०३१

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Griffith

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०१ ता वज्रिणम्

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ता व॒ज्रिणं॑ म॒न्दिनं॒ स्तोम्यं॒ मद॒ इन्द्रं॒ रथे॑ वहतो हर्यता॒ हरी॑।
पु॒रूण्य॑स्मै॒ सव॑नानि॒ हर्य॑त॒ इन्द्रा॑य॒ सोमा॒ हर॑यो दधन्विरे ॥

०१ ता वज्रिणम् ...{Loading}...

Griffith

These two dear Bays bring hither Indra on his car, thunder- armed, joyous, meet for laud, to drink his fill. Many libations flow for him who loveth them: to Indra have: the gold-hued Soma juices run.

पदपाठः

ता। व॒ज्रिण॑म्। म॒न्दिन॑म्। स्तोम्य॑म्। मदे॑। इन्द्र॑म्। रथे॑। व॒ह॒तः॒। ह॒र्य॒ता। हरी॒ इति॑। पुरूणि॑। अ॒स्मै॒। सव॑नानि। हर्य॑ते। इन्द्रा॑य। सोमाः॑। हर॑यः। द॒ध॒न्वि॒रे॒। ३१.१।

अधिमन्त्रम् (VC)
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  • सूक्त-३१
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

पुरुषार्थ करने का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (ता) वे दोनों (हर्यता) प्यारे (हरी) दुःख हरनेवाले दोनों बल और पराक्रम (वज्रिणम्) वज्रधारी, (मन्दिनम्) आनन्दकारी, (स्तोम्यम्) स्तुतियोग्य (इन्द्रम्) इन्द्र [बड़े ऐश्वर्यवाले पुरुष] को, (मदे) सुख के लिये (रथे) रमण साधन जगत् में (वहतः) ले चलते हैं। (सोमाः) शान्त स्वभाववाले (हरयः) मनुष्यों ने (अस्मै) इस (हर्यते) प्यारे (इन्द्राय) इन्द्र [बड़े ऐश्वर्यवाले पुरुष] के लिये (पुरूणि) बहुत से (सवनानि) ऐश्वर्य (दधन्विरे) प्राप्त किये हैं ॥१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जो मनुष्य धर्म के साथ बल और पराक्रम करके संसार को आनन्द देता है, सब लोग मान आदर करके उसका ऐश्वर्य बढ़ाते हैं ॥१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: यह सूक्त ऋग्वेद में है-१०।९६।६-१०॥१−(ता) तौ प्रसिद्धौ (वज्रिणम्) वज्रधारिणम् (मन्दिनम्) अ०२०।१७।४। मोदयितारम् (स्तोम्यम्) स्तुतियोग्यम् (मदे) आनन्दाय (इन्द्रम्) परमैश्वर्यवन्तं पुरुषम् (रथे) रमणसाधने जगति (वहतः) प्रापयतः। गमयतः (हर्यता) हर्य कान्तौ-अतच्। हर्यतौ कमनीयौ (हरी) दुःखहर्तारौ बलपराक्रमौ (पुरूणि) बहूनि (अस्मै) (सवनानि) ऐश्वर्याणि (हर्यते) वर्तमाने पृषद्वृहन्महज्०। उ०२।८४। हर्य कान्तौ-अतिप्रत्ययः। कमनीयाय (इन्द्राय) परमैश्वर्यवते पुरुषाय (सोमाः) शान्तस्वभावाः (हरयः) मनुष्याः (दधन्विरे) धवि गतौ-लिट्, आत्मनेपदम्। प्राप्तवन्तः ॥

०२ अरं कामाय

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अरं॒ कामा॑य॒ हर॑यो दधन्विरे स्थि॒राय॑ हिन्व॒न्हर॑यो॒ हरी॑ तु॒रा।
अर्व॑द्भि॒र्यो हरि॑भि॒र्जोष॒मीय॑ते॒ सो अ॑स्य॒ कामं॒ हरि॑वन्तमानशे ॥

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Griffith

The gold-hued drops have flowed to gratify his wish: the yellow. drops have urged the swift Bays to the Strong. He who speeds on with bay steeds even as he lists hath satisfied his longing for the golden drops.

