०५९ यज्ञः ...{Loading}...
Whitney subject
- For successful sacrifice.
VH anukramaṇī
यज्ञः।
१-३ ब्रह्मा। अग्निः। त्रिष्टुप्, १ गायत्री।
Whitney anukramaṇī
[Brahman.—tṛcam, āgneyam. trāiṣṭubham: 1. gāyatrī.]
Whitney
Comment
Hymns 59-64 are not found in Pāipp. For the practical use of 59 with 52, see under the latter. ⌊Other uses under vs. 3.⌋ Verses 1 and 2, it will be noticed, are put together also in TS., and vs. 3 is not far off ⌊preceding 1 and 2⌋. In MS., on the other hand, vss. 2 and 3 have the same sequence as here; ⌊but in RV. their sequence is inverted⌋. ⌊As for the ritual use, cf. p. 896 and the table.⌋
Translations
Translated: Griffith, ii. 317.
Griffith
An expiatory hymn accompanying sacrifice
०१ त्वमग्ने व्रतपा
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
त्वम॑ग्ने व्रत॒पा अ॑सि दे॒व आ मर्त्ये॒ष्वा।
त्वं य॒ज्ञेष्वीड्यः॑ ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
त्वम॑ग्ने व्रत॒पा अ॑सि दे॒व आ मर्त्ये॒ष्वा।
त्वं य॒ज्ञेष्वीड्यः॑ ॥
०१ त्वमग्ने व्रतपा ...{Loading}...
Whitney
Translation
- Thou, O Agni, art protector of vows among gods (?), among mortals;
thou art to be praised at the sacrifices.
Notes
The verse is RV. viii. 11. 1, and found also in VS. iv. 16; TS. i. 1.
14⁴; 2. 3¹, and MS. i. 2. 3, everywhere without variant, except as the
AV. mss. in general read in b devā́ ā́ m- ⌊three have devā́ ām-⌋;
⌊Whitney’s P. and M. and SPP’s S^(m). and his D^(c)., p.m., have devá ā́
m-;⌋ the pada-mss. give devāḥ (two of SPP’s, after it,
ā॰mártyeṣu). The RV. pada-text has deváḥ; ⌊so also TS.
pada-text: see Weber’s note in his ed., p. 13;⌋ the translation
implies devé, in the sense of devéṣu. The comm. understands devás,
and SPP. also reads it by emendation. ⌊Roth, Ueber gewisse Kürzungen
des Wortendes im Veda, p. 3, treats the RV. verse, with report of the
comm. on RV.VS.TS.: he assumes devé: ā́ as pada-reading and
understands devé as = devéṣu. Cf. daśa (= daśabhis) dvādaśabhir
vā ‘pi, MBh. xii. 307 (or 306). 10 = xii. 11377, as cited by Hopkins,
JAOS. xxiii. 111; cf. also English inside and out (out = outside);
Goethe’s Jeden Nachklang fühlt inein Herz froh- (= froher) und
trüber Zeit; etc.⌋
Griffith
God among mortals, Agni, thou art guard of holy Law, thou art To be adored in sacred rites.
पदपाठः
त्वम्। अ॒ग्ने॒। व्र॒त॒ऽपाः। अ॒सि॒। दे॒वः। आ। मर्त्ये॑षु। आ। त्वम्। य॒ज्ञेषु॑। ईड्यः॑। ५९.१।
अधिमन्त्रम् (VC)
- अग्निः
- ब्रह्मा
- गायत्री
- यज्ञ सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
उत्तम मार्ग पर चलने का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (अग्ने) हे ज्ञानवान् परमेश्वर ! [वा विद्वान् पुरुष] (त्वम्) तू (मर्त्येषु) मनुष्यों के बीच (व्रतपाः) नियम का पालन करनेवाला (आ) और (देवः) व्यवहारकुशल, (त्वम्) तू (यज्ञेषु) यज्ञों [संयोग-वियोग व्यवहारों] में (आ) सब प्रकार (ईड्यः) स्तुति के योग्य (असि) है ॥१॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - जैसे परमात्मा नियमों के पालन से संयोग-वियोग करके अनेक रचनाएँ करता है, वैसे ही मनुष्य उत्तम नियमों पर चलकर योग्य कर्मों के संयोग और कुयोग्यों के वियोग से उत्तम व्यवहार सिद्ध करें ॥१॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: यह मन्त्र ऋग्वेद में है-८।११।१ और यजु० ४।१६ ॥ १−(त्वम्) (अग्ने) हे विद्वन् परमात्मन् मनुष्य वा (व्रतपाः) नियमपालकः (असि) (देवः) व्यवहारकुशलः (आ) चार्थे (मर्त्येषु) मनुष्येषु (आ) समन्तात् (त्वम्) (यज्ञेषु) संयोगवियोगव्यवहारेषु (ईड्यः) स्तुत्यः ॥
०२ यद्वो वयम्
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
यद्वो॑ व॒यं प्र॑मि॒नाम॑ व्र॒तानि॑ वि॒दुषां॑ देवा॒ अवि॑दुष्टरासः।
अ॒ग्निष्टद्वि॒श्वादा पृ॑णातु वि॒द्वान्त्सोम॑स्य॒ यो ब्रा॑ह्म॒णाँ आ॑वि॒वेश॑ ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
यद्वो॑ व॒यं प्र॑मि॒नाम॑ व्र॒तानि॑ वि॒दुषां॑ देवा॒ अवि॑दुष्टरासः।
अ॒ग्निष्टद्वि॒श्वादा पृ॑णातु वि॒द्वान्त्सोम॑स्य॒ यो ब्रा॑ह्म॒णाँ आ॑वि॒वेश॑ ॥
०२ यद्वो वयम् ...{Loading}...
