०६३ आयुर्वर्धनम्

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Whitney subject
  1. To Bṛihaspati: for sundry blessings.
VH anukramaṇī

आयुर्वर्धनम्।
१ ब्रह्मा। ब्रह्मणस्पतिः। विराडुपरिष्टाद्बृहती।

Whitney anukramaṇī

[Brahman (etc., as 61).—virāḍ upariṣṭādbṛhatī.]

Whitney

Comment

Wanting in Pāipp. and in the comm.

Translations

Translated: Griffith, ii. 318.

Griffith

A prayer, with sacrifice, for long life and prosperity

०१ उत्तिष्ठ ब्रह्मणस्पते

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

उत्ति॑ष्ठ ब्रह्मणस्पते दे॒वान्य॒ज्ञेन॑ बोधय।
आयुः॑ प्रा॒णं प्र॒जां प॒शून्की॒र्तिं यज॑मानं च वर्धय ॥

०१ उत्तिष्ठ ब्रह्मणस्पते ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Arise, O Brahmaṇaspati; awaken the gods with the sacrifice; increase
    [his] life-time, breath, progeny, cattle, fame, and the sacrificer
    [himself].
Notes

The mss. vary between paśúm and paśū́n in the second half-verse.
Kīrtím is pretty evidently intruded, spoiling the ⌊otherwise good
anuṣṭubh⌋ meter; the Anukr. reckons it to the fourth pāda. The
paddhati uses the verse (see note to Kāuś. 6. 21) in the course of the
darśapūrṇamāsa ceremony.

Griffith

Rise up, O Brahmanaspati; awake the Gods with sacrifice. Strengthen the Sacrificer: aid life, breath, and off-spring, cattle, fame.

पदपाठः

उत्। ति॒ष्ठ॒। ब्र॒ह्म॒णः॒। प॒ते॒। दे॒वान्। य॒ज्ञेन॑। बो॒ध॒य॒। आयुः॑। प्रा॒णम्। प्र॒ऽजाम्। प॒शून्। की॒र्तिम्। यज॑मानम्। च॒। व॒र्ध॒य॒। ६३.१।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • ब्रह्मणस्पतिः
  • ब्रह्मा
  • विराडुपरिष्टाद्बृहती
  • आयुवर्धन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

विद्वानों के कर्तव्य का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (ब्रह्मणः पते) हे वेद के रक्षक ! [विद्वान् पुरुष] तू (उत् तिष्ठ) उठ और (देवान्) विद्वानों को (यज्ञेन) यज्ञ [श्रेष्ठ व्यवहार] से (बोधय) जगा। (यजमानम्) यजमान [श्रेष्ठकर्म करनेवाले] को (च) और (आयुः) [उसके] जीवन, (प्राणम्) प्राण [आत्मबल], (प्रजाम्) प्रजा, [सन्तान आदि], (पशून्) पशुओं [गौएँ घोड़े आदि] और (कीर्तिम्) कीर्ति को (वर्धय) बढ़ा ॥१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - विद्वान् लोग विद्वानों से मिलकर सब मनुष्यों की सब प्रकार उन्नति का उपाय करते रहें ॥१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १−(उत्तिष्ठ) ऊर्ध्वं गच्छ (ब्रह्मणः) वेदस्य (पते) रक्षक विद्वन् (देवान्) विदुषः पुरुषान् (यज्ञेन) पूजनीयव्यवहारेण (बोधय) सावधानान् कुरु (आयुः) जीवनम् (प्राणम्) आत्मबलम् (प्रजाम्) पुत्रपौत्रभृत्यादिरूपाम् (पशून्) गवाश्वादीन् (कीर्तिम्) यशः (यजमानम्) यज्ञस्यानुष्ठातारम् (च) (वर्धय) समर्धय ॥