु॒र्नि य॑मते दा॒नं वाज॑स्य॒ गोम॑तः।
यत्सी॒मुप॒ श्रव॒द्गिरः॑ ॥
०२ न घा ...{Loading}...
Griffith
He, excellent, withholdeth not his gift of power and wealth in kine, When he hath listened to our songs.
पदपाठः
न। च॒। वसुः॑। नि। य॒म॒ते॒। दा॒नम्। वाज॑स्य। गोऽम॑तः। यत्। सी॒म्। उप॑। श्रव॑त्। गिरः॑। ७८.२।
अधिमन्त्रम् (VC)
- इन्द्रः
- शंयुः
- गायत्री
- सूक्त-७८
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
राजा और प्रजा के वर्ताव का उपदेश ॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (वसुः) बसानेवाला राजा (गोमतः) उत्तम विद्या से युक्त (वाजस्य) बल के (दानम्) दान को (न घ) कभी नहीं (नि यमते) रोके, (यत्) जब कि वह (गिरः) हमारी वाणियों को (सीम्) सब प्रकार (उप श्रवत्) सुन लेवे ॥२॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - राजा प्रजा के क्लेशों को ध्यान में रखकर उत्तम विद्या देकर उनका बल बढ़ावे ॥२॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: २−(न) निषेधे (घ) एव (वसुः) वासयिता (नि) नितराम् (यमते) यमु उपरमे। उपरतं निरुद्धं कुर्यात् (दानम्) (वाजस्य) बलस्य (गोमतः) प्रशस्तविद्यायुक्तस्य (यत्) यदा (सीम्) सर्वतः (उप) समीपे (श्रवत्) शृणुयात् (गिरः) वाणीः ॥
०३ कुवित्सस्य प्र
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कु॒वित्स॑स्य॒ प्र हि व्र॒जं गोम॑न्तं दस्यु॒हा गम॑त्।
शची॑भि॒रप॑ नो वरत् ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
कु॒वित्स॑स्य॒ प्र हि व्र॒जं गोम॑न्तं दस्यु॒हा गम॑त्।
शची॑भि॒रप॑ नो वरत् ॥
०३ कुवित्सस्य प्र ...{Loading}...
Griffith
May he with might disclose for us the cows’ stall, whosesoe’er it be, To which the Dasyu-slayer goes.
पदपाठः
कु॒वित्ऽस॑स्य। प्र। हि। व्र॒जम्। गोऽम॑न्तम्। द॒स्यु॒ऽहा। गम॑त्। शची॑भिः। अपः॑। न॒। व॒र॒त्। ७८.३।
अधिमन्त्रम् (VC)
- इन्द्रः
- शंयुः
- गायत्री
- सूक्त-७८
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
राजा और प्रजा के वर्ताव का उपदेश ॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (दस्युहा) डाकुओं का मारनेवाला और (कुवित्सस्य) बहुत दानी पुरुष के (हि) ही (गोमन्तम्) उत्तम विद्याओं से युक्त (व्रजम्) मार्ग पर (प्र) अच्छे प्रकार (गमत्) चले और (शचीभिः) बुद्धियों वा कर्मों के साथ (नः) हमको (अप) आनन्द से (वरत्) स्वीकार करे ॥३॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - राजा दानी विद्वानों की नीति को मानकर श्रेष्ठों की सदा रक्षा करे ॥३॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ३−(कुवित्सस्य) कुवित् बहुनाम-निघ० २।१, षणु दाने-डप्रत्ययः। बहुदानशीलस्य (प्र) प्रकर्षेण (हि) एव (व्रजम्) मार्गम् (गोमन्तम्) प्रशस्तविद्याभिर्युक्तम् (दस्युहा) दस्यूनां दुष्टचोराणां नाशकः (गमत्) गच्छेत् (शचीभिः) प्रज्ञाभिः कर्मभिर्वा (अप) आनन्दे (नः) अस्मान् (वरत्) वृणुयात्। स्वीकुर्यात् ॥