००९ शान्तिः

००९ शान्तिः ...{Loading}...

Whitney subject
  1. For appeasement and weal: to various divinities.
VH anukramaṇī

शान्तिः।
१-१४ वसिष्ठः (शन्तातिः) शान्तिः, बहुदैवन्यम्। अनुष्टुप्, शान्तिः, बहुदैवन्यम्। अनुष्टुप्, विराडुरोबृहती, पञ्चपदा पथ्यापङ्क्तिः, ९ पञ्चपदा ककुम्मती, १२ त्र्यवसाना सप्तपदाऽष्टिः, १४ चतुष्पदा संकृतिः।

Whitney anukramaṇī

[Brahman (śāntikāmaḥ).—caturdaśa. sāumyam. trāiṣṭubham: 1. virāḍ urobṛhatī; 5. 5-p. pathyāpan̄kti; 9 5-p. kakummatī; 12. 3-av. 7-p. aṣṭi; 14. 4-p. saṁkṛti.] ⌊The Anukr. adds: śeṣāḥ (that is vss. 2-4, 6-8, l0-ll, 13) kāṇḍapratīkatvenā* ’nuṣṭubhaḥ. There thus remains not a single vs. that is not excepted from the definition trāiṣṭubham!—The Berlin ms., in its treatment of hymns 9-12, after ekarcam (h. 12), adds: vāsiṣṭham vāiśvadevaṁ śantātīyaṁ trāiṣṭubham (these four words apply well to hymns 10-11) ādyam (hymn 9) mantroktabahudeuatyam. W. follows the London ms.⌋ *⌊At the beginning of its treatment of the kāṇḍa, the Anukr. says brahmakāṇḍam ānuṣṭubham.⌋

Whitney

Comment

The hymn is not found in Pāipp. The comm. finds it used in Pariśista 4. 5 (“muttering this, one should conduct a king to his dwelling-house”) and 6. 5 (in the piṣṭarātrikalpa), and in Nakṣ. K. 18, as a hymn belonging to the śānti gaṇa (cf. note to Kāuś. 9. 7).

Translations

Translated: Griffith, ii. 268.

Griffith

A prayer for general protection and prosperity

०१ शान्ता द्यौः

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

शा॒न्ता द्यौः शा॒न्ता पृ॑थि॒वी शा॒न्तमि॒दमु॒र्व१॒॑न्तरि॑क्षम्।
शा॒न्ता उ॑द॒न्वती॒रापः॑ शा॒न्ता नः॑ स॒न्त्वोष॑धीः ॥

०१ शान्ता द्यौः ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Appeased (śāntá) be heaven (dyú), appeased be earth, appeased be
    this wide atmosphere, appeased the waters rich in moisture (udanvánt),
    appeased be the herbs for us.
Notes

⌊With a, b, cf. AGS. ii. 4. 14; PGS. iii. 3. 6; MGS. ii. 8. 6 b.⌋

Griffith

Gentle be heaven, gentle be earth, gentle this spacious, atmosphere. Gentle be waters as they flow, gentle to us be plants and herbs!

पदपाठः

शा॒न्ता। द्यौः। शा॒न्ता। पृ॒थि॒वी। शा॒न्तम्। इ॒दम्। उ॒रु। अ॒न्तरि॑क्षम्। शा॒न्ताः। उ॒द॒न्वतीः॑। आपः॑। शा॒न्ताः। नः॒। स॒न्तु॒। ओष॑धीः। ९.१।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • शान्तिः, मन्त्रोक्ताः
  • ब्रह्मा
  • विराडुरोबृहती
  • शान्ति सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

मनुष्यों को कर्तव्य का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (द्यौः) प्रकाशमान [सूर्य आदि की विद्या] (शान्ता) शान्तियुक्त, (पृथिवी) चौड़ी [पृथिवी आदि] (शान्ता) शान्तियुक्त, (इदम्) यह (उरु) चौड़ा (अन्तरिक्षम्) मध्यवर्ती आकाश (शान्तम्) शान्तियुक्त [होवे]। (उदन्वतीः) उत्तम जलवाली (आपः) फैली हुई नदियाँ (शान्ताः) शान्तियुक्त और (ओषधीः) ओषधियाँ [अन्न सोमलता आदि] (नः) हमारे लिये (शान्ताः) शान्तियुक्त (सन्तु) होवें ॥१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्यों को योग्य है कि प्रकाशविद्या, भूमिविद्या, आकाशविद्या, जलविद्या, अन्न, ओषधि आदि की अनेक विद्याओं को प्राप्त करके संसार को सुख पहुँचावें ॥१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १−(शान्ता) शमु उपशमे-क्त। शान्तियुक्ता (द्यौः) प्रकाशमानः सूर्यादिलोकः (शान्ता) (पृथिवी) विस्तीर्णो भूम्यादिलोकः (शान्तम्) शान्तियुक्तम् (इदम्) दृश्यमानम् (उरु) विस्तीर्णम् (अन्तरिक्षम्) मध्ये वर्तमानमाकाशम् (शान्ताः) (उदन्वतीः) अ० १८।२।४८। उदकस्य उदन् मतौ, प्रशंसायां मतुप्। उदन्वत्यः। प्रशस्तजलाः (आपः) व्यापिका नद्यः (शान्ताः) (नः) अस्मभ्यम् (सन्तु) (ओषधीः) वा छन्दसि। पा० ६।१।१०६। इति यणादेशाभावे पूर्वसवर्णदीर्घः। ओषध्यः। अन्नसोमलतादयः ॥

०२ शान्तानि पूर्वरूपाणि

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

शा॒न्तानि॑ पूर्वरू॒पाणि॑ शा॒न्तं नो॑ अस्तु कृताकृ॒तम्।
शा॒न्तं भू॒तं च॒ भव्यं॑ च॒ सर्व॑मे॒व शम॑स्तु नः ॥

०२ शान्तानि पूर्वरूपाणि ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Appeased be the foretokens, appeased for us be the-done-and-undone,
    appeased both what is and what is to be: be just everything weal for us.
Notes

The comm. explains pūrvarūpāṇi first as kāryāpekṣayā
kāraṇāvasthāpannāni vastūni
, and again as “former births, the fruit of
evil deeds.” Instead of nas in b it reads me; and it points out
that ’the done’ means what is done that should not be done, and ’the
undone’ what was left undone that should have been done—which is far
from necessary or certain.

Griffith

Gentle be signs of coming change, and that which is and is not. done! Gentle be past and future, yea, let all be gracious unto us.

