०३९ ...{Loading}...
Griffith
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०१ इन्द्रं वो
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
इन्द्रं॑ वो वि॒श्वत॒स्परि॒ हवा॑महे॒ जने॑भ्यः।
अ॒स्माक॑मस्तु॒ केव॑लः ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
इन्द्रं॑ वो वि॒श्वत॒स्परि॒ हवा॑महे॒ जने॑भ्यः।
अ॒स्माक॑मस्तु॒ केव॑लः ॥
०१ इन्द्रं वो ...{Loading}...
Griffith
For you, from every side, we call Indra away from other men: Ours, and none others,’ let him be.
पदपाठः
इन्द्र॑म्। वः॒। वि॒श्वतः॑। परि॑। हवा॑महे। जने॑भ्यः। अ॒स्माक॑म्। अ॒स्तु॒। केव॑लः। ३९.१।
अधिमन्त्रम् (VC)
- इन्द्रः
- मधुच्छन्दाः
- गायत्री
- सूक्त-३९
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
परमेश्वर की उपासना का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - [हे मनुष्यो !] (इन्द्रम्) इन्द्र [बड़े ऐश्वर्यवान् परमात्मा] को (वः) तुम्हारे लिये और (विश्वतः) सब (जनेभ्यः) प्राणियों के लिये (परि) सब प्रकार (हवामहे) हम बुलाते हैं। वह (अस्माकम्) हमारा (केवलः) सेवनीय (अस्तु) होवे ॥१॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - सब मनुष्य सर्वहितकारी जगदीश्वर की आज्ञा में रहकर आनन्द पावें ॥१॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: यह मन्त्र ऋग्वेद में है-१।७।१०, सामवेद-उ०८।१।२ और आगे है-अ०२०।७०।१६॥१−(इन्द्रम्) परमेश्वर्यवन्तं परमात्मानम् (वः) युष्मभ्यम् (विश्वतः) सर्वेभ्यः। सर्वेषां हिताय (परि) सर्वतः (हवामहे) आह्वयामः (जनेभ्यः) प्रादुर्भूतानां प्राणिनां हिताय (अस्माकम्) मनुष्याणाम् (अस्तु) (केवलः) केवृ सेवने-कलच्। सेवनीयः ॥
०२ व्यन्तरिक्षमतिरन्मदे सोमस्य
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व्य१॒॑न्तरि॑क्षमतिर॒न्मदे॒ सोम॑स्य रोच॒ना।
इन्द्रो॒ यदभि॑नद्व॒लम् ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
व्य१॒॑न्तरि॑क्षमतिर॒न्मदे॒ सोम॑स्य रोच॒ना।
इन्द्रो॒ यदभि॑नद्व॒लम् ॥
०२ व्यन्तरिक्षमतिरन्मदे सोमस्य ...{Loading}...
Griffith
In Soma’s ecstasy Indra spread the firmament and realms of light. When he cleft Vala limb from limb.
पदपाठः
वि। अ॒न्तरि॑क्षम्। अ॒ति॒र॒त्। मदे॑। सोम॑स्य। रो॒च॒ना। इन्द्रः॑। यत्। अभि॑नत्। व॒लम्। ३९.२।
अधिमन्त्रम् (VC)
- इन्द्रः
- गोषूक्तिः, अश्वसूक्तिः
- गायत्री
- सूक्त-३९
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
परमेश्वर की उपासना का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (इन्द्रः) इन्द्र [बड़े ऐश्वर्यवाले परमात्मा] ने (सोमस्य) ऐश्वर्य के (मदे) आनन्द में (रोचना) प्रीति के साथ (अन्तरिक्षम्) आकाश को (वि अतिरत्) पार किया है, (यत्) जब कि उसने (वलम्) हिंसक [विघ्न] को (अभिनत्) तोड़ डाला ॥२॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - सबसे महान् और पूजनीय परमात्मा की उपासना से सब मनुष्य उन्नति करें ॥२॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: मन्त्र २- आचुके हैं-अ०२०।२८।१-४॥२−मन्त्राः २- व्याख्याताः-अ०२०।२८।१-४॥
०३ उद्गा आजदङ्गिरोभ्य
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उद्गा आ॑ज॒दङ्गि॑रोभ्य आ॒विष्कृ॒ण्वन्गुहा॑ स॒तीः।
अ॒र्वाञ्चं॑ नुनुदे व॒लम् ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
उद्गा आ॑ज॒दङ्गि॑रोभ्य आ॒विष्कृ॒ण्वन्गुहा॑ स॒तीः।
अ॒र्वाञ्चं॑ नुनुदे व॒लम् ॥
०३ उद्गा आजदङ्गिरोभ्य ...{Loading}...
