०३८

०३८ ...{Loading}...

Griffith

???

०१ आ याहि

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आ या॑हि सुषु॒मा हि त॒ इन्द्र॒ सोमं॒ पिबा॑ इ॒मम्।
एदं ब॒र्हिः स॑दो॒ मम॑ ॥

०१ आ याहि ...{Loading}...

Griffith

Come, we have pressed the juice for thee. O Indra, drink the Soma here. Sit thou on this my sacred grass.

पदपाठः

आ। या॒हि॒। सु॒सु॒म। हि। ते॒। इन्द्र॑। सोम॑म्। पिब॑। इ॒मम्। आ। इ॒दम्। ब॒र्हिः। स॒दः॒। मम॑। ३८.१।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • इन्द्रः
  • इरिम्बिठिः
  • गायत्री
  • सूक्त-३८
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

राजा और प्रजा के कर्तव्य का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (इन्द्र) हे इन्द्र ! [बड़े ऐश्वर्यवाले राजन्] (आ याहि) तू आ, (हि) क्योंकि (ते) तेरे लिये (सोमम्) सोम [उत्तम ओषधियों का रस] (सुषुम) हमने सिद्ध किया है, (इमम्) इस [रस] को (पिब) पी, (मम) मेरे (इदम्) इस (बर्हिः) उत्तम आसन पर (आ सदः) बैठ ॥१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - लोग विद्वान् सद्वैद्य के सिद्ध किये हुए महौषधियों के रस से राजा को स्वस्थ बलवान् रखकर राजसिंहासन पर सुशोभित करें ॥१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: मन्त्र १-३ आ चुके हैं-अ०२०।३।१-३ और आगे हैं-अ०२०।४७।७-९॥१−मन्त्राः १-३ व्याख्याताः-अ०२०।३।१-३॥

०२ आ त्वा

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आ त्वा॑ ब्रह्म॒युजा॒ हरी॒ वह॑तामिन्द्र के॒शिना॑।
उप॒ ब्रह्मा॑णि नः शृणु ॥

०२ आ त्वा ...{Loading}...

Griffith

O Indra, let thy long-maned Bays, yoked by prayer, bring thee hitherward. Give ear and listen to our prayers.

पदपाठः

आ। त्वा॒। ब्र॒ह्म॒ऽयुजा॑। हरी॒ इति॑। वह॑ताम्। इ॒न्द्र॒। के॒शिना॑। उप॑। ब्रह्मा॑णि। नः॒। शृ॒णु॒। ३८.२।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • इन्द्रः
  • इरिम्बिठिः
  • गायत्री
  • सूक्त-३८
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

राजा और प्रजा के कर्तव्य का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (इन्द्र) हे इन्द्र ! [बड़े ऐश्वर्यवाले राजन्] (ब्रह्मयुजा) धन के लिये जोड़े गये, (केशिना) सुन्दर केशों [कन्धे आदि के बालों] वाले (हरी) रथ ले चलनेवाले दो घोड़ों [के समान बल और पराक्रम] (त्वा) तुझको (आ) सब ओर (वहताम्) ले चलें। (नः) हमारे (ब्रह्माणि) वेदज्ञानों को (उप) आदर से (शृणु) तू सुन ॥२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जैसे उत्तम बलवान् घोड़े रथ को ठिकाने पर पहुँचाते हैं, वैसे ही राजा वेदोक्त मार्ग पर चलकर अपने बल और पराक्रम से राज्यभार उठाकर प्रजापालन करें ॥२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २−मन्त्राः १-३ व्याख्याताः-अ०२०।३।१-३॥

०३ ब्रह्माणस्त्वा वयम्

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ब्र॒ह्माण॑स्त्वा व॒यं यु॒जा सो॑म॒पामि॑न्द्र सो॒मिनः॑।
सु॒ताव॑न्तो हवामहे ॥

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Griffith

We, Soma-bearing Brahmans, call thee, Soma-drinker, with thy friend, We, Indra, bringing juice expressed.