पदपाठः

शा॒न्तानि॑। पू॒र्व॒ऽरू॒पाणि॑। शा॒न्तम्। नः॒। अ॒स्तु॒। कृ॒त॒ऽअ॒कृ॒तम्। शा॒न्तम्। भू॒तम्। च॒। भव्य॑म्। च॒। सर्व॑म्। ए॒व। शम्। अ॒स्तु॒। नः॒। ९.२।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • शान्तिः, मन्त्रोक्ताः
  • ब्रह्मा
  • अनुष्टुप्
  • शान्ति सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

मनुष्यों को कर्तव्य का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (पूर्वरूपाणि) पूर्व रूप [आरम्भ के चिह्न] (शान्तानि) शान्तियुक्त, (कृताकृतम्) किया हुआ और न किया हुआ [मन में विचारा हुआ कर्म] (नः) हमारे लिये (शान्तम्) शान्तियुक्त (अस्तु) होवे। (भूतम्) बीता हुआ (च) और (भव्यम्) होनेवाला (शान्तम्) शान्तियुक्त (च) और (सर्वम्) सब (एव) ही (नः) हमारे लिये (शम्) शान्तियुक्त (अस्तु) होवे ॥२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - यह कार्य कैसे हुआ वा कैसे होगा, हमने किया है वा करना विचारा है, उस का फल क्या होगा, पूर्वजों के कर्म का क्या फल हुआ, आगे क्या होगा, ऐसा सोचकर मनुष्य उचित कर्तव्य करता हुआ आनन्द प्राप्त करे ॥२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २−(शान्तानि) शान्तियुक्तानि। सुखकराणि (पूर्वरूपाणि) प्रथमलक्षणानि। आरम्भचिह्नानि (नः) अस्मभ्यम् (अस्तु) (कृताकृतम्) कृतं निष्पादितम् अकृतमनिष्पादितं मनसि निर्धारितं कर्म (शान्तम्) (भूतम्) अतीतम् (च) (भव्यम्) भविष्यत्। अनागतम् (च) (सर्वम्) (एव) निश्चयेन (शम्) शान्तिकरम् (अस्तु) (नः) अस्मभ्यम् ॥

०३ इयं या

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

इ॒यं या प॑रमे॒ष्ठिनी॒ वाग्दे॒वी ब्रह्म॑संशिता।
ययै॒व स॑सृ॒जे घो॒रं तयै॒व शान्ति॑रस्तु नः ॥

०३ इयं या ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. This speech that is most exalted, divine, sharpened by bráhman, by
    which is produced (sṛj) what is terrible—by that be there appeasement
    for us.
Notes
Griffith

Quickened by Prayer, this Goddess Vak who standeth in the highest place, By whom the awful spell was made, even through her to us be peace!

पदपाठः

इ॒यम्। या। प॒र॒मे॒ऽस्थिनी॑। वाक्। दे॒वी। ब्रह्म॑ऽसंशिता। यया॑। ए॒व। स॒सृ॒जे। घोरम्। तया॑। ए॒व। शान्तिः॑। अ॒स्तु॒। नः॒। ९.३।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • शान्तिः, मन्त्रोक्ताः
  • ब्रह्मा
  • अनुष्टुप्
  • शान्ति सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

मनुष्यों को कर्तव्य का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (इयम्) यह (या) जो (परमेष्ठिनी) सर्वोत्कृष्ट परमात्मा में ठहरनेवाली, (देवी) उत्तमगुणवाली (वाक्) वाणी (ब्रह्मसंशिता) वेदज्ञान से तीक्ष्ण की गयी है, और (यया) जिस [वाणी] के द्वारा (एव) ही (घोरम्) घोर [भयङ्कर पाप] (ससृजे) उत्पन्न हुआ है, (तया) उस [वाणी] के द्वारा (एव) ही (नः) हमारे लिये (शान्तिः) शान्ति [धैर्य, आनन्द] (अस्तु) होवे ॥३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जिस वाणी के द्वारा वेदों को विचार कर परमात्मा को पहुँचते हैं, यदि उस वाणी द्वारा कोई अनर्थ होवे, विद्वान् मनुष्य उस भूल को उचित व्यवहार से सुधारकर शान्ति स्थापित करे ॥३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ३−(इयम्) दृश्यमाना (या) (परमेष्ठिनी) परमे कित्। उ० ४।१०। परम+ष्ठा गतिनिवृत्तौ-इनि कित्, ङीप्, सप्तम्या अलुक् षत्वं च। परमे सर्वोत्कृष्टे परमात्मनि स्थितिशीला (वाक्) वाणी (देवी) दिव्यगुणा (ब्रह्मसंशिता) ब्रह्मणा वेदज्ञानेन सम्यक् तीक्ष्णीकृता उत्तेजिता (यया) वाचा (एव) निश्चयेन (ससृजे) सृष्टम्। उत्पन्नम् (घोरम्) भयङ्करं पापम् (तया) वाचा (एव) (शान्तिः) सुखकरी क्रिया। धैर्यम्। आनन्दः (अस्तु) (नः) अस्मभ्यम् ॥

०४ इदं यत्परमेष्ठिनम्

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

इ॒दं यत्प॑रमे॒ष्ठिनं॒ मनो॑ वां॒ ब्रह्म॑संशितम्।
येनै॒व स॑सृ॒जे घो॒रं तेनै॒व शान्ति॑रस्तु नः ॥

०४ इदं यत्परमेष्ठिनम् ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Or (?) this mind that is most exalted, sharpened by bráhman, by
    which is produced what is terrible—by that be there appeasement for us.
Notes

All the mss. read in b vām instead of , and SPP’s text follows
them. The comm. makes no mention of either in its exposition of the
verse; but its text (so SPP. reports) reads , as does ours by
emendation.

Griffith

Or, made more keen by Prayer, this mind that standeth in the highest place, Whereby the awful spell was made, even through this be peace to us!

पदपाठः

इ॒दम्। यत्। प॒र॒मे॒ऽस्थिन॑म्। मनः॑। वा॒म्। ब्रह्म॑ऽसंशितम्। येन॑। ए॒व। स॒सृ॒जे। घो॒रम्। तेन॑। ए॒व। शान्तिः॑। अ॒स्तु॒। नः॒। ९.४।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • शान्तिः, मन्त्रोक्ताः
  • ब्रह्मा
  • अनुष्टुप्
  • शान्ति सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

मनुष्यों को कर्तव्य का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (इदम्) यह (यत्) जो (परमेष्ठिनम्) सर्वोत्कृष्ट परमात्मा में ठहरनेवाला (वाम्) तुम दोनों [स्त्री-पुरुषों] का (मनः) मन (ब्रह्मसंशितम्) वेदज्ञान से तीक्ष्ण किया गया है, और (येन) जिस [मन] के द्वारा (एव) ही (घोरम्) घोर [भयङ्कर पाप] (ससृजे) उत्पन्न हुआ है, (तेन) उस [मन] के द्वारा (एव) ही (नः) हमारे लिये (शान्तिः) शान्ति [धैर्य, आनन्द] (अस्तु) होवे ॥४॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - यह मन जो परमात्मा का निवास और वेदज्ञान का कोश है, यदि उस मन में कोई विकार उत्पन्न हो तो हे मनुष्यो ! उस को ठीक करके परस्पर सुख बढ़ाओ ॥४॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ४−(इदम्) उपस्थितम् (यत्) (परमेष्ठिनम्) अर्त्तेः किदिच्च। उ० २।५१। परम+ष्ठा गतिनिवृत्तौ-इनन्, कित्। परमे सर्वोत्कृष्टे परमात्मनि स्थितिशीलम् (मनः) अन्तःकरणम् (वाम्) युवयोः। स्त्रीपुरुषयोः (ब्रह्मसंशितम्) ब्रह्मणा वेदज्ञानेन तीक्ष्णीकृतम् उत्तेजितम्। (येन) मनसा (तेन) मनसा। अन्यत् पूर्ववत्-म० ३ ॥

०५ इमानि यानि

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

इ॒मानि॒ यानि॒ पञ्चे॑न्द्रि॒याणि॒ मनः॑षष्ठानि मे हृ॒दि ब्रह्म॑णा॒ संशि॑तानि।
यैरे॒व स॑सृ॒जे घो॒रं तैरे॒व शान्ति॑रस्तु नः ॥

०५ इमानि यानि ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. These five senses, with mind as sixth, that are in my heart,
    sharpened by bráhman, by which is produced what is terrible—by them be
    there appeasement for us.
Notes

The mss. read mána ṣaṣṭhā́ni (p. mánaḥ: ṣaṣṭhā́ni), but SPP., as well
as our text, emends to -ṭhāni, and this the comm. also understands. In
all the verses 3-5, some of the mss. leave sasṛje unaccented. This
verse (10 + 8 + 7: 8 + 8 = 41) is ill defined by the Anukr.

