०१० शान्तिः ...{Loading}...
Whitney subject
- For well-being.
VH anukramaṇī
शान्तिः।
१-१० वसिष्ठः। बहुदैवत्यम्। त्रिष्टुप्।
Whitney anukramaṇī
[Brahman (śāntikāmaḥ).—daśa. sāumyam. trāiṣṭubham.]
Whitney
Comment
This hymn and the one following it are together RV. vii. 35, this one being vss. 1-10 of the latter, in unchanged order, and without a variant except in 8 b. Both are found together in Pāipp. xiii. ⌊For the quotation of the hymn in the śānti gaṇa, see note to Kāuś. 9. 7.⌋
Translations
Translated: Griffith, ii. 270; and also, of course, by the RV. translators.
Griffith
A prayer for the same
०१ शं न
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
शं न॑ इन्द्रा॒ग्नी भ॑वता॒मवो॑भिः॒ शं न॑ इन्द्रा॒वरु॑णा रा॒तह॑व्या।
शमि॑न्द्रा॒सोमा॑ सुवि॒ताय॒ शं योः शं न॒ इन्द्रा॑पू॒षणा॒ वाज॑सातौ ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
शं न॑ इन्द्रा॒ग्नी भ॑वता॒मवो॑भिः॒ शं न॑ इन्द्रा॒वरु॑णा रा॒तह॑व्या।
शमि॑न्द्रा॒सोमा॑ सुवि॒ताय॒ शं योः शं न॒ इन्द्रा॑पू॒षणा॒ वाज॑सातौ ॥
०१ शं न ...{Loading}...
Whitney
Translation
- Weal for us be Indra-and-Agni, with their aids; weal for us
Indra-and-Varuṇa, on whom offerings are bestowed; weal Indra-and-Soma,
for welfare, weal [and] profit (yós); weal for us Indra-and-Pūshan
in booty-winning.
Notes
This verse is found also in VS. xxxvi. 11, which inverts the order of
pādas c and d. The comm. takes indrāgnī in a as vocative
⌊and says so expressly; but⌋ apparently out of mere carelessness, as he
does not make any change in the 3d du. verb bhavatām.
Griffith
Befriend us with their aids Indra and Agni, Indra and Varuna who receive oblations! Indra and Soma give health, wealth and comfort, Indra and Pushan be our strength in battle!
पदपाठः
शम्। नः॒। इ॒न्द्रा॒ग्नी इति॑। भ॒व॒ता॒म्। अवः॑ऽभिः। शम्। नः॒। इन्द्रा॒वरु॑णा। रा॒तऽह॑व्या। शम्। इन्द्रा॒सोमा॑। सु॑वि॒ताय॑। शम्। योः। शम्। नः॒। इन्द्रा॑पू॒षणा॑। वाज॑ऽसातौ। १०.१।
अधिमन्त्रम् (VC)
- मन्त्रोक्ताः
- ब्रह्मा
- त्रिष्टुप्
- शान्ति सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
सृष्टि के पदार्थों से उपकार लेने का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (इन्द्राग्नी) बिजुली और साधारण अग्नि दोनों (अवोभिः) रक्षासाधनों के साथ (नः) हमें (शम्) शान्तिदायक (भवताम्) हों (रातहव्या) ग्राह्य पदार्थों के देनेहारे (इन्द्रावरुणा) बिजुली और जल दोनों (नः) हमें (शम्) शान्तिदायक [हों]। (शम्) शान्तिदायक (इन्द्रासोमा) बिजुली और चन्द्रमा (सुविताय) ऐश्वर्य के लिये (शम्) रोगनाशक और (योः) भयनिवारक हों, (इन्द्रापूषणा) बिजुली और पवन (वाजसातौ) पराक्रम के लाभ वा सङ्ग्राम में (नः) हमें (शम्) शान्तिदायक हों ॥१॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मनुष्यों को योग्य है कि परमेश्वर की सृष्टि में बिजुली आदि पदार्थों से सदा उपकार लेते रहें ॥१॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: यह सूक्त, मन्त्र १-१० [मन्त्र ८ कुछ भेद से] ऋग्वेद में है−७।३५।१-१०, और महर्षिदयानन्दकृत भाष्य में भी व्याख्यात हैं, यह मन्त्र कुछ भेद से यजुर्वेद में है−३६।११ ॥ १−(शम्) सुखकारकौ (नः) अस्मभ्यम् (इन्द्राग्नी) विद्युत्पावकौ (भवताम्) (अवोभिः) रक्षासाधनैः (शम्) (नः) (इन्द्रावरुणा) विद्युज्जले (रातहव्या) रातानि दत्तानि हव्यानि ग्राह्याणि वस्तूनि याभ्यां तौ (शम्) सुखकरौ (इन्द्रासोमा) विद्युच्चन्द्रौ (सुविताय) पिशेः किच्च। उ० ३।९५। षू ऐश्वर्ये-इतन् स च कित्। ऐश्वर्याय (शम्) शमु उपशमे-विच्। रोगनाशकौ (योः) अ० १।६।१। अन्येभ्योऽपि दृश्यन्ते। पा० ३।२।७५। इति यु मिश्रणामिश्रणयोः-विच्, सकारश्छान्दसः, यद्वा। यु−डोसि। शंयोः शमनं च रोगाणां यावनं च भयानाम्-निरु० ४।२१। भयनिवारकौ (वाजसातौ) षण संभक्तौ−क्तिन्। पराक्रमस्य लाभे सङ्ग्रामे वा ॥
०२ शं नो
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
शं नो॒ भगः॒ शमु॑ नः॒ शंसो॑ अस्तु॒ शं नः॒ पुर॑न्धिः॒ शमु॑ सन्तु॒ रायः॑।
शं नः॑ स॒त्यस्य॑ सु॒यम॑स्य॒ शंसः॒ शं नो॑ अर्य॒मा पु॑रुजा॒तो अ॑स्तु ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
शं नो॒ भगः॒ शमु॑ नः॒ शंसो॑ अस्तु॒ शं नः॒ पुर॑न्धिः॒ शमु॑ सन्तु॒ रायः॑।
शं नः॑ स॒त्यस्य॑ सु॒यम॑स्य॒ शंसः॒ शं नो॑ अर्य॒मा पु॑रुजा॒तो अ॑स्तु ॥
०२ शं नो ...{Loading}...
