०१५ अभयम्

०१५ अभयम् ...{Loading}...

Whitney subject
  1. For safety and success.
VH anukramaṇī

अभयम्।
१-६ अथर्वा। १-४ इन्द्रः, मन्त्रोक्ताः। त्रिष्टुप्, १ पथ्याबृहती, २, ५ जगती, ३ विराट् पथ्यापङ्क्तिः।

Whitney anukramaṇī

[Atharvan.—ṣaḍṛcam. 1-4. āindram; 5, 6. mantroktabahudevatyam. 1. pathyābṛhatī; 2, 5. 4-p. jagatī; 3. virāṭ pathyāpan̄kti; 4, 6. triṣṭubh.]

Whitney

Comment

The hymn is found also in Pāipp. iii. As noted under the preceding, it belongs to the abhaya gaṇa; and the comm. points out sundry uses of the gaṇa (śānti K. 16; Nakṣ. K. 18; Pariśiṣṭa 5. 3).

Translations

Translated: Ludwig, p. 513; Griffith, ii. 275.

Griffith

A prayer for peace and security

०१ यत इन्द्र

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

यत॑ इन्द्र॒ भया॑महे॒ ततो॑ नो॒ अभ॑यं कृधि।
मघ॑वञ्छ॒ग्धि तव॒ त्वं न॑ ऊ॒तिभि॒र्वि द्विषो॒ वि मृधो॑ जहि ॥

०१ यत इन्द्र ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. What we fear, O Indra, make thou fearlessness for us of it; O
    bounteous one, help (śak) that for us by thy aids; smite away haters,
    away scorners.
Notes

The verse is RV. viii. 50 (61). 13, without variant; also SV. i. 274;
ii. 671, which reads ūtáye in c. Most of the mss. give tvám
instead of tát in c, but two of ours (P.M.) have tán na ū-, and
on the authority of these and of RV.SV. our text gives the same; SPP.
reads tvám, and so does the comm., and it is probably to be regarded
as the true Atharvan version.

Griffith

Indra, give us security from that whereof we are afraid. Help us, O Maghavan, let thy succour grant us this: drive foes and enemies afar.

पदपाठः

यतः॑। इ॒न्द्र॒। भया॑महे। ततः॑। नः॒। अभ॑यम्। कृ॒धि॒। मघ॑ऽवन्। श॒ग्धि। तव॑। त्वम्। नः॒। ऊ॒तिऽभिः॑। वि। द्विषः॑। वि। मृधः॑। ज॒हि॒। १५.१।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • इन्द्रः
  • अथर्वा
  • पथ्या बृहती
  • अभय सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

राजा के कर्त्तव्य का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (इन्द्र) हे इन्द्र ! [बड़े ऐश्वर्यवाले राजन्] (यतः) जिससे (भयामहे) हम डरते हैं, (ततः) उससे (नः) हमें (अभयम्) अभय (कृधि) करदे। (मघवन्) हे महाधनी ! (त्वम्) तू (तव) अपनी (ऊतिभिः) रक्षाओं से (नः) हमें (शग्धि) शक्ति दे, (द्विषः) द्वेषियों को और (मृधः) सङ्ग्रामों को (वि) विशेष करके (विजहि) विनाश करदे ॥१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - राजा को चाहिये कि प्रजा को जिन शत्रुओं से भय हो, उनको नाश करके प्रजा में शान्ति स्थापित करे ॥१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: यह मन्त्र ऋग्वेद में है-८।६१ [वा सायणभाष्य ५०]।१३, साम० पू०३।९।२ तथा उ०५।२।१५॥१−(यतः) यस्मात् कारणात् (इन्द्र) हे परमैश्वर्यवन् राजन् (भयामहे) बिभीमः (ततः) तस्मात् कारणात् (नः) अस्मभ्यम् (अभयम्) भयराहित्यम् (कृधि) कुरु (मघवन्) हे बहुधनवन् (शग्धि) शकेर्लोट् शक्तिं देहि (तव) स्वकीयाभिः (त्वम्) (नः) अस्मभ्यम् (ऊतिभिः) रक्षाभिः (वि) विशेषेण (द्विषः) द्वेष्टॄन्। द्रोहिणः (मृधः) संग्रामान्-निघ०२।१७। (वि जहि) विनाशय ॥

०२ इन्द्रं वयमनूराधम्

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इन्द्रं॑ व॒यम॑नूरा॒धं ह॑वाम॒हेऽनु॑ राध्यास्म द्वि॒पदा॒ चतु॑ष्पदा।
मा नः॒ सेना॒ अर॑रुषी॒रुप॑ गु॒र्विषू॑चीरिन्द्र द्रु॒हो वि ना॑शय ॥

