०२३ अथर्वाणः ...{Loading}...
Whitney subject
- Homage to parts of the Atharva-Veda.
VH anukramaṇī
अथर्वाणः।
१-३० अथर्वा। चन्द्रमाः, मन्त्रोक्ताश्च। १ आसरी गायत्री, २-७, २०, २३, २७ दैवी त्रिष्टुप्, ८, १०-१२, १४-१६ प्राजापत्या गायत्री,
१७, १९, २१, २४-२५, २९ दैवी पङ्क्तिः, ९, १३, १८, २२, २६, २८ दैवी जगती, (१-२९ एकावसानाः)।
Whitney anukramaṇī
[Atharvan.—triṅśat mantroktadevatyam uta cāndramasam. 1. āsurī bṛhatī; 2-7, 20, 23, 27. dāivī triṣṭubh; 8, 10-12, 14-16. prājāpatyā gāyatrī; 17, 19, 21, 24, 25, 29. dāivī pan̄kti; 9, 13, 18, 22, 26, 28. dāivī jagatī; (1-29. 1-av.).]
Whitney
Comment
All the saṁhitā-mss. read ṣaḍarc-, and two of SW’s pada-mss. ṣaḍá॰ṛc-; both editions ṣaḍṛc-, with the comm. and three pada-mss. The Gop.Br. has ṣaḍarc- in i. 1. 5.
Griffith
A prose hymn of homage to various portions of the Atharva-vada classed according to the number of verses which their hymns contain
०१ आथर्वणाना चतुरृचेभ्यः
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आ॑थर्व॒णाना॑ चतुरृ॒चेभ्यः॒ स्वाहा॑ ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
आ॑थर्व॒णाना॑ चतुरृ॒चेभ्यः॒ स्वाहा॑ ॥
०१ आथर्वणाना चतुरृचेभ्यः ...{Loading}...
Whitney
Translation
- To them of four verses of the Ātharvaṇas, hail!
Notes
Griffith
Hail to the four-verse strophes of the Atharvanas!
पदपाठः
आ॒थ॒र्व॒णाना॑म्। च॒तुः॒ऽऋ॒चेभ्यः॑। स्वाहा॑। २३.१।
अधिमन्त्रम् (VC)
- मन्त्रोक्ताः
- अथर्वा
- आसुरी बृहती
- अथर्वाण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
ब्रह्मविद्या का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (आथर्वणानाम्) अथर्वा [निश्चल ब्रह्म] के बताये ज्ञानों के (चतुर्ऋचेभ्यः) चार [धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष] की स्तुतियोग्य विद्यावाले [वेदों] के लिये (स्वाहा) स्वाहा [सुन्दर वाणी] हो ॥१॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मनुष्यों को परमेश्वरोक्त ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद द्वारा श्रेष्ठ विद्याएँ प्राप्त करके इस जन्म और पर जन्म का सुख भोगना चाहिये ॥१॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: यही भावार्थ आगे मन्त्र २९ तक समझें औरनिश्चल ब्रह्म के बताये ज्ञानों के-इन पदों की अनुवृत्ति जानें ॥१−(आथर्वणानाम्) अथर्वन्-अण्। अथर्वणा निश्चलब्रह्मणा प्रोक्तानां ज्ञानानाम् (चतुर्ऋचेभ्यः) ऋक्पूरब्धूःपथामानक्षे। पा०५।४।७४। इति चतुर्+ऋच्-अप्रत्ययः समासान्तः। ऋच स्तुतौ-क्विप्। ऋग्वाङ्नाम-निघ०१।११। चतुर्णां धर्मार्थकाममोक्षाणाम् ऋक्स्तुत्या विद्या येषु वेदेषु तेभ्यः (स्वाहा) अ०१९।१७।१। सुवाणी ॥
०२ पञ्चर्चेभ्यः स्वाहा
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प॑ञ्च॒र्चेभ्यः॒ स्वाहा॑ ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
प॑ञ्च॒र्चेभ्यः॒ स्वाहा॑ ॥
०२ पञ्चर्चेभ्यः स्वाहा ...{Loading}...
Whitney
Translation
- To them of five verses, hail!
Notes
Griffith
Hail to the five-versed!
पदपाठः
प॒ञ्च॒ऽऋ॒चेभ्यः॑। स्वाहा॑। २३.२।
अधिमन्त्रम् (VC)
- मन्त्रोक्ताः
- अथर्वा
- दैवी त्रिष्टुप्
- अथर्वाण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
ब्रह्मविद्या का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (पञ्चर्चेभ्यः) पाँच [पृथिवी, जल, तेज, वायु, आकाश पाँच तत्त्वों] की स्तुतियोग्य विद्यावाले [वेदों] के लिये (स्वाहा) स्वाहा [सुन्दर वाणी] हो ॥२॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मनुष्यों को परमेश्वरोक्त ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद द्वारा श्रेष्ठ विद्याएँ प्राप्त करके इस जन्म और पर जन्म का सुख भोगना चाहिये ॥२॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: २−(पञ्चर्चेभ्यः) म०१। पञ्चानां पृथिव्यप्तेजोवाय्वाकाशानां स्तुत्या विद्या येषु वेदेषु तेभ्यः ॥
०३ षळृचेभ्यः स्वाहा
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ष॑डृ॒चेभ्यः॒ स्वाहा॑ ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VH)
ष॒ळृ॒चेभ्यः॒ स्वाहा॑ ॥३॥
मूलम् (VS)
ष॑डृ॒चेभ्यः॒ स्वाहा॑ ॥
०३ षळृचेभ्यः स्वाहा ...{Loading}...
Whitney
Translation
- To them of six verses, hail!
Notes
All the saṁhitā-mss. read ṣaḍarc-, and two of SW’s pada-mss.
ṣaḍá॰ṛc-; both editions ṣaḍṛc-, with the comm. and three pada-mss.
The Gop.Br. has ṣaḍarc- in i. 1. 5.
Griffith
Hail to the six-versed!
पदपाठः
ष॒ट्ऽऋ॒चेभ्यः॑। स्वाहा॑ । २३.३।
अधिमन्त्रम् (VC)
- मन्त्रोक्ताः
- अथर्वा
- दैवी त्रिष्टुप्
- अथर्वाण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
ब्रह्मविद्या का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (षडृचेभ्यः) छह [वसन्त, ग्रीष्म, वर्षा, शरद्, हेमन्त, शिशिर, छह ऋतुओं] की स्तुतियोग्य विद्यावाले [वेदों] के लिये (स्वाहा) स्वाहा [सुन्दर वाणी] हो ॥३॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मनुष्यों को परमेश्वरोक्त ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद द्वारा श्रेष्ठ विद्याएँ प्राप्त करके इस जन्म और पर जन्म का सुख भोगना चाहिये ॥३॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ३−(षडृचेभ्यः) म०१०। षण्णां वसन्तादिषड्ऋतूनां स्तुत्या विद्या येषु वेदेषु तेभ्यः। वसन्त इन्नु रन्त्यो ग्रीष्म इन्नु रन्त्यः। वर्षाण्यनु शरदो हेमन्तः शिशिर इन्नु रन्त्यः। साम० पू०६।१३।२। इति षड् ऋतवः ॥
०४ सप्तर्चेभ्यः स्वाहा
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स॑प्त॒र्चेभ्यः॒ स्वाहा॑ ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
स॑प्त॒र्चेभ्यः॒ स्वाहा॑ ॥
०४ सप्तर्चेभ्यः स्वाहा ...{Loading}...