Whitney
Translation
- Weal for us be Bhaga, and weal for us śaṅsa; weal for us Purandhi,
and weal be wealths; weal for us the tribute (śáṅsa) of well-ordered
(suyáma) truth; weal for us be the much-born Aryaman.
Notes
About half the mss. read in c suyámaṣ tu (p. su॰yámastu). Pādas
b and c have dropped out of Ppp. The comm. takes śaṅsas in
a to be by abbreviation for narāśaṅsas.
Griffith
Auspicious friends to us be Bhaga. Sansa, auspicious be Pur- andhi and all Riches, The blessing of the true and well-conducted and Aryaman in many forms apparent.
पदपाठः
शम्। नः॒। भगः॑। शम्। ऊं॒ इति॑। नः॒। शंसः॑। अ॒स्तु॒। शम्। नः॒। पुर॑म्ऽधिः। शम्। ऊं॒ इति॑। स॒न्तु॒। रायः॑। शम्। नः॒। स॒त्यस्य॑। सु॒ऽयम॑स्य॑। शंसः॑। शम्। नः॒। अ॒र्य॒मा। पु॒रु॒ऽजा॒तः। अ॒स्तु॒। १०.२।
अधिमन्त्रम् (VC)
- मन्त्रोक्ताः
- ब्रह्मा
- त्रिष्टुप्
- शान्ति सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
सृष्टि के पदार्थों से उपकार लेने का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (नः) हमारा (भगः) ऐश्वर्य (शम्) शान्तिदायक, (उ) और (नः) हमारी (शंसः) स्तुति (शम्) शान्तिदायक (अस्तु) हो (नः) हमारी [पुरन्धिः] नगरों की धारण करनेहारी बुद्धि (शम्) शान्तिदायक हो, (उ) और (रायः) सब प्रकार के धन (शम्) शान्तिदायक (सन्तु) हों। (नः) हमारा (सत्यस्य) सच्चे (सुयमस्य) सुन्दर नियम का (शंसः) कथन (शम्) शान्तिदायक हो, (पुरुजातः) बहुत प्रसिद्ध (अर्यमा) श्रेष्ठों का मान करनेहारा [न्यायकारी परमेश्वर] (नः) हमें (शम्) शान्तिदायक (अस्तु) हो ॥२॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मनुष्य प्रयत्न करें कि उनका ऐश्वर्य, उनका कथन, उनका शासन आदि सब कार्य न्याययुक्त हो, जिससे वह जगदीश्वर सदा आनन्द देवे ॥२॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: २−(शम्) शान्तिप्रदः (नः) अस्माकम् (भगः) ऐश्वर्यम् (शम्) (उ) चार्थे (नः) (शंसः) शंसु हिंसास्तुतिकथनेषु-घञ्। स्तुतिः, कथनम् (अस्तु) (शम्) (नः) (पुरन्धिः) कर्मण्यधिकरणे च। पा० ३।३।९३। पुर्+डुधाञ् धारणपोषणयोः−कि प्रत्ययः, अलुक् समासः। पुरन्धिर्बहुधीः-निरु० ६।१३। पुरं गृहं नगरं शरीरं वा दधातीति। नगरस्य धारिका बुद्धिः (शम्) (उ) (सन्तु) (रायः) धनानि (शम्) (नः) (सत्यस्य) यथार्थस्य (सुयमस्य) शोभननियमस्य (शंसः) कथनम् (शम्) (नः) अस्मभ्यम् (अर्यमा) श्रेष्ठानां मानकर्ता न्यायकारी परमेश्वरः (पुरुजातः) बहुप्रसिद्धः (अस्तु) ॥
०३ शं नो
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
शं नो॑ धा॒ता शमु॑ ध॒र्ता नो॑ अस्तु॒ शं न॑ उरू॒ची भ॑वतु स्व॒धाभिः॑।
शं रोद॑सी बृह॒ती शं नो॒ अद्रिः॒ शं नो॑ दे॒वानां॑ सु॒हवा॑नि सन्तु ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
शं नो॑ धा॒ता शमु॑ ध॒र्ता नो॑ अस्तु॒ शं न॑ उरू॒ची भ॑वतु स्व॒धाभिः॑।
शं रोद॑सी बृह॒ती शं नो॒ अद्रिः॒ शं नो॑ दे॒वानां॑ सु॒हवा॑नि सन्तु ॥
०३ शं नो ...{Loading}...