०२ इन्द्रं वयमनूराधम् ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Indra the success-giver do we invoke; may we be successful with
    biped, with quadruped; let not the niggardly armies come upon us; make
    the haters (drúh) disperse and disappear.
Notes

The translation is defective in making no account of the prefix anu
(twice), which ought to have an appreciable value, although it is very
difficult to see what; the comm. paraphrases anurādham by anukrameṇa
pūjanīyam
, and he quotes RV. iv. 25. 8 in illustration of how various
classes in succession invoke Indra. Ppp. preserves the a of anu in
b. SPP. reads in d, with all the mss., druhás; there was no
good reason for its alteration in our text to drúhas.

Griffith

We call on Indra, on the liberal giver: we will be prosperous in men and cattle. Let not the hosts of cruel fiends approach us. Drive of the Druhs to every side, O Indra.

पदपाठः

इन्द्र॑म्। व॒यम्। अ॒नु॒ऽरा॒धम्। ह॒वा॒म॒हे॒। अनु॑। रा॒ध्या॒स्म॒। द्वि॒ऽपदा॑। चतुः॑ऽपदा। मा। नः॒। सेनाः॑। अर॑रुषीः। उप॑। गुः॒। विषू॑चीः। इ॒न्द्र॒। द्रु॒हः। वि। ना॒श॒य॒। १५.२।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • इन्द्रः
  • अथर्वा
  • चतुष्पदा जगती
  • अभय सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

राजा के कर्त्तव्य का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (अनुराधम्) अनुकूल सिद्धि करनेवाले (इन्द्रम्) इन्द्र [महाप्रतापी राजा] को (वयम्) हम (हवामहे) बुलाते हैं, (द्विपदा) दो पाये के साथ और (चतुष्पदा) चौपाये के साथ (अनु) निरन्तर (राध्यास्म) हम सिद्धि पावें। (अररुषीः) लालची (सेनाः) सेनाएँ [चोर आदि] (नः) हमको (मा उप गुः) न पहुँचें (इन्द्र) हे इन्द्र ! [महाप्रतापी राजन्] (विषूचीः) फैली हुई (द्रुहः) द्रोह रीतों को (विनाशय) मिटा दे ॥२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - प्रजागण महाप्रतापी विद्वान् पुरुष को राजा बनाकर अपने मनुष्यों, पशुओं और सम्पत्ति की रक्षा करें ॥२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २−(इन्द्रम्) परमैश्वर्यवन्तं राजानम् (वयम्) (अनुराधम्) अनुकूला राधा सिद्धिर्यस्मात्तम् (हवामहे) आह्वयामः (अनु) निरन्तरम् (राध्यास्म) सम्पन्ना भूयास्म (द्विपदा) पादद्वयोपेतेन मनुष्यादिना (चतुष्पदा) पादचतुष्टयोपेतेन गवादिना सह (नः) अस्मान् (सेनाः) शत्रुसेनाः (अररुषीः) नञ्पूर्वाद् रातेः क्वसु, ङीपि सम्प्रसारणं पूर्वसवर्णदीर्घश्च। अदात्र्यः। कृपणाः (मा उप गुः) मोपगच्छन्तु समीपं मा प्राप्नुवन्तु (विषूचीः) विष्वगञ्चनाः सर्वतो व्याप्ताः (द्रुहः) द्रुह्यन्ती रीतीः (विनाशय) विजहि ॥

०३ इन्द्रस्त्रातोत वृत्रहा

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इन्द्र॑स्त्रा॒तोत वृ॑त्र॒हा प॑र॒स्फानो॒ वरे॑ण्यः।
स र॑क्षि॒ता च॑रम॒तः स म॑ध्य॒तः स प॒श्चात्स पु॒रस्ता॑न्नो अस्तु ॥

०३ इन्द्रस्त्रातोत वृत्रहा ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Indra [is] rescuer and Vṛitra-slayer, our desirable far-and-wide
    protector (?); be he our defender at the extremities, he in the middle,
    he behind, he in front.
Notes

In b the translation follows the comm., who explains paraspā
(-pāḥ) no v-; all the mss. (save one or two s.m.)* have parasphā́no
v-
(p. parasphā́naḥ, without division), and this is doubtless the true
Atharvan text, though an unintelligible corruption, of which our
gayasphāna is an only partially successful emendation. *⌊In fact, W’s
O. and three of SPP’s mss. have -sphā-, p.m., and -spā-, s.m.; and
SPP’s reciter K. gave -sphā-, while his reciter V. gave -spā-.⌋ Ppp-
reads parampāno (paraspā no?). The pada-mss. unintelligently
divide ca: ramatáḥ in c; some of our mss. have -matá sá. The
verse (8 + 8: 12 + 10 = 38) is poorly described by the Anukr.

