०४३ ब्रह्मा ...{Loading}...
Whitney subject
- To various gods: for attaining heaven.
VH anukramaṇī
ब्रह्मा।
१-८ ब्रह्मा। ब्रह्म, बहुदैवत्यम्। त्र्यवसाना शङ्कुमती पथ्यापङ्क्तिः।
Whitney anukramaṇī
[Brahman.—aṣṭāu. bahudevatyam uta brahmadevatyam. 1-8. 3-av. śan̄kumatī pathyāpan̄kti.]
Whitney
Comment
Not found in Pāipp. No viniyoga.
Translations
Translated: Griffith, ii. 299.
Griffith
In praise of Brahma, Prayer, or Devotion
०१ यत्र ब्रह्मविदो
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
यत्र॑ ब्रह्म॒विदो॒ यान्ति॑ दी॒क्षया॒ तप॑सा स॒ह।
अ॒ग्निर्मा॒ तत्र॑ नयत्व॒ग्निर्मे॒धा द॑धातु मे।
अ॒ग्नये॒ स्वाहा॑ ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
यत्र॑ ब्रह्म॒विदो॒ यान्ति॑ दी॒क्षया॒ तप॑सा स॒ह।
अ॒ग्निर्मा॒ तत्र॑ नयत्व॒ग्निर्मे॒धा द॑धातु मे।
अ॒ग्नये॒ स्वाहा॑ ॥
०१ यत्र ब्रह्मविदो ...{Loading}...
Whitney
Translation
- Whither the brahman-knowers go, along with consecration, with
ardor—thither let Agni conduct me; let Agni impart (dhā) to me wisdom:
to Agni hail!
Notes
SPP. strangely prefers to read medhā́ da- in d, with a mere
majority of his authorities, but with the comm. ⌊who gives medhās⌋;
our mss. also are divided between -dhā́ and -dhā́ṁ. In the
pada-text, SPP. emends to -dhā́ḥ; the pada-mss. have -dhā́ or
-dhā́m.
Griffith
Whither men versed in Brahma go, with fervour and the cleans- ing rite, Thither let Agni lead me, let Agni give me intelligence, All hail to Agni!
पदपाठः
यत्र॑। ब्र॒ह्म॒ऽविदः॑। यान्ति॑। दी॒क्षया॑। तप॑सा। स॒ह। अ॒ग्निः। मा॒। तत्र॑। न॒य॒तु॒। अ॒ग्निः। मे॒धाः। द॒धा॒तु॒। मे॒। अ॒ग्नये॑। स्वाहा॑। ४३.१।
अधिमन्त्रम् (VC)
- मन्त्रोक्ताः, ब्रह्म
- ब्रह्मा
- त्र्यवसाना शङ्कुमती पथ्यापङ्क्तिः
- ब्रह्मा सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
ब्रह्म की प्राप्ति का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (यत्र) जहाँ [सुख में] (ब्रह्मविदः) ब्रह्मज्ञानी [ईश्वर वा वेद के जाननेवाले लोग] (दीक्षया) दीक्षा [नियम और व्रत की शिक्षा] और (तपसा सह) तप [वेदाध्ययन, जितेन्द्रियता] के साथ (यान्ति) पहुँचते हैं। (अग्निः) अग्नि [अग्निसमान सर्वव्यापक परमात्मा] (मा) मुझे (तत्र) वहाँ [सुख में] (नयतु) पहुँचावे, (अग्निः) अग्नि [व्यापक परमात्मा] (मेधाः) धारणावती बुद्धियाँ (मे) मुझको (दधातु) देवे। (अग्नये) अग्नि [परमात्मा] के लिये (स्वाहा) [सुन्दर वाणी] होवे ॥१॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मनुष्य योगी महात्माओं के समान दीक्षा और ब्रह्मचर्य आदि व्रत से परमेश्वर और शारीरिक और आत्मिक बल में दृढ़ रहकर अनेक प्रकार बुद्धियों को बढ़ाते हुए सुख प्राप्त करें ॥१॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: यह सूक्त कुछ भेद से महर्षिदयानन्दकृत संस्कारविधि संन्यासाश्रमप्रकरण में उद्धृत है ॥१−(यत्र) यस्मिन् सुखे (ब्रह्मविदः) ईश्वरस्य वेदस्य वा वेत्तारः (यान्ति) गच्छन्ति (दीक्षया) नियमव्रतया शिक्षया (तपसा) ब्रह्मचर्यादितपश्चरणेन (सह) (अग्निः) अग्निवत् सर्वव्यापकः परमात्मा (मा) माम् (तत्र) सुखे (नयतु) प्रापयतु (अग्निः) व्यापकः परमेश्वरः (मेधाः) धारणावतीर्बुद्धीः (दधातु) ददातु (मे) मह्यम् (अग्नये) परमात्मने (स्वाहा) सुवाणी ॥
०२ यत्र ब्रह्मविदो
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
यत्र॑ ब्रह्म॒विदो॒ यान्ति॑ दी॒क्षया॒ तप॑सा स॒ह।
वा॒युर्मा॒ तत्र॑ नयतु वा॒युः प्र॒णान्द॑धातु मे।
वा॒यवे॒ स्वाहा॑ ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
यत्र॑ ब्रह्म॒विदो॒ यान्ति॑ दी॒क्षया॒ तप॑सा स॒ह।
वा॒युर्मा॒ तत्र॑ नयतु वा॒युः प्र॒णान्द॑धातु मे।
वा॒यवे॒ स्वाहा॑ ॥
०२ यत्र ब्रह्मविदो ...{Loading}...
Whitney
Translation
- Whither the etc. etc.—thither let Vāyu conduct me; let Vāyu impart to
me breaths: to Vāyu hail!
Notes
Griffith
Whither etc. Thither let Vayu lead me, let Vayu vouchsafe me vital breath. All hail to Vayu!
पदपाठः
यत्र॑। ब्र॒ह्म॒ऽविदः॑। यान्ति॑। दी॒क्षया॑। तप॑सा। स॒ह। वा॒युः। मा॒। तत्र॑। न॒य॒तु॒। वा॒युः। प्रा॒णान्। द॒धा॒तु॒। मे॒। वा॒यवे॑। स्वाहा॑। ४३.२।
अधिमन्त्रम् (VC)
- मन्त्रोक्ताः, ब्रह्म
- ब्रह्मा
- त्र्यवसाना शङ्कुमती पथ्यापङ्क्तिः
- ब्रह्मा सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
ब्रह्म की प्राप्ति का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (यत्र) जिस [सुख] में (ब्रह्मविदः) ब्रह्मज्ञानी…….. [मन्त्र १]। (वायुः) वायु [पवन के समान शीघ्रगामी परमात्मा] (मा) मुझको (तत्र) वहाँ (नयतु) पहुँचावे, (वायुः) वायु [परमात्मा] (मे) मुझे (प्राणान्) प्राणों को (दधातु) देवे, (वायवे) वायु [परमात्मा] के लिये (स्वाहा) स्वाहा [सुन्दर वाणी] होवे ॥२॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मन्त्र १ के समान है ॥२॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: २−(वायुः) वायुसमानशीघ्रगामी परमात्मा (वायुः) (प्राणान्) जीवनसाधनानि (दधातु) ददातु (मे) मह्यम् (वायवे) शीघ्रगामिने परमात्मने (स्वाहा) सुवाणी। अन्यत् पूर्ववत् ॥
०३ यत्र ब्रह्मविदो
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
यत्र॑ ब्रह्म॒विदो॒ यान्ति॑ दी॒क्षया॒ तप॑सा स॒ह।
सूर्यो॑ मा॒ तत्र॑ नयतु॒ चक्षुः॒ सूर्यो॑ दधातु मे।
सूर्या॑य॒ स्वाहा॑ ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
यत्र॑ ब्रह्म॒विदो॒ यान्ति॑ दी॒क्षया॒ तप॑सा स॒ह।
सूर्यो॑ मा॒ तत्र॑ नयतु॒ चक्षुः॒ सूर्यो॑ दधातु मे।
सूर्या॑य॒ स्वाहा॑ ॥
०३ यत्र ब्रह्मविदो ...{Loading}...