Whitney
Translation
- Weal for us be Dhātar, and weal for us Dhartar; weal for us be the
wide-spreading one (urūcī́) with her powers (? svadhā́); weal the two
great firmaments (ródasī), weal for us the rock (ádri); weal for us
be the successful invocations of the gods.
Notes
The mss. write in b urūcī́, urucī́, and ūrūcī́; the comm.
explains it as the earth, dhartṛ as Varuṇa, separator (vidhārayitṛ)
of the good and bad, and svadhā as anna; adri he simply glosses by
parvata.
Griffith
Kind unto us be Maker and Sustainer and the far-reaching One with godlike nature. Auspicious unto us be Earth and Heaven, the Mountain and the Gods’ fair invocations.
पदपाठः
शम्। नः॒। धा॒ता। शम्। ऊं॒ इति॑। ध॒र्ता। नः॒। अ॒स्तु॒। शम्। नः॒। उ॒रू॒ची। भ॒व॒तु॒। स्व॒धाभिः॑। शम्। रोद॑सी॒ इति॑। बृ॒ह॒ती॒ इति॑। शम्। नः॒। अद्रिः॑। शम्। नः॒। दे॒वाना॑म्। सु॒ऽहवा॑नि। स॒न्तु॒। १०.३।
अधिमन्त्रम् (VC)
- मन्त्रोक्ताः
- ब्रह्मा
- त्रिष्टुप्
- शान्ति सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
सृष्टि के पदार्थों से उपकार लेने का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (धाता) पोषण करनेवाला [पदार्थ] (नः) हमें (शम्) शान्तिकारक हो, (उ) और (धर्ता) धारण करनेवाला [पदार्थ] (नः) हमें (शम्) शान्तिदायक (अस्तु) हो, (उरूची) बहुत फैली हुई प्रकृति [जगत् सामग्री] (नः) हमें (स्वधाभिः) अपनी धारण शक्तियों से (शम्) शान्तिकारक (भवतु) हो। (बृहती) दोनों बड़े (रोदसी) सूर्य और भूमि, (शम्) शान्तिकारक हों (अद्रिः) मेघ (नः) हमें (शम्) शान्तिकारक हो, (देवानाम्) विद्वानों के (सुहवानि) सुन्दर बुलावे (नः) हमें (शम्) शान्तिकारक (सन्तु) होवें ॥३॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मनुष्यों को चाहिये कि वे धारण-पोषण करनेवाले पदार्थों के तत्त्व, प्रकृति के स्वभाव, सूर्य, पृथिवी, मेघ आदि के प्रभावों के ज्ञान से उपकारी होकर विद्वानों में प्रतिष्ठा पाकर सुखी होवें ॥३॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ३−(शम्) शान्तिकारकः (नः) अस्मभ्यम् (धाता) पोषकः पदार्थः (शम्) (उ) चार्थे (धर्ता) धारकः पदार्थः (नः) (अस्तु) (शम्) (नः) (उरूची) बह्वञ्चना। विस्तीर्णव्यापिका प्रकृतिः (भवतु) (स्वधाभिः) आत्मधारणशक्तिभिः (शम्) (रोदसी) द्यावापृथिव्यौ (बृहती) बृहत्यौ। विशाले (शम्) (नः) (अद्रिः) मेघः (शम्) (नः) (देवानाम्) विदुषाम् (सुहवानि) सत्कारेणाह्वानानि (सन्तु) ॥
०४ शं नो
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शं नो॑ अ॒ग्निर्ज्योति॑रनीको अस्तु॒ शं नो॑ मि॒त्रावरु॑णाव॒श्विना॒ शम्।
शं नः॑ सु॒कृतां॑ सुकृ॒तानि॑ सन्तु॒ शं न॑ इषि॒रो अ॒भि वा॑तु॒ वातः॑ ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
शं नो॑ अ॒ग्निर्ज्योति॑रनीको अस्तु॒ शं नो॑ मि॒त्रावरु॑णाव॒श्विना॒ शम्।
शं नः॑ सु॒कृतां॑ सुकृ॒तानि॑ सन्तु॒ शं न॑ इषि॒रो अ॒भि वा॑तु॒ वातः॑ ॥
०४ शं नो ...{Loading}...
Whitney
Translation
- Weal for us be Agni with front of light, weal for us
Mitra-and-Varuṇa, weal the two Aśvins; weal for us be the things well
done of the well-doers; weal let the lively (iṣirá) wind blow upon us.
Notes
Ppp. has in b -ṇā aśvinā.
Griffith
Favour us Agni with his face of splendour, and Varuna and’ Mitra and the Asvins. Favour us noble actions of the pious; impetuous Vata blow on, us with favour!