Whitney
Translation
- If we, O gods, detract from (pra-mī) your [ordained] courses—we
that are very unknowing, of you that are knowing—let Agni the
all-devouring fill that up, knowing, and the soma that has entered the
Brahmans.
Notes
The first three pādas are RV. x. 2. 4 a-c, found also in TS. i. 1.
14⁴ and MS. iv. 10. 2. All these read in c víśvam ā́ pṛṇāti; our
viśvā́d (p. viśva॰át) can only be regarded as a corruption; the
translation, however, follows it, as being the real Atharvan reading;
SPP. adopts it in his text, against the comm., who reads and explains
viśvam. The comm. agrees with RV. etc. further in giving pṛṇāti. As
for the last pāda, we had it above as d of xviii. 3. 55; it is also
a RV. phrase, and found elsewhere: see under that verse.
Griffith
When, ignorant, we violate the statutes of you, O Deities, with whom is knowledge, Wise Agni shall correct our faults and failings, and Soma who hath entered into Brahmans.
पदपाठः
यत्। वः॒। व॒यम्। प्र॒ऽमि॒नाम॑। व्र॒तानि॑। वि॒दुषा॑म्। दे॒वाः॒। अवि॑दुःऽतरासः। अ॒ग्निः। तत्। वि॒श्व॒ऽअत्। आ। पृ॒णा॒तु॒। वि॒द्वान्। सोम॑स्य। यः। ब्रा॒ह्म॒णान्। आ॒ऽवि॒वेश॑। ५९.२।
अधिमन्त्रम् (VC)
- अग्निः
- ब्रह्मा
- त्रिष्टुप्
- यज्ञ सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
उत्तम मार्ग पर चलने का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (देवाः) हे विद्वानो ! (यत्) यदि (अविदुष्टरासः) निपट अजान (वयम्) हम (वः विदुषाम्) तुम विद्वानों के (व्रतानि) नियमों को (प्रमिनाम) तोड़ डालें। (विश्वात्) सबका प्रबन्ध करनेवाला (अग्निः) [वह] अग्नि [ज्ञानवान् परमेश्वर] (तत्) उसको (आ पृणातु) पूरा कर देवे, (यः) जिस (सोमस्य) ऐश्वर्य के (विद्वान्) जानकार [परमेश्वर] ने (ब्राह्मणान्) ब्राह्मणों [ब्रह्मज्ञानियों] में (आविवेश) प्रवेश किया है ॥२॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य अज्ञानी होकर दोष करें, वे विद्वानों के सत्सङ्ग से परमात्मा की उपासनापूर्वक अपने दोषों को हटावें ॥२॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: यह मन्त्र कुछ भेद से ऋग्वेद में है-१०।२।४ और चौथा पाद कुछ भेद से आ चुका है-अ० १८।३।५५ ॥ २−(यत्) यदि (वः) युष्माकम् (वयम्) (प्रमिनाम) मीञ् हिंसायाम्-लोट्। मीनातेर्निगमे। पा० ७।३।८१। इति ह्रस्वः। प्रकर्षेण हिनसाम विनाशयाम (व्रतानि) कर्माणि (विदुषाम्) जानताम् (देवाः) हे विद्वांसः (अविदुष्टरासः) अत्यर्थम् अविद्वांसः (अग्निः) ज्ञानवान् परमेश्वरः (तत्) (विश्वात्) अत सातत्यगमने बन्धने च-क्विप्। सर्वप्रबन्धकः (आ) समन्तात् (पृणातु) पूरयतु (विद्वान्) ज्ञानवान् (सोमस्य) ऐश्वर्यस्य (यः) परमेश्वरः (ब्राह्मणान्) ब्रह्मज्ञानिनः पुरुषान् (आविवेश) प्रविष्टवान् ॥
०३ आ देवानामपि
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
आ दे॒वाना॒मपि॒ पन्था॑मगन्म॒ यच्छ॒क्नवा॑म॒ तद॑नु॒प्रवो॑ढुम्।
अ॒ग्निर्वि॒द्वान्त्स य॑जा॒त्स इद्धोता॒ सोऽध्व॒रान्त्स ऋ॒तून्क॑ल्पयाति ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
आ दे॒वाना॒मपि॒ पन्था॑मगन्म॒ यच्छ॒क्नवा॑म॒ तद॑नु॒प्रवो॑ढुम्।
अ॒ग्निर्वि॒द्वान्त्स य॑जा॒त्स इद्धोता॒ सोऽध्व॒रान्त्स ऋ॒तून्क॑ल्पयाति ॥
०३ आ देवानामपि ...{Loading}...