Whitney
Translation
- Whither the etc. etc.—thither let the sun conduct me; let the sun
impart to me sight: to the sun hail!
Notes
Griffith
Whither, etc. Thither let Surya lead me, let Surya vouchsafe me power of sight. All hail to Surya
पदपाठः
यत्र॑। ब्र॒ह्म॒ऽविदः॑। यान्ति॑। दी॒क्षया॑। तप॑सा। स॒ह। सूर्यः॑। मा॒। तत्र॑। न॒य॒तु॒। चक्षुः॑। सूर्यः॑। द॒धा॒तु॒। मे॒। सूर्या॑य। स्वाहा॑। ४३.३।
अधिमन्त्रम् (VC)
- मन्त्रोक्ताः, ब्रह्म
- ब्रह्मा
- त्र्यवसाना शङ्कुमती पथ्यापङ्क्तिः
- ब्रह्मा सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
ब्रह्म की प्राप्ति का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (यत्र) जिस [सुख] में (ब्रह्मविदः) ब्रह्मज्ञानी….. [मन्त्र १]। (सूर्यः) सूर्य [सूर्य के समान प्रकाशमान परमात्मा] (मा) मुझे (तत्र) वहाँ (नयतु) पहुँचावे, (सूर्यः) सूर्य [परमात्मा] (मा) मुझको (चक्षुः) दर्शनसामर्थ्य (दधातु) देवे (सूर्याय) सूर्य [परमात्मा] के लिये (स्वाहा) स्वाहा [सुन्दर वाणी] होवे ॥३॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मन्त्र १ के समान ॥३॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ३−(सूर्यः) सूर्यवत्प्रकाशमानः परमात्मा (चक्षुः) दर्शनसामर्थ्यम् (सूर्यः) (सूर्याय) प्रकाशमानाय परमात्मने। अन्यत् पूर्ववत् ॥
०४ यत्र ब्रह्मविदो
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
यत्र॑ ब्रह्म॒विदो॒ यान्ति॑ दी॒क्षया॒ तप॑सा स॒ह।
च॒न्द्रो मा॒ तत्र॑ नयतु॒ मन॑श्च॒न्द्रो द॑धातु मे।
च॒न्द्राय॒ स्वाहा॑ ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
यत्र॑ ब्रह्म॒विदो॒ यान्ति॑ दी॒क्षया॒ तप॑सा स॒ह।
च॒न्द्रो मा॒ तत्र॑ नयतु॒ मन॑श्च॒न्द्रो द॑धातु मे।
च॒न्द्राय॒ स्वाहा॑ ॥
०४ यत्र ब्रह्मविदो ...{Loading}...
Whitney
Translation
- Whither the etc. etc.—thither let the moon (candrá) conduct me;
let the moon impart to me mind: to the moon hail!
Notes
Griffith
Whither, etc. Thither let Chandra lead me, let Chandra vouchsafe me intellect. All hail to Chandra!