पदपाठः
शम्। नः॒। अ॒ग्निः। ज्योतिः॑ऽअनीकः। अ॒स्तु॒। शम्। नः॒। मि॒त्रावरु॑णौ। अ॒श्विना॑। शम्। शम्। नः॒। सु॒ऽकृता॑म्। सु॒ऽकृ॒तानि॑। स॒न्तु॒। शम्। नः॒। इ॒षि॒रः। अ॒भि। वा॒तु॒। वातः॑। १०.४।
अधिमन्त्रम् (VC)
- मन्त्रोक्ताः
- ब्रह्मा
- त्रिष्टुप्
- शान्ति सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
सृष्टि के पदार्थों से उपकार लेने का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (ज्योतिरनीकः) ज्योति को सेना समान रखनेवाला (अग्निः) अग्नि (नः) हमें (शम्) शान्तिकारक (अस्तु) हो, (मित्रावरुणौ) दोनों दिन और राति (नः) हमें (शम्) शान्तिकारक हों (अश्विना) दोनों सूर्य और चन्द्रमा (शम्) शान्तिकारक हों। (सुकृताम्) सुकर्मियों के (सुकृतानि) पुण्य कर्म (नः) हमें (शम्) शान्तिकारक (सन्तु) हों, (इषिरः) शीघ्रगामी (वातः) पवन (नः) हमारे लिये (शम्) शान्तिकारक (अभि) सब ओर से (वातु) चले ॥४॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य अग्नि, दिन, राति, सूर्य, चन्द्रमा और वायु आदि की गति से विद्वानों के समान उपकार लेते हैं, वे सुखी रहते हैं ॥४॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ४−(शम्) शान्तिप्रदः (नः) (अग्निः) पावकः (ज्योतिरनीकः) ज्योतिरेवानीकं सैन्यमिव यस्य सः (अस्तु) (शम्) (नः) (मित्रावरुणौ) अहोरात्रे (अश्विना) सूर्याचन्द्रमसौ (शम्) (शम्) (नः) (सुकृताम्) पुण्यकर्मणाम् (सुकृतानि) पुण्यकर्माणि (सन्तु) (शम्) (नः) अस्मभ्यम् (इषिरः) वेगवान् (अभि) सर्वतः (वातु) गच्छतु (वातः) वायुः ॥
०५ शं नो
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शं नो॒ द्यावा॑पृथि॒वी पू॒र्वहू॑तौ॒ शम॒न्तरि॑क्षं दृ॒शये॑ नो अस्तु।
शं न॒ ओष॑धीर्व॒निनो॑ भवन्तु॒ शं नो॒ रज॑स॒स्पति॑रस्तु जि॒ष्णुः ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
शं नो॒ द्यावा॑पृथि॒वी पू॒र्वहू॑तौ॒ शम॒न्तरि॑क्षं दृ॒शये॑ नो अस्तु।
शं न॒ ओष॑धीर्व॒निनो॑ भवन्तु॒ शं नो॒ रज॑स॒स्पति॑रस्तु जि॒ष्णुः ॥
०५ शं नो ...{Loading}...
Whitney
Translation
- Weal for us be heaven-and-earth in our early invocation; the
atmosphere be weal for us to see; weal for us be the herbs, the trees
(vanín), weal for us be the conquering lord of the welkin (rájas).
Notes
The comm. regards Indra as intended in the last pāda.
Griffith
Early invoked may Heaven and Earth be friendly, and Air’s mid-region good for us to look on. To us may herbs and forest trees be gracious, gracious the Lord victorious of the region.
पदपाठः
शम्। नः॒। द्यावा॑पृथि॒वी इति॑। पू॒र्वऽहू॑तौ। शम्। अ॒न्तरि॑क्षम्। दृ॒शये॑। नः॒। अ॒स्तु॒। शम्। नः॒। ओष॑धीः। व॒निनः॑। भ॒व॒न्तु॒। शम्। नः॒। रज॑सः। पतिः॑। अ॒स्तु॒। जि॒ष्णुः॒। १०.५।
अधिमन्त्रम् (VC)
- मन्त्रोक्ताः
- ब्रह्मा
- त्रिष्टुप्
- शान्ति सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
सृष्टि के पदार्थों से उपकार लेने का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (पूर्वहूतौ) पहिले बुलावे [अर्थात् कार्य के आरम्भ में] (द्यावापृथिवी) सूर्य और भूमि (नः) हमें (शम्) शान्तिदायक हों, (अन्तरिक्षम्) मध्यलोक [मध्यवर्ती अवकाश] (दृशये) देखने के लिये (नः) हमें (शम्) शान्तिदायक (अस्तु) हो। (ओषधीः) ओषधियाँ [अन्न सोमलता आदि] और (वनिनः) वन के पदार्थ (नः) हमें (शम्) शान्तिदायक (भवन्तु) हों (रजसः) लोक का (पतिः) स्वामी (जिष्णुः) विजयी मनुष्य (नः) हमें (शम्) शान्तिदायक (अस्तु) हो ॥५॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - कार्य के आरम्भ में मनुष्य विचार लें कि सूर्य और भूमि के कारण से ग्रीष्म, वर्षा, शीत आदि ऋतुएँ अनुकूल हों, आकाश निर्मल हो, अन्न आदि पदार्थ पुष्कल हों, जिससे मनोरथ सिद्धि में विजय प्राप्त हो ॥५॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ५−(शम्) शान्तिप्रदौ (नः) अस्मभ्यम् (द्यावापृथिवी) सूर्यभूमिलोकौ (पूर्वहूतौ) प्रथमाह्वाने। कार्यारम्भे (शम्) (अन्तरिक्षम्) मध्यवर्त्यवकाशः (दृशये) दर्शनाय (नः) (अस्तु) (शम्) (नः) (ओषधीः) अन्नसोमलतादयः (वनिनः) वने भवाः पदार्थाः (भवन्तु) (शम्) (नः) (रजसः) लोकस्य (पतिः) पालकः पुरुषः (अस्तु) (जिष्णुः) विजयी ॥
०६ शं न
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
शं न॒ इन्द्रो॒ वसु॑भिर्दे॒वो अ॑स्तु॒ शमा॑दि॒त्येभि॒र्वरु॑णः सु॒शंसः॑।
शं नो॑ रु॒द्रो रु॒द्रेभि॒र्जला॑षः॒ शं न॒स्त्वष्टा॒ ग्नाभि॑रि॒ह शृ॑णोतु ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
शं न॒ इन्द्रो॒ वसु॑भिर्दे॒वो अ॑स्तु॒ शमा॑दि॒त्येभि॒र्वरु॑णः सु॒शंसः॑।
शं नो॑ रु॒द्रो रु॒द्रेभि॒र्जला॑षः॒ शं न॒स्त्वष्टा॒ ग्नाभि॑रि॒ह शृ॑णोतु ॥
०६ शं न ...{Loading}...
