०४३ ...{Loading}...
Griffith
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०१ भिन्धि विश्वा
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
भि॒न्धि विश्वा॒ अप॒ द्विषः॒ बाधो॑ ज॒ही मृधः॑।
वसु॑ स्पा॒र्हं तदा भ॑र ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
भि॒न्धि विश्वा॒ अप॒ द्विषः॒ बाधो॑ ज॒ही मृधः॑।
वसु॑ स्पा॒र्हं तदा भ॑र ॥
०१ भिन्धि विश्वा ...{Loading}...
Griffith
Drive all our enemies away, smite down the foes who press around, And bring the wealth for which we long;
पदपाठः
भि॒न्धि। विश्वाः॑। अप॑। द्विषः॑। परि॑। बाधः॑। ज॒हि। मृधः॑। वसु॑। स्पा॒र्हम्। तत। आ। भ॒र॒। ४३.१।
अधिमन्त्रम् (VC)
- इन्द्रः
- त्रिशोकः
- गायत्री
- सूक्त-४३
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
राजा के धर्म का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - [हे राजन् !] (विश्वाः) सब (द्विषः) द्वेष करनेवाली सेनाओं में (अप भिन्धि) फूट डाल दे, और (बाधः) रोक डालनेवाले (मृधः) संग्रामों को (परि) सब ओर से (जहि) मिटादे (तत्) उस (स्पार्हम्) चाहने योग्य (वसु) धन को (आ भर) ले आ ॥१॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - राजा धर्मात्माओं की रक्षा के लिये शत्रुओं में फूट डालकर उनका नाश करे और उनका धन लेकर विद्यादान आदि धर्म-कार्य में लगावे ॥१॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: यह तृच् ऋग्वेद में है-८।४।४०-४२, सामवेद-उ० ४।१। तृच ८। मन्त्र १-साम० पू० २।४।१०। और मन्त्र २ पू० ३।२।३ ॥ १−(भिन्धि) भेदनं कुरु (विश्वाः) सर्वाः (अप) पृथग्भावे (द्विषः) द्वेष्ट्रीः सेनाः (परि) सर्वतः (बाधः) बाधृ विलोडने-क्विप्। बाधिकाः (जहि) नाशय (मृधः) सङ्ग्रामान् (वसु) धनम् (स्पार्हम्) अ० २०।१६।३। कमनीयम् (तत्) (आ भर) आहर। प्रापय ॥
०२ यद्वीडाविन्द्र यत्स्थिरे
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
यद्वी॒डावि॑न्द्र॒ यत्स्थि॒रे यत्पर्शा॑ने॒ परा॑भृतम्।
वसु॑ स्पा॒र्हं तदा भ॑र ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
यद्वी॒डावि॑न्द्र॒ यत्स्थि॒रे यत्पर्शा॑ने॒ परा॑भृतम्।
वसु॑ स्पा॒र्हं तदा भ॑र ॥
०२ यद्वीडाविन्द्र यत्स्थिरे ...{Loading}...
Griffith
O Indra, that which is concealed in firm strong place precipitous: Bring us the wealth for which we long:
पदपाठः
यत्। वी॒लौ। इ॒न्द्र॒। यत्। स्थि॒रे। यत्। पर्शा॑ने। परा॑भृतम्। वसु॑। स्पा॒र्हम्। तत्। आ। भ॒र॒। ४३.२।
अधिमन्त्रम् (VC)
- इन्द्रः
- त्रिशोकः
- गायत्री
- सूक्त-४३
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
राजा के धर्म का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (इन्द्र) हे इन्द्र ! [बड़े ऐश्वर्यवाले राजन्] (यत्) जो [धन] (वीडौ) बल [वा सेना] में (यत्) जो [धन] (स्थिरे) दृढ़ स्थान में और (यत्) जो [धन] (पर्शाने) मेघ [बरसा] में (पराभृतम्) धरा हुआ है, (तत्) उस (स्पार्हम्) चाहने योग्य (वसु) धन को (आ भर) ले आ ॥२॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - राजा को योग्य है कि शत्रुओं ने जो धन सेना में, दृढ़ कोश में, और जो जल आदि स्थान में रक्खा हो, उस सबको ले लेवें ॥२॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: २−(यत्) धनम् (वीडौ) भृमृशीङ्०। उ० १।७। वीडयतिः संस्तम्भकर्मा-निरु० ।१६-डप्रत्ययः। वीडु बलनाम-निघ० २।९। बले। सैन्ये (इन्द्र) हे परमैश्वर्यवन् राजन् (यत्) (स्थिरे) दृढस्थाने (यत्) (पर्शाने) अ० ८।४।। परि+शॄ हिंसायाम्-आनच्, डित्, परे रिकारलोपः। पर्शानो मेघः-टिप्पणी, निघ० १।१०। मेघे। वर्षाजले (पराभृतम्) न्यस्तम्। अन्यत् पूर्ववत् ॥
०३ यस्य ते
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
यस्य॑ ते वि॒श्वमा॑नुषो॒ भूरे॑र्द॒त्तस्य॒ वेद॑ति।
वसु॑ स्पा॒र्हं तदा भ॑र ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
यस्य॑ ते वि॒श्वमा॑नुषो॒ भूरे॑र्द॒त्तस्य॒ वेद॑ति।
वसु॑ स्पा॒र्हं तदा भ॑र ॥
०३ यस्य ते ...{Loading}...
Griffith
Great riches which the world of men shall recognize as sent by thee: Bring us the wealth for which we long,
पदपाठः
यस्य॑। ते॒। वि॒श्वऽमा॑नुषः। भूरेः॑। द॒त्तस्य॑। वेद॑ति। वसु॑। स्पा॒र्हम्। तत्। आ। भ॒र॒। ४३.३।
अधिमन्त्रम् (VC)
- इन्द्रः
- त्रिशोकः
- गायत्री
- सूक्त-४३
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
राजा के धर्म का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (विश्वमानुषः) संसार का प्रत्येक मनुष्य (यस्य ते) जिस तेरे (भूरेः) बड़े (दत्तस्य) दान का (वेदति) ज्ञान करे, (तत्) उस (स्पार्हम्) चाहने योग्य (वसु) धन को (आ भर) ले आ ॥३॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - राजा को ऐसा दान करना चाहिये, जिससे समस्त संसार का उपकार होवे ॥३॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ३−(यस्य) (ते) तव (विश्वमानुषः) विश्वस्य संसारस्य प्रत्येकमनुष्यः (भूरेः) प्रभूतस्य (दत्तस्य) दानस्य (वेदति) लेटि रूपम्। ज्ञानं कुर्यात्। अन्यत् पूर्ववत् ॥