०४० ...{Loading}...
Griffith
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०१ इन्द्रेण सम्
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
इन्द्रे॑ण॒ सं हि दृक्ष॑से संजग्मा॒नो अबि॑भ्यु॒षा।
म॒न्दू स॑मा॒नव॑र्चसा ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
इन्द्रे॑ण॒ सं हि दृक्ष॑से संजग्मा॒नो अबि॑भ्यु॒षा।
म॒न्दू स॑मा॒नव॑र्चसा ॥
०१ इन्द्रेण सम् ...{Loading}...
Griffith
Mayest thou verily be seen coming by fearless Indra’s side: Both joyous: equal in your sheen.
पदपाठः
इन्द्रे॑ण। सम्। हि। दृक्ष॑से। स॒म्ऽज॒ग्मा॒नः। अबि॑भ्युषा। म॒न्दू इति॑। स॒मा॒नऽव॑र्चसा। ४०.१।
अधिमन्त्रम् (VC)
- इन्द्रः
- मधुच्छन्दाः
- गायत्री
- सूक्त-४०
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
राजा और प्रजा के धर्म का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - [हे प्रजागण !] (अबिभ्युषा) निडर (इन्द्रेण) इन्द्र [बड़े ऐश्वर्यवाले राजा] के साथ (हि) ही (संजग्मानः) मिलता हुआ तू (सम्) अच्छे प्रकार (दृक्षसे) दिखाई देता है। (समानवर्चसा) एक से तेज के साथ (मन्दू) तुम दोनों [राजा और प्रजा] आनन्द देनेवाले हो ॥१॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - जिस राज्य में प्रजागण राजा से और राजा प्रजा से उत्पन्न रहते हैं, वही राज्य विद्या और धन में उन्नति करता है ॥१॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: (मरुतः) अर्थात् मनुष्य वा प्रजागण देवता हैं, इसके लिये (मरुतः) ऋत्विज्-निघ०३।१८ पदनाम-निघ०। और अथर्व०१।२०।१ भी देखो ॥ मन्त्र १, २ ऋग्वेद में है-१।६।७, ८ और आगे हैं-अ०२०।७०।३, ४ मन्त्र १ सामवेद में है-उ०२।२।७॥१−(इन्द्रेण) परमैश्वर्यवता राज्ञा (सम्) सम्यक् (दृक्षसे) दृशेर्लेट्। त्वं दृश्येथाः (संजग्मानः) गमेः कानच्। संगच्छमानः (अबिभ्युषा) ञिभी भये-क्वसु। निर्भयेण (मन्दू) भृमृशीङ्०। उ०१।७। मदि स्तुतिमोदमदस्वप्नकान्तिगतिषु-उप्रत्ययः। आनन्दकौ (समानवर्चसा) समानेन तेजसा ॥
०२ अनवद्यैरभिद्युभिर्मखः सहस्वदर्चति
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अ॑नव॒द्यैर॒भिद्यु॑भिर्म॒खः सह॑स्वदर्चति।
ग॒णैरिन्द्र॑स्य॒ काम्यैः॑ ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
अ॑नव॒द्यैर॒भिद्यु॑भिर्म॒खः सह॑स्वदर्चति।
ग॒णैरिन्द्र॑स्य॒ काम्यैः॑ ॥
०२ अनवद्यैरभिद्युभिर्मखः सहस्वदर्चति ...{Loading}...
Griffith
With Indra’s well-beloved hosts, the blameless, hastening to heaven, The sacrificer cries aloud.