Griffith

These five sense-organs with the mind as sixth, sharpened by Prayer, abiding in my heart, By which the awful spell was made, even by these be peace to us.

पदपाठः

इ॒मानि॑। यानि॑। पञ्च॑। इ॒न्द्रि॒याणि॑। मनः॑ऽषष्ठानि। मे॒। हृ॒दि। ब्रह्म॑णा। सम्ऽशि॑तानि। यैः। ए॒व। स॒सृ॒जे। घो॒रम्। तैः। ए॒व। शान्तिः॑। अ॒स्तु॒। नः॒। ९.५।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • शान्तिः, मन्त्रोक्ताः
  • ब्रह्मा
  • पञ्चपदा पथ्यापङ्क्तिः
  • शान्ति सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

मनुष्यों को कर्तव्य का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (इमानि) ये (यानि) जो (मनःषष्ठानि) छठे मन सहित (पञ्च) पाँच (इन्द्रियाणि) इन्द्रियाँ [कान, नेत्र, नासिका, जिह्वा और त्वचा ज्ञानेन्द्रियाँ] (मे) मेरे (हृदि) हृदय में (ब्रह्मणा) वेदज्ञान से (संशितानि) तीक्ष्ण की गयी हैं। और (यैः) जिन [इन्द्रियों] के द्वारा (एव) ही (घोरम्) घोर [भयङ्कर पाप] (ससृजे) उत्पन्न हुआ है, (तैः) उन के द्वारा (एव) ही (नः) हमारे लिये (शान्तिः) शान्ति [धैर्य्य, आनन्द] (अस्तु) होवे ॥५॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जो मन और सब ज्ञानेन्द्रियाँ वेदज्ञान से तेजस्वी हुए हैं, यदि उनके विकार से कोई पाप घटना हो जावे तो विद्वान् पुरुष उसे सुधारकर आपस में सुख भोगें ॥५॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ५−(इमानि) दृश्यमानानि (यानि) (पञ्च) (इन्द्रियाणि) श्रोत्रनेत्रनासिकाजिह्वात्वग्रूपाणि ज्ञानेन्द्रियाणि (मनःषष्ठानि) मनः षष्ठं येषां तानि (मे) मम (हृदि) हृदये (ब्रह्मणा) वेदज्ञानेन (संशितानि) तीक्ष्णीकृतानि (यैः) इन्द्रियैः (तैः) इन्द्रियैः। अन्यत् पूर्ववत्-म० ३ ॥

०६ शं नो

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

शं नो॑ मि॒त्रः शं वरु॑णः॒ शं विष्णुः॒ शं प्र॒जाप॑तिः।
शं न॒ इन्द्रो॒ बृह॒स्पतिः॒ शं नो॑ भवत्वर्य॒मा ॥

०६ शं नो ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Weal for us be Mitra, weal Varuṇa, weal Vishṇu, weal Prajāpati, weal
    for us Indra, Bṛihaspati, weal for us be Aryaman.
Notes

This verse corresponds nearly to RV. i. 90. 9 and VS. xxxvi. 9; both
these, however, put the pādas in the order a, d, c, b, and they read
for our b śáṁ no víṣṇur urukramáḥ.

Griffith

Favour us Mitra, Varuna, and Vishnu, and Prajapati! Gracious* to us be Indra and Brihaspati and Aryaman.

पदपाठः

शम्। नः॒। मि॒त्रः। शम्। वरु॑णः। शम्। विष्णुः॑। शम्। प्र॒जाऽप॑तिः। शम्। नः॒। इन्द्रः॑। बृह॒स्पतिः॑। शम्। नः॒। भ॒व॒तु॒। अ॒र्य॒मा। ९.६।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • शान्तिः, मन्त्रोक्ताः
  • ब्रह्मा
  • अनुष्टुप्
  • शान्ति सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

मनुष्यों को कर्तव्य का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (नः) हमारे लिये (मित्रः) सबका मित्र [परमेश्वर वा विद्वान् पुरुष] (शम्) शान्तिदायक, (वरुणः) सब में श्रेष्ठ (शम्) शान्तिदायक, (विष्णुः) सब गुणों में व्यापक (शम्) शान्तिदायक, (प्रजापतिः) प्रजापति [प्रजाओं का रक्षक] (शम्) शान्दिदायक [होवें]। (नः) हमारे लिये (इन्द्रः) परम ऐश्वर्यवान्, (बृहस्पतिः) बड़ी वेदविद्या का रक्षक (शम्) शान्तिदायक, (नः) हमारे लिये (अर्यमा) श्रेष्ठों का मान करनेवाला [न्यायकारी परमेश्वर वा विद्वान् पुरुष] (शम्) शान्तिदायक (भवतु) होवे ॥६॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जैसे सर्वहितकारी, सर्वश्रेष्ठ, सर्वगुणविशिष्ट परमेश्वर सब जगत् की रक्षा करता है, वैसे ही विद्वान् जन परस्पर स्नेह करके संसार का उपकार करें ॥६॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: यह मन्त्र कुछ भेद से ऋग्वेद में है−१।९०।९ और यजुर्वेद−३६।९ ॥ ६−(शम्) सुखकारी (नः) अस्मभ्यम् (मित्रः) ञिमिदा स्नेहने-क्त्र। सर्वस्नेही परमेश्वरो विद्वान् वा (शम्) (वरुणः) सर्वोत्कृष्टः (शम्) (विष्णुः) सर्वगुणेषु व्यापकः (शम्) (प्रजापतिः) प्रजानां पालकः (शम्) (नः) (इन्द्रः) परमैश्वर्ययुक्तः (बृहस्पतिः) बृहत्या वाचो विद्यायाः पतिः पालकः (शम्) (नः) (भवतु) (अर्यमा) श्रेष्ठानां मानकर्ता न्यायकारी परमेश्वरो मनुष्यो वा ॥

०७ शं नो

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

शं नो॑ मि॒त्रः शं वरु॑णः॒ शं वि॒वस्वा॒ञ्छमन्त॑कः।
उ॒त्पाताः॒ पार्थि॑वा॒न्तरि॑क्षाः॒ शं नो॑ दि॒विच॑रा॒ ग्रहाः॑ ॥

०७ शं नो ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Weal for us be Mitra, weal Varuṇa, weal Vivasvant, weal the destroyer
    (ántaka), [weal] the portents from earth and from atmosphere, weal
    for us the planets (?) moving in the sky.
Notes

The mss. vary between utpā́tās and utpātā́s, the great majority
favoring the former. SPP. reads pā́rthivā ”ntárikṣās, giving in
pada-text -vā: ānt-, while the pada-mss. read -vā: ant-; but his
reading is palpably wrong and impossible, while a very slight emendation
would have given pārthivāntarikṣā́s (implying the pada-text
pārthiva॰āntarikṣāḥ), which is implied in the translation above. The
comm. explains as if he had pārthivās and āntarikṣās as two separate
words; but, according to SPP., his text reads pārthivāntarikṣāḥ. Half
the saṁhitā-mss. or more combine -ikṣācháṁ no, as if the word had
ended in -kṣāt; and, as these included all known to us down to the
time of printing, our text reflects them. The comm. of course makes no
question of explaining grahās at the end as “Mars and the rest”; and
perhaps there is no sufficient reason for questioning that
interpretation. The Anukr. does not remark the redundancy of a syllable
in 7 c.

