००३ ...{Loading}...
VH anukramaṇī
१-३ इरिम्बिठिः । इन्द्रः।
Griffith
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०१ आ याहि
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आ या॑हि सुषु॒मा हि त॒ इन्द्र॒ सोमं॒ पिबा॑ इ॒मम्।
एदं ब॒र्हिः स॑दो॒ मम॑ ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
आ या॑हि सुषु॒मा हि त॒ इन्द्र॒ सोमं॒ पिबा॑ इ॒मम्।
एदं ब॒र्हिः स॑दो॒ मम॑ ॥
०१ आ याहि ...{Loading}...
Griffith
Come, we have pressed the juice for thee: O Indra, drink this Soma here. Seat thee on this my sacred grass.
पदपाठः
आ। या॒हि॒। सु॒सु॒म। हि। ते॒। इन्द्र॑। सोम॑म्। पिब॑। इ॒मम्। आ। इ॒दम्। ब॒र्हिः। स॒दः॒। मम॑। ३.१।
अधिमन्त्रम् (VC)
- इन्द्रः
- इरिम्बिठिः
- गायत्री
- सूक्त-३
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
राजा और प्रजा के कर्तव्य का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (इन्द्र) हे इन्द्र ! [बड़े ऐश्वर्यवाले राजन्] (आ याहि) तू आ, (हि) क्योंकि (ते) तेरे लिये (सोमम्) सोम [उत्तम ओषधियों का रस] (सुषुम) हमने सिद्ध किया है, (इमम्) इस [रस] को (पिब) पी, (मम) मेरे (इदम्) इस (बर्हिः) उत्तम आसन पर (आ सदः) बैठ ॥१॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - लोग विद्वान् सद्वैद्य के सिद्ध किये हुए महौषधियों के रस से राजा को स्वस्थ बलवान् रख कर राजसिंहासन पर सुशोभित करें ॥१॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: यह तृच ऋग्वेद में है-८।१७।१-३। और सामवेद-उ० १।१। तृच ६, मन्त्र १ सामवेद-पू० २।१०।७ तथा आगे है-अ० २०।३८।१-३ और ४७।७-९ ॥ १−(आ याहि) आगच्छ (सुषुम) षुञ् अभिषवे-लिट्, छान्दसं रूपम्, सांहितिको दीर्घः। वयमभिषुतवन्तः। निष्पादितवन्तः (हि) यस्मात् कारणात् (ते) तुभ्यम् (इन्द्र) हे परमैश्वर्यवन् राजन् (सोमम्) सदोषधिरसम् (पिब) पानं कुरु (इमम्) रसम् (इदम्) आस्तीर्णम् (बर्हिः) प्रवृद्धासनम् (आ सदः) लेटि, अडागमे, इतश्च लोपे च कृते रूपम्। निषीद ॥
०२ आ त्वा
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आ त्वा॑ ब्रह्म॒युजा॒ हरी॒ वह॑तामिन्द्र के॒शिना॑।
उप॒ ब्रह्मा॑णि नः शृणु ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
आ त्वा॑ ब्रह्म॒युजा॒ हरी॒ वह॑तामिन्द्र के॒शिना॑।
उप॒ ब्रह्मा॑णि नः शृणु ॥
०२ आ त्वा ...{Loading}...
Griffith
Let both thy bay steeds, yoked by prayer long-maned, O Indra, bring thee nigh.