पदपाठः
यत्र॑। ब्र॒ह्म॒ऽविदः॑। यान्ति॑। दी॒क्षया॑। तप॑सा। स॒ह। च॒न्द्रः। मा॒। तत्र॑। न॒य॒तु॒। मनः॑। च॒न्द्रः। द॒धा॒तु॒। मे॒। च॒न्द्राय॑। स्वाहा॑। ४३.४।
अधिमन्त्रम् (VC)
- मन्त्रोक्ताः, ब्रह्म
- ब्रह्मा
- त्र्यवसाना शङ्कुमती पथ्यापङ्क्तिः
- ब्रह्मा सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
ब्रह्म की प्राप्ति का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (यत्र) जिस [सुख] में (ब्रह्मविदः) ब्रह्मज्ञानी……. [मन्त्र १]। (चन्द्रः) चन्द्र [चन्द्रसमान आनन्द देनेवाला परमात्मा] (मा) मुझे (तत्र) वहाँ (नयतु) पहुँचावे, (चन्द्रः) चन्द्र [परमात्मा] (मे) मुझको (मनः) मननसामर्थ्य (दधातु) देवे। (चन्द्राय) चन्द्र [परमात्मा] के लिये (स्वाहा) स्वाहा [सुन्दर वाणी] होवे ॥४॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मन्त्र १ के समान है ॥४॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ४−(चन्द्रः) चन्द्र इवाह्लादकः परमात्मा (मनः) मननसामर्थ्यम् (चन्द्रः) (चन्द्राय) आह्लादकाय परमात्मने। अन्यत् पूर्ववत् ॥
०५ यत्र ब्रह्मविदो
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
यत्र॑ ब्रह्म॒विदो॒ यान्ति॑ दी॒क्षया॒ तप॑सा स॒ह।
सोमो॑ मा॒ तत्र॑ नयतु॒ पयः॒ सोमो॑ दधातु मे।
सोमा॑य॒ स्वाहा॑ ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
यत्र॑ ब्रह्म॒विदो॒ यान्ति॑ दी॒क्षया॒ तप॑सा स॒ह।
सोमो॑ मा॒ तत्र॑ नयतु॒ पयः॒ सोमो॑ दधातु मे।
सोमा॑य॒ स्वाहा॑ ॥
०५ यत्र ब्रह्मविदो ...{Loading}...
Whitney
Translation
- Whither the etc. etc.—thither let Soma conduct me; let Soma impart
to me milk: to Soma hail!
Notes
The comm. has a lacuna including all the explanations of verse 4, and
part of the text of verse 4 and of this.
Griffith
Whither, etc. Thither let Soma lead me, let Soma vouchsafe me vital sap. All hail to Soma!
पदपाठः
यत्र॑। ब्र॒ह्म॒ऽविदः॑। यान्ति॑। दी॒क्षया॑। तप॑सा। स॒ह। सोमः॑। मा॒। तत्र॑। न॒य॒तु॒। पयः॑। सोमः॑। द॒धा॒तु॒। मे॒। सोमा॑य। स्वाहा॑। ४३.५।
अधिमन्त्रम् (VC)
- मन्त्रोक्ताः, ब्रह्म
- ब्रह्मा
- त्र्यवसाना शङ्कुमती पथ्यापङ्क्तिः
- ब्रह्मा सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
ब्रह्म की प्राप्ति का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (यत्र) जिस [सुख] में (ब्रह्मविदः) ब्रह्मज्ञानी………. [मन्त्र १]। (सोमः) सोम [सर्वोत्पादक परमेश्वर] (मा) मुझे (तत्र) वहाँ (नयतु) पहुँचावे, (सोमः) सोम [परमात्मा] (मे) मुझको (पयः) अन्न (दधातु) देवे। (सोमाय) सोम [परमात्मा] के लिये (स्वाहा) स्वाहा [सुन्दर वाणी] ॥५॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मन्त्र १ के समान है ॥५॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ५−(सोमः) सर्वोत्पादकः परमात्मा (पयः) अन्नम्-निघ०२।७। (सोमः) (सोमाय) परमात्मने। अन्यत् पूर्ववत् ॥
०६ यत्र ब्रह्मविदो
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
यत्र॑ ब्रह्म॒विदो॑ यान्ति दी॒क्षया॒ तप॑सा स॒ह।
इन्द्रो॑ मा॒ तत्र॑ नयतु॒ बल॒मिन्द्रो॑ दधातु मे।
इन्द्रा॑य॒ स्वाहा॑ ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
यत्र॑ ब्रह्म॒विदो॑ यान्ति दी॒क्षया॒ तप॑सा स॒ह।
इन्द्रो॑ मा॒ तत्र॑ नयतु॒ बल॒मिन्द्रो॑ दधातु मे।
इन्द्रा॑य॒ स्वाहा॑ ॥
०६ यत्र ब्रह्मविदो ...{Loading}...
Whitney
Translation
- Whither the etc. etc.—thither let Indra conduct me; let Indra impart
to me strength: to Indra hail!
Notes
Griffith
Whither, etc. Thither let Indra lead me, let Indra bestow upon me power. All hail to Indra!