Griffith

Favour us Mitra, Varuna, Vivasvan, and the Finisher, Portents on earth and in the air, and planets wandering in heaven!

पदपाठः

शम्। नः॒। मि॒त्रः। शम्। वरु॑णः। शम्। वि॒वस्वा॑न्। शम्। अन्त॑कः। उ॒त्ऽपाताः॑। पार्थि॑वा। आ॒न्तरि॑क्षाः। शम्। नः॒। दि॒विऽच॑राः। ग्रहाः॑। ९.७।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • शान्तिः, मन्त्रोक्ताः
  • ब्रह्मा
  • अनुष्टुप्
  • शान्ति सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

मनुष्यों को कर्तव्य का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (नः) हमारे लिये (मित्रः) प्राण वायु (शम्) शान्तिदायक, (वरुणः) जल [वा अपान वायु], (शम्) शान्दिदायक (विवस्वान्) विविध चमकनेवाला सूर्य (शम्) शान्तिदायक (अन्तकः) अन्त करनेवाला [मृत्यु] (शम्) शान्तिदायक [होवे]। (पार्थिवा) पृथिवी पर होनेवाले और (आन्तरिक्षाः) अन्तरिक्ष [आकाश] में होनेवाले (उत्पाताः) उत्पात [उपद्रव] और (दिविचराः) सूर्य के प्रभाव में घूमनेवाले (ग्रहाः) ग्रह [चन्द्र, मङ्गल, बुध आदि] (नः) हमारे लिये (शम्) शान्तिदायक [होवें] ॥७॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्यों को विद्यापूर्वक वायु जल आदि पदार्थों से उपकार लेकर सुखी होना चाहिये ॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ७−(शम्) शान्तिप्रदः (नः) अस्मभ्यम् (मित्रः) मिनोतेः-क्त्र। प्रेरकः प्राणः (शम्) (वरुणः) जलम्। अपानः (शम्) (विवस्वान्) विविधप्रकाशकः सूर्यः (शम्) (अन्तकः) अन्त+करोतेः-ड प्रत्ययः। अन्तकरः। मृत्युः (उत्पाताः) उपद्रवाः (पार्थिवा) विभक्तेर्डा। पार्थिवाः। पृथिव्यां भवाः (आन्तरिक्षाः) आकाशे भवाः (शम्) (नः) (दिविचराः) सूर्यप्रभावे विचरणशीलाः (ग्रहाः) चन्द्रमङ्गलबुधादयः ॥

०८ शं नो

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

शं नो॒ भूमि॑र्वेप्यमा॒ना शमु॒ल्का निर्ह॑तं च॒ यत्।
शं गावो॒ लोहि॑तक्षीराः॒ शं भूमि॒रव॑ तीर्य॒तीः ॥

०८ शं नो ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Weal for us be the quaking (vip) earth, and weal what is
    meteor-smitten; weal be the red-milked kine, weal the earth when
    cleaving down.
Notes

All the mss. accent vepyamāná in a, and nearly all (including the
pada-mss.) end it as a nom. pl. -mānā́ḥ; SPP. emends by dropping the
blundering visarga, but does not venture to alter the equally
blundering accent; of course, it must be made vepyámānā, as pres.
pass, pple of the causative, unless we emend further to vépamānā, as
our text reads, and as is decidedly better. The comm. reads vepyamānā,
and explains it once by kampamānā and once by kampyamānā. ⌊Most⌋
mss., and SPP., read in b ulkā́ nírh-; ⌊but Whitney’s I. and three
of SPP’s authorities give ni- for nir-⌋; the comm. ⌊reads -ni-
and⌋ understands the two words to form a compound, as it is made to be
in our text by simply removing the accent of -nir-; one does not see
the applicability of the prefix nis-. In c, some of the mss. read
lóhitaḥ, and some accent kṣīrā́ḥ; ‘red-milked’ would be with equal
propriety rendered ‘bloody-milked’; and the two things are of course
equivalent. In d, the comm. has avadīryatī, glossing it with
avadīryamāṇā, and this reading has been gratefully adopted in the
translation. All the mss. give ávatīryatī́s, and all the pada-mss.
divide it ávatīḥ: yatī́ḥ; SPP. emends to áva tīryatī́ḥ, by which
nothing at all is gained; we emended to avatī́ryatī, which is at least
grammatical, though hardly intelligible; avadīryatī is both; ⌊one of
SPP’s reciters gives áva dīryatī́⌋.

Griffith

Gracious to us be trembling earth, gracious the flaming meteor stroke! Gracious be kine who yield red milk, gracious be earth when sinking down!

पदपाठः

शम्। नः॒। भूमिः॑। वे॒प्य॒मा॒ना। शम्। उ॒ल्का। निःऽह॑तम्। च॒। यत्। शम्। गावः॑। लोहि॑तऽक्षीराः। शम्। भूमिः॑। अव॑। ती॒र्य॒तीः। ९.८।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • शान्तिः, मन्त्रोक्ताः
  • ब्रह्मा
  • अनुष्टुप्
  • शान्ति सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

मनुष्यों को कर्तव्य का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (नः) हमारे लिये (वेप्यमाना) काँपती हुई (भूमिः) भूमि (शम्) शान्तिदायक, (च) और (यत्) जो कुछ (उल्का) उल्काओं से [रेखाकार आकाश से गिरते हुए तेजपुञ्जों, टूटते हुए तारों से] (निर्हतम्) नष्ट किया गया है, [वह] (शम्) शान्तिदायक [होवे]। (लोहितक्षीराः) रुधिरयुक्त दूध देनेवाली (गावः) गौएँ (शम्) शान्तिदायक [होवें] और (अव तीर्यतीः) धसकती हुई (भूमिः) भूमि (शम्) शान्तिदायक [होवे] ॥८॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - दूरदर्शी मनुष्य भूकम्प, तारे टूटने, रोग के कारण दूध बिगड़ने, दलदल से पृथिवी के बैठ जाने आदि विघ्नों से बचने का उपाय करके सुखी होवें ॥८॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ८−(शम्) शान्तिप्रदा (नः) अस्मभ्यम् (भूमिः) (वेप्यमाना) कम्पमाना (शम्) (उल्का) उल दाहे-क प्रत्ययः, विभक्तेर्डा। उल्काभिः। रेखाकारे गगनात् पतत्तेजःपुञ्जैः (निर्हतम्) विनष्टम् (च) (यत्) यत् किञ्चित् (शम्) (गावः) धेनवः (लोहितक्षीराः) रुधिरयुक्तदुग्धोपेताः (शम्) (भूमिः) (अवतीर्यतीः) तॄ प्लवनतरणयोः−शतृ, ङीप्। बहुवचनं छान्दसम्। अवतीर्यती। अवतीर्यमाणा जलबाहुल्येनाधोगमना ॥