पदपाठः
अ॒न॒व॒द्यैः। अ॒भिद्यु॑ऽभिः। म॒खः। सह॑स्वत्। अ॒र्च॒ति॒। ग॒णैः। इन्द्र॑स्य। काम्यैः॑। ४०.२।
अधिमन्त्रम् (VC)
- इन्द्रः
- मधुच्छन्दाः
- गायत्री
- सूक्त-४०
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
राजा और प्रजा के धर्म का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (अनवद्यैः) निर्दोष, (अभिद्युभिः) सब ओर से प्रकाशमान और (काम्यैः) प्रीति के योग्य (गणैः) गणों [प्रजागणों] के साथ (इन्द्रस्य) इन्द्र [बड़े ऐश्वर्यवाले राजा] का (मखः) यज्ञ [राज्य व्यवहार] (सहस्वत्) अतिदृढ़ता से (अर्चति) सत्कार पाता है ॥२॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - सब राज-काज उत्तम विद्वान् लोगों के मेल से अच्छे प्रकार सिद्ध होते हैं ॥२॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: २−(अनवद्यैः) निर्दोषैः (अभिद्युभिः) अभितः प्रकाशमानैः (मखः) मख गतौ-घप्रत्ययः। यज्ञः-निघ०३।१७। राज्यव्यवहारः (सहस्वत्) यथा स्यात्तथा। बलवत्त्वेन। अतिदृढत्वेन (अर्चति) अर्च्यते। सत्क्रियते (गणैः) प्रजाजनैः (इन्द्रस्य) परमैश्वर्यवतो राज्ञः (काम्यैः) कमेर्णिङ्। पा०३।१।३०। कमु कान्तौ-णिङ्। अचो यत्। पा०३।१।९७। कामि-यत्। कामयितव्यैः। प्रीतियोग्यैः ॥
०३ आदह स्वधामनु
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
आदह॑ स्व॒धामनु॒ पुन॑र्गर्भ॒त्वमे॑रि॒रे।
दधा॑ना॒ नाम॑ य॒ज्ञिय॑म् ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
आदह॑ स्व॒धामनु॒ पुन॑र्गर्भ॒त्वमे॑रि॒रे।
दधा॑ना॒ नाम॑ य॒ज्ञिय॑म् ॥
०३ आदह स्वधामनु ...{Loading}...
Griffith
Thereafter they, as is their wont, threw off the state of babes unborn, Assuming sacrificial name.
पदपाठः
आत्। अह॑। स्व॒धाम्। अनु॑। पुनः॑। ग॒र्भ॒ऽत्वम्। आ॒ऽई॒रि॒रे। दधा॑नाः। नाम॑। य॒ज्ञिय॑म्। ४०.३।
अधिमन्त्रम् (VC)
- मरुद्गणः
- मधुच्छन्दाः
- गायत्री
- सूक्त-४०
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
राजा और प्रजा के धर्म का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (आत्) फिर (अह) अवश्य (स्वधाम् अनु) अपनी धारण शक्ति के पीछे (यज्ञियम्) सत्कारयोग्य (नाम) नाम [यश] को (दधानाः) धारण करते हुए लोगों ने (पुनः) निश्चय करके (गर्भत्वम्) गर्भपन [सारपन, बड़े पद] को (एरिरे) सब प्रकार से पाया है ॥३॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - जहाँ पर पूर्वोक्त प्रकार से न्याययुक्त स्वतन्त्रता के साथ लोग कार्य करते हैं, वहाँ पर सब पुरुष बड़ाई पात हैं ॥३॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: यह मन्त्र ऋग्वेद में है-१।६।४ सामवेद उ०२।२।७ और आगे है-अथ०२०।६९।१२॥३−(आत्) अनन्तरम् (अह) विनिग्रहे-निघ०१।१२। अवश्यम् (स्वधाम्) स्वधारणशक्तिम् (अनु) अनुसृत्य (पुनः) अवधारणे (गर्भत्वम्) अ०३।१०।१२। अर्त्तिगॄभ्यां भन्। उ०३।१२। गॄ शब्दे, विज्ञापने, स्तुतौ निगरणे च-भन्। गर्भो गृभेर्गृणात्यर्थे गिरत्यनर्थानिति वा-निरु०१०।२३। गृणातिरर्चतिकर्मा-निघ०३।१४। गर्भभावम्। स्तुत्यं पदम् (एरिरे) आ+ईर गतौ-लिटो झस्य इरेच्। समन्तात् प्राप्तवन्तः (दधानाः) धारयन्तः पुरुषाः (नाम) यशः। कीर्तिम् (यज्ञियम्) यज्ञार्हम्। पूजनीयम् ॥