पदपाठः
यत्र॑। ब्र॒ह्म॒ऽविदः॑। यान्ति॑। दी॒क्षया॑। तप॑सा। स॒ह। इन्द्रः॑। मा॒। तत्र॑। न॒य॒तु॒। बल॑म्। इन्द्रः॑। द॒धा॒तु॒। मे॒। इन्द्रा॑य। स्वाहा॑। ४३.६।
अधिमन्त्रम् (VC)
- मन्त्रोक्ताः, ब्रह्म
- ब्रह्मा
- त्र्यवसाना शङ्कुमती पथ्यापङ्क्तिः
- ब्रह्मा सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
ब्रह्म की प्राप्ति का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (यत्न) जिस [सुख] में (ब्रह्मविदः) ब्रह्मज्ञानी……. [मन्त्र १]। (इन्द्रः) इन्द्र [परम ऐश्वर्यवान् परमात्मा] (मा) मुझे (तत्र) वहाँ (नयतु) पहुँचावे, (इन्द्रः) इन्द्र [परमात्मा] (मे) मुझको (बलम्) बल (दधातु) देवे। (इन्द्राय) इन्द्र [परमात्मा] के लिये (स्वाहा) स्वाहा [सुन्दर वाणी] होवे ॥६॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मन्त्र १ के समान है ॥६॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ६−(इन्द्रः) परमैश्वर्यवान् परमात्मा (बलम्) सामर्थ्यम् (इन्द्रः) (इन्द्राय) परमैश्वरवते परमेश्वराय। अन्यत् पूर्ववत् ॥
०७ यत्र ब्रह्मविदो
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
यत्र॑ ब्रह्म॒विदो॒ यान्ति॑ दी॒क्षया॒ तप॑सा स॒ह।
आपो॑ मा॒ तत्र॑ नयत्व॒मृतं॒ मोप॑ तिष्ठतु।
अ॒द्भ्यः स्वाहा॑ ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
यत्र॑ ब्रह्म॒विदो॒ यान्ति॑ दी॒क्षया॒ तप॑सा स॒ह।
आपो॑ मा॒ तत्र॑ नयत्व॒मृतं॒ मोप॑ तिष्ठतु।
अ॒द्भ्यः स्वाहा॑ ॥
०७ यत्र ब्रह्मविदो ...{Loading}...
Whitney
Translation
- Whither the etc. etc.—thither let the waters conduct me; let
immortality (amṛ́ta) approach (upa-sthā) me: to the waters hail!
Notes
Our nayantu in c is the obviously necessary emendation of nayatu
of all the mss., which SPP., after his manner, retains. The comm. does
not have occasion to quote the word; but his text also, according to
SPP., reads nayatu. ⌊The faulty assimilation of the original nayantu
to the nayatu which obtains throughout all the other verses of the
sequence, is precisely paralleled by the gachati (so all authorities)
after ā́pas at xv. 7. 3.⌋
Griffith
Whither, etc. Thither, let Waters lead me, let the Waters give me deathless life. All hail to Waters!