Whitney
Translation
- To them of seven verses, hail!
Notes
Griffith
Hail to the seven-versed!
पदपाठः
सप्तऽऋचेभ्यः। स्वाहा। २३.४।
अधिमन्त्रम् (VC)
- मन्त्रोक्ताः
- अथर्वा
- दैवी त्रिष्टुप्
- अथर्वाण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
ब्रह्मविद्या का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (सप्तर्चेभ्यः) सात [दो कान, दो नथने, दो आँखें और एक मुख-अथर्व०१०।२।६ इनकी] स्तुतियोग्य विद्यावाले [वेदों] के लिये (स्वाहा) स्वाहा [सुन्दर वाणी] हो ॥४॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मनुष्यों को परमेश्वरोक्त ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद द्वारा श्रेष्ठ विद्याएँ प्राप्त करके इस जन्म और पर जन्म का सुख भोगना चाहिये ॥४॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ४−(सप्तर्चेभ्यः) म०१। कः सप्त खानि वि ततर्द शीर्षणि कर्णाविमौ नासिके चक्षणी मुखम्-अथर्व०१०।२।६। इत्येतेषां स्तुत्या विद्या येषु वेदेषु तेभ्यः ॥
०५ अष्टर्चेभ्यः स्वाहा
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अ॑ष्ट॒र्चेभ्यः॒ स्वाहा॑ ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
अ॑ष्ट॒र्चेभ्यः॒ स्वाहा॑ ॥
०५ अष्टर्चेभ्यः स्वाहा ...{Loading}...
Whitney
Translation
- To them of eight verses, hail!
Notes
Griffith
Hail to the eight-versed!
पदपाठः
अ॒ष्ट॒ऽऋ॒चेभ्यः॑। स्वाहा॑। २३.५।
अधिमन्त्रम् (VC)
- मन्त्रोक्ताः
- अथर्वा
- दैवी त्रिष्टुप्
- अथर्वाण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
ब्रह्मविद्या का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (अष्टर्चेभ्यः) आठ [यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान समाधि, आठ योग के अङ्गों] की स्तुतियोग्य विद्यावाले [वेदों] के लिये (स्वाहा) स्वाहा [सुन्दर वाणी] हो ॥५॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मनुष्यों को परमेश्वरोक्त ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद द्वारा श्रेष्ठ विद्याएँ प्राप्त करके इस जन्म और पर जन्म का सुख भोगना चाहिये ॥५॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ५−(अष्टर्चेभ्यः) म०१। अष्टानां यमनियमादीनां स्तुत्या विद्या येषु वेदेषु तेभ्यः। यमनियमासनप्राणायामप्रत्याहारधारणाध्यानसमाधयोऽष्टावङ्गानि। पातञ्जलयोगदर्शने, २।२९॥
०६ नवर्चेभ्यः स्वाहा
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न॑व॒र्चेभ्यः॒ स्वाहा॑ ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
न॑व॒र्चेभ्यः॒ स्वाहा॑ ॥
०६ नवर्चेभ्यः स्वाहा ...{Loading}...
Whitney
Translation
- To them of nine verses, hail!
Notes
Griffith
Hail to the nine-versed!
पदपाठः
न॒व॒ऽऋ॒चेभ्यः॑। स्वाहा॑। २३.६।
अधिमन्त्रम् (VC)
- मन्त्रोक्ताः
- अथर्वा
- दैवी त्रिष्टुप्
- अथर्वाण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
ब्रह्मविद्या का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (नवर्चेभ्यः) नव [दो कान, दो आँख, दो नथने, एक मुख, एक पायु, एक उपस्थ, नवद्वारपुर शरीर] की स्तुतियोग्य विद्यावाले [वेदों] के लिये [स्वाहा] स्वाहा [सुन्दर वाणी] हो ॥६॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मनुष्यों को परमेश्वरोक्त ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद द्वारा श्रेष्ठ विद्याएँ प्राप्त करके इस जन्म और पर जन्म का सुख भोगना चाहिये ॥६॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ६−(नवर्चेभ्यः) म०१। नवद्वारपुरस्य शरीरस्य स्तुत्या विद्या येषु वेदेषु तेभ्यः। द्वे श्रोत्रे चक्षुषी नासिके च मुखमेकं द्वे पायूपस्थे-इति शरीरस्य नवछिद्ररूपाणि द्वाराणि ॥
०७ दशर्चेभ्यः स्वाहा
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
द॑श॒र्चेभ्यः॒ स्वाहा॑ ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
द॑श॒र्चेभ्यः॒ स्वाहा॑ ॥
०७ दशर्चेभ्यः स्वाहा ...{Loading}...
Whitney
Translation
- To them of ten verses, hail!
Notes
Griffith
Hail to the ten-versed!
पदपाठः
द॒श॒ऽऋ॒चेभ्यः॑। स्वाहा॑। २३.७।
अधिमन्त्रम् (VC)
- मन्त्रोक्ताः
- अथर्वा
- दैवी त्रिष्टुप्
- अथर्वाण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
ब्रह्मविद्या का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (दर्शर्चेभ्यः) दस [दान, शील, क्षमा, वीरता, ध्यान, बुद्धि, सेना, उपाय, दूत और ज्ञान इन दस बलों] की स्तुतियोग्य विद्यावाले [वेदों] के लिये (स्वाहा) स्वाहा [सुन्दर वाणी] हो ॥७॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मनुष्यों को परमेश्वरोक्त ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद द्वारा श्रेष्ठ विद्याएँ प्राप्त करके इस जन्म और पर जन्म का सुख भोगना चाहिये ॥७॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ७−(दशर्चेभ्यः) म०१। दशानां दशबलानां स्तुत्या विद्या येषु वेदेषु तेभ्यः। दानशीलक्षमावीर्यध्यानप्रज्ञाबलानि च। उपायः प्रणिधिर्ज्ञानं दश बुद्धिबलानि वै-इति शब्दस्तोममहानिधौ ॥
०८ एकादशर्चेभ्यः स्वाहा
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ए॑कादश॒र्चेभ्यः॒ स्वाहा॑ ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
ए॑कादश॒र्चेभ्यः॒ स्वाहा॑ ॥
०८ एकादशर्चेभ्यः स्वाहा ...{Loading}...
Whitney
Translation
- To them of eleven verses, hail!
Notes
Griffith
Hail to the eleven-versed!