०९ नक्षत्रमुल्काभिहतं शमस्तु

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

नक्ष॑त्रमु॒ल्काभिह॑तं॒ शम॑स्तु नः॒ शं नो॑ऽभिचा॒राः शमु॑ सन्तु कृ॒त्याः।
शं नो॒ निखा॑ता व॒ल्गाः शमु॒ल्का दे॑शोपस॒र्गाः शमु॑ नो भवन्तु ॥

०९ नक्षत्रमुल्काभिहतं शमस्तु ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Be the meteor-smitten asterism weal for us; weal for us the
    enchantments and weal be the witchcrafts; weal for us the buried spells
    (valagá), weal the meteors; and weal be for us the land-plagues.
Notes

Literally, ’the afflictions (upasarga) of a region.’ All the mss. read
in a ulkā́bhíh (p. ulkā́: abhí॰h-), which SPP. accordingly adopts;
the comm. again (as in 8 b) regards it as a compound, which it is
unquestionably meant to be, and which our text gives by emendation; the
prefix abhi suits the situation, as nir (8 b) did not. In c,
SPP. has the better accent nikhātās, with a large minority of his
mss.; none of ours give it, and we accepted nikhātā́s, since it is not
without support elsewhere. Our valagā́s was an emendation for valgā́s;
but our two pada-mss. ⌊D.s.m.L.⌋ compared later, have valagā́ḥ, as
does one of SPP’s; the latter, however, adopts valgā́s, against meter
and sense, and against the comm. The pada-mss. all have ulkā́ in
c, an evident blunder for -kā́ḥ, which SPP. this time ventures to
read by emendation: it is extremely difficult to understand his
selection of the cases where he is willing to emend. The metrical
definition of the verse (really 12 + 11: 11 + 11 = 45) by the Anukr. is
as bad as possible.

Griffith

Gracious be meteor-stricken constellation, gracious to us be magic spells and witchcraft! Gracious to us be buried charms, and gracious the meteors and the portents of the region!

पदपाठः

नक्ष॑त्रम्। उ॒ल्का। अ॒भिऽह॑तम्। शम्। अ॒स्तु॒। नः॒। शम्। नः॒। अभि॒ऽचा॒राः। शम्। ऊँ॒ इति॑। स॒न्तु॒। कृ॒त्याः। शम्। नः॒। निऽखा॑ताः। व॒ल्गाः। शम्। उ॒ल्काः। दे॒शो॒प॒ऽस॒र्गाः। शम्। ऊँ॒ इति॑। नः॒। भ॒व॒न्तु॒। ९.९।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • शान्तिः, मन्त्रोक्ताः
  • ब्रह्मा
  • पञ्चपदा ककुम्मती त्रिष्टुप्
  • शान्ति सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

मनुष्यों को कर्तव्य का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (उल्का) उल्काओं [टूटते तारों] से (अभिहतम्) नष्ट किया हुआ (नक्षत्रम्) नक्षत्र (नः) हमें (शम्) शान्तिदायक (अस्तु) होवे, (नः) हमारे लिये (अभिचाराः) विरुद्ध आचरण (शम्) शान्तिदायक (उ) और (कृत्याः) हिंसा क्रियाएँ (शम्) शान्तिदायक (सन्तु) होवें। (निखाताः) खोदे हुए (वल्गाः) गढ़े [सुरङ्ग आदि] (नः) हमें (शम्) शान्तिदायक, (उल्काः) उल्काएँ [टूटते तारे] (शम्) शान्तिदायक, (उ) और (देशोपसर्गाः) देश के उपद्रव (नः) हमें (शम्) शान्तिदायक (भवन्तु) होवें ॥९॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - विद्वान् पुरुष दैवी और मानुषी विपत्तियों से बचने का प्रयत्न करते रहें ॥९॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ९−(नक्षत्रम्) गमनशीलो लोकः (उल्का) म० ८। उल्काभिः। रेखाकारे गगनात् पतत्तेजोभिः (अभिहतम्) विनष्टम् (शम्) शान्तिप्रदम् (अस्तु) (नः) अस्मभ्यम् (अभिचाराः) व्यभिचाराः। विरुद्धाचरणानि (शम्) (उ) चार्थे (कृत्याः) अ० १४।२।४९। कृञ् हिंसायाम्−क्यप् तुक् च। हिंसाक्रियाः (शम्) (नः) (निखाताः) विदारिताः (वल्गाः) मुदिग्रोर्गग्गौ। उ० १।१२८। वल संवरणे−ग प्रत्ययः। गर्ताः। भूमिच्छिद्राणि (शम्) (उल्काः) म० ८। गगनात्पतत्तेजःपुञ्जाः (देशोपसर्गाः) देशोपद्रवाः (शम्) (उ) (नः) (भवन्तु) ॥

१० शं नो

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

शं नो॒ ग्रहा॑श्चान्द्रम॒साः शमा॑दि॒त्यश्च॑ राहु॒णा।
शं नो॑ मृ॒त्युर्धू॒मके॑तुः॒ शं रु॒द्रास्ति॒ग्मते॑जसः ॥

१० शं नो ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Weal for us be the planets belonging to the moon, and weal the sun
    (ādityá) with Rāhu; weal for us smoke-bannered death, weal the Rudras
    of keen brightness.
Notes

The translation follows in b the text of the comm. ādityaś ca
rāhuṇā
, as is read also by SPP., who follows the comm. and three or
four authorities. Most of the mss. have -tyaḥ śarāhuṇā (p. also
śarāhuṇā), but two or three śaṁ rāhuṇā. Those that accent -rāhuṇā
or rāhuṇā at all accent it on the final, -huṇā́, and this accent SPP.
has not dared to change, although it is against all rule and practice.
In connection with dhūmaketu the comm. quotes Kāuś. 127. 1, where the
word is used; it seems to me extremely unlikely that it signifies a
comet; ⌊does it not refer rather to the smoke that rises from the
pyre?⌋.

Griffith

Kind be the Powers who seize the Moon, with Rahu be Adityas kind! Favour us Death and Cornet, and Rudras with penetrating. might!

पदपाठः

शम्। नः॒। ग्रहाः॑। चा॒न्द्र॒म॒साः। शम्। आ॒दि॒त्यः। च॒। रा॒हु॒णा। शम्। नः॒। मृ॒त्युः। धू॒मऽके॑तुः। शम्। रु॒द्राः। ति॒ग्मऽते॑जसः। ९.१०।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • शान्तिः, मन्त्रोक्ताः
  • ब्रह्मा
  • अनुष्टुप्
  • शान्ति सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