Griffith

Best, making household wealth increase. Indra our saviour, kills the foe. May he from outmost point be our potector, and from the centre and from west and eastward.

पदपाठः

इन्द्रः॑। त्रा॒ता। उ॒त। वृ॒त्र॒ऽहा। प॒र॒स्फानः॑। वरे॑ण्यः। सः। र॒क्षि॒ता। च॒र॒म॒तः। सः। म॒ध्य॒तः। सः। प॒श्चात्। सः। पु॒रस्ता॑त्। नः॒। अ॒स्तु॒। १५.३।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • इन्द्रः
  • अथर्वा
  • विराट्पथ्यापङ्क्तिः
  • अभय सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

राजा के कर्त्तव्य का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (इन्द्रः) इन्द्र [महाप्रतापी राजा] (त्राता) रक्षक, (उत) और (वृत्रहा) शत्रुनाशक, (परस्फानः) श्रेष्ठों का बढ़ानेवाला और (वरेण्यः) स्वीकार करने योग्य है। (सः) वह (चरमतः) अन्त में, (सः) वह (मध्यतः) मध्य में, (सः) वह (पश्चात्) पीछे से, (सः) वह (पुरस्तात्) आगे से (नः) हमारा (रक्षिता) रक्षक (अस्तु) होवे ॥३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - न्यायशील बलवान् राजा सब प्रकार से सब दिशाओं में प्रजा की रक्षा करे। आध्यात्मिक पक्ष में (इन्द्रः) का अर्थपरमेश्वर है ॥३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ३−(इन्द्रः) परमैश्वर्यवान् राजा परमेश्वरो वा (त्राता) रक्षकः (उत) अपि च (वृत्रहा) शत्रुनाशकः (परस्फानः) स्फायी वृद्धौ-ल्युट्, यलोपश्छान्दसः, अन्तर्गतण्यर्थः। पराणां श्रेष्ठानां वर्धकः (वरेण्यः) वरणीयः स्वीकरणीयः (सः) (रक्षिता) पालकः (चरमतः) अन्ते (सः) (मध्यतः) मध्ये (सः) (पश्चात्) पृष्ठदेशे (सः) (पुरस्तात्) अग्रदेशे (नः) अस्मभ्यम् (अस्तु) ॥

०४ उरुं नो

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उ॒रुं नो॑ लो॒कमनु॑ नेषि वि॒द्वान्त्स्व१॒॑र्यज्ज्योति॒रभ॑यं स्व॒स्ति।
उ॒ग्रा त॑ इन्द्र॒ स्थवि॑रस्य बा॒हू उप॑ क्षयेम शर॒णा बृ॒हन्ता॑ ॥

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Whitney
Translation
  1. Do thou, knowing, lead us toward broad space (loká), light that is
    heavenly (svàr), fearlessness, well-being; may we dwell under the
    formidable arms of thee the stout one, O Indra, [those two] great
    refuges.
Notes

The verse is RV. vi. 47. 8, found also in TB. (in ii. 7. 133); both
these texts read in b svàrvaj jy-, at beginning of c ṛṣvā́,
and in d stheyāma. The comm. gives svaryat, but explains the
-yat as -gacchat (as above, 13. 1); Ppp. agrees with RV.TB. ⌊in
reading svàrvaj⌋; ⌊Ppp. abbreviates the consonant group -j jy- to
-jy-; and so does TB., ed. Calc, reading súvarva jy-⌋. In d, the
comm. has the better reading kṣiyema.

Griffith

Lead us to ample room. O thou who knowest, to happiness security, and sunlight. Strong, Indra, are the arms of thee the mighty: may we betake us to their lofty shelter.