पदपाठः

ब्र॒ह्माणः॑। त्वा॒। व॒यम्। यु॒जा। सो॒म॒ऽपाम्। इ॒न्द्र॒। सो॒मिनः॑। सु॒तऽव॑न्तः। ह॒वा॒म॒हे॒। ३८.३।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • इन्द्रः
  • इरिम्बिठिः
  • गायत्री
  • सूक्त-३८
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

राजा और प्रजा के कर्तव्य का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (इन्द्र) हे इन्द्र ! [बड़े ऐश्वर्यवाले राजन्] (सोमपाम्) ऐश्वर्य के रक्षक (त्वा) तुझको (युजा) मित्रता के साथ (ब्रह्माणः) वेद जाननेवाले, (सोमिनः) ऐश्वर्यवाले, (सुतवन्तः) उत्तम पुत्र आदि सन्तानोंवाले (वयम्) हम (हवामहे) बुलाते हैं ॥३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जिस राजा के सुप्रबन्ध से प्रजागण ज्ञानवान् धनवान् और सुशिक्षित सन्तानवाले होवें, उसको मित्र जानकर सदा स्मरण करें ॥३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ३−मन्त्राः १-३ व्याख्याताः-अ०२०।३।१-३॥

०४ इन्द्रमिद्गाथिनो बृहदिन्द्रमर्केभिरर्किणः

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इन्द्र॒मिद्गा॒थिनो॑ बृ॒हदिन्द्र॑म॒र्केभि॑र॒र्किणः॑।
इन्द्रं॒ वाणी॑रनूषत ॥

०४ इन्द्रमिद्गाथिनो बृहदिन्द्रमर्केभिरर्किणः ...{Loading}...

Griffith

Indra the singers with high praise, Indra reciters with their lauds, Indra the choirs have glorified.

पदपाठः

इन्द्र॑म्। इत्। गा॒थिनः॑। बृ॒हत्। इन्द्र॑म्। अ॒र्केभिः॑। अ॒र्किणः॑। इन्द्र॑म्। वाणीः॑। अ॒नू॒ष॒त॒। ३८.४।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • इन्द्रः
  • मधुच्छन्दाः
  • गायत्री
  • सूक्त-३८
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

राजा और प्रजा के कर्तव्य का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (गाथिनः) गानेवालों और (अर्किणः) विचार करनेवालों ने (अर्केभिः) पूजनीय विचारों से (इन्द्रम्) सूर्य [के समान प्रतापी], (इन्द्रम्) वायु [के समान फुरतीले] (इन्द्रम्) इन्द्र [बड़े ऐश्वर्यवाले राजा] को और (वाणीः) वाणियों [वेदवचनों] को (इत्) निश्चय करके (बृहत्) बड़े ढंग से (अनूषत) सराहा है ॥४॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य सुनीतिज्ञ, प्रतापी, उद्योगी राजा के व्यवहारों और परमेश्वर की दी हुई वेदवाणी के गुणों को विचारकर सबके सुख के लिये यथावत् उपाय करें ॥४॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: मन्त्र ४-६ ऋग्वेद में हैं-१।७।१-३, सामवेद-उ०२।१।८ और आगे हैं-अ०२०।४७।४-६ तथा ७०–।७-९ और मन्त्र ४ सामवेद-पू०३।१।॥४−(इन्द्रम्) सूर्यमिव प्रतापिनम् (इत्) निश्चयेन (गाथिनः) उषिकुषिगर्त्तिभ्यस्थन्। उ०२।४। गायतेः-थन्प्रत्ययः, टाप्। व्रीह्यादिभ्यश्च। पा०।२।११६। गाथा-इनि। गानशीलाः (बृहत्) यथा भवति तथा। बृहद्भावेन (इन्द्रम्) वायुमिव शीघ्रगामिनम्। उद्योगिनम् (अर्केभिः) अ०३।३।२।पूजनीयविचारैः (अर्किणः) विचारवन्तः (इन्द्रम्) परमैश्वर्यन्तं राजानम् (वाणीः) वेदचतुष्टयीः (अनूषत) अ०२०।१७।१। स्तुतवन्तः ॥

०५ इन्द्र इद्धर्योः

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इन्द्र॒ इद्धर्योः॒ सचा॒ संमि॑श्ल॒ आ व॑चो॒युजा॑।
इन्द्रो॑ व॒ज्री हि॑र॒ण्ययः॑ ॥

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Griffith

Indra hath ever close to him his two bay steeds and word-yoked: car, Indra, the golden, Thunder-armed.