मनुष्यों को कर्तव्य का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (चान्द्रमसाः) चन्द्रमा के (ग्रहाः) ग्रह [कृत्तिका आदि नक्षत्र] (नः) हमें (शम्) शान्तिदायक [होवें], (च) और (आदित्यः) सूर्य (राहुणा) राहु [ग्रह विशेष] के साथ (शम्) शान्तिदायक [होवे]। (मृत्युः) मृत्युरूप (धूमकेतुः) धूमकेतु [पुच्छल तारा] (नः) हमें (शम्) शान्तिदायक [हो], (तिग्मतेजसः) तीक्ष्ण तेजवाले (रुद्राः) गतिमान् [बृहस्पति आदि ग्रह] (शम्) शान्तिदायक [होवें] ॥१०॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - राहु ग्रह विशेष, प्रकाश को रोककर सूर्य और चन्द्र के ग्रहण का कारण होता है, धूमकेतु अपनी टेढ़ी चाल से अनेक ग्रहों और नक्षत्रों को टकराकर नाश करता है, मनुष्य ज्योतिष शास्त्र द्वारा दूरदर्शी होकर विघ्नों से बचने का उपाय करें ॥१०॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १०−(शम्) शान्तिप्रदाः (नः) अस्मभ्यम् (ग्रहाः) कृत्तिकादिनक्षत्रगणाः (चान्द्रमसाः) चन्द्रलोकसम्बन्धिनः (शम्) (आदित्यः) आदीप्यमानः सूर्यः (च) (राहुणा) दृसनिजनिचरिचटिरहिभ्यो ञुण्। उ० १।३। रह त्यागे−ञुण्। ज्योतिश्चक्रस्थेन सूर्यकिरणसम्पर्काभावेन जायमानपृथिवीच्छायाकारकेण ग्रहभेदेन (शम्) (नः) (मृत्युः) मृत्युरूपः (धूमकेतुः) उत्पारूपोऽशुभसूचकस्तारापुञ्जरूपोऽशुभसूचकस्तारापुञ्जभेदः (शम्) (रुद्राः) रु गतौ-क्विप्, तुक्। रो मत्वर्थीयः। गतिमन्तो ग्रहाः (तिग्मतेजसः) तीक्ष्णतापाः ॥

११ शं रुद्राः

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

शं रु॒द्राः शं वस॑वः॒ शमा॑दि॒त्याः शम॒ग्नयः॑।
शं नो॑ मह॒र्षयो॑ दे॒वाः शं दे॒वाः शं बृह॒स्पतिः॑ ॥

११ शं रुद्राः ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Weal [for us be] the Rudras, weal the Vasus, weal the Ādityas,
    weal the fires; weal for us the divine great seers, weal the gods, weal
    Bṛihaspati.
Notes

In c, SPP. reads maharṣáyas, against most of his authorities
(although he gives saptaṛṣáyas in the two following verses). Some of
the mss. leave devās in c unaccented; and two of SPP’s treat the
word in the same manner in d. Our emendation in d to devī́s is
probably toe venturesome, although it seems strange to have ’the gods’
mentioned as a body in connection with the mention of so many of them
separately.

Griffith

Rudras and Vasus favour us, Adityas, Agnis favour us! Favour us mighty Rishis, Gods, Goddesses, and Brihaspati!

पदपाठः

शम्। रु॒द्राः। शम्। वस॑वः। शम्। आ॒दि॒त्याः। शम्। अ॒ग्नयः॑। शम्। नः॒। म॒ह॒ऽऋष॑यः। दे॒वाः। शम्। दे॒वाः। शम्। बृह॒स्पतिः॑। ९.११।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • शान्तिः, मन्त्रोक्ताः
  • ब्रह्मा
  • अनुष्टुप्
  • शान्ति सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

मनुष्यों को कर्तव्य का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (रुद्राः) रुद्र [ग्यारह रुद्र अर्थात् प्राण, अपान, व्यान, उदान, समान, नाग, कूर्म, कृकल, देवदत्त, धनञ्जय और जीवात्मा] (शम्) शान्तिदायक (वसवः) वसु [आठ वसु अर्थात् अग्नि, पृथिवी, वायु, अन्तरिक्ष, सूर्य, प्रकाश, चन्द्रमा और तारागण] (शम्) शान्तिदायक (आदित्याः) महीने [चैत्र आदि बारह महीने] (शम्) शान्तिदायक और (अग्नयः) अग्नियाँ [शारीरिक, आत्मिक और सामाजिक बल] (शम्) शान्तिदायक [होवें]। (महर्षयः) महर्षि [बड़े-बड़े वेदज्ञाता] (देवाः) विद्वान् लोग (नः) हमें (शम्) शान्तिदायक, (देवाः) उत्तम व्यवहार (शम्) शान्तिदायक [होवें] और (बृहस्पतिः) बड़े ब्रह्माण्डों का स्वामी [परमात्मा] (शम्) शान्तिदायक [होवे] ॥११॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य रुद्र, वसु और आदित्यसंज्ञक पदार्थों को प्रयत्नपूर्वक महर्षि विद्वानों के सत्सङ्ग और परमात्मा के विश्वास से अनेक व्यवहारों में प्रयुक्त करके सब जीवों को सुख पहुँचावें ॥११॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: रुद्र, वसु और आदित्य शब्दों के लिये महर्षिदयानन्दकृत यजुर्वेदभाष्य−२।५। देखो ॥ ११−(शम्) शान्तिप्रदाः (रुद्राः) रु गतौ-क्विप्, तुक् रो मत्वर्थीयः गतिमन्तः। प्राणापानव्यानोदानसमान-नागकूर्मकृकलदेवदत्तधनञ्जयाख्या दश प्राणा एकादशो जीवश्चेत्येकादश रुद्राः-दयानन्दकृतभाष्ये, यजु० २।५। (शम्) (वसवः) अग्निश्च पृथिवी च वायुश्चान्तरिक्षं चादित्यश्च द्यौश्च चन्द्रमाश्च नक्षत्राणि चैते वसवः-दयानन्दभाष्ये, यजु० २।५। (शम्) (आदित्याः) द्वादशमासाः-तत्रैव (शम्) (अग्नयः) शारीरिकात्मिकसामाजिकपराक्रमाः (शम्) (नः) (महर्षयः) महान्तो वेदार्थज्ञातारः (देवाः) विद्वांसः (शम्) (देवाः) उत्तमव्यवहाराः (शम्) (बृहस्पतिः) बृहतां ब्रह्माण्डानां पालकः परमेश्वरः ॥

१२ ब्रह्म प्रजापतिर्धाता

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

ब्रह्म॑ प्र॒जाप॑तिर्धा॒ता लो॒का वेदाः॑ सप्तऋ॒षयो॒ऽग्नयः॑।
तैर्मे॑ कृ॒तं स्व॒स्त्यय॑न॒मिन्द्रो॑ मे॒ शर्म॑ यच्छतु ब्र॒ह्मा मे॒ शर्म॑ यच्छतु।
विश्वे॑ मे दे॒वाः शर्म॑ यच्छन्तु॒ सर्वे॑ मे दे॒वाः शर्म॑ यच्छन्तु ॥

१२ ब्रह्म प्रजापतिर्धाता ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. The bráhman, Prajāpati, Dhātar, the worlds, the Vedas, the seven
    seers, the fires—by them happy progress (svastyáyana) is made for me:
    let Indra grant (yam) me refuge; let Brahmán grant me refuge; let all
    the gods grant me refuge; let the gods all grant me refuge.
Notes

The Anukr., the comm., and a better connection are here followed, by
adding to this verse the two pādas which in our edition are printed as
13 a, b, in accordance with the numbering of our mss. (8 + 10: 8 + 8

  • 8: 10 + 10 = 62, two syllables short of a full aṣṭi); SPP. makes the
    same division. Some of SPP’s mss. read in b devā́s instead of
    vedā́s: the accent vedā́s seems to be modeled on devā́s, for ’the
    Vedas’ should be védās, and the word ought doubtless to be so emended;
    ⌊O.D. actually have védās, and the comm. says the four Vedas are
    intended⌋. We should expect at the beginning brahmā́. ⌊With c, cf.
  1. 1 b.⌋
Griffith

Brahma, Dhatar, Prajapati, Worlds, Vedas, Agnis, Rishis Seven. All these have blessed my happy way. May Indra be my guardian, may Brahma protect and shelter me.