पदपाठः

अर॑म्। कामा॑य। हर॑यः। द॒ध॒न्वि॒रे॒। स्थि॒राय॑। हि॒न्व॒न्। हर॑यः। हरी॒ इति॑। तु॒रा। अर्व॑त्ऽभिः। यः। हरिऽभिः। जोष॑म्। ईय॑ते। सः। अ॒स्य॒। काम॑म्। हरि॑ऽवन्तम्। आ॒न॒शे॒। ३१.२।

अधिमन्त्रम् (VC)
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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

पुरुषार्थ करने का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (हरयः) सिंह [समान बलवान्] (हरयः) दुःख हरनेवाले मनुष्यों ने (कामाय) कामना पूरी करने के लिये (तुरा) शीघ्रकारी (हरी) दुःख हरनेवाले दोनों बल और पराक्रम को (स्थिराय) दृढ़ स्वभाववाले [सेनापति] के निमित्त (अरम्) पूरा-पूरा (दधन्विरे) प्राप्त किया और (हिन्वन्) बढ़ाया है। (यः) जो मनुष्य (अर्वद्भिः) घोड़ों [के समान शीघ्रगामी] (हरिभिः) दुःख हरनेवाले मनुष्यों के साथ (जोषम्) प्रीति (ईयते) प्राप्त करता है, (सः) उसने ही (हरिवन्तम्) श्रेष्ठ मनुष्योंवाली (अस्य) अपनी (कामम्) कामना को (आनशे) फैलाया है ॥२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जहाँ पर विद्वान् लोग राजा के लिये बल और पराक्रम करते हैं और राजा विद्वानों से प्रीति करता है, वहाँ सब उत्तम कामनाएँ पूरी होकर आनन्द बढ़ता है ॥२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २−(अरम्) अलम्। पर्याप्तम् (कामाय) कामनां पूरयितुम् (हरयः) सिंहसमाना बलवन्तः (दधन्विरे) म०१। प्राप्तवन्तः (स्थिराय) दृढाय सेनापतये (हिन्वन्) हि गतिवृद्ध्योः-लङ्। वर्द्धितवन्तः (हरयः) दुःखहर्तारो मनुष्याः (हरी) दुःखहर्तारौ बलपराक्रमौ (तुरा) वेगे-क। वेगवन्तौ (अर्वद्भिः) अरणवद्भिः अश्वतुल्यैर्वेगवद्भिः (यः) (हरिभिः) दुःखहर्तृभिर्मनुष्यैः सह (जोषम्) प्रीतिम् (ईयते) गच्छति। प्राप्नोति (सः) सेनापतिः (अस्य) स्वकीयस्य (कामम्) अभिलाषाम् (हरिवन्तम्) श्रेष्ठपुरुषैर्युक्तम् (आनशे) अशू व्याप्तौ-लिट्। व्याप्तवान्। विस्तारितवान् ॥

०३ हरिश्मशारुर्हरिकेश आयसस्तुरस्पेये

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हरि॑श्मशारु॒र्हरि॑केश आय॒सस्तु॑र॒स्पेये॒ यो ह॑रि॒पा अव॑र्धत।
अर्व॑द्भि॒र्यो हरि॑भिर्वा॒जिनी॑वसु॒रति॒ विश्वा॑ दुरि॒ता पारि॑ष॒द्धरी॑ ॥

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Griffith

At the swift draught the Soma-drinker waxed in might, the iron. One with yellow beard and golden hair, He, Lord of tawny coursers. Lord of fleet-foot mares, will bear his bay steeds safely over all distress.

पदपाठः

हरि॑ऽश्मशारुः। हरि॑ऽकेशः। आ॒य॒सः। तु॒रः॒ऽपेये॑। यः। ह॒रि॒पाः। अव॑र्धत। अर्व॑त्ऽभिः। यः। हरि॑ऽभिः। वा॒जिनी॑ऽवसुः। अति॑। विश्वा॑। दुःऽइ॒ता। परिषत्। हरी॒ इति॑। ३१.३।

अधिमन्त्रम् (VC)
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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