पदपाठः

इन्द्रः॑। इत्। हर्योः॑। सचा॑। सम्ऽमि॑श्‍ल। आ। व॒चः॒ऽयुजा॑। इन्द्रः॑। व॒ज्री॒। हि॒र॒ण्ययः॑। ३८.५।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • इन्द्रः
  • मधुच्छन्दाः
  • गायत्री
  • सूक्त-३८
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

राजा और प्रजा के कर्तव्य का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (वज्री) वज्रधारी, (हिरण्ययः) तेजोमय (इन्द्र) इन्द्र [बड़े ऐश्वर्यवाला राजा] (इत्) ही (इन्द्रः) वायु [के समान] (सचा) नित्य मिले हुए (हर्योः) दोनों संयोग-वियोग गुणों का (संमिश्लः) यथावत् मिलानेवाला (आ) और (वचोयुजा) वचन का योग्य बनानेवाला है ॥॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जैसे पवन के आने-जाने से पदार्थों में चलने, फिरने, ठहरने का और जीभ में बोलने का सामर्थ्य होता है, वैसे ही दण्डदाता प्रतापी राजा के न्याय से सब लोगों में शुभ गुणों का संयोग और दोषों का वियोग होकर वाणी में सत्यता होती है ॥॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: −(इन्द्रः) परमैश्वर्यवान् राजा (इत्) सब (हर्योः) हृञ् स्वीकारप्रापणयोः-इन्। संयोगवियोगयोः (सचा) षच समवाये-क्विप्, विभक्तेराकारः। समवेतयोः (संमिश्लः) सम्+मिश्रयतेः-घञ्। कपिलादीनां संज्ञाछन्दसोर्वा०। वा० पा०८।२।१८। रेफस्य लत्वम्। सर्वतो मिश्रयिता (आ) चार्थे (वचोयुजा) युजिर् योगे-क्विन्, विभक्तेराकारः। वचसो वचनस्य योजयिता (इन्द्रः) वायुरिव (वज्री) वज्रधारी (हिरण्ययः) तेजोमयः ॥

०६ इन्द्रो दीर्घाय

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इन्द्रो॑ दी॒र्घाय॒ चक्ष॑स॒ आ सूर्यं॑ रोहयद्दि॒वि।
वि गोभि॒रद्रि॑मैरयत् ॥

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Griffith

Indra hath raised the Sun aloft in heaven that he may see afar. He burst the mountain for the kine.

पदपाठः

इन्द्रः॑। दी॒र्घाय॑। चक्ष॑से। आ। सूर्य॑म्। रो॒ह॒य॒त्। दि॒वि। वि। गोभिः॑। अद्रि॑म्। ऐ॒र॒य॒त्। ३८.६।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • इन्द्रः
  • मधुच्छन्दाः
  • गायत्री
  • सूक्त-३८
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

राजा और प्रजा के कर्तव्य का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (इन्द्रः) इन्द्र [बड़े ऐश्वर्यवाले परमात्मा] ने (दीर्घाय) दूर तक (चक्षसे) देखने के लिये (दिवि) व्यवहार [वा आकाश] के बीच (गोभिः) वेदवाणियों द्वारा [वा किरणों और जलों द्वारा] (सूर्यम्) सूर्य [के समान प्रेरक] और (अद्रिम्) मेघ [के समान उपकारी पुरुष] को (आ रोहयत्) ऊँचा किया और (वि) विविध प्रकार (ऐरयत्) चलाया है ॥६॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जैसे परमेश्वर के नियम से सूर्य आकाश में चलकर ताप आदि गुणों से अनेक लोकों को धारण करता और किरणों द्वारा जल खींचकर फिर बरसाकर उपकार करता है, वैसे ही दूरदर्शी राजा अपने प्रताप और उत्तम व्यवहार से सब प्रजा को नियम में रक्खे और कर लेकर उनका प्रतिपालन करे ॥६॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ६−(इन्द्रः) परमैश्वर्यवान् परमात्मा (दीर्घाय) विस्तृताय (सूर्यम्) सूर्यलोकम्। सूर्यवत्प्रेरकम् (आरोहयत्) अधिष्ठापितवान् (दिवि) व्यवहारे। आकाशे (वि) विविधम् (गोभिः) वेदवाणीभिः। किरणैः। जलैः (अद्रिम्) मेघम् मेघतुल्योपकारिणम् (ऐरयत्) ईर गतौ कम्पने च-णिच्, लङ्। प्रेरितवान् ॥