पदपाठः
ए॒का॒द॒श॒ऽऋ॒चेभ्यः॑। स्वाहा॑। २३.८।
अधिमन्त्रम् (VC)
- मन्त्रोक्ताः
- अथर्वा
- प्राजापत्या गायत्री
- अथर्वाण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
ब्रह्मविद्या का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (एकाशर्चेभ्यः) ग्यारह [प्राण, अपान, उदान, व्यान, समान, नाग, कूर्म, कृकल, देवदत्त, धनञ्जय दस प्राण और ग्यारहवें जीवात्मा] की स्तुतियोग्य विद्यावाले [वेदों] के लिये (स्वाहा) स्वाहा [सुन्दर वाणी] हो ॥८॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मनुष्यों को परमेश्वरोक्त ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद द्वारा श्रेष्ठ विद्याएँ प्राप्त करके इस जन्म और पर जन्म का सुख भोगना चाहिये ॥८॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ८−(एकादशर्चेभ्यः) म०१॥ प्राणापानोदानव्यानसमाननागकृर्मकृकलदेवदत्तधनञ्जया इति दश प्राणा एकादशो जीवात्मा, एतेषां स्तुत्या विद्या येषु वेदेषु तेभ्यः ॥
०९ द्वादशर्चेभ्यः स्वाहा
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द्वा॑दश॒र्चेभ्यः॒ स्वाहा॑ ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
द्वा॑दश॒र्चेभ्यः॒ स्वाहा॑ ॥
०९ द्वादशर्चेभ्यः स्वाहा ...{Loading}...
Whitney
Translation
- To them of twelve verses, hail!
Notes
Griffith
Hail to the twelve-versed!
पदपाठः
द्वा॒द॒श॒ऽऋ॒चेभ्यः॑। स्वाहा॑। २३.९।
अधिमन्त्रम् (VC)
- मन्त्रोक्ताः
- अथर्वा
- दैवी जगती
- अथर्वाण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
ब्रह्मविद्या का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (द्वादशर्चेभ्यः) बारह [चैत्र आदि बारह महीनों] की स्तुतियोग्य विद्यावाले [वेदों] के लिये (स्वाहा) स्वाहा [सुन्दर वाणी] हो ॥९॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मनुष्यों को परमेश्वरोक्त ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद द्वारा श्रेष्ठ विद्याएँ प्राप्त करके इस जन्म और पर जन्म का सुख भोगना चाहिये ॥९॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ९−(द्वादशर्चेभ्यः) म०१। चैत्रादिद्वादशमासानां स्तुत्या विद्या येषु तेभ्यो वेदेभ्यः ॥
१० त्रयोदशर्चेभ्यः स्वाहा
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त्र॑योदश॒र्चेभ्यः॒ स्वाहा॑ ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
त्र॑योदश॒र्चेभ्यः॒ स्वाहा॑ ॥
१० त्रयोदशर्चेभ्यः स्वाहा ...{Loading}...
Whitney
Translation
- To them of thirteen verses, hail!
Notes
Griffith
Hail to the thirteen-versed
पदपाठः
त्र॒यो॒द॒श॒ऽऋ॒चेभ्यः॑। स्वाहा॑। २३.१०।
अधिमन्त्रम् (VC)
- मन्त्रोक्ताः
- अथर्वा
- प्राजापत्या गायत्री
- अथर्वाण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
ब्रह्मविद्या का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (त्रयोदशर्चेभ्यः) तेरह [उछालना, गिराना, सकोड़ना, फैलाना और चलना पाँच कर्म तथा छोटाई, हलकायी, प्राप्ति, स्वतन्त्रता, बड़ाई, ईश्वरपन, जितेन्द्रियता और सत्य संकल्प आठ ऐश्वर्य इन तेरह] की स्तुतियोग्य विद्यावाले [वेदों] के लिये (स्वाहा) स्वाहा [सुन्दर वाणी] हो ॥१०॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मनुष्यों को परमेश्वरोक्त ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद द्वारा श्रेष्ठ विद्याएँ प्राप्त करके इस जन्म और पर जन्म का सुख भोगना चाहिये ॥१०॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: १०−(त्रयोदशर्चेभ्यः) म०१। उत्क्षेपणमवक्षेपणमाकुञ्चनं प्रसारणं गमनमिति कर्माणि-वैशेषिके १।१।७। अणिमा लघिमा प्राप्तिः प्राकाम्यं महिमा तथा। ईशित्वं च वशित्वं च तथा कामावसायिता ॥१॥ इत्यष्टैश्वर्याणि। इत्येतेषां त्रयोदशानां स्तुत्या विद्या येषु तेभ्यो वेदेभ्यः ॥
११ चतुर्दशर्चेभ्यः स्वाहा
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च॑तुर्दश॒र्चेभ्यः॒ स्वाहा॑ ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
च॑तुर्दश॒र्चेभ्यः॒ स्वाहा॑ ॥
११ चतुर्दशर्चेभ्यः स्वाहा ...{Loading}...
Whitney
Translation
- To them of fourteen verses, hail!
Notes
Griffith
Hail to the fourteen-versed!
पदपाठः
च॒तु॒र्द॒श॒ऽऋ॒चेभ्यः॑। स्वाहा॑। २३.११।
अधिमन्त्रम् (VC)
- मन्त्रोक्ताः
- अथर्वा
- प्राजापत्या गायत्री
- अथर्वाण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
ब्रह्मविद्या का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (चतुर्दशर्चेभ्यः) चौदह [कान, आँख, नासिका, जिह्वा, त्वचा−पाँच, ज्ञानेन्द्रिय, और वाक्, हाथ, पाँव, पायु, उपस्थ−पाँच कर्मेन्द्रिय, तथा मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार] की स्तुतियोग्य विद्यावाले [वेदों] के लिये (स्वाहा) स्वाहा [सुन्दर वाणी] हो ॥११॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मनुष्यों को परमेश्वरोक्त ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद द्वारा श्रेष्ठ विद्याएँ प्राप्त करके इस जन्म और पर जन्म का सुख भोगना चाहिये ॥११॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ११−(चतुर्दशर्चेभ्यः) म०१। मनोबुद्धिचित्ताहङ्कारसहितानां दशेन्द्रियाणां स्तुत्या विद्या येषु वेदेषु तेभ्यः ॥
१२ पञ्चदशर्चेभ्यः स्वाहा
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प॑ञ्चदश॒र्चेभ्यः॒ स्वाहा॑ ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
प॑ञ्चदश॒र्चेभ्यः॒ स्वाहा॑ ॥
१२ पञ्चदशर्चेभ्यः स्वाहा ...{Loading}...
Whitney
Translation
- To them of fifteen verses, hail!
Notes
Griffith
Hail to the fifteen-versed!