Whitney
Translation
- Weal for us be god Indra with the Vasus; weal Varuṇa of excellent
praise ⌊su-śáṅsa⌋ with the Ādityas; weal for us healing (jálāsa)
Rudra with the Rudras; unto weal for us let Tvashṭar listen here with
his spouses (gnā́).
Notes
The comm. declares jalāṣa a sukhanāman. All the pada-mss. have in
d tváṣṭā: agnā́bhiḥ! SPP. emends to gnā́bhiḥ; the comm. of course
has gnābhis and glosses it with devapatnībhis. ⌊As to suśáṅsa, cf.
note to xviii. 3. 16.⌋
Griffith
Be the God Indra with the Vasus friendly, and with Adityas Varuna who blesseth. Kind with the Rudras be the healer Rudra, and with the Dames here Tvashtar kindly hear us.
पदपाठः
शम्। नः॒। इन्द्रः॑। वसु॑ऽभिः। दे॒वः। अ॒स्तु॒। शम्। आ॒दि॒त्येभिः॑। वरु॑णः। सु॒ऽशंसः॑। शम्। नः॒। रु॒द्रः। रु॒द्रेभिः॑। जला॑षः। शम्। नः॒। त्वष्टा॑। ग्नाभिः॑। इ॒ह। शृ॒णो॒तु॒। १०.६।
अधिमन्त्रम् (VC)
- मन्त्रोक्ताः
- ब्रह्मा
- त्रिष्टुप्
- शान्ति सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
सृष्टि के पदार्थों से उपकार लेने का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (देवः) प्रकाशमान (इन्द्रः) सूर्य (वसुभिः) अनेक धनों वा किरणों से (नः) हमें (शम्) शान्तिदायक (अस्तु) हो, (सुशंसः) उत्तम गुणवाला (वरुणः) जल (आदित्येभिः) सूर्य के किरणों के साथ (शम्) शान्तिदायक हो। (जलाषः) जीवों की अभिलाषा पूरी करनेहारा (रुद्रः) ज्ञानदाता परमेश्वर (रुद्रेभिः) ज्ञानदाता मुनियों द्वारा (नः) हमें (शम्) शान्तिदायक हो, (शम्) शान्तिदायक (त्वष्टा) विश्वकर्मा जगदीश्वर (ग्नाभिः) [हमारी] वाणियों द्वारा (इह) यहाँ पर (नः) हमारी [प्रार्थना] (शृणोतु) सुने ॥६॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य सूर्य वा प्रकाश और जलादि की विद्या में निपुण होके परमात्मा के ज्ञान को प्राप्त होते हैं, वे सदा सुख पाते हैं ॥६॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ६−(शम्) शान्तिप्रदः (नः) अस्मभ्यम् (इन्द्रः) सूर्यः (वसुभिः) धनैः। किरणैः (देवः) प्रकाशमानः (अस्तु) (शम्) (आदित्येभिः) आदित्य-ण्य। आदित्यकिरणैः (वरुणः) जलसमूहः (सुशंसः) उत्तमगुणयुक्तः (शम्) (नः) (रुद्रः) रुतो ज्ञानस्य राता दाता (रुद्रेभिः) ज्ञानदातृभिर्मुनिभिः (जलाषः) जनी जनने ड+लष वाञ्छायाम्-घञ्। जानां जातानां लषो वाञ्छा यस्मात् सः (शम्) (नः) अस्माकं प्रार्थनाम् (त्वष्टा) विश्वकर्मा सर्वकर्ता (ग्नाभिः) वाग्भिः-निघ० १।११ (इह) अस्मिन् विषये (शृणोतु) आकर्णयतु ॥
०७ शं नः
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
शं नः॒ सोमो॑ भवतु॒ ब्रह्म॒ शं नः॒ शं नो॒ ग्रावा॑णः॒ शमु॑ सन्तु य॒ज्ञाः।
शं नः॒ स्वरू॑णां मि॒तयो॑ भवन्तु॒ शं नः॑ प्र॒स्वः१॒॑ शम्व॑स्तु॒ वेदिः॑ ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
शं नः॒ सोमो॑ भवतु॒ ब्रह्म॒ शं नः॒ शं नो॒ ग्रावा॑णः॒ शमु॑ सन्तु य॒ज्ञाः।
शं नः॒ स्वरू॑णां मि॒तयो॑ भवन्तु॒ शं नः॑ प्र॒स्वः१॒॑ शम्व॑स्तु॒ वेदिः॑ ॥
०७ शं नः ...{Loading}...