पदपाठः
आ। त्वा॒। ब्र॒ह्म॒ऽयुजा॑। हरी॒ इति॑। वह॑ताम्। इ॒न्द्र॒। के॒शिना॑। उप॑। ब्रह्मा॑णि। नः॒। शृ॒णु॒। ३.२।
अधिमन्त्रम् (VC)
- इन्द्रः
- इरिम्बिठिः
- गायत्री
- सूक्त-३
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
राजा और प्रजा के कर्तव्य का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (इन्द्र) हे इन्द्र ! [बड़े ऐश्वर्यवाले राजन्] (ब्रह्मयुजा) धन के लिये जोड़े गये, (केशिना) सुन्दर केश [कन्धे आदि के बालों] वाले (हरी) रथ ले चलनेवाले दो घोड़े [के समान बल और पराक्रम] (त्वा) तुझको (आ) सब ओर (वहताम्) ले चलें। (नः) हमारे (ब्रह्माणि) वेदज्ञानों को (उप) आदर से (शृणु) तू सुन ॥२॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - जैसे उत्तम बलवान् घोड़े रथ को ठिकाने पर पहुँचाते हैं, वैसे ही राजा वेदोक्त मार्ग पर चलकर अपने बल और पराक्रम से राज्यभार उठाकर प्रजापालन करे ॥२॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: इस मन्त्र का मिलान करो-दयानन्दभाष्य यजु० ८।३४, ३ और अथ० २०।२९।२ ॥ २−(आ) समन्तात् (त्वा) त्वाम् (ब्रह्मयुजा) ब्रह्म धननाम-निघ० २।१०। ब्रह्मणे धनाय युज्यमानौ (हरी) रथस्य हारकावश्वाविव बलपराक्रमौ (वहताम्) प्रापयताम् (इन्द्र) हे परमैश्वर्यवन् राजन् (केशिना) प्रशस्तकेशयुक्तौ स्कन्धादिचिक्कणबालोपेतौ (उप) पूजायाम् (ब्रह्माणि) वेदज्ञानानि (नः) अस्माकम् (शृणु) आकर्णय ॥
०३ ब्रह्माणस्त्वा वयम्
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ब्र॒ह्माण॑स्त्वा व॒यं यु॒जा सो॑म॒पामि॑न्द्र सो॒मिनः॑।
सु॒ताव॑न्तो हवामहे ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
ब्र॒ह्माण॑स्त्वा व॒यं यु॒जा सो॑म॒पामि॑न्द्र सो॒मिनः॑।
सु॒ताव॑न्तो हवामहे ॥
०३ ब्रह्माणस्त्वा वयम् ...{Loading}...
Griffith
We Soma-bearing Brahmans call thee Soma-drinker with thy friend, We, Indra, who have pressed the juice.
पदपाठः
ब्र॒ह्माणः॑। त्वा॒। व॒यम्। यु॒जा। सो॒म॒ऽपाम्। इ॒न्द्र॒। सो॒मिनः॑। सु॒तऽव॑न्तः। ह॒वा॒म॒हे॒। ३.३।
अधिमन्त्रम् (VC)
- इन्द्रः
- इरिम्बिठिः
- गायत्री
- सूक्त-३
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
राजा और प्रजा के कर्तव्य का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (इन्द्र) हे इन्द्र ! [बड़े ऐश्वर्यवाले राजन्] (सोमपाम्) ऐश्वर्य के रक्षक (त्वा) तुझको (युजा) मित्रता के साथ (ब्रह्माणः) वेद जाननेवाले, (सोमिनः) ऐश्वर्यवाले, (सुतावन्तः) उत्तम पुत्रादि [सन्तानों] वाले (वयम्) हम (हवामहे) बुलाते हैं ॥३॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - जिस राजा के सुप्रबन्ध से प्रजागण ज्ञानवान्, धनवान् और सुशिक्षित सन्तानवाले होवें, उसको मित्र जान कर सदा स्मरण करें ॥३॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ३−(ब्रह्माणः) वेदज्ञातारः (त्वा) त्वाम् (वयम्) प्रजागणः (युजा) सम्पदादिक्विप्। संयोगेन। मित्रभावेन (सोमपाम्) ऐश्वर्यरक्षकम्-दयानन्दभाष्ये, यजु० ८।३४ (इन्द्र) हे परमैश्वर्यवन् राजन् (सोमिनः) ऐश्वर्यवन्तः (सुतवन्तः) सुशिक्षितसन्तानयुक्ताः (हवामहे) आह्वयामः ॥