पदपाठः
प॒ञ्च॒द॒श॒ऽऋ॒चेभ्यः॑। स्वाहा॑। २३.१२।
अधिमन्त्रम् (VC)
- मन्त्रोक्ताः
- अथर्वा
- प्राजापत्या गायत्री
- अथर्वाण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
ब्रह्मविद्या का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (पञ्चदशर्चेभ्यः) पन्द्रह [शुक्ल, नील, पीत, रक्त, हरित, कपिश, चित्र ये सात रूप, तथा मधुर, अम्ल, कटु, कषाय, तिक्त ये छह रस और सुरभि, असुरभि दो प्रकार का गन्ध, इन पन्द्रह] की स्तुतियोग्य विद्यावाले [वेदों] के लिये (स्वाहा) स्वाहा [सुन्दर वाणी] हो ॥१२॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मनुष्यों को परमेश्वरोक्त ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद द्वारा श्रेष्ठ विद्याएँ प्राप्त करके इस जन्म और पर जन्म का सुख भोगना चाहिये ॥१२॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: १२−(पञ्चदशर्चेभ्यः) म०१। शुक्लनीलपीतरक्तहरितकपिशचित्रसप्तरूपाणि, मधुराम्ललवणकटुकषायतिक्त-षड्रसाः, सुरभिश्चासुरभिश्चेति गन्धौ। इत्येतेषां पञ्चदशानां स्तुत्या विद्या येषु वेदेषु तेभ्यः ॥
१३ षोडशर्चेभ्यः स्वाहा
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षो॑डश॒र्चेभ्यः॒ स्वाहा॑ ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
षो॑डश॒र्चेभ्यः॒ स्वाहा॑ ॥
१३ षोडशर्चेभ्यः स्वाहा ...{Loading}...
Whitney
Translation
- To them of sixteen verses, hail!
Notes
Griffith
Hail to the sixteen-versed!
पदपाठः
षो॒ड॒श॒ऽऋ॒चेभ्यः॑। स्वाहा॑। २३.१३।
अधिमन्त्रम् (VC)
- मन्त्रोक्ताः
- अथर्वा
- दैवी जगती
- अथर्वाण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
ब्रह्मविद्या का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (षोडशर्चेभ्यः) सोलह [प्राण, श्रद्धा, आकाश, वायु, प्रकाश, जल, पृथिवी, इन्द्रिय, मन, अन्न, वीर्य, तप, मन्त्र, कर्म, लोक और नाम−इन सोलह कलाओं] की स्तुतियोग्य विद्यावाले [वेदों] के लिये (स्वाहा) स्वाहा [सुन्दर वाणी] हो ॥१३॥ प्रश्नोपनिषद में सोलह कलाएँ इस प्रकार हैं [स प्राणमसृजत, प्राणाच्छ्रद्धा खं वायुर्ज्योतिरापः पृथिवीन्द्रियम्। मनोऽन्नमन्नाद् वीर्यं तपो मन्त्राः कर्म लोका लोकेषु च नाम च ॥ प्रश्न ६ श्लोक ४] उस [पुरुष] ने प्राण, प्राण से श्रद्धा [आस्तिक बुद्धि], आकाश, वायु, प्रकाश, जल, पृथिवी, इन्द्रिय [ज्ञानेन्द्रिय और कर्मेन्द्रिय] मन और अन्न को, अन्न से वीर्य, तप, मन्त्रों [ऋग्वेदादि चार वेदों] कर्म और लोकों में नाम को उत्पन्न किया ॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मनुष्यों को परमेश्वरोक्त ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद द्वारा श्रेष्ठ विद्याएँ प्राप्त करके इस जन्म और पर जन्म का सुख भोगना चाहिये ॥१३॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: १३−(षोडशर्चेभ्यः) म०१। प्रश्नोपनिषदि प्रश्ने ६ श्लोके ४ प्रतिपादितानां प्राणश्रद्धादिषोडशकलानां स्तुत्या विद्या येषु वेदेषु तेभ्यः ॥
१४ सप्तदशर्चेभ्यः स्वाहा
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
स॑प्तदश॒र्चेभ्यः॒ स्वाहा॑ ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
स॑प्तदश॒र्चेभ्यः॒ स्वाहा॑ ॥
१४ सप्तदशर्चेभ्यः स्वाहा ...{Loading}...
Whitney
Translation
- To them of seventeen verses, hail!
Notes
Griffith
Hail to the seventeen-versed!
पदपाठः
स॒प्त॒द॒श॒ऽऋ॒चेभ्यः॑। स्वाहा॑। २३.१४।
अधिमन्त्रम् (VC)
- मन्त्रोक्ताः
- अथर्वा
- प्राजापत्या गायत्री
- अथर्वाण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
ब्रह्मविद्या का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (सप्तदशर्चेभ्यः) सत्तरह [चार दिशा, चार विदिशा, एक ऊपर की और एक नीचे की दस दिशायें−सत्त्व रज, और तम तीन गुण, ईश्वर, जीव, प्रकृति और संसार] की स्तुतियोग्य विद्यावाले [वेदों] के लिये (स्वाहा) स्वाहा [सुन्दर वाणी] हो ॥१४॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मनुष्यों को परमेश्वरोक्त ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद द्वारा श्रेष्ठ विद्याएँ प्राप्त करके इस जन्म और पर जन्म का सुख भोगना चाहिये ॥१४॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: १४−(सप्तदशर्चेभ्यः) म०१। चतस्रो दिशाश्चतस्रो मध्यदिशा एकोपरिस्था, एकाधोभवेति दश दिशाः, सत्त्वरजस्तमांसि त्रयो गुणाः, ईश्वरो जीवः प्रकृतिः संसारश्चेति सप्तदशानां स्तुत्या विद्या येषु वेदेषु तेभ्यः ॥
१५ अष्टादशर्चेभ्यः स्वाहा
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
अ॑ष्टादश॒र्चेभ्यः॒ स्वाहा॑ ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
अ॑ष्टादश॒र्चेभ्यः॒ स्वाहा॑ ॥
१५ अष्टादशर्चेभ्यः स्वाहा ...{Loading}...
Whitney
Translation
- To them of eighteen verses, hail!
Notes
Griffith
Hail to the eighteen-versed!
पदपाठः
अ॒ष्टा॒द॒श॒ऽऋ॒चेभ्यः॑। स्वाहा॑। २३.१५।
अधिमन्त्रम् (VC)
- मन्त्रोक्ताः
- अथर्वा
- प्राजापत्या गायत्री
- अथर्वाण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
ब्रह्मविद्या का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (अष्टादशर्चेभ्यः) अठारह [धैर्य, सहन, मन का रोकना, चोरी न करना, शुद्धता, जितेन्द्रियता, बुद्धि, विद्या, सत्य, क्रोध न करना, ये दस धर्म-मनु०६।९२, तथा ब्राह्मण, गौ, अग्नि, सुवर्ण, घृत, सूर्य, जल, राजा ये आठ मङ्गल-शब्दकल्पद्रुमकोश, इन अठारह] की स्तुतियोग्य विद्यावाले [वेदों] के लिये (स्वाहा) स्वाहा [सुन्दर वाणी] हो ॥१५॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मनुष्यों को परमेश्वरोक्त ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद द्वारा श्रेष्ठ विद्याएँ प्राप्त करके इस जन्म और पर जन्म का सुख भोगना चाहिये ॥१५॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: १५−(अष्टादशर्चेभ्यः) म०१। धृतिः क्षमा दमोऽस्तेयं शौचमिन्द्रियनिग्रहः। धीर्विद्या सत्यमक्रोधो दशकं धर्मलक्षणम्-मनु०६।९२। लोकेऽस्मिन् मङ्गलान्यष्टौ ब्राह्मणो गौर्हुताशनः। हिरण्यं सर्पिरादित्य आपो राजा तथाऽष्टमः ॥१॥ इति शब्दकल्पद्रुमकोशः। एतेषामष्टादशानां स्तुत्या विद्या येषु वेदेषु तेभ्यः ॥
१६ एकोनविंशतिः स्वाहा
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
ए॑कोनविंश॒तिः स्वाहा॑ ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
ए॑कोनविंश॒तिः स्वाहा॑ ॥
१६ एकोनविंशतिः स्वाहा ...{Loading}...