पदपाठः

उ॒रुम्। नः॒। लो॒कम्। अनु॑। ने॒षि॒। वि॒द्वान्। स्वः᳡। यत्। ज्योतिः॑। अभ॑यम्। स्व॒स्ति। उ॒ग्रा। ते॒। इ॒न्द्र॒। स्थवि॑रस्य। बा॒हू इति॑। उप॑। क्ष॒ये॒म॒। श॒र॒णा॒। बृ॒हन्ता॑। १५.४।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • इन्द्रः
  • अथर्वा
  • त्रिष्टुप्
  • अभय सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

राजा के कर्त्तव्य का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (विद्वान्) जानकार तू (नः) हमें (उरुम्) चौड़े (लोकम्) स्थान में (अनुनेषि) निरन्तर ले चलता है, (यत्) जो (स्वः) सुखप्रद, (ज्योतिः) प्रकाशमान, (अभयम्) निर्भय और (स्वस्ति) मङ्गलदाता [अच्छी सत्तावाला है]। (इन्द्र) हे इन्द्र ! [महाप्रतापी राजन्] (स्थविरस्य ते) तुझ दृढ़ स्वभाववाले के (उग्रा) प्रचण्ड, (शरणा) शरण देनेवाले, (बृहन्ता) विशाल (बाहू) दोनों भुजाओं का (उप) आश्रय लेकर (क्षयेम) हम रहें ॥४॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - नीतिकुशल राजा प्रजाओं को उन्नत करके बल और पराक्रम से अपनी शरण में रक्खे ॥४॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: यह मन्त्र कुछ भेद से ऋग्वेद में है-६।४७।८॥४−(उरुम्) विस्तृतम् (नः) अस्मान् (लोकम्) स्थानम् (अनु) (निरन्तरम्) (नेषि) शपो लुक्। नयसि। प्रापयसि (विद्वान्) जानन् (स्वः) सुखप्रदम् (ज्योतिः) प्रकाशमानम् (अभयम्) निर्भयम् (स्वस्ति) मङ्गलप्रदम्। सुसत्तायुक्तम् (उग्रा) प्रचण्डौ (ते) तव (इन्द्र) हे महाप्रतापिन् राजन् (स्थविरस्य) स्थिरस्वभावस्य (बाहू) भुजौ (उप) उपेत्य। आश्रित्य (क्षयेम) निवसेम (शरणा) शरणौ (बृहन्ता) विशालौ ॥

०५ अभयं नः

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अभ॑यं नः करत्य॒न्तरि॑क्ष॒मभ॑यं॒ द्यावा॑पृथि॒वी उ॒भे इ॒मे।
अभ॑यं प॒श्चादभ॑यं पु॒रस्ता॑दुत्त॒राद॑ध॒रादभ॑यं नो अस्तु ॥

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Whitney
Translation
  1. May the atmosphere make for us fearlessness; fearlessness both
    heaven-and-earth here; fearlessness from behind, fearlessness from in
    front; from above, from below be there fearlessness for us.
Notes

The comm. prefers to take the words of direction in c, d in their
other admissible sense of points of compass, pointing out that adhara
gets the value ‘south’ by antithesis to uttara ’north.’ The verse (11

  • 12: 11 + 11 [?] = 45) is no sort of a jagatī.
Griffith

May air’s mid-region give us peace and safety, safety may both these, Heaven and Earth, afford us. Security be ours from west, from eastward, from north and south may we be free from danger.

पदपाठः

अभ॑यम्। नः॒। क॒र॒ति॒। अ॒न्तरि॑क्षम्। अभ॑यम्। द्यावा॑पृथि॒वी इति॑। उ॒भे इति॑। इ॒मे इति॑। अभ॑यम्। प॒श्चात्। अभ॑यम्। पु॒रस्ता॑त्। उ॒त्ऽत॒रात्। अ॒ध॒रात्। अभ॑यम्। नः॒। अ॒स्तु॒। १५.५।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • मन्त्रोक्ताः
  • अथर्वा
  • चतुष्पदा जगती
  • अभय सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

राजा के कर्त्तव्य का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (नः) हमें (अन्तरिक्षम्) मध्यलोक (अभयम्) अभय (करति) करे, (इमे) यह (उभे) दोनों (द्यावापृथिवी) सूर्य और पृथिवी (अभयम्) अभय [करें]। (पश्चात्) पश्चिम में वा पीछे से (अभयम्) अभय हो, (पुरस्तात्) पूर्व में वा आगे से (अभयम्) अभय हो, (उत्तरात्) उत्तर में वा ऊपर से और (अधरात्) दक्षिण वा नीचे से (अभयम्) अभय (नः) हमारे लिये (अस्तु) हो ॥५॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जो राजा, विमान, अस्त्र-शस्त्र द्वारा आकाश से प्रजा की रक्षा करता है और सूर्य द्वारा हुई वृष्टि के प्रवाह का प्रबन्ध करके पृथिवी को उपजाऊ बनाता है, वह प्रजा को सुख पहुँचाकर बली होता है। आध्यात्मिक पक्ष में यह भावार्थ है कि हम सब पुरुषार्थ करके परमात्मा के अनुग्रह से सब कालों और सब स्थानों में निर्भय रहें ॥५॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ५−(अभयम्) भयराहित्यम् (नः) अस्मभ्यम् (करति) लेटि अडागमः। कुर्यात् (अन्तरिक्षम्) मध्यलोकः (अभयम्) कुर्यातामिति शेषः (द्यावापृथिवी) सूर्यपृथिव्यौ (उभे) (इमे) (अभयम्) (पश्चात्) पश्चिमस्यां दिशि पृष्ठदेशे वा (अभयम्) (पुरस्तात्) पूर्वस्यां दिशि, अग्रदेशे वा (अभयम्) (उत्तरात्) उत्तरस्यां दिशि, उपरिदेशे वा (अधरात्) दक्षिणस्यां दिशि, अधोदेशे वा (अभयम्) (नः) अस्मभ्यम् (अस्तु) ॥