पुरुषार्थ करने का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (हरिश्मशारुः) सिंह के शरीर को छेदनेवाला, (हरिकेशः) सूर्य समान तेजवाला, (आयसः) लोहे का बना हुआ [अति दृढ़] (यः) जो (हरिपाः) मनुष्यों का रक्षक [सेनापति] (तुरस्पेये) शीघ्र रक्षा करने में (अवर्धत) बढ़ा है, और (यः) जो (अर्वद्भिः) घोड़ों [के समान शीघ्रगामी] (हरिभिः) दुःख हरनेवाले मनुष्यों के साथ (वाजिनीवसुः) अन्नयुक्त क्रियाओं में बसनेवाला है, वह (विश्वा) सब (दुरिता) विघ्नों को (अति) लाँघकर (हरी) दुःख हरनेवाले दोनों बल और पराक्रम को (पारिषत्) भरपूर करे ॥३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जो मनुष्य अति बलवान् और तेजस्वी होकर कष्ट से प्रजा की रक्षा करता है और सत्कारपूर्वक शूरवीर विद्वानों को अन्न आदि देता है, वही अपने बल और पराक्रम से कीर्ति पाता है ॥३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ३−(हरिश्मशारुः) हृञ् नाशने-इन्+शीङ् स्वप्ने-मनिन्, डिच्च+त्रो रश्च लः। उ०१।।९ शॄ हिंसायाम्-उण्। श्म शरीरम्-निरु०३।। हरेः सिंहस्य श्मनः शरीरस्य शारुश्छेदयः (हरिकेशः) सूर्यवत् प्रकाशमानः (आयसः) लोहनिर्मितः। अतिदृढः (तुरस्पेये) भूरञ्जिभ्यां कित्। उ०४।२१७। तुर वेगे-असुन्, कित्। अचो यत्। पा०३।१।९७। पा रक्षणे-यत्। ईद्यति। पा०६।४।६। आकारस्य ईकारः। तुरसा वेगेन रक्षणे (यः) सेनापतिः (हरिपाः) हरीणां मनुष्याणां रक्षकः (अवर्धत) वर्द्धितवान् (अर्वद्भिः) म०२। अश्वतुल्यैर्वेगवद्भिः (यः) (हरिभिः) म०२। (वाजिनीवसुः) वाजिनीषु अन्नयुक्तासु क्रियासु निवासशीलः (अति) अतीत्य (विश्वा) सर्वाणि (दुरिता) विघ्नान् (पारिषत्) पॄ पूरणे-णिच्, लेट्। पूरयेत् (हरी) दुःखहर्तारौ बलपराक्रमौ ॥

०४ स्रुवेव यस्य

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स्रुवे॑व यस्य॒ हरि॑णी विपे॒ततुः॒ शिप्रे॒ वाजा॑य॒ हरि॑णी॒ दवि॑ध्वतः।
प्र यत्कृ॒ते च॑म॒से मर्मृ॑ज॒द्धरी॑ पी॒त्वा मद॑स्य हर्य॒तस्यान्ध॑सः ॥

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Griffith

His yellow-coloured jaws, like ladles, move apart, what time,. for strength, he makes the yellow-tinted stir, When. while the bowl stands there, he grooms his tawny steeds, when he hath drunk strong drink, the sweet juice that he: loves.

पदपाठः

स्रुवा॑ऽइव। यस्‍य॑। हरि॑णी॒ इति॑। वि॒ऽपे॒ततुः॑। शि॒प्रे॒ इति॑। वाजा॒य। हरि॑णी॒ इति॑। ‍ दवि॑ध्वतः। प्र। यत्। कृ॒ते। च॒म॒से। मर्मृ॑जत्। हरी॒ इति॑। पी॒त्वा। मद॑स्य। ह॒र्य॒तस्य॑। अन्ध॑सः। ३१.४।

अधिमन्त्रम् (VC)
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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

पुरुषार्थ करने का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (वाजाय) अन्न के लिये (यस्य) जिस [सेनापति] के (हरिणी) स्वीकार करने योग्य (शिप्रे) दोनों जावड़े (स्रुवा इव) दो चमचाओं के समान (विपेततुः) विविध प्रकार चलते हैं, [उसके राज्य में] (हरिणी) सुख हरनेवाली [अविद्या और कुनीति] दोनों (दविध्वतः) सर्वथा मिट जाती हैं। (यत्) क्योंकि वह (चमसे कृते) भोजन सिद्ध होने पर (मदस्य) आनन्ददायक, (हर्यतस्य) कामनायोग्य (अन्धसः) अन्न का (पीत्वा) पान करके (हरी) बल और पराक्रम दोनों को (प्र) अच्छे प्रकार (मर्मृजत्) शुद्ध करता है ॥४॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जैसे अन्न खाने से भूख मिटती है और स्रुवा से अग्नि में घी डालने से धुआँ नष्ट हो जाता है, वैसे ही जो राजा विद्या और सुनीति के फैलाने से अविद्या और कुनीति मिटाता है, वह अन्न के भोजन से बल और पराक्रम बढ़ाता है ॥४॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ४−(स्रुवा) स्रुवौ। चमसौ (इव) यथा (यस्य) सेनापतेः (हरिणी) हृञ् स्वीकारे-इनच्, उ०२।४६। स्वीकरणीये (विपेततुः) लङर्थे लिट्। विविधं पततश्चलतः (शिप्रे) अथर्व-२०।४।१। शिञ् निशाने छेदने-रक् पुक्च, टाप्। शिप्रे हनू नासिके वा-निरु०६।१७। हनू (वाजाय) अन्नाय (हरिणी) हृञ् नाशने-इनच्। सुखनाशिके अविद्याकुनीती (दविध्वतः) दाधर्तिदर्धर्ति०। पा०७।४।६। ध्वृ कौटिल्ये यङ्लुकि लट् द्विवचनान्तः। ध्वरति वधकर्मा-निघ०२।१६। सर्वथा विनश्यतः (प्र) प्रकर्षेण (यत्) यत् (कृते) संस्कृते (चमसे) भोजने (मर्मृजत्) मृजू शुद्धौ-लट्। मार्ष्टि। शोधयति (हरी) दुःखहर्तारौ बलपराक्रमौ (पीत्वा) पानं कृत्वा (मदस्य) आनन्दकस्य (हर्यतस्य) कमनीयस्य (अन्धसः) अन्नस्य॥