Whitney
Translation
- Nineteen: hail!
Notes
Griffith
Hail, nineteen!
पदपाठः
ए॒को॒ना॒विं॒श॒तिः। स्वाहा॑। २३.१६।
अधिमन्त्रम् (VC)
- मन्त्रोक्ताः
- अथर्वा
- प्राजापत्या गायत्री
- अथर्वाण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
ब्रह्मविद्या का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (एकोनविंशतिः) उन्नीस [ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र, चार वर्ण, ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ, संन्यास, चार आश्रम−सत्सङ्ग, सुनना, विचारना, ध्यान करना, चार कर्म−अप्राप्त की इच्छा, प्राप्त की रक्षा, रक्षित का बढ़ाना, बढ़े हुए का सन्मार्ग में व्यय करना चार पुरुषार्थ−मन, बुद्धि और अहङ्कार इन उन्नीस स्तुतियोग्य विद्याओं के लिये] (स्वाहा) स्वाहा [सुन्दर वाणी] हो ॥१६॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मनुष्यों को परमेश्वरोक्त ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद द्वारा श्रेष्ठ विद्याएँ प्राप्त करके इस जन्म और पर जन्म का सुख भोगना चाहिये ॥१६॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: १६−(एकोनविंशतिः) सुपां सुलुक्०। पा०७।१।३९। चतुर्थीस्थाने प्रथमा विशेषणपदलोपश्च। एकोनविंशतये ऋग्भ्यः। चत्वारो वर्णाश्चत्वार आश्रमाः सत्सङ्गश्रवणमनननिदिध्यासनानि चत्वारि कर्माणि, अलब्धस्य लिप्सा लब्धस्य रक्षणं रक्षितस्य वृद्धिर्वृद्धस्य सन्मार्गे व्ययकरणम्, मनोबुद्ध्यहंकाराश्चेत्यूनविंशतिर्विद्यास्ताभ्यः ॥
१७ विंशतिः स्वाहा
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
विं॑श॒तिः स्वाहा॑ ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
विं॑श॒तिः स्वाहा॑ ॥
१७ विंशतिः स्वाहा ...{Loading}...
Whitney
Translation
- Twenty: hail!
Notes
In these two verses, some of the mss. read -śatí sv-; the text of the
comm. has -śatyāí, which would be an improvement; and two of SPP’s
reciters give the same. ⌊But cf. p. 931, ¶6, end.⌋
Griffith
Hail, twenty!
पदपाठः
विं॒श॒तिः। स्वाहा॑। २३.१७।
अधिमन्त्रम् (VC)
- मन्त्रोक्ताः
- अथर्वा
- दैवी पङ्क्तिः
- अथर्वाण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
ब्रह्मविद्या का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (विंशतिः) बीस [पाँच सूक्ष्म भूत, पाँच स्थूल भूत, पाँच ज्ञानेन्द्रिय, और पाँच कर्मेन्द्रिय−इन बीस स्तुतियोग्य विद्याओं के लिये] (स्वाहा) स्वाहा [सुन्दर वाणी] हो ॥१७॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मनुष्यों को परमेश्वरोक्त ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद द्वारा श्रेष्ठ विद्याएँ प्राप्त करके इस जन्म और पर जन्म का सुख भोगना चाहिये ॥१७॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: १७−(विंशतिः) यथा म०१६, चतुर्थीस्थाने प्रथमा, विशेषणपदलोपश्च। पञ्च सूक्ष्मभूतानि, पञ्च स्थूलभूतानि, पञ्च ज्ञानेन्द्रियाणि पञ्च कर्मेन्द्रियाणि चेति विंशतिर्विद्यास्ताभ्यः ॥
१८ महत्काण्डाय स्वाहा
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
म॑हत्का॒ण्डाय॒ स्वाहा॑ ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
म॑हत्का॒ण्डाय॒ स्वाहा॑ ॥
१८ महत्काण्डाय स्वाहा ...{Loading}...
Whitney
Translation
- To the great book (mahat-kāṇḍá), hail!
Notes
⌊All of W’s and of SPP’s mss., and the reciters as well, give mahat-,
not mahā-; but the comm. appears to read mahā-, and to say that it
means the ’entire Veda of twenty books’: mahākāṇḍāye ’ti śabdena
viṅśatikāṇḍātmakakṛtsnavedavācinā; and this seems to support my
suggestion that a Hindu might use kāṇḍa of a group of kāṇḍas: cf. ¶5
of introduction, above. Weber suggested at Ind. Stud. iv. 433 that
mahatkāṇḍa might mean book xx.; but in a later volume (xviii. 154),
that book v. might be intended.⌋ ⌊See pages clvii-viii.⌋
Griffith
Hail to the Great Section!
पदपाठः
म॒ह॒त्ऽका॒ण्डाय॑। स्वाहा॑। २३.१८।
अधिमन्त्रम् (VC)
- मन्त्रोक्ताः
- अथर्वा
- दैवी जगती
- अथर्वाण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
ब्रह्मविद्या का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (महत्काण्डाय) बड़े [धर्मात्माओं] के संरक्षक [वेद] के लिये (स्वाहा) स्वाहा [सुन्दर वाणी] हो ॥१८॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मनुष्यों को परमेश्वरोक्त ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद द्वारा श्रेष्ठ विद्याएँ प्राप्त करके इस जन्म और पर जन्म का सुख भोगना चाहिये ॥१८॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: १८−(महत्काण्डाय) कादिभ्यः कित्। उ०१।११५। कमु कन वा कान्तौ-ड प्रत्ययो दीर्घश्च, यद्वा कडि भेदने संरक्षणे च-घञ्। महतां विदुषां संरक्षकाय वेदाय ॥
१९ तृचेभ्यः स्वाहा
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तृ॒चेभ्यः॒ स्वाहा॑ ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
तृ॒चेभ्यः॒ स्वाहा॑ ॥
१९ तृचेभ्यः स्वाहा ...{Loading}...
Whitney
Translation
- To them of three verses, hail!
Notes
Between this verse and the next, the commentator’s text inserts
dvyṛcebhyaḥ svāhā.
Griffith
Hail to the triplets!