०६ अभयं मित्रादभयममित्रादभयम्

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अभ॑यं मि॒त्रादभ॑यम॒मित्रा॒दभ॑यं ज्ञा॒तादभ॑यं पु॒रो यः।
अभ॑यं॒ नक्त॒मभ॑यं दिवा नः॒ सर्वा॒ आशा॒ मम॑ मि॒त्रं भ॑वन्तु ॥

०६ अभयं मित्रादभयममित्रादभयम् ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Fearlessness from friend, fearlessness from enemy, fearlessness from
    one known, fearlessness [from one] that is away; fearlessness for us
    by night, fearlessness by day; be all places my friend.
Notes

At the beginning of b, all the mss. read ábhaye, but even SPP.
emends to -yam, having the comm. with him. At the end of the same
pāda, all ⌊so also Ppp.⌋ give puró yaḥ (p. puráḥ: yáḥ), which SPP.
retains; the comm. reads paro yaḥ, but understands it as if páro
yáḥ
, explaining as jñātād anyaḥ or aparijñātaḥ. Our emendation to
parókṣāt is defensible; but the translation implies paró yáḥ, as a
less alteration. ⌊In d, Ppp. combines sarvā ”śā and omits máma.⌋
⌊“Save me from my friends:” cf. ii. 28. 1 d and note; also RV. iv.
55. 5, where the antithesis between jányam áṅhas and mitríyam áṅhas
is most instructive.⌋

Griffith

Safety be ours from friend and from the unfriendly, safety from what we know and what we know not. Safety be ours by night and in the day-time! friendly to me be all my hopes and wishes!

पदपाठः

अभ॑यम्। मि॒त्रात्। अभ॑यम्। अ॒मित्रा॑त्। अभ॑यम्। ज्ञा॒तात्। अभ॑यम्। पु॒रः। यः। अभ॑यम्। नक्त॑म्। अभ॑यम्। दिवा॑। नः॒। सर्वाः॑। आशाः॑। मम॑। मि॒त्रम्। भ॒व॒न्तु॒। १५.६।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • मन्त्रोक्ताः
  • अथर्वा
  • त्रिष्टुप्
  • अभय सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

राजा के कर्त्तव्य का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (मित्रात्) मित्र से (अभयम्) अभय और (अमित्रात्) अमित्र [पीड़ा देने हारे] से (अभयम्) अभय हो, (ज्ञातात्) जानकार से (अभयम्) अभय और (यः) जो (पुरः) सामने है [उससे भी] (अभयम्) अभय हो। (नः) हमारे लिये (नक्तम्) रात्रि में (अभयम्) अभय और (दिवा) दिन में (अभयम्) अभय हो, (मम) मेरी (सर्वाः) सब (आशाः) आशाएँ (मित्रम्) मित्र (भवन्तु) होवें ॥६॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य को चाहिये कि सर्वदा सब प्रकार चौकस रहकर परमात्मा के विश्वास से और राजा के सुप्रबन्ध से अपनी रक्षा करे ॥६॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ६−(अभयम्) भयराहित्यम् (मित्रात्) सुहृदः सकाशात् (अभयम्) (अमित्रात्) अम पीडने-इत्रप्रत्ययः। पीडकात् (अभयम्) (ज्ञातात्) परिचितात् (अभयम्) (पुरः) पुरस्तात् (यः) (अभयम्) (नक्तम्) रात्रौ (अभयम्) (दिवा) दिने (नः) अस्मभ्यम् (सर्वाः) (आशाः) दीर्घाकाङ्क्षाः (मित्रम्) (भवन्तु) ॥६॥