Whitney
Translation
- Weal for us be soma, weal for us the bráhman; weal for us the
pressing-stones, and weal be the sacrifices; weal for us be the settings
of the sacrificial posts; weal for us the sprouts (prasū́), and weal be
the sacrificial hearth (védi).
Notes
The sprouts, namely, of sacrificial grass. The comm. declares svaru
used in the sense of yūpa as the thing possessed for the possessor.
⌊The last pāda has dropped out of Ppp.⌋
Griffith
Kind unto us be Soma and Devotions, kind be the sacrifice and Stones for pressing. Kind be the fixing of the Sacred Pillars, kind be the tender Grass, and kind the Altar.
पदपाठः
शम्। नः॒। सोमः॑। भ॒व॒तु॒। ब्रह्म॑। शम्। नः॒। शम्। नः॒। ग्रावा॑णः। शम्। ऊं॒ इति॑। स॒न्तु॒। य॒ज्ञाः। शम्। नः॒। स्वरू॑णाम्। मि॒तयः॑। भ॒व॒न्तु॒। शम्। नः॒। प्र॒ऽस्वः᳡। शम्। ऊं॒ इति॑। अ॒स्तु॒। वेदिः॑। १०.७।
अधिमन्त्रम् (VC)
- मन्त्रोक्ताः
- ब्रह्मा
- त्रिष्टुप्
- शान्ति सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
सृष्टि के पदार्थों से उपकार लेने का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (सोमः) परम ऐश्वर्यवाला परमात्मा (नः) हमें (शम्) शान्तिदायक (भवतु) हो, (ब्रह्म) वेद (नः) हमें (शम्) शान्तिदायक हो, (ग्रावाणः) विज्ञानी लोग (नः) हमें (शम्) शान्तिदायक हों, (उ) और (यज्ञाः) यज्ञ [अग्निहोत्र से शिल्प क्रिया तक] (शम्) शान्तिदायक (सन्तु) हों। (स्वरूणाम्) यूपों [जयस्तम्भों] के (मितयः) फैलाव (नः) हमें (शम्) शान्तिदायक (भवन्तु) हों, (प्रस्वः) ओषधें [अन्न सोमलता आदि] (नः) हमें (शम्) शान्तिदायक हों, (उ) और (वेदिः) वेदी [यज्ञकुण्ड, चौतरा आदि] (शम्) सुखदायक (अस्तु) हो ॥७॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मनुष्य परम पिता परमात्मा और परम पवित्र वेदों की शरण लेकर विद्वानों के मेल से यज्ञ और शिल्पविद्या का प्रचार करके संसार को सुख पहुँचावें ॥७॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ७−(शम्) शान्तिप्रदः (सोमः) परमैश्वर्यवान् जगदीश्वरः (भवतु) (ब्रह्म) वेदः (शम्) (नः) (शम्) (नः) (ग्रावाणः) अन्येभ्योऽपि दृश्यन्ते। पा० ३।२।७५। गॄ निगरणे, वा गॄ शब्दे विज्ञापने च-क्वनिप्। विज्ञानिनः (शम्) (उ) चार्थे (सन्तु) (यज्ञाः) अग्निहोत्रादयः शिल्पान्ताः (शम्) (नः) (स्वरूणाम्) शॄस्वृस्निहि०। उ० १।१०। स्वृ शब्दोपतापयोः−उ प्रत्ययः। यूपानाम्। विजयस्तम्भानाम् (मितयः) परिमाणानि। विस्ताराः (भवन्तु) (शम्) (नः) (प्रस्वः) प्र+सूयतेः-क्विप्। प्रकर्षेण सूयमाना जायमाना ओषधयः। अन्नसोमलतादयः (शम्) (उ) (अस्तु) (वेदिः) यज्ञकुण्डः। परिष्कृता चतुरस्रादिरूपा भूमिः ॥
०८ शं नः
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शं नः॒ सूर्य॑ उरु॒चक्षा॒ उदे॑तु॒ शं नो॑ भवन्तु प्र॒दिश॒श्चत॑स्रः।
शं नः॒ पर्व॑ता ध्रु॒वयो॑ भवन्तु॒ शं नः॒ सिन्ध॑वः॒ शमु॑ स॒न्त्वापः॑ ॥
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मूलम् (VS)
शं नः॒ सूर्य॑ उरु॒चक्षा॒ उदे॑तु॒ शं नो॑ भवन्तु प्र॒दिश॒श्चत॑स्रः।
शं नः॒ पर्व॑ता ध्रु॒वयो॑ भवन्तु॒ शं नः॒ सिन्ध॑वः॒ शमु॑ स॒न्त्वापः॑ ॥
०८ शं नः ...{Loading}...
Whitney
Translation
- With weal for us let the wide-looking sun arise; weal for us be the
four directions; weal for us be the firm mountains; weal for us the
rivers, and weal be the waters.
Notes
The RV. order of words in b ⌊cf. introd.⌋ is this: śáṁ naś cátasraḥ
pradíśo bhavantu. ⌊The first pāda has dropped out of Ppp.⌋
Griffith
May the far-seeing Sun rise up to bless us: be the four quarters- of the heaven auspicious. Auspicious be the firmly-seated Mountains, auspicious be the Rivers and the Waters.