पदपाठः

ब्रह्म॑। प्र॒जाऽप॑तिः। धा॒ता। लो॒काः। वे॒दाः। स॒प्त॒ऽऋ॒षयः॑। अ॒ग्नयः॑। तैः। मे॒। कृ॒तम्। स्व॒स्त्यय॑नम्। इन्द्रः॑। मे॒। शर्म॑। य॒च्छ॒तु॒। ब्र॒ह्मा। मे॒। शर्म॑। य॒च्छ॒तु॒। विश्वे॑। मे॒। दे॒वाः। शर्म॑। य॒च्छ॒न्तु॒। सर्वे॑। मे॒। दे॒वाः। शर्म॑। य॒च्छ॒न्तु॒। ९.१२।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • शान्तिः, मन्त्रोक्ताः
  • ब्रह्मा
  • त्र्यवसाना सप्तपदाष्टिः
  • शान्ति सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

मनुष्यों को कर्तव्य का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (ब्रह्म) यत्र, (प्रजापतिः) प्रजापालक [इन्द्रियादि का रक्षक] और (धाता) पोषक [जीवात्मा], (लोकाः) सब लोक [पृथिवी आदि] (वेदाः) ऋग्वेद आदि चारों वेद, (सप्तऋषयः) सात ऋषि [कान, आँख, नाक, जिह्वा, त्वचा पाँच ज्ञानेन्द्रिय, मन और बुद्धि], और (अग्नयः) अग्नि [शारीरिक, आत्मिक और सामाजिक पराक्रम] [जो हैं]। (तैः) उन करके (मे) मेरे लिये (स्वस्त्ययनम्) कल्याण का मार्ग (कृतम्) बनाया गया, है (इन्द्रः) इन्द्र [परम ऐश्वर्यवान् जगदीश्वर] (मे) मेरे लिये (शर्म) सुख (यच्छतु) देवे, (ब्रह्मा) ब्रह्मा [सब से बड़ा परमात्मा] (मे) मेरे लिये (शर्म) सुख (यच्छतु) देवे ॥१२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्यों को चाहिये कि परमेश्वर की सृष्टि के बीच वेद आदि शास्त्र द्वारा संसार के अन्न आदि पदार्थों को इन्द्रियों और मन बुद्धि द्वारा यथावत् परीक्षा करके काम में लावें, और परमेश्वर को धन्यवाद देते हुए सुख प्राप्त करें ॥१२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १२−(ब्रह्म) अन्नम्-निघ० २।७। (प्रजापतिः) इन्द्रियादिप्रजानां पालकः (धाता) पोषको जीवात्मा (लोकाः) पृथिव्यादयः (वेदाः) ऋग्वेदादयश्चत्वारो वेदाः (सप्तऋषयः) मनोबुद्धिसहितानि श्रोत्रनेत्रनासिकाजिह्वात्त्वग्रूपाणि पञ्च ज्ञानेन्द्रियाणि (अग्नयः) म० ११ (तैः) पूर्वोक्तैः (मे) मह्यम् (कृतम्) निष्पादितम् (स्वस्त्ययनम्) कल्याणमार्गः (इन्द्रः) परमैश्वर्यवान् जगदीश्वरः (मे) (शर्म) सुखम् (यच्छतु) ददातु (ब्रह्मा) सर्वेभ्यः प्रवृद्धः परमात्मा। अन्यत् पूर्ववत् ॥

१३ यानि कानि

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

यानि॒ कानि॑ चिच्छा॒न्तानि॑ लो॒के स॑प्तऋ॒षयो॑ वि॒दुः।
सर्वा॑णि॒ शं भ॑वन्तु मे॒ शं मे॑ अ॒स्त्वभ॑यं मे अस्तु ॥

१३ यानि कानि ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Whatsoever things that are appeased in the world the seven seers
    know, be they all weal for me; let weal be mine, let fearlessness be
    mine.
Notes

Many of the mss. accent in b lóke and saptárṣayo. ⌊In d
asty is a misprint for astv.⌋

Griffith

May all the Gods protect me, may the Gods united shield me well. May all alleviations in the world which the Seven Rishis know. Be kind and gracious unto me. Bliss and security be mine!

पदपाठः

यानि॑। कानि॑। चि॒त्। शा॒न्तानि॑। लो॒के। स॒प्त॒ऽऋ॒षयः॑। वि॒दुः। सर्वा॑णि। शम्। भ॒व॒न्तु॒। मे॒। शम्। मे॒। अ॒स्तु॒। अभ॑यम्। मे॒। अ॒स्तु॒। ९.१३।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • शान्तिः, मन्त्रोक्ताः
  • ब्रह्मा
  • अनुष्टुप्
  • शान्ति सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

मनुष्यों को कर्तव्य का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (यानि) जिन (कानि) किन्हीं (चित्) भी [शान्तानि] शान्त कर्मों को (लोके) संसार में (सप्तऋषयः) सात ऋषि [कान, आँख, नाक, जिह्वा, त्वचा पाँच ज्ञानेन्द्रिय मन और बुद्धि] (विदुः) जानते हैं। (सर्वाणि) वे सब (मे) मेरे लिये (शम्) शान्तिदायक (भवन्तु) होवें, (मे) मेरे लिये (शम्) शान्ति [आरोग्यता धैर्य आदि] (अस्तु) होवे, (मे) मेरे लिये (अभयम्) अभय (अस्तु) होवे ॥१३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्यों को योग्य है कि संसार के सब पदार्थों को साक्षात् करके उनसे यथावत् लाभ उठावें और धर्म का आचरण करते हुए धैर्य के साथ निर्भय रहें ॥१३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १३−(यानि कानि) उक्तानुक्तानि (चित्) एव (शान्तानि) शान्तियुक्तानि कर्माणि (लोके) संसारे (सप्तऋषयः) म० १२। मनोबुद्धिसहितानि पञ्चज्ञानेन्द्रियाणि (विदुः) जानन्ति (सर्वाणि) (शम्) शान्तकराणि (भवन्तु) (मे) मह्यम् (शम्) (मे) (अस्तु) (अभयम्) भयराहित्यम् (मे) (अस्तु) ॥

१४ पृथिवी शान्तिरन्तरिक्षम्

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

पृ॑थि॒वी शान्ति॑र॒न्तरि॑क्षं॒ शान्ति॒र्द्यौः शान्ति॒रापः॒ शान्ति॒रोष॑धयः॒ शान्ति॒र्वन॒स्पत॑यः॒ शान्ति॒र्विश्वे॑ मे दे॒वाः शान्तिः॒ सर्वे॑ मे देवाः॒ शान्तिः॒ शान्तिः॒ शान्तिः॒ शान्ति॑भिः।
ताभिः॒ शान्ति॑भिः॒ सर्व॒ शान्ति॑भिः॒ शम॑यामो॒ऽहं यदि॒ह घो॒रं यदि॒ह क्रू॒रं यदि॒ह पा॒पं तच्छा॒न्तं तच्छि॒वं सर्व॑मे॒व शम॑स्तु नः ॥