०५ उत स्म

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उ॒त स्म॒ सद्म॑ हर्य॒तस्य॑ प॒स्त्यो३॒॑रत्यो॒ न वाजं॒ हरि॑वाँ अचिक्रदत्।
म॒ही चि॒द्धि धि॒षणाह॑र्य॒दोज॑सा बृ॒हद्वयो॑ दधिषे हर्य॒तश्चि॒दा ॥

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Griffith

Yea, to the dear one’s seat in homes of heaven and earth the- bay steeds’ Lord hath whinnied like a horse for food. Then the great wish hath seized upon him mightily, and the beloved One hath gained high power of life.

पदपाठः

उ॒त। स्म॒। सद्म॑। ह॒र्य। त॒स्य॑। प॒स्त्योः॑। न। वाज॑म्। हरि॑ऽवान्। अ॒चि॒क्र॒दत्। म॒ही। चि॒त्। हि। धि॒ष्णा॑। अह॑र्यत्। ओज॑सा। बृ॒हत्। वयः॑। द॒धि॒षे॒। ह॒र्य॒तः। चि॒त्। आ। ३१.५।

अधिमन्त्रम् (VC)
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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

पुरुषार्थ करने का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (हर्यतस्य) कामनायोग्य [उस पूर्वोक्त पुरुष] का (सद्म) घर (उत स्म) अवश्य ही (पस्त्योः) आकाश और पृथिवी में [हुआ है] और (हरिवान्) उत्तम पुरुषोंवाले [उस पुरुष] ने (अत्यः न) घोड़े के समान (वाजम्) अन्न को (अचिक्रदत्) पुकारा है−(मही) पूजनीय (धिषणा) वेदवाणी ने (चित्) अवश्य (हि) ही (ओजसा) बल के साथ [यह] (अहर्यत्) कामना की है। [इसी से] (हर्यतः) कामनायोग्य तूने (चित्) भी (बृहत्) बड़े (वयः) जीवन को (आ) सब ओर से (दधिषे) धारण किया है ॥॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जो मनुष्य पूर्वोक्त प्रकार से वेदवाणी को मानकर बलवान् और पराक्रमी होता है, वही आकाश और भूमि पर राज्य करके बहुत अन्न प्राप्त करता है, वैसा ही प्रत्येक मनुष्य को अपना जीवन बनाना चाहिये ॥॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: −(उत) अवश्यम् (स्म) एव (सद्म) गृहम् (हर्यतस्य) कमनीयस्य (पस्त्योः) जनेर्यक्। उ०४।१११। पस बाधे ग्रन्थे च-यक्, तुगागमः। पस्त्यं गृहनाम-निघ–०३।४। द्यावापृथिव्योर्मध्ये (अत्यः) अ०२०।११।९। अश्वः (न) यथा (वाजम्) अन्नम् (हरिवान्) हरयो मनुष्यनाम-निघ०२।३। उत्तममनुष्योपेतः (अचिक्रदत्) अ०३।३।१। क्रदि आह्वाने-ण्यन्ताल् लुङ्, नुमभावः। आहूतवान् (मही) पूजनीया (चित्) अवश्यम् (हि) (धिषणा) धृषेर्धिष च सञ्ज्ञायाम्। उ०२।८२। इति ञिधृषा प्रागल्भे-क्यु, धिषादेश्च। यद्वा, धिष शब्दे-क्यु, टाप्, धिषणा वाङ्नाम-निघ०१।११। वेदवाणी (अहर्यत्) अकामयत (ओजसा) बलेन (बृहत्) महत् (वयः) जीवनम् (दधिषे) दधातेः लिट्। त्वं धारितवानसि (हर्यतः) कमनीयः (चित्) अपि (आ) समन्तात् ॥