पदपाठः
यत्र॑। ब्र॒ह्म॒ऽविदः॑। यान्ति॑। दी॒क्षया॑। तप॑सा। स॒ह। आपः॑। मा॒। तत्र॑। न॒य॒तु॒। अ॒मृत॑म्। मा॒। उप॑। ति॒ष्ठ॒तु॒। अ॒त्ऽभ्यः। स्वाहा॑। ४३.७।
अधिमन्त्रम् (VC)
- मन्त्रोक्ताः, ब्रह्म
- ब्रह्मा
- त्र्यवसाना शङ्कुमती पथ्यापङ्क्तिः
- ब्रह्मा सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
ब्रह्म की प्राप्ति का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (यत्र) जिस [सुख] में (ब्रह्मविदः) ब्रह्मज्ञानी…… [मन्त्र १]। (आपः) आप [जल के समान व्यापक परमात्मा] (मा) मुझे (तत्र) वहाँ (नयतु=नयन्तु) पहुँचावे, (अमृतम्) अमृत [अमरपन, दुःखरहित सुख] (मा) मुझको (उप तिष्ठतु) प्राप्त होवे। (अद्भ्यः) आप [व्यापक परमात्मा] के लिये (स्वाहा) स्वाहा [सुन्दर वाणी] होवे ॥७॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मन्त्र १ के समान है ॥७॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ७−(आपः) जलानीव व्यापकः परमात्मा (नयतु) नयन्तु (अमृतम्) अमरणम्। दुःखरहितं सुखम् (मा) माम् (उपतिष्ठतु) प्राप्नोतु (अद्भ्यः) सर्वव्यापकाय परमेश्वराय। अन्यत् पूर्ववत् ॥
०८ यत्र ब्रह्मविदो
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
यत्र॑ ब्रह्म॒विदो॒ यान्ति॑ दी॒क्षया॒ तप॑सा स॒ह।
ब्र॒ह्मा मा॒ तत्र॑ नयतु ब्र॒ह्मा ब्रह्म॑ दधातु मे।
ब्र॒ह्मणे॒ स्वाहा॑ ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
यत्र॑ ब्रह्म॒विदो॒ यान्ति॑ दी॒क्षया॒ तप॑सा स॒ह।
ब्र॒ह्मा मा॒ तत्र॑ नयतु ब्र॒ह्मा ब्रह्म॑ दधातु मे।
ब्र॒ह्मणे॒ स्वाहा॑ ॥
०८ यत्र ब्रह्मविदो ...{Loading}...
Whitney
Translation
- Whither the etc. etc.—thither let Brahmán conduct me; let Brahmán
impart to me bráhman: to Brahmán hail!
Notes
The comm. explains brahmán by jagatsraṣṭā hiraṇyagarbhaḥ, and
bráhman by svasvarūpabhūtaṁ śrutādhyayanajanyaṁ tejo vā.
Griffith
Whither, etc. Thither let Brahma lead me, let Brahma give Brahma unto me. All hail to Brahma!
पदपाठः
यत्र॑। ब्र॒ह्म॒ऽविदः॑। यान्ति॑। दी॒क्षया॑। तप॑सा। स॒ह। ब्र॒ह्मा। मा॒। तत्र॑। न॒य॒तु॒। ब्र॒ह्मा। ब्रह्म॑। द॒धा॒तु॒। मे॒। ब्र॒ह्मणे॑। स्वाहा॑। ४३.८।
अधिमन्त्रम् (VC)
- मन्त्रोक्ताः, ब्रह्म
- ब्रह्मा
- त्र्यवसाना शङ्कुमती पथ्यापङ्क्तिः
- ब्रह्मा सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
ब्रह्म की प्राप्ति का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (यत्र) जिस [सुख] में (ब्रह्मविदः) ब्रह्मज्ञानी [ईश्वर वा वेद के जाननेवाले लोग] (दीक्षया) दीक्षा [नियम और व्रत की शिक्षा] और (तपसा सह) तप [वेदाध्ययन, जितेन्द्रियता] के साथ (यान्ति) पहुँचते हैं। (ब्रह्मा) ब्रह्मा [सबसे बड़ा जगत्स्रष्टा परमात्मा] (मा) मुझे (तत्र) वहाँ (नयतु) पहुँचावे, (ब्रह्मा) ब्रह्म। [परमात्मा] (मे) मुझको (ब्रह्म) वेदज्ञान (दधातु) देवे। (ब्रह्मणे) ब्रह्म [परमात्मा] के लिये (स्वाहा) स्वाहा [सुन्दर वाणी] होवे ॥८॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य ब्रह्मज्ञानियों के समान दीक्षा और तप के साथ परमात्मा की प्राप्ति का उपाय करते हैं, वे ही ब्रह्मानन्द भोगते हैं ॥८॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ८−(ब्रह्मा) सर्ववृद्धः। जगत्स्रष्टा परमेश्वरः (ब्रह्मा) (ब्रह्म) वेदज्ञानम् (ब्रह्मणे) जगदुत्पादकाय परमेश्वराय। अन्यत् पूर्ववत् ॥