पदपाठः
शम्। नः॒। सूर्यः॑। उ॒रु॒ऽचक्षाः॑। उत्। ए॒तु॒। शम्। नः॒। भ॒व॒न्तु॒। प्र॒ऽदिशः॑। चत॑स्रः। शम्। नः॒। पर्व॑ताः। ध्रु॒वयः॑। भ॒व॒न्तु॒। शम्। नः॒। सिन्ध॑वः। शम्। ऊं॒ इति॑। स॒न्तु॒। आपः॑। १०.८।
अधिमन्त्रम् (VC)
- मन्त्रोक्ताः
- ब्रह्मा
- त्रिष्टुप्
- शान्ति सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
सृष्टि के पदार्थों से उपकार लेने का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (उरुचक्षाः) दूर तक दिखानेवाला (सूर्यः) सूर्य (नः) हमें (शम्) सुखदायक (उत् एतु) उदय हो, (चतस्रः) चारों (प्रदिश) बड़ी दिशाएँ (नः) हमें (शम्) सुखदायक (भवन्तु) होवें। (ध्रुवयः) दृढ़ (पर्वताः) पहाड़ (नः) हमें (शम्) सुखदायक (भवन्तु) हों, (सिन्धवः) समुद्र वा नदियाँ (नः) हमें (शम्) सुखदायक हों, (उ) और (आपः) जल [वा प्राण] (शम्) सुखदायक (सन्तु) हों ॥८॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य विद्याबल से सूर्य के प्रकाश के समान सब दिशाओं को खोजते, पहाड़ों पर जाते, और नदियों को पार करते और कूप, वृष्टि आदि के जलों से खेती शिल्प आदि में काम लेते हैं, वे संसार में कीर्तिमान् होते हैं ॥८॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ८−(शम्) सुखप्रदः (नः) अस्मभ्यम् (सूर्यः) रविः (उरुचक्षाः) चक्षेर्बहुलं शिच्च। उ० ४।२३३। उरु+चक्षिङ् दर्शने-असि। विस्तीर्णं चक्षो दर्शनं यस्मात् सः (उदेतु) उदयं गच्छतु (शम्) (नः) (भवन्तु) (प्रदिशः) प्रकृष्टाः पूर्वादयो दिशः (चतस्रः) (शम्) (नः) (पर्वताः) शैलाः (ध्रुवयः) भुजेः किच्च। उ० ४।१४२। ध्रु स्थैर्ये-इ प्रत्ययः कित्। स्थिराः (भवन्तु) (शम्) (नः) (सिन्धवः) समुद्रा नद्यो वा (शम्) (उ) (सन्तु) (आपः) जलानि प्राणा वा ॥
०९ शं नो
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शं नो॒ अदि॑तिर्भवतु व्र॒तेभिः॒ शं नो॑ भवन्तु म॒रुतः॑ स्व॒र्काः।
शं नो॒ विष्णुः॒ शमु॑ पू॒षा नो॑ अस्तु॒ शं नो॑ भ॒वित्रं॒ शम्व॑स्तु वा॒युः ॥
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मूलम् (VS)
शं नो॒ अदि॑तिर्भवतु व्र॒तेभिः॒ शं नो॑ भवन्तु म॒रुतः॑ स्व॒र्काः।
शं नो॒ विष्णुः॒ शमु॑ पू॒षा नो॑ अस्तु॒ शं नो॑ भ॒वित्रं॒ शम्व॑स्तु वा॒युः ॥
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Whitney
Translation
- Weal for us be Aditi with her courses (vratá); weal for us be the
tuneful (svarká) Maruts; weal for us Vishṇu, and weal be for us
Pūshan; weal for us the place of being (? bhavítra), and weal be Vāyu.
Notes
The comm. glosses vratebhis with karmabhiḥ sārdham, and bhavitram
by bhuvanam udakam antarikṣaṁ vā. ⌊Ppp. also reads bhavitram.⌋
Griffith
May Aditi through holy works be gracious, and may the Maruts,_ loud in song, be friendly. May Vishnu give felicity, and, Pushan, and Air that cherisheth. our lives, and Vayu.