पदपाठः
तृ॒चेभ्यः॑। स्वाहा॑। २३.१९।
अधिमन्त्रम् (VC)
- मन्त्रोक्ताः
- अथर्वा
- दैवी पङ्क्तिः
- अथर्वाण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
ब्रह्मविद्या का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (तृचेभ्यः) तीन [भूत, भविष्यत्, वर्तमान] की स्तुतियोग्य विद्यावाले [वेदों] के लिये (स्वाहा) स्वाहा [सुन्दर वाणी] हो ॥१९॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मनुष्यों को परमेश्वरोक्त ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद द्वारा श्रेष्ठ विद्याएँ प्राप्त करके इस जन्म और पर जन्म का सुख भोगना चाहिये ॥१९॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: १९−(तृचेभ्यः) म०१। त्रयाणां भूतभविष्यद्वर्तमानानां स्तुत्या विद्या येषु वेदेषु तेभ्यः ॥
२० एकर्चेभ्यः स्वाहा
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
ए॑क॒र्चेभ्यः॒ स्वाहा॑ ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
ए॑क॒र्चेभ्यः॒ स्वाहा॑ ॥
२० एकर्चेभ्यः स्वाहा ...{Loading}...
Whitney
Translation
- To them of one verse, hail!
Notes
Griffith
Hail to the single-versed hymns!
पदपाठः
ए॒क॒ऽऋ॒चेभ्यः॑। स्वाहा॑। २३.२०।
अधिमन्त्रम् (VC)
- मन्त्रोक्ताः
- अथर्वा
- दैवी त्रिष्टुप्
- अथर्वाण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
ब्रह्मविद्या का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (एकर्चेभ्यः) एक [परमात्मा] की स्तुतियोग्य विद्यावाले [वेदों] के लिये (स्वाहा) स्वाहा [सुन्दर वाणी] हो ॥२०॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मनुष्यों को परमेश्वरोक्त ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद द्वारा श्रेष्ठ विद्याएँ प्राप्त करके इस जन्म और पर जन्म का सुख भोगना चाहिये ॥२०॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: २०−(एकर्चेभ्यः) म०१। एकस्य परमात्मनः स्तुत्या विद्या येषु वेदेषु तेभ्यः ॥
२१ क्षुद्रेभ्यः स्वाहा
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
क्षु॒द्रेभ्यः॒ स्वाहा॑ ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
क्षु॒द्रेभ्यः॒ स्वाहा॑ ॥
२१ क्षुद्रेभ्यः स्वाहा ...{Loading}...
Whitney
Translation
- To the petty ones, hail! ⌊See page clviii top.⌋
Notes
This is a repetition of 22. 6 above, and after it the commentator’s text
adds 22. 7.
Griffith
Hail to the little ones!
पदपाठः
क्षु॒द्रेभ्यः॑। स्वाहा॑। २३.२१।
अधिमन्त्रम् (VC)
- मन्त्रोक्ताः
- अथर्वा
- दैवी पङ्क्तिः
- अथर्वाण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
ब्रह्मविद्या का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (क्षुद्रेभ्यः) सूक्ष्मज्ञानवाले [वेदों] के लिये (स्वाहा) स्वाहा [सुन्दर वाणी] हो ॥२१॥ यह मन्त्र आ चुका है-अ०१९।२२।६॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मनुष्यों को परमेश्वरोक्त ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद द्वारा श्रेष्ठ विद्याएँ प्राप्त करके इस जन्म और पर जन्म का सुख भोगना चाहिये ॥२१॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: २१−(क्षुद्रेभ्यः) म०१९।२२।६। सूक्ष्मज्ञानयुक्तेभ्यो वेदेभ्यः ॥
२२ एकानृचेभ्यः स्वाहा
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
ए॑कानृ॒चेभ्यः॒ स्वाहा॑ ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
ए॑कानृ॒चेभ्यः॒ स्वाहा॑ ॥
२२ एकानृचेभ्यः स्वाहा ...{Loading}...
Whitney
Translation
- To them of a half-verse, hail!
Notes
All the mss., and the comm., have here ekānṛcébhyas (p. eka॰anṛc-),
and SPP. follows them. Our ekadvyṛcébhyas (misprinted ekadvṛc-) was
meant as an emendation, but is hardly successful. What ekānṛc- should
mean does not appear; the translation simply follows the comm., for lack
of anything better.
Griffith
Hail to the single non-Rich-versed ones!
पदपाठः
ए॒क॒ऽअ॒नृ॒चेभ्यः॑। स्वाहा॑। २३.२२।
अधिमन्त्रम् (VC)
- मन्त्रोक्ताः
- अथर्वा
- दैवी जगती
- अथर्वाण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
ब्रह्मविद्या का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (एकानृचेभ्यः) एक [परमात्मा] की अत्यन्त ही स्तुतियोग्य विद्यावाले [वेदों] के लिये (स्वाहा) स्वाहा [सुन्दर वाणी] हो ॥२२॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मनुष्यों को परमेश्वरोक्त ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद द्वारा श्रेष्ठ विद्याएँ प्राप्त करके इस जन्म और पर जन्म का सुख भोगना चाहिये ॥२२॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: २२−(एकानृचेभ्यः) म०१। नास्ति ऋक् स्तुत्या विद्या यस्याः सकाशादिति अनृचः। एकस्य परमेश्वरस्य अतिशयेन स्तुत्यविद्यायुक्तेभ्यो वेदेभ्यः ॥
२३ रोहितेभ्यः स्वाहा
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
रो॑हि॒तेभ्यः॒ स्वाहा॑ ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
रो॑हि॒तेभ्यः॒ स्वाहा॑ ॥
२३ रोहितेभ्यः स्वाहा ...{Loading}...
Whitney
Translation
- To the ruddy ones (rohita), hail!
Notes
The mss. ⌊except W’s O.D., which have róh-⌋, and hence also SPP.,
accent here rohitébhyas. The comm. remarks that in this and the
following verses the books intended are clear. This, of course, means
book xiii. ⌊which is designated by rohitāis at Kāuś. 99. 4⌋.
Griffith
Hail to the Rohitas!
पदपाठः
रो॒हि॒तेभ्यः॑। स्वाहा॑। २३.२३।
अधिमन्त्रम् (VC)
- मन्त्रोक्ताः
- अथर्वा
- दैवी त्रिष्टुप्
- अथर्वाण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
ब्रह्मविद्या का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (रोहितेभ्यः) प्रकट होते हुए धार्मिक गुणयुक्त [वेदों] के लिये (स्वाहा) [सुन्दर वाणी] हो ॥२३॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मनुष्यों को परमेश्वरोक्त ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद द्वारा श्रेष्ठ विद्याएँ प्राप्त करके इस जन्म और पर जन्म का सुख भोगना चाहिये ॥२३॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: २३−(रोहितेभ्यः) रुहे रश्च लो वा। उ०३।९४। रुह प्रादुर्भावे-इतन्। प्रादुर्भावशीलेभ्यो धार्मिकगुणयुक्तेभ्यो वेदेभ्यः ॥
२४ सूर्याभ्यां स्वाहा
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
सू॒र्याभ्यां॒ स्वाहा॑ ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
सू॒र्याभ्यां॒ स्वाहा॑ ॥
२४ सूर्याभ्यां स्वाहा ...{Loading}...
