०४५

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Griffith

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०१ अयमु ते

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अ॒यमु॑ ते॒ सम॑तसि क॒पोत॑ इव गर्भ॒धिम्।
वच॒स्तच्चि॑न्न ओहसे ॥

०१ अयमु ते ...{Loading}...

Griffith

This is thine own. Thou drawest near, as the dove turneth to his mate. Thou carest too for this our prayer.

पदपाठः

अ॒यम्। ऊं॒ इति॑। ते॒ सम्। अ॒त॒सि॒। क॒पोतः॑ऽइव। ग॒र्भ॒ऽधिम्। वचः॑। तत्। चि॒त्। नः॒। ओ॒ह॒से॒। ४५.१।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • इन्द्रः
  • शुनःशेपः
  • गायत्री
  • सूक्त-४५
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

सभापति के कर्तव्य का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - [हे सेनापति !] (अयम्) यह [प्रजाजन] (ते उ) तेरा ही है, तू [उस प्रजा जन से] (सम् अतसि) सदा मिलता रहता है, (इव) जैसे (कपोतः) कबूतर (गर्भधिम्) गर्भ रखनेवाली कबूतरी से [पालने को मिलता है], (तत्) इसलिये तू (चित्) ही (नः) हमारे (वचः) वचन को (ओहसे) सब प्रकार विचारता है ॥१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जब कबूतरी अण्डे सेवती और बच्चे देती है, कबूतर बड़े प्रेम से उसको चारा लाकर खिलाता है, इसी प्रकार राजा सुनीति से प्रजा का पालन करे और उनकी पुकार सुने ॥१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: यह तृच ऋग्वेद में है-१।३०।४-६ सामवेद-उ० ७।३। तृच १, तथा मन्त्र १-साम० पू० २।९।९ ॥ १−(अयम्) प्रजाजनः (उ) एव (ते) तव (सम्) (अतसि) सततं संगच्छसे (कपोतः) पारावतः (इव) यथा (गर्भधिम्) गर्भ+दधातेः-कि प्रत्ययः। गर्भधारिणीं कपोतीम् (वचः) वचनम् (तत्) तस्मात् कारणात् (चित्) एव (नः) अस्माकम् (ओहसे) आ+ऊह वितर्के। समन्ताद् विचारयसि ॥

०२ स्तोत्रं राधानाम्

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स्तो॒त्रं रा॑धानां पते॒ गिर्वा॑हो वीर॒ यस्य॑ ते।
विभू॑तिरस्तु सू॒नृता॑ ॥

०२ स्तोत्रं राधानाम् ...{Loading}...

Griffith

O Hero, Lord of Bounties, praised in hymns, may power and pleasantness Be his who signs the laud to thee.

पदपाठः

स्तो॒त्रम्। रा॒धा॒ना॒म्। प॒ते॒। गिर्वा॑हः। वी॒र॒। यस्य॑। ते॒। विऽभू॑तिः। अ॒स्तु॒। सू॒नृता॑। ४५.२।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • इन्द्रः
  • शुनःशेपः
  • गायत्री
  • सूक्त-४५
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

सभापति के कर्तव्य का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (राधानां पते) हे धनों के स्वामी ! (गिर्वाहः) हे विद्याओं के पहुँचानेवाले ! (वीर) हे वीर ! (यस्य ते) जिस तेरी (स्तोत्रम्) स्तुति है, [उस तेरी] (विभूतिः) विभूति [ऐश्वर्य] (सूनृता) प्यारी और सच्ची वाणी (अस्तु) होवे ॥२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - प्रधान पुरुष अनेक धनों को प्राप्त होकर उत्तम कर्मों से अपनी स्तुति बढ़ावें और हितकारी सच्ची बात बोलने को ही अपना ऐश्वर्य समझे ॥२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २−(स्तोत्रम्) स्तुतिम् (राधानाम्) धनानाम् (पते) पालक (गिर्वाहः) अ० २।३।४। हे गिरां विद्यानां प्रापक (वीर) हे निर्भय (यस्य) (ते) तव (विभूतिः) ऐश्वर्यम् (अस्तु) (सूनृता) अ० ३।१२।२। प्रियसत्यात्मिका वाक् ॥

०३ ऊर्ध्वस्तिष्ठा न

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ऊ॒र्ध्वस्ति॑ष्ठा न ऊ॒तये॒ऽस्मिन्वाजे॑ शतक्रतो।
सम॒न्येषु॑ ब्रवावहै ॥

०३ ऊर्ध्वस्तिष्ठा न ...{Loading}...

Griffith

Lord of a Hundred Powers, stand up to lend us succour in this fight: In others too let us agree.

पदपाठः

ऊ॒र्ध्वः। ति॒ष्ठ॒। नः॒। ऊ॒तये॑। अ॒स्मिन्। वाजे॑। श॒त॒क्र॒तो॒। इति॑ शतऽक्रतो। सम्। अ॒न्येषु॑। ब्र॒वा॒व॒है॒। ४५.३।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • इन्द्रः
  • शुनःशेपः
  • गायत्री
  • सूक्त-४५
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

सभापति के कर्तव्य का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (शतक्रतो) हे सैकड़ों कर्मों वा बुद्धियोंवाले (नः) हमारी (ऊतये) रक्षा के लिये (अस्मिन्) इस (वाजे) सङ्ग्राम में (ऊर्ध्वः) ऊपर (तिष्ठ) ठहर, (अन्येषु) दूसरे कामों पर (सम्) मिलकर (ब्रवावहै) हम दोनों बात करें ॥३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - विद्वान् लोग प्रजापालक सेनापति से बात-चीत करके कर्तव्य को करते हुए और अकर्तव्य को छोड़ते हुए युद्ध में विजय प्राप्त करें ॥३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ३−(ऊर्ध्वः) उन्नतः (तिष्ठ) (नः) अस्माकम् (ऊतये) रक्षायै (अस्मिन्) (वाजे) संग्रामे (शतक्रतो) बहुकर्मन्। बहुप्रज्ञ (सम्) मिलित्वा (अन्येषु) युद्धाद् भिन्नविषयेषु (ब्रवावहै) आवां विचारयाव ॥