१४ पृथिवी शान्तिरन्तरिक्षम् ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. [Be] earth appeasement, atmosphere appeasement, sky appeasement,
    waters appeasement, herbs appeasement, forest trees appeasement; [be]
    all the gods appeasement for me, the gods all appeasement for me,
    appeasement with appeasements; by those appeasements all-appeasing do I
    appease what here is terrible, what here is cruel, what here is evil;
    [be] that appeased, [be] that propitious; be just everything weal
    for us.
Notes

With a large minority of his authorities, and with the comm., SPP. adds
one more śā́ntiḥ before śā́ntibhis at the end of the first division;
in the second division, he follows the mss. slavishly in reading sárva
śā́ntibhiḥ;
the comm. apparently (it is defective here) agrees with our
emendation to sarvaśāntibhis. After this word, the mss. all have
śamayāmoham, accenting either śámayā́mohám or śámayāmohám; the
pada-mss. divide it absurdly śámaya: mohám; the comm. understands it
as śamayāmo ‘ham, with substitution of aham for vayam by Vedic
license (a mere exchange of plural and singular); SPP. unaccountably
gives śámayāmohám with the pada-text śám: ayāmaḥ: akám; our
emendation to śamayāmy ahám is evidently necessary. Similar passages
occur in VS. xxxvi. 17; TA. iv. 42 (28); MS. iv. 9. 27 ⌊p. 138¹²⌋; but
it is not worth while to quote them in detail; TA. (29) contains the
compound sarvaśāntí and MS. has sárvaśānti. The “verse” is the only
one in the whole work that is called a saṁkṛti (96 syllables); it
counts naturally 94 syllables.

⌊Here ends the first anuvāka, with 9 hymns and 59 verses. The comm.
(not SPP.) divides the Purusha-sūkta (our hymn 6) into two hymns, so
that our vss. 1-5 make his hymn 6 and our vss. 6-16 make his hymn 7:
thus his first anuvāka consists of 10 hymns.—There are of course no
further quotations from the Old Anukr. or Pañcapaṭalikā: cf. p. 896,
line 4.⌋

Griffith

Earth alleviation, air alleviation, heaven alleviation, waters alleviation, plants alleviation, trees alleviation, all Gods my al- leviation, collective Gods my alleviation, alleviation by allevia- tions. By these alleviations, these universal alleviations, I allay all that is terrific here, all that is cruel, all that is wicked. This hath been calmed, this is now auspicious. Let all be favourable to us.

पदपाठः

पृ॒थि॒वी। शान्तिः॑। अ॒न्तरि॑क्षम्। शान्तिः॑। द्यौः। शान्तिः॑। आपः॑। शान्तिः॑। ओष॑धयः। शान्तिः॑। वन॒स्पत॑यः। शान्तिः॑। विश्वे॑। मे॒। दे॒वाः। शान्तिः॑। सर्वे॑। मे॒। दे॒वाः। शान्तिः॑। शान्तिः॑। शान्तिः॑। शान्ति॑ऽभिः। ताभिः॑। शान्ति॑ऽभिः। सर्व॑। शान्ति॑ऽभिः। श॑म्। अ॒या॒मः॒। अ॒हम्। यत्। इ॒ह। घो॒रम्। यत्। इ॒ह। क्रू॒रम्। यत्। इ॒ह। पा॒पम्। तत्। शा॒न्तम्। तत्। शि॒वम्। सर्व॑म्। ए॒व। शम्। अ॒स्तु॒। नः॒। ९.१४।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • शान्तिः, मन्त्रोक्ताः
  • ब्रह्मा
  • चतुष्पदा सङ्कृतिः
  • शान्ति सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

मनुष्यों को कर्तव्य का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (पृथिवी) भूमि (शान्तिः) शान्तिदायक [हो], (अन्तरिक्षम्) मध्यलोक [वायुमण्डल, मेघमण्डल, तारागण आदि] (शान्तिः) शान्तिदायक हो, (द्यौः) प्रकाशमान [सूर्य आदि] (शान्तिः) शान्तिदायक हो, (आपः) जल (शान्तिः) शान्तिदायक हो, (ओषधयः) ओषधें [अन्न सोमलता आदि] (शान्तिः) शान्तिदायक हों, (वनस्पतयः) वनस्पतियाँ [वट आदि वृक्ष] (शान्तिः) शान्तिदायक हों, (विश्वे) सब (देवाः) विद्वान् लोग (मे) मेरे लिये (शान्तिः) शान्तिदायक हों, (सर्वे) सब (देवाः) उत्तम पदार्थ (मे) मेरे लिये (शान्तिः) शान्तिदायक हों, (शान्तिभिः) शान्तियों [सुखदायक क्रियाओं] के साथ (शान्तिः) शान्ति, (शान्तिः) शान्ति [धैर्य आदि] हो। (ताभिः) उन (शान्तिभिः) शान्तियों [आनन्द क्रियाओं] से, (सर्व=सर्वाभिः) सब (शान्तिभिः) शान्तियों [धैर्य क्रियाओं] से (अहम्=वयम्) हम (शम्) शान्ति (अयामः) पावें, (यत्) जो कुछ (इह) यहाँ पर (घोरम्) घोर [भयङ्कर] हो, (यत्) जो कुछ (इह) यहाँ पर (क्रूरम्) क्रूर [निर्दय] हो, और (यत्) जो कुछ (इह) यहाँ पर (पापम्) पाप [अनिष्ट] हो, (तत्) वह (शान्तम्) शान्तियुक्त हो, (तत्) वह (शिवम्) कल्याणकारक हो, (सर्वम्) सब (एव) ही (नः) हमारे लिये (शम्) शान्तिदायक (अस्तु) हो ॥१४॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्यों को प्रयत्न करना चाहिये कि पृथिवी आदि पदार्थ सदा सुखदायक होवें ॥१४॥ इति प्रथमोऽनुवाकः ॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: यह मन्त्र कुछ भेद से यजुर्वेद में है−३६।१७ ॥१४−(पृथिवी) भूमिः (शान्तिः) शान्तिकरी (अन्तरिक्षम्) मध्यलोकः (शान्तिः) (द्यौः) प्रकाशमानः सूर्यादिः (शान्तिः) (आपः) जलानि (शान्तिः) (ओषधयः) अन्नसोमलताद्याः (वनस्पतयः) वटादिवृक्षाः (शान्तिः) (विश्वे) सर्वे (मे) मह्यम् (देवाः) विद्वांसः (शान्तिः) (सर्वे) (मे) (देवाः) दिव्यपदार्थाः (शान्तिः) (शान्तिः) (शान्तिभिः) सुखदायिकाभिः क्रियाभिः (सर्व) विभक्तेर्लुक्। सर्वाभिः (शान्तिभिः) (शम्) शान्तिम् (अयामः) अय गतौ। प्राप्नुमः (अहम्) सुपां सुलुक्०। पा० ७।१।३९। इति जसः सुः। वयम् (यत्) यत् किञ्चित् (इह) संसारे (घोरम्) भयङ्करम् (यत्) (इह) (क्रूरम्) निर्दयम् (यत्) (इह) (पापम्) अनिष्टम् (तत्) पूर्वोक्तम् (शान्तम्) (तत्) (शिवम्) कल्याणकरम् (सर्वम्) (एव) निश्चयेन (शम्) शान्तिप्रदम् (अस्तु) (नः) अस्मभ्यम् ॥