पदपाठः
शम्। नः॒। अदि॑तिः। भ॒व॒तु॒। व्र॒तेभिः॑। शम्। नः॒। भ॒व॒न्तु॒। म॒रुतः॑। सु॒ऽअ॒र्काः। शम्। नः॒। विष्णुः॑। शम्। ऊं॒ इति॑। पू॒षा। नः॒। अ॒स्तु॒। शम्। नः॒। भ॒वित्र॑म्। शम्। ऊं॒ इति॑। अ॒स्तु॒। वा॒युः। १०.९।
अधिमन्त्रम् (VC)
- मन्त्रोक्ताः
- ब्रह्मा
- त्रिष्टुप्
- शान्ति सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
सृष्टि के पदार्थों से उपकार लेने का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (अदितिः) अखण्ड वेदवाणी (व्रतेभिः) नियमों के साथ (नः) हमें (शम्) सुखदायक (भवतु) हो, (मरुतः) शूर वीर (स्वर्काः) बड़े पण्डित लोग (नः) हमें (शम्) सुखदायक (भवन्तु) हों। (विष्णुः) व्यापक यज्ञ (नः) हमें (शम्) सुखदायक हो, (उ) और (पूषा) पोषण करनेवाली पृथिवी (नः) हमें (शम्) सुखदायक (अस्तु) हो, (भवित्रम्) रहने का घर (नः) हमें (शम्) सुखदायक हो, (उ) और (वायुः) वायु (शम्) सुखदायक (अस्तु) हो ॥९॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मनुष्य वेदवाणी द्वारा उत्तम नियमों को ग्रहण करके विद्वानों के सत्सङ्ग से सब पदार्थों से उपकार लेकर पृथिवी पर सुख बढ़ाते रहें ॥९॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ९−(शम्) सुखप्रदा (नः) अस्मभ्यम् (अदितिः) अखण्डवेदवाणी (भवतु) (व्रतेभिः) नियमैः (शम्) (नः) (भवन्तु) (मरुतः) शूरवीराः (स्वर्काः) सुपूजनीयाः पण्डिताः (शम्) (नः) (विष्णुः) व्यापको यज्ञः (शम्) (उ) (पूषा) पोषिका पृथिवी-निघ० १।१ (नः) (अस्तु) (शम्) (नः) (भवित्रम्) अशित्रादिभ्य इत्रोत्रौ। उ० ४।१७३। भू सत्तायाम्-इत्र प्रत्ययः। भुवनम्। निवासस्थानम् (शम्) (उ) (अस्तु) (वायुः) पवनः ॥
१० शं नो
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शं नो॑ दे॒वः स॑वि॒ता त्राय॑माणः॒ शं नो॑ भवन्तू॒षसो॑ विभा॒तीः।
शं नः॑ प॒र्जन्यो॑ भवतु प्र॒जाभ्यः॒ शं नः॒ क्षेत्र॑स्य॒ पति॑रस्तु श॒म्भुः ॥
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मूलम् (VS)
शं नो॑ दे॒वः स॑वि॒ता त्राय॑माणः॒ शं नो॑ भवन्तू॒षसो॑ विभा॒तीः।
शं नः॑ प॒र्जन्यो॑ भवतु प्र॒जाभ्यः॒ शं नः॒ क्षेत्र॑स्य॒ पति॑रस्तु श॒म्भुः ॥
१० शं नो ...{Loading}...
Whitney
Translation
- Weal for us be the rescuing god Savitar; weal for us be the
outshining dawns; weal for us be Parjanya for our progeny; weal for us
be the wealful lord of the field (kṣétra).
Notes
The comm. quotes a verse to the effect that some regard Rudra, and some
Agni, as ’lord of the field.'
Griffith
Prosper us Savitar, the God who rescues, and let the radiant. Mornings be propitious. Propitious to our children be Parjanya, kind to us be the field’s benign Protector!
पदपाठः
शम्। नः॒। दे॒वः। स॒वि॒ता। त्राय॑माणः। शम्। नः॒। भ॒व॒न्तु॒। उ॒षसः॑। वि॒ऽभा॒तीः। शम्। नः॒। प॒र्जन्यः॑। भ॒व॒तु॒। प्र॒ऽजाभ्यः॑। शम्। नः॒। क्षेत्र॑स्य। पतिः॑। अ॒स्तु॒। श॒म्ऽभुः। १०.१०।
अधिमन्त्रम् (VC)
- मन्त्रोक्ताः
- ब्रह्मा
- त्रिष्टुप्
- शान्ति सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
सृष्टि के पदार्थों से उपकार लेने का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (देवः) प्रकाशमान (सविता) लोकों का चलानेवाला सूर्य (त्रायमाणः) रक्षा करता हुआ (नः) हमें (शम्) सुखदायक हो, (विभातीः) जगमगाती हुई (उषसः) प्रभात वेलाएँ (नः) हमें (शम्) सुखदायक (भवन्तु) हों। (पर्जन्य) सींचनेवाला मेघ (नः) हमें और (प्रजाभ्यः) प्रजाओं के लिये (शम्) सुखदायक (भवतु) हो, (शम्भुः) मङ्गलदाता (क्षेत्रस्य) खेत का (पतिः) स्वामी (नः) हमें (शम्) सुखदायक (अस्तु) हो ॥१०॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मनुष्य सूर्य के ताप की अनुकूलता का और मेघ से वृष्टि आदि का विचार करके खेती आदि व्यवहार करें और अन्न आदि की वृद्धि से सुखी होवें ॥१०॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: १०−(शम्) शान्तिप्रदः (नः) अस्मभ्यम् (देवः) प्रकाशमानः (सविता) लोकप्रेरकः सूर्यः (त्रायमाणः) रक्षन् (शम्) (नः) (भवन्तु) (उषसः) प्रभातवेलाः (विभातीः) विभात्यः। विशेषेण दीप्यमानाः (शम्) (नः) (पर्जन्यः) पर्जन्यः। उ० ३।१०३। पृषु सेचने-अन्यप्रत्ययः, षस्य जः। वृष्टिप्रदो मेघः (भवतु) (प्रजाभ्यः) प्रजानां हिताय (शम्) (क्षेत्रस्य) क्षि ऐश्वर्ये, निवासे च-ष्ट्रन्। शस्योत्पत्तिस्थानस्य (पतिः) स्वामी (अस्तु) (शम्भुः) मङ्गलप्रदः ॥