Whitney
Translation
- To the two Sūryās, hail!
Notes
That is, to the two parts (anuvākas) of the book beginning with the
Sūryā-hymn (xiv.).
Griffith
Hail to the two Surya hymns!
पदपाठः
सू॒र्याभ्या॑म्। स्वाहा॑। २३.२४।
अधिमन्त्रम् (VC)
- मन्त्रोक्ताः
- अथर्वा
- दैवी पङ्क्तिः
- अथर्वाण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
ब्रह्मविद्या का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (सूर्याभ्याम्) दो प्रेरकों [परमात्मा और जीवात्मा] के लिये (स्वाहा) स्वाहा [सुन्दर वाणी] हो ॥२४॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मनुष्यों को परमेश्वरोक्त ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद द्वारा श्रेष्ठ विद्याएँ प्राप्त करके इस जन्म और पर जन्म का सुख भोगना चाहिये ॥२४॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: २४−(सूर्याभ्याम्) प्रेरकाभ्यां परमात्मजीवात्मभ्याम् ॥
२५ व्रात्याभ्यां स्वाहा
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
व्रा॒त्याभ्यां॒ स्वाहा॑ ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
व्रा॒त्याभ्यां॒ स्वाहा॑ ॥
२५ व्रात्याभ्यां स्वाहा ...{Loading}...
Whitney
Translation
- To the two Vrātyas, hail!
Notes
Again the two anuvākas of the Vrātya-book (xv.). ⌊Both ed’s read
vrātyā́bhyām, with all the authorities, save W’s D.L., which have
vrā́tyā-. The minor Pet. Lex., vi. 189, notes vrātyá as an adj. to
vrā́tya: hence, rather, ‘To the two [anuvākas ] about the vrā́tya,
hail!’ See my note, p. 770, ¶3.⌋
Griffith
Hail to the two Vratya hymns!
पदपाठः
व्रा॒त्याभ्या॑म्। स्वाहा॑। २३.२५।
अधिमन्त्रम् (VC)
- मन्त्रोक्ताः
- अथर्वा
- दैवी पङ्क्तिः
- अथर्वाण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
ब्रह्मविद्या का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (व्रात्याभ्याम्) मनुष्यों के हितकारी दोनों [बल और पराक्रम] के लिये (स्वाहा) स्वाहा [सुन्दर वाणी] हो ॥२५॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मनुष्यों को परमेश्वरोक्त ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद द्वारा श्रेष्ठ विद्याएँ प्राप्त करके इस जन्म और पर जन्म का सुख भोगना चाहिये ॥२५॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: २५−(व्रात्याभ्याम्) अ०१५।१।१। व्रात-यत्। व्राताः, मनुष्य-नाम-निघ०२।३। मनुष्येभ्यो हिताभ्यां बलपराक्रमाभ्याम् ॥
२६ प्राजापत्याभ्यां स्वाहा
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
प्रा॑जाप॒त्याभ्यां॒ स्वाहा॑ ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
प्रा॑जाप॒त्याभ्यां॒ स्वाहा॑ ॥
२६ प्राजापत्याभ्यां स्वाहा ...{Loading}...
Whitney
Translation
- To the two of Prajāpati, hail!
Notes
The two anuvākas of book xvi. are evidently intended, though why they
are called prajāpatya is difficult to say. ⌊The Major Anukr. calls the
whole book prājāpatya, as noted p. 792, ¶4.⌋ The Old Anukr. quoted in
the endings says at the end of xvi. 4 prājāpatyo ha catuṣkaḥ, ⌊····⌋
saptakaḥ paraḥ: i.e. ’the [first] Prajāpati-anuvāka has four hymns
⌊or paryāyas⌋; the [paryāya] next after [2 and 3: i.e. paryāya
4] is one of seven verses.’ ⌊For the probable relative position and the
significance of these extracts, see p. 792 (¶5)-793.⌋
Griffith
Hail to the two Prajapati hymns!
पदपाठः
प्रा॒जा॒ऽप॒त्याभ्या॑म्। स्वाहा॑। २३.२६।
अधिमन्त्रम् (VC)
- मन्त्रोक्ताः
- अथर्वा
- दैवी जगती
- अथर्वाण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
ब्रह्मविद्या का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (प्राजापत्याभ्याम्) प्रजापति [परमात्मा] को पूजनीय माननेवाली दोनों [कार्य और कारण] के लिये (स्वाहा) स्वाहा [सुन्दर वाणी] हो ॥२६॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मनुष्यों को परमेश्वरोक्त ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद द्वारा श्रेष्ठ विद्याएँ प्राप्त करके इस जन्म और पर जन्म का सुख भोगना चाहिये ॥२६॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: २६−(प्राजापत्याभ्याम्) प्रजापतिः परमात्मा देवता पूजनीयो ययोस्ताभ्यां कार्यकारणाभ्याम् ॥
२७ विषासह्यै स्वाहा
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
वि॑षास॒ह्यै स्वाहा॑ ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
वि॑षास॒ह्यै स्वाहा॑ ॥
२७ विषासह्यै स्वाहा ...{Loading}...
Whitney
Translation
- To the viṣāsahí, hail!
Notes
The seventeenth book begins with the word viṣāsahím; and this time the
comm. takes the trouble to specify that “the seventeenth kāṇḍa” is
intended. ⌊Cf. p. 805, ¶1.⌋
Griffith
Hail to the hymn of victory!
पदपाठः
वि॒ऽस॒स॒ह्यै। स्वाहा॑। २३.२७।
अधिमन्त्रम् (VC)
- मन्त्रोक्ताः
- अथर्वा
- दैवी त्रिष्टुप्
- अथर्वाण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
ब्रह्मविद्या का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (विषासह्यै) सदा विजयिनी [वेदविद्या] के लिये (स्वाहा) स्वाहा [सुन्दर वाणी] हो ॥२७॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मनुष्यों को परमेश्वरोक्त ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद द्वारा श्रेष्ठ विद्याएँ प्राप्त करके इस जन्म और पर जन्म का सुख भोगना चाहिये ॥२७॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: २७−(विषासह्यै) सहिवहिचलिपतिभ्यो यङन्तेभ्यः किकिनौ वक्तव्यौ। वा० पा०३।२।१७१। षह अभिभवे-कि। अलोपयलोपौ। विविधं पुनः पुनः सोढ्री तस्यै सदाविजयिन्यै वेदविद्यायै ॥
२८ मङ्गलिकेभ्यः स्वाहा
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
म॑ङ्गलि॒केभ्यः॒ स्वाहा॑ ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
म॑ङ्गलि॒केभ्यः॒ स्वाहा॑ ॥
२८ मङ्गलिकेभ्यः स्वाहा ...{Loading}...
Whitney
Translation
- To them of good omen (man̄galiká), hail!