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Showing the hidden cows he draye them forth for the Angirases, And Vala he cast headlong down.
पदपाठः
अधिमन्त्रम् (VC)
- इन्द्रः
- गोषूक्तिः, अश्वसूक्तिः
- गायत्री
- सूक्त-३९
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
परमेश्वर की उपासना का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (गुहा) गुहा [गुप्त अवस्था] में (सतीः) वर्तमान (गाः) वाणियों को (आविः कृण्वन्) प्रकट करते हुए उस [परमेश्वर] ने (अङ्गिरोभ्यः) विज्ञानी पुरुषों के लिये (उत् आजत्) ऊँचा पहुँचाया और (वलम्) हिंसक [विघ्न] को (अर्वाञ्चन्) नीचे (नुनुदे) हटाया ॥३॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - प्रलय के पीछे परमात्मा ने वेदों का उपदेश करके हमारे सब विघ्न मिटाये हैं ॥३॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ३−मन्त्राः २- व्याख्याताः-अ०२०।२८।१-४॥
०४ इन्द्रेण रोचना
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इन्द्रे॑ण रोच॒ना दि॒वो दृ॒ढानि॑ दृंहि॒तानि॑ च।
स्थि॒राणि॒ न प॑रा॒णुदे॑ ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
इन्द्रे॑ण रोच॒ना दि॒वो दृ॒ढानि॑ दृंहि॒तानि॑ च।
स्थि॒राणि॒ न प॑रा॒णुदे॑ ॥
०४ इन्द्रेण रोचना ...{Loading}...
Griffith
By Indra were the luminous realms of heaven established and secured, Firm and immovable from their place.
पदपाठः
इन्द्रे॑ण। रो॒च॒ना। दि॒वः। दृ॒ह्लानि॑। दृं॒हि॒तानि॑। च॒। स्थि॒राणि॑। न। प॒रा॒ऽनुदे॑। ३९.४।
अधिमन्त्रम् (VC)
- इन्द्रः
- गोषूक्तिः, अश्वसूक्तिः
- गायत्री
- सूक्त-३९
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
परमेश्वर की उपासना का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (इन्द्रेण) इन्द्र [बड़े ऐश्वर्यवाले परमात्मा] करके (दिवः) व्यवहार के (स्थिराणि) ठहराऊ (रोचना) प्रकाश (न पराणुदे) न हटने के लिये (दृढानि) पक्के किये गये (च) और (दृंहितानि) बढ़ाए गये [फैलाये गये हैं]॥४॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - परमात्मा ने अपने अटल नियमों से सब संसार को सुख दिया है ॥४॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ४−मन्त्राः २- व्याख्याताः-अ०२०।२८।१-४॥
०५ अपामूर्मिर्मदन्निव स्तोम
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अ॒पामू॒र्मिर्मद॑न्निव॒ स्तोम॑ इन्द्राजिरायते।
वि ते॒ मदा॑ अराजिषुः ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
अ॒पामू॒र्मिर्मद॑न्निव॒ स्तोम॑ इन्द्राजिरायते।
वि ते॒ मदा॑ अराजिषुः ॥
०५ अपामूर्मिर्मदन्निव स्तोम ...{Loading}...
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Indra, thy laud moves quickly like a joyous wave of waters: bright. Have shone the drops that gladden thee.
पदपाठः
अ॒पाम्। ऊ॒र्मिः। मद॑न्ऽइव। स्तोमः॑। इ॒न्द्र॒। अ॒जि॒र॒य॒ते॒। वि। ते॒। मदाः॑। अ॒रा॒जि॒षुः॒। ३९.५।
अधिमन्त्रम् (VC)
- इन्द्रः
- गोषूक्तिः, अश्वसूक्तिः
- गायत्री
- सूक्त-३९
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
परमेश्वर की उपासना का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (इन्द्र) हे इन्द्र ! [बड़े ऐश्वर्यवाले परमात्मन्] (ते) तेरी (स्तोमः) बड़ाई (अपाम्) जलों की (मदन्) हर्ष बढ़ानेवाली (ऊर्मिः इव) लहर के समान (अजिरायते) वेग से चलती है, और (मदः) आनन्द (वि अराजिषुः) विराजते हैं [विविध प्रकार ऐश्वर्य बढ़ाते हैं] ॥॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - न्यायकारी परमात्मा की उत्तम नीति को मानकर सब लोग आनन्द पाकर शीघ्र ऐश्वर्य बढ़ावें ॥॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: −मन्त्राः २- व्याख्याताः-अ०२०।२८।१-४॥