Whitney
Translation
- We have come unto the road of the gods, to convey (vah) along
forward what we may be able; Agni [is] knowing; he shall make
offering; he verily is hótar; he shall arrange the sacrifices
(adhvará), he the seasons.
Notes
The verse is RV. x. 2. 3, and found also in TS. i. 1. 14³, MS. iv. 10.
2, and śB. xii. 4. 4¹. These texts read in c, d sé ’d u hótā só
adhv-, and all save śB. accent ánu in b. The comm’s text also has
the RV. reading se ’d u hotā. The verse, with the Atharvan readings in
c, d, is found in full in Kāuś. 5. 12, in the parvan-ceremonies.
In the same ceremonies it accompanies in Vāit. 3. 5 an offering to Agni
sviṣṭakṛt; and again, in Vāit. 19. 12, an after-offering to various
gods. ⌊As for the critical significance of the citation of the vs. in
sakalapāṭha, see p. 897, ¶3.⌋
Griffith
To the Gods’ pathway have we come desiring to execute what work we may accomplish. Let Agni–for he knows–complete the worship. He is the Priest: let him fix rites and seasons.
पदपाठः
आ। दे॒वाना॑म्। अपि॑। पन्था॑म्। अ॒ग॒न्म॒। यत्। श॒क्नवा॑म। तत्। अ॒नु॒ऽप्रवो॑ढुम्। अ॒ग्निः। वि॒द्वान्। सः। य॒जा॒त्। सः। इत्। होता॑। सः। अ॒ध्व॒रान्। सः। ऋ॒तून्। क॒ल्प॒या॒ति॒। ५९.३।
अधिमन्त्रम् (VC)
- अग्निः
- ब्रह्मा
- त्रिष्टुप्
- यज्ञ सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
उत्तम मार्ग पर चलने का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (देवानाम्) विद्वानों के (अपि) ही (पन्थाम्) मार्ग को (आ) सब ओर से (अगन्म) हम प्राप्त हुए हैं (तत्) उस [श्रेष्ठ कर्म] को (अनुप्रवोढुम्) लगातार ले चलने के लिये (यत्) जो कुछ (शक्नवाम) समर्थ होवें। (सः) वह (विद्वान्) विद्वान् (अग्निः) अग्नि [ज्ञानी परमात्मा] (यजात्) [बल] देवे, (सः इत्) वह ही (होता) दाता है, (सः) वह (अध्वरान्) हिंसारहित व्यवहारों को, (सः) वही (ऋतून्) ऋतुओं [अनुकूल समयों] को (कल्पयाति) समर्थ करें ॥३॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मनुष्य विद्वानों के परीक्षित वैदिक मार्ग पर चलें। और सबको चलावें ॥३॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: यह मन्त्र कुछ भेद से ऋग्वेद में है-१०।२।३ ॥ ३−(आ) समन्तात् (देवानाम्) विदुषाम् (अपि) एव (पन्थाम्) पन्थानम् (अगन्म) वयं प्राप्तवन्तः (यत्) कर्म कर्तुम् (शक्नवाम) शक्नुयाम। समर्थो भवेम (तत्) श्रेष्ठं कर्म (अनुप्रवोढुम्) निरन्तरं प्रापयितुम् (अग्निः) ज्ञानवान् परमेश्वरः (विद्वान्) (सः) प्रसिद्धः (यजात्) लेटि रूपम्। यजेत् दद्यात् बलम् (सः) परमेश्वरः (इत्) एव (होता) दाता (अध्वरान्) हिंसारहितान् यज्ञान् (सः) (ऋतून्) अनुकूलकालान् (कल्पयाति) समर्थयेत् ॥