Notes
This, from its position, ought to signify book xviii.; the comm. says
nothing about it; his text reads mān̄g-. ⌊That the funeral book is held
to be most inauspicious appears from SPP’s preface to his ed., vol. i.,
p. 4, p. 5, and especially p. 2. To call the book auspicious is a
euphemism such as is familiar in the case of the dreadful god śiva.⌋ One
of our mss. (I.) inserts after this verse five others which do not
appear to occur elsewhere, as SPP. does not mention them:
nákṣatrakalpāya svā́hā. 29. vāítānakalpāya svā́hā. 30. śāntikalpāya
svā́hā. 31. an̄girasakalpāya svā́hā. 32. sā́ṁhitāvidhaye svā́hāṁ. 33.
Our 29 then follows, in the form tulibrahmáṇe svā́hā, and our 30 as
given in all the mss.: bráhmajyeṣṭé ’ty ékā. ⌊The foregoing are the
readings of the Collation Book: apart from the accents, they require
correction, I suppose, to ān̄girasa- and saṁhitā-.⌋
Griffith
Hail to the hymns for happiness!
पदपाठः
म॒ङ्ग॒लि॒केभ्यः॑। स्वाहा॑। २३.२८।
अधिमन्त्रम् (VC)
- मन्त्रोक्ताः
- अथर्वा
- दैवी जगती
- अथर्वाण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
ब्रह्मविद्या का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (मङ्गलिकेभ्यः) मङ्गलवाले [वेदों] के लिये (स्वाहा) स्वाहा [सुन्दर वाणी] हो ॥२८॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मनुष्यों को परमेश्वरोक्त ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद द्वारा श्रेष्ठ विद्याएँ प्राप्त करके इस जन्म और पर जन्म का सुख भोगना चाहिये ॥२८॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: २८−(मङ्गलिकेभ्यः) अत इनिठनौ। पा०५।२।११५। मङ्गल-उन्। मङ्गलयुक्तेभ्यो वेदेभ्यः ॥
२९ ब्रह्मणे स्वाहा
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
ब्र॒ह्मणे॒ स्वाहा॑ ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
ब्र॒ह्मणे॒ स्वाहा॑ ॥
२९ ब्रह्मणे स्वाहा ...{Loading}...
Whitney
Translation
- To the bráhman, hail!
Notes
See above, 22. 20, with which this is identical. This time, two of our
mss. ⌊and three of SPP’s⌋ have bráhmaṇe; the others, and SPP’s text,
read brahmáṇe. ⌊As to the meaning, see introduction, p. 932, ¶2.⌋
Griffith
Hail to Brahma!
पदपाठः
ब्र॒ह्मणे॑। स्वाहा॑। २३.२९।
अधिमन्त्रम् (VC)
- मन्त्रोक्ताः
- अथर्वा
- दैवी पङ्क्तिः
- अथर्वाण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
ब्रह्मविद्या का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (ब्रह्मणे) वेदज्ञान के लिये (स्वाहा) स्वाहा [सुन्दर वाणी] हो ॥२९॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मनुष्यों को परमेश्वरोक्त ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद द्वारा श्रेष्ठ विद्याएँ प्राप्त करके इस जन्म और पर जन्म का सुख भोगना चाहिये ॥२९॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: २९−(ब्रह्मणे) वेदज्ञानाय ॥
३० ब्रह्मज्येष्ठा सम्भृता
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
ब्रह्म॑ज्येष्ठा॒ संभृ॑ता वी॒र्या᳡णि॒ ब्रह्माग्रे॒ ज्येष्ठं॒ दिव॒मा त॑तान।
भू॒तानां॑ ब्र॒ह्मा प्र॑थ॒मोत ज॑ज्ञे॒ तेना॑र्हति॒ ब्रह्म॑णा॒ स्पर्धि॑तुं॒ कः ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
ब्रह्म॑ज्येष्ठा॒ संभृ॑ता वी॒र्या᳡णि॒ ब्रह्माग्रे॒ ज्येष्ठं॒ दिव॒मा त॑तान।
भू॒तानां॑ ब्र॒ह्मा प्र॑थ॒मोत ज॑ज्ञे॒ तेना॑र्हति॒ ब्रह्म॑णा॒ स्पर्धि॑तुं॒ कः ॥
३० ब्रह्मज्येष्ठा सम्भृता ...{Loading}...
Whitney
Translation
- Heroisms were gathered with the bráhman as chief; the bráhman as
chief in the beginning stretched the sky; the Brahmán was born as first
of creatures; therefore who is fit to contend with the Brahmán?
Notes
This is a repetition of 22. 21 above; the commentator’s text apparently
gives it in full, as SPP. notes that (doubtless only by an accident) it
reads this time in c prathamo ‘tha.
Griffith
Collected manly powers are topped by Brahma. Brahma at first spread out the loftiest heaven. Brahma was born first of all things existing. Who then is fit to be this Brahma’s rival?
पदपाठः
ब्रह्म॑ऽज्येष्ठा। सम्ऽभृ॑ता। वी॒र्या᳡णि। ब्रह्म॑। अग्रे॑। ज्येष्ठ॑म्। दिव॑म्। आ। त॒ता॒न॒। भू॒ताना॑म्। ब्र॒ह्मा। प्र॒थ॒मः। उ॒त। ज॒ज्ञे॒। तेन॑। अ॒र्ह॒ति॒। ब्रह्म॒णा। स्पर्धि॑तुम्। कः। २३.३०।
अधिमन्त्रम् (VC)
- मन्त्रोक्ताः
- अथर्वा
- चतुष्पदा त्रिष्टुप्
- अथर्वाण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
ब्रह्मविद्या का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (संभृता) यथावत् भरे हुए (वीर्याणि) वीर कर्म (ब्रह्मज्येष्ठा) ब्रह्म [परमात्मा] को ज्येष्ठ [महाप्रधान रखनेवाले] हैं, (ज्येष्ठम्) ज्येष्ठ [महाप्रधान] (ब्रह्म) ब्रह्म [परमात्मा] ने (अग्रे) पहिले (दिवम्) ज्ञान को (आ) सब ओर (ततान) फैलाया है। (उत) और (ब्रह्मा) वह ब्रह्मा [सबसे बड़ा सर्वजनक परमात्मा] (भूतानाम्) प्राणियों में (प्रथमः) पहिला (जज्ञे) प्रकट हुआ है, (तेन) इसलिये (ब्रह्मणा) ब्रह्मा [महान् परमात्मा] के साथ (कः) कौन (स्पर्धितुम्) झगड़ने को (अर्हति) समर्थ है ? ॥३०॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - संसार में सब प्रकार के पराक्रम वा बल सर्वशक्तिमान् जगदीश्वर के सामर्थ्य से हैं, उस महावृद्ध सर्वजनक से तुल्य वा अधिक कोई भी नहीं है। सब मनुष्य उसकी उपासना करके सुख प्राप्त करें ॥३०॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: मन्त्र २९, ३० आ चुके हैं-अ०१९।२२।२०, २१॥३०-अयं मन्त्रो व्याख्यातः। अ